essay on cv raman in hindi

सीवी रमन आधुनिक भारत के एक महान वैज्ञानिक थे, जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अपना अति महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपनी अनूठी खोजों से भारत को विज्ञान की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान दिलवाई।

‘रमन प्रभाव’ (Raman Effect) सीवी रमन की अद्भुत और महत्वपूर्ण खोजों में से एक थी, जिसके लिए उन्हें साल 1930 में नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया था।

वहीं अगर सीवी रमन ने यह खोज नहीं की होती तो शायद हमें कभी यह पता नहीं चल पाता कि ‘समुद्र के पानी का रंग नीला क्यों होता है, और इस खोज के माध्यम से ही लाइट के नेचर और बिहेवियर के बारे में भी यह पता चलता हैं कि जब कोई लाइट किसी भी पारदर्शी माध्यम जैसे कि सॉलिड, लिक्वड या गैस से होकर गुजरती है तो उसके नेचर और बिहेवियर में बदलाव आता है।

वास्तव में उनकी इन खोजों ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को एक नई दिशा प्रदान की, जिससे देश के विकास को भी बढ़ावा मिला। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि सीवी रमन को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और लेनिन शांति पुरस्कार समेत विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण कामों के लिए तमाम पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

आइए जानते हैं भारत के महान वैज्ञानिक सीवी रमन   के बारे में –

आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक ‘भारत रत्न’ सी वी रमन | C V Raman Biography in Hindi

C. V. Raman

एक नजर में –

सर चंद्रशेखर वेंकट रमन (सी.वी. रमन)
7 नवंबर, 1888
तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु
चंद्रशेखर अय्यर
पार्वती अम्मल
त्रिलोकसुंदरी
रमन प्रभाव (Raman effect) की खोज,
भौतिक वैज्ञानिक
एम.एस.सी
21 नवम्बर, 1970, बैंगलोर
प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव की खोज के लिए
नोबेल पुरस्कार, ‘भारत रत्न’, लेनिन पुरस्कार’
भारतीय

जन्म और प्रारंभिक जीवन –

दक्षिण भारत के तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को, भारत के महान वैज्ञानिक सीवी रमन एक साधारण से ब्राह्मण परिवार में जन्मे  थे। वह चंद्रशेखर अय्यर और पार्वती अम्मल की दूसरी संतान थे। उनके पिता चंद्रशेखर अय्यर ए वी नरसिम्हाराव महाविद्यालय, विशाखापत्तनम, (आधुनिक आंध्र प्रदेश) में फिजिक्स और गणित के एक प्रख्यात प्रवक्ता थे।

वहीं उनके पिता को किताबों से बेहद लगाव था, उनके पिता को पढ़ना इतना पसंद था कि उन्होंने अपने घर में ही एक छोटी सी लाइब्रेरी भी बना ली थी, हालांकि आगे चलतक इसका फायदा सीवी रमन को मिला, इसके साथ ही वह पढ़ाई-लिखाई के माहौल में पले और बढ़े हुए, वहीं सीवी रमन ने छोटी उम्र से ही अंग्रेजी साहित्य और विज्ञान की किताबों से दोस्ती कर ली थी, और फिर बाद में उन्होंने विज्ञान और रिसर्च के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए और भारत को विज्ञान के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

पढ़ाई – लिखाई एवं छात्र जीवन –

सीवी रमन बेहद तेज बुद्धि के एक होनहार और प्रतिभाशील छात्र थे, जिनकी पढ़ाई में शुरुआत से ही गहरी रुचि थी, वहीं उनकी किसी चीज को सीखने और समझने की क्षमता भी बेहद तेज थी, यही वजह है कि उन्होंने महज 11 साल की उम्र में विशाखापत्तनम के सेंट अलोय्सिअस एंग्लो-इंडियन हाई स्कूल से अपनी 10वीं की परीक्षा पास की थी, जबकि 13 साल की उम्र में उन्होंने अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी कर ली थी।

सीवी रमन शुरुआत से  ही पढ़ने में काफी अच्छे थे, इसलिए उन्होंने अपनी 12वीं की पढ़ाई स्कॉलरशिप के साथ पूरी की। इसके बाद उन्होंने साल 1902 में प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास (चेन्नई) में एडमिशन लिया था, और वहां से साल 1904 में अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री प्रथम श्रेणी के साथ हासिल की, इसके साथ ही सीवी रमन ने इस दौरान पहली बार फिजिक्स में ‘गोल्ड मेडल’ भी प्राप्त किया था।

इसके बाद उन्होंने साल 1907 में  मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए मद्रास यूनिवर्सिटी में ही एमएससी में एडमिशन लिया। आपको बता दें कि इस दौरान उन्होंने फिजिक्स को मुख्य विषय के तौर पर चुना, हालांकि वे इस दौरान क्लास में कम ही आते थे, क्योंकि उन्हें थ्योरी नॉलेज से ज्यादा लैब में नए-नए प्रयोग करना पसंद था, उन्होंने अपनी एमएससी की पढ़ाई के दौरान ही ध्वनिकी और प्रकाशिकी (Acoustics and Optics) के क्षेत्र में रिसर्च करनी शुरु कर दी थी।

वहीं उनके प्रोफेसर आर एस जोन्स भी उनकी प्रतिभा को देखकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने सीवी रमन को उनकी रिसर्च को ‘शोध पेपर’ के रुप में पब्लिश करवाने की सलाह दी, जिसके बाद नवंबर, साल 1906 में लंदन से प्रकाशित होने वाली ‘फ़िलॉसफ़िकल पत्रिका’ (Philosophical Magazine) में उनका शोध प्रकाश का ‘ आणविक विकिरण ‘  को प्रकाशित किया गया। आपको बता दें कि उस दौरान वह महज18 साल के थे।

सहायक लेखपाल के तौर पर की अपने करियर की शुरुआत –

मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद सीवी रमन की अद्भुत प्रतिभा को देखते हुए कुछ प्रोफेसर्स ने उनके पिता से हायर स्टडीज के लिए उन्हें इंग्लैंड भेजने की भी सलाह दी, लेकिन सीवी रमन का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की वजह से वह आगे की पढ़ाई के लिए विदेश तो नहीं जा सके।

लेकिन इसी दौरान ब्रिटिश सरकार की तरफ से एक परीक्षा आयोजित करवाई गई थी, जिसमें सीवी रमन ने भी हिस्सा लिया था और वह इस परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद उन्हें सरकार के वित्तीय विभाग में नौकरी करने करने का मौका मिला, फिर कोलकाता में उन्होंने सहायक लेखापाल के तौर पर अपनी पहली सरकारी नौकरी ज्वाइन की।

हालांकि इस दौरान भी उन्होंने एक्सपेरिंमेंट और रिसर्च करना नहीं छोड़ा, वे कोलकाता में ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस’ लैब में अपनी खोज करते रहते थे, नौकरी के दौरान जब भी उन्हें समय मिलता था, वह अपनी खोज में लग जाते थे।

सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में बने प्रोफेसर:

हालांकि, विज्ञान के क्षेत्र में कुछ करने के उद्देश्य से उन्होंने साल 1917 में ही उन्होंने अपनी  सरकारी नौकरी छोड़कर  ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस’ लैब में मानद सचिव के पद पर ज्वाइन कर लिया था। वहीं इसी साल उन्हें कलकत्ता यूनिवर्सिटी से भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर का भी जॉब ऑफर मिला था, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया और वे भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर के तौर पर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में अपनी सेवाएं देने लगे, और अब वे अपनी रुचि के क्षेत्र में काम करके बेहद खुश भी थे।

इसके बाद साल 1924 में सीवी रमन को ‘ऑपटिक्स’ के क्षेत्र में उनके सराहनीय योगदान के लिए लंदन की ‘रॉयल सोसायटी’ की सदस्य बनाया गया।

‘रमन इफ़ेक्ट’ की खोज –

‘रमन प्रभाव’ की खोज उनकी वो खोज थी, जिसने भारत को विज्ञान के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान दिलवाई। उन्होंने 28 फरवरी, साल 1928 को कड़ी मेहनत और काफी प्रयास के बाद ‘रमन प्रभाव’ की खोज की।

वहीं उन्होंने अगले ही दिन इसकी घोषणा कर दी थी। उनकी इस खोज से न सिर्फ इस बात का पता चला कि समुद्र का जल नीले रंग का क्यों होता है, बल्कि यह भी पता चला कि जब भी कोई लाइट किसी पारदर्शी माध्यम से होकर गुजरती है तो उसके नेचर और बिहेवियेर में चेंज आ जाता है।

प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ ने इसे प्रकाशित किया। वहीं उनकी इस खोज को ‘रमन इफेक्ट’ ( Raman effect ) या ‘रमन प्रभाव’ का नाम दिया गया। इसके बाद वह एक महान वैज्ञानिक के तौर पर पहचाने जाने लगे और उनकी ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई।

इसके बाद मार्च, साल 1928 में सीवी रमन ने गलोर स्थित साउथ इंडियन साइन्स एसोसिएशन में अपनी इस खोज पर स्पीच भी दी। इसके बाद दुनिया की कई लैब में उनकी इस खोज पर अन्वेषण होने लगे।

आपको बता दें कि उनकी इस खोज के द्धारा लेजर की खोज से अब रसायन उद्योग, और प्रदूषण की समस्या आदि में रसायन की मात्रा पता लगाने में भी मद्द मिलती है। सीवी रमन एक विज्ञान के क्षेत्र में वाकई में यह एक अतुलनीय खोज थी।

वहीं उन्हें इस खोज के लिए साल 1930 में प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘नोबेल पुरस्कार’ से भी नवाजा गया। वहीं सीवी रमन की इस महान खोज के लिए भारत सरकार ने 28 फरवरी के दिन को हर साल ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रुप में मनाने की भी घोषणा की।

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस ( आईआईएस ) से रिटायरमेंट –

बेंगलौंर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में सीवी रमन को साल 1934 में डायरेक्टर बनाया गया था। हालांकि इस दौरान भी वे स्टिल की स्पेक्ट्रम प्रकृति, हीरे की संरचना, स्टिल डाइनेमिक्स के बुनियादी मुद्दे और गुणों समेत कई रंगदीप्त पदार्थो के प्रकाशीय आचरण पर खोज करते रहे।

इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि सीवी रमन को वाध्य यंत्र और संगीत में भी काफी रुचि थी, इसी वजह से उन्होंने तबले और मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) की प्रकृति की भी खोज की थी। इसके बाद साल 1948 में सी.वी रमन आईआईएस से रिटायर्ड हो गए थे।

रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना –

साल 1948 में सी.वी रमन ने  वैज्ञानिक सोच और अनुसन्धान को बढ़ावा देने के लिए रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट, बैंग्लोर (Raman Research Institute, Bangluru) की स्थापना की थी।

निजी जीवन ( विवाह और बच्चे ) –

सीवी रमन ने लोकसुंदरी नाम की कन्या को वीणा बजाते हुए सुना था, जिसे सुनकर वह मंत्रमुग्ध हो गए थे और इसके बाद उन्होंने लोकसुंदरी से विवाह करने की इच्छा जताई थी, वहीं इसके बाद परिवार वालों की रजामंदी से वे 6 मई साल 1907 को लोकसुंदरी अम्मल के साथ शादी के बंधन में बंध गए।

जिनसे उन्हें चंद्रशेखर और राधाकृष्णन नाम के दो पुत्रों की प्राप्ति हुई। वहीं आगे चलकर उनका बेटा राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री के रुप में भी मशहूर हुआ था।

महान उपलब्धियां –

भारत के महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन को विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरुस्कारों से भी नवाजा गया, जिनके बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं-

  • वैज्ञानिक सीवी रमन को साल 1924 में लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया।
  • सीवी रमन ने 28 फ़रवरी 1928 को ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी, इसलिए इस दिन को भारत सरकार ने हर साल ‘ राष्ट्रीय विज्ञान दिवस ’ के रूप में बनाने की घोषणा की थी।
  • सीवी रमन ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की 16 वें सत्र की अध्यक्षता साल 1929 में की।
  • सीवी रमन को साल 1929 में उनके अलग-अलग प्रयोगों और खोजों के कई यूनिवर्सिटी से मानद उपाधि, नाइटहुड के साथ बहुत सारे पदक भी दिए गए।
  • साल 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और ‘रमन प्रभाव’ जैसी महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें उत्कृष्ठ और प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। आपको बता दें कि वे इस पुरस्कार को पाने वाले पहले एशियाई भी थे।
  • विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए साल 1954 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया।
  • साल 1957 में सीवी रमन को लेनिन शांति पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।

निधन –

महान वैज्ञानिक सीवी रमन ने अपनी जिंदगी में ज्यादातर टाइम लैब में रहकर, नई-नई खोज और प्रयोग करने में व्यतीत किया। वह 82 साल की उम्र में भी रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट, बैंग्लोर में अपनी लैब में काम कर रहे थे, तभी अचानक उनको हार्ट अटैक आया, जिसकी वजह से वह गिर पड़ें और तभी 21 नवंबर साल 1970 को उन्होंने अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली।

भारत को विज्ञान के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने वाले वैज्ञानिक सी.वी. रमन भले ही आज हमारे बीच मौजूद नहीं हैं लेकिन उनकी महत्पूर्ण खोजें हमेशा हमारे बीच जिंदा रहेंगी, आज भी उनकी अद्भुत खोजों का इस्तेमाल बड़े स्तर पर किया जाता है।

उन्होंने जिस तरह कठोर प्रयास और कड़ी के दम पर ‘रमन प्रभाव’ जैसी खोज के माध्यम से विज्ञान के क्षेत्र में भारत को गौरव हासिल करवाया, वाकई हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है, वहीं सीवी रमन का व्यक्तित्व आने वाली कई पीढि़यों को ऐसे ही प्रेरित करता रहेगा।

ज्ञानी पंडित की टीम की तरफ से भारत के विज्ञान शिरोमणि, महान कर्मयोगी वैज्ञानिक सी.वी. रमन को हमारा शत-शत नमन।

4 thoughts on “सी वी रमन”

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Ultimate Personality…….. He was First Asian to receive the Nobel Prize .. It was matter of Immense Pleasure to us.. Study in mA than switched to Kolkotta… for chasing his dream he Kept on Roaming and finally he did what he Loved and Proved his metal…..

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सीवी रमन पर निबंध | Essay on CV Raman in Hindi

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सीवी रमन पर दो निबंध | Read These Two Essays on CV Raman in Hindi!

