सिक्ख धर्म का इतिहास और जानकारी | About Sikhism History In Hindi
Sikh Dharm / सिक्ख धर्म का भारतीय धर्मों में अपना एक पवित्र एवं अनुपम स्थान है। सिक्खों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव सिक्ख धर्म के प्रवर्तक हैं। ‘सिक्ख धर्म’ की स्थापना 15वीं शताब्दी में भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग के पंजाब में गुरु नानक देव द्वारा की गई थी। ‘सिक्ख’ शब्द ‘शिष्य’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका तात्पर्य है- “गुरु नानक के शिष्य”, अर्थात् उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले। यह धर्म विश्व का नौवां बड़ा धर्म है।
सिक्ख धर्म का इतिहास – Sikhism History In Hindi
भारत के प्रमुख चार धर्मों में इसका स्थान भी है। सिक्ख धर्म में बहु-देवतावाद की मान्यता नहीं है। यह धर्म केवल एक ‘अकाल पुरुष’ को मानता है और उसमें विश्वास करता है। यह एक ईश्वर तथा गुरुद्वारों पर आधारित धर्म है। सिक्ख धर्म में गुरु की महिमा मुख्य रूप से पूज्यनीय व दर्शनीय मानी गई है। इसके अनुसार गुरु के माध्यम से ही ‘अकाल पुरुष’ तक पहुँचा जा सकता है। सिख धर्म की पहचान पगड़ी और अन्य पोशाकों से भी की जाती है लेकिन ऐसे भी कई सिख होते हैं जो पगड़ी धारण नहीं करते।
गुरु नानक देव जी ने ही सिख धर्म की नींव रखी थी। इनका जन्म 1469 ईस्वी में लाहौर के तलवंडी (अब ननकाना साहिब) में हुआ। बचपन से ही उनका मन एकांत, चिंतन और सत्संग में लगता था। सांसारिक चीजों में उनका मन लगाने के लिए उनका विवाह कर दिया गया। परन्तु यह सब गुरु नानक जी को परमात्मा के नाम से दूर नहीं कर पाया। उन्होंने घर छोड़कर घूमना शुरू कर दिया। पंजाब, मक्का, मदीना, काबुल, सिंहल, कामरूप, पुरी, दिल्ली, कश्मीर, काशी, हरिद्वार जैसी जगहों पर जाकर उन्होंने लोगों को उपदेश दिए। उनका कहना था कि हिन्दू-मुस्लिम अलग नहीं हैं और सबको एक ही भगवान ने बनाया है।
उन्होंने कहा, एक ओंकार (ईश्वर एक है), सतनाम (उसका नाम ही सच है), करता पुरख (सबको बनाने वाला), अकाल मूरत (निराकार), निरभउ (निर्भय), निरवैर (किसी का दुश्मन नहीं), अजूनी सैभं (जन्म-मरण से दूर) और अपनी सत्ता कायम रखने वाला है। ऐसे परमात्मा को गुरु नानक जी ने अकाल पुरख कहा, जिसकी शरण गुरु के बिना संभव नहीं। उनके सहज ज्ञान के साथ लोग जुड़ते गए। उनके शिष्य बनते गए। गुरु नानक से चली सिख परम्परा में नौ और गुरु हुए। अंतिम और दसवें देहधारी गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी थे।
गुरु नानकदेव ने आम बोल-चाल की भाषा में रचे पदों तथा भजनों के माध्यम से अपने उपदेश दिये। उन्होंने कहा कि सबका निर्माता, कर्ता, पालनहारा ‘एक ओंकार’ एक ईश्वर है। उसे सिर्फ़ ‘गुरु प्रसाद’ अर्थात् गुरु की कृपा से ही जाना जा सकता है। उसके सामने सभी बराबर हैं, अत: छूआछूत, रूढ़िवादिता, ऊँच-नीच सब झूठ और आडंबर हैं। जन्म-मरण विहीन एक ईश्वर में आस्था, छुआछूत रहित समतामूलक समाज की स्थापना और मानव मात्र के कल्याण की कामना सिक्ख धर्म के प्रमुख सिद्धान्त हैं। कर्म करना, बांट कर खाना और प्रभु का नाम जाप करना इसके आधार हैं। इन्हीं मंतव्यों की प्राप्ति के लिए गुरु नानक देव ने इस धर्म की स्थापना की थी।
गुरु नानक देव जी के कथनों पर चलते हुए सिख धर्म एक संत समुदाय से शुरु हुआ। लेकिन समय के साथ सिख समुदाय ने अपनी वीरता के भी जलवे दिखाए। अंतिम गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी के काल में सिखों की एक बेहतरीन और कुशल लड़ाके की सेना तैयार हो चुकी थी। सिख कौम ने संत और सैनिक दोनों के भावों को खुद में समाया। वक्त के साथ खुद को बदलते रखने की कला के कारण ही आज सिख धर्म विश्व के हर हिस्से में पाया जाता है।
सिख धर्म के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण फैसला गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किया। उन्होंने सभी गुरुओं की वाणी को एक ग्रंथ में समेटा और उस ग्रंथ को गुरु की गद्दी सौंपी और सिखों से कहा- अब कोई देहधारी गुरु नहीं होगा। सभी सिखों को आदेश है कि वे गुरु ग्रंथ साहिब जी को ही गुरु मानेंगे। तब से सिख धर्म में पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरु माना गया।
अत: सिक्ख इस पवित्र ग्रंथ को सजीव गुरु के समान ही सम्मान देते हैं। उसे सदैव ‘रुमाला’ में लपेटकर रखते हैं और मखमली चाँदनी के नीचे रखते हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने हेतु इस ग्रंथ को हमेशा सिर पर रखकर ले जाते हैं। इस पर हमेशा चंवर डुलाया जाता है। गुरुद्वारे में इसका पाठ करने वाले विशेष व्यक्ति को ‘ग्रंथी’ और विशिष्ट रूप से गायन में प्रवीण व्यक्ति को ‘रागी’ कहते हैं।
सिक्खों के 10वें और अंतिम गुरु गोविन्द सिंह ने पांच ककार- केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण को अनिवार्य बना दिया। गुरुद्वारे में प्रतिदिन या विशेष अवसरोंं पर स्वेच्छा से किया गया श्रम, जैसे- गुरुद्वारे की सीढ़ियों की सफाई, कड़ा प्रसाद बनाना, भक्तजनों के जूते संभालना व साफ़ करना आदि। कभी-कभी धर्म विरोधी कार्य करने पर सज़ा के रूप में व्यक्ति को ये कार्य करने का आदेश दिया जाता है।
