पर्यावरण संरक्षण पर निबंध (300, 500 और 600 शब्दों में)

दहेज प्रथा पर निबंध

दोस्तों, हम अपने पर्यावरण के विषय में तो जानते ही हैं, कि पर्यावरण ही दुनिया के समस्त भगौलिक स्थितियों का नियंत्रणकर्ता है। लेकिन आधुनिक भारत में नवीनीकरण व औद्यौगिककरण ने देश के पर्यावरण को इस तरह दूषित कर दिया है, कि मानव जाति का जीवन ही संकट में अा चुका है।

आज के आर्टिकल के जरिए हम अपने लेख में आपको पर्यावरण संरक्षण विषय पर निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं। जो आपकी निबंध प्रतियोगिताओं, निबंध लेखन इत्यादि में लाभकारी साबित होंगे। तो आइए जानते हैं, पर्यावरण संरक्षण पर निबंध

Table of Contents (विषय सूची)

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध (300).

पर्यावरण संरक्षण का मतलब है, हमारे आस पास के वातावरण को संरक्षित करना। पर्यावरण मानव जाति के लिए एक उपहार है। जिसको सुरक्षित करना हमारा कर्तव्य है। लेकिन आज के समय में स्वार्थी मनुष्य अपने हित के लिए पर्यावरण का अहित कर रहा है। जो वाकई बेहद घातक सिद्ध हो सकता है। पर्यावरण का मानव जीवन से सीधा संबंध है। इसलिए पर्यावरण को हानि पहुंचेगी तो मानव जीवन भी कलुषित हो जाएगा। यही कारण है कि वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण के लिए सार्थक कदम उठाए जाने की मांग बढ़ती चली जा रही है।

पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता

हमारे आस पास का समस्त वातावरण जैसे पेड़ पौधे, पशु, पक्षी, मनुष्य, जीव जंतु इत्यादि पर्यावरण का ही एक हिस्सा हैं। इस प्रकार इन सभी का पर्यावरण से घनिष्ठ सम्बन्ध है। हम कह सकते हैं कि यह सब एक दूसरे के पूरक है। ऐसे में यदि आप अपने पूरक को ही दूषित कर देंगे तो निसंदेह आपका दूषित होने भी स्वाभाविक है।

पर्यावरण के दूषित होने से संसार में अनेकों बीमारियां जन्म ले रही हैं। जीव जंतुओं की संख्या भी घटती जा रही है। पेड़ पौधे जो हमें ताजी हवा प्रदान करते हैं. इनकी संख्या घटती जा रही है। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण एक सोचनीय विषय बन जाता है।

पर्यावरण संरक्षण के उपाय

पर्यावरण को सुरक्षित करना किसी व्यक्ति का कर्तव्य नहीं है। बल्कि यह संपूर्ण विश्व के लोगों का दायित्व है कि वह पर्यावरण संरक्षण को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। पर्यावरण संरक्षण हेतु अपनाए जाने वाले उपायों में निम्नलिखित उपाय शामिल हैं।

सबसे पहले हमें पर्यावरण को दूषित करने वाले कारकों के विषय में जानना होगी। जब तक इस बात का ज्ञान नहीं होगा कि आखिर पर्यावरण को दूषित करने के पीछे क्या कारण हैं तब तक हम उनका निवारण नहीं कर सकते हैं।

इस प्रकार, पर्यावरण से जन्म लेने वाले हम पर्यावरण के अंश हैं। हमें अपने पर्यावरण का आनंद लेने, उसका प्रयोग करने का जितना अधिकार है उतना ही पर्यावरण को संरक्षण करने का कर्तव्य है। अतः हमें सरकार के साथ मिलकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के लिए और उसे प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक साथ जागरूक होना होगा।

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध (500)

प्रस्तावना : पर्यावरण संरक्षण एक अभ्यास है जिसका उद्देश्य व्यक्तियों, संगठनों और सरकारों के हाथों से प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना है। यह समय की मांग है क्योंकि पृथ्वी का पर्यावरण हर दिन बिगड़ रहा है और इसका कारण मनुष्य हैं। वे अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पृथ्वी के पर्यावरण को गलत तरीके से संभाल रहे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह कहना मुश्किल है कि आने वाली पीढ़ी के पास रहने के लिए एक सुरक्षित वातावरण होगा या नहीं।