# Essay 1: सीवी रमन पर निबंध | Essay on CV Raman in Hindi!

सर रामन एक महान वैज्ञानिक थे । वे पहले भारतीय और वैज्ञानिक थे जिन्हें विज्ञान में सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । यह सम्मान उन्हें अपने एक महत्वपूर्ण आविष्कार ‘रामन प्रभाव’ के लिए दिया गया था ।

रामन ने कठोर परिश्रम और सतत् प्रयोगों से पाया कि प्रकाश किरणों को नए पदार्थ में से होकर गुजारने पर स्पेक्ट्रम में कुछ नई रेखाएँ प्राप्त होती हैं । यही रामन प्रभाव का आधार था । उनका यह अन्वेषण और आविष्कार पदार्थों की आणविक संरचना समझने में बड़ा सहायक हुआ । इसकी सहायता से अब तक हजारों पदार्थों की सरंचना को समझाजा सका है।

लेसरके आविष्कार ने रामन प्रभाव को महत्त्व और भी बढ़ा दिया है । सर रामन ने चुम्बक और संगीत के क्षेत्र में भी अनेक अनुसंधान किये । उनका पूरा नाम चन्द्रशेखर वेंकट रामन था । उनका जन्म त्रिचनापल्ली स्थान पर 7 नवम्बर सन् 1888 को हुआ था । रामन बचपन से ही पढ़ने-लिखने में गहरी रुचि लेते थे । इनके पिता भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक थे ।

रामन को अपने पिता से बहुत प्रेरणा और सहायता मिली । रामन ने सन् 1904 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, चेन्नई से बी॰ए॰ की डिग्री प्राप्त की और फिर 1907 में भौतिक विज्ञान में एम॰ए॰ की । वे उच्च शिक्षा के लिए बी॰ए॰ के पश्चात् विदेश जाना चाहते थे, परन्तु स्वास्थ्य अच्छा न होने के कारण ऐसा नहीं कर सके ।

अपने विद्यार्थी जीवन में भी रामन ने भौतिक विज्ञान के कई नये और प्रशंसनीय कार्य किये । प्रकाश विवर्तन पर उनका पहला शोधपत्र सन् 1906 में प्रकाश में आया । सन् 1907 में उन्होंने डिप्टी एकाउन्टेंट के पद पर कलकत्ता में नियुक्त किया गया । इस पद पर रहते हुए भी वे वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान में लगे रहे ।

वे वहां की विज्ञान प्रयोगशाला में अपना सारा फालतू समय लगाते थे । वहां वे भौतिकविद् आशुतोष मुकर्जी के संपर्क में आये । उनसे रामन को बड़ी प्रेरणा और मार्गदर्शन मिला । सन् 1917 में रामन सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर बन गये ।

इसका प्रमुख कारण उनकी विज्ञान में गहरी रुचि थी । सन् 1921 में वे यूरोप की यात्रा पर गये । वहां से लौटकर वे अपने प्रयोगों में पुन: लग गये और कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले । सन् 1924 में रामन को रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन का सदस्य बनाया गया । यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सम्मान था ।

सर रामन ने सन् 1943 में बैंगलोर के समीप रामन रिसर्च इंस्टीट्‌यूट की स्थापना की । इसी संस्थान में वे जीवन के अंत तक अपने प्रयोग करते रहे और अध्ययन रत रहे । सन 1970 में इस महान भारतीय और वैज्ञानिक का देहांत हो गया । हम सब को सर रामन के कार्यों और उपलब्धियों पर बड़ा गर्व है। वे एक महान भौतिकशात्री और वैज्ञानिक के साथ-साथ महामानव भी थे । अभिमान और लोभ उन्हें छू भी नहीं पाया था । वे सतत् सत्य की खोज में लगे रहे और उसे प्राप्त किया ।

ADVERTISEMENTS:

सभी भारतीय वैज्ञानिकों, युवा लोगों और विद्यार्थियों को उन के पद-चिन्हों पर चलने का प्रयत्न करना चाहिये । सन् 1958 में उन्हें लेकिन शांति पुरस्कार और इससे पूर्व 1954 में भारत रत्न प्रदान किया गया था ।

# Essay 2: सीवी रमन पर निबंध | Essay on CV Raman in Hindi

भारत सदियों से ऐसे महापुरुषों की भूमि रही है, जिनके कार्यों से पूरी मानवता का कल्याण हुआ है । ऐसे महापुरुषों की सूची में केवल समाज सुधारकों, साहित्यकारों एवं आध्यात्मिक गुरुओं के ही नहीं, बल्कि कई वैज्ञानिकों के भी नाम आते हैं ।

चन्द्रशेखर वेंकट रमन ऐसे ही एक महान भारतीय वैज्ञानिक थे, जिनकी खोजों के फलस्वरूप विश्व को कई प्राकृतिक रहस्यों का पता लगा । चन्द्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवम्बर, 1888 को तमिलनाडु राज्य में तिरुचिरापल्ली नगर के निकट तिरुवनईकवल नामक गाँव में हुआ था ।

इनके पिता का नाम चन्द्रशेखर अय्यर एवं माता का नाम पार्वती अम्माल था । चूँकि वेंकट रमन के पिता भौतिक विज्ञान एवं गणित के विद्वान थे एवं विशाखापत्तनम में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त थे । अत: हम कह सकते हैं कि रमन को विज्ञान के प्रति गहरी रुचि एवं अध्ययनशीलता विरासत में मिली ।

एक वैज्ञानिक होने के बावजूद धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्तित्व उन पर अपनी माँ के स्पष्ट प्रभाव को दर्शाता है, जो संस्कृत की अच्छी जानकार धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं । रमन की प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में हुई । इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वे चेन्नई चले गए । वहाँ उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से वर्ष 1904 में स्नातक एवं वर्ष 1907 में भौतिकी में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की ।

स्नातक में उन्होंने कॉलेज में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए गोल्ड मेडल प्राप्त किया था तथा स्नातकोत्तर प्रथम श्रेणी में अत्युच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए थे । वर्ष 19106 में लन्दन की विख्यात वैज्ञानिक पत्रिका ‘फिलॉसोफिकल मैग्जीन’ में उनका एक लेख ‘अनसिमेट्रिकल डि फ्रैक्शन वैंडसड्‌यू टू रेक्टैंगुलर अपरचर’ प्रकाशित हुआ ।

इसके बाद रमन का दूसरा शोध पत्र विश्वविद्यालय पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित हुआ । वर्ष 1907 में ही वे भारतीय वित्त विभाग द्वारा आयोजित परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर कलकत्ता में सहायक महालेखापाल के पद पर नियुक्त हुए । उस समय उनकी आयु मात्र 19 वर्ष थी ।

इतनी कम आयु में इतने उच्च पद पर नियुक्त होने वाले वे पहले भारतीय थे । सरकारी नौकरी के दौरान भी उन्होंने विज्ञान का दामन नहीं छोड़ा और कलकत्ता की भारतीय विज्ञान प्रचारिणी संस्था के संस्थापक डॉ. महेन्द्र लाल सरकार के सुपुत्र वैज्ञानिक डॉ. अमृतलाल सरकार के साथ अपना वैज्ञानिक शोध-कार्य करते रहे ।

वर्ष 1911 में वे डाक-तार विभाग के अकाउंटेण्ट जनरल बने । इसी बीच उन्हें भारतीय विज्ञान परिषद का सदस्य भी बनाया गया । वर्ष 1917 में विज्ञान को अपना सम्पूर्ण समय देने के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्राचार्य पद पर नियुक्त हुए ।

उस समय प्राचार्य का वह पद पालित पद के रूप में था । सरकारी नौकरी को छोड़कर भौतिक विज्ञान के प्राचार्य पद पर नियुक्त होने के पीछे उनका उद्देश्य अपने वैज्ञानिक अनुसन्धानों को अधिक समय देना था ।  अपने शोध और अनुसन्धान को गति प्रदान करने के उद्देश्य से उन्होंने कई विदेश यात्राएँ भी कीं ।

वर्ष 1921 में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रमण्डल के विश्वविद्यालयों की एक सभा में भाग लेने के लिए इंग्लैण्ड भेजा गया ।  इसी समुद्र यात्रा के दौरान भूमध्य सागर के गहरे नीले पानी ने उनका ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींचा, फलस्वरूप उन्होंने पानी, हवा, बर्फ आदि पारदर्शक माध्यमों के अणुओं द्वारा परिक्षिप्त होने वाले प्रकाश का अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया ।

उन्होंने अपने अनुसन्धानों से यह सिद्ध कर दिया कि पदार्थ के भीतर एक विद्युत तरल पदार्थ होता है, जो सदैव गतिमान रहता है । इसी तरल पदार्थ के कारण केवल पारदर्शक द्रवों में ही नहीं, बल्कि बर्फ तथा स्फटिक जैसे पारदर्शक पदार्थों और अपारदर्शी वस्तुओं में भी अणुओं की गति के कारण प्रकाश किरणों का परिक्षेपण हुआ करता है ।

किरणों के इसी प्रभाव को ‘रमन प्रभाव’ के नाम से जाना जाता है । इस खोज के फलस्वरूप यह रहस्य खुला कि आकाश नीला क्यों दिखाई पड़ता है, वस्तुएँ विभिन्न रंगों की क्यों दिखती हैं और पानी पर हिमशैल हरे-नीले क्यों दिखते हैं ?

इसके अतिरिक्त इस खोज के फलस्वरूप विज्ञान जगत् को असंख्य जटिल यौगिकों के अणु विन्यास को सुलझाने से सम्बन्धित अनेक लाभ हुए । इस खोज के महत्व को देखते हुए वर्ष 1930 में रमन को भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया ।

रमन पहले एशियाई और अश्वेत थे, जिन्होंने विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था । रमन की रुचि संगीत में थी, इसलिए कलकत्ता विश्वविद्यालय की नौकरी के दौरान उन्होंने ध्वनि कम्पन एवं शब्द विज्ञान के क्षेत्र में भी रोचक बातों का पता लगाया था ।

उन्होंने ही पहली बार तबले और मृदंगम के सनादी (हार्मोनिक) की प्रकृति का पता लगाया । वर्ष 1934 में उन्होंने बंगलौर में भारतीय विज्ञान अकादमी की स्थापना की तथा वर्ष 1948 से नवस्थापित रमन अनुसन्धान संस्थान, बंगलौर (बंगलुरु) में निदेशक पद पर आजीवन कार्य करते रहे ।

इस संस्थान में वे अपने जीवन के अन्तिम दिनों तक हीरों तथा अन्य रत्नों की बनावट के बारे में अनुसन्धान करते रहे । वर्ष 1929 में उन्होंने भारतीय विज्ञान काँग्रेस के 16वें सत्र की अध्यक्षता की थी ।  वर्ष 1930 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के अतिरिक्त, चन्द्रशेखर वेंकट रमन की उपलब्धियों के लिए देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों एवं सरकारों ने उन्हें कई उपाधियाँ एवं पुरस्कार देकर सम्मानित किया ।

ऑप्टिक्स के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 1924 में उन्हें रॉयल सोसाइटी का ‘फैलो’ चुना गया, तो वर्ष 1929 में ‘नाइट’ की पदवी से विभूषित किया गया । सोवियत रूस का श्रेष्ठतम ‘लेनिन शान्ति पुरस्कार’ उन्हें प्रदान किया गया ।

अंग्रेज सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की । इसके अतिरिक्त, इटली की विज्ञान परिषद् ने ‘मेटयुसी पदक’, अमेरिका ने वर्ष 1941 में ‘फ्रैंकलिन पदक’ तथा इंग्लैण्ड ने ‘ह्यूजेज पदक’ प्रदान कर रमन को सम्मानित किया । वर्ष 1948 में भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय आचार्य’ का सम्मान प्रदान किया गया । वर्ष 1954 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया ।

यह सम्मान कला, साहित्य, विज्ञान एवं खेल को आगे बढ़ाने के लिए की गई विशिष्ट सेवा और जन-सेवा में उत्कृष्ट योगदान को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है । विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने जो महान् अनुसन्धान किए थे, उनके लिए वे इस सम्मान के वास्तविक हकदार थे ।

उन्होंने ‘रमन प्रभाव’ की खोज 28 फरवरी, 1928 को की थी, इसलिए 28 फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है । भारतीय डाक-तार विभाग ने उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों के महत्व को देखते हुए एक डाक टिकट जारी करके श्री रमन को सम्मानित किया ।

चन्द्रशेखर वेंकट रमन वैज्ञानिक एवं शिक्षक ही नहीं, बल्कि एक कुशल वक्ता तथा संगीत प्रेमी भी थे । उन्होंने अपना शोध-कार्य सदैव रचनात्मक कार्यों के लिए किया, ताकि मानवता का कल्याण हो सके । वे सैनिक कार्यों अथवा विनाशकारी शोध के विरुद्ध थे ।

उन्होंने जीवनभर विज्ञान की सेवा की । रमन अनुसन्धान संस्थान के निदेशक पद पर रहते हुए विज्ञान के इस अमूल्य पुरोधा को एक छोटी-सी बीमारी हो गई, जिसके कारण भारत माँ का यह सपूत 19 नवम्बर 1970 को सदा-सदा के लिए चिर निद्रा में सो गया ।

अपने संस्थान के प्रति उनके अनुराग को देखते हुए उनका दाह-संस्कार संस्थान के प्रांगण में ही किया गया । भारत को वैज्ञानिक अनुसन्धान के क्षेत्र में अग्रसर करने में रमन के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता ।  उन्होंने जो खोजे की थी, आज उनका विस्तार विज्ञान की अनेक शाखाओं तक हो चुका है । उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व भारतीय युवा वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का बहुमूल्य स्रोत है ।

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सी. वी. रमन पर निबंध (C. V. Raman Essay In Hindi)

चंद्रशेखर रमन ने भौतिक विज्ञान में बेहतरीन कार्य किये है। उनका जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु राज्य के तिराचिरुपल्ली में हुआ था। उनके पिताजी भौतिक विज्ञान विषय के शिक्षक थे। उनकी माताजी का नाम पार्वती  था। उनके विचारो में उनके अच्छे संस्कार झलकते थे।

चंद्रशेखर को पढ़ाई और पुस्तकों से था लगाव

पुस्तक और संगीत में दिलचस्पी

इसे अंग्रेजी में रमन इफ़ेक्ट कहा जाता है। इसे रमन प्रभाव कहा जाता है। रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का इस्तेमाल कई प्रयोगशालाओं में किया जाता है। वहां विभिन्न तरह के अणुओं की पहचान कि जाती है।

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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

सी.वी. रमन : भारत में विज्ञान के नेतृत्वकर्ता.