सिक्ख धर्म में कृपाण धारण करने का आदेश आत्मरक्षा के लिए है। गुरु गोविन्द सिंह चाहते थे कि सिक्खों में संतों वाले गुण भी हों और सिपाहियों वाली भावना भी। इस कारण कृपाण सिक्खों का एक धार्मिक चिह्न बन गया है। अपने शिष्यों में धर्मरक्षा हेतु सदैव मर मिटने को तैयार रहने वाले पाँच शिष्यों को चुनकर उन्हें ‘पांच प्यारे’ की संज्ञा दी और उन्हें अमृत छका कर धर्म रक्षकों के रूप में विशिष्टता प्रदान की और नेतृत्व में खालसाओं ने मुस्लिम शासकों का बहादुरी पूर्वक सामना किया।
लंगर – Langar Pratha in H-indi
गुरुद्वारों में प्रतिदिन, विशेष अवसरों पर भक्तजनों के लिए भोज की व्यवस्था होती है, जिसमें हलवा, छोले तथा पानी, चीनी, पिंजरी, मक्खन से बना तथा कृपाण से हिलाया हुआ कड़ा प्रसाद दिया जाता है। तीसरे गुरु अमरदास ने सिक्खों तथा अन्य धर्मावलम्बियों में समानता व एकता स्थापित करने के उद्देश्य से लंगर की शुरुआत की थी।
वाहे गुरु – यह ईश्वर का प्रशंसात्मक नाम है।
सत श्री अकाल, बोले सो निहाल – ईश्वर सत्य, कल्याणकारी और कालातीत है, जिसके नाम के स्मरण से मुक्ति मिलती है।
वाहे गुरु द खालसा, वाहे गुरु दी फ़तह – खालसा पंथ वाहे गुरु (ईश्वर) का पंथ और और अंतत: उसी की विजय होती है।
अकाल पुरुष –
गुरु नानक देव ने ‘अकाल पुरुष’ का जैसा स्वरूप प्रस्तुत किया है, उसके अनुसार अकाल पुरुष एक है। उस जैसा कोई नहीं है। वह सबमें एक समान रूप से बसा हुआ है। उस अकाल पुरुष का नाम अटल है। सृष्टि निर्माता वह अकाल पुरुष ही संसार की हर छोटी-बड़ी वस्तु को बनाने वाला है। वह अकाल पुरुष ही सब कुछ बनाता है तथा बनाई हुई हर एक चीज़ में उसका वास भी रहता है। अर्थात् वह कण-कण में अदृश्य रूप से निवास करता है। वह सर्वशक्तिमान है तथा उसे किसी का डर नहीं है। उसका किसी के साथ विरोध, मनमुटाव एवं शत्रुता नहीं है। अकाल पुरुष का अस्तित्व समय के बंधन से मुक्त है। भूतकाल, वर्तमान काल एवं भविष्य काल जैसा काल विभाजन उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। बचपन, यौवन, बुढ़ापा और मृत्यु का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उस अकाल पुरुष को विभिन्न योनियों में भटकने की आवश्यकता नहीं है, अर्थात् वह अजन्मा है। उसे किसी ने नहीं बनाया और न ही उसे किसी ने जन्म दिया है। वह स्वयं प्रकाशित है।
सिक्खों के दस गुरु – List of Sikh Gurus in Hindi
सिक्ख धर्म में गुरु परम्परा का विशेष महत्त्व रहा है। इसमें दस गुरु माने गये हैं, जिनके नाम, जन्म व गुरु बनने की तिथि तथा निर्वाण प्राप्ति की तिथि इस प्रकार है –
- गुरु नानक देव जी
- गुरु अंगद देव जी
- गुरु अमर दास जी
- गुरु रामदास जी
- गुरु अर्जन देव जी
- गुरु हरगोबिन्द सिंह जी
- गुरु हर राय जी
- गुरु हरकिशन साहिब जी
- गुरु तेग बहादुर सिंह जी
- गुरु गोबिन्द सिंह जी
सिक्ख धर्म के पाँच प्रमुख धर्मकेन्द्र (तख़्त) हैं। धर्म सम्बन्धी किसी भी विवाद पर इन तख्तों के पीठासीन अधिकारियों का निर्णय अंतिम माना जाता है।
- हरमंदिर साहब
- आनन्दपुर साहिब
- हुज़ूर साहब।
और अधिक लेख –
- भगवान गौतम बुद्ध व बौध धर्म का इतिहास
- जैन धर्म का इतिहास
- इस्लाम धर्म का इतिहास और जानकारी
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सिख धर्म पर निबंध Essay on Sikhism in Hindi – Sikh Dharm
“इक ओंकार सतनाम करता पुरख निर्मोह निर्वैर अकाल मूरत अजूनी सभम।“
अर्थात ईश्वर एक है, उसका नाम ही सच है, वह सबको बनाने वाला है, निर्भय है, किसी का दुश्मन नहीं है व निराकार है। जन्म – मरण से दूर है।
सिख धर्म एक एकेश्वरवादी धर्म है, जिसकी उत्पत्ति 15 वीं शताब्दी के अंत में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में पंजाब क्षेत्र में हुई थी। इस धर्म को सिखमत और सिखी भी कहा जाता है। यह प्रमुख विश्व धर्मों में से एक है, और दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा संगठित धर्म है। इस धर्म के लोग लगभग हर जगह मौजूद हैं।
सिख धर्म का इतिहास
सिख धर्म का इतिहास गुरु नानक देव जी के साथ शुरू हुआ था। इन्हे सिख धर्म का प्रवर्तक कहा जाता है। वह भारतीय उपमहाद्वीप (आधुनिक पंजाब, पाकिस्तान) के उत्तरी भाग में पंजाब क्षेत्र में पंद्रहवीं शताब्दी के पहले गुरु थे।
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा 13 अप्रैल 1699 को धार्मिक प्रथाओं को औपचारिक रूप दिया गया था। यह धर्म खालसा का आदेश देता है, जो लगभग 300 वर्षों का इतिहास है। गुरु नानक देव जी ने अपने समय के भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखण्डों को दूर किया था।
इन्होने सिख धर्म की स्थापना सेवा, परिश्रम, प्रेम, परोपकार और भाई – चारे की भावना से की थी। गुरुनानक देव जी ने सभी धर्मों की अच्छाइयों को समाहित किया। उनका कहना था कि भगवान एक ही हैं और उन्होंने ही सृष्टि की रचना की है। सभी धर्मों के लोग ईश्वर की ही संतान हैं। उन्होंने बताया कि मनुष्य को हमेशा अच्छे कार्य करना चाहिए जिससे परमात्मा के सामने लज्जित न होना पढ़े।