पर्यावरण व मानव जीवन

पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए अच्छा पर्यावरण होना आवश्यक है। ऐसी चीजें जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं जैसे उद्योगों या कारखानों में काम करना, ईंधन से चलने वाले वाहनों से आना-जाना, एयर कंडीशनर का उपयोग करना आदि हमारे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गए हैं। हम जितनी ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं वह आवश्यक है और इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है। पर्यावरण की सुरक्षा के महत्व के बारे में पूरी तरह से जागरूक होने के बावजूद हम पर्यावरण क्षरण में प्रमुख योगदान करें। जो कि मानव जीवन के लिए एक श्राप साबित हो सकता है। इसीलिए बेहद जरूरी है कि आत्मा की शुद्धि पर मनुष्य की आयु वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पर्यावरण का संरक्षण किया जाए।

पर्यावरण संरक्षण की जरूरत

हर साल प्रदूषण बढ़ने और प्राकृतिक पर्यावरण के बिगड़ने के कारण, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम उठाना आवश्यक हो गया है। जैसा कि हम जानते हैं कि इन सभी समस्याओं का कारण मनुष्य है, सरकारों को अपनी गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए नीतियां बनानी चाहिए जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं। यदि इन्हें तत्काल नहीं रोका गया तो आने वाले वर्षों में विश्व में कुछ विनाशकारी विनाश देखने को मिल सकता है। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी समस्या रही है, और यह बढ़ते प्रदूषण के कारणों में से एक है। एक सुरक्षित भविष्य समग्र रूप से पर्यावरण पर निर्भर करता है।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में भारत की संसद द्वारा पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के प्रयास में पारित एक अधिनियम है। यह भोपाल गैस त्रासदी के बाद सरकार द्वारा अधिनियमित किया गया था। यह दिसंबर 1984 में भोपाल, मध्य प्रदेश में एक गैस रिसाव की घटना थी। इसे दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक आपदा माना जाता था क्योंकि आधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 थी और 500,000 से अधिक लोग मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस के संपर्क में आए थे। इस अधिनियम को स्थापित करने का उद्देश्य लोगों को मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के निर्णयों को लागू करना था। यह पर्यावरण के संरक्षण और सुधार और पर्यावरणीय खतरों की रोकथाम के लिए बनाया गया था।

अतः पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम बनाए गए हैं। व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचते हैं। हालांकि, ये सभी प्रयास तब तक व्यर्थ जाएंगे जब तक कि लोग पर्यावरण को बचाने की अपनी जिम्मेदारी नहीं मानेंगे। हम सभी को अपने पर्यावरण को बचाकर अपने ग्रह को बचाने के लिए व्यक्तिगत रूप से एक साथ आना होगा।

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध (600)

मानव जाति हमेशा पर्यावरण के बारे में चिंतित रही है। प्राचीन यूनानियों ने पर्यावरण दर्शन को विकसित करने वाले पहले लोग थे, और उनके बाद भारत और चीन जैसी अन्य प्रमुख सभ्यताओं का पालन किया गया। हाल के दिनों में, पारिस्थितिक संकट के बारे में बढ़ती जागरूकता के कारण पर्यावरण के लिए चिंता बढ़ गई है। क्लब ऑफ रोम, एक थिंक टैंक, अपनी रिपोर्ट “द लिमिट्स टू ग्रोथ” (1972) में दुनिया को अति जनसंख्या और प्रदूषण के खतरों के बारे में चेतावनी देने वाले पहले लोगों में से था।

आधुनिक पर्यावरण आंदोलन 1960 के दशक में शुरू हुआ जब पर्यावरण पर मनुष्यों के नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंताएं शुरू हुईं। इन चिंताओं के जवाब में, दुनिया भर की सरकारों ने पर्यावरण की रक्षा के लिए कानून पारित करना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में, पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) की स्थापना 1970 में हुई थी।

पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांत

पर्यावरण संरक्षण के तीन मूलभूत सिद्धांत है। पहला सिद्धांत बताता है कि यदि किसी गतिविधि में पर्यावरण के लिए नुकसान पहुंचाने की क्षमता है तो उस नुकसान को रोकने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। दूसरा, सिद्धांत प्रदूषण पैदा करने के लिए जिम्मेदार पार्टी को इसे साफ करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। तीसरा सिद्धांत, जनता को पर्यावरण के लिए किसी भी संभावित खतरों के बारे में जानने का अधिकार है और पर्यावरण को संरक्षित करने उनके कर्मों में से एक भी है।

पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य

पर्यावरण संरक्षण के तीन मुख्य लक्ष्य हैं।

  • मानव स्वास्थ्य की रक्षा करना: यह पर्यावरण संरक्षण का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है क्योंकि मनुष्य स्वस्थ पर्यावरण के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं।
  • पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा के लिए: पारिस्थितिक तंत्र पृथ्वी पर जीवन की नींव हैं, और वे मनुष्यों को स्वच्छ हवा और पानी, भोजन और फाइबर जैसे कई लाभ प्रदान करते हैं।
  • सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए: सतत विकास एक ऐसा विकास है जो भविष्य की पीढ़ियों की अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करता है।

पर्यावरण संरक्षण हेतु सुझाव

पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं:

  • यदि आप अपने घर को पेंट कर रहे हैं, तो लेटेक्स पेंट का उपयोग करें, क्योंकि तेल आधारित पेंट हाइड्रोकार्बन धुएं को छोड़ते हैं।
  • अपने निजी वाहन का उपयोग करने के बजाय, बाइक या सार्वजनिक परिवहन के लिए जाएं। क्योंकि ध्वनि प्रदूषण और स्मॉग में वाहन यातायात का प्रमुख योगदान है।
  • इसके बजाय कम उर्वरक का उपयोग करने या जैविक उर्वरकों का उपयोग करने का प्रयास करें क्योंकि जब बारिश होती है, तो उर्वरक बारिश के पानी के साथ नदियों में बह जाते हैं।
  • वाशिंग मशीन का उपयोग करते समय, इसे पूरा लोड करने का प्रयास करें या लोड के अनुसार जल स्तर को समायोजित करें। वाशिंग मशीन लगभग 40 गैलन पानी का उपयोग करती है।
  • कार या अन्य वाहनों को धोने के लिए नली के बजाय बाल्टी का प्रयोग करें। क्योंकि जब आप काम कर रहे होते हैं तो होज़ से निकलने वाला पानी बहुत सारा पानी बर्बाद करता है।
  • उपयोग में न होने पर लाइट, पंखे और अन्य बिजली के उपकरणों को बंद करके ऊर्जा बचाने का प्रयास करें। इससे आपके बिल को काफी हद तक कम करने में भी मदद मिलेगी।
  • सामान्य रूप से पेड़ पौधों को ना काटे और आसपास छोटे बड़े पेड़ पौधे लगाने का प्रयास करें।
  • देश में पॉलीथिन का प्रयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस प्रकार आप भी पॉलिथीन का यूज़ कम से कम करें। बाजार या दुकान पर सामान लेने के लिए आप अपना कपड़े का थैला यूज करें।

इस प्रकार हम जानते हैं कि मनुष्य ही पर्यावरण को दूषित करने का कारण है। इसीलिए पर्यावरण संरक्षण में मनुष्य को ही अपना विशेष योगदान देना होगा। अब समय समझने का और समझदारी दिखाने का है। हम सभी को मिलकर पर्यावरण संरक्षण की महत्वता को समझना होगा और इसके लिए एक साथ आगे आना होगा।

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पर्यावरण संरक्षण पर 10 LINES

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध (300, 500 और 600 शब्दों में) 1

  • महान व्यक्तियों पर निबंध
  • पर्यावरण पर निबंध
  • प्राकृतिक आपदाओं पर निबंध
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  • स्वास्थ्य पर निबंध
  • महिलाओं पर निबंध

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पर्यावरण संरक्षण पर निबंध | Environment Conservation Essay in Hindi

Environment Conservation Essay in Hindi प्रिय विद्यार्थियों आपका स्वागत है आज हम  पर्यावरण संरक्षण पर निबंध हिंदी में जानेगे.