  • 06 Nov, 2023 | राहुल कुमार

essay on cv raman in hindi

सी.वी. रमन कहते हैं - “हमेशा सही सवाल पूछें, फिर देखना प्रकृति अपने सभी रहस्यों के द्वार खोल देगी।” वे ये भी कहते हैं कि “शिक्षा का उद्देश्य लोगों को स्वतंत्र रूप से सोचने और अपने स्वयं के निर्णय लेने के लिये  सक्षम बनाना है।” उनके विचार से यही प्रतीत होता है कि सी.वी. रमन सीखने-सिखाने व तर्कसंगत सवाल करने के पक्षधर थे। विज्ञान और वैज्ञानिक क्यों व कैसे में न पड़ें तो खोज व आविष्कार कैसे हो पाएगा? शिक्षा को मनुष्य की सबसे बड़ी ज़रूरत मानने वाले सी वी रमन का पूरा नाम ‘चंद्रशेखर वेंकटरमन’ था। खोजी प्रवृत्ति के धनी सी. वी. रमन ने वर्ष 1930 में भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीता। श्री रमन द्वारा जीते गए नोबेल पुरस्कार ने भारतीय वैज्ञानिक समुदाय की ओर पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया।

दरअसल इस संसार में इंसान अपने कार्यों से प्रभाव छोड़ता है। उनके प्रभावों से उनकी शख्सियत बनती है। इतिहास गवाह है कि सी.वी. रमन के ‘रमन प्रभाव’ ने वैश्विक पटल पर इतना उम्दा प्रभाव छोड़ा कि वे हमेशा के लिये महान वैज्ञानिकों की सूची में शामिल हो गए। भारतरत्न, भौतिकी का नोबेल पुरस्कार, फ्रेंकलिन मेडल, लेनिन शांति पुरस्कार और रॉयल सोसाइटी ने सी.वी. रमन की प्रतिष्ठा व लोकप्रियता में उत्तरोत्तर वृद्धि की। आज दुनिया जिस सी.वी. रमन को जानती है उनके बनने की प्रक्रिया तप-त्याग से होकर गुज़री है।

“अपनी नाकामयाबियों के लिये मैं खुद ज़िम्मेदार हूँ, अगर मैं नाकामयाब नहीं होता तो इतना सब कुछ कैसे सीख पाता।” इस विचार के समर्थक सी.वी. रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। गणित व भौतिकी का माहौल इन्हें घर ने ही प्रदान किया था। इनके पिता चंद्रशेखर अय्यर गणित व भौतिकी के लेक्चरर थे। उन्हीं से रमन में विज्ञान व शिक्षण के प्रति लगाव पैदा हुआ। और यह लगाव अंतिम साँस तक कायम रहा। 

होनहार बिरवान के होत चिकने पात! बालक सी.वी. रमन का मन विज्ञान में खूब रमता था। वे बचपन में खेल-खेल में प्रयोग किया करते थे। विद्यालय और छात्रावास में अपने सहपाठियों के साथ जबकि घर में भाई-बहनों के साथ विज्ञान के छोटे-छोटे प्रयोग में मशगूल रहना उनकी दिनचर्या का मूल हिस्सा बन गया था। सभी घटनाओं में वे कार्य-कारण सिद्धांत को लागू किया करते थे। अंतिम जवाब मिलने तक वे स्वयं से सवाल किया करते थे। 

विज्ञान में गहरी रुचि और पिताजी के द्वारा गणित व विज्ञान में किये जा रहे शिक्षण कार्य ने बालक सी.वी. रमन के मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ी। यही वजह है कि वे विज्ञान व गणित की पढ़ाई करने के लिये प्रेरित हुए। प्रतिभाशाली सी.वी. रमन ने बहुत जल्दी स्कूल की पढ़ाई पूरी की, 11 साल की आयु में अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की, 13 साल में अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी की और 16 साल की आयु में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने भौतिकी में गोल्ड मेडल हासिल किया। इसके बाद मद्रास विश्वविद्यालय से बेहतरीन अंकों के साथ गणित में स्नात्तकोत्तर की डिग्री हासिल की।

स्नात्तकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के बाद वे भारतीय वित्त विभाग में नौकरी करने लगे, लेकिन कलकत्ता में ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ की प्रयोगशाला में शोध करना जारी रखा। शिक्षण-अधिगम से लगाव रखने वाले सी.वी. रमन ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और वर्ष 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर बन गए। सी.वी. रमन के तमाम शोध कार्य इसी कर्मस्थली में संपन्न हुए थे।

विज्ञान सी.वी. रमन की रगों में दौड़ता था। यही कारण है कि उनका अधिकतर समय लैब में बीतने लगा। जब लैब में मस्तिष्क थक जाता तब भौतिकशास्त्री सी.वी. रमन संगीत का रुख करते थे। विद्यार्थियों को पढ़ाना, लैब में प्रयोग करना और वीणा में लीन हो जाना उनकी दिनचर्या थी। उन्होंने संसाधनों की कमी को कभी समस्या नहीं माना, उनका कहना था - “गरीबी और निर्धन प्रयोगशालाओं ने मुझे मेरे सर्वोत्तम कार्य करने के लिये और भी दृढ़ता दी।” सी.वी. रमन के अनुसार उनके जीवन का स्वर्ण समय वर्ष 1919 का था जब उन्हें इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस में ‘मानद प्रोफेसर’ व ‘मानद सचिव’ के रूप में दो पद हासिल हुए।

सी.वी. रमन ने स्नात्तकोत्तर के दौरान प्रकाश के व्यवहार पर आधारित अपना पहला शोध-पत्र लिखा। उन्होंने अपने एक प्रोफेसर को शोध-पत्र पढ़ने के लिये भेजा लेकिन व्यस्तता के कारण उनके प्रोफेसर शोध-पत्र को नहीं पढ़ पाए! इसके बाद रमन ने एक प्रसिद्ध मैगज़ीन को अपना शोध-पत्र भेज दिया। उनका शोध-पत्र प्रकाशित हुआ और ब्रिटेन के जाने-माने वैज्ञानिक ‘बैरन रेले’ ने उसे पढ़ा। बैरन रेले गणित और भौतिकी के महान वैज्ञानिक थे। वे रमन के शोध-पत्र से काफी प्रभावित हुए, उन्होंने रमन को पत्र लिखकर उनकी प्रशंसा की। बैरन रेले रमन को प्रोफेसर समझ बैठे थे, उन्होंने रमन को लिखे पत्र में रमन को प्रोफेसर कहकर संबोधित किया था। दरअसल वे शोध-पत्र की मौलिकता एवं निष्कर्ष से इतना प्रभावित हुए थे कि उन्हें लगा- ऐसा शोध-पत्र कोई शानदार प्रोफेसर ही लिख सकता है।

सी.वी. रमन की स्पेक्ट्रोस्कोपी का ज़िक्र डॉ. अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने वर्ष 1929 में रॉयल सोसाइटी के अपने अध्यक्षीय भाषण में किया था। रमन को रॉयल सोसाइटी के द्वारा एकनॉलेज्ड किया गया और उन्हें नाइटहुड की उपाधि भी प्रदान की गई। यानी रमन के कार्यों एवं शोधों की स्वीकार्यता वैश्विक स्तर पर होने लगी थी। इसका लाभ भारत को भी मिला। 

वर्ष 1921 में सी.वी. रमन जहाज़ से ब्रिटेन जा रहे थे। उन्होंने भूमध्य सागर में पानी के सुंदर नीले रंग को देखा। उस समय उनको समुद्र के पानी के नीले रंग पर शक हुआ। जब वह भारत वापस आने लगे तो अपने साथ कुछ उपकरण लेकर आए। सी.वी. रमन ने उन उपकरणों की मदद से आसमान और समुद्र का अध्ययन किया। वह इस नतीजे पर पहुँचे कि समुद्र भी सूर्य के प्रकाश का प्रकीर्णन करता है, जिससे समुद्र के पानी का रंग नीला दिखाई पड़ता है। उन्होंने ठोस, द्रव और गैस में प्रकाश के विभाजन पर शोध जारी रखा। अंततः वह जिस नतीजे पर पहुँचे- वह रमन प्रभाव कहलाया। जिससे पूरी दुनिया प्रभावित हुई। 

रमन प्रभाव बताता है कि जब प्रकाश किसी पारदर्शी पदार्थ से होकर गुज़रता है तो इस प्रक्रिया में प्रकाश का कुछ हिस्सा स्कैटर कर जाता है। यानी, बिखर जाता है। बिखरे हुए (मार्ग से विक्षेपित) प्रकाश की तरंगदैर्ध्‍य समान रहती है किंतु उनमें से कुछ हिस्से की प्रकाश की तरंगदैर्ध्य बदल जाती है। इसे रमन प्रभाव से जाना गया। प्रकाश के क्षेत्र में उनके इस कार्य के लिये वर्ष 1930 में उन्हें ‘भौतिकी का नोबेल’ पुरस्कार मिला। प्रकाश के क्षेत्र में किये गए उनके कार्य का आज भी कई क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है। सी.वी. रमन कहते हैं - “मैंने विज्ञान के अध्ययन के लिये  कभी भी किसी कीमती उपकरण का उपयोग नहीं किया, मैंने रमन प्रभाव की खोज के लिये शायद ही किसी उपकरण पर 200 रुपए से ज़्यादा खर्च किया हो।” 

रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी का इस्तेमाल दुनिया भर की केमिकल लैब्स में होता है, इसकी मदद से पदार्थ की पहचान की जाती है। औषधि के क्षेत्र में कोशिका और ऊतकों पर शोध के लिये व कैंसर का पता लगाने के लिये भी इसका इस्तेमाल होता है। मिशन चंद्रयान के दौरान चाँद पर पानी का पता लगाने में भी रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया गया था। यानी रमन की खोज की प्रासंगिकता आज भी कायम है। 

वर्ष 1986 में भारत सरकार ने रमन प्रभाव की खोज की घोषणा के उपलक्ष्य में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में नामित किया। ‘अमेरिकन केमिकल सोसाइटी’ और ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ ने रमन प्रभाव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मील के पत्थर के रूप में मान्यता दी। दरअसल विज्ञान और वैज्ञानिक दोनों का रास्ता मानव कल्याण से होकर गुज़रता है। जब कोई खोज व आविष्कार मानव सभ्यता के लिये हितकर हो तब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित करना नई पीढ़ी को प्रेरणा  देने जैसा होता है। 

सी.वी. रमन को प्रकाश के प्रकीर्णन व रमन प्रभाव की खोज तक सीमित नहीं करना चाहिये। वर्ष 1932 में उन्होंने सूरी भगवंतम के साथ मिलकर क्वांटम फोटॉन स्पिन की खोज की, तबला व मृदंगम जैसे भारतीय ढोल की ध्वनि की हार्मोनिक प्रकृति की भी उन्होंने जाँच की। वे वर्ष 1933 में भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु में प्रोफेसर बने, जहाँ उन्होंने 15 वर्षों तक कार्य किया। वह वर्ष 1948 में भारतीय विज्ञान संस्थान से सेवानिवृत्त हुए और वर्ष 1949 में बेंगलुरु में ‘रमन अनुसंधान संस्थान’ बनाया। उनका संपूर्ण जीवन विज्ञान व शिक्षण को समर्पित रहा। 

दरअसल कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति तभी प्राप्त करता है जब वहाँ आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक विकास के साथ-साथ तकनीकी व वैज्ञानिक विकास भी हो। वर्षों से शोध, प्रयोग, खोज, आविष्कार इत्यादि के बलबूते मानव कल्याण की अवधारणा को फलीभूत किया जाता रहा है। “हमें कक्षा में सक्षम शिक्षक, सीमा पर निडर सैनिक व खेत में मेहनती किसान चाहिये तो प्रयोगशाला को जीवन समझने वाले सी.वी. रमन जैसे चुनिंदा वैज्ञानिक भी चाहिये।” विज्ञान देश को ठोस विश्वास देता है। जब कोई वैज्ञानिक विज्ञान में नया सिद्धांत गढ़ता है और उन सिद्धांतों को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति मिलती है तो उनकी सफलता राष्ट्र की सफलता बन जाती है। आज भी जब-जब रमन प्रभाव का ज़िक्र होता है तब-तब भारत के नाम का ज़िक्र होता है।

भारत को दूसरा सी.वी. रमन नहीं मिल सकता है- किंतु सी.वी. रमन के जीवन से सीख हासिल कर रमन परंपरा अथवा वैज्ञानिक खोजों को आगे बढ़ाया जा सकता है। “जितनी जल्दी नई पीढ़ी के प्रेरणास्रोत वैज्ञानिक, चिकित्सक, शिक्षक, सैनिक और किसान बनने लगेंगे उतनी जल्दी भारत विकसित देशों की सूची में शामिल होगा।” हमें समझना पड़ेगा कि - कोई भी अनुसंधान करने में कठिन परिश्रम और लगन की आवश्यकता होती है, कीमती उपकरण की नहीं।

विज्ञान में शोधरत नई पीढ़ी को सी.वी. रमन के एक बहुमूल्य प्रासंगिक विचार को आत्मसात कर लेना चाहिये -

“सही व्यक्ति, सही सोच और सही उपकरण मतलब सही नतीजे।”

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सी. वी. रमन पर निबंध- Essay on CV Raman in Hindi

In this article, we are providing information about CV Raman in Hindi- Short Essay on CV Raman in Hindi Language. चंद्रशेखर वेकेंट रमन / सी. वी. रमन पर निबंध

सी. वी. रमन पर निबंध- Essay on CV Raman in Hindi

Essay on CV Raman in Hindi

( Essay – 1 ) सी. वी. रमन पर निबंध- CV Raman Essay in Hindi

चंद्रशेखर वेकेंट रमन भारत के महान भौतिकी शास्त्री हुए हैं। इन्होंने भौतिकी विग्यान में अहम भूमुका निभाई है। इनके द्वारा प्रकाश विवितर्न कार्य के कारण उसे रमन ईफैक्ट के नाम से भी जाना जाता है। चंद्रशेखर वेकेंट का जन्म 7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिराचिरूपल्ली में हुआ था। इनके पिता का नाम चंद्रशेखर था जो कि भौतिकी के अध्यापक थे। इनकी माता का नाम पार्वती था जो कि संस्कारी महिला था। जब सी.वी. रमन 4 वर्ष के थे तब ये विशाखापतनम जातर रहने लगे।

शिक्षा- रमन ने शुरूआती पढ़ाई विशाखापतनम में ही की थी। उन्होंने 12 साल की कम उमर में ही मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। सन् 1903 में उन्होंने प्रेजीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और वहाँ उन्होंने ने भौतिकी में प्रथम श्रेणी में आकर स्नातक पूर्ण की। उन्होंने मद्रास विश्व विद्यालय से गणित में एमए की डीग्री प्राप्त की थी।