आदिग्रन्थ के पृष्ठ संख्या 617 में गुरु अर्जुन देव जी ने कहा है कि –
सगल वनस्पति महि बैसन्तरु सगल दूध महि घीआ। ऊँच-नीच महि जोति समाणी, घटि-घटि माथउ जीआ॥
अर्थात ईश्वर हर जगह व्याप्त है, जैसे वनस्पतियों में आग समयी हुई है, दूध में घी है उसी तरह ईश्वर सब जगह विद्यमान है। सिखों के दस प्रमुख गुरु हैं, जिन्होंने इस धर्म को और भी ज्यादा मजबूत बनाया। जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
गुरुनानक देव जी (1469-1539)
गुरु नानक सिख धर्म के प्रवर्तक थे. 1469 ई. में लाहौर के निकट तलवंडी अथवा आधुनिक ननकाना साहिब में खत्री परिवार में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन हिन्दू और इस्लाम धर्म के समस्त मानव समाज के कल्याण में लगाया। गुरुनानक जी ने कठोर तपस्या की और लोगों को उपदेश दिए। जिससे हिन्दू न केवल मुस्लिम भी इनके अनुयायी हो गए। नानक देव जी की मृत्यु 1539 में हुई थी।
गुरु अंगद (1539-1552)
गुरु अंगद सिखों के दूसरे गुरु कहलाये। गुरु नानक देव जी ने ही इन्हे द्वितीय गुरु बनाया था। ये अंगद को इतना पसंद करते थे कि अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर उन्होंने अंगद को ही अपना उत्तराधिकारी चुना था।
गुरु अमरदास (1552-1574)
गुरू अमर दास जी सिख धर्म के प्रचारक थे। गुरु अंगद जी ने स्वयं इन्हे तृतीय गुरु के रूप में चुना था।
गुरु रामदास (1574-1581)
ये अत्यंत साधु स्वभाव के व्यक्ति थे। इन्होने ही अमृतसर में एक जलाशय का भू-भाग दान दिया था , वहीँ पर आगे चलकर विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर का निर्माण हुआ। इन्होने विवाह सम्बंधित रूढ़िवादी प्रणाली को दूर किया और सरल बनाया।
गुरु अर्जुन (1581-1606)
गुरु अर्जुन जी का सिख धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान है। गुरु अर्जुन ने सिखों के “आदि ग्रन्थ” नामक धर्म ग्रन्थ का संकलन किया था, जिसमें उन्होंने पूर्व गुरुओं, हिन्दू और मुस्लिमों की वाणी को संकलित किया था। जहांगीर के आदेशानुसार इनको मार दिया गया था जबकि जहांगीर के बेटे शाहज़ादा खुसरो को गुरु अर्जुन देव जी ने ही शरण दी थी।
गुरु हरगोविन्द (1606-1645)
गुरु अर्जुन के ही पुत्र गुरु हरगोविंद थे जिन्होंने सिखों का सैनिक संगठन किया था। जिससे लोग काफी प्रभावित हुए थे।
गुरु हरराय (1645-1661)
ये सिखों के सांतवे गुरू कहलाये। ये अपने शांत स्वभाव के कारण ही प्रसिद्ध हुए थे व लोगों को प्रभावित किया था। इन्होने योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया।
गुरु हरकिशन (1661-1664)
इन्होने खालसा पंथ को और भी शक्तिशाली बनाया।
गुरु तेग बहादुर (1664-1675)
ये नौंवे गुरु थे जिन्हे औरंगजेब का सामना करना पड़ा था। औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को बंदी बनाकर उनके सामने प्रस्ताव रखा था कि या तो इस्लाम धर्म स्वीकार करो या मरने के लिए तैयार हो जाओ। अंततः तेग बहादुर झुके नहीं और उनका सिर काट दिया गया।
गुरु गोविन्द सिंह (1675-1708)
पढ़ें : गुरु गोविन्द सिंह की जीवनी
ये सिखों के दंसवे गुरु थे। इन्होने शांतिप्रिय ढंग से सिख पंथ के सैनिक को मजबूत बनाया जिससे वे मुसलामानों का सामना कर सके। इन्होने ही अपने पंथ का नाम खालसा रखा और एकता का सन्देश दिया।
इन्होने सिख समुदाय को केश, कच्छ, कड़ा, कृपाण और कंघा इन पांच वस्तुओं को धारण करना आवश्यक कर दिया। इन्होने पाहुल प्रथा का आरम्भ किया, जिसका उद्देश्य जातिवाद को दूर करना था। इसमें सभी एक ही कटोरे में प्रसाद ग्रहण करते थे।
धार्मिक ग्रन्थ
सिखों का धार्मिक प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘आदि गृन्थ’ है। जिसे आदि गुरु ग्रन्थ या गुरु ग्रन्थ साहिब भी कहा जाता है। जिसे 36 भक्तों के द्वारा रचा गया था। यह ग्रन्थ गुरु अर्जुन देव जी द्वारा संग्रहित किया गया था। इसके अलावा ‘दसम गृन्थ’ है जो सतगुरु गोबिंद सिंह जी की पवित्र वाणी को प्रदर्शित करता है।
सिख धर्म के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन काल में इन चार पदार्थ को प्राप्त करना अनिवार्य है –
- ज्ञान पदार्थ या प्रेम पदार्थ
- मुक्त पदार्थ
- जन्म पदार्थ
सिखों के प्रमुख त्योहार
सिखों का प्रमुख त्योहार ‘गुरु नानक गुरुपर्व’ है। जिसे गुरु नानक का प्रकाश उत्सव या गुरु नानक जयंती के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। यह कार्तिक पूर्णिमा को आता है। इसके अलावा लोहड़ी और वैशाखी त्योहार भी बड़े ही धूम – धाम के साथ मनाया जाता है।
इस धर्मं की स्थापना में न जाने कितने सिखों को शारीरिक यातनाएँ दी गयीं फिर भी इन अत्याचारों से खासला पंथ की सैनिक शक्ति को दबा नहीं पाए। सिख धर्म के अनुयायियों ने अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार अपने धर्म की रक्षा की। वास्तव में यह धर्म हमे एकता का सन्देश देता है और अन्य धर्मों के लोगों की भी मदद करने के लिए हर संभव तैयार रहता है।
नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।
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सिख धर्म के संस्थापक, गुरु, और उनके कार्य
सिख धर्म का इतिहास एवं उत्पत्ति:.
