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presentation on karak in hindi

Hindi Kaarak (कारक)

Kaarak (कारक)


Signs (चिह्न)


Meaning (अर्थ)


Karta (कर्ता)


ने (Ne)


काम करने वाला (Kaam karne wala)


Karm (कर्म )


को (ko)


जिसपर काम का प्रभाव पड़े (jis par kam ka prabav pade)


Karan (करण)


से (Se)


जिसके द्वारा कर्ता काम करें (jiske dwara karta kam kre)


Sampradan (सम्प्रदान)


को,केलिए (ko, ke liye)


जिसके लिए क्रिया की जाए (jiske liye kriya ki jaay


Apadan (अपादान)


से {अलगहोना} (se)


जिससे अलगाव हो (jisse algaav ho)


Sanbandh (सम्बन्ध)


का,की,के,रा,री,रे (ka, ki, ke, ra,ri, re)


अन्य पदों से सम्बन्ध (anya pado se sambandh)


Adhikaran (अधिकरण)


में,पर (me, par)


क्रिया का आधार (kriya ke aadhar)


Sambodhan (संबोधन)


हे !,अरे ! (he! Are!)


किसी को पुकारना, बुलाना (kisi ko pukarna, bulana)


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Karak in Hindi | कारक परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण

January 31, 2024 by Prasanna

Karak in Hindi

In this page we are providing all  Hindi Grammar  topics with detailed explanations it will help you to score more marks in your exams and also write and speak in the Hindi language easily.

Karak in Hindi – Karak Ki Paribhasha, Bhed, Udaharan(Examples) in Hindi Grammar

कारक क्या होता है? What is the Karak

परिभाषा, चिह्न, प्रकार, परसगों का प्रयोग, संज्ञा एवं सर्वनामों पर कारक का प्रभाव–अभ्यास

“जो क्रिया की उत्पत्ति में सहायक हो या जो किसी शब्द का क्रिया से संबंध बताए वह ‘कारक’ है।” जैसे–माइकल जैक्सन ने पॉप संगीत को काफी ऊँचाई पर पहुँचाया।

यहाँ ‘पहुँचाना’ क्रिया का अन्य पदों माइकल जैक्सन, पॉप संगीत, ऊँचाई आदि से संबंध है। वाक्य में ‘ने’, ‘को’ और ‘पर’ का भी प्रयोग हुआ है। इसे कारक–चिह्न या परसर्ग या विभक्ति–चिह्न कहते हैं। यानी वाक्य में कारकीय संबंधों को बतानेवाले चिह्नों को कारक–चिह्न अथवा परसर्ग कहते हैं। हिन्दी में कहीं–कहीं कारकीय चिह्न लुप्त रहते हैं।

जैसे– घोड़ा दौड़ रहा था। वह पुस्तक पढ़ता है।

आदि। यहाँ ‘घोड़े’ ‘वह’ और ‘पुस्तक’ के साथ कारक–चिह्न नहीं है। ऐसे स्थलों पर शून्य चिह्न माना जाता है। यदि ऐसा लिखा जाय : घोड़ा ने दौड़ रहा था।

उसने (वह + ने) पुस्तक को पढ़ता है।

तो वाक्य अशुद्ध हो जाएँगे; क्योंकि प्रथम वाक्य की क्रिया अपूर्ण भूत की है। अपूर्णभूत में ‘कर्ता’ के साथ ने चिह्न वर्जित है। दूसरे वाक्य में क्रिया वर्तमान काल की है। इसमें भी कर्ता के साथ ने चिह्न नहीं आएगा। अब यदि ‘वह पुस्तक को पढ़ता है’ और ‘वह पुस्तक पढ़ता है’ में तुलना करें तो स्पष्टतया लगता है कि प्रथम वाक्य में ‘को’ का प्रयोग अतिरिक्त या निरर्थक हैं; क्योंकि वगैर ‘को’ के भी वाक्य वही अर्थ देता है। हाँ, कहीं–कहीं ‘को’ के प्रयोग करने से अर्थ बदल जाया करता है।

वह कुत्ता मारता है : जान से मारना वह कुत्ते को मारता है : पीटना

सम्प्रदान कारक

अधिकरण कारक, संबोधन कारक.

हिन्दी भाषा में कारकों की कुल संख्या आठ मानी गई है, जो निम्नलिखित हैं–

कारक – परसर्ग/विभक्ति

1. कर्ता कारक – शून्य, ने (को, से, द्वारा) 2. कर्म कारक – शून्य, को 3. करण कारक – से, द्वारा (साधन या माध्यम) 4. सम्प्रदान कारक – को, के लिए 5. अपादान कारक – से (अलग होने का बोध) 6. संबंध कारक – का–के–की, ना–ने–नी; रा–रे–री 7. अधिकरण कारक – में, पर 8. संबोधन कारक – हे, हो, अरे, अजी…….

“जो क्रिया का सम्पादन करे, ‘कर्ता कारक’ कहलाता है।” अर्थात् कर्ता कारक क्रिया (काम) करता है। जैसे– आतंकवादियों ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा है। इस वाक्य में ‘आतंक मचाना’ क्रिया है, जिसका सम्पादक ‘आतंकवादी’ है यानी कर्ता कारक ‘आतंकवादी’ है। कर्ता कारक का परसर्ग ‘शून्य’ और ‘ने’ है। जहाँ ‘ने’ चिह्न लुप्त रहता है, वहाँ कर्ता का शून्य चिह्न माना जाता है। जैसे– पेड़–पौधे हमें ऑक्सीजन देते हैं। यहाँ पेड़–पौधे में ‘शून्य चिह्न’ है।

कर्ता कारक में ‘शून्य’ और ‘ने’ के अलावा ‘को’ और से/द्वारा चिह्न भी लगया जाता है। जैसे– उनको पढ़ना चाहिए। उनसे पढ़ा जाता है। उनके द्वारा पढ़ा जाता है। कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग :

सकर्मक क्रिया रहने पर सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्णभूत, संदिग्ध भूत एवं हेतुहेतुमद् भूत में कर्ता के आगे ‘ने’ चिह्न आता है। जैसे–

  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना। (सामान्य भूत)
  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना है। (आ० भूत)
  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना था। (पूर्ण भूत)
  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होगा। (सं०भूत)
  • मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होता। (हेतु… भूत)

नीचे लिखे वाक्यों के कर्ता कारकों में ‘ने’ चिह्न लगाकर वाक्यों का पुनर्गठन करें : 1. मैं उसे इशारा किया; मगर वह बोलता ही चला गया। 2. मैं उसे एकबार पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता ही गया। 3. वह कहा था कि उसने चोरी नहीं की है। 4. वह देखा कि परा पल बाढ में डबा है। 5. आँधी अपना विकराल रूप धारण किया। 6. दुश्मन के सैनिक देखा और गोलियाँ बरसाने लगा। 7. मैं तो आपको तभी बताया था। 8. तुम इससे कुछ अलग सोचा।। 9. जिस समय आप आवाज़ दी, मैं तैयार हो चुका था। 10. सच–सच बताओ, तुम उसे किस बात पर पीटे? 11. पहले वह मुझे गाली दिया फिर मैं। 12. मैं उसे बार–बार समझाया। 13. यह फिल्म में कई बार देखी है। 14. पाकिस्तान विश्वकप जीता। 15. इस नौकरी से पहले वह तीन नौकरियाँ छोड़ा है। 16. गार्ड हरी झंडी दिखाया और गाड़ी चल पड़ी। 17. वह जाने से पहले भोजन किया था। 18. आप मुझसे पूछे ही नहीं इसलिए मैं नहीं बताया। 19. रोगी पानी माँगा, मगर नर्स अनसुनी कर दी। 20. उस दिन पिताजी मुझसे पूछे ही नहीं।

‘भूलना’ क्रिया के कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता। जैसे– वह तो भूले थे हमें, हम भी उन्हें भूल गए। आप अपना संकल्प न भूले होंगे।

‘लाना’ क्रिया भी अपने साथ कर्ता के ‘ने’ चिह्न का निषेध करती है। लाना–’ले’ और ‘आना’ के संयोग से बनी है। पहले इसका रूप ‘ल्याना’ था, बाद में ‘लाना’ हो गया। चूँकि इसका अंतिम खंड अकर्मक है, इसलिए इसका प्रयोग होने पर कर्ता कारक में ‘ने’ चिह्न नहीं आता है। जैसे– पिताजी बच्चों के लिए मिठाई लाए। श्यामू पीछे हो लिया।

बोलना, समझना, बकना, जनना (जन्म देना), सोचना और पुकारना क्रियाओं के कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न विकल्प से आता है। जैसे–

  • महाराज बोले। – (प्रेमसागर)
  • वह झूठ बोला। – (पं० अम्बिका प्र० बाजपेयी)
  • रामचन्द्रजी ने झूठ नहीं बोला। – (पं० रामजी लाल शर्मा)
  • उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला। – (बाल–विनोद)
  • उसने कई बोलियाँ बोलीं। – (पं० अ० प्र० बाजपेयी)
  • हम तुम्हारी बात नहीं समझे।
  • मैंने आपकी बात नहीं समझी।
  • हम न समझे कि यह आना है या जाना तेरा। – (भट्ट जी)
  • तुम बहुत बके। तुमने बहुत बका। – (पं० अंबिकादत्त)
  • भैंस पाड़ा जनी है। भैंस ने पाड़ा जना। – (पं० अंबिकादत्त)
  • बकरी तीन बच्चे जनी। – (पं० केशवराम भट्ट)
  • चित्रांगदा ने तुझे जना। – (लाला भगवान दीन)
  • आमंत्रित कर सूर्यदेव को मैंने मन में, मंत्रशक्ति से तुझे जना था पिता–भवन में। – (मैथिलीशरण गुप्त)
  • उसने यह बात सोची।।  वह यह बात सोचा।। – (पं० केशवराम भट्ट)
  • पूतना पुकारी। चोबदार पुकारा–करीम खाँ निगाह रू–ब–रू – (राजा शिवप्रसाद)
  • सत्पुरुषों ने जिसको बारंबार पुकारा, अच्छा है।
  • जिसने गली में तुमको पुकारा। – (पं० केशवराम भट्ट)

नोट : पं० केशवराम भट्ट ने स्पष्ट कहा है कि कर्म लुप्त रहने पर ‘ने’ भी लुप्त रहता है, नहीं तो नहीं। बात ऐसी है कि हमारे विद्वानों और साहित्यकारों ने कर्म रहने पर भी कहीं तो कर्ता के साथ ‘ने’ का प्रयोग किया है कहीं नहीं किया।

सजातीय कर्म लेने के कारण जो अकर्मक क्रिया सकर्मक हो जाती है, उसके कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न नहीं आता; किन्तु कोई–कोई ऐसी कुछ क्रियाओं के साथ भूतकाल के अपूर्णभूत को छोड़ अन्य भेदों में लाते भी हैं। जैसे– सिपाही कई लड़ाइयाँ लड़ा। वह शेर की बैठक बैठा। – (पं० कामता प्र० गुरु) मैं क्रिकेट खेला। – (पं० अ० दत्त व्यास) उसने टेढ़ी चाल चली। मैंने बड़े खेल खेले। – (पं० अंबिका प्र० बाजपेयी)

उसने चौपड़ खेली। नहाना, थूकना, छींकना और खाँसना : ये अकर्मक क्रियाएँ हैं फिर भी अपने साथ कर्ता को ‘ने’ चिह्न लाने के लिए बाध्य करती हैं। यानी इन क्रियाओं के प्रयोग होने पर भूतकाल के उक्त भेदों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग अवश्यमेव होता है। जैसे–

  • मैंने सर्दी के कारण छींका है।
  • आज आपने नहाया क्यों नहीं?
  • दादाजी ने जोर से खाँसा था,
  • तभी तो मम्मी अंदर चली गई।
  • यह जहाँ–तहाँ किसने थूका है?

उक्त चारों अकर्मक क्रियाओं के अलावा अन्य किसी अकर्मक क्रिया के रहने पर कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता। जैसे– वह अभी–अभी आया है। मैं वहाँ कई बार गया हूँ। बच्चा अभी तो सोया था।

संयुक्त क्रिया के सभी खंड सकर्मक रहने की स्थिति में भूतकाल के उक्त भेदों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे– सालिम अली ने पक्षियों को देख लिया था। मैंने इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है।

परन्तु, नित्यताबोधक सकर्मक संयुक्त क्रिया का कर्ता ‘ने’ चिह्न कभी नहीं लाता है। जैसे– वे बार–बार गिना किये, हाथ कुछ न लगा। (भारतेन्दु) वह चित्र–सी चुपचाप खड़ी सुना की। (पं० अ० व्यास) इस दृश्य को पाण्डव सामने बैठे देखा किए (बाल भारत) हजरत भी कल कहेंगे कि हम क्या किए। (पं० केशवराम भट्ट)

यदि संयुक्त अकर्मक क्रिया का अंतिम खण्ड ‘डालना’ हो तो उक्त भूतकालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न अवश्य आता है? किन्तु यदि अंतिम खंड ‘देना’ हो तो ‘ने’ चिह्न विकल्प से आता है। जैसे– उसने रातभर जाग डाला। – (पं० अ० दत्त व्यास) जब मानसिंह चढ़ आए तब पठानों की सेना चल दी। – (पं० केशवराम भट्ट) श्रीकृष्ण मथुरा चल दिए। – (प्रेम सागर) मैं अपना–सा मुँह लेकर चल दिया। – (विद्यार्थी)

मुस्करा देना, हँस देना, रो देना : इन क्रियाओं के कर्ता ‘ने’ चिह्न निश्चित रूप से लाते हैं। जैसे– मोहन ने नारद को देखकर मुस्करा दिया। आकर के मेरी कब्र पर तुमने जो मुस्करा दिया। बिजली छिटक के गिर पड़ी और सारा कफन जला दिया। – (हबीब पेंटर) मुकद्दर ने रो दिया हाथ मलकर।। – (पं० केशवराम भट्ट)

संकेत में संयुक्त क्रिया के अन्त में ‘होना’ का हेतुहेतुमद्भूत रूप ‘ने’ चिह्न के साथ भी प्रयुक्त होता है। जैसे यदि संजीव ने पढ़ा होता तो अवश्य सफल होता। यदि भाई जी आए थे तो आपने रोक लिया होता।

प्रेरणार्थक रूप बन जाने पर सभी क्रियाएँ सकर्मक हो जाती हैं और सभी प्रेरणार्थक क्रियाओं के रहने पर सामान्य, आसन्न, पूर्ण, संदिग्ध आदि भूतकालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न आता है। जैसे– राजू श्रीवास्तव ने सबों को हँसाया। माँ ने पत्र भिजवाया है। पुत्र ने प्रणाम कहलवाया है। अच्छे अंकों ने राहुल को सम्मान दिलाया। कठिन मेहनत ने हर्ष को डॉक्टर बनाया था।

वर्तमान एवं भविष्यत् कालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता। जैसेमैं भी वह उपन्यास पढूँगा।

तुम वह नाटक–संग्रह पढ़ते होगे। सालिम अली पक्षियों को पक्षी की निगाह से देखते हैं। अपूर्ण भूतकाल की क्रिया रहने पर कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता है। जैसे वह तरुमित्रा का प्रतिनिधित्व कर रहा था। जब मि० ग्लााड चलते थे, तब पेड़े–पौधे तक सहम जाते थे। पूरी लंका जल रही थी और विभीषण भजन कर रहे थे।

‘चुकना’ क्रिया रहने पर भूतकाल में भी कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता है। जैसे– मैं भात खा चुका/हूँ/था/ होता। वह देख चुका था। सलोनी यह संग्रह पढ़ चुकी होगी

क्रिया पर कर्ता के चिहनों का प्रभाव : 1. चिह्न–रहित (‘ने’ चिह्न–रहित) कर्ता की क्रिया का रूप कर्ता के लिंग–वचन के अनुसार – होता है। जैसे– उड़ान भरता एक वायुयान नीचे गिर गया था। आज भी सुपुत्र माता–पिता की सेवा को अपना कर्तव्य मानते हैं। वह अपने कैरियर के प्रति बेहद चिंतित है।

उक्त उदाहरणों में हम देख रहे हैं कि कर्ता का शून्य चिह्न है यानी उसके साथ ‘ने’ नहीं है और कर्म के रहने पर भी क्रिया कर्त्तानुसार ही हुई है।

2. यदि वाक्य में एक ही लिंग–वचन के कई चिह्न–रहित कर्ता ‘और’, ‘तथा’, एवं, ‘व’ – आदि से जुड़े हों तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन हो जाती है। यानी कई कर्ता (‘ने’ रहित एक ही लिंग) + क्रिया बहुवचन (समान लिंग) जैसे– आरती, शालू और मेघा अष्टम वर्ग में पढ़ती हैं। शरद्, अंकेश और अभिनव नवम वर्ग में पढ़ते हैं।

3. यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक चिह्न–रहित कर्ता हों तो क्रिया बहुवचन के सिवा लिंग में अंतिम कर्ता के अनुसार होगी। जैसे– एक घोड़ा, दो गदहे और बहुत–सी बकरियाँ मैदान में चर रही हैं। एक बकरी, दो गदहे और चार घोड़े मैदान में चरते हैं।

4. यदि अंतिम कर्ता एकवचन हो तो क्रिया एकवचन और बहुवचन दोनों होती है। जैसे– तुम्हारी बकरियाँ, उसकी घोड़ी और मेरा बैल उस खेत में चरता हैचरते हैं। – (पं० अंबिकादत्त व्यास)

5. यदि चिह्न–रहित अनेक कर्त्ता परस्पर किसी विभाजक (या, अथवा, वा आदि) से जुड़े हों तो क्रिया अंतिम कर्ता के लिंग–वचन के अनुसार होती है। जैसे– मेरी बेटी या उसका बेटा पर्यावरण को महत्त्व नहीं देता। स्थिति ऐसी है कि मोनू की गाय या मेरा बैल बिकेगा।

6. यदि चिन–रहित अनेक कर्ताओं और क्रियाओं के बीच में कोई समुदायवाचक शब्द आए तो क्रिया, लिंग और वचन में समुदायवाचक शब्द के अनुसार होगी। जैसे– अमरीका–तालिबान की लड़ाई में बच्चे, बूढ़े, जबान, औरतें सबके सब प्रभावित हुए।

7. आदर के लिए एकवचन कर्ता के साथ बहुवचन क्रिया का प्रयोग होता है, यदि कर्ता चिह्न–रहित हो तो जैसे– पिताजी आनेवाले हैं। दादाजी रोज सुबह टहलने जाते हैं। दादीजी चश्मा पहनकर बहुत सुन्दर लगती हैं।

8. यदि चिह्न–रहित अनेक कर्ताओं से बहुवचन का अर्थ निकले तो क्रिया बहुवचन और यदि एकवचन का अर्थ निकले तो क्रिया एकवचन होती है; चाहे कर्ताओं के आगे समूहवाचक शब्द हों अथवा नहीं हों। जैसे– 2007 की बाढ़ के कारण खेती–बाड़ी घर–द्वार, धन–दौलत मेरा सब चला गया। शिक्षक की प्रेरक बातें सुन मेरा उत्साह, धैर्य और आनंद बढ़ता चला गया।

9. जब कोई स्त्री या पुरुष अपने परिवार की ओर से या किसी समुदाय की ओर से जिसमें स्त्री–पुरुष दोनों हों, कुछ कहता है तब वह स्त्री हो या पुरुष (कहनेवाला) अपने लिए पुँ० बहुवचन क्रिया का प्रयोग करता है। जैसे– ब्राह्मणी ने कुंती से कहा, “न जाने हम बकासुर के अत्याचार से कब और कैसे छुटकारा पाएँगे?”