कार्य- 1906 में रमन ने प्रकाश विवितर्न पर अपना पहला शोध प्रकाशित किया जिसमें लिखा था कि प्रकाश जू किसी छेद, कपड़े के कोने से गुजरती है तो कोने पर कई रंग की तरंगे सी बन जाती है जिसे विवितर्न कहते हैं। रमन ने कलकता में एकाउटैंट मैनेजर की नौकरी भी की थी। उसके बाद उन्होंने वैग्यानिक प्रीकश्न के लिए भारतीय परिष्द में अध्ययन किया। उन्होंने 21 फरवरी, 1928 को रमन प्रभाव को प्रकाशित किया जिसमें तरंग की लंबाई में अंतर हर पदार्थ के अनुसार अलग अलग होता है।

सम्मान- रमन प्रभाव के लिए उन्हें 1921 में भौतिकी नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था। 1930 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। हर साल 21 फरवरी को राष्ट्रूय विग्यान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मृत्यु- अपनी प्रयोगशाला में वह कार्य करते रहे और अंत में 21 नवंबर 1970 को उनकी मृत्यु हो गई थी।

सी.वी. रमन पहले भारतीय वैग्यानिक थे जिन्हें नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने विग्यान की प्रगति के मार्ग में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्हें पहले से ही आश्वासन था कि नोबल आवार्ड उन्हें ही मिलेगा इसलिए उन्होंने पहले ही स्वीडन की टिकट करवा ली थी। इनका मानना था कि अगर महिलाएँ विग्यान के क्षेत्र में जाए तो वह पुरूषों से बेहतर कर सकती है। सी.वी. रमन बहुत ही मेहनती थे और उन्हें बचपन से ही भौतिक विग्यान में रूची थी। इन्होंने दो महत्वपूर्ण प्रयोग कि रमन स्कैटरिंग और रमन ईफैक्ट जिनके लिए इन्हें हमेशा याद किया जाऐगा।

( Essay – 2 ) Long Essay on CV Raman in Hindi ( 500 words )

सर सी० वी० रामन एक महान वैज्ञानिक थे। वे पहले भारतीय और वैज्ञानिक थे जिन्हें विज्ञान में सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें अपने एक महत्वपूर्ण आविष्कार ‘रामन प्रभाव’ के लिए दिया गया था। रामन ने कठोर परिश्रम और सतत् प्रयोगों से पाया कि प्रकाश किरणों को नए पदार्थ में से होकर गुजारने पर स्पेक्ट्रम में कुछ नई रेखाएँ प्राप्त होती हैं। यही रामन प्रभाव का आधार था। उनका यह अन्वेषण और आविष्कार पदार्थों की आणविक संरचना समझने में बड़ा सहायक हुआ। इसकी सहायता से अब तक हजारों पदार्थों की सरंचना को समझा जा सका है। लेसर के आविष्कार ने रामन प्रभाव को महत्त्व और भी बढ़ा दिया है।

सर रामन ने चुम्बक और संगीत के क्षेत्र में भी अनेक अनुसंधान किये। उनका पुरा नाम चन्द्रशेखर वेंकट रामन था। उनका जन्म त्रिचनापल्ली स्थान पर 7 नवम्बर सन् 1888 को हुआ था। रामन बचपन से ही पढ़ने-लिखने में गहरी रुचि लेते थे। इनके पिता भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक थे। रामन को अपने पिता से बहुत प्रेरणा और सहायता मिली। रामन ने सन् 1904 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, चेनई से बी०ए० की डिग्री प्राप्त की और फिर 1907 में भौतिक विज्ञान में एम०ए० की। वे उच्च शिक्षा के लिए बी०ए० के पश्चात् विदेश जाना चाहते थे, परन्तु स्वास्थ्य अच्छा न होने के कारण ऐसा नहीं कर सके। अपने विद्यार्थी जीवन में भी रामन ने भौतिक विज्ञान के कई नये और प्रशंसनीय कार्य किये। प्रकाश विवर्तन पर उनका पहला शोधपत्र सन् 1906 में प्रकाश में आया।

सन् 1907 में उन्होंने डिप्टी एकाउन्टेंट के पद पर कलकत्ता में नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए भी वे वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान में लगे रहे। वे वहां की विज्ञान प्रयोगशाला में अपना सारा फालतू समय लगाते थे। वहां वे भौतिकविद् आशुतोष मुकर्जी के संपर्क में आये। उनसे रामन को बड़ी प्रेरणा और मार्गदर्शन मिला। सन् 1917 में रामन सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर बन गये। इसका प्रमुख कारण उनकी विज्ञान में गहरी रुचि थी। सन् 1921 में वे यूरोप की यात्रा पर गये। वहां से लौटकर वे अपने प्रयोगों में पुनः लग गये और कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले।

सन् 1924 में रामन को रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन का सदस्य बनाया गया। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सम्मान था। सर रामन ने सन् 1943 में बैंगलोर के समीप रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। इसी संस्थान में वे जीवन के अंत तक अपने प्रयोग करते रहे और अध्ययन रत रहे। सन् 1970 में इस महान भारतीय और वैज्ञानिक का देहांत हो गया। हम सब को सर रामन के कार्यों और उपलब्धियों पर बड़ा गर्व है। वे एक महान भौतिकशात्री और वैज्ञानिक के साथ-साथ महामानव भी थे। अभिमान और लोभ उन्हें छू भी नहीं पाया था। वे सतत् सत्य की खोज में लगे रहे और उसे प्राप्त किया। सभी भारतीय वैज्ञानिकों, युवा लोगों और विद्यार्थियों को उन के पद-चिन्हों पर चलने का प्रयत्न करना चाहिये। सन् 1958 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार और इससे पूर्व 1954 में भारत रत्न प्रदान किया गया था।

#Chandrasekhara Venkata Raman / CV Raman Essay in Hindi

APJ Abdul Kalam Essay in Hindi- ए.पी.जे. अब्दुल कलाम पर निबंध

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Sir C. V. Raman कौन थे? जीवनी, योगदान, उपलब्धियाँ, पुरस्कार

सर सी वी रमन (Sir C V Raman) पूरा नाम सर चंद्रशेखर वेंकट रमन (Sir Chandrasekhara Venkata Raman), एक भारतीय भौतिक विज्ञानी थे, जिन्होंने प्रकाश के बिखरने पर एक नई घटना की खोज की। जिसे ‘ रमन इफेक्ट (Raman’s effect) ‘ या ‘ रमन स्कैटरिंग ( Raman Scattering )’ नाम से जाना गया। इस उपलब्धि के लिए उन्होंने वर्ष 1930 में, भौतिकी विषय में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) जीता था। एक वैज्ञानिक के तौर पर सर सीवी रमन का देश के लिए अतुलनीय योगदान रहा है। एक चर्चा उनके जीवन, योगदान, उपलब्धियों और पुरस्कारों के विषय में, इस लेख के माध्यम से।

हर साल 28 फरवरी के दिन, Sir C. V. Raman के योगदान को चिन्हित करने के लिए, भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस ( National Science Day ) मनाया जाता है।

Sir C. V. Raman का जीवन परिचय –

सी वी रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली (मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश राज) में एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम पार्वती अम्मल और पिता का नाम चंद्रशेखर रामनाथन अय्यर, जो स्थानीय हाई स्कूल में एक शिक्षक थे। अपने आठ भाई-बहनों में वह दूसरे नंबर पर आते थे। वर्ष 1892 में, उनका परिवार विशाखापत्तनम (तब विजागपट्टम या विजाग) चला गया। आंध्र प्रदेश में उनके पिता को श्रीमती ए.वी. नरसिम्हा राव कॉलेज में भौतिकी के संकाय में नियुक्त किया गया था। उन्होंने विश्वविद्यालय में भौतिकी, अंकगणित और भौतिक भूगोल पढ़ाया। अपने पिता के विपरीत, रमन, शारीरिक रूप से शक्तिशाली नहीं थे, लेकिन वे एक शानदार विचारक थे। रमन ने एफसीएस (FCS) परीक्षा उत्तीर्ण की थी और उन्हें आधिकारिक पद मिलने वाला था। उससे पहले ही उन्होंने लोकसुंदरी अम्मल से विवाह कर लिया।

सीवी रमन की शिक्षा (CV Raman Education)

C. V. Raman ने मैट्रिक परीक्षा शीर्ष अंक के साथ प्रथम स्थान प्राप्त कर उत्तीर्ण किया था। इसके बाद उन्होंने इंटरमीडिएट परीक्षा की तैयारी के लिए एवी.एन. कॉलेज में दाखिला लिया। उन्होंने स्कूल में उत्कृष्ट व असाधारण क्षमता के शुरुआती लक्षण प्रदर्शित किए और अपने शिक्षकों से प्रशंसा के साथ-साथ कई पुरस्कार व छात्रवृत्ति प्राप्त की। 1903 में, उन्हें चेन्नई (तब मद्रास) में प्रेसीडेंसी कॉलेज में बीए की डिग्री में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति मिली, जहां वह सबसे कम उम्र के छात्र थे। जब रमन कॉलेज में थे, तब उनके अधिकांश प्रोफेसर यूरोपीय थे। इस अवधि के दौरान रमन की भौतिकी के साथ-साथ अंग्रेजी के लिए भी रुचि विकसित हुई। रमन ने 1904 में विश्वविद्यालय की बीए परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और अंग्रेजी व भौतिकी में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। रमन के शिक्षकों ने उन्हें इंग्लैंड में अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन रमन ने जनवरी 1907 में, प्रेसीडेंसी कॉलेज में ही भौतिकी में अपनी मास्टर की परीक्षा दी और शीर्ष अंक प्राप्त कर कई पुरस्कार अर्जित किए।

एफसीएस (FCS) परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1907 के मध्य में, रमन को कलकत्ता (आधुनिक कोलकाता) में सहायक महालेखाकार नियुक्त किया गया। उस समय उनका वेतन, सभी भत्तों सहित, 400 रु. था। रमन ने कलकत्ता के जीवंत और वैज्ञानिक वातावरण का लाभ उठाया, जिससे उन्हें अपनी वैज्ञानिक रचनात्मकता को पूरी तरह से स्पष्ट करने की अनुमति मिली। उसदौर में कलकत्ता को पूर्व का प्रमुख विज्ञान शहर माना जाता था। रमन को कलकत्ता के अलावा नागपुर और रंगून भी भेजा गया। रमन ने 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी में नव स्थापित पालित प्रोफेसरशिप लेने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी। वहीं पर उन्होंने IACS से अपना अध्ययन जारी रखा, जहाँ उन्हें मानद सचिव का पद मिला। ‘IACS – (Indian Association for the Cultivation of Science)’ जो वर्ष 1876 को भारत में स्थापित पहला शोध संस्थान था। रमन ने अपने करियर में इस अवधि को अपने “स्वर्ण युग” के रूप में संदर्भित किया।

1929 में, सर सी वी रमन (Sir C V Raman) ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 16वें सत्र की अध्यक्षता की। रमन को 1933 में बैंगलोर में नव स्थापित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) का निदेशक नियुक्त किया गया था। IISc की स्थापना 1909 में मूल शोध करने और विज्ञान और इंजीनियरिंग शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। रमन की नियुक्ति से पहले, IISc के सभी निदेशक और इसके अधिकांश संकाय, ब्रिटिश थे। वह अगले दो वर्षों तक भौतिकी के प्रोफेसर रहे। स्वतंत्र भारत की नई सरकार ने उन्हें 1947 में देश का पहला राष्ट्रीय प्रोफेसर नामित किया गया। 1948 में, वे भारतीय विज्ञान संस्थान से सेवानिवृत्त हुए और एक साल बाद रमन रिसर्च बैंगलोर, कर्नाटक की स्थापना की, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक निदेशक के रूप में कार्य किया। 12 नवंबर 1970, के दिन बैंगलोर में उनकी मृत्यु हो गई।

सर सी वी रमन का योगदान

प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव की खोज पर उनके शोध के लिए रमन को 1930 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एक फोटॉन के बेलोचदार प्रकीर्णन को “रमन प्रकीर्णन (Raman’s effect)” या “रमन प्रभाव ( Raman Scattering )” के रूप में जाना जाता है। यह घटना रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (spectroscopy) का आधार है। इस प्रभाव से ठोस, तरल और गैसों की रचनाएँ सभी लाभान्वित हो सकती हैं। इसका उपयोग रोगों के निदान और निर्माण प्रक्रियाओं को ट्रैक करने के लिए भी किया जा सकता है।

रमन ने प्रकाश प्रकीर्णन पर अपने नोबेल पुरस्कार विजेता काम के अलावा संगीत वाद्ययंत्रों की ध्वनिकी पर भी काम किया। सुपरपोजिशन वेलोसिटी (superposition velocity) के आधार पर, उन्होंने झुके हुए तारों के अनुप्रस्थ कंपन का एक सिद्धांत विकसित किया। हेल्महोल्ट्ज़ (Helmholtz) की विधि की तुलना में, यह झुके हुए स्ट्रिंग(string) कंपन का वर्णन करने का एक अच्छा काम करता है। वह तबला और मृदंगम जैसी भारतीय ड्रम ध्वनियों के हार्मोनिक सार का पता लगाने वाले पहले व्यक्ति भी थे।

एक लेखक के रूप में सी वी रमन का योगदान

सर सी वी रमन (Sir C V Raman) की खोजों ने उन्हें पुस्तकों का एक सेट लिखने के लिए प्रेरित किया जो नीचे सूचीबद्ध हैं-

  • वॉल्यूम 1 (Vol. 1) – प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light)
  • वॉल्यूम 2 (Vol. 2) – ध्वनिक (Acoustic)
  • वॉल्यूम 3 (Vol. 3) – ऑप्टिका (Optica)
  • वॉल्यूम 4 (Vol. 4) – खनिज और हीरे के प्रकाशिकी (Optics of Minerals and Diamond)
  • वॉल्यूम 5 (Vol. 5) – क्रिस्टल के भौतिकी (Physics of Crystals)
  • वॉल्यूम 6 (Vol. 6) – पुष्प रंग और दृश्य धारणा (Floral Colours and Visual Perception)