सिख धर्म का भारतीय धर्मों में अपना एक पवित्र स्थान है। ‘सिख’ शब्द की उत्पत्ति ‘शिष्य’ से हई है, जिसका अर्थ गुरुनानक के शिष्य से अर्थात् उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करने वालों से है। गुरुनानक देव जी सिख धर्म के पहले गुरु और प्रवर्तक हैं। सिख धर्म में नानक जी के बाद नौ गुरु और हुए।
सिख धर्म की स्थापना:
सिख धर्म की स्थापना 15वीं शताब्दी में भारत के उत्तर-पश्चिमी पंजाब प्रांत में गुरुनानक देव जी ने की थी। यह एक ईश्वर तथा गुरुद्वारों पर आधारित धर्म है। सिख धर्म में गुरु की महिमा पूजनीय व दर्शनीय मानी गई है। गुरु गोबिन्द जी सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर जी के बेटे थे। इनका जन्म बिहार के पटनासाहिब में हुआ था। ये सिख धर्म के अंतिम गुरु माने जाते है। इन्हें 9 वर्ष की आयु में ही गद्दी मिल गई थी।
इन्होंने अपने जीवन में देश और धर्म के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया था। बाद में गुरु गोबिन्द सिंह ने गुरु प्रथा समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरु मान लिया। क्या आपको पता है कि इस धर्म की स्थापना किसने की थी और इस धर्म के 10 गुरु कौन-कौन से हैं ? अगर नहीं तो आइये जानते हैं:-
गुरु नानक देव:
- नानक सिखों के प्रथम गुरु हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे।
- इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। तलवंडी पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त का एक शहर है। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है।
- इनके पिता का नाम मेहता कालूचंद खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था।
- इनहोंने आदि ग्रंथ की रचना की थी, एवं इनकी स्मारक समाधि करतारपुर मे है।
- इनका गुरुकाल समय 20 अगस्त 1507 से 22 सितम्बर 1539 तक था।
- मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।
गुरु अंगद देव:
- अंगद देव या गुरू अंगद देव सिखो के दूसरे गुरु थे गुरू अंगद देव महाराज जी का सृजनात्मक व्यक्तित्व था। उनमें ऐसी अध्यात्मिक क्रियाशीलता थी जिससे पहले वे एक सच्चे सिख बनें और फिर एक महान गुरु। 31 मार्च 1504
- गुरू अंगद साहिब जी (भाई लहना जी) का जन्म हरीके नामक गांव में, जो कि फिरोजपुर, पंजाब में आता है, वैसाख वदी 1, (पंचम् वैसाख) सम्वत 1561 (31 मार्च 1504) को हुआ था
- गुरुजी एक व्यापारी श्री फेरू जी के पुत्र थे। उनकी माता जी का नाम माता रामो देवी जी था। बाबा नारायण दास त्रेहन उनके दादा जी थे, जिनका पैतृक निवास मत्ते-दी-सराय, जो मुख्तसर के समीप है, में था। फेरू जी बाद में इसी स्थान पर आकर निवास करने लगे।
- उनका गुरुकाल 7 सितम्बर 1539 से 29 मार्च 1552 तक रहा।
- गुरु अंगद देव जी को गुरुमुखी लिपि का जनक कहा जाता है।
- गुरू साहिब ने उन्हें एक नया नाम अंगद (गुरू अंगद साहिब) दिया। उन्होने गुरू साहिब की सेवा में 6 से 7 वर्ष करतारपुर में बिताये।
गुरु अमर दास:
- गुरु अमर दास सिख धर्म के दस गुरुओं में से तीसरे थे। वे सिख पंथ के एक महान प्रचारक थे। जिन्होंने गुरू नानक जी महाराज के जीवन दर्शन को व उनके द्वारा स्थापित धार्मिक विचाराधारा को आगे बढाया।
- गुरु अमर दास का जन्म माँ बख्त कौर (जिसे लक्ष्मी या रूप कौर के नाम से भी जाना जाता है) और पिता तेजभान भल्ला के साथ 15 मई 1479 को बसर्के गाँव में हुआ था जिसे अब पंजाब (भारत) का अमृतसर जिला कहा जाता है।
- गुरु अमर दास ने आनंद नाम के शानदार भजन की रचना की और इसे " आनंद कारज " नामक सिख विवाह के अनुष्ठान का हिस्सा बनाया , जिसका शाब्दिक अर्थ "आनंदपूर्ण घटना" है।
- गुरु अमर दास ने अमृतसर गाँव में एक विशेष मंदिर के लिए स्थल का चयन किया, जिसे गुरु राम दास ने बनाना शुरू किया, गुरु अर्जन ने पूरा किया और उद्घाटन किया, और सिख सम्राट रणजीत सिंह ने उनका स्वागत किया। यह मंदिर समकालीन "हरिमंदिर साहिब" या हरि (भगवान) के मंदिर में विकसित हुआ है, जिसे स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। यह सिख धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है।
- इनका गुरुकाल 26 मार्च 1552 से 1 सितम्बर 1574 तक रहा जिसमें इन्होंने धर्म प्रसार हेतु 22 गद्दियों की स्थापना भी की थी।
गुरु राम दास:
- गुरु राम दास सिख धर्म के दस गुरुओं में से चौथे थे। उनका जन्म 24 सितम्बर 1534 को लाहौर स्थित एक परिवार में हुआ था। उनका जन्म का नाम जेठा था, और वे मात्र 7 साल की उम्र में अनाथ हो गए थे; इसके बाद वह एक गाँव में अपने नाना के साथ रहने लगे।
- उन्होंने अमर दास की छोटी बेटी बीबी भानी से शादी की। उनके तीन बेटे थे, पृथ्वी चंद, महादेव और गुरु अर्जन।
- 1577 में जब विदेशी आक्रमणकारी एक शहर के बाद दूसरा शहर तबाह कर रहे थे, तब 'चौथे नानक' गुरू राम दास जी महाराज ने एक पवित्र शहर रामसर का निर्माण किया। जो कि अब अमृतसर के नाम से जाना जाता है।
- गुरु राम दास 1574 में सिख धर्म के गुरु बन गए और 1581 में अपनी मृत्यु तक सिख नेता के रूप में कार्य किया।
- अपने तीन बेटों में से राम दास ने सबसे कम उम्र के अर्जन को चुना, ताकि वे पांचवें सिख गुरु बन सकें। उत्तराधिकारी की पसंद ने सिखों के बीच विवाद और आंतरिक विभाजन को जन्म दिया।