10. चिहन–रहित मुख्य कर्ता के अनुसार क्रिया होती है, विधेय के अनुसार नहीं। जैसे– लड़की बीमारी के कारण सूखकर काठ हो गई। वह लड़का आजकल लड़की बना हुआ है। यह भाग्य का ही फेरा है कि अर्जुन विराट नगर में बृहन्नला बन गया औरतें भी आदमी कहलाती हैं, जनाब!

11. यदि कर्ता चिन–युक्त हो (‘ने’ से जुड़ा) और वाक्य कर्म–रहित तो क्रिया पुं० एकवचन होती है। जैसे– मेरी माँ ने कहा था। पिताजी ने देखा था। शिक्षकों ने पढ़ाया होगा। कवि ने कहा है। किसी विद्वान् ने सच ही कहा है कि…

निम्नलिखित वाक्यों के खाली स्थानों में व्यक्तिवाचक या अन्य संज्ञाओं का प्रयोग करते हुए वाक्य पूरे करें : 1. ……….. ने ………. को पहले ही समझाया था, लेकिन ………. ने मेरी बात मानी ही नहीं। 2. ये सब बातें ……… ने ही बतायी थीं। 3. ……. ने ………. से क्या कहा था? 4. वे लोग शिकायत कर रहे थे ……… ने जरूर गाली दी होगी। 5. ………. ने जो भी कहा है पुत्र के भले के लिए ही कहा। 6. ……………. ने स्पष्ट कह दिया था कि अब मरीज को यहाँ आने की आवश्यकता नहीं है। 7. ……………. ने तय कर लिया था कि उसपर मुकदमा चलना ही चाहिए। 8. ……………. ने चोर को मकान में घुसते देखा और सीटी बजाने लगा। 9. ……………. ने जिस काम के लिए आरुणि से कहा था उसने वह काम कर दिखाया। 10. ……………. ने अपना अज्ञातवास भी बखूबी पूरा किया। 11. ……………. ने गीता में सच ही कहा है कि हमें निरंतर अपना काम करते रहना चाहिए। 12. ……………. ने ऐसी सजा सुनाई कि सभी ताली बजाने लगे। 13. क्या ……….. ने तेरे साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया है? उसपर केस कर बता देना चाहिए कि दहेज लेना और देना दोनों गैरकानूनी हैं। 14. इसका अर्थ यह हुआ कि …..’ने अपनी पत्नी पर चरित्रहीनता का झूठा आरोप लगाया है। 15. ……… ने कहा, “बेटा ! कोई ऐसा काम मत कर कि दुनिया तुम पर थू–थू करे।’ 16. एक ……..’ ने ही मित्र को धोखा दिया है। 17. ……… ने इस बारे में क्या बताया था? और तूने परीक्षा में क्या कर दिखाया। छिः! लानत है तुमको। 18. ………. ने प्रश्न किया कि पेड़–पौधे के बारे में तुम्हारा क्या विचार है? 19. ……….. ने कई फतिंगे एक साथ पकड़े। 20. ……. ने ठीक ही कहा था कि जो डर गया वह मर गया।।

“जिस पर क्रिया (काम) का फल पड़े, ‘कर्म कारक’ कहलाता है।” जैसे–तालिबानियों ने पाकिस्तान को रौंद डाला। सुन्दर लाल बहुगुना ने ‘चिपको आन्दोलन’ चलाया। इन दोनों वाक्यों में ‘पाकिस्तान’ और ‘चिपको आन्दोलन’ कर्म हैं; क्योंकि ‘रौंद डालना’ और ‘चलाना’ क्रिया से प्रभावित हैं। कर्म कारक का चिह्न ‘को’ है; परन्तु जहाँ ‘को’ चिह्न नहीं रहता है, वहाँ कर्म का शून्य चिह्न माना जाता है। जैसे वह रोटी खाता है। भालू नाच दिखाता है।

Karak 1

इन वाक्यों में ‘रोटी’ और ‘नाच’ दोनों के चिह्न–रहित कर्म हैं–

कभी–कभी वाक्यों में दो–दो कर्मों का प्रयोग भी देखा जाता है, जिनमें एक मुख्य कर्म और दूसरा गौण कर्म होता है। प्रायः वस्तुबोधक को मुख्य कर्म और प्राणिबोधक को गौण कर्म माना जाता है।

जैसे– क्रिया पर कर्म का प्रभाव : 1. यदि वाक्य में कर्म चिह्न–रहित (शून्य) रहे और कर्त्ता में ‘ने’ लगा हो तो क्रिया कर्म के लिंग–वचन के अनुसार होती है। जैसे– कवि ने कविता सुनाई। माँ ने रोटी खिलाई। मैंने एक सपना देखा। तिलक ने महान् भारत का सपना देखा था। गुलाम अली ने एक अच्छी ग़ज़ल सुनाई थी। बन्दर ने कई केले खाए हैं। बच्चों ने चार खिलौने खरीदे होंगे।

2. यदि वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों चिह्न–युक्त हों तो क्रिया सदैव पुं० एकवचन होती है। जैसे– स्त्रियों ने पुरुषों को देखा था। चरवाहों ने गायों को चराया होगा। शिक्षक ने छात्राओं को पढ़ाया है। गाँधी जी ने सत्य और अहिंसा को महत्त्व दिया है।

3. क्रिया की अनिवार्यता प्रकट करने के लिए कर्ता में ‘ने’ की जगह ‘को’ लगाया जाता है और क्रिया कर्म के लिंग–वचन के अनुसार होती है। जैसे– उस माँ को बच्चा पालना ही होगा। अंशु को एम. ए. करना ही होगा। नूतन को पुस्तकें खरीदनी होंगी।

4. अशक्ति प्रकट करने के लिए कर्त्ता में ‘से’ चिह्न लगाया जाता है और कर्म को चिह्नरहित। ऐसी स्थिति में क्रिया कर्म के लिंग–वचन के अनुसार ही होती है। जैसे– रामानुज से पुस्तक पढ़ी नहीं जाती। उससे रोटी खायी नहीं जाती है। शीला से भात खाया नहीं जाता था।

5. यदि कर्ता चिह्न–युक्त हो, पहला कर्म भी चिह्न–युक्त हो और दूसरा कर्म चिह्न–रहित रहे तो क्रिया दूसरे कर्म (मुख्य कर्म) के अनुसार होती है। जैसे– माता ने पुत्री को विदाई के समय बहुत धन दिया। पिता ने पुत्री को पुत्र को बधाई दी।

निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करें :

  • माँ ने बच्चे को जगाई और कही कि नहा–धोकर स्कूल के लिए तैयार हो जाओ ताकि समय .. पर स्कूल पहुँच सको और अपने पढ़ाई में लग जाओ।
  • पिताजी ने मुस्कराते हुए कहे कि सपूत को ऐसा ही होना चाहिए, जो सदैव इस बात के लिए चिंतित रहे कि उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य न होने पाए जिससे पिता को सिर नीचे करना पड़े।
  • कवयित्री ने कविता पाठ करते हुए कही “हम ज्यों–ज्यों बढ़ते जाते हैं; त्यों–त्यों ही घटते जाते हैं।’
  • सोनपुर में पशु–मेला लगा था। एक किसान ने अपने छोटी बहन से कही कि मुझे दो बैल खरीदना है; तुम मेरे लिए रोटियाँ बना दो और पप्पू से कहो कि वह भी हमारे साथ चले।
  • सरकार ने घोषणा किया कि हम अगली पंचवर्षीय योजना में शिक्षा और कृषि को बहुत अधिक महत्त्व देंगे। कौआ की आँख तेज होती है तभी तो वह पलक झपकते बच्चा के हाथ से रोटी का टुकड़ा ले भागता है।
  • प्रवर ने तो रोटियाँ खायी, तुमने क्या खायी है?।
  • एक मित्र ने अपने अन्य मित्र को बधाई दिया और कहा कि आपका बेटा परीक्षा पास किया है; मिठाई खिलाइए।
  • जो लोग अंधा होता है, उसे भ्रष्टाचार नहीं दिखता
  • गोरा चमड़ीवाले को काला पोशाक बहुत फबता है।

“वाक्य में जिस साधन या माध्यम से क्रिया का सम्पादन होता है, उसे ही ‘करण–कारक’ कहते हैं।”

अर्थात् करण कारक साधन का काम करता है। इसका चिह्न ‘से’ है, कहीं–कहीं ‘द्वारा’ का प्रयोग भी किया जाता है।

जैसे– चाहो, तो इस कलम से पूरी कहानी लिख लो। पुलिस तमाशा देखती रही और अपहर्ता बलेरो से लड़की को ले भागा। छात्रों को पत्र के द्वारा परीक्षा की सूचना मिली।

उपर्युक्त उदाहरणों में कलम, बलेरो और पत्र करण कारक हैं। कभी–कभी वाक्य में करण का चिह्न लुप्त भी रहता है, वहाँ भ्रमित नहीं होना चाहिए, सीघे क्रिया के साधन खोजने चाहिए; जैसे–किससे या किसके द्वारा काम हुआ अथवा होता है? उदाहरण– मैं आपको आँखों देखी खबर सुना रहा हूँ। किससे देखी? आँखों से (करण) आज भी संसार में करोड़ों लोग भूखों मर रहे हैं। (भूखों–करण कारक) करीम मियाँ ने दो दो जवान बेटों को अपने हाथों दफनाया। (हाथों करण कारण)

प्रेरक कर्ता कारक में भी करण का ‘से’ चिह्न देखा जाता है। जैसे– यदि शत्रुओं से तेरा नाम न जपवाऊँ तो मैं विष्णुगुप्त चाणक्य नहीं। अहमदाबाद जाते हो तो मेरा प्रस्ताव लोगों से मनवा के छोड़ना।

क्रिया की रीति या प्रकार बताने के लिए भी ‘से’ चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे– धीरे से बोलो, दीवार के भी कान होते हैं। जहाँ भी रहो, खुशी से रहो, यही मेरा आशीर्वाद है।

“कर्ता कारक जिसके लिए या जिस उद्देश्य के लिए क्रिया का सम्पादन करता है, वह ‘सम्प्रदान कारक’ होता है।” जैसे– मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़–पीड़ितों के लिए अनाज और कपड़े बँटवाए।

इस वाक्य में ‘बाढ़–पीड़ित’ सम्प्रदान कारक है; क्योंकि अनाज और कपड़े बँटवाने का काम उनके लिए ही हुआ।

सम्प्रदान कारक का चिह्न ‘को’ भी है; लेकिन यह कर्म के ‘को’ की तरह नहीं ‘के लिए’ का बोध कराता है। जैसे– गृहिणी ने गरीबों को कपड़े दिए। माँ ने बच्चे को मिठाइयाँ दीं। इन उदाहरणों में गरीबों को ……… गरीबों के लिए और बच्चे को ……… बच्चे के लिए की ओर संकेत है। प्रथम उदाहरण में एक और बात है ……. जब कोई वस्तु किसी को हमेशा–हमेशा के लिए (दान आदि अर्थ में) दी जाती है तब वहाँ ‘को’ का प्रयोग होता है जो ‘के लिए’ का बोध कराता है। प्रथम उदाहरण में गरीबों को कपड़े दान में दिए गए हैं। इसलिए ‘गरीब’ सम्प्रदान कारक का उदाहरण हुआ।

यदि ‘गरीबों’ की जगह ‘धोबी’ का प्रयोग किया जाय तो वहाँ ‘को’, ‘के लिए’ का बोधक नहीं होगा। नमस्कार आदि के लिए भी सम्प्रदान कारक का चिह्न ही लगाया जाता है। जैसे– पिताजी को प्रणाम। (पिताजी के लिए प्रणाम) दादाजी को नमस्कार ! (दादाजी के लिए नमस्कार)

‘को’ और ‘के लिए’ के अतिरिक्त ‘के वास्ते’ और ‘के निमित्त’ का भी प्रयोग होता है। जैसे– रावण के वास्ते ही रामावतार हुआ था। यह चावल पूजा के निमित्त है। ‘को’ का विभिन्न रूपों में प्रयोग और भ्रम :

नीचे लिखे वाक्यों पर गौर करें यह कविता कई भावों को प्रकट करती है। फल को खूब पका हुआ होना चाहिए। वे कवियों पर लगे हुए कलंक को धो डालें। लोग नहीं चाहते थे कि वे यातनाओं को झेलें।

अब इन वाक्यों को देखें यह कविता कई भाव प्रकट करती है। फल खूब पका हुआ होना चाहिए।

इसी तरह उपर्युक्त वाक्यों से ‘को’ हटाकर उन्हें पढ़ें और दोनों में तुलना करें। आप पाएँगे कि ‘को’ रहित वाक्य ज्यादा सुन्दर हैं; क्योंकि इन वाक्यों में ‘को’ का अनावश्यक प्रयोग हुआ है।

कुछ वाक्यों में ‘को’ के प्रयोग से या तो अर्थ ही बदल जाता है या फिर वह बहुत ही भ्रामक हो जाता है। नीचे लिखे वाक्यों को देखें प्रकृति ने रात्रि को विश्राम के लिए बनाया है। भ्रामक भाव– (प्रकृति ने रात्रि इसलिए बनाई है कि वह विश्राम करे) प्रकृति ने रात्रि विश्राम के लिए बनाई है। सामान्य भाव–(प्रकृति ने रात्रि जीव–जन्तुओं के विश्राम के लिए बनाई है)

कुछ लोग ‘पर’, ‘से’, ‘के लिए’ और ‘के हाथ’ के स्थान पर भी ‘को’ का प्रयोग कर बैठते हैं। नीचे लिखे वाक्यों में ‘को’ की जगह उपर्युक्त चिह्न लगाएँ– 1. वह इस व्याकरण की असलियत हिन्दी जगत् को प्रकट कर दे। 2. वह प्रत्येक प्रश्न को वैज्ञानिक ढंग पर विश्लेषण करने का पक्षपाती था। 3. इनको इन्कार कर वह स्वराज्य क्या खाक लेगा। 4. उनको समझौते की इच्छा थी। 5. सरकारी एजेंटों को तुम अपना माल मत बेचो। 6. स्त्री को ‘स्त्री’ संज्ञा देकर पुरुष को छुटकारा नहीं। 7. मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ जो आपको अधिकारपूर्वक कह सकूँ। 8. मैं अध्यक्ष को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने को निवेदन करता हूँ। 9. भारतीयों के आन्दोलन को जोरदार समर्थन प्राप्त था। 10. उन्होंने भवन की कार्रवाई को देखा था। 11. उस पुस्तक को तो मैंने यों ही रहने दी। 12. वे सन्तान को लेकर दुःखी थे। 13. वह खेल को लेकर व्यस्त था। 14. इस विषय को लेकर दोनों राष्ट्रों में बहुत मतभेद है।

अब ‘को’ के प्रयोग संबंधी कुछ नियमों पर विचार करें : 1. जहाँ कर्म अनुक्त रहे वहाँ ‘को’ का प्रयोग करना चाहिए। जैसे– बन्दर आमों को बड़े चाव से खाता है। खगोलशास्त्री तारों को देख रहे हैं। कुछ राजनेताओं ने ब्राह्मणों को बहुत सताया है।

2. व्यक्तिवाचक, अधिकारवाचक और व्यापार कर्तृवाचक में ‘को’ का प्रयोग किया जाता है। जैसे– मेघा को पढ़ने दो। फैक्ट्री के मालिक को समझाना चाहिए। अपने सिपाही को बुलाओ। वह अपने नौकर को कभी–कभी मारता भी है।

3. गौण कर्म या सम्प्रदान कारक में ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे– पूतना कृष्ण को दूध पिलाने लगी। मैंने उसको पुस्तक खरीद दी। (उसके लिए) उसने भूखों को अन्न और नंगों को वस्त्र दिए।

4. आना, छजना, पचना, पड़ना, भाना, मिलना, रुचना, लगना, शोभना, सुहाना, सूझना, होना और चाहिए इत्यादि के योग में ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे– उन्हें याद आती है, आपकी प्रेरक बातें। उसको भोजन नहीं पचता है। दिल को कल क्या पड़ी, बात ही बिगड़ गई। उसको क्या पड़ा है, बिगड़ता तो मेरा है न। दशरथ को राम के बिछोह में कुछ नहीं भाता था। मजदूरों को उनका स्वत्व कब मिलेगा? बच्चों को मिठाई बहुत रुचती है।

5. निमित्त, आवश्यकता और अवस्था द्योतन में ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे– राम शबरी से मिलने को आए थे। पिताजी स्नान को गए हैं। अब मुझको पढ़ने जाना है। उनको यहाँ फिर–फिर आना होगा। 6. योग्य, उपयुक्त, उचित, आवश्यक, नमस्कार, धिक्कार और धन्यवाद के योग में ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे स्वच्छ वायु–सेवन आपको उपयोगी होगा। विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य रखना उचित है। मुझको वहाँ जाना आवश्यक है। श्री गणेश को नमस्कार। आज भी पापी को धिक्कार है। इस सहयोग के लिए आपको बहुत–बहुत धन्यवाद।

7. समय, स्थान और विनिमय–द्योतक में ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे– पंजाब मेल भोर को आएगी। वह घोड़ा कितने को दोगे? कल रात को अच्छी वर्षा हुई थी।

नोट : ऐसी जगहों पर ‘में’ और ‘पर’ का भी प्रयोग होता है।

8. समाना, चढ़ना, खुलना, लगाना, होना, डरना, कहना और पूछना क्रियाओं के योग में भी ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे– आपको भूत समाया है जो ऐसी–वैसी हरकतें कर रहे हैं। उस विद्यार्थी को पढ़ाई का भूत चढ़ा है। वह किसी काम का नहीं, उसको आग लगाओ। तुमको एक बात कहता हूँ, किसी से मत कहना।

नोट : ‘होना’ क्रिया के साथ अस्तित्व अर्थ में ‘को’ के बदले ‘के’ भी लाया जाता है। सुधीर जी के पुत्र हुआ है। उसके दाढ़ी नहीं है। चली थी बर्थी किसी पर, किसी के आन लगी।

9. निम्नलिखित अवस्थाओं में ‘को’ प्रायः लुप्त रहता है; परन्तु विशेष अर्थ में स्वराघात के बदले कहीं–कहीं आता भी है, छोटे–छोटे जीवों एवं अप्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ। जैसे– उसने बिल्ली मारी है। किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे, हे राम! ……मगर एक जुगनू चमकते जो देखा मैंने.. …….. वह सुबह आया है।

अपादान कारक “वाक्य में जिस स्थान या वस्तु से किसी व्यक्ति या वस्तु की पृथकता अथवा तुलना का बोध होता है, वहाँ अपादान कारक होता है।”

यानी अपादान कारक से जुदाई या विलगाव का बोध होता है। प्रेम, घृणा, लज्जा, ईर्ष्या, भय और सीखने आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए अपादान कारक का ही प्रयोग किया जाता है; क्योंकि उक्त कारणों से अलग होने की क्रिया किसी–न–किसी रूप में जरूर होती है। जैसे–

पतझड़ में पीपल और ढाक के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं। वह अभी तक हैदराबाद से नहीं लौटा है। मेरा घर शहर से दूर है। उसकी बहन मुझसे लजाती है। खरगोश बाघ से बहुत डरता है। नूतन को गंदगी से बहुत घृणा है। हमें अपने पड़ोसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। मैं आज से पढ़ने जाऊँगा।

‘से’ का प्रयोग

‘से’ चिह्न ‘करण’ एवं ‘अपादान’ दोनों कारकों का है; किन्तु प्रयोग में काफी अंतर है। करण कारक का ‘से’ माध्यम या साधन के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि अपादान का ‘से’ जुदाई या अलग होने या करने का बोध कराता है। करण का ‘से’ साधन से जुड़ा रहता है। जैसे– वह कलम से लिखता है। (साधन) उसके हाथ से कलम गिर गई। (हाथ से अलग होना)