सी वी रमन की उपलब्धियाँ और पुरस्कार

सर सी वी रमन (Sir C V Raman) को कई मानद डॉक्टरेट और वैज्ञानिक समाजों में सदस्यता प्रदान की गई। वह म्यूनिख में ड्यूश अकादमी, ज्यूरिख में स्विस फिजिकल सोसाइटी, ग्लासगो में रॉयल फिलॉसॉफिकल सोसाइटी, रॉयल आयरिश अकादमी, हंगेरियन एकेडमी ऑफ साइंसेज, सोवियत संघ के विज्ञान अकादमी, ऑप्टिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका के सदस्य रहे थे। इसके आलावा मिनरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका, रोमानियाई एकेडमी ऑफ साइंसेज, कैटगट एकॉस्टिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका और चेकोस्लोवाक एकेडमी ऑफ साइंसेज। उन्हें 1924 में रॉयल सोसाइटी का फेलो चुना गया। हालांकि, उन्होंने 1968 में अज्ञात कारणों से फेलोशिप से इस्तीफा दे दिया। 1929 में, वह भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 16वें अधिवेशन के अध्यक्ष थे। 1933 में, वह भारतीय विज्ञान अकादमी के पहले अध्यक्ष थे। 1961 में, वे परमधर्मपीठीय विज्ञान अकादमी के लिए चुने गए।

Sir C V Raman अपने स्कूल के समय से ही प्रतिभा के धनी थे जिसके बल पर उन्होंने अपने जीवन में कई पुरस्कार जीते। जिनमें से एक मुख्य नोबेल पुरस्कार ( Nobel Prize ) भी था। उनके पुरस्कारों की एक लंबी कतार है-

  • 1912 में कर्जन अनुसंधान पुरस्कार (Curzon Research Award) जीता।
  • भारतीय वित्त सेवा के लिए काम करते हुए, उन्होंने 1913 में वुडबर्न रिसर्च मेडल (Woodburn Research Medal) प्राप्त किया।
  • 1928 में उन्हें, रोम में एकेडेमिया नाज़ियोनेल डेले साइनेज़ ने मैटेउची मेडल (Matteucci Medal) से सम्मानित किया।
  • 1930 में उन्हें, नाइट (Knight) की उपाधि, रॉयल सोसाइटी के ह्यूजेस मेडल (Hughes Medal) और “प्रकाश के बिखरने पर शोध और उनके नाम पर घटना की खोज” के लिए भौतिकी विषय में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • 1941 में उन्हें, फिलाडेल्फिया (Philadelphia) में फ्रैंकलिन इंस्टीट्यूट ने फ्रैंकलिन मेडल (Franklin Medal) से सम्मानित किया था।
  • 1954 में (राजनेता और भारत के पूर्व गवर्नर-जनरल सी. राजगोपालाचारी और दार्शनिक सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के साथ) उन्हें भारत रत्न पुरस्कार मिला था।
  • 1957 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार मिला।

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जन्म : 7 नवम्बर, 1888, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु

पद/कार्य: रमन प्रभाव की खोज, भौतिक वैज्ञानिक

उपलब्धियां : प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार

प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले भौतिक वैज्ञानिक सर सीवी रमन आधुनिक भारत के एक महान वैज्ञानिक थे। वेंकट आधुनिक युग के पहले ऐसे भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने विज्ञान के संसार में  भारत को बहुत ख्याति दिलाई। हम सब प्राचीन भारत में विज्ञान की उपलब्धियाँ जैसे – शून्य और दशमलव प्रणाली की खोज, पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने, तथा आयुर्वेद के फ़ारमूले इत्यादि के बारे में जानते हैं मगर उस समय पूर्णरूप से प्रयोगात्मक लिहाज़ से कोई विशेष प्रगति नहीं हुई थी। भारत सरकार ने विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी उन्हें प्रतिष्ठित ‘लेनिन शांति पुरस्कार’ से उन्हें सम्मानित किया। भारत में विज्ञान को नई ऊंचाइयां प्रदान करने में उनका बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने स्वाधीन भारत में विज्ञान के अध्ययन और शोध को जबरदस्त प्रोत्साहन दिया।

प्रारंभिक जीवन

चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रशेखर अय्यर व माता का नाम पार्वती अम्मा था। वो अपने माता-पिता के दूसरे नंबर की संतान थे। उनके पिता चंद्रशेखर अय्यर ए वी नरसिम्हाराव महाविद्यालय, विशाखापत्तनम, (आधुनिक आंध्र प्रदेश) में भौतिक विज्ञान और गणित के प्रवक्ता थे। उनके पिता को पढ़ने का बहुत शौक़ था इसलिए उन्होंने अपने घर में ही एक छोटी-सी लाइब्रेरी बना रखा थी। इसी कारण रमन का विज्ञान और अंग्रेज़ी साहित्य की पुस्तकों से परिचय बहुत छोटी उम्र में ही हो गया था। संगीत के प्रति उनका लगाव भी छोटी आयु से आरम्भ हुआ और आगे चलकर उनकी वैज्ञानिक खोजों का विषय बना। उनके पिता एक कुशल वीणा वादक थे जिन्हें वो घंटों वीणा बजाते हुए देखते रहते थे। इस प्रकार बालक रमन को प्रारंभ से ही बेहतर शैक्षिक वातावरण प्राप्त हुआ।

छोटी उम्र में ही रमन विशाखापत्तनम चले गए। वहां उन्होंने सेंट अलोय्सिअस एंग्लो-इंडियन हाई स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। रमन अपनी कक्षा के बहुत ही प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे और उन्हें समय-समय पर पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ मिलती रहीं। उन्होंने अपनी मैट्रिकुलेशन की परीक्षा 11 साल में उतीर्ण की और एफ ए की परीक्षा (आज के +2/इंटरमीडिएट के समकक्ष) मात्र 13 साल के उम्र में छात्रवृत्ति के साथ पास की। वर्ष 1902 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास में दाखिला लिया। उनके पिता यहाँ भौतिक विज्ञान और गणित के प्रवक्ता के तौर पर कार्यरत थे। वर्ष 1904 में उन्होंने बी ए की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रथम स्थान के साथ उन्होंने भौतिक विज्ञान में ‘गोल्ड मैडल’ प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’ से ही एम. ए. में प्रवेश लिया और मुख्य विषय के रूप में भौतिक शास्त्र को चुना। एम. ए. के दौरान रमन कक्षा में कम ही जाते और कॉलेज की प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग और खोजें करते रहते। उनके प्रोफेसर उनकी प्रतिभा को भली-भांति समझते थे इसलिए उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक पढ़ने देते थे।  प्रोफ़ेसर आर. एल. जॉन्स ने उन्हें अपने शोध और प्रयोगों के परिणामों को ‘शोध पेपर’ के रूप में लिखकर लन्दन से प्रकाशित होने वाली ‘फ़िलॉसफ़िकल पत्रिका’ को भेजने की सलाह दी। उनका यह शोध पेपर सन् 1906 में पत्रिका के नवम्बर अंक में प्रकाशित हुआ। उस समय वह केवल 18 वर्ष के थे। वर्ष 1907 में उन्होंने उच्च विशिष्टता के साथ एम ए की परीक्षा उतीर्ण कर ली।

रमन के अध्यापकों ने उनके पिता को सलाह दी कि वह उनको उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेंज दें परन्तु खराब स्वास्थ्य के कारण वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश नहीं जा सके। अब उनके पास कोई विकल्प नहीं था इसलिए वो ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित एक प्रतियोगी परीक्षा में बैठे। इस परीक्षा में रमन ने प्रथम स्थान प्राप्त किया और सरकार के वित्तीय विभाग में अफ़सर नियुक्त हो गये। रमन कोलकाता में सहायक महालेखापाल के पद पर नियुक्त हुए और अपने घर में ही एक छोटी-सी प्रयोगशाला बनाई। जो कुछ भी उन्हें दिलचस्प लगता उसके वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसन्धान में वह लग जाते। कोलकाता में उन्होंने  ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस’ के प्रयोगशाला में अपना अनुसन्धान जारी रखा। हर सुबह वो दफ्तर जाने से पहले परिषद की प्रयोगशाला में पहुँच जाते और दफ्तर के बाद शाम पाँच बजे फिर प्रयोगशाला पहुँच जाते और रात दस बजे तक वहाँ काम करते। वो रविवार को भी सारा दिन प्रयोगशाला में गुजारते और अपने प्रयोगों में व्यस्त रहते।

रमन ने वर्ष 1917 में सरकारी नौकरी छोड़ दी और ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस’ के अंतर्गत भौतिक शास्त्र में पालित चेयर स्वीकार कर ली। सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई।

‘ऑप्टिकस’ के क्षेत्र में उनके योगदान के लिये वर्ष 1924 में रमन को लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया और यह किसी भी वैज्ञानिक के लिये बहुत सम्मान की बात थी।

‘रमन इफ़ेक्ट’ की खोज 28 फरवरी 1928 को हुई। रमन ने इसकी घोषणा अगले ही दिन विदेशी प्रेस में कर दी। प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ ने उसे प्रकाशित किया। उन्होंने 16 मार्च, 1928 को अपनी नयी खोज के ऊपर बैंगलोर स्थित साउथ इंडियन साइन्स एसोसिएशन में भाषण दिया। इसके बाद धीरे-धीरे विश्व की सभी प्रयोगशालाओं में ‘रमन इफेक्ट’ पर अन्वेषण होने लगा।

वेंकट रमन ने वर्ष 1929 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता भी की। वर्ष 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और रमण प्रभाव की खोज के लिए उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वर्ष 1934 में रमन को बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान का निदेशक बनाया गया। उन्होंने स्टिल की स्पेक्ट्रम प्रकृति, स्टिल डाइनेमिक्स के बुनियादी मुद्दे, हीरे की संरचना और गुणों और अनेक रंगदीप्त पदार्थो के प्रकाशीय आचरण पर भी शोध किया। उन्होंने ही पहली बार तबले और मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) की प्रकृति की खोज की थी। वर्ष 1948 में वो इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (आईआईएस) से सेवानिवृत्त हुए। इसके पश्चात उन्होंने बेंगलुरू में रमन रिसर्च इंस्टीटयूट की स्थापना की।

पुरस्कार और सम्मान

चंद्रशेखर वेंकट रमन को विज्ञान के क्षेत्र में योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

  • वर्ष 1924 में रमन को लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया
  • ‘रमन प्रभाव’ की खोज 28 फ़रवरी 1928 को हुई थी। इस महान खोज की याद में 28 फ़रवरी का दिन भारतमें हर वर्ष ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है
  • वर्ष 1929 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता की
  • वर्ष 1929 में नाइटहुड दिया गया
  • वर्ष 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और रमण प्रभाव की खोज के लिए उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला
  • वर्ष 1954 में भारत रत्न से सम्मानित
  • वर्ष 1957 में लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया

रमन का विवाह 6 मई 1907 को लोकसुन्दरी अम्मल से हुआ। उनके दो पुत्र थे – चंद्रशेखर और राधाकृष्णन। उनका स्वर्गवास 21 नवम्बर 1970 को बैंगलोर में हो गया। उस समय उनकी आयु 82 साल थी।

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वेंकट रामन का जन्म एवं शिक्षा C V Raman Education

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सीवी रमन का जीवन परिचय और महत्वपूर्ण तथ्य | CV Raman Biography and Facts in Hindi

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भारत में एक से बढ़कर एक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के लोग पैदा हुए हैं जिन्होंने अपने दार्शनिक विचारों, खोजों और अविष्कारों से पूरी दुनिया को प्रभावित किया।

भारत का विज्ञान प्राचीन काल में ही नहीं बल्कि आधुनिक काल में भी खोजो और अविष्कारों से समृद्ध है। आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों में भारत के महान भौतिकशास्त्री वैज्ञानिक सी.वी. रमन का नाम भी शामिल है।

भौतिक विज्ञान में प्रकाश के प्रकीर्णन से संबंधित “ रमन प्रभाव (Raman Effect)” सीवी रमन जी की ही देन है, जिन्होंने इस प्रभाव (Effect) की खोज की थी। चूंकि प्रकाश के प्रकीर्णन में इस प्रभाव की खोज भारतीय वैज्ञानिक सीवी रमन द्वारा की गई थी इसलिए इस प्रभाव का नाम “रमन प्रभाव” रखा गया और आज पूरी दुनिया इसे “रमन इफेक्ट” के नाम से जानती है।

सी वी रमन जी के इसी अविष्कार के कारण साल 1930 में उन्हें भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के सर्वोच्च सम्मान पुरस्कार

“नोबेल पुरस्कार” से सम्मानित किया गया। चलिए आज इस लेख के जरिए हम आप को भारत के इस महान भौतिक शास्त्री वैज्ञानिक सीवी रमन का जीवन परिचय और महत्वपूर्ण तथ्य (CV Raman Biography and Facts In Hindi) बारे में बताते हैं।

  • राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2023 पर भाषण व निबंध
  • विज्ञान एक वरदान या अभिशाप पर निबंध

विषय–सूची

सीवी रमन कौन थे? (Who was CV Raman Biography in Hindi)

“सी वी रमन” एक भारतीय वैज्ञानिक और भौतिक शास्त्री थे जिन्होंने “रमन प्रभाव” की खोज की थी। उनका पूरा नाम “चंद्रशेखर वेंकटरमन” था।

सीवी रमन का जीवन परिचय-Who-was-CV-Raman-Biography-Facts-in-Hindi

सीवी रमन का जीवन परिचय, सक्षिप्त परिचय (CV Raman Biography in hindi)

पूरा नाम (Full Name)
प्रसिद्ध नामसी वी रमन
जन्म स्थान (Birth Place)तिरुच्चिराप्पल्ली
जन्म (Date of Birth)7 नवंबर 1888
उम्र(Age)82 वर्ष
निधन21 नवंबर 1970
धर्म (religion)हिंदू
जाति (Cast)तमिल ब्राह्मण
राष्ट्रीयता (Nationality)भारतीय
कॉलेजमद्रास विश्वविद्यालय
शैक्षिक योग्यतामद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से बैचलर्स
भौतिक विज्ञान में मास्टर डिग्री
पुरस्कारभौतिकी में नोबल पुरस्कार (1930)
भारतरत्न (1954)
लेनिन शांति पुरस्कार (1957)
पिता (Father Name)चन्द्रशेखर अय्यर
माता (Mother Name)पार्वती अम्मल
भाई (Brother Name)चंद्रशेखर सुब्रह्मण्य अय्यर
वैवाहिक स्थितिविवाहित
पत्नी का नाम (Wife Name)लोकसुन्दरी अम्मला
बच्चेंचन्द्रशेखर रामन् , वेंकटरमन राधाकृष्णन

चंद्रशेखर वेंकटरमन का शुरुआती जीवन (Chandrasekhar Venkataraman Biography in Hindi)

रमन प्रभाव की खोज करने वाले चंद्रशेखर वेंकटरमन 7 नवंबर 1888 को दक्षिण भारत के तमिलनाडु में स्थित तिरुचिरापल्ली में पैदा हुए थे।