हमारे चारों ओर के आवरण को वातावरण कहा जाता है प्रदूषण की समस्या के चलते आज पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता हैं. 

Environment Conservation Essay in Hindi कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के लिए 5, 10 लाइन, 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में एनवायरमेंट एस्से शेयर कर रहे है.

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध Environment Conservation Essay in Hindi

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध | Environment Conservation Essay in Hindi

Here We Share With You Environment Conservation Essay in Hindi For School Students & Kids In Pdf Format Let Read And Enjoy:-

Short Essay On Environment Conservation Essay in Hindi In 300 Words

भारत में पर्यावरण  के प्रति वैदिक काल से ही जागरूकता रही है. विभिन्न पौराणिक ग्रंथो में पर्यावरण के विभिन्न कारको का महत्व व उनको आदर देते हुए संरक्षण की बात कही गई है.

भारतीय ऋषियों ने सम्पूर्ण प्राकृतिक शक्तियों को ही देवता का स्वरूप माना है. सूर्य जल, वनस्पति, वायु व आकाश को शरीर का आधार बताया गया है.

अथर्ववेद में भूमिसूक्त पर्यावरण संरक्षण का प्रथम लिखित दस्तावेज है. ऋग्वेद में जल की शुद्दता, यजुर्वेद में सभी प्रकृति तत्वों को देवता के समान आदर देने की बात कही गई है.

पहले अमेरिका प्रदूषण का उत्सर्जन करता था, लेकिन अब चीन उससे आगे निकल चुका है।

वैदिक उपासना के शांति पाठ में भी अन्तरिक्ष, पृथ्वी, जल, वनस्पति, आकाश सभी में शान्ति एवं श्रेष्टता की प्रार्थना करी गई है. वेदों में ही एक वृक्ष लगाने का पुण्य सौ पुत्रो के पालन के समान बताया गया है. हमारे राष्ट्र गीत वंदेमातरम् में पृथ्वी को ही माता मानकर उसे पूजनीय माना गया है.

हमारी संस्कृति को अरण्य संस्कृति भी कहा जाता है . इसके पीछे भाव यही है कि वन हरे भरे वृक्षों से सदैव यहाँ का पर्यावरण समर्द्ध रहा है.

महाभारत व रामायण में वृक्षों के प्रति अगाध श्रद्धा बताई गई है. विष्णु धर्म सूत्र, स्कन्द पुराण तथा याज्ञवल्क्य स्मृति में वृक्षों को काटने को अपराध बताया गया है तथा वृक्ष काटने वालों के लिए दंड का विधान किया गया है.

विश्व पर्यावरण दिवस पूरे विश्व में 5 जून को मनाया जाता है.  पर्यावरण ही हमारी वैदिक परम्परा रही है कि प्रत्येक मनुष्य पर्यावरण में ही पैदा होता है, पर्यावरण में ही जीता है और पर्यावरण में ही लीन हो जाता है.

वर्तमान में पर्यावरण चेतना के प्रति जागरूकता अत्यंत आवश्यक है क्योकि पर्यावरण प्रदूषित हो जाने से ग्लोबल वार्मिग की समस्या उत्पन्न हो गई है. इसको रोकने के लिए पर्यावरण संरक्षण व पर्यावरण शिक्षा का प्रचार जरुरी है. हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई अहम कदम उठाए गये है

जिनमे खेजड़ली आंदोलन, चिपकों आंदोलन, अप्पिको आंदोलन, शांतघाटी आंदोलन और नर्मदा बचाओ आंदोलन पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता के ही परिचायक है. राजस्थान के बिश्नोई समाज के 29 सूत्र पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण नियम है.

भारत विश्व के प्रमुख जैव विविधता वाले देशों में से एक है, जहां पूरी दुनिया में पाए जाने वाले स्तनधारियों का 7.6%, पक्षियों का 12.6%, सरीसृप का 6.2% और फूलों की प्रजातियों का 6.0% निवास करती हैं.