1. अनुक्त और प्रेरक कर्ता कारक में ‘से’ का प्रयोग होता है– जैसे– मुझसे रोटी खायी जाती है। (मेरे द्वारा) आपसे ग्रंथ पढ़ा गया था। (आपके द्वारा)

मुझसे सोया नहीं जाता। वह मुझसे पत्र लिखवाती है।

2. क्रिया करने की रीति या प्रकार बताने में भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे– धीरे (से) बोलो, कोई सुन लेगा। जहाँ भी रहो, खुशी से रहो।

3. मूल्यवाचक संज्ञा और प्रकृति बोध में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है। जैसे– कल्याण कंचन से मोल नहीं ले सकते हो। छूने से गर्मी मालूम होती है। वह देखने से संत जान पड़ता है।

4. कारण, साथ, द्वारा, चिह्न, विकार, उत्पत्ति और निषेध में भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे– आलस्य से वह समय पर न आ सका। दया से उसका हृदय मोम हो गया। गर्मी से उसका चेहरा तमतमाया हुआ था। जल में रहकर मगर से बैर रखना अच्छी बात नहीं। वह एक आँख से काना और एक पाँव से लँगड़ा जो ठहरा। आप–से–आप कुछ भी नहीं होता, मेहनत करो, मेहनत। दौड़–धूप से नौकरी नहीं मिलती, रिश्वत के लिए भी तैयार रहो।

5. अपवाद (विभाग) में ‘से’ का प्रयोग अपादान के लिए होता है। जैसे– वह ऐसे गिरा मानो आकाश से तारे। वह नजरों से ऐसे गिरा, जैसे पेड़ से पत्ते।

6. पूछना, दुहना, जाँचना, कहना, पकाना आदि क्रियाओं के गौण कर्म में ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे– मैं आपसे पूछता हूँ, वहाँ क्या–क्या सुना है? भिखारी धनी से कहीं जाँचता तो नहीं है? मैं आपसे कई बार कह चुकी हूँ। बाबर्ची चावल से भात पकाता है।

7. मित्रता, परिचय, अपेक्षा, आरंभ, परे, बाहर, रहित, हीन, दूर, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, अतिरिक्त, लज्जा, बचाव, डर, निकालना इत्यादि शब्दों के योग में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है। जैसे– संजय भांद्रा अपने सभी भाइयों से अलग है। उनको इन सिद्धांतों से अच्छा परिचय है। धन से कोई श्रेष्ठ नहीं होता, विद्या से होता है। बुद्धिमान शत्रु बुद्धिहीन मित्रों से कहीं अच्छा होता है। मानव से तो कुत्ता भला जो कम–से–कम गद्दारी तो नहीं करता। घर से बाहर तक खोज डाला, कहीं नहीं मिला। विद्या और बुद्धि से हीन मानव पशु से भी बदतर है। अभी भी मँझधार से किनारा दूर है। यदि मैं पोल खोल दूं तो तुम्हें दोस्तों से भी शर्माना पड़ेगा। भला मैं तुमसे क्यों डरूँ, तुम कोई बाघ हो जो खा जाओगे। अन्य लोगों को मैदान से बाहर निकाल दीजिए तभी मैच देखने का आनंद मिलेगा।

8. स्थान और समय की दूरी बताने में भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे– अभी भी गरीबों से दिल्ली दूर है। आज से कितने दिन बाद आपका आगमन होगा?

9. क्रियाविशेषण के साथ भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे– आप कहाँ से टपक पड़े भाई जान? किधर से आगमन हो रहा है श्रीमान का?

10. पूर्वकालिक क्रिया के अर्थ में भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे– उसने पेड़ से बंदूक चलाई थी। – (पेड़ पर चढ़कर) कोठे से देखो तो सब कुछ दिख जाएगा। – (कोठे पर चढ़कर)

कुछ स्थलों पर ‘से’ लुप्त रहता है– जैसे– बच्चा घुटनों चलता है। खिल गई मेरे दिल की कली आप–ही–आप। आपके सहारे ही तो मेरे दिन कटते हैं। साँप–जैसे प्राणी पेट के बल चलते हैं। दूधो नहाओ, पूतो फलो। किसके मुँह खबर भेजी आपने? इस बात पर मैं तुम्हें जूते मारता। आप हमेशा इस तरह क्यों बोलते हैं?

“वाक्य में जिस पद से किसी वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ का दूसरे व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ से संबंध प्रकट हो, ‘संबंध कारक’ कहलाता है।” जैसे– अंशु की बहन आशु है। यहाँ ‘अंशु’ संबंध कारक है।

यों तो संबंध और संबोधन को कारक माना ही नहीं जाना चाहिए, क्योंकि इसका संबंध क्रिया से किसी रूप में नहीं होता। हाँ, कर्ता से अवश्य रहता है। जैसे– भीम के पुत्र घटोत्कच ने कौरवों के दाँत खट्टे कर दिए।

उक्त उदाहरण में हम देखते हैं कि क्रिया की उत्पत्ति में अन्य कारकों की तरह संबंध सक्रिय नहीं है।

फिर भी, परंपरागत रूप से संबंध को कारक के भेदों में गिना जाता रहा है। इसका एकमात्र चिह्न ‘का’ है, जो लिंग और वचन से प्रभावित होकर ‘की’ और ‘के’ बन जाता है। इन उदाहरणों को देखें– गंगा का पुत्र भीष्म बाण चलाने में बड़े–बड़ों के कान काटते थे। नदी के किनारे–किनारे वन–विभाग ने पेड़ लगवाए। मेनका की पुत्री शकुन्तला भरत की माँ बनी।

जब सर्वनाम पर संबंध कारक का प्रभाव पड़ता है, तब ना–ने–नी’ और ‘रा–रे–री’ हो जाता है। जैसे– अपने दही को कौन खट्टा कहता है? मेरे पुत्र और तेरी पुत्री का जीवन सुखमय हो सकता है।

संबंध कारक के चिह्नों के प्रयोग से कई स्थलों पर अर्थभेद भी हो जाया करता है।

निम्नलिखित उदाहरण देखें– उसके बहन नहीं है। – (उसको बहन नहीं है) उसकी बहन नहीं है। – (यानी दूसरे की बहन है, उसकी नहीं)

‘का–के–की’ का प्रयोग सम्पूर्णता, मूल्य, समय, परिमाण, व्यक्ति, अवस्था, दर, बदला, केवल, स्थान, प्रकार, योग्यता, शक्ति, साथ, भविष्य, कारण, आधार, निश्चय, भाव, लक्षण, शीघ्रता आदि के लिए संबंध कारक के चिह्नों का प्रयोग होता है।

जैसे– सात रुपये की थाली, नाचे घरवाली। (लोकोक्ति) एक हाथ का साँप, फिर भी बाप–रे–बाप ! चार दिनों की चाँदनी फिर अँधरी रात। राजा का रंक राई का पर्वत। सबके–सब चले गए रह गए केवल तुम। – (शिवमंगल सिंह सुमन) अचंभे की बात सुनने योग्य ही होती है। अब यह विपत्ति की घड़ी टलनेवाली ही है। राह का थका बटोही गहरी नींद सोता है। आज भी दूध–का–दूध और पानी–का–पानी होता है। दिन का सोना और रात का करवटें बदलना कभी अच्छा नहीं होता। बात की बात में बात निकल आती है।

तुल्य, अधीन, समीप और आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, बाहर, बायाँ, दायाँ, योग्य अनुसार, प्रति, साथ आदि शब्दों के योग में भी संबंध के चिह्न आते हैं। जैसे– मेरे पीछे मेरा पूरा कुनबा है। फल सर्वदा कर्म के अधीन रहा है। नदी की ओर बढ़ो, वह तुम्हें मिल जाएगा। सोनिया काँग्रेस का दायाँ हाथ है। पति के साथ क्या तुम खुश हो? तुम्हें माता कब की पुकार रही है। – (तुम्हें माता कब से पुकार रही है।)

यदि विशेष्य उपमान हो तो उपमेय में संबंध का चिह्न प्रयुक्त होगा। जैसे– वह दया का सागर है। प्रेम का बंधन बड़ा मजबूत होता है। कर्म की फाँस कभी गलफाँस नहीं होती, जनाब!

कभी–कभी गौण कर्म में भी संबंध का चिह्न आता है। जैसे– कोई गधा तुम्हारे लात मारे।

उन शब्दों के योग में भी संबंध–चिह्न आता है जो कृदंतीय शब्दों के कर्ता या कर्म के अर्थों में आ सके। जैसे– मुझे तो लगता है कि तुम उसी के आने से भागे जाते हो। क्या हुआ जग के रूठे से? खिचड़ी के खाते ही लगा जी मिचलाने।

नोट : कहीं–कहीं संबंधी लुप्त रहता है। जैसे– तुम सबकी सुन लेते हो अपनी कहाँ कहते हो। मन की मन ही माँझ रही। – (सूरदास) यह कभी नहीं होने का है। मैं तेरी नहीं सुनूँगा।

“वाक्य में क्रिया का आधार, आश्रय, समय या शर्त ‘अधिकरण’ कहलाता है।” आधार को ही अधिकरण माना गया है। यह आधार तीन तरह का होता है–स्थानाधार, समयाधार और भावाधार। जब कोई स्थानवाची शब्द क्रिया का आधार बने तब वहाँ स्थानाधिकरण होता है। जैसे– बन्दर पेड़ पर रहता है। चिड़ियाँ पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती हैं। मछलियाँ जल में रहती हैं। मनुष्य अपने घर में भी सुरक्षित कहाँ रहता है।

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जब कोई कालवाची शब्द क्रिया का आधार हो तब वहाँ कालाधिकरण होता है। जैसे– मैं अभी दो मिनटों में आता हूँ।

जब कोई क्रिया ही क्रिया के आधार का काम करे, तब वहाँ भावाधिकरण होता है। जैसे– शरद पढ़ने में तेज है। राजलक्ष्मी दौड़ने में तेज है।

कहीं–कहीं अधिकरण कारक के चिह्न (में, पर) लुप्त भी रहते हैं। जैसे– आजकल वह राँची रहता है। मैं जल्द ही आपके दफ्तर पहुँच रहा हूँ। ईश्वर करे. आपके घर मोती बरसे।

कहीं–कहीं अधिकरण का चिह्न रहने पर भी वहाँ अन्य कारक होते हैं। जैसे– आजकल के नेता लोग रुपयों पर बिकते हैं। – (रुपयों के लिए’ भाव है) ‘में’ और ‘पर’ का प्रयोग 1. निर्धारण, कारण, भीतर, भेद, मूल्य, विरोध, अवस्था और द्वारा अर्थ में अधिकरण का चिह्न आता है। जैसे– स्थलीय जीवों में हाथी सबसे बड़ा पशु है। पहाड़ों में हिमालय सबसे बड़ा और ऊँचा है। पाकिस्तान और तालिबान में कोई फर्क नहीं है।

2. अनुसार, सातत्य, दूरी, ऊपर, संलग्न और अनंतर के अर्थों में और वार्तालाप के प्रसंग में ‘पर’ चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे– नियत समय पर काम करो और उसका मीठा फल खाओ। घोड़े पर चढ़नेवाला हर कोई घुड़सवार नहीं हो जाता। यहाँ से पाँच किलोमीटर पर गंगा बहती है। इस पर वह क्रोध से बोला और चलते बना . मैं पत्र–पर–पत्र भेजता रहा और तुम चुपचाप बैठे रहे।

3. गत्यर्थक धातुओं के साथ में’ और ‘पर’ दोनों आते हैं। जैसे– वह डेरे पर गया होगा। मैं आपकी शरण में आया हूँ।

उक्त वाक्यों का वैकल्पिक रूप है। वह डेरे को गया होगा। मैं आपकी शरण को आया हूँ।

निम्नलिखित वाक्यों में ‘में’ की जगह ‘पर’ लिखें, क्योंकि इनमें ‘में’ भद्दा लग रहा है– 1. उसकी दृष्टि चित्र में गड़ी है। 2. वह पुस्तक में आँखें गाड़े है। 3. कन्या की हत्या में उन्हें आजीवन जेल हुई। 4. नाजायज शराब में मुरारि की गिरफ्तारी हुई। 5. हमारी भाषा में अंग्रेजी का बड़ा प्रभाव है। 6. उनकी माँग में सभी लोगों की सहानुभूति है। 7. भ्वाइस ऑफ अमरीका में यह समाचार बताया गया है। 8. सड़क में भारी भीड़ थी। 9. उस स्थान में पहले से कई व्यक्ति मौजूद थे। 10. उन्होंने सेठ के चरणों में पगड़ी रख दी।

“जिस संज्ञापद से किसी को पुकारने, सावधान करने अथवा संबोधित करने का बोध हो, ‘संबोधन’ कारक कहते हैं।”

संबोधन प्रायः कर्ता का ही होता है, इसीलिए संस्कृत में स्वतंत्र कारक नहीं माना गया है। संबोधित संज्ञाओं में बहुवचन का नियम लागू नहीं होता और सर्वनामों का कोई संबोधन नहीं होता, सिर्फ संज्ञा पदों का ही होता है।

नीचे लिखे वाक्यों को देखें– भाइयो एवं बहनो! इस सभा में पधारे मेरे सहयोगियो ! मेरा अभिवादन स्वीकार करें। हे भगवान् ! इस सड़ी गर्मी में भी लोग कैसे जी रहे हैं। बच्चो ! बिजली के तार को मत छूना। देवियो और सज्जनो ! इस गाँव में आपका स्वागत है।

नोट : सिर्फ संबोधन कारक का चिह्न संबोधित संज्ञा के पहले आता है। संज्ञा एवं सर्वनाम पदों की रूप रचना

उल्लेखनीय है कि संज्ञा और सर्वनाम विकारी होते हैं और इसके रूप लिंग–वचन तथा कारक – के कारण परिवर्तित होते रहते हैं। नीचे कुछ संज्ञाओं एवं सर्वनामों के रूप दिए जा रहे हैं

1. अकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘फूल’ कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – फूल/फूल ने – फूल/फूलों ने (०/को) कर्म – फूल/फूल को – फूलों को (से/द्वारा) करण – फूल/फूल से/ के द्वारा – फूलों से/ के द्वारा (को के लिए) सम्प्रदान – फूल को/ के लिए – फूलों को/ के लिए (से) अपादान – फूल से – फूलों से (का–के–की) संबंध – फूल का/के/की – फूलों का/ के की (में पर) अधिकरण – फूल में/पर – फूलों में/ पर (हे/हो अरे) संबोधन – हे फूल ! – हे फूलो !

2. अकारान्त स्त्री० संज्ञा : ‘बहन’ कारक (परसगी – एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – बहन/बहन ने – बहनें/बहनों ने (०/को) कर्म – बहन/बहन को – बहनों को (से/द्वारा) करण – बहन से/के द्वारा – बहनों से/ के द्वारा (को/के लिए) सम्प्रदान – बहन को/ के लिए – बहनों को/के लिए (से) अपादान – बहन से – बहनों से (का–के–की) संबंध – बहन का/ केकी – बहनों का/ केकी (में/पर) अधिकरण – बहन में/ पर – बहनों में पर (हे/हो…) संबोधन – हे बहन ! – हे बहनो !

3. अकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘लड़का’ कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – लड़का/लड़के ने – लड़के/लड़कों ने (०/को) कर्म – लड़के को – लड़कों को (से/द्वारा) करण – लड़के से/के द्वारा – लड़कों से/के द्वारा (को/के लिए) सम्प्रदान – लड़के को/के लिए – लड़कों को/ के लिए (से) अपादान – लड़के से – लड़कों से (का–के–की) संबंध – लड़के का/के की – लड़कों का/ केकी (में/पर) अधिकरण – लड़के में/पर – लड़कों में/पर (हे/हो/…) संबोधन – हे लड़के ! – हे लड़को !

4. अकारान्त स्त्री० संज्ञा : ‘माता’ कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – माता/माता ने – माताएँ/माताओं ने (०/को) कर्म – माता/माता को – माताओं को (से/द्वारा) करण – माता से/के द्वारा – माताओं से/के द्वारा (को/के लिए) सम्प्रदान – माता को/के लिए – माताओं को के लिए (से) अपादान – माता से – माताओं से (का–के–की) संबंध – माता का/के/की – माताओं का/के की (में/पर) अधिकरण – माता में/पर – माताओं में/पर (हे/हो/…) संबोधन – हे माता ! – हे माताओ !

5. इकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘कवि’ कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – कवि/कवि ने – कवि/कवि ने (०/क) कर्म – कवि/कवियों ने कवि/कवि को – कवि/कवियों ने कवि/कवि को (से/द्वारा) करण – कवि/कवियों को कवि से/के द्वारा – कवि/कवियों को कवि से/के द्वारा (को/के लिए) सम्प्रदान – कवियों से/के द्वारा कवि को/के लिए – कवियों से/के द्वारा कवि को/के लिए (से) अपादान – कवियों को/के लिए कवि से – कवियों को/के लिए कवि से (का–के–की) संबंध – कवियों से कवि का/के की – कवियों से कवि का/के की (में/पर) अधिकरण – कवियों का/के/की कवि में/पर – कवियों का/के/की कवि में/पर (हे/हो/…) संबोधन – – कवियों में/पर हे कवि ! – हे कवियो !

6. इकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘शक्ति’ कारक (परसम) – एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – शक्ति/शक्ति ने – शक्तियों ने/शक्तियाँ (०/को) कर्म – शक्ति/शक्ति को – शक्तियों को/शक्तियाँ (से/द्वारा) करण – शक्ति से/के द्वारा – शक्तियों से/के द्वारा (को/के लिए) सम्प्रदान – शक्ति को/के लिए – शक्तियों को/के लिए (से) अपादान – शक्ति से – शक्तियों से (का–के–की) संबंध – शक्ति का/के की – शक्तियों का/के की (में/पर) अधिकरण – शक्ति में/पर – शक्तियों में/पर (हे/हो…) संबोधन – हे शक्ति ! – हे शक्तियो !

7. ईकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘धोबी’ एकवचन में सभी रूप : धोबी ने / को से / के द्वारा को के लिए / से / का के। की / में पर हे धोबी ! बहुवचन में सभी रूप : धोबियों ने को / से के द्वारा / को के लिए से का के की / में पर हे धोबियो !

8. ईकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘बेटी’ एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – बेटी ने/बेटी – बेटियाँ/बेटियों ने (०/को) कर्म बेटी को – बेटियों को (से/द्वारा) करण – बेटी से/के द्वारा– बेटियों से/के द्वारा (को/के लिए) सम्प्रदान – बेटी को/के लिए – बेटियों को/के लिए (से) अपादान – बेटी से – बेटियों से (का–के–की) संबंध – बेटी का/के/की – बेटियों का/के/की (में/पर) अधिकरण – बेटी में/पर – बेटियों में पर (हे/अरी) संबोधन – अरी बेटी ! – अरी बेटियो !

9. उकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘साधु’ एकवचन में सभी रूप : साधु ने / को से के द्वारा को के लिए से का के की में पर / हे साधु ! बहुवचन में सभी रूप : साधुओं ने / को से के द्वारा को के लिए / से का के। की। में पर हे साधुओ!

10. उकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘वस्तु’ कारक (परसग) – एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – वस्तु/वस्तु ने – वस्तुएँ/वस्तुओं ने (०/को) कर्म – वस्तु/वस्तु को – वस्तुओं को (से/द्वारा) करण – वस्तु से/के द्वारा – वस्तुओं को/के द्वारा (को/के लिए) सम्प्रदान – वस्तु को/के लिए– वस्तुओं को/के लिए (से) अपादान – वस्तु से – वस्तुओं से (का–के–की) संबंध – वस्तु का/के/की – वस्तुओं का/के/की (में/पर) अधिकरण – वस्तु में/पर – वस्तुओं में/पर (हे/हो/अरी) संबोधन – अरी वस्तु !– अरी वस्तुओ !

11. ऊकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘भालू’ एकवचन में सभी : भालू ने / को / से / के द्वारा / को के लिए / से का / के की। में पर हे भालू ! बहुवचन में सभी : साधुओं ने को / से के द्वारा को के लिए से का / के की / में पर हे साधुओ !

12. ऊकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘बहू’ कारक (परसगी) – एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – बहू ने/बहू – बहुएँ/बहुओं ने (०/को) कर्म – बहू को बहू – बहुएँ/बहुओं को (से/द्वारा) करण – बहू से/के द्वारा – बहुओं से के द्वारा (को/के लिए) सम्प्रदान – बहू को/के लिए – बहुओं को/के लिए (से) अपादान – बहू से – बहुओं से (का–के–की) संबंध – बहू का/के की – बहुओं का/के/की (में/पर) अधिकरण – बहू में/पर – बहुओं में/पर (अरी/हे…) संबोधन – हे बहू ! – हे बहुओ !

13. ‘मैं’ सर्वनाम का रूप कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन (०/ने) कर्ता – मैं/मैंने – हम/हमने (०/को) कर्म – मुझे/मुझको – हमें हमको (से/द्वारा) करण – मुझसे/मेरे द्वारा – हमें हमारे द्वारा (को/के लिए) सम्प्रदान – मुझको/मेरे लिए – हमको/हमारे लिए (से) अपादान – मुझसे – हमसे (का–के–की) संबंध – मेरा/मेरे/मेरी – हमारा/हमारे हमारी (में/पर) अधिकरण – मुझ में/मुझ पर – हम में/हम पर (हे/हो/अरे) संबोधन – x – x

इसी तरह अन्य सर्वनामों के रूप देखें :

तू + ने – :तूने – वह + ने – :उसने/उन्होंने तू + को – :तुझको – यह + को – :इसको/इसे/इनको तू + रा/रे/री – :तेरा/तेरे/तेरी – यह + में – :इसमें इनमें तू + में – :तुझमें – कोई – :सभी कारक–चिह्ण के साथ किसी तुम + ने – :तुमने – कुछ – :सभी चिह्नों के साथ अपरिवर्तित तु + को – :तुमको/तुम्हें – कौन + ने – :किसने तुम + रा/रे/री – :तुम्हारा/तुम्हारे तुम्हारी – कौन + को – :किसे/किसको वह + ने – :उसने/उन्होंने – जो – :जिस/’जिन’ के रूप में परिवर्तित वह + का/के की – :उसका/उसके उसकी/उनका/उनमें उनकी वह + में – :उसमें/उनमें

Karak in Hindi Worksheet Exercise Questions with Answers PDF

1. ‘राम अयोध्या से वन को गए। इस वाक्य में ‘से’ किस कारक का बोधक है? (a) करण (b) कर्ता (c) अपादान उत्तर : (c) अपादान

2. ‘मछली पानी में रहती है’ इस वाक्य में किस कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है? (a) संबंध (b) कर्म (c) अधिकरण उत्तर : (c) अधिकरण

3. ‘राधा कृष्ण की प्रेमिका थी’ इस वाक्य में की’ चिह्न किस कारक की ओर संकेत करता है? (a) करण (b) संबंध (c) कर्ता उत्तर : (b) संबंध

4. ‘गरीबों को दान दो’ ‘गरीब’ किस कारक का उदाहरण है? (a) कर्म (b) करण (c) सम्प्रदान उत्तर : (c) सम्प्रदान

5. ‘बालक छुरी से खेलता है’ छुरी किस कारक की ओर संकेत करता है? (a) करण (b) अपादान (c) सम्प्रदान उत्तर : (a) करण

6. सम्प्रदान कारक का चिह्न किस वाक्य में प्रयुक्त हुआ है? (a) वह फूलों को बेचता है। (b) उसने ब्राह्मण को बहुत सताया था। (c) प्यासे को पानी देना चाहिए। उत्तर : (c) प्यासे को पानी देना चाहिए।

7. इन वाक्यों में से किसमें करण कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है? (a) लड़की घर से निकलने लगी है (b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं (c) पहाड़ से नदियों निकली हैं उत्तर : (b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं

8. किस वाक्य में कर्म–कारक का चिह्न आया है? (a) मोहन को खाने दो (b) पिता ने पुत्र को बुलाया (c) सेठ ने नंगों को वस्त्र दिए उत्तर : (b) पिता ने पुत्र को बुलाया

9. अपादान कारक किस वाक्य में आया है? (a) हिमालय पहाड़ सबसे ऊँचा है (b) वह जाति से वैश्य है (c) लड़का छत से कूद पड़ा था उत्तर : (c) लड़का छत से कूद पड़ा था

10. इनमें से किस वाक्य में ‘से’ चिह्न कर्ता के साथ है? (a) वह पानी से खेलता है (b) मुझसे चला नहीं जाता (c) पेड़ से पत्ते गिरते हैं उत्तर : (b) मुझसे चला नहीं जाता

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Arinjay Academy » Hindi Vyakaran Class 6 » कारक और कारक के भेद

कारक और कारक के भेद

कारक और कारक के भेद ( Karak or Karak ke bhed in Hindi )

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से या क्रिया से जाना जाता है, उसे कारक कहते है | कारकों को बतानेवाले जो चिह्न संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ लगाए जाते हैं, उन्हें विभक्ति या परसर्ग कहते हैं |

→   श्री राम युद्ध किया | →   उन्होंने रावण मारा | →   श्री राम रावण तीर मारा | →   उन्होंने धर्म रक्षा रावण मारा |

→   श्री राम ने युद्ध किया | →   उन्होंने रावण को मारा | →   श्री राम ने रावण को तीर से मारा | →   उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए रावण को मारा |

कारक के भेद (Karak ke bhed)

कारक के भेद

कर्ता कारक (ने)

जैसे → →  सुनील दौड़ लगाता है | →  राधा ने सफाईं की | →  मोहन ने पत्र लिखा | →  संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से कार्य को करनेवाले का बोध हो,  उसे कर्ता कारक कहते है | →  कर्ता कारक विभक्ति चिह्न “ने” है | →  “ने” विभक्ति चिह्न का प्रयोग भूतकाल में तथा सकर्मक क्रिया होने   पर होता है |

जैसे →  मोहन पुस्तक पढ़ता है | (वर्तमान काल) →    वैशाली बाजार जाएगी | (भविष्यत काल) →  नीरू खुश हुई |  (भूतकाल, अकर्मक क्रिया) →  सीमा ने आम खाया | (भूतकाल, सकर्मक क्रिया)

कर्म कारक (‘को’)

जैसे → राम ने रावण को मारा | →  जिस शब्द पर क्रिया के कार्य का प्रभाव पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं | →  कर्म कारक की विभक्ति “को” है | →  कर्म की पहचान के लिए “क्रिया” के साथ “क्या” अथवा किसको शब्द  लगाकर प्रश्न करते है |

जैसे →  राम ने रावण को मारा | प्रश्न   -“किसको” मारा ? उत्तर =  रावण को जैसे → निशा दूध पीती है | प्रश्न   -“क्या” पीती है ? उत्तर =  “दूध”

करण कारक – “करण” का अर्थ है – “साधन” |

जैसे   →  बच्चे गेंद से खेल रहे हैं | →  जिस साधन के द्वारा कर्ता कार्य करता है, उसे करण कारक कहते है | →  इसका विभक्ति चिह्न “से” है | →  करण कारक की पहचान के लिए क्रिया के साथ किससे, किसके द्वारा, किसके साथ शब्द लगाकर प्रश्न करने पर जो उत्तर प्राप्त होगा वही करण कारक होगा |

जैसे- राम ने रावण को तीर से मारा | प्रश्न →  “किससे” मारा उत्तर =तीर से (करण कारक)

संप्रदान कारक

→  राम सीता के लिए फल लाया | →  कर्ता जिसके लिए क्रिया करता है, अथवा जिसे कुछ देता है,  उसे संप्रदान कारक कहते है | →  संप्रदान कारक का विभक्ति चिह्न “के लिए” तथा “को” है | →  इसकी पहचान करने के लिए क्रिया के साथ, किसको, “किसके लिए” प्रश्न करने पर जो उत्तर प्राप्त होता है, वही संप्रदान कारक होता है |

जैसे- अतिथि राधा के लिए उपहार लाए | प्रश्न →  किसके लिए लाए उत्तर = राधा के लिए (संप्रदान कारक)

अपादान कारक

जैसे → गंगा हिमालय से निकलती है | पेड़ से पत्ते गिरते हैं | →  संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरे से अलग होने का तुलना होने या दूरी होने का भाव प्रकट हो उसे अपादान कारक हैं | →  इसका विभक्ति चिह्न “से” है | →  इसकी पहचान के लिए क्रिया के साथ किससे, “कहाँ से” शब्द लगाकर प्रश्न करने से जो उत्तर प्राप्त होगा, वही अपादान कारक होता है |

जैसे – पेड़ से फल गिरा | प्रश्न →  “किससे” गिरा | उत्तर =  पेड़ से

जैसे → यह पिता जी की गाड़ी है |

संबंध कारक – शब्द के जिस रूप से किसी व्यक्ति / वस्तु का संबंध किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु के साथ जाना जाए, उसे संबंध कारक कहते हैं | संबंध कारक के विभक्ति चिह्न का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी, हैं | →  इसकी पहचान के लिए क्रिया के साथ “किसका, किसकी, किसके” शब्द लगाकर प्रश्न करने पर जो उत्तर प्राप्त होगा, वही संबंध कारक होता है |

जैसे – राम राजा दशरथ के पुत्र थे | प्रश्न →“किसके” पुत्र थे | उत्तर =  राजा दशरथ के

अधिकरण कारक

जैसे – पक्षी डाल पर बैठे है | अधिकरण कारक – शब्द के जिस रूप से क्रिया का आधार प्रकट हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं | इसके विभक्ति चिह्न हैं –  में, पर;

अधिकरण कारक की पहचान के लिए क्रिया के साथ किसमें, किस पर, कहाँ, या “कब” शब्द लगाकर प्रश्न करने पर जो उत्तर प्राप्त होगा वहीँ  अधिकरण कारक होता है |

जैसे – पौधें गमले में लगे हैं | प्रश्न →“किसमें” लगे है ? उत्तर =  गमले में

संबोधन कारक

जैसे –  हे भगवान ! इस बेचारे की रक्षा करना  |

संबोधन कारक – शब्द का वह रूप जिससे किसी को पुकारे जाने के भाव का ज्ञान हो, उसे संबोधन कारक कहते हैं | इसके विभक्ति चिह्न हैं_ हे, अरे आदि | इसकी पहचान इसके चिह्न (!) से होती है |

FAQs on Karak or Karak ke bhed

प्र.1.  कारक किसे कहते हैं ?  

उत्तर = संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से या क्रिया से जाना जाता है, उसे कारक कहते हैं |

प्र.2.  कारक के कितने भेद होते हैं ?    

प्र.3.  पिताजी मोहन के लिए कमीज लाए | उक्त वाक्य में कौनसा कारक हैं ?        

उत्तर = संप्रदान कारक

प्र.4.  जिस वाक्य में एक वस्तु का दूसरे से अलग होने का भाव प्रकट हो वहाँ कौनसा कारक होता हैं ?   

उत्तर = अपादान कारक

प्र.5.  का, की, के, रा, री, रे किस कारक के विभक्ति चिह्.न है ?              

उत्तर = संबंध कारक

प्र.6.  माँ चाकू से फल काट रही हैं | उक्त वाक्य में कौनसा कारक है |  

उत्तर = करण कारक

प्र.7.  में, पर किस कारक के विभक्ति चिह्.न है ?    

उत्तर = अधिकरण कारक

प्र.8.  विभक्ति किसे कहते हैं ?       

उत्तर = कारको को बताने वाले जो चिह्.न संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ लगाए जाते हैं वे विभक्ति कहलाते हैं |

Hindi Vyakaran Class 6 Notes

  • लिंग – लिंग के भेद (Ling or Ling ke bhed)
  • भाषा (Bhasha aur Lipi)
  • विराम चिन्ह (Viram Chinh)
  • प्रत्यय (Pratyay)
  • मुहावरे (Muhavare)
  • संज्ञा-संज्ञा के भेद (Sangya or Sangya ke bhed)
  • काल – काल के भेद (Kaal or Kaal ke Bhed)
  • विशेषण (Visheshan)
  • क्रिया (सकर्मक क्रिया, अकर्मक क्रिया)
  • कारक – कारक के भेद (Karak or Karak ke bhed)
  • सर्वनाम – सर्वनाम के भेद (Sarvanam or Sarvanam ke bhed)
  • वर्ण-विचार (Varn Vichar)
  • उसपर्ग (Upsarg)
  • वचन के भेद (Vachan or Vachan ke bhed)
  • अव्यय – अविकारी शब्द (Avyay – Avikari shabd)
  • शब्द विचार (Shabd Vichar)
  • शब्द भेद – अर्थ के आधार पर (Shabd bhed – Arth ke adhar pr)
  • संधि – संधि के भेद (Sandhi – Sandhi ke bhed)

NCERT Solutions for Class 6

Cbse notes for class 6, worksheets for class 6, 2 thoughts on “कारक और कारक के भेद”.

Many Thanks Aditi Rajput

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Easy (कारक) karak in Hindi Grammar for class 5 to 12

Learn Karak in Hindi with lots of Examples and exercise answers with PDF Worksheets. Including Karak ke bhed, Paribhasha, Udaharan, tricks with CBSE / NCERT syllabus. Read कारक अभ्यास from beginner to advanced level.

कारक किसे कहते हैं Hindi Karak ki Paribasha

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Table of Contents

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका ( संज्ञा या सर्वनाम ) सम्बन्ध सूचित हो, उस रूप को कारक कहते है। या जो भी क्रिया को करने में भूमिका निभाता है, वह कारक कहलाता है।

हिन्दी में आठ कारक है- १. कर्ता कारक  २. कर्म कारक  ३. करण कारक  ४. सम्प्रदान कारक  ५. अपादान कारक  ६. सम्बन्ध कारक  ७. अधिकरण कारक  ८. सम्बोधन कारक  

हिन्दी की विभत्तियाँ Hindi ki Vibhakti

कारकों के बोध के लिए संज्ञा या सर्वनाम के आगे जो प्रत्यय लगाए जाते है उन्हें व्याकरण में विभत्तियाँ कहते है। हिन्दी कारकों की विभक्तियों के चिन्ह –

कारक विभत्तियाँ
कर्ता कारक (Nominative Case) ने
कर्म कारक (Objective case) को
करण कारक (Instrumental Case) से
सम्प्रदान कारक (Dative Case) को, के लिए
अपादान कारक (Ablative Case) से
सम्बन्ध कारक (Genitive Case) का, के, की, रा, रे, री
अधिकरण कारक (Locative Case) में, पै, पर 
सम्बोधन कारक (Vocative case) हे, अहो, अरे, अजी

वाक्य में जो शब्द काम करने वाले के अर्थ में आता है, उसे ‘कर्ता’ Karta Karak (Nominative Case) कहते है। दूसरे शब्दों में, जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह कर्ता कारक कहलाता है। इसका विभक्ति चिह्न ‘ने’ है।

कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग-

  • जब सयुंक्त क्रिया के दोनों खंड सकर्मक हो तो अपूर्णभूत को छोड़कर अन्य सभी भूतकालो में कर्त्ता के साथ ‘ने’ का प्रयोग होता है। परशुराम ने पढ़ाई की। नेहा ने उसे डाटा।
  • जब क्रिया सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्ण भूत, संदिग्ध भूत और हेतुहेतुमद् भूत कालों के कर्मवाच्य में हो तो ‘ने’ का प्रयोग होता है। सामान्य भूत- केतन ने रोटी खायी। आसन्न भूत- केतन ने रोटी खायी है। पूर्ण भूत- केतन ने रोटी खायी थी। संदिग्ध भूत- केतन ने रोटी खायी होगी। हेतुहेतुमद् भूत- केतन ने क़िताब पढ़ी होती, तो उत्तर ठीक होता।
  • सामान्यतः अकर्मक क्रिया के साथ ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है। लेकिन कुछ ऐसी अकर्मक क्रियाएँ है, जैसे- खाँसना, थूकना, नहाना, छींकना जिनमें ‘ने’ चिह्न का प्रयोग होता है।
  • जब अकर्मक क्रिया सकर्मक बनती है, तब ‘ने’ का प्रयोग होता है। जैसे – उसने पत्र लिखा।
  • शुभम ने संकल्प को मारा। ‘शुभम’ कर्त्ता है। ‘ने’ कर्ता कारक का विभक्ति चिह्न है। ‘मारा’ भूतकाल की क्रिया है।
  • नरेंद्र ने फुटबॉल खेली।
  • आपने बहुत अच्छा किया।
  • पुष्पा ने रीमा को पत्र लिखा।
  • नेहा ने पूरी किताब पढ़ ली।
  • कृष्ण ने सुदामा की सहायता की।

क्रिया के कार्य का फल जिस पर पड़ता है, उसे कर्म कारक Karm Karak (Objective case) कहते है। इस कारक का चिह्न ‘को’ है। यदि कर्म निर्जीव हो तो ‘को’ का प्रयोग नहीं होता है। जैसे – रतन क़िताब पढ़ता है।

  • सुरेश ने मच्छर को मारा। ‘मारा’ क्रिया है। ‘मच्छर’ कर्म है। मारने की क्रिया का फल ‘मच्छर’ पर पड़ा है। इसलिए ‘मच्छर’ कर्म कारक है।
  • रमेश ने सुरेश को बुलाया।
  • स्वाति ने पत्र लिखा। ‘लिखने’ की क्रिया का फल ‘पत्र’ पर पड़ा है। इसलिए ‘पत्र’ कर्म कारक है। ‘पत्र’ निर्जीव है, इसलिए कर्म कारक का चिह्न ‘को’ नहीं लगा है।
  • विशाल ने मोहन को बुलाया।
  • केशव तबला बजा रहा है।

वाक्य में जिस शब्द से क्रिया के सम्बन्ध का बोध हो, उसे करण कारक Karan Karak (Instrumental Case) कहते है। करण का अर्थ है साधन। वह साधन जिससे क्रिया होती है, उसे करण कहते है। इसका चिन्ह ‘से’ है। हिन्दी में करण कारक के अन्य चिह्न ‘से’, ‘द्वारा’, ‘के द्वारा’, ‘के जरिए’ इत्यादि है।

  • बालक गेंद से खेल रहे है। वाक्य में बालक खेलने का कार्य ‘गेंद’ से कर रहे है। इसलिए ‘गेंद से’ करण कारक है।
  • उसके द्वारा यह कहानी सुनी थी।
  • माँ ने भाई को चप्पल से मारा।
  • प्रशांत कंप्यूटर से गेम्स खेलता है।
  • हम नाक से सांस लेते हैं।
  • वह विदेश से लौटा है।

जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए यानी कर्त्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है तो उसे सम्प्रदान कारक sampradan karak (Dative Case) कहते है। हिन्दी में सम्प्रदान कारक के ‘को’, ‘के लिए’ चिह्न है।

  • उस आदमी ने अपने बच्चों के लिए सब कुछ किया। वाक्य में उस आदमी ने अपने ‘बच्चों के लिए’ सब कुछ किया। इसलिए ‘बच्चों के लिए’ सम्प्रदान कारक है।
  • भूखों को अन्न देना चाहिए।
  • सभी लेखकों को पुरस्करित किया।
  • नेहा ने स्नेहा को एक गिफ्ट खरीदा।
  • उसने सबकों को मिठाइयाँ दी।
  • मैं नेहाल के लिए केक बना रहा हूं।
  • आशा ने प्रतिमा को गाड़ी दी।