इनके पिता जी का नाम “चंद्रशेखरन रामनाथन अय्यर” था जो गणित और भौतिक विज्ञान (Physics) के शिक्षक थे। इनकी माता का नाम “पार्वती अम्मल” था।

बचपन में इनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। लेकिन जब रमन चार साल के हुए तो इनके पिता की नौकरी लेक्चरर के पद पर लग गई और उनका पूरा परिवार विशाखापट्टनम चला गया।

पिता की नौकरी लगने के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर गई। वह बचपन से ही प्रतिभाशाली थे उन्हें विज्ञान के अध्ययन में बहुत रुचि थी।

भौतिक विज्ञान को लेकर रमन की जिज्ञासा दिन ब दिन बढ़ती गई और उनकी इसी जिज्ञासा ने ही उन्हें एक वैज्ञानिक बना दिया। चंद्रशेखर वेंकटरमन की शिक्षा में उनके पिताजी का बहुत बड़ा योगदान था।

जैसे-जैसे रमन बड़े होते गए उन्होंने पिताजी की किताबें पढ़ना शुरू कर दिया और विज्ञान के सिद्धांतों को बखूबी समझने लगे।

ऐसा भी कहा जाता है कि चंद्रशेखर वेंकटरमन आजाद भारत के पहले राष्ट्रीय प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त किए गए थे।

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सीवी रमन की शिक्षा–

चंद्रशेखर वेंकटरमन ने महज 11 साल की उम्र हाई स्कूल की परीक्षा पास की उसके बाद महज 13 साल की उम्र में इंटरमीडिएट क्वालीफाई हो गए।

महज 14 साल की उम्र में रमन ने मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से बैचलर्स की पढ़ाई शुरू की। साल 1903 में स्नातक की पढ़ाई के लिए दाखिला लेने के बाद चंद्रशेखर वेंकटरमन ने विज्ञान का गहन अध्ययन किया। इस दौरान साल 1954 में उन्होंने भौतिक विज्ञान में स्वर्ण पदक भी जीता और अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की।

कहा जाता है कि रमन के प्रोफेसर ने उन्हें आगे की पढ़ाई और मास्टर्स डिग्री लेने के लिए ब्रिटेन जाने का सुझाव दिया था लेकिन नाजुक स्वास्थ्य के कारण चंद्रशेखर वेंकटरमन ने भारत में ही अपनी उच्चस्तरीय शिक्षा पूरी करने का निर्णय लिया।

परास्नातक की पढ़ाई करने के लिए चंद्रशेखर वेंकटरमन ने प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और मद्रास यूनिवर्सिटी से भौतिक विज्ञान में प्रथम आए।

कहा जाता है कि मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद वेंकटरमन एक अकाउंटेंट के तौर पर काम करने लगे थे। साल 1917 में सीवी रमन कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बने तथा प्रकाश के प्रकीर्णन पर गहन अध्ययन कर शोध पत्र भी प्रकाशित किए।

चंद्रशेखर वेंकटरमन का निजी परिवार –

सीवी रमन के माता पिता के बारे में हमने ऊपर जानकारियां साझा की। सीवी रमन के माता-पिता की आठ संताने थी, जिनमें से वह दूसरे स्थान पर थे।

चंद्रशेखर वेंकटरमन की पत्नी का नाम लोकसुंदरी अम्मल था जिनके साथ इनका विवाह 6 मई 1960 को संपन्न हुआ था। इस दंपति के 2 पुत्र थे जिनका नाम चंद्रशेखर और राधाकृष्णन था।

सीवी रमन का करियर –

चंद्रशेखर वेंकटरमन बेहद प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के इंसान थे जिन्होंने अपने जीवन में बहुत सी उपलब्धियां प्राप्त की। उनकी इन्हीं उपलब्धियों में विश्व का सर्वोच्च सम्मान पुरस्कार नोबेल पुरस्कार भी शामिल है।

ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर चंद्रशेखर वेंकटरमन की नियुक्ति वित्त विभाग में अकाउंटेंट के पद पर हो गई।

सीवी रमन की नियुक्ति कोलकाता में महालेखाकार के पद पर हुई थी। कोलकाता में रहते हुए उन्होंने अपनी शोध प्रक्रिया जारी रखी और Indian Association for Cultivation of Science (IACS) की प्रयोगशाला में सतत शोध करते रहे।

कुछ समय तक रमन की शोध प्रक्रिया उनकी सरकारी नौकरी के साथ चलती रही लेकिन बाद में जब उन्हें यह एहसास हुआ कि वह अपनी नौकरी के कारण अपनी शोध प्रक्रिया को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं तो उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी।

सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद वेंकटरमन कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त हो गए। प्रकाशिकी के क्षेत्र में अपने शोध कार्यों के लिए रमन को काफी सम्मान मिला और साल 1924 में उन्हें लंदन की रॉयल सोसाइटी का सदस्य बना लिया गया।

28 फरवरी 1928 का दिन चंद्रशेखर वेंकटरमन के जीवन का वह ऐतिहासिक दिन था जब उन्होंने अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि रमन प्रभाव की खोज की।

29 फरवरी 1928 को चंद्रशेखर वेंकटरमन ने अपने इस शोध को विदेशी पत्रिका नेचर में प्रकाशित करवाया। 16 मार्च 1928 को चंद्र शेखर वेंकटरमन ने दक्षिण भारतीय विज्ञान संघ बेंगलुरु में अपने शोध से संबंधित एक जोरदार भाषण भी प्रस्तुत किया।

धीरे-धीरे रमन प्रभाव पर शोध शुरू हो गई और पूरा विश्व वेंकटरमन का लोहा मानने लगा। बाद में 28 February पर रमन प्रभाव की खोज दिवस को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में भी घोषित कर दिया गया।

चंद्रशेखर वेंकटरमन की उपलब्धियां और पुरस्कार–

  • विज्ञान के प्रकाशिकी यानी ऑप्टिक्स के क्षेत्र में बेहतरीन शोध कार्यो के लिए इन्हें साल 1924 में लंदन रॉयल सोसाइटी का सदस्य बनाया गया।
  • चंद्रशेखर वेंकटरमन के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि रमन प्रभाव की खोज थी जिसके लिए 28 फरवरी का खास दिन आज भी भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रुप में मनाया जाता है।
  • साल 1930 में चंद्रशेखर वेंकटरमन को भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में प्रकाश के प्रकीर्णन से संबंधित शोध और रमन प्रभाव की खोज के लिए विश्व का सर्वोच्च सम्मानित पुरस्कार नोबेल पुरस्कार दिया गया।
  • साल 1954 में भारत के इस महान व्यक्तित्व को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

तो दोस्तों आज के इस लेख के जरिए हमने आपको भारत के महान भौतिक शास्त्री वैज्ञानिक सीवी रमन का जीवन परिचय और महत्वपूर्ण तथ्य (CV Raman Biography and Facts in Hindi ) के बारे में बताया। उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपको बहुत पसंद आया होगा।

सीवी रमन ने क्या खोजा था?

भौतिक विज्ञान में प्रकाश के प्रकीर्णन से संबंधित खोज (फोटोन कणों के लचीले वितरण) की “ रमन प्रभाव खोजा था। जिसे बाद में उन्हीं के नाम पर इसका नाम रमन इफेक्ट रखा गया था उनकी इस खोज ने भारत को विश्व पटल पर गौरान्वित किया था।

सीवी रमन का जन्म कब और कहा हुआ था?

उनका जन्म तमिलनाडु के जिले तिरुच्चिराप्पल्ली में 7 नवंबर 1888 को एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

सीवी रमन का पूरा नाम क्या है?

चंद्रशेखर वेंकटरमन

सीवी रमन को नोबेल पुरस्कार कब मिला था?

महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर को भौतिकी विज्ञान में प्रकाश के प्रकीर्णन पर खोज के लिये 1930 में विश्व प्रसिद्ध नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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सीवी रमन पर निबंध भाषण जीवनी जीवन परिचय Short Essay On Cv Raman In Hindi

सीवी रमन पर निबंध भाषण जीवनी जीवन परिचय Short Essay On Cv Raman In Hindi : नमस्कार दोस्तों आज के निबंध में हम सीवी रमन के कार्य, योगदान, विज्ञान के क्षेत्र को उनकी देन, उनके जीवन चित्र पर आज हम प्रकाश डालेगे. चलिए हम भारतीय वैज्ञानिक के बारे में विस्तार से जानेगे.

सीवी रमन पर निबंध जीवन परिचय Short Essay On Cv Raman In Hindi

essay on cv raman in hindi

जन्म एवं बाल्यकाल Birth childhood – प्रो सी वी रमन का जन्म 7 नवम्बर 1888 को तमिलनाडु के त्रिचनापल्ली नगर के पास तिरुवालेक्कावाल गाँव में हुआ था.

उनके पिता चन्द्रशेखर अय्यर गणित तथा भौतिक शास्त्र के अध्यापक थे. माता श्रीमती पार्वती अम्माल संस्कृत की गम्भीर विदुषी थी. प्रो रमन पर दोनों की रुचियों का सम्मिलित प्रभाव पड़ा.

शिक्षा – 1902 में विशाखापत्तनम के हिन्दू कॉलेज से इंटर की पढ़ाई पूरी की और मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज में बीए की परीक्षा के लिए प्रवेश लिया. यहाँ रमन ने भौतिक शास्त्र को अपने अध्ययन का मूल विषय चुना.

1904 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्याल य से बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी के रूप में ऊतीर्ण की. उन्हें विश्वविद्यालय की ओर से अर्णी स्वर्ण पदक प्रदान किया गया 1907 ई में उन्होंने भौतिक शास्त्र से एम एससी की डिग्री प्राप्त की.

सरकारी सेवा – अपनी स्नातकोत्तर परीक्षा ऊतीर्ण करने के बाद वे कलकत्ता में होने वाली एक विशेष प्रतियोगिता परीक्षा में सम्मिलित हुए और प्रथम स्थान प्राप्त किया गया.

बाद में उन्हें डाक विभाग में डायरेक्टर जनरल के पद पर स्थानांतरित कर दिया गया. सरकारी सेवा में रहते हुए उनके विज्ञान प्रेम में बाधा पहुंची. अतः कुछ वर्ष के पश्चात अपने पद से त्याग पत्र दे दिया और अब पूरी तरह से वैज्ञानिक शोध की ओर उन्मुख हो गये.

सीवी रमन की वैज्ञानिक उपलब्धियाँ योगदान (CV Raman’s scientific achievements contribute)

प्रो सीवी रमन ने अपने अध्ययन काल में ही अपने अध्ययन के साथ साथ मौलिक चिंतन और लेखन के प्रति विशेष अनुराग प्रदर्शित किया गया और उन्होंने कुछ उत्कृष्ट वैज्ञानिक निबंध की रचना की.

18 वर्ष की अल्पायु में उनका एक शोध पत्र विश्व प्रसिद्ध पत्रिका फिलासफिकल मैगजीन में प्रकाशित हुआ. यह शोध पत्र ध्वनि विज्ञान के सम्बन्ध में उनकी मौलिक खोज पर था. उनके वैज्ञानिक योगदान को निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत स्पष्ट किया गया हैं.

कलकत्ता के साइंस कॉलेज में भौतिक शास्त्र के अध्यापक और शोधपत्र – सरकारी सेवा में रहते हुए प्रो रमन ने कलकत्ता की सभी प्रमुख वैज्ञानिक संस्थाओं से सम्बद्ध कर लिया था.

सरकारी सेवा से मुक्त होने के बाद उन्होंने कलकत्ता के साइंस कॉलेज में भौतिक शास्त्र के अध्यापक का पद स्वीकार किया.

यहाँ इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की स्थापना हो चुकी थी. इस काल में उनके अनेक महत्वपूर्ण शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में छपे और उनकी ख्याति अंतर्राष्ट्रीय हो गई.

ध्वनि विज्ञान – प्रारम्भ में शिक्षण काल से ही उनकी रूचि ध्वनि विज्ञान की तरफ रही. अनेक शोध लेखो से उनकी ख्याति विश्व व्यापी हो गई थी.

नवीन आविष्कारों के साथ साथ उन्होंने कतिपय पूर्व आविष्कारो में संशोधन भी किये. और उन सभी को विज्ञान जगत में सहर्ष स्वीकार कर लिया.

प्रकाश विज्ञान और रमन प्रभाव – 1921 में श्री रमन ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में ऑक्सफोर्ड लंदन की यात्रा की.

समुद्री यात्रा के दौरान समुद्र की अद्भुत ललिमा ने उनको अत्यधिक प्रभावित किया. समुद्र के नीला दिखने का कारण ब्रिटिश वैज्ञानिक लार्ड रेले ने एक प्रकार का प्रकीर्णन बताया था, जिससे रमन संतुष्ट नहीं थे.

कलकत्ता वापस आने पर उन्होंने इस पर शोध प्रारम्भ किया और गहन शोध के परिणामस्वरूप 31 मार्च 1928 को नेचर पत्रिका में एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक था ए न्यू टाइप ऑफ़ ए सैकंडरी रेडिएशन. इसको वर्तमान में रमन प्रभाव के रूप में जाना जाता हैं.

प्रो. रमन के आविष्कारों में रमन किरण की खोज अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. इस खोज का सम्बन्ध प्रकाश शास्त्र से हैं. रमन प्रभाव के द्वारा अणुओं और परमाणुओं की सरंचना का विवरण जाना जा सकता हैं.

इस शोध की उपयोगिता समझते हुए विज्ञान जगत ने उन्हें पर्याप्त सम्मान दिया तथा उपाधियों व पदकों से विभूषित किया. 1930 में उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया. इस पुरस्कार को पाने वाले वे पहले भारतीय वैज्ञानिक थे.

अन्य आविष्कार – प्रो रमन के आविष्कार स्वतंत्र मौलिक अस्तित्व हैं. उनके प्रमुख आविष्कार चुम्बकीय शोध एक्स किरण सामुद्रिक जल तथा रंग और ध्वनि से सम्बंधित हैं.

रमन ने 1960 में आँख की रेटिना से सम्बन्धित महत्वपूर्ण खोज की. उनके अनुसार रेटिना तीन रंग तत्वों से बनी हैं. इनसे देखने में मनुष्य को रंगों की अनुभूति होती हैं.

रमन के अनुसार रेटिना में तीन महत्वपूर्ण अंग होते हैं जिन्हें पिगमेंट कहते हैं. इन्ही से हमें रंगों की अनुभूति होती हैं. एक पिगमेंट जामुनी और गहरे लाल रंग की अनुभूति कराता हैं. दूसरा पिगमेंट हरे पीले रंग की और तीसरा लाल रंग का ज्ञान कराता हैं.