- राम दास ने गुरु ग्रंथ साहिब में 638 भजनों, या लगभग दस प्रतिशत भजनों की रचना की । वह एक प्रसिद्ध कवि थे , और उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत के 30 प्राचीन रागों में अपने काम की रचना भी की।
गुरु अर्जुन देव:
- अर्जुन देव या गुरू अर्जुन देव सिखों के 5वे गूरु थे। गुरु अर्जुन देव जी शहीदों के सरताज एवं शान्तिपुंज हैं। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है। गुरुग्रंथ साहिब में तीस रागों में गुरु जी की वाणी संकलित है। गणना की दृष्टि से श्री गुरुग्रंथ साहिब में सर्वाधिक वाणी पंचम गुरु की ही है।
- अर्जुन देव जी गुरु राम दास के सबसे सुपुत्र थे। उनकी माता का नाम बीवी भानी जी था। गोइंदवाल साहिब में उनका जन्म 25अप्रैल 1563को हुआ और विवाह 1579ईसवी में।
- इन्होंने ही 'श्री हरमंदिर साहिब' या 'स्वर्ण मंदिर' कार्य पूरा करवाया था।
- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति द्वारा 2003 में जारी नानकशाही कैलेंडर के अनुसार मई या जून में गुरु अर्जन के शहीदी दिवस के रूप में याद किया जाता है।
- ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत की कि ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है, लेकिन बाद में जब अकबर को वाणी की महानता का पता चला, तो उन्होंने भाई गुरदास एवं बाबा बुढ्ढाके माध्यम से 51मोहरें भेंट कर खेद ज्ञापित किया। जहाँगीर ने लाहौर जो की अब पाकिस्तान में है, में 9 जून 1606 को अत्यंत यातना देकर उनकी हत्या करवा दी थी।
- गुरु अर्जन एक विपुल कवि थे और उन्होंने 2,218 भजनों की रचना की, या गुरु ग्रंथ साहिब में एक तिहाई से अधिक और भजनों का सबसे बड़ा संग्रह था क्रिस्टोफर शाकले और अरविंद-पाल सिंह मंदिर के अनुसार, गुरु अर्जन की रचनाओं ने "ब्रजभाषा रूपों और सीखा संस्कृत शब्दावली" के साथ आध्यात्मिक संदेश को "विश्वकोशीय भाषाई परिष्कार" में मिलाया।
गुरु हरगोबिन्द सिंह:
- गुरु हरगोबिंद का जन्म 1595 में अमृतसर के पश्चिम में 7 किलोमीटर (4.3 मील) के एक गांव वडाली गुरु में हुआ था।
- गुरु हरगोबिंद छठे नानक के रूप में प्रतिष्ठित थे, सिख धर्म के दस गुरुओं में से छठे थे। मुगल सम्राट जहाँगीर द्वारा अपने पिता, गुरु अर्जन के वध के बाद, वे मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में गुरु बन गए थे।
- गुरु हरगोबिन्द साहिब की शिक्षा दीक्षा महान विद्वान् भाई गुरदास की देख-रेख में हुई। गुरु जी को बराबर बाबा बुड्डाजी का भी आशीर्वाद प्राप्त रहा।
- उन्होंने दो तलवारें पहनकर, मीरी और पीरी (लौकिक शक्ति और आध्यात्मिक अधिकार) की दोहरी अवधारणा का प्रतिनिधित्व करते हुए इसका प्रतीक बनाया।
- अमृतसर में हरमंदिर साहिब के सामने, गुरु हरगोबिंद ने अकाल तख्त (कालातीत का सिंहासन) बनवाया। अकाल तख्त आज खालसा (सिखों के सामूहिक निकाय) के सांसारिक अधिकार की सर्वोच्च सीट का प्रतिनिधित्व करता है।
- उन्होंने अपने शहीद पिता की सलाह का पालन किया और सुरक्षा के लिए हमेशा खुद को सशस्त्र सिखों से घिरा रखा। पचास की संख्या उनके जीवन में विशेष थी, और उनके रेटिन्यू में पचास-दो हथियारबंद लोग शामिल थे। उन्होंने सिख धर्म में सैन्य परंपरा की स्थापना की।
- गुरु हरगोविंद की तीन पत्नियाँ थीं, दामोदरारी, नानकी और महादेवी। उनकी तीनों पत्नियों से बच्चे हुए। पहली पत्नी से उनके दो सबसे बड़े पुत्रों की मृत्यु उनके जीवनकाल के दौरान हो गई। गुरु नानक से उनके पुत्र, गुरु तेग बहादुर नौवें सिख गुरु बने।
- उन्होने 'अकाल तख़्त' की स्थापना की थी। और सिख सेना को और अधिक मजबूत बनाया।
- शाहजहाँ द्वारा प्रांतीय सैनिकों का नेता नियुक्त किया गया और गुरु हरगोबिंद पर हमला किया गया था, लेकिन उन्होंने इस लड़ाई को भी जीत लिया। गुरु हरगोबिंद ने करतारपुर का युद्ध भी लड़ा था ।
- उनका गुरुकाल 25 मई 1606 से 28 फरवरी 1644 तक रहा।
गुरु हर राय:
- गुरू हर राय सिखों के सातवें गुरु थे। गुरू हरराय जी एक महान आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष एवं एक योद्धा भी थे। उनका जन्म16 जनवरी 1630 में कीरतपुर रोपड़ में हुआ था। उन्होंने लगभग सत्रह वर्षों तक सिखों का मार्गदर्शन किया।
- गुरु हर राय ने दारा शिकोह को चिकित्सा देखभाल प्रदान की, संभवतः जब उन्हें मुगल गुर्गों द्वारा जहर दिया गया था।
- अपने अन्तिम समय को नजदीक देखते हुए उन्होने अपने सबसे छोटे पुत्र गुरू हरकिशन जी को 'अष्टम् नानक' के रूप में स्थापित किया।
- गुरु हर राय के जीवन और समय के बारे में प्रामाणिक साहित्य दुर्लभ हैं, उन्होंने अपने स्वयं के कोई ग्रंथ नहीं छोड़े और कुछ सिख ग्रंथों ने बाद में उनके नाम को "हरि राय" के रूप में लिखा।
- उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने 5 वर्षीय सबसे छोटे बेटे हर कृष्ण को सिखों के आठवें गुरु के रूप में नियुक्त किया ।
- उन्होंने सिख धर्म की अखंड कीर्तन या निरंतर शास्त्र गायन परंपरा को भी जोड़ा, साथ ही जोतियन दा कीर्तन या शास्त्रों के सामूहिक लोकगीत गायन की परंपरा को भी जोड़ा।
गुरु हर किशन:
- गुरु हर किशन दस सिख गुरुओं में से आठवें थे। 5 वर्ष की आयु में, वह 7 अक्टूबर 1661 को सिख धर्म में सबसे कम उम्र के गुरु बन गए थे।