Best Short Environment Conservation Essay in Hindi For Kids In 500 Words

प्रस्तावना- पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना हुआ है. परि का आशय चारो ओर तथा आवरण का आशय परिवेश हैं. वास्तव में पर्यावरण में वायु, जल, भूमि, पेड़ पौधे, जीव जन्तु मानव और इसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं.

इस धरती और सृष्टि के पर्यावरण का निर्माण करने वाले भूमि जल एवं वायु आदि तत्वों में जब कुछ विकृति आ जाती हैं अथवा इसका आपस में संतुलन गडबडा जाता है, तब पर्यावरण प्रदूषित हो जाता हैं.

पर्यावरण संरक्षण की समस्या- धरती पर जनसंख्या की निरंतर वृद्धि, औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति से जहाँ प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों को समाप्त किया जा रहा है.

वहां ईधन चालित यातायात वाहनों, खदानों, प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन और आण्विक ऊर्जा के प्रयोग से सारा प्राकृतिक संतुलन डगमगाता जा रहा हैं.

वर्तमान समय में गैसीय पदार्थों, अपशिष्ट पदार्थों, विभिन्न यंत्रों की कर्णकटु ध्वनियों एवं अनियंत्रित भूजल के उपयोग आदि कार्यों से भूमि, जल, वायु, भूमंडल तथा समस्त प्राणियों का जीवन पर्यावरण प्रदूषण से ग्रस्त हो रहा हैं. ऐसे में पर्यावरण का संरक्षण करना और इसमें संतुलन बनाएं रखना कठिन कार्य बन गया हैं.

पर्यावरण संरक्षण का महत्व- पर्यावरण संरक्षण का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से घनिष्ठ सम्बन्ध है. पर्यावरण संरक्षण को लेकर सन 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ब्राजील में विश्व के 174 देशों का पृथ्वी सम्मेलन आयोजित किया गया.

फिर सन 2002 में जोहांसबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय सुझाएँ गये.

वस्तुतः पर्यावरण संरक्षण से ही धरती पर जीवन सुरक्षित रह सकता हैं. अन्यथा मंगल आदि ग्रहों की तरह धरती का जीवन चक्र भी एक दिन समाप्त हो जाएगा.

पर्यावरण संरक्षण के उपाय- पर्यावरण संरक्षण के लिए इसे प्रदूषित करने वाले कारकों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है. इस दृष्टि से आण्विक विस्फोटों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए.

युवा वर्ग विशेष रूप से विद्यार्थी वृक्षारोपण करे, पर्यावरण की शुद्धता के लिए जन जागरण का काम करे. विषैले अपशिष्ट छोड़ने वाले उद्योगों और प्लास्टिक कचरे का विरोध करे.

वे जल स्रोतों की शुद्धता का अभियान चलावे. पर्यावरण संरक्षण के लिए हरीतिमा का विस्तार, नदियों की स्वच्छता, गैसीय पदार्थों का उचित विसर्जन, रेडियोधर्मी बढ़ाने वाले संसाधनों पर रोक, गंदे जल मल का परिशोधन, कारखानों के अपशिष्टों का उचित निस्तारण और गलत खनन पर रोक आदि उपाय किये जा सकते हैं. ऐसे कारगर उपायों से ही पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखा जा सकता हैं.

उपसंहार- पर्यावरण संरक्षण किसी एक व्यक्ति या किसी एक देश का काम न होकर समस्त विश्व के लोगों का कर्तव्य है. पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले सभी कारकों को अतिशीघ्र रोका जाए. युवा वर्ग द्वारा वृक्षारोपण व जलवायु स्वच्छकरण हेतु जन जागरण का अभियान चलाया जाए, तभी पर्यावरण सुरक्षित रह सकेगा.

पर्यावरण संरक्षण का महत्व Environment Protection Essay In Hindi

प्रस्तावना – मनुष्य इस पृथ्वी नामक ग्रह पर अपने अविर्भाव से लेकर आज तक प्रकृति पर आश्रित रहा हैं. प्रकृति पर आश्रित रहना उसकी विवशता हैं.

प्रकृति ने पृथ्वी के वातावरण को इस प्रकार बनाया हैं कि वह जीव जंतुओं के जीवन के लिए उपयुक्त सिद्ध हुआ हैं. पृथ्वी का वातावरण ही पर्यावरण कहलाता हैं.