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से दूर होने, डरने, तुलना करने, निकलने का भाव प्रकट होता है, उसे अपादान कारक Apadan Karak (Ablative Case) कहते है। दूसरे शब्द में – जिसमें भय हो या भय के कारण जिससे रक्षा की जाती हो वह अपादान कारक है। हिन्दी में अपादान कारक का भी चिह्न ‘से’ है।

  • पेड़ से फल गिरा। वाक्य में पेड़ से फल का गिरना ये बताता है की पेड़ से फल अलग हुआ है। इसलिए पेड़ अपादान कारक है।
  • उसके हाथ से केक निचे गिर गया। इस वाक्य में हाथ से केक गिरने का बोध हो रहा है। इसलिए यह अपादान कारक है।
  • हमारी पृथ्वी सूर्य से बहुत दूर है।
  • वह कुत्ते से डरता है।
  • शेर गुफा से बाहर आया।
  • चूहा बिल्ली से डरता है।

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी अन्य शब्द के साथ सम्बन्ध या लगाव प्रतीत हो उसे सम्बन्ध कारक Sambandh Karak (Genitive Case) कहते है। संबंध कारक के चिह्न- का, के, की, रा, री, रे, ना, नी, रे।

  • यह मोहन का भाई है। वाक्य में ‘मोहन का भाई’ संबंध प्रकट हो रहा है। इसलिए यहाँ संबंध कारक है।
  • रतन का घर बहुत बड़ा है।
  • वह पवन की किताब है।
  • मेरी लड़की विदेश में पढ़ती है
  • यहाँ आपका लैपटॉप है।
  • स्वेता के पिता एक डॉक्टर हैं।
  • प्राची के बच्चे बुद्धिमान हैं।

संज्ञा के जिस रूप की वजह से क्रिया के आधार का बोध हो उसे अधिकरण कारक Adhikaran Karak (Locative Case) कहते हैं। अधिकरण कारक के चिह्न मैं, पे, पर आदि। अधिकरण का अर्थ होता है – आधार या आश्रय। अधिकरण कारक में कहीं-कहीं के मध्य, के बीच, के भीतर आदि शब्दों का भी प्रयोग होता है।

  • कमरे में टीवी रखा है। कमरे में अधिकरण कारक है। क्योंकि इसमें रखने की क्रिया के आधार का पता चलता है।
  • मैं कमरे में बैठा हैं।
  • महल में दीपक जल रहा है।
  • शेर उस गुफा के भीतर रहता है।
  • वसंत पार्क में खेल रहा है।
  • पेड़ पर पक्षी बैठे हैं।
  • मछली पानी में रहती है।
  • फ्रिज में ठंडा पानी है।

संज्ञा के जिस रूप से किसी के पुकारने या संकेत करने का भाव पाया जाता है, उसे सम्बोधन कारक sambodhak karak (Vocative case) कहते है। सम्बोधन कारक की पहचान करने के लिए ! यह चिह्न लगाया जाता है। सम्बोधन कारक में अरे, हे, अजी, ओ, आदि का उपयोग होता है।

सम्बोधन कारक के उदाहरण Sambodhak karak examples in Hindi

  • अरे भैया ! रो क्यों रहे हो ?
  • बच्चों! अच्छी तरीके से पढ़ाई कर लो।
  • हे भगवान ! रक्षा करो हमारी।
  • भाइयो और बहनों ! नमस्कार।
  • अरे ! आप आ गये।
  • बाबूजी ! आप यहाँ बैठें।
  • अरे ! तुम इतने जल्दी कैसे आये

1. कारक के प्रकार कितने है-   A- ६       B- ४      C- ८        D- १०

2.  बाबूजी! तुम कहाँ हो? वाक्य में कौन-सा कारक है?   A- सम्बोधन   B- सम्बन्ध     C- सम्प्रदान

3. ‘पेड़ से बन्दर कूदा’, वाक्य में कौन-सा कारक है?   A- अधिकरण     B- अपादान    C- कर्ता

4. ‘वीरों ने देश के हेतु बलिदान दे दिया।’ में कौन-सा कारक है? A- सम्‍प्रदान   B- अपादान     C- संबंध

5. संप्रदान करक के चिन्ह पहचानिए-  A- का लिए       B- की लिए       C- के लिए

6. अधिकरण करक के चिन्ह पहचानिए-   A- में ,पर     B- मै ,मे  

7. जिसे देखता हूँ, वही स्वार्थी निकलता है’,कौनसा कारक है ?  A- संबंध     B- करण      C- अपादान  

8. बच्चा साँप को देखकर डर गया। वाक्य में कौन-सा कारक है –  A- सम्‍प्रदान   B- अपादान     C- करण

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कारक – परिभाषा, भेद और उदाहरण | Karak in Hindi

कारक – परिभाषा, भेद और उदाहरण | Karak in Hindi हिंदी व्याकरण में कई सारी ऐसी जानकारियां उपलब्ध कराई गई हैं जिनके माध्यम से हम अपने ज्ञान को बढ़ा सकते हैं साथ ही साथ होने वाली किसी भी परेशानी को  दूर भी किया जा सकता है| 

अभी तक हमने आपको हिंदी व्याकरण के बारे में समुचित जानकारी दी है और आगे भी हमारी कोशिश होगी कि हम आप सभी को हिंदी व्याकरण के ज्यादा से ज्यादा तत्वों के बारे में अवगत करा सकें|

ऐसे में आज हम मुख्य रूप से हिंदी व्याकरण के “कारक” के बारे में जानकारी देंगे, जो  निश्चित रूप से ही आपके  लिए  कारगर होंगे और आप उनका फायदा ले सकेंगे| 

कारक क्या होते हैं? 

कारक सामान्य  रूप से उपयोग किए जाने वाले  तत्व होते हैं जिनके बारे में हमें समुचित जानकारी नहीं होती और  हम इस टॉपिक को छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं.

लेकिन आज हम आपको बताने वाले हैं कि ‘’कारक’’ के माध्यम से ही आप अपने वाक्यों को सही तरीके से लोगों के सामने पेश कर सकते हैं और किसी प्रकार की  दिक्कत  से बच सकते हैं|

ऐसे में कारक उन्हें कहा जाता है, जो  क्रिया  को पूर्ण करने वाले  शब्द या  निशान  होते हैं या फिर  ऐसा भी कहा जा सकता है कि कारक हमेशा संज्ञा और सर्वनाम के क्रिया के साथ होने वाले संबंधों को दर्शाते हैं और संज्ञा और सर्वनाम के सभी रूपों के बारे में जानकारी देते हैं| 

ऐसे में हम अपने वाक्य में कारक को पहचानने के लिए कई प्रकार के निशानों का उपयोग करते हैं ताकि हम निश्चित रूप से उनकी जानकारी ले सकें और किसी भी प्रकार से  वाक्यों को सही बनाया जा सके|

कारक में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न  निशान 

ऐसा माना जाता है कि कारक में कुछ मुख्य भेद होते हैं और इन भेदों के निशान पाए जाते हैं जिनके माध्यम से हम कारक के बारे में सही जानकारी ले सकते हैं।

ऐसे में आज हम आपको इनके मुख्य निशानों के बारे में बताएंगे तभी आप  भविष्य में कारक से संबंधित वाक्य को पहचान सकें|

  •  कर्म–  को
  •  करण —  से
  •  संप्रदान–  के लिए
  •  अपादान —- से
  •  संबंध —  का, की, के
  •  अधिकरण —  मैं, पर
  •  संबोधन —  है, अरे 

इस प्रकार से कुछ मुख्य निशान होते हैं ताकि आप  कारक के बारे में सही जानकारी ले सकें|

कारक के कुछ मुख्य भेद —

इसके बाद   हम   कारक के कुछ मुख्य  भेद  के बारे में जानकारी लेंगे, जो मुख्य रूप से आठ प्रकार के होते हैं— 

  •  कर्म  कारक
  •  करण कारक
  •  संप्रदान कारक
  •  अपादान कारक
  •  संबंध कारक
  •  अधिकरण कारक
  •  संबोधन कारक

अब हम आपको एक एक कर इन सब  कारको  के बारे में जानकारी देंगे ताकि आप आसानी से ही समझ सकें|

1] कर्ता कारक — इसके अंतर्गत ऐसे शब्द का अध्ययन किया जाता है, जिससे किसी क्रिया के करने का पता चलता हो,उसे कर्ता कारक कहा जाता है।

इसे मुख्य रूप से सर्वनाम के रूप में लिखा जाता है जिससे वाक्यों में एक संबंध नजर आता है| उदाहरण के रूप में — रानी ने खाना खाया,  राधा ने कहानी  पढ़ ली,  नेहा ने होमवर्क किया| 

इन सभी में  वाक्य  के साथ  “ने’’  परसर्ग  लगा हुआ है,  जिस से  सामान्य रूप से भूतकाल की सकर्मक क्रिया के बारे में जानकारी मिलती है|

साथ ही साथ यह भी देखा गया है कि वर्तमान और भविष्य काल में परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है  और सामान्य रूप से ही वाक्यों को सही तरीके से दिखाया गया है|

2] कर्म कारक — इसके अंतर्गत  क्रिया के करता  का फल पढ़ने का पता कराने  संज्ञा एवं सर्वनाम के  रूप  को कर्म कारक़ कहा जाता है| 

जिसमें सामान्य रूप से “को” का इस्तेमाल किया जाता है|  जिसे बनाना बहुत ही आसान है| उदाहरण के रूप में — मैंने  विशाल को मार दिया,  मैंने नेहा को पेंसिल दी,  मंजू ने श्याम को किताब दी थी|  

यहां पर दिए गए वाक्यों में  किसी के ऊपर जो भी बात आती हो, वह कर्म कारक कहलाता है जैसे कि विशाल को मार दिया, इसमें कर्म कारक विशाल होगा| 

3] करण कारक —- इसके अंतर्गत यदि किसी काम के संपन्न होने की बात सुनाई देती हो या  कोई काम  पूर्ण होता है उसे करण कारक़ कहा जाता है।

इसके माध्यम से कोई भी काम जो पूरा हुआ हो उसके बारे में जानकारी दी जाती है| उदाहरण के रूप में — निधि  गर्मी की वजह से वह परेशान हो रही थी,  राम ने  बाण से बाली को मार दिया था| 

यहां पर दिए गए वाक्य में निधि को गर्मी लग रही है इसका मतलब गर्मी ‘’करण कारक;; होगी|  ऐसे में अगर इस बारे में बात किया जाए तो वह सिर्फ गर्मी के बारे में इशारा करते हैं| 

4] संप्रदान कारक — इसके अंतर्गत यदि किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए ऐसे में इस मुख्य कारक़ का इस्तेमाल किया जाता है। 

ऐसे में किसी को कुछ देने या जिसके लिए कुछ किया जाए ऐसे में संज्ञा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो विभिन्न प्रकार के निशान के माध्यम से दर्शाया जा सकता है|

उदाहरण के रूप में — यह पेन मैंने राम को दे दी,   विद्यार्थी   अपने  अध्यापक के लिए एक तोहफा लेकर आए| 

इन मुख्य वाक्यों में संप्रदान  ‘’को’’ है,  जिसमें राम को पेन देने की बात की गई है साथ ही साथ अध्यापकों के लिए तोहफा लेकर आने की बात की गई है| 

ऐसे में स्पष्ट है कि यदि किसी को कुछ दिया जाए  या किसी के  लिए कुछ किया जाए,  वहां पर संप्रदान कारक़ का उपयोग किया जाता है|

5] अपादान कारक — इसके अंतर्गत यदि संज्ञा के किसी  रूप को किसी भी चीज से या शब्दों से अलग होने का भाव उत्पन्न होता है, ऐसे में अपादान कारक़ माना जाता है| इसका विभक्ति चिन्ह ‘’से’’ है वैसे तो विभक्ति  चिन्ह  से करण कारक़  का भी  चिन्ह  है लेकिन  इसमें से का अर्थ किसी चीज को अलग करने से होता है|

उदाहरण के रूप में — वह मुझसे अलग हो गया,  पेड़ से पत्ता गिर गया,  टेबल में रखा हुआ फूल  नीचे गिर गया| 

इसके अतिरिक्त  कई  और शब्दों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है,  जिसमें निकलने, सीखने, डरने  और तुलना करने का भी  बोध होता है|

6] संबंध कारक — इसके अंतर्गत किसी मुख्य संबंध के बारे में जानकारी मिलती है जिसमें संज्ञा या सर्वनाम का भी विशेष रूप से उपयोग किया जाता है|

जिसमें मुख्य रुप से का, के, की,ना,नो,  रा, रे, री  आदि का उपयोग किया जाता है और अपने वाक्य को संबंधित वाक्य बनाया जाता है|

उदाहरण के रूप में — यह गाय मोहन की है, यह ममता का घर है,  रानी का हार अच्छा है| 

इन सभी वाक्य में का, के,  की  का इस्तेमाल किया गया है, जो निश्चित रूप से ही  संबंध कारक के बारे में जानकारी दे रहे हैं और एक दूसरे से संबंध स्थापित भी कर रहे हैं|

7] अधिकरण कारक — इसके अंतर्गत किसी मुख्य प्रकार के समय, स्थान या अवसर के बारे में जानकारी दी जाती है,

जहां पर ही विभिन्न प्रकार के संज्ञा और सर्वनाम का इस्तेमाल किया जाता है  जिसे  अधिकरण  कारक़ के रूप में जाना जाता है|  जिसमें मुख्य रुप से  का,  के, की का इस्तेमाल करते हुए वाक्य बनाया जाता है|

उदाहरण के रूप में — जब हम घर में गए तो घर में उजाला नहीं था,  वीर सैनिक युद्ध भूमि में शहीद हो गया,  मेरे घर में कोई नहीं है| 

यहां पर वाक्यों में ‘’मैं’’ का इस्तेमाल किया गया है,  जो अधिकरण कारक के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत है और इसका  सही तरीके से उपयोग करते  है|

8] संबोधन कारक — इसके अंतर्गत संज्ञा या सर्वनाम के होते हुए किसी के साथ महत्वपूर्ण संबोधन का उल्लेख किया जाता है,  जिसके माध्यम से सही तरीके से वाक्यों को लिखा और पढ़ा जा सकता है|

उदाहरण के रूप में — हे ईश्वर तूने ऐसा क्यों किया?,   हे मां मुझे बहुत दर्द हो रहा है| 

 यहां पर ‘’है’’ के द्वारा विशेष रूप से संबोधन किया जा रहा है जिसके माध्यम से हम अपनी बात कहते हैं और दूसरों तक अपनी बात को पहुंचाते भी हैं| 

कर्म कारक और संप्रदान कारक में विभिन्न अंतर 

मुख्य रूप से इन दोनों कारकों में विभक्ति का प्रयोग होता है,  जहां कर्म कारक़ में किसी भी क्रिया के कर्म पर प्रभाव पड़ता है, तो संप्रदान कारक़ में देने के भाव पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ता है जिसे हम उदाहरण के रूप में भी समझ सकते हैं—

  • विशाल ने विकास को खिलौना दिया|
  •  डॉक्टर ने मरीज को दवाइयां दे दी|
  •  मोहन ने  सांप को मार दिया| 

करण कारक और अपादान कारक में अंतर

कारक़ में मुख्य रूप से विभिन्न चिन्हों का प्रयोग किया जाता है और ऐसे में करण कारक और अपादान कारक में भी  चिन्हों  का उपयोग होता है लेकिन  अलग तरीकों से| 

करण कारक़ में ‘’से’’ का उपयोग किया जाता है वही अपादान कारक में अलग होने हेतु क्रिया शामिल होती है|  इसके अलावा अपादान में हमेशा दूर जाने की बात होती है|  उदाहरण के रूप में 

  • मैं पेंसिल से लिखती हूं|
  •  मैं सीढ़ियों से गिर पड़ी|
  •  लड़के बैट बॉल से खेलते हैं|
  •  मुझे तुमसे बात करनी है|

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कारक- परिभाषा, भेद और उदहारण, Karak Kise Kahate Hain?

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कारक- परिभाषा, भेद और उदहारण Karak Definition in Hindi-01

Table of Contents

कारक, Karak को हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण विषय माना जाता है। यह विषय शिक्षण परीक्षाओं में 2-3 अंकों का होता है। कारक के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ परिभाषा, भेद और उदाहरण दिए जाते हैं। कारक (Karak) हिंदी में सरल और अंक ग्रहण के लिए सुलभ विषय है। भर्ती परीक्षाओं में कारक विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के साथ पूछा जाता है, जैसे कारक के उदाहरण क्या है? कारक से क्या अभिप्राय है? इसके उदाहरण के साथ प्रत्येक उदाहरण को इस जगह से सीख सकते हैं।

कारक से क्या अभिप्राय है?

कारक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – करने वाला अर्थात क्रिया को पूरी तरह करने में किसी न किसी भूमिका को निभाने वाला। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों से पता चले, उसे कारक कहते है।

कारक का अर्थ है किसी वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया या किसी अन्य शब्द के साथ संबंध। यह संबंध विभिन्न प्रकार का हो सकता है, जैसे कि कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, संबंध, अधिकरण, और सम्बोधन।

विभक्ति या परसर्ग

कारकों का रुप प्रकट करने के लिये उनके साथ जो शब्द चिन्ह लगते है, उन्हें विभक्ति कहते है। इन कारक चिन्हों या विभक्तियों को परसर्ग भी कहते है। जैसे – ने, में, को, से।  

कारक क्या होता है

कारक (हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण भाग है जो किसी क्रिया के संदर्भ को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त होता है। कारक का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि क्रिया किसी व्यक्ति या वस्तु के साथ कैसे हो रही है, या क्रिया को कैसे किया जा रहा है। कारक की मदद से क्रिया के कर्ता, विधि, उपकरण, प्राप्य, समय, स्थान, कारण, आदि के संदर्भ को स्पष्ट किया जा सकता है।

कारक विभक्ति क्या है?

हिंदी व्याकरण में कारक विभक्ति एक महत्वपूर्ण विषय है, जो वाक्य निर्माण और शब्दों के संबंध को समझने में मदद करता है। “कारक” का अर्थ है ‘क्रिया’ के साथ किसी संज्ञा या सर्वनाम का संबंध और “विभक्ति” का मतलब है ‘रूप परिवर्तन’। इसलिए, कारक विभक्ति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा संज्ञा या सर्वनाम का रूप बदलता है ताकि वह वाक्य में अपने सही अर्थ को प्रकट कर सके।

कारक और विभक्ति चिन्ह

हिंदी में कारकों को विभक्ति चिन्हों द्वारा प्रकट किया जाता है, जो संज्ञा या सर्वनाम के अंत में जोड़े जाते हैं। उदाहरण के लिए:

  • कर्ता : राम खाता है । (राम – कर्ता)
  • कर्म : राम पानी पीता है । (पानी – कर्म)
  • करण : राम कलम से लिखता है । (कलम से – करण)
  • संप्रदान : राम मुझे पुस्तक देता है । (मुझे – संप्रदान)
  • अपादान : राम दिल्ली से आता है । (दिल्ली से – अपादान)
  • सम्प्रयोग : राम दोस्त के साथ जाता है । (दोस्त के साथ – सम्प्रयोग)
  • अधिकरण : राम घर में है । (घर में – अधिकरण)

कारक के भेद Karak in Hindi

कारक के कुल भेद आठ होते हैं, जिनके नाम हैं, कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, आपादान, सम्बन्ध,अधिकरण और संबोधन कारक हैं।

कर्ता ने
कर्म को
करण से, के द्वारा
सम्प्रदान के लिए , को
अपादान से (अलग होने के अर्थ में)
सम्बन्ध का, के, की
अधिकरण में, पर
सम्बोधन हे! ओर!