बंगलौर में भारतीय विज्ञान संस्थान के निदेशक के रूप में – 1933 में प्रो रमन टाटा के बंगलौर के भारतीय विज्ञान संस्थान के निदेशक के पद पर चले गये. यहाँ उन्होंने नये भौतिक विज्ञान की स्थापना की.

प्रो रमन जर्मनी के तजस्वी व्यक्तियों को भारत लाना चाहते थे, इसी उद्देश्य से जब एक विख्यात वैज्ञानिक मेक्स्बोर्न की नियुक्ति की पैरवी रमन ने की,

वे भारत आए किन्तु उन्हें शीघ्र भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया. प्रो रमन ने अपने मूल्यों की रक्षा के 1938 ई में संस्थान निदेशक का पद त्याग दिया.

इंडियन एकेडमी ऑफ़ साइंस के संस्थापक – 1934 ई में प्रो रमन ने इंडियन एकेडमी ऑफ़ साइंस की स्थापना की थी. वे इसके संस्थापक अध्यक्ष थे.

1948 ई में उन्होंने रमन शोध संस्थान की स्थापना की, जहाँ मौलिकता बनाए रखने के लिए शोधार्थियों को अंकुश रहित वातावरण प्रदान किया.

सम्मान – एक वैज्ञानिक के रूप में रमन को अनेक उपाधियों से सम्मानित किया गया. 1929 में ब्रिटिश सरकार ने रमन को सर की उपाधि प्रदान की,

उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 1930 में रोयल सोसायटी लंदन ने उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ स्वर्ण पदक ह्यूजेज प्रदान किया.

1930 में फ्री वर्ग विश्वविद्यालय ने रमन को पीएचडी तथा 1932 में पेरिस विश्वविद्यालय ने एस डी की उपाधि प्रदान की. इसी प्रकार बनारस, मद्रास, मुंबई, कोलकाता, ढाका विश्वविद्यालय ने डी एससी की उपाधि प्रदान की.

1941 में अमेरिका के फ्रेंकोलिन संस्थान फिलाडल्फिया ने रमन को फ्रेंकलिन पदक प्रदान किया. 1949 में भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय प्राध्यापक का सम्मान दिया. 1954 में भारत सरकार ने रमन को भारत रत्न से अलंकृत किया. 1957 में उन्हें लेनिन शान्ति पुरस्कार प्रदान किया गया.

उपसंहार – स्वाधीन भारत में उन्हें राष्ट्रीय प्रोफेसर बनाया गया और 1954 ई में उन्हें भारत रत्न का अंलकार प्रदान किया गया. 21 नवम्बर 1970 को इस महान वैज्ञानिक का देहांत हो गया.

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सीवी रमन का जीवन परिचय (CV Raman Biography Achievements)

CV Raman Biography in Hindi: भारत के महान वैज्ञानिक सर सीवी रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के त्रिचिनोपॉली में हुआ था और उनका निधन 21 नवंबर 1970 को बैंगलोर में हुआ था। सीवी रमन का पूरा नाम सर चंद्रशेखर वेंकट रमन है, वह एक भौतिक विज्ञानी थे।

सीवी रमन का जीवन परिचय (CV Raman Biography Achievements)

भारत में हर साल सर सीवी रमन की जन्म जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (National Science Day) मनाया जाता है। सर सीवी रमन ने 42 साल की उम्र में सन 1928 में एक ऐसी खोज की जिसे उनके नाम से जाना जाता है। वर्ष 1930 में इस खोज के लिए उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आइए जानते हैं भारत के महान वैज्ञानिक प्रोफेसर सीवी रमन की 134वीं जयंती पर उनके जीवन से जुड़ी खास बातें।

सीवी समन का प्रारंभिक जीवन

भारतीय भौतिक वैज्ञानिक सर सीवी रमन का पूरा नाम चंद्रशेखर वेंकट रमन है। सीवी रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को मद्रास प्रेसिडेंसी के तिरुचिरापल्ली के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सीवी रमन के पिता का नाम चंद्रशेखर रामनाथन अय्यर और माता का नाम पार्वती अम्मल है। सीवी रमन ने तिरुचिरापल्ली से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की और कक्षा 10वीं में टॉप किया। आगे की पढ़ाई की लिए उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज (मद्रास) में एडमिशन लिया।

भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार

वर्ष 1907 में उन्होंने भारत सरकार की वित्त विभाग में अकाउन्टेंट के रूप में कार्यभार संभाला। 1917 में वह कलकत्ता यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर बनें। वर्ष 1028 में उन्होंने रमन प्रभाव नामक अभूतपूर्व खोज की, जब एक माध्यम में एक किरण बिखरी हुई होती है तो प्रकाश की तरंग दैर्ध्य में परिवर्तन की घटना होती है। इस खोज के लिए 1930 में भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

Inspirational Thoughts of CV Raman For kids: छात्रों को प्रेरित करने वाले सर सीवी रमन के कोट्स

1929 में नाइट की उपाधि

चंद्रशेखर वेंकट रमन या सीवी रमन को 1929 में नाइट की उपाधि दी गई थी और 1933 में वे भौतिकी विभाग के प्रमुख के रूप में बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान में चले गए। 1947 में उन्हें वहां रमन अनुसंधान संस्थान का निदेशक नामित किया गया और 1961 में वे परमधर्मपीठीय विज्ञान अकादमी के सदस्य बनें। उन्होंने अपने समय में लगभग हर भारतीय शोध संस्थान के निर्माण में योगदान दिया। इंडियन जर्नल ऑफ फिजिक्स और इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज की स्थापना की और सैकड़ों छात्रों को प्रशिक्षित किया। वह सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के चाचा थे, जिन्होंने विलियम फाउलर के साथ 1983 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीता था।

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सीवी रमन की उपलब्धियां

1. रमन ने शुरुआत में प्रकाशिकी और ध्वनिकी के क्षेत्र में एक छात्र के रूप में काम किया।

2. उन्होंने 1907 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास विश्वविद्यालय से भौतिकी में मास्टर डिग्री पूरी की और भारत सरकार के वित्त विभाग में एक लेखाकार के रूप में काम किया। 1917 में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में शामिल हुए।

3. रमन भारतीय शास्त्रीय संगीत के शौकीन थे और तार वाले वाद्ययंत्रों की ध्वनिकी में गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने एक यांत्रिक वायलिन का निर्माण भी किया।

4. सर सीवी रमन की खोजों में से एक वायलिन की आवृत्ति प्रतिक्रिया और इसकी गुणवत्ता से संबंधित है। आवृत्ति प्रतिक्रिया वक्र को 'रमन वक्र' के रूप में जाना जाता है।

5. रमन ने कलकत्ता में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस (IACS) में अपना शोध जारी रखा, जबकि उन्होंने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में काम किया। बाद में वह एसोसिएशन में मानद विद्वान बन गए।

6. यह IACS में था कि रमन ने अभूतपूर्व प्रयोग किया जिसने अंततः उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार दिलाया। उन्होंने पाया कि जब प्रकाश एक पारदर्शी पदार्थ से एक आवृत्ति से होकर गुजरता है, तो प्रकाश का एक छोटा हिस्सा मूल दिशा में समकोण पर विक्षेपित हो जाता है। इनमें से कुछ प्रकाश आपतित प्रकाश की तुलना में भिन्न आवृत्तियों के भी प्रतीत होते हैं।

7. 1924 में रमन रॉयल सोसाइटी के फेलो बन गए और 1929 में उन्हें नाइट की उपाधि दी गई। रमन और सूरी भगवंतम ने 1932 में क्वांटम फोटॉन स्पिन की खोज की, जिसने आगे प्रकाश की क्वांटम प्रकृति को साबित किया।

8. सन् 1932 में रमन बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान में भौतिकी विभाग के प्रमुख के रूप में शामिल हुए। वह 1948 में बैंगलोर में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक बने और 21 नवंबर 1970 को अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे।

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सीवी रमन को रमन प्रभाव की खोज के लिए जाना जाता है, जो प्रकाश के प्रकीर्णन को प्रदर्शित करता है।

सीवी रमन को वर्ष 1930 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला।

सीवी रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को हुआ था।

सीवी रमन ने भारत के कोलकाता में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस में प्रकाश प्रकीर्णन पर अपना शोध किया।

प्रकाश की आवृत्ति की इकाई "रमन" का नाम सीवी रमन के सम्मान में रखा गया है।

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Read the history of CV Raman in Hindi along with CV Raman Biography in Hindi essay. सी. वी. रमन की जीवनी, जीवन परिचय, निबंध। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए सी. वी. रमन की जीवनी हिंदी में। About CV Raman in Hindi along with history in Hindi. Learn about CV Raman Information in Hindi in more than 400 words.

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Biography of CV Raman in Hindi

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लाखों वैज्ञानिक हुए हैं, जिनकी खोजों और आविष्कारों का लाभ पूरी दुनिया आज तक उठा रही है। ऐसे ही एक वैज्ञानिक थे, सर चंद्रशेखर वेंकटरामण। वे भारत के जाने-माने भौतिकशास्त्री थे, जिन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन पर काम किया। उन्हें अपने इस आविष्कार के लिए 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया। उन दिनों अधिकतर वैज्ञानिक विदेशों में पढ़ने जाया करते थे, क्योंकि वहाँ ज्यादा सुविधाएँ होती थीं, लेकिन सर वेंकटरामण की खास बात यह थी कि उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई भारत में रहकर ही पूरी की। वे पहले भारतीय विद्वान् थे, जिन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई भारत में की और नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया। उनका जन्म 7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ। उनके पिता का नाम चंद्रशेखर अय्यर और माँ का नाम पार्वती अम्मा था। उनके पिता गणित और विज्ञान के अध्यापक थे, इसलिए उन्हें अपने घर में पढ़ाई-लिखाई का बहुत अच्छा वातावरण मिला। 1904 में उन्होंने सनातक डिग्री हासिल की और भौतिकी में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। उन दिनों देश में वैज्ञानिकों के लिए आगे बढ़ने के ज्यादा अवसर नहीं होते थे, इसलिए सर वेंकटरामण ने वित्त विभाग में नौकरी कर ली। इसके बावजूद विज्ञान में उनकी रुचि बनी रही। यही वजह थी कि वे कार्यालय से आने के बाद भी शोध और प्रयोग करते रहते थे।

विज्ञान से अपने इसी लगाव के कारण बाद में उन्होंने वित्त विभाग वाली नौकरी छोड़ दी और कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बन गए। इन दिनों उन्होंने ऑप्टिक्स और प्रकाश के प्रकीर्णन पर बहुत काम किया। इसके लिए बाद में उन्हें नोबेल पुरस्कार से भी पुरस्कृत किया गया। 1934 से लेकर 1948 तक उन्होंने बैंगलोर के भारतीय विज्ञान संस्थान में काम किया। इसके एक साल बाद उन्होंने बैंगलोर में ही रामण रिसर्च इंस्टीट्यूट खोला, जहाँ उन्होंने तब तक काम किया, जब तक वे जीवित रहे। 21 नवंबर, 1970 को उनकी मृत्यु हो गई। सर वेंकटरामण को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान भारतरत्न भी शामिल है। 1928 में की गई रामण प्रभाव की खोज के सम्मान में भारत में हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है।

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10 Lines on CV Raman in Hindi | सीवी रमन पर 10 लाइन

10 Lines on CV Raman in Hindi

10 Lines on CV Raman in Hindi | सीवी रमन पर 10 लाइन 

सीवी रमन एक भारतीय भौतिक विज्ञानी थे।

उनका पूरा नाम चन्द्रशेखर वेंकटरमन था।

सीवी रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु, भारत में हुआ था।

उनके पिता का नाम चंद्रशेखर रामनाथन अय्यर और माता का नाम पार्वती अम्मल था।

उनके पिता गणित और भौतिकी के व्याख्याता थे।

प्रकाश के प्रकीर्णन पर उनके कार्य और रमन प्रभाव की खोज के लिए उन्हें 1930 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

डॉ. सीवी रमन भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे।

रमन प्रभाव की खोज के उपलक्ष्य में भारत में हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है।

उन्हें 1954 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

1949 में, उन्होंने बैंगलोर में रमन अनुसंधान संस्थान की स्थापना की थी।

वह विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई और गैर-श्वेत व्यक्ति थे।

उन्होंने 6 मई 1907 को लोकसुंदरी अम्मल से शादी की थी।

उनके दो बेटे थे; चंद्रशेखर रमन और वेंकटरमण राधाकृष्णन।

21 नवंबर 1970 को 82 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था।

10 Lines on CV Raman in English

CV Raman was an Indian physicist.

His full name was Chandrasekhara Venkata Raman.

CV Raman was born on 7 November 1888 in Tiruchirappalli, Tamil Nadu, India.

His father’s name was Chandrasekhara Ramanathan Iyer and his mother’s name was Parvathi Ammal.

His father was a lecturer in mathematics and physics.

He was awarded the Nobel Prize in Physics in 1930 for his work on the scattering of light and for the discovery of the Raman effect.

Dr CV Raman was the first Indian to receive the Nobel Prize in Physics.

Every year, National Science Day is observed on February 28 in India, to commemorate the discovery of the Raman Effect.

He was awarded the Bharat Ratna, India’s highest civilian honour, in 1954.

He founded the Indian Journal of Physics in 1926. 

In 1949, he established the Raman Research Institute in Bangalore.

He was the first Asian and non-white individual to win a Nobel Prize in science.

He died on 21 November 1970 at the age of 82.

  • Also Read: 10 Lines on Ramanujan in Hindi
  • Also Read: 10 Lines on Dr APJ Abdul Kalam in Hindi

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CV Raman Quotes in Hindi: सीवी रमन का संक्षिप्त जीवन परिचय, अनमोल विचार, रोचक तथ्य

essay on cv raman in hindi

  • Updated on  
  • फरवरी 28, 2024

CV Raman Quotes in Hindi

CV Raman Quotes in Hindi पढ़कर विद्यार्थियों को भारत के एक महान वैज्ञानिक सीवी रमन जी के बारे में पता चलेगा। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को भारत के ऐसे महान वैज्ञानिकों के बारे में जान लेना चाहिए, जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए। यदि मानव अपनी दैनिक दिनचर्या पर ध्यान दे तो वह पाएगा कि साइंस के बिना जीवन और आधुनिक टेक्नोलॉजी की कल्पना मुश्किल सी लगती है। विज्ञान एक ऐसा माध्यम है, जिसमें मानवता का विभाजन किए बिना ज्ञान को सर्वोपरि रखा जा सकता है। विज्ञान के ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने वाले एक वैज्ञानिक सीवी रमन भी थे, जिनके अथक प्रयासों का परिणाम था कि उनके अविष्कार को रमन प्रभाव के नाम से जाना जाने लगा। उनकी इन्हीं खोज के बाद उन्हें नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पोस्ट के माध्यम से आप भारत के ऐसे महान वैज्ञानिक ‘सीवी रमन’ जी के जीवन के बारे में जान पाएंगे। CV Raman Quotes in Hindi के माध्यम से सीवी रमन जी के विचार पढ़ें जा सकते हैं, जो आपको सदा प्रेरित करेंगे। जिसके लिए आपको यह ब्लॉग अंत तक पढ़ना पड़ेगा।

This Blog Includes:

सीवी रमन का संक्षिप्त जीवन परिचय, top 10 cv raman quotes in hindi, विद्यार्थियों के लिए सीवी रमन के अनमोल विचार, सीवी रमन के सामाजिक विचार, सीवी रमन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य, cv raman patel quotes in english.