- गुरू हर किशन साहिब जी का जन्म 7 जुलाई 1656 को कीरतपुर साहिब में हुआ। वे गुरू हर राय साहिब जी एवं माता किशन कौर के दूसरे पुत्र थे। राम राय जी गुरू हरकिशन साहिब जी के बड़े भाई थे।
- उनके बड़े भाई रामराय जी को उनके गुरू घर विरोधी क्रियाकलापों एवं मुगल सलतनत के पक्ष में खड़े होने की वजह से सिख पंथ से निष्कासित कर दिया गया था।
- दिल्ली में जिस आवास में वो रहे, वहां एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब है।
- दिल्ली में हैजा और छोटी माता जैसी बीमारियों का प्रकोप महामारी लेकर आया। मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील थी। जात पात एवं ऊंच नीच को दरकिनार करते हुए गुरू साहिब ने सभी भारतीय जनों की सेवा का अभियान चलाया। जिसमें दिन रात महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते करते गुरू साहिब अपने आप भी तेज ज्वर से पीड़ित हो गये। छोटी माता के अचानक प्रकोप ने उन्हें कई दिनों तक बिस्तर से बांध दिया। जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अन्त अब निकट है। जब
- उन्हें अपने उत्तराधिकारी को नाम लेने के लिए कहा, तो उन्हें केवल बाबा बकाला' का नाम लिया। यह शब्द केवल भविष्य गुरू, गुरू तेगबहादुर साहिब, जो कि पंजाब में ब्यास नदी के किनारे स्थित बकाला गांव में रह रहे थे, के लिए प्रयोग हुआ था।
गुरु तेग बहादुर:
- गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के दस गुरुओं में से नौवें थे। जिन्होने प्रथम गुरु नानक द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे।
- उनके द्वारा रचित 116 पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं।
- गुरुद्वारा सिस गंज साहिब और दिल्ली में गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब गुरु के शरीर के निष्पादन और दाह संस्कार के स्थानों को चिह्नित करते हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक द्वारा जारी नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, हर साल 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस के रूप में उनकी शहादत को याद किया जाता है।
- छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद की एक बेटी बीबी विरो और पांच बेटे थे जिनमें टायगा मल भी सम्मिलित थे। इनका जन्म 1 अप्रैल 1621 में अमृतसर में हुआ था, जिन्हें तेग बहादुर (तलवार की ताकत) नाम से जाना जाता था यह नाम उन्हें उनके पिता ने दिया था, जब उन्होंने मुगलों के खिलाफ लड़ाई में अपनी वीरता दिखाई थी।
- उन्होने काश्मीरी पण्डितों तथा अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हे इस्लाम कबूल करने को कहा कि पर गुरु साहब ने कहा सीस कटा सकते है केश नहीं। फिर उसने गुरुजी का सबके सामने उनका सिर कटवा दिया।
- उन्होंने प्राणी सेवा एवं परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि लोक परोपकारी कार्य भी किए। सन 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ, जो दसवें गुरु- गुरु गोबिन्द सिंह जी बने।
गुरु गोबिन्द सिंह:
- गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर पटना में 12 जनवरी 1666 को हुआ था। जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता असम में धर्म उपदेश को गये थे। उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था। पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जिसमें उन्होने अपने प्रथम चार वर्ष बिताये थे, वहीं पर अब तखत श्री पटना साहिब स्थित है।
- 1670 में उनका परिवार फिर पंजाब आ गया। मार्च 1672 में उनका परिवार हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर आ गया। यहीं पर इनकी शिक्षा आरम्भ हुई। उन्होंने फारसी, संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा। चक्क नानकी ही आजकल आनन्दपुर साहिब कहलता है।
- 1684 में उन्होने चंडी दी वार की रचना की। 1685 तक वह यमुना नदी के किनारे पाओंटा नामक स्थान पर रहे।
- 10 साल की उम्र में उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में किया गया। उन दोनों के 3 पुत्र हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह। 14 अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम था अजित सिंह।
- 33 साल की उम्र में, उन्होंने 15 अप्रैल 1700 को आनंदपुर में माता साहिब देवन से शादी की । उनकी कोई संतान नहीं थी, लेकिन सिख धर्म में उनकी प्रभावशाली भूमिका थी। गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें खालसा की माता के रूप में घोषित किया।
- गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा की पांच के परंपरा की शुरुआत की, केश: बिना बालों के, कंघा: एक लकड़ी की कंघी, काड़ा: कलाई पर पहना जाने वाला लोहे या स्टील का ब्रेसलेट, किरपान: तलवार या खंजर, कचेरा: छोटी लताएँ।
- गुरु गोविंद सिंह को सिख परंपरा में गुरु ग्रंथ साहिब - सिख धर्म के प्राथमिक ग्रंथ - करतारपुर पोथी (पांडुलिपि) को अंतिम रूप देने का श्रेय दिया जाता है।
- उन्होंने इन उद्देश्यों के साथ चौदह युद्धों का नेतृत्व किया, लेकिन कभी भी बंदी नहीं बने और न ही किसी के पूजा स्थल को क्षतिग्रस्त किया।
अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?