1. कर्ता कारक – Karta Karak

क्रिया के करने वाले को कर्ता कारक कहतें है। यह पद प्रायः संज्ञा या सर्वनाम होता है। इसका सम्बन्ध क्रिया से होता है। जैसे – राम ने पत्र लिखा । यहाँ कर्ता राम है।कर्ता कारक का प्रयोग दो प्रकार से होता है –

  • परसर्ग सहित – जैसे – राम ने पुस्तक पढ़ी। यहाँ कर्ता के साथ ‘ने’ परसर्ग है । भूतकाल की सकर्मक क्रिया होने पर कर्ता के साथ ‘ने’ परसर्ग लगाया जाता है।
  • परसर्ग रहित – (क) भूतकाल की अकर्मक क्रिया के साथ परसर्ग ‘ने’ नही लगता| जैसे – राम गया। मोहन गिरा।

वर्तमान और भविष्यत काल में परसर्ग का प्रयोग नहीं होता।

कर्ता कारक के उदाहरण

जैसे – बालक लिखता है (वर्तमान काल)

रमेश घर जायगा। (भविष्य काल)

2. कर्म कारक -Karm Karak

जिस वस्तु पर क्रिया का फल पड़ता है, संज्ञा के उस रुप को कर्म कारक कहते है। इसका विभक्ति चिन्ह ‘को’ है।

कर्म कारक के उदाहरण

जैसे –   (क) राम ने रावण को मारा । यहाँ मारने की क्रिया का फल रावण पर पड़ा है।

(ख) उसने पत्र लिखा । यहाँ लिखना क्रिया का फल ‘पत्र’ पर है, अतः पत्र कर्म है।

3. करण कारक – Karan Karak

संज्ञा के जिस रुप से क्रिया के साधन का बोध हो, उसे करण कारक कहते है। इसका विभक्ति चिन्ह है – से (द्वारा)

करण कारक के उदाहरण

जैसे – राम ने रावण को बाण से मारा।

यहाँ राम बाण से या बाण द्वारा रावण को मारने का काम करता है। यहाँ ‘बाण से’ करण कारक है।

4. सम्प्रदान कारक – Sampradan Karak

सम्प्रदान का अर्थ है देना । जिसे कुछ दिया जाए या जिसके लिए कुछ किया जाए उसका बोध कराने वाले संज्ञा के रुप को सम्प्रदान कारक कहते है। इसका विभक्ति चिन्ह ‘के लिए’ या ‘को है।

सम्प्रदान कारक के उदाहरण

जैसे –  मोहन ब्राह्मण को दान देता है या मोहन ब्राह्मण के लिए दान देता है।

यहाँ ब्राह्मण को या ब्राह्मण के लिए सम्प्रदान कारक है।

5. अपादान कारक – Apadan karak

संज्ञा के जिस रुप से अलगाव का बोध हो उसे अपादान कारक कहते है। इसका विभक्ति चिन्ह से’ है।

अपादान कारक के उदाहरण

जैसे – वृक्ष से पत्ते गिरते हैं ।

मदन घोड़े से गिर पड़ा।

यहाँ वृक्ष से और घोड़े से अपादान कारक है । अलग होने के अतिरिक्त निकलने, सीखने, उरने, लजाने, अथवा तुलना करने के भाव में भी इसका प्रयोग होता है।

  • निकलने के अर्थ में – गंगा हिमालय से निकलती है।
  • उरने के अर्थ में –        चोर पुलिस से उरता है।
  • सीखने के अर्थ में – विद्यार्थी अध्यापक से सीखते है।
  • लजाने के अर्थ में – वह ससुर से लजाती है।
  • तुलना के अर्थ में  –        राकेश रुपेश से चतुर है।
  • दूरी के अर्थ में  –        पृथ्वी सूर्य से दूर है।

6. सम्बन्ध कारक -Sambhndh Karak

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका सम्बन्ध वाक्य की दूसरी संज्ञा से प्रकट हो, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं। इसके परसर्ग हैं – का, के, की, ना, ने, नो, रा,रे,री आदि ।

सम्बन्ध कारक के उदाहरण

जैसे – राजा दशरथ का बड़ा बेटा राम था।

राजा दशरथ के चार बेटे थे।

राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी।

विशेष :- संबंध कारक की यह विशेषता हैं कि उसकी विभक्तियाँ (का, के, की)

संज्ञा, लिंग, वचन के अनुसार बदल जाती हैं।

जैसे –   (क) लड़के का सिर दुख रहा है।

(ख) लड़के के पैर में दर्द है।

(ग) लड़के की टॉग में चोट है।

7. अधिकरण कारक – Adhikaran Karak

अधिकरण का अर्थ है आधार या आश्रय । संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से क्रिया के आधार (स्थान, समय, अवसर आदि) का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इस कारक के विभक्ति चिन्ह हैं – में, पे, पर ।

अधिकरण कारक के उदाहरण

जैसे –   (क) उस कमरे में चार चोर थे

(ख) मेज पर पुस्तक रखी थी।  

8. सम्बोधन कारक – Sanbodhan karak

शब्द के जिस रुप से किसी को सम्बोधित किया जाए या पुकारा जाए, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। इसमें ‘हे’, ‘अरे’ का प्रयोग किया जाता है।

सम्बोधन कारक के उदाहरण

जैसे – हे प्रभों, क्षमा करो। अरे बच्चो, शान्त हो जाओ।

विशेष :- कभी – कभी नाम पर जोर देकर सम्बोधन का काम चला लिया जाता है। वहाँ कारक चिन्हों की आवश्यकता नही होती। जैसे – अरे । आप आ गए। अजी। इधर तो आओ।

Karak Study Notes PDF

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कारक- परिभाषा, भेद और उदहारण PDF

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कारक किसे कहते है?: FAQs

हिंदी में कारक कितने होते हैं.

कारक के कुल आठ भेद होते हैं - कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण, और सम्बोधन।

कारक की पहचान कैसे करें?

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों से पता चले, उसे कारक कहते है।

कारक की विभक्तियों के उदाहरण क्या हैं?

कुछ उदाहरण हैं: कर्ता: राम ने पुस्तक पढ़ी। कर्म: राम ने रावण को मारा। करण: राम ने रावण को बाण से मारा।

में कौन सा कारक है?

शिकारी ने बाघमारा कौन सा कारक है, गृहिणी ने गरीबों को कपड़े दिए वाक्य में कौनसा कारक है, कारक का चिन्ह क्या है.

कारक चिह्नों को परसर्ग कहते हैं।

राम ने रोटी खाई में कौन सा कारक है?

राम ने रोटी खाई। इस वाक्य में कर्ता कारक 'ने' और क्रिया पुल्लिंग नहीं है इसलिए यह वाक्य अशुद्ध है।

कारक का दूसरा नाम क्या है?

कारक विभक्ति - संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के कारक अनुसार रूप-परिवर्तन को कहते हैं।

मैं तीन मिनट में आ रहा हूँ में कौन सा कारक है?

'मैं तीन मिनट के लिए आ रहा हूँ' इस वाक्य में सम्प्रदान कारक है।

कारक सीखने के लिए सर्वोत्तम तरीका क्या है?

कारक सीखने के लिए सर्वोत्तम तरीका नियमित अभ्यास और मूल्यांकन है, साथ ही व्याकरण पुस्तकें, ऑनलाइन संसाधन, और मॉक टेस्ट्स का भी उपयोग किया जा सकता है।

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presentation on karak in hindi

Karak in Hindi, कारक की परिभाषा, कारक के भेद और उदाहरण

Karak in hindi | कारक की परिभाषा, कारक के भेद और उदाहरण.

Karak in Hindi (कारक) : इस लेख में हम कारक की परिभाषा, भेदों को उदहारण सहित जानेंगे। कारक किसे कहते हैं? कारक के कितने भेद हैं? इन प्रश्नों की सम्पूर्ण जानकारी बहुत ही सरल भाषा में इस लेख में दी गई है –

  • कारक की परिभाषा
  • कारक के भेद
  • कारक के लक्षण

कर्म और सम्प्रदान कारक में अंतर

करण और अपादान कारक में अंतर.

  • कारक प्रश्न अभ्यास

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करक किसे कहते हैं?

कारक की परिभाषा -definition of case in hindi.

Karak Kise kahtan hain?  कारक शब्द का अर्थ होता है – क्रिया को करने वाला। क्रिया को करने में कोई न कोई अपनी भूमिका निभाता है, उसे कारक कहते है। अथार्त संज्ञा और सर्वनाम का क्रिया के साथ दूसरे शब्दों में संबंध बताने वाले निशानों को कारक कहते है। दूसरे शब्दों में – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) ‘कारक’ कहते हैं। इन दो ‘परिभाषाओं’ का अर्थ यह हुआ कि संज्ञा या सर्वनाम के आगे जब ‘ने’, ‘को’, ‘से’ आदि विभक्तियाँ लगती हैं, तब उनका रूप ही ‘कारक’ कहलाता है।

विभक्ति या परसर्ग – जिन प्रत्ययों की वजह से कारक की स्थिति का बोध होता है, उसे विभक्ति या परसर्ग कहते हैं।

उदाहरण – श्रीराम ने रावण को बाण से मारा। इस वाक्य में प्रत्येक शब्द एक-दूसरे से बँधा है और प्रत्येक शब्द का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में क्रिया के साथ है। यहाँ ‘ने’ ‘को’ ‘से’ शब्दों ने वाक्य में आये अनेक शब्दों का सम्बन्ध क्रिया से जोड़ दिया है। यदि ये शब्द न हो तो शब्दों का क्रिया के साथ तथा आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होगा। संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाला रूप कारक होता है।

कारक के कितने भेद हैं?

1. कर्ता कारक 2. कर्म कारक 3. करण कारक 4. संप्रदान कारक 5. अपादान कारक 6. संबंध कारक 7. अधिकरण कारक 8. संबोधन कारक

कारक के लक्षण, चिन्ह, और विभक्ति चिन्ह

कारक

लक्षण

चिन्ह

विभक्ति

(i)

कर्ता

क्रिया को पूरा करने वाला

ने

प्रथमा

(ii)

कर्म

क्रिया को प्रभावित करने वाला

को

द्वितीया

(iii)

करण

क्रिया का साधन

से, के द्वारा

तृतीया

(iv)

सम्प्रदान

जिसके लिए काम हो

को, के लिए

चतुर्थी

(v)

अपादान

जहाँ पर अलगाव हो

से

पंचमी

(vi)

संबंध

जहाँ पर पदों में संबंध हो

का, की, के, रा, री, रे

षष्ठी

(vii)

अधिकरण

क्रिया का आधार होना

में, पर

सप्तमी

(viii)

सम्बोधन

किसी को पुकारना

हे, अरे!, हो!

सम्बोधन

जो वाक्य में कार्य करता है, उसे कर्ता कहा जाता है। अथार्त वाक्य के जिस रूप से क्रिया को करने वाले का पता चले, उसे कर्ता कहते हैं। दूसरे शब्द में – क्रिया का करने वाला ‘कर्ता’ कहलाता है। कर्ता कारक की विभक्ति ‘ने’ होती है। ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग भूतकाल की क्रिया में किया जाता है। कर्ता स्वतंत्र होता है। कर्ता कारक में ने विभक्ति का लोप भी होता है। इस ‘ने’ चिह्न का वर्तमानकाल और भविष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है। इसका सकर्मक धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है। जैसे – 1.राम ने रावण को मारा। 2.लड़की स्कूल जाती है।

पहले वाक्य में क्रिया का कर्ता राम है। इसमें ‘ने’कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्न है। इस वाक्य में ‘मारा’भूतकाल की क्रिया है। ‘ने’का प्रयोग प्रायः भूतकाल में होता है। दूसरे वाक्य में वर्तमानकाल की क्रिया का कर्ता लड़की है। इसमें ‘ने’विभक्ति का प्रयोग नहीं हुआ है।

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जिस संज्ञा या सर्वनाम पर क्रिया का प्रभाव पड़े, उसे कर्म कारक कहते है। दूसरे शब्दों में – वाक्य में क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते है। इसकी विभक्ति ‘को’ है। लेकिन कहीं-कहीं पर कर्म का चिन्ह लोप होता है।

जैसे- माँ बच्चे को सुला रही है। इस वाक्य में सुलाने की क्रिया का प्रभाव बच्चे पर पड़ रहा है। इसलिए ‘बच्चे को’ कर्म कारक है। राम ने रावण को मारा। यहाँ ‘रावण को’ कर्म है।

बुलाना, सुलाना, कोसना, पुकारना, जमाना, भगाना आदि क्रियाओं के प्रयोग में अगर कर्म संज्ञा हो, तो ‘को’ विभक्ति जरुर लगती है। जैसे – (i) अध्यापक, छात्र को पीटता है। (ii) सीता फल खाती है। (iii) ममता सितार बजा रही है। (iv) राम ने रावण को मारा। (v) गोपाल ने राधा को बुलाया। (vi) मेरे द्वारा यह काम हुआ।

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जिस वस्तु की सहायता से या जिसके द्वारा कोई काम किया जाता है, उसे करण कारक कहते है। दूसरे शब्दों में – वाक्य में जिस शब्द से क्रिया के सम्बन्ध का बोध हो, उसे करण कारक कहते है। इसकी विभक्ति ‘से’ है। ‘करण’ का अर्थ है ‘साधन’। अतः ‘से’ चिह्न वहीं करणकारक का चिह्न है, जहाँ यह ‘साधन’ के अर्थ में प्रयुक्त हो। जैसे – हम आँखों से देखते है। इस वाक्य में देखने की क्रिया करने के लिए आँख की सहायता ली गयी है। इसलिए आँखों से करण कारक है। हिन्दी में करणकारक के अन्य चिह्न है – से, द्वारा, के द्वारा, के जरिए, के साथ, के बिना इत्यादि। इन चिह्नों में अधिकतर प्रचलित से’, ‘द्वारा’, ‘के द्वारा’ ‘के जरिए’ इत्यादि ही है।

सम्प्रदान कारक

जिसके लिए कोई क्रिया (काम) की जाती है, उसे सम्प्रदान कारक कहते है। दूसरे शब्दों में – जिसके लिए कुछ किया जाय या जिसको कुछ दिया जाय, इसका बोध करानेवाले शब्द के रूप को सम्प्रदान कारक कहते है। इसकी विभक्ति ‘को’ और ‘के लिए’ है। सम्प्रदान कारक का अर्थ होता है – देना। जिसके लिए कर्ता काम कर्ता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। सम्प्रदान कारक के विभक्ति चिन्ह के लिए और को होता है। इसको ‘किसके लिए’ प्रश्नवाचक शब्द लगाकर भी पहचाना जा सकता है। समान्य रूप से जिसे कुछ दिया जाता है या जिसके लिए कोई कार्य किया जाता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। जैसे – (i) गरीबों को खाना दो। (ii) मेरे लिए दूध लेकर आओ। (iii) माँ बेटे के लिए सेब लायी।

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अपादान कारक

जिससे किसी वस्तु का अलग होना पाया जाता है, उसे अपादान कारक कहते है। दूसरे शब्दों में – संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का भाव प्रकट होता है, उसे अपादान कारक कहते है। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से अलग होना, उत्पन्न होना, डरना, दूरी, लजाना, तुलना करना आदि का पता चलता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। इसका विभक्ति चिन्ह से होता है। इसकी पहचान ‘किससे’ जैसे प्रश्नवाचक शब्द से भी की जा सकती है। इसकी विभक्ति ‘से’ है। जैसे- दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा। इस वाक्य में ‘गिरने’ की क्रिया ‘घोड़े से’ हुई अथवा गिरकर दूल्हा घोड़े से अलग हो गया। इसलिए ‘घोड़े से’ अपादान कारक है। जिस शब्द में अपादान की विभक्ति लगती है, उससे किसी दूसरी वस्तु के पृथक होने का बोध होता है। जैसे- हिमालय से गंगा निकलती है। मोहन ने घड़े से पानी ढाला।

सम्बन्ध कारक

शब्द के जिस रूप से संज्ञा या सर्वनाम के संबध का ज्ञान हो, उसे सम्बन्ध कारक कहते है। दूसरे शब्दों में – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी अन्य शब्द के साथ सम्बन्ध या लगाव प्रतीत हो, उसे सम्बन्धकारक कहते है। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप की वजह से एक वस्तु की दूसरी वस्तु से संबंध का पता चले उसे संबंध कारक कहते हैं। इसके विभक्ति चिन्ह का, के, की, रा, रे, री आदि होते हैं। इसकी विभक्तियाँ संज्ञा, लिंग, वचन के अनुसार बदल जाती हैं। जैसे – (i) सीतापुर, मोहन का गाँव है। (ii) सेना के जवान आ रहे हैं। (iii) यह सुरेश का भाई है। (iv) यह सुनील की किताब है। (v) राम का लड़का, श्याम की लडकी, गीता के बच्चे। इस कारक से अधिकतर कर्तृत्व, कार्य-कारण, मोल-भाव, परिमाण इत्यादि का बोध होता है। जैसे – अधिकतर – राम की किताब, श्याम का घर। कर्तृत्व – प्रेमचन्द्र के उपन्यास, भारतेन्दु के नाटक। कार्य-करण – चाँदी की थाली, सोने का गहना। मोल-भाव – एक रुपए का चावल, पाँच रुपए का घी। परिमाण – चार भर का हार, सौ मील की दूरी, पाँच हाथ की लाठी।

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अधिकरण कारक

शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का ज्ञान होता है, उसे अधिकरण कारक कहते है। दूसरे शब्दों में – क्रिया या आधार को सूचित करनेवाली संज्ञा या सर्वनाम के स्वरूप को अधिकरण कारक कहते है। अधिकरण का अर्थ होता है – आधार या आश्रय। संज्ञा के जिस रूप की वजह से क्रिया के आधार का बोध हो उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति में और पर होती है। भीतर, अंदर, ऊपर, बीच आदि शब्दों का प्रयोग इस कारक में किया जाता है।

इसकी पहचान किसमें, किसपर, किस पे आदि प्रश्नवाचक शब्द लगाकर भी की जा सकती है। कहीं-कहीं पर विभक्तियों का लोप होता है, तो उनकी जगह पर किनारे, यहाँ, वहाँ, समय आदि पदों का प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी ‘में’ के अर्थ में ‘पर’ और ‘पर’ के अर्थ में ‘में’ लगा दिया जाता है। जैसे – (i) हरी घर में है। (ii) पुस्तक मेज पर है। (iii) पानी में मछली रहती है। (iv) फ्रिज में सेब रखा है। (v) कमरे के अंदर क्या है।

संबोधन कारक

जिन शब्दों का प्रयोग किसी को बुलाने या पुकारने में किया जाता है, उसे संबोधन कारक कहते है। दूसरे शब्दों में – संज्ञा के जिस रूप से किसी के पुकारने या संकेत करने का भाव पाया जाता है, उसे सम्बोधन कारक कहते है। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से बुलाने या पुकारने का बोध हो उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। जहाँ पर पुकारने, चेतावनी देने, ध्यान बटाने के लिए जब सम्बोधित किया जाता है, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। इसकी पहचान करने के लिए (!) चिन्ह लगाया जाता है। इसके चिन्ह हे, अरे, अजी आदि होते हैं। इसकी कोई विभक्ति नहीं होती है। जैसे – (i) हे ईश्वर! रक्षा करो। (ii) अरे! बच्चो शोर मत करो। (iii) हे राम! यह क्या हो गया। (iv) अरे भाई! यहाँ आओ। (v) अजी तुम उसे क्या मरोगे?