पर्यावरण संरक्षण –   मनुष्य ने सभ्य बनने और दिखने के प्रयास में पर्यावरण को दूषित कर दिया हैं. पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखना मानव तथा जीव जंतुओं के हित में हैं. आज विकास के नाम पर होने वाले कार्य पर्यावरण के लिए संकट बन गये हैं. पर्यावरण के संरक्षण की आज महती आवश्यकता हैं.

पर्यावरण प्रदूषण – आज का मनुष्य प्रकृति के साधनों का अविवेकपूर्ण और निर्मम दोहन करने में लगा हुआ हैं. सुख सुविधाओं की प्राप्ति के लिए नाना प्रकार के उद्योग खड़े किये जा रहे हैं.

जिनका कूड़ा कचरा और विषैला अवशिष्ट भूमि, जल और वायु को प्रदूषित कर रहा हैं. हमारी वैज्ञानिक प्रगति ही पर्यावरण को प्रदूषित करने में सहायक हो रही हैं.

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार – आज हमारा पर्यावरण तेजी से प्रदूषित हो रहा हैं. यह प्रदूषण मुख्य रूप से तीन प्रकार का हैं,

  • जल प्रदूषण – जल मानव जीवन के लिए परम आवश्यक पदार्थ हैं. जल के परम्परागत स्रोत हैं कुँए, तालाब, नदी तथा वर्षा जल. प्रदूषण ने इन सभी स्रोतों को दूषित कर दिया हैं. महानगरों के समीप से बहने वाली नदियों की दशा दयनीय हैं. गंगा, यमुना , गोमती आदि सभी नदियों की पवित्रता प्रदूषण की भेंट चढ़ गयी हैं. उनको स्वच्छ करने में करोड़ो रूपये खर्च करके भी सफलता नहीं मिली हैं, अब तो भूमिगत जल भी प्रदूषित हो चूका हैं.
  • वायु प्रदूषण- वायु भी जल की तरह अति आवश्यक पदार्थ हैं. आज शुद्ध वायु का मिलना भी कठिन हो गया हैं. वाहनों, कारखानों और सड़ते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी जहर भर दिया हैं. घातक गैसों के रिसाव भी यदा कदा प्रलय मचाते रहते हैं. गैसीय प्रदूषण ने सूर्य की घातक किरणों से धरती की रक्षा करने वाली ओजोन परत को भी छेद डाला है.
  • ध्वनि प्रदूषण – कर्णकटु और कर्कश ध्वनियाँ मनुष्य के मानसिक संतुलन को बिगाड़ती हैं. और उसकी कार्य क्षमता को भी प्रभावित करती हैं. आकाश में वायुयानों की कानफोड ध्वनियाँ, धरती पर वाहनों, यंत्रों और संगीत का मुफ्त दान करने वाले ध्वनि विस्तारकों का शोर सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देंने पर तुले हुए हैं. इनके अतिरिक्त अन्य प्रकार का प्रदूषण भी पनप रहा हैं और मानव जीवन को संकट में डाल रहा हैं.
  • मृदा प्रदूषण – कृषि में रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों के प्रयोग ने मिट्टी को भी प्रदूषित कर दिया हैं.
  • विकिरणजनित प्रदूषण- परमाणु विस्फोटों तथा परमाणु संयंत्रों से होते रहने वाले रिसाव आदि ने विकिरणजनित प्रदूषण भी मनुष्य को भोगना पड़ रहा हैं.
  • खाद्य प्रदूषण – मिट्टी, जल और वायु के बीच पनपने वाली वनस्पति तथा उसका सेवन करने वाले पशु पक्षी भी आज दूषित हो रहे हैं. चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी, कोई भी भोजन प्रदूषण से नहीं बच सकता.

प्रदूषण नियंत्रण/रोकने/ संरक्षण के उपाय – प्रदूषण ऐसा रोग नहीं हैं जिसका कोई उपचार न हो. प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बस्तियों से सुरक्षित दूरी पर ही स्थापित किया जाना चाहिए.