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सिख धर्म के गुरु प्रश्नोत्तर (FAQs):
औरंगजेब द्वारा किस सिख गुरू का वध किया गया था?
औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर की हत्या कर दी थी। गुरु तेग बहादुर जी, जो दसवें सिख गुरु थे, सिख धर्म के एक महान संत और योद्धा थे। उन्होंने अपना जीवन धर्म को समर्पित कर दिया और स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष किया। औरंगजेब ने उसे उसके धर्म के विरुद्ध खड़ा किया और वह शहीद हो गया।
चौथे सिख गुरु रामदास ने अमृतसर की स्थापना कब की थी ?
अमृतसर की स्थापना 1577 ईस्वी में चौथे सिख गुरु, श्री गुरु रामदास जी ने की थी। गुरु रामदास जी ने अपने शिष्य बाबा बुद्ध जी के साथ अमृतसर में एक आदर्श सिख साम्राज्य की नींव रखी थी। उन्होंने हरिमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) का निर्माण किया, जिसे बाद में इसमें शामिल सोने के कारण स्वर्ण मंदिर के रूप में जाना गया।
किस सिख गुरु ने फारसी में ‘जफरनामा’ लिखा था?
सिख गुरु गोबिंद सिंह जी ने फारसी भाषा में 'जफरनामा' लिखा था। 'जफरनामा' गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा मुगल बादशाह अहमद शाह दुर्रानी को लिखी गई एक काव्य रचना है। इस रचना में गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी वीरता, साहस और सिक्खों की विशिष्टता के बारे में बताया था।
किस सिख गुरु ने गुरु नानक की जीवनी लिखी थी?
सिख गुरु गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी की जीवनी लिखी। इस पुस्तक को 'गुरु नानक देव जी की वाराणसी' (गुर नानक देव जी की वारां) के नाम से जाना जाता है। गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं, उनकी शिक्षाओं और सिख धर्म की शुरुआत से जुड़ी जानकारियों को इस किताब में संकलित किया है।
भारत का फ्लाइंग सिख किसे कहा जाता है?
मिल्खा सिंह को भारत का फ्लाइंग सिख कहा जाता है। मिल्खा सिंह एक भारतीय ट्रैक और फील्ड स्प्रिंटर थे, जिन्हें भारतीय सेना में सेवा करते हुए इस खेल से परिचित कराया गया था। वह एशियाई खेलों के साथ-साथ राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर में स्वर्ण जीतने वाले एकमात्र एथलीट हैं।
सिख धर्म की स्थापना का उद्देश्य और इतिहास | History and Objectives of Sikhism in Hindi
सिख धर्मं की स्थापना क्यों की गयी थी, इसके उद्देश्य और पवित्र तख्त की कहानी | Sikhism History and Objectives, Story of Pavitra Takht in Hindi
सिख भारतीय आबादी का लगभग 2 प्रतिशत हैं. अन्य धर्मों की तुलना में, सिख धर्म एक छोटा और अल्पसंख्यक धर्म है. ‘सिख’ शब्द का अर्थ है एक शिष्य और इस प्रकार सिख धर्म (Sikhism) मूल रूप से शिष्यत्व का मार्ग है. सच्चा सिख सांसारिक चीजों के प्रति अनासक्त रहता है. एक सिख को अपने परिवार और समुदाय के प्रति अपना कर्तव्य निभाना चाहिए. सिख धर्म की स्थापना गुरुनानक द्वारा की गई थी. यह केवल एक भगवान के अस्तित्व का प्रचार करता है और अन्य धर्मों के लिए ईमानदारी, करुणा, विनम्रता, पवित्रता, सामाजिक प्रतिबद्धता और सहिष्णुता के सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य आदर्शों को सिखाता है.
गुरु नानक देव ने सिख धर्मं की स्थापना के समय अन्य धर्मों की अच्छी मान्यताओं को शामिल किया. कुछ अमानवीय भारतीय रीति-रिवाज जैसे जाति व्यवस्था और सती (विधवा को जलाना) सिख धर्म में त्याग दिए गए थे. सिख धर्म में हर किसी को जाति, पंथ, रंग, नस्ल, लिंग या धर्म के बावजूद समान अधिकार प्राप्त हैं. सिख धर्म अनावश्यक रिवाजों को खारिज करता है. एक सिख एक भगवान और गुरुओं की शिक्षाओं में विश्वास करता है, जो श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सन्निहित हैं.
गुरुद्वारा सिखों का पूजा स्थल है. जैसा कि सिख धर्म का मानना है कि भगवान हर जगह है यह पवित्र स्थानों पर तीर्थ यात्रा का समर्थन नहीं करता है. अमृतसर में हरि मंदिर (स्वर्ण मंदिर) सिख धर्म का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है. सिख धर्म की विशिष्ट विशेषताओं में से एक आम रसोई है जिसे लंगर कहा जाता है. हर गुरुद्वारे में लंगर होता है. हर सिख से यह अपेक्षा की जाती है कि वह मुफ्त रसोई में भोजन तैयार करने में योगदान दे.