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इन दोनों कारक में ‘को’ विभक्ति का प्रयोग होता है। कर्म कारक में क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है और सम्प्रदान कारक में देने के भाव में या उपकार के भाव में को का प्रयोग होता है। जैसे – (i) विकास ने सोहन को आम खिलाया। (ii) मोहन ने साँप को मारा। (iii) राजू ने रोगी को दवाई दी। (iv) स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।

करण और अपादान दोनों ही कारकों में ‘से’ चिन्ह का प्रयोग होता है। परन्तु अर्थ के आधार पर दोनों में अंतर होता है। करण कारक में जहाँ पर ‘से’ का प्रयोग साधन के लिए होता है, वहीं पर अपादान कारक में अलग होने के लिए किया जाता है। कर्ता कार्य करने के लिए जिस साधन का प्रयोग करता है उसे करण कारक कहते हैं। लेकिन अपादान में अलगाव या दूर जाने का भाव निहित होता है। जैसे – (i) मैं कलम से लिखता हूँ। (ii) जेब से सिक्का गिरा। (iii) बालक गेंद से खेल रहे हैं। (iv) सुनीता घोड़े से गिर पड़ी। (v) गंगा हिमालय से निकलती है।

कारक प्रश्न अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

प्रश्न 1 – कारक की परिभाषा स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर : जो शब्द वाक्य में क्रिया का संज्ञा और सर्वनाम शब्दों के साथ संबंध बनाए, उसे कारक कहते हैं। कारक का शाब्दिक अर्थ है -‘क्रिया को करने वाला’ अर्थात क्रिया को पूरी करने में किसी-न-किसी भूमिका को निभाने वाला। इसका सीधा संबंध क्रिया से होता है।

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया तथा वाक्य के अन्य शब्दों के साथ संबंध का पता चलता है, उसे कारक कहते हैं।

प्रश्न 2 – कारक के कितने भेद हैं तथा इनके चिन्ह कौन-कौन से हैं?

उत्तर :  कारक के आठ भेद हैं :

कर्ता (ने), कर्म (को), करण (से/के द्वारा), संप्रदान (को, के लिए), अपादान (से), अधिकरण (में, पर),     संबंध (का, की, के, रा, री, रे), संबोधन (हे, अरे, ओ)।

प्रश्न 3 – कर्ता कारक किसे कहते हैं और इसके पहचान का सरल तरीका क्या है?

उत्तर :  कर्ता का अर्थ होता है-करने वाला। शब्द के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते हैं। क्रिया से पहले ‘कौन’ या ‘किसने’ लगाकर देखने से जो उत्तर आए, वही कर्ता कारक है।

जैसे : आयुष ने स्वर्ण पदक जीतकर विद्यालय का सम्मान बढ़ाया।

(प्रश्न – किसने सम्मान बढ़ाया) उपर्युक्त वाक्य में सम्मान बढ़ाने वाला आयुष है। अतः कर्ता वही है और इसका ज्ञान करा रहा है–ने परसर्ग।

प्रश्न 4 – संप्रदान कारक को परिभाषित कीजिए।

उत्तर :  जहाँ कर्ता किसके लिए कार्य करता है या जिसे कुछ देता हैं उस भाव को बताने वाले शब्द को संप्रदान कारक कहते हैं। इस कारक के परसर्ग हैं – को, के लिए, हेतु। क्रिया से पहले “किसको” या “किसके लिए” लगाकर देखने से जो उत्तर मिले वही संप्रदान कारक है।

जैसे : अमित ने भिखारी को वस्त्र दिए। (किसको दिए, “भिखारी को”- “भिखारी को”? संप्रदान कारक है।)

प्रश्न 5 – अधिकरण कारक किसे कहते हैं?

उत्तर :  संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के समय, स्थान, अवसर आदि का पता चलता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। अधिकरण कारक के परसर्ग ‘में’ तथा ‘पर’ होते हैं। क्रिया के साथ “कहाँ” या “किसमें” लगाकर देखने से जो उत्तर मिलता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं।

जैसे : कौआ वृक्ष पर बैठा है? (कहाँ बैठा है? “वृक्ष पर” ‘वृक्ष पर’ अधिकरण कारक है।)

बहुविकल्पात्मक प्रश्न

प्रश्न 1 – कारक की विभक्तियों को और किस नाम से पुकारा जा सकता है –

(ग)  परसर्ग

(घ)  क्रिया

उत्तर : (ग) परसर्ग

प्रश्न 2 –  ‘का’ ‘की’ ‘के’ विभक्ति-चिह्न किस कारक के हैं?

(क) संबंध कारक के

(ख) कर्म कारक के

(ग) कर्ता कारक के

(घ) संप्रदान कारक के

उत्तर : (क) संबंध कारक के

प्रश्न 3 – कारक के कितने भेद होते हैं?

उत्तर : (ग) आठ

प्रश्न 4 – शब्द के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो, उसे ———- कहते हैं।

(क) करण कारक

(ख) कर्त्ता कारक

(ग) संबंध कारक

(घ) संप्रदान कारक

उत्तर : (ख) कर्त्ता कारक

प्रश्न 5 – वृक्ष से पत्ते गिरते हैं। वाक्य में रेखांकित पद कौन सा कारक है।

(क) कर्म कारक

(ख) करण कारक

(ग) अपादान कारक

उत्तर : (ग) अपादान कारक

प्रश्न 6 – जिसे कुछ दिया जाए या जिसके लिए क्रिया की जाए, उसे ———- कहते हैं।

उत्तर : (घ) संप्रदान कारक

प्रश्न 7 – कर्ता जिस साधन या माध्यम से कार्य करता है या क्रिया करता है, उस साधन या माध्यम को क्या कहते हैं।

उत्तर : (ख) करण कारक

प्रश्न 8 – नेहा मेरे लिए कॉफ़ी बना रही है। वाक्य में रेखांकित शब्द है

(क) कर्ता कारक

(ग) संप्रदान कारक

(घ) अपादान कारक

उत्तर : (क) कर्ता कारक

प्रश्न 9 – ‘चाय मेज़ पर रख देना’ रेखांकित शब्द कौन सा कारक है

(ख) अपादान कारक

(ग) संबोधन कारक

(घ) अधिकरण कारक

उत्तर : (घ) अधिकरण कारक

प्रश्न 10 – जिन शब्दों का प्रयोग किसी को पुकारने, सचेत करने आदि के लिए किया जाता है, उसे क्या कहते हैं।

(क) कर्ता कारक।

उत्तर : (ग) संबोधन कारक

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  • Hindi Grammar /

जानिए Karak किसे कहते हैं, कारक के भेद, उदाहरण

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  • Updated on  
  • जून 3, 2023

karak

किसी कार्य को करने वाला कारक यानि जो भी क्रिया को करने में मुख्य भूमिका निभाता है, वह कारक कहलाता है। कारक क्या है , कारक की परिभाषा, कारक किसे कहतें है, कारक के भेद कितने होते हैं। इन सभी को आप इस ब्लॉग में जानेंगे। आइए विस्तार से जानते हैं Karak के बारे में।

जरूर पढ़ें हिंदी व्याकरण – Leverage Edu के साथ संपूर्ण हिंदी व्याकरण सीखें

This Blog Includes:

Karak किसे कहते हैं, कारक की परिभाषा, karak के लिए ppt, कारक के भेद, सम्प्रदान कारक, अपादान कारक, सम्बन्ध कारक, अधिकरण कारक, सम्बोधन कारक, कर्म और सम्प्रदान कारक में अंतर, करण और अपादान कारक में अंतर, विभक्तियों की प्रयोगिक विशेषताएं, विभिन्न भाषाओं में कारकों की संख्या, karak अभ्यास प्रश्न, कारक worksheet.

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य का सम्बन्ध किसी दूसरे शब्द के साथ जाना जाए, उसे कारक ( Karak ) कहते हैं। कारक (Karak ) संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का वह रूप होता है जिसका सीधा सम्बन्ध क्रिया से ही होता है। किसी कार्य को करने वाला कारक यानि जो भी क्रिया को करने में मुख्य भूमिका निभाता है, वह कारक (Karak) कहलाता है।

वाक्य में प्रयुक्त शब्द आपस में सम्बद्ध होते हैं। क्रिया के साथ संज्ञा का सीधा सम्बन्ध ही कारक (Karak) है। कारक को प्रकट करने के लिये संज्ञा और सर्वनाम के साथ जो चिन्ह लगाये जाते हैं, उन्हें विभक्तियाँ कहते हैं। जैसे– पेड़ पर फल लगते हैं। 

ये भी पढ़ें: काल किसे कहते है ?

ये भी पढ़ें : 150 पर्यायवाची शब्द

Karak के भेद नीचे दिए गए हैं-

Karak in Hindi

कर्ताने
कर्मको
करणसे, द्वारा
सम्प्रदानको, के लिये, हेतु
अपादानसे (अलग होने के अर्थ में)
सम्बन्धका, की, के, रा, री, रे
अधिकरण में, पर
सम्बोधनहे! अरे! ऐ! ओ! हाय!

कारक के उदाहरण

Karak के उदाहरण नीचे दिए गए है:

  • राम ने रावण को मारा।
  • देवांग रोज ऑफिस जाते हैं।
  • राज आम खाता है।
  • विशाखा ने बुक पढ़ी।
  • रमेश ने पत्र लिखा।

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो, उसे कर्ताKarak कहते हैं। इसका चिन्ह ’ने’ कभी कर्ता के साथ लगता है, और कभी वाक्य में नहीं होता है, अर्थात लुप्त होता है। कर्ता कारक उदाहरण –

  • रमेश ने पुस्तक पढ़ी।
  • सुनील खेलता है।
  • पक्षी उड़ता है।
  • मोहन ने पत्र पढ़ा।
  • सोहन किताब पढ़ता है।
  • राजेन्द्र ने पत्र लिखा।
  • अध्यापक ने विद्यार्थियों को पढ़ाया।
  • पुजारी जी पूजा कर रहे हैं।
  • कृष्ण ने सुदामा की सहायता की।
  • सीता खाती है।

ये भी पढ़ें : अनुस्वर किसे कहते हैं ?

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया का प्रभाव या फल पङे, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म के साथ ’को’ विभक्ति आती है। इसकी यही सबसे बड़ी पहचान होती है। कभी-कभी वाक्यों में ’को’ विभक्ति का लोप भी होता है। कर्म कारक के उदाहरण –

  • उसने सुनील को पढ़ाया।
  • मोहन ने चोर को पकङा।
  • लङकी ने लङके को देखा।
  • कविता पुस्तक पढ़ रही है।
  • गोपाल ने राधा को बुलाया।
  • मेरे द्वारा यह काम हुआ।
  •  कृष्ण ने कंस को मारा।
  •  राम को बुलाओ।
  •  बड़ों को सम्मान दो।
  •  माँ बच्चे को सुला रही है।
  •  उसने पत्र लिखा।
  • मुकुल को कसौली घूमना था।

’कहना’ और ’पूछना’ के साथ ’से’ प्रयोग होता हैं। इनके साथ ’को’ का प्रयोग नहीं होता है , जैसे –

  • कबीर ने रहीम से कहा।
  • मोहन ने कविता से पूछा।
  • रजत ने हिमांशू से पूछा।

यहाँ ’से’ के स्थान पर ’को’ का प्रयोग उचित नहीं है।

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जिस साधन से अथवा जिसके द्वारा क्रिया पूरी की जाती है, उस संज्ञा को करण कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान ’से’ अथवा ’द्वारा’ है। करण कारक के उदाहरण –

  • रहीम गेंद से खेलता है।
  • आदमी चोर को लाठी द्वारा मारता है।
  • प्रशांत गाड़ी चलाता है।

यहाँ ’गेंद से’,’लाठी द्वारा’ और ‘गाड़ी चलाता’ करणकारक है।

ये भी पढ़ें : उपसर्ग और प्रत्यय

जिसके लिए क्रिया की जाती है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। इसमें कर्म कारक ’को’ भी प्रयुक्त होता है, किन्तु उसका अर्थ ’के लिये’ होता है। करण कारक के उदाहरण –

  • सुनील रवि के लिए गेंद लाता है।
  • हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं।
  • माँ बच्चे को खिलौना देती है।
  • माँ बेटे के लिए सेब लायी।
  • अमन ने श्याम को गाड़ी दी।
  • मैं सूरज के लिए चाय बना रहा हूँ।
  • मैं बाजार को जा रहा हूँ।
  • भूखे के लिए रोटी लाओ।
  • वे मेरे लिए उपहार लाये हैं।
  • सोहन रमेश को पुस्तक देता है।

उपरोक्त वाक्यों में ’मोहन के लिये’ ’पढ़ने के लिए’ और बच्चे को सम्प्रदान  है।

अपादान का अर्थ है- अलग होना। जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम से किसी वस्तु का अलग होना मालूम चलता हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। करण कारक की तरह अपादान कारक का चिन्ह भी ’से’ है, परन्तु करण कारक में इसका अर्थ सहायता होता है और अपादान में अलग होना होता है। अपादान कारक के उदाहरण –

  • हिमालय से गंगा निकलती है।
  • वृक्ष से पत्ता गिरता है।
  • राहुल के हाथ से फल गिरता है।
  • गंगा हिमालय से निकलती है।
  • लड़का छत से गिरा है।
  • पेड़ से पत्ते गिरे।
  • आसमान से बूँदें गिरी।
  • वह साँप से डरता है।
  • दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा।
  • चूहा बिल से बाहर निकला।

इन वाक्यों में ’हिमालय से’, ’वृक्ष से’, ’छत से ’ अपादान कारक है।

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संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का सम्बन्ध दूसरी वस्तु से जाना जाये, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान है – ’का’, ’की’, के। सम्बन्ध कारक के उदाहरण –

  •  राहुल की किताब मेज पर है।
  •  सुनीता का घर दूर है।

सम्बन्ध कारक क्रिया से भिन्न शब्द के साथ ही सम्बन्ध सूचित करता है।

ये भी पढ़ें : उपवाक्य : परिभाषा, भेद, प्रकार, उदाहरण

संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान है ’में’, ’पर’ होती है । अधिकरण कारक के उदाहरण –

  • घर पर माँ है।
  • घोंसले में चिङिया है।
  • सड़क पर गाड़ी खड़ी है।

यहाँ ’घर पर’, ’घोंसले में’, और ’सङक पर’, अधिकरण  है :-

ज़रूर पढ़ें: क्या होते हैं शब्द-युग्म, जानिए

संज्ञा या जिस रूप से किसी को पुकारने तथा सावधान करने का बोध हो, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। इसका सम्बन्ध न क्रिया से और न किसी दूसरे शब्द से होता है। यह वाक्य से अलग रहता है। इसका कोई कारक चिन्ह भी नहीं है। सम्बोधन कारक के उदाहरण–

  • रीना को मत मारो।
  • रमा ! देखो कैसा सुन्दर दृश्य है।
  • लड़के! जरा इधर आ।

कर्म और सम्प्रदान कारक में अंतर निम्नलिखित है :-

  • इन दोनों कारक में ‘को’ विभक्ति का प्रयोग होता है। 
  • कर्म कारक में क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है और सम्प्रदान कारक में देने के भाव में या उपकार के भाव में को का प्रयोग होता है। जैसे -(i) विकास ने सोहन को आम खिलाया। (ii) मोहन ने साँप को मारा। (iii) राजू ने रोगी को दवाई दी। (iv) स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।

करण और अपादान कारक में अंतर निम्नलिखित है :-

  • करण और अपादान दोनों ही कारकों में ‘से’ चिन्ह का प्रयोग होता है।
  • परन्तु अर्थ के आधार पर दोनों में अंतर होता है।
  • करण कारक में जहाँ पर ‘से’ का प्रयोग साधन के लिए होता है, वहीं पर अपादान कारक में अलग होने के लिए किया जाता है।
  • कर्ता कार्य करने के लिए जिस साधन का प्रयोग करता है उसे करण कारक कहते हैं। 
  • लेकिन अपादान में अलगाव या दूर जाने का भाव निहित होता है।

जैसे – (i) मैं कलम से लिखता हूँ। (ii) जेब से सिक्का गिरा। (iii) बालक गेंद से खेल रहे हैं। (iv) सुनीता घोड़े से गिर पड़ी। (v) गंगा हिमालय से निकलती है।

विभक्तियों का प्रयोग

हिंदी व्याकरण में विभक्तियों के प्रयोग की विधि निश्चित होती है।

विभक्तियां 2 तरह की होती हैं

  • विश्लिष्ट: संज्ञाओं के साथ जो विभक्तियां आती हैं, उन्हें विश्लिष्ट विभक्ति कहते हैं।
  • संश्लिष्ट: सर्वनामों के साथ मिलकर जो विभक्तियां बनी होती हैं वे संश्लिष्ट विभक्ति कहलाती हैं।

विभक्तियों की प्रयोगिक विशेषताएं निम्नलिखित है :-

  • विभक्तियां आत्मनिर्भर होती हैं और इनका वजूद भी इसलिए आत्मनिर्भर होता है। यह शब्द सहायक होते हैं जो किसी वाक्य के साथ मिलकर उसे एक मतलब देते हैं, जैसे ने, से आदि।
  • हिंदी में विभक्तियां विशेष रूप से सर्वनामों के साथ प्रयोग होकर डिसऑर्डर बना देती हैं और उनसे मिल जाती हैं। जैसे मेरा, हमारा, उसे, उन्हें आदि।
  • विभक्तियों को संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयोग किया जाता है। जैसे- मोहन के घर से यह सामान आया है।

विभिन्न भाषाओं मेंKarak की संख्या नीचे दी गई है-

हंगेरियन29
फिनिश15
बास्क1000
असमिया8
चेचन8
संस्कृत8
क्रोएशियन7
पोलिश7
यूक्रेनी7
लैटिन6
स्लोवाकी6
रूसी6
बेलारूसी7
ग्रीक5
रोमानियन5
आधुनिक ग्रीक4
बुल्गारियन4
जर्मन4
अंग्रेजी3
अरबी3
नार्वेजी2
प्राकृत6

निम्नलिखित वाक्य पढ़कर प्रयुक्त कारकों में से कोई एक कारक पहचानकर उसका भेद लिखिए :-

उत्तर: (c) अपादान

उत्तर: (c) अधिकरण

उत्तर: (b) संबंध

उत्तर: (c) सम्प्रदान

उत्तर: (a) करण

उत्तर: (c) प्यासे को पानी देना चाहिए

उत्तर: (b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं

उत्तर: (b) पिता ने पुत्र को बुलाया

उत्तर: (c) लड़का छत से कूद पड़ा था

उत्तर: (b) मुझसे चला नहीं जाता

Karak

A. करण कारक B. कर्म कारक C. अपादान कारक D. सम्बन्ध कारक उत्तर: C

A. में B. पर C. के लिए D. से उत्तर: D

A. में B. से C. पर D. की उत्तर: A

A. से B. में C. पर D. की उत्तर: B

A. पर B. में C. से D. का उत्तर: C

A. में B. से C. का D. पर उत्तर: A

A. में B. का C. के लिए D. से उत्तर: B

A. में B. मैं C. पै D. के उत्तर: A

A. कर्म B. सम्प्रदान C. करण D. अधिकरण उत्तर: B

A. कर्ता B. सम्बोधन C. करण D. सम्प्रदान उत्तर: B

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका सम्बन्ध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ जाना जाए, उसे कारक (Karak) कहते हैं। हिन्दी में ’आठ कारक’ होते हैं।

कर्ता कारक कर्म कारक करण कारक सम्प्रदान कारक अपादान कारक संबंध कारक अधिकरण कारक संबोधन कारक

कर्म के साथ ’को’ विभक्ति आती है।  जैसे- उसने सुनील को पढ़ाया। मोहन ने चोर को पकड़ा।