CV Raman Quotes in Hindi के बारे में जानने से पहले आपको सीवी रमन के बारे में जान लेना अति आवश्यक है। चंद्रशेखर वेंकट रमन एक ऐसे भारतीय भौतिक विज्ञानी थे, जिन्हें उनके प्रकाश के प्रकीर्णन अविष्कार पर, उनके काम के लिए वर्ष 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। सीवी रमन जी को भारत के सबसे महान वैज्ञानिकों में से एक माना जाता है।

7 नवंबर, 1888 को भारत के तिरुचिरापल्ली में चंद्रशेखर वेंकट रमन जी का जन्म हुआ था। चंद्रशेखर वेंकट रमन जी ने अपने प्रारंभिक जीवन में मद्रास विश्वविद्यालय से भौतिकी में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1917 में चंद्रशेखर वेंकट रमन जी ने मद्रास विश्वविद्यालय में बतौर भौतिकी प्रोफेसर के रूप में अपना करियर शुरू किया।

चंद्रशेखर वेंकट रमन जी को उनके बेहतर काम के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले, जिसमें भारत रत्न, लेनिन शांति पुरस्कार और फ्रैंकलिन मेडल इत्यादि शामिल हैं। 21 नवंबर, 1970 को भारत के एक महान वैज्ञानिक का मोक्ष पाने का सफ़र शुरू हुआ। इसी दिन चंद्रशेखर वेंकट रमन जी ने बेंगलुरु में अपनी अंतिम सांस ली और वह पंचतत्व में विलीन हुए।

यह भी पढ़ें: सीवी रमन, जिनकी खोज ने देश का बढ़ाया मान!

Top 10 CV Raman Quotes in Hindi निम्नवत हैं, सीवी रमन के विचार सदा ही आपका मार्गदर्शन करेंगे। Top 10 CV Raman Quotes in Hindi से युवाओं को जीवन में सकारात्मकता को अपनाने का अवसर मिलेगा।

  • सही व्यक्ति, सही सोच और सही उपकरण मतलब सही नतीजे।
  • विज्ञान एक कठिन विषय है, इसे पढ़ने के लिए आपको एकाग्रता चाहिए।
  • सबसे पहले मैं एक भारतीय हूं और चाहे कुछ भी हो जाए, मैं अपना देश नही छोड़ सकता।
  • अपनी नाकामयाबियों मैं खुद जिम्मेदार हूं, अगर मैं नाकामयाब नही होता तो इतना सब कुछ कैसे सीख पाता।
  • मैंने विज्ञान के अध्ययन के लिए कभी भी किसी कीमती उपकरण का उपयोग नही किया, मैंने “रमन इफ़ेक्ट” की खोज के लिए शायद ही किसी उपकरण पर 200 रुपए ज्यादा खर्च किया हो।
  • आमतौर पर यह माना जाता है कि प्रोफेसर के मार्गदर्शन में काम करने से छात्रों को लाभ मिलता है। वास्तव में, प्रोफेसर को अपने अधीन काम करने वाले मेधावी छात्रों के सहयोग से समान रूप से लाभ होता है।
  • अगर मेरे से सही से पेश आए तो आपका जीवन प्रकाशमय है और अगर गलत तरीके से पेश आए तो अंधकारमय होना निश्चित है।
  • आप अपनी जीवन में यह नही चुन सकते हैं कि आपके जीवन में कौन आता है, लेकिन आप उससे सबक ले सकते हैं।
  • गरीबी और निर्धनी प्रयोगशालाओं ने मुझे मेरा सर्वोत्तम काम करने के लिए दृढ़ता दी।
  • प्रकृति में कुछ भी नया नहीं है। हम केवल नए तरीकों से पुराने चीजों को देखते हैं।

सीवी रमन के विचार विद्यार्थियों को हमेशा ही एक नई दिशा दिखाने का कार्य तो करेंगे ही, साथ ही शिक्षा के महत्व के बारे में छात्रों को समझाएंगे। विद्यार्थियों के लिए CV Raman Quotes in Hindi कुछ इस प्रकार हैं-

  • हमेशा सही सवाल पूछें, फिर देखना प्रकृति अपने सभी रहस्यों के द्वार खोल देगी।
  • आपके सामने मौजूदा कार्य के लिए दमदार समर्पण से आप कामयाबी प्राप्त कर सकते हैं।
  • यदि कोई आपको जज कर रहा है, तो वह स्वयं के दिमाग को खराब कर रहा है और वह उसकी खुद की समस्या है।
  • अक्सर ऐसा नहीं होता कि विद्यार्थी जीवन का आदर्शवाद, बाद के जीवन में मर्दानगी के लिए अभिव्यक्ति का पर्याप्त अवसर पाता है।
  • कोई भी अनुसंधान करने में कठिन परिश्रम और लगन की आवश्यकता होती है, कीमती उपकरण की नहीं।
  • शिक्षा का उद्देश्य लोगों को स्वतंत्र रूप से सोचने और अपने स्वयं के निर्णय लेने के लिए सक्षम बनाना है।

CV Raman Quotes in Hindi के इस ब्लॉग में आपको सीवी रमन के सामाजिक विचारों के बारे में पढ़ने को मिल जाएगा। यह विचार समाज को विज्ञान के बारे में जानने का अवसर प्रदान करेंगे। सीवी रमन के सामाजिक विचार कुछ इस प्रकार हैं-

  • आधुनिक भौतिक विज्ञान की पूरी रूपरेखा पदार्थ के परमाणु या आणविक संरचना की मौलिक परिकल्पना पर बनी है।
  • किसी भी देश की वास्तविक तरक्की के लिए उस देश के युवक और युवतियों के परिवार शारीरिक और अंतरात्मा में निहित है।
  • मेरा दृढ़ता से मानना है कि मौलिक विज्ञान को अनुदेशात्मक, औद्योगिक और सरकार या सैन्य दबावों द्वारा संचालित नहीं किया जाना चाहिए।
  • अगर आप मेरे साथ अच्छे से पेश आते हैं तो आप कुछ प्राप्त कर सकते हैं, वहीं अगर आप मेरे साथ सही ढंग से पेश नही आते, तो आपको कुछ नही मिल सकता है।
  • अगर भारत की महिलाएं विज्ञान और विज्ञान की प्रगति में अपनी रूचि दिखाए ,तो आजतक जो भी पुरुष हांसिल करने में नाकाम हैं, वे सबकुछ वो प्राप्त कर सकती है।
  • महिलाओ में भक्ति की एक गुणवत्ता है की वह किसी भी काम को बहुत ईमानदारी से करती है, यही गुणवत्ता उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में बहुत अधिक सफलता दिला सकती है। इसीलिए आईये हम एक कल्पना कर सकते हैं की विज्ञान के छेत्र में केवल पुरुष ही अपना एकाधिकार न समझे।

CV Raman Quotes in Hindi को पढ़ने के साथ-साथ आपको सीवी रमन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य भी पढ़ने को मिल जाएंगे। सीवी रमन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य पढ़कर आप सीवी रमन जी के बारे में अच्छे से जान पाएंगे। सीवी रमन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य कुछ इस प्रकार हैं;

  • सीवी रमन को वर्ष 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में फिजिक्स का पहला प्रोफेसर नियुक्त किया गया था।
  • कलकत्ता विश्वविद्यालय में टीचिंग करने के दौरान सीवी रमन ने कलकत्ता में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस (IACS) में अपना रिसर्च जारी रखा।
  • सीवी रमन ने IACS में एक ग्राउंड ब्रेकिंग एक्सपेरिमेंट किया, जिसने अंततः उन्हें 28 फरवरी 1928 में फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई।
  • जिस दिन सीवी रमन को फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित करने के बाद से ही भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (National Science Day) के रूप में मनाया जाता है।
  • वर्ष 1929 में एटोमिक न्यूक्लियस और प्रोटॉन के खोजकर्ता डॉ अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने रॉयल सोसाइटी के अपने अध्यक्षीय भाषण में सीवी रमन की स्पेक्ट्रोस्कोपी का उल्लेख किया था।
  • सीवी रमन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई और गैर-श्वेत व्यक्ति थे।
  • वर्ष 1932 में सीवी रमन और सूरी भगवंतम ने क्वांटम फोटॉन स्पिन की खोज की, इसी खोज ने प्रकाश की क्वांटम प्रकृति को और सिद्ध कर दिया।
  • वर्ष 1954 में सीवी रमन को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।

CV Raman Quotes in Hindi के इस ब्लॉग में आपको CV Raman Patel Quotes in English भी पढ़ने को मिल जाएंगे। यह कोट्स भाषा के अवरोध को भी जड़ से मिटाने का काम करेंगे, CV Raman Patel Quotes in English निम्नलिखित हैं-

  • Treat me right and you will see the light…Treat me wrong and you will be gone!
  • Ask the right questions, and nature will open the doors to her secrets. I am the master of my failure… If I never fail, how will I ever learn?
  • You can’t always choose who comes into your life but you can learn what lesson they teach you. Success can come to you by courageous Devotion to the task lying in front of you.
  • I strongly believe that fundamental science cannot be driven by instructional, industrial and government or military pressures.
  • If someone judges you,they are wasting space in their mind…Best part, it’s their problem.
  • It is generally believed that it is the students who derive benefit by working under the guidance of a professor. In reality, the professor benefits equally by his association with gifted students working under him.
  • I would like to tell the young men and women before me not to lose hope and courage. Success can only come to you by courageous devotion to the task lying in front of you.
  • The essence of science is independent thinking, hard work, and not equipment. When I got my Nobel Prize, I had spent hardly 200 rupees on my equipment.
  • We must teach science in our mother tongue. Otherwise, science will become a highbrow activity. It will not be an activity in which all people can participate.
  • I feel it is unnatural and immoral to try to teach science to children in a foreign language. They will know facts, but they will miss the spirit.

आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से CV Raman Quotes in Hindi, सीवी रमन का संक्षिप्त जीवन परिचय, साथ ही सीवी रमन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य पढ़ने को मिलेंगे, जो कि सदा ही आपको सदा प्रेरित करेंगे। इसी प्रकार के कोट्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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मयंक विश्नोई

जन्मभूमि: देवभूमि उत्तराखंड। पहचान: भारतीय लेखक । प्रकाश परिवर्तन का, संस्कार समर्पण का। -✍🏻मयंक विश्नोई

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सी.वी. रमन जी पर निबंध - cv raman essay in hindi - essay on c.v. raman in hindi, सी.वी. रमन.

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Read this comprehensive essay on Chandrasekhar Venkata Raman (1888 A.D. – 1970 A.D.) !

The Great Indian physicist Chandrasekhar Venkata Raman, popularly known as C.V Raman, was born on 7 th November, 1888 at Trichirapalli in Tamil Nadu. His father was a physics teacher and so it was natural that Raman developed love for this subject. He was a brilliant student from the very beginning. As a brilliant and promising lad, he passed his matriculation examination at the young age of 12 from Madras University.

His parents wanted to sent him England for higher studies but his poor health did not allow it. He studied at Hindu College, Visakhapatnam and Presidency College, Madras. He obtained his post-graduation degree in physics in 1907 with the top position. During his student period he conducted many researches and published his papers in many reputed magazines.

Chandrasekhar Venkata Raman

His interest in physics was deep and lasting and so he continued his research work in his spare time in the laboratory of the Association. He published his research results in the leading journals of Calcutta, now Kolkata which were in regard to the subject of propagation of light. These original research papers were of great scientific significance.

When these came to the notice of the then Vice -Challenger of Calcutta University, Sir Ashutosh Mukharjee, he appointed him Professor of physics in the University. During his stay at the University he continued his research with much more devotion and won immense honour and recognition as a physicist.

He was elected the Fellow of the Royal Society of London in 1924. He discovered the “Raman Effect” in 1928. For it he was awarded the Nobel Prize for Physics in 1930. He became the first Indian to win this prestigious honour. With this award, his reputation increased by leaps and bounds and many Universities and institutions of repute honoured him with Ph D and D.Sc. degrees.

In December, 1927 he was busy in laboratory when the news came that the well-known physicist A.M. Compton was awarded the Nobel Prize for demonstrating that the nature of X-rays undergoes a change when passed through a matter.

This effect came to be known as the “Compton Effect.” Encouraged by this discovery, Raman continued his experiments and ultimately proved that light rays can also be scattered. His discovery enabled for the first time, the mapping of possible levels of energy gains of molecules and atoms of a substance and thus discovered their molecules and atomic structure. This discovery of the scattering of light led to the development of a simple alternative to infra-red spectroscopy, namely, Raman Spectroscopy.

Raman Effect happens when molecules of a medium scatter light energy particles known as photons. The spectrum varies with the nature of the transparent medium used to scatter the light. Raman Effect has proved to be of great scientific value and with its help the structure of more than 200 compounds has been known. He also gave us the scientific explanation for the blue colour of the sky and the ocean.

He explained that the blue color of the ocean was as a result of the scattering of sunlight by the molecules of the water. He travelled widely abroad delivering lectures about his discoveries and researches. In 1933 he became the Director of the Indian Institute of Sciences, Bangalore. In 1943 he founded the Raman Research Institute at Bangalore. He was knighted in 1927. He was awarded the Bharat Ratna in 1954 and the International Lenin Prize in 1957.

Raman was a born genius and a self-made man and scientist with deep religious convictions. His interests were wide and deep and so were his contributions to the human knowledge and development. Besides optics, he was deeply interested in acoustics—the science and study of sound.

His contributions to the mechanical theory of bowed, stringed and other musical instruments like violin, sitar, cello, piano, veena, Tanpura and mridangam have been very significant. He explained in detail how these musical instruments produce harmonious tones and notes. He died on November 21, 1970 at the ripe age of 82 at Bangalore and his mortal remains were consigned to flames in the campus of the Raman Research Institute.

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