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव इसके पहले गुरु थे. उनके बाद नौ और गुरु थे जो सिखों के सर्वोच्च धार्मिक अधिकारी थे. सिखों के अंतिम गुरु गोविंद सिंह ने घोषणा की कि उनके बाद सिखों का नया गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र पुस्तक होगी. गुरु ग्रंथ साहिब गुरुमुखी लिपि में लिखे गए हैं. गुरु ग्रंथ साहिब में सिख गुरुओं के लेखन और हिंदू संतों और मनीषियों के लेखन शामिल हैं. गुरु गोविंद सिंह का लेखन एक अलग पुस्तक में दिखाई देता है जिसे “दशम ग्रंथ” कहा जाता है.
सिखों के पांच तख़्त ( Five Takhts of Sikhism )
तख्त का शाब्दिक अर्थ है एक सिंहासन. तख्त को सिख धार्मिक प्राधिकरण की जगह माना जाता है. सिख समुदाय के धार्मिक और सामाजिक जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय तख्तों पर लिए जाते हैं.
पहला और सबसे महत्वपूर्ण तख्त 1609 में गुरु हरगोबिंद द्वारा स्थापित किया गया था. इस तख्त को ‘अकाल तख्त’ कहा जाता है और यह हरमंदार साहिब – स्वर्ण मंदिर, अमृतसर के ठीक सामने स्थित है.
प्राधिकरण की दूसरी जगह “तख्त श्री पटना साहिब” को कहा जाता है. यह पटना में स्थित हैं.
तीसरा तख्त श्री केशगढ़ साहिब आनंदपुर साहिब में स्थित है. यह वह स्थान है जहाँ 1699 में गुरु गोविंद सिंह द्वारा खालसा (सिख भाईचारे) का जन्म हुआ था.
चौथा तख्त श्री दमदमा साहिब, भटिंडा के पास तलवंडी गाँव में स्थित है. यहाँ गुरु गोबिंद सिंह लगभग एक वर्ष तक रहे और उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब के अंतिम संस्करण को संकलित किया.
पांचवा तख्त श्री हज़ूर साहिब, महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है. यह वह स्थान है जहां गुरु गोविंद सिंह स्वर्ग में निवास के लिए गए थे.
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Sikh Dharm / सिक्ख धर्म का भारतीय धर्मों में अपना एक पवित्र एवं अनुपम स्थान है। सिक्खों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव सिक्ख धर्म के प्रवर्तक हैं। ‘सिक्ख धर्म’ की स्थापना 15वीं शताब्दी में भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग के पंजाब में गुरु नानक देव द्वारा की गई थी। ‘सिक्ख’ शब्द ‘शिष्य’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका तात्पर्य है- “गुरु नानक के शिष्य”, अर्थात् उ...
सिख धर्म एक एकेश्वरवादी धर्म है, जिसकी उत्पत्ति 15 वीं शताब्दी के अंत में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में पंजाब क्षेत्र में हुई थी। इस धर्म को सिखमत और सिखी भी कहा जाता है। यह प्रमुख विश्व धर्मों में से एक है, और दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा संगठित धर्म है। इस धर्म के लोग लगभग हर जगह मौजूद हैं।.
वर्ष 2019 सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का 550वाँ जयंती वर्ष है। इनका जन्म स्थल पाकिस्तान स्थित श्री ननकाना साहिब है।. सिख अपने धर्म को पाँच महत्त्वपूर्ण घटनाक्रमों की परिणति मानते हैं।.
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सिख धर्म का भारतीय धर्मों में अपना एक पवित्र स्थान है। ‘सिख’ शब्द की उत्पत्ति ‘शिष्य’ से हई है, जिसका अर्थ गुरुनानक के शिष्य से अर्थात् उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करने वालों से है। गुरुनानक देव जी सिख धर्म के पहले गुरु और प्रवर्तक हैं। सिख धर्म में नानक जी के बाद नौ गुरु और हुए।.
सिख धर्म (खालसा या सिखमत; पंजाबी: ਸਿੱਖੀ) 15वीं सदी में जिसकी शुरुआत गुरु नानक देव जी ने की थी। सिखों के धार्मिक ग्रन्थ श्री आदि ग्रंथ साहिब या गुरु ग्रन्थ साहिब तथा दसम ग्रन्थ हैं। सिख धर्म में इनके धार्मिक स्थल को गुरुद्वारा कहते हैं। आमतौर पर सिखों के दस सतगुरु माने जाते हैं, लेकिन सिखों के धार्मिक ग्रंथ में छः गुरुओं सहित तीस भगतों की बानी है...
सिख धर्म (Sikhism) समानता और आधुनिक न्याय पर आधारित एक नया धर्म है, जो उपवास, तीर्थ यात्रा, अंधविश्वास, मृतकों व मूर्ति पूजा जैसे अनुष्ठानों का निंदा करता है. इसका उदय पंद्रहवीं सदी के दौरान सल्तनत काल में हुआ था, मुग़ल शासन के दौर के कारण मुग़ल काल भी कहा जा सकता है. आज इस धर्म के अनुयायी पुरे दुनिया में फैले हुए है.
‘सिख’ शब्द का अर्थ है एक शिष्य और इस प्रकार सिख धर्म (Sikhism) मूल रूप से शिष्यत्व का मार्ग है. सच्चा सिख सांसारिक चीजों के प्रति अनासक्त रहता है. एक सिख को अपने परिवार और समुदाय के प्रति अपना कर्तव्य निभाना चाहिए. सिख धर्म की स्थापना गुरुनानक द्वारा की गई थी.
सिख धर्म का उदय गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के साथ होता है। सिख का अर्थ है शिष्य। जो लोग गुरु नानक जी की शिक्षाओं पर चलते गए, वे सिख हो गए। यह धर्म विश्व का नौवां बड़ा धर्म है। भारत के प्रमुख चार धर्मों में इसका स्थान भी है। सिख धर्म की पहचान पगड़ी और अन्य पोशाकों से भी की जाती है लेकिन ऐसे भी कई सिख होते हैं जो पगड़ी धारण नहीं करते।.