कर्म के साथ ’को’ विभक्ति आती है। इसकी यही सबसे बड़ी पहचान होती है।

इसमें कर्म कारक ’को’ भी प्रयुक्त होता है, किन्तु उसका अर्थ ’के लिये’ होता है।

इन दोनों कारक में ‘को’ विभक्ति का प्रयोग होता है। कर्म कारक में क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है और सम्प्रदान कारक में देने के भाव में या उपकार के भाव में को का प्रयोग होता है। जैसे – (i) विकास ने सोहन को आम खिलाया। (ii) मोहन ने साँप को मारा। (iii) राजू ने रोगी को दवाई दी। (iv) स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।

संस्कृत तथा अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं में आठ कारक होते हैं।

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम) सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) कारक कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि संज्ञा या सर्वनाम के आगे जब ‘ने’, ‘से’, ‘को’ आदि विभक्तियाँ लगती हैं, तब उनका रूप ही कारक कहलाता है।

आशा करते हैं कि आपको Karak के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली होगी। ऐसे ही अन्य रोच और महत्वपूर्ण ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu  के साथ बने रहिए।

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हिंदी में कारक – भेद, विभक्तियाँ और मूल तथ्य

Table of Contents

karak in hindi | हिंदी में कारक

karak in hindi – हिंदी में कारक – वाक्य में क्रिया तथा संज्ञा और सर्वनाम पदों के बीच पाए जाने वाले संबंधों को कारक कहते हैं। क्रिया तथा संज्ञा और सर्वनाम पदों के ये संबंध अर्थ के धरातल पर निश्चित किए जाते हैं, जैसे-

मोहन ने कलम से पत्र लिखा।

इस वाक्य में ‘मोहन’ पत्र तथा कलम संज्ञा पदों का संबंध ‘लिखा’ क्रिया से सूचित हो रहा है। इस वाक्य में मोहन’ कर्ता, ‘पत्र’ कर्म तथा ‘कलम’ साधन है, जिसकी सहायता ‘लिखना’ क्रिया संपन्न हुई है।

इस प्रकार कारक ऐसी व्याकरणिक कोटि है, जिससे यह पता चलता है कि संज्ञा पद या सर्वनाम पद वाक्य में स्थित क्रिया के माध्य किस प्रकार की भूमिका निभाते हैं।

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karak in hindi – हिंदी में कारक  और विभक्ति को एक मानने की चाल कदाचित् अंगरेजी व्याकरण का फल है, क्योंकि सबसे प्रथम हिन्दी व्याकरण पादरी आदम साहब ने लिखा था। इस व्याकरण में ‘कारक’ शब्द आया है, परंतु ‘विभक्ति’ शब्द का नाम पुस्तक भर में कहीं नहीं है।

दो एक लेखकों के लिखने पर भी आज तक के हिन्दी व्याकरणों में कारक और विभक्ति का अंतर नहीं माना गया है। हिन्दी वैयाकरणों के विचार में इन दोनों शब्दों के अर्थ की एकता यहाँ तक स्थिर हो गई है कि व्यासजी सरीखे संस्कृत के विद्वान् ने भी भाषा प्रभाकर'” में विभक्ति के बदले ‘कारक’ शब्द का प्रयोग किया है।

हाल में पं. गोविंदनारायण मिश्र ने अपने विभक्ति विचार’ में लिखा है कि “स्वर्गीय पं. दामोदर शास्त्री से ही संभव है कि, सबसे पहले स्वरचित व्याकरण में कर्ता, कर्म, करण, आदि कारकों के प्रयोग का यथोचित खंडन कर प्रथम, द्वितीया तथा विभक्ति शब्द का प्रयोग उनके बदले में करने के साथ ही इसका युक्तियुक् प्रतिपादन भी किया था।”

इस तरह से इस बहुत ही पुरानी भूल को सुधारने की ओर आजकल लेखकों का ध्यान हुआ है। अब हमें यह देखना चाहिए कि इस भूल को सुधारने से हिन्दी व्याकरण को क्या लाभ हो सकता है।

karak in hindi – हिंदी में कारक

विभक्तियों की व्युत्पत्ति

हिन्दी की अधिकांश विभक्तियाँ प्राकृत के द्वारा संस्कृत से निकली हैं, परंतु इन भाषाओं के विरुद्ध हिन्दी की विभक्तियाँ दोनों वचनों में एक रूप रहती हैं। इन विभक्तियों को कोई-कोई वैयाकरण प्रत्यय नहीं मानते, किंतु सम्बन्धसूचक अव्ययों में गिनते हैं।

यहाँ केवल विभक्तियों की व्युत्पत्ति केवल दो एक व्याकरणों में संक्षेपतः लिखी गई है, पर इसका सविस्तार विवेचन विलायती विद्वानों ने किया है। मिश्रजी ने भी अपने ‘विभक्ति- विचार’ में इस विषय की योग्य समालोचना की है। तथापि हिन्दी विभक्तियों की व्युत्पत्ति बहुत ही विवादग्रस्त विषय है।

इसमें बहुत कुछ मूल शोध की आवश्यकता। है और जब तक अपभ्रंश, प्राकृत और प्राचीन हिन्दी के बीच की भाषा का पता न लगे तब तक यह विषय बहुधा अनुमान ही रहेगा।

karak in hindi – हिंदी में कारक

हिंदी भाषा में कारक के मुख्य रूप से छह भेद या प्रकार माने गए हैं

  • karak in hindi – हिंदी में कारक- कर्ता करक –

क्रिया से जिस वस्तु के विषय में विधान किया जाता है उसे सूचित करनेवाले संज्ञा के रूप को कर्त्ता कारक कहते हैं; जैसे, लड़का सोता है। नौकर ने दरवाजा खोला। चिट्ठी भेजी जायेगी।

* कर्त्ता कारक का यह लक्षण दूसरे व्याकरणों में दिए हुए लक्षणों से भिन्न है। हिन्दी में कारक और विभक्ति का संस्कृतरूढ़ अंतर न मानने के कारण इस लक्षण की आवश्यकता हुई है। इसमें केवल व्यापार के आश्रय ही का समावेश नहीं होता; किंतु स्थितिदर्शक और विकारदर्शक क्रियाओं के कर्त्ताओं का भी (जो यथार्थ में व्यापार के आश्रय नहीं है) समावेश हो सकता है। इसके सिवा सकर्मक क्रिया के कर्मवाच्य में कर्म का जो मुख्य रूप होता है उसका भी समावेश इस लक्षण में हो जाता है।

याद रखने योग्य बातें –

  • बिना परसर्ग के कर्त्ता का प्रयोग कर्त्तरि प्रयोग कहलाता है।जैसे- विदिशा घर गई ।
  • परसर्ग के साथ कर्त्ता का प्रयोग कर्मणि प्रयोग कहलाता है। जैसे-‘तुमने खाना खाया ?
  • ‘ने’ परसर्ग का प्रयोग सामान्यतः अकर्मक क्रिया के साथ नहीं होता। सकर्मक क्रिया के साथ अपूर्ण भूत को छोड़कर सभी प्रकार के
  • भूतकाल में ‘ने’ का प्रयोग होता है।
  • वर्तमान और भविष्य काल में प्राय: ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता।

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  • karak in hindi – हिंदी में कारक – कर्म कारक –

जिस वस्तु पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है, उसे सूचित करनेवाले संज्ञा के रूप को कर्म कारक कहते हैं; जैसे, ‘मालिक ने नौकर को बुलाया।”

  • जब विशेषण संज्ञा रूप में प्रयुक्त होकर कर्मकारक बने, तो ‘को’ का प्रयोग आवश्यक है;
  • प्रायः ‘को’ चिह्न का प्रयोग चेतन या सजीव कर्म के साथ होता है।
  • समय, दिन, तिथि प्रकट करने में ‘को’ का प्रयोग होता है।
  • karak in hindi – हिंदी में कारक – करण कारक –

करण कारक संज्ञा के उस रूप को कहते हैं जिससे क्रिया के साधन का बोध होता है; जैसे – ‘सिपाही चोर को रस्सी से बाँधता है।’ ‘लड़के ने हाथ से फल तोड़ा।’ ‘मनुष्य आँखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं और बुद्धि से विचार करते हैं।’

  • karak in hindi – हिंदी में कारक – संप्रदान कारक –

जिस वस्तु के लिये क्रिया की जाती है उसकी वाचक संज्ञा के रूप को संप्रदान कारक कहते हैं; जैसे, ‘राजा ने ब्राह्मण को धन दिया।’ ‘शुकदेव मुनि द्वारा राजा परीक्षित को कथा सुनाते हैं।’ ‘लड़का नहाने को गया है।

  • karak in hindi – हिंदी में कारक – अपादान कारक –

अपादान कारक संज्ञा के उस रूप को कहते हैं जिससे क्रिया के विभाग कीअवधि सूचित होती है; जैसे पेड़ से फल गिरा।’ ‘गंगा हिमालय से निकलती है।’

  • karak in hindi – हिंदी में कारक – अधिकरण कारक –

संज्ञा का वह रूप जिससे क्रिया के आधार का बोध होता है अधिकरण कारक कहलाता है; जैसे – सिंह वन में रहता है।’ ‘बंदर पेड़ पर चढ़ रहे हैं।’ कभी कभी इसमें परसर्ग का लोप भी हो जाता है।

karak in hindi – हिंदी में कारक  

कुछ विद्वान हिंदी में कारक के दो अन्य भेद भी मानते हैं, लेकिन इन दोनों कारकों के संबंध में विद्वानों में आपस में विवाद है, क्योंकि इन दोनों कारकों संबंध क्रिया के साथ न होकर वाक्य में आए अन्य पदों से होता है। ये दोनों कारक है – 1) संबंध कारक (2) संबोधन कारक

  • karak in hindi – हिंदी में कारक – संबंध कारक-

संज्ञा के जिस रूप से उसकी वाच्य वस्तु का सम्बन्ध किसी दूसरी वस्तु के साथ सूचित होता है उस          रूप को सम्बन्ध कारक कहते हैं; जैसे राजा का महल, लड़के की पुस्तक, पत्थर के टुकड़े, इत्यादि ।        सम्बन्ध कारक का रूप संबंधी शब्द के लिंग वचन के कारण बदलता है।

  • karak in hindi – हिंदी में कारक – संबोधन कारक –

संज्ञा के जिस रूप से किसी को चिताना या पुकारना सूचित होता है उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं; 

जैसे ‘हे नाथ! मेरे अपराधों को क्षमा करना।’ ‘छिपे हो कौन से परदे में बेटा!’ ‘अरे लड़के, इधर आ।’

karak chinh | कारक चिन्ह

हिंदी भाषा में इन सभी कारकों को इस प्रकार समझा जा सकता है- .

कर्ताने मोहन किताब पढ़ता है। (ने-परसर्ग रहित)
मोहन ने किताब चढ़ी । ( ने  परसर्ग सहित )
कर्म को अध्यापक ने छात्रों को पढ़ाया।
करण से , के  द्वारा  सुरेश ने कलम से पत्र लिखा ।
को , के लिए मैं बच्चों के लिए खिलौने लाया ।
भिक्षुक को भिक्षा दे दो।
से पेड़ से फल गिरे।
मैं दिल्ली से आज ही आया हूँ।
का के, की, रा, रे, री, ना, ने, नीयह मोहन का कोट है। 
  ये मोहन के कपड़े हैं।
में, परछात्र कमरे में बैठे हैं।
 किताबें मेज पर रखी हैं।
हे ,अरे, ओ,ए लड़के! यह सामान वहाँ रख दो |
 हे ईश्वर | मेरी रक्षा करो |
 अरे भाई ! ऐसा काम मत करो।

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मूल बातें –

“कारक”, “परसर्ग” तथा “विभक्ति” इन तीनों में अंतर है। प्रायः इन तीनों के अर्थ के सम्बन्ध में अस्पष्ट एवं कभी-कभी भ्रामक विचार प्रकट होते रहते हैं। विभक्ति” संस्कृत के अष्टाध्यायी में प्रयुक्त शब्द है यह प्रत्यय का एक भेद है।

पाणिनि ने “सुप्” प्रत्यय एवं तिंग प्रत्यय नाम से दो प्रत्यय वर्गों का प्रतिपादन किया है। और उन्हें विभक्ति” नाम दिया है। इनमें से “सुप्” नाम से अभिहित 36 प्रत्यय लगाकर संज्ञा एवं विशेषण पद बनाए जाते हैं तथा तिंग नामक 36 प्रत्यय लगाकर क्रिया रूप निष्पन्न किए जाते हैं।

“विभक्ति” आधुनिक भाषाविज्ञान की दृष्टि से एक व्याकरणिक अंश है। तथा पदरूपों का निर्माण करता है। परसर्ग” वास्तव में आधुनिक प्रयोग है। यह संस्कृत के “उपसर्ग” के वर्जन पर बनाया गया नया शब्द है।

यह एक रूपिम है जो संज्ञा शब्द के साथ संलग्न होता है यथा घर में मेज पर लड़के से गाँव के पास यह परसर्ग भी व्याकरणिक अंश है और रूपिम है।

हिन्दी के प्राचीनतम वैयाकरणों में कामता प्रसाद गुरु, केलॉग के नाम लिये जा सकते हैं। गुरुजी ने हिन्दी व्याकरण में कारक की परिभाषा इस प्रकार दी है-“संज्ञा (या सर्वनाम) के जिस रूप से उसका सम्बन्ध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ प्रकाशित होता है, उस रूप को “कारक” कहते हैं। यह परिभाषा संस्कृत वैयाकरणों द्वारा की गई परिभाषा से भिन्न है।

संस्कृत वैयाकरणों ने क्रियान्यित्वम् क्रियाजनकत्वम् अथवा क्रियाश्रयत्वम् को कारक कहा है। इससे स्पष्ट है कि वाक्यगत पद अथवा पदबंध को क्रिया के साथ जोड़ने वाला तत्व “कारक” है।

दूसरे शब्दों में संज्ञा का क्रिया के साथ अन्वय ही कारक है। परन्तु कारक व्याकरण के अनुसार न तो रूप, न तत्व, न अन्वय ही केवल कारक है, अपितु संज्ञा का क्रिया के साथ आर्थी सम्बन्ध ही कारक (गहन) है।

गुरु जी की परिभाषा में कारक वह तत्व है जो एक संज्ञा शब्द को वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ जोड़ता है।

संस्कृत वैयाकरणों के अनुसार तथाकथित सम्बन्ध कारक वास्तव में कारक नहीं होता। क्योंकि सम्बन्ध एक संज्ञा शब्द से अभिहित अर्थ का दूसरी संज्ञा से अभिहित अर्थ के साथ होता है न कि साक्षात क्रिया के साथ।

अतएवं संस्कृत परिभाषा के अनुसार सम्बन्ध तत्व कारक की कोटि में नहीं आता जबकि गुरुजी की व्याख्या के अनुसार वह कारक कोटि में आता है। क्योंकि जिसका सम्बन्ध बताया जा रहा है। ये दोनों वाक्य में विद्यमान है।

संस्कृत में कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान अपादान एवम् अधिकरण। ये छः कारक है। हिन्दी में उपर्युक्त छः कारकों के साथ सम्बन्ध को भी जोड़कर सात कारक माने गए है। यह संख्या कामता प्रसाद के अनुसार है।

हिन्दी का व्याकरण लिखने वाले परवर्ती वैयाकरणों में से कुछ ने कामता प्रसाद गुरु जैसी परिभाषा दी है। कुछ ने संस्कृत वैयाकरणों का अनुसरण करके अपनी व्याख्या की

उपर्युक्त दोनों मतों का समन्वय करते हुए कुछ हिन्दी वैयाकरणों ने इस प्रकार परिभाषा दी है-“कारकत्व प्रातिपदिक के अर्थ में निहित शक्ति का नाम है जिसका क्रिया से साक्षात या परम्परा से सम्बन्ध होता है।

सारांश –

  • क्रिया के साथ जिसका सीधा सम्बन्ध हो, उसे कारक कहते हैं।
  • संस्कृत व्याकरण में छः कारक तथा सात विभक्तियाँ मानी गई हैं।
  • संस्कृत वैयाकरण षष्ठी विभक्ति को कारक नहीं मानते। हिन्दी में आठ कारक माने गए हैं।
  • कर्त्ता प्रथमा विभक्ति-ने, कर्म-द्वितीया विभक्ति को, करण-तृतीया विभक्ति-से / द्वारा, सम्प्रदान-चतुर्थी के लिए, अपादान-पंचमी-से (अलग होना), सम्बन्ध षष्ठी विभक्ति का, के, की, रा, रे, री, अधिकरण-सप्तमी में, पै, पर,
  • सम्बोधन-अष्टमी-हे, अरे।
  • विभक्ति चिह्न ‘परसर्ग’ कहलाते हैं। कर्ता कारक क्रिया को करने वाला।
  • कर्म कारक-जिस शब्द पर क्रिया का प्रभाव पड़े।
  • करण कारक जिसकी सहायता से क्रिया सम्पादित हो । • सम्प्रदान कारक-जिसके लिए क्रिया की जाए।
  • अपादान कारक शब्दों से अलग होना प्रकट हो ।
  • सम्बन्ध कारक क्रिया से भिन्न अन्य कारकों के सम्बन्ध प्रकट करने वाले शब्द।
  • अधिकरण कारक क्रिया होने के आधार को सूचित करने वाले शब्द।
  • सम्बोधन कारक क्रिया के लिए जिसे सम्बोधित किया जाए।

अभ्यास के लिए प्रश्न :-

1. अधिकरण कारक का परसर्ग है

(a) का, के, की

(b) में, पैं, पर

(d) से द्वारा

2. सम्बोधन कारक का परसर्ग है.

(b) में, पर

(c) हे. अरे

(d) से (द्वारा)

3. वाक्य में क्रिया को करने वाला है

(a) कर्म कारक

(b) कर्त्ता कारक

(c) करण कारक

(d) सम्प्रदान कारक

4. जिस शब्द पर क्रिया का सीधा प्रभाव पड़ता है, वह कहलाता है

(b) करण कारक

(c) सम्प्रदान कारक

(d) अपादान कारक

5. जिसकी सहायता से क्रिया सम्पादित हो, उसे कहते हैं

(b) कर्ता कारक

(d) सम्बन्ध कारक

6. जिसके लिए क्रिया की जाती है, वह है

(c) अधिकरण कारक

7. अलग होना, तुलना, निरन्तरता, संयोग, उद्भव आदि का सूचक है

(a) अपादान कारक

(c) कर्म कारक

(d) अधिकरण कारक

8. क्रिया के विपरीत अन्य कारकों से सम्बन्ध है

(a) कर्ता कारक (

(b) सम्बन्ध कारक

c) कर्म कारक

(d) करण कारक

9. क्रिया होने के आधार को सूचित करने वाला कारक है

(a) कर्त्ता कारक

10. क्रिया के लिए जिसे सम्बोधित किया जाता है

(d) सम्बोधन कारक

11. बन्दर मनुष्य का पूर्वज कहा जाता है। कारक छाँटिए

(a) बन्दर (कर्ता)

(b) मनुष्य (कर्त्ता कारक)

(c) पूर्वज (कर्ता)

(d) ‘a’ तथा ” दोनों

12. ‘वृन्दावन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष उत्सव होते

विकल्पों में से कौन सही है ?

(a) वृन्दावन (अधिकरण)

(b) श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (अधिकरण)

(c) उत्सव (अधिकरण) (d) तथा ‘b’ दोनों

13. मैं अपनी दादी को बहुत श्रद्धा की दृष्टि से देखता विकल्पों में से कौन सही है ?

(a) मैं (कर्ता)

(b) दादी को (कर्म)

(d) ये सभी सही है

हिंदी व्याकरण को और जाने – पढ़े  

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