किसी भी प्रकार की गंदगी और प्रदूषित पदार्थ को नदियों और जलाशयों में छोड़ने पर कठोर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए.

वायु को प्रदूषित करने वाले वाहनों पर भी नियंत्रण आवश्यक हैं. इसके अतिरिक्त प्राकृतिक जीवन जीने का अभ्यास करना भी आवश्यक हैं. प्रकृति के प्रतिकूल चलकर हम पर्यावरण प्रदूषण पर विजय नहीं पा सकते.

जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि को रोकने की भी जरूरत हैं. छायादार तथा सघन वृक्षों का आरोपण भी आवश्यक हैं.कृषि में रासायनिक खाद तथा कीटनाशक रसायनों के छिड़काव से बचना भी जरुरी हैं.

उपसंहार – पर्यावरण प्रदूषण एक अद्रश्य दानव की भांति मनुष्य समाज या समस्त प्राणी जगत को निगल रहा हैं. यह एक विश्व व्यापी संकट हैं.

यदि इस पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो आदमी शुद्ध जल, वायु, भोजन और शांत वातावरण के लिए तरस जाएगा. प्रशासन और जनता दोनों के गम्भीर प्रयासों से ही प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती हैं.

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Essay on Nature: विद्यार्थियों के लिए प्रकृति पर परीक्षाओं में आने वाले निबंध

essay in hindi on nature conservation

  • Updated on  
  • जून 27, 2024

Essay on Nature in Hindi

प्रकृति हमारी धरती और मानवीय उद्धार दोनों के लिए अत्यंत महत्व रखती है। प्रकृति के बारे में जानना छात्रों को चाहिए है कि उनके कार्य पर्यावरण को कैसे प्रभावित करते हैं, जिससे पर्यावरण के और रख-रखाव को बढ़ावा मिलता है। वहीँ छात्र जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव को कम करने के तरीकों के बारे में सीखते हैं। वे यह भी समझ पाते हैं कि प्रकृति के संपर्क में आने से तनाव, चिंता और अवसाद कम होता है। जिससे मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। कई बारी छात्रों को कक्षाओं या परीक्षाओं में Essay on Nature in Hindi पर निबंध लिखने के लिए दिया जाता है। इस बारे में अधिक जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें।

This Blog Includes:

प्रकृति पर 100 शब्दों के निबंध, प्रकृति पर 200 शब्दों के निबंध, प्रकृति का हमारे जीवन में महत्व, प्रकृति का संरक्षण कैसे करें.

हमारे आस-पास के सुंदर और आकर्षक नदी, पहाड़, बड़े मैदान और जंगल आदि प्रकृति का हिस्सा हैं। आस पास के अच्छे वातावरण से हम खुश रहते हैं और स्वस्थ जीवन के लिए एक प्राकृतिक वातावरण प्रदान करती है। यह हमें विभिन्न प्रकार के फूल, आकर्षक पक्षी, जानवर, हरे पौधे, नीला आकाश, भूमि, बहती नदियाँ, समुद्र, जंगल, हवा, पहाड़, घाटियाँ, पहाड़ियाँ प्रदान करती है। कुदरत ने हमारी भलाई के लिए इस अद्भुत प्रकृति का निर्माण किया है। हम अपने दैनिक जीवन में जो कुछ भी उपयोग करते हैं वह प्रकृति से आता है। इसलिए हमें ध्यान रखना चाहिए कि इसे खराब या नुकसान न पहुंचाएं।

हमें प्रकृति की सुंदरता को संवार के करना चाहिए और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखना चाहिए। प्रकृति हमें रहने-जीने के लिए एक सुंदर वातावरण देती है। इस कारण से इसे साफ रखना और नुकसान से बचाना हमारा कर्तव्य है। आज की दुनिया में, कई स्वार्थी और हानिकारक मानवीय गतिविधियों ने प्रकृति को बहुत परेशान किया है। हमारा जीवन प्रकृति पर निर्भर करता है हम सभी को प्रकृति की सुंदरता को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।

200 शब्दों में Essay on Nature in Hindi नीचे दिया गया है-

प्रकृति हमारे आस-पास की हर चीज़ है जो एक सुंदर और स्वच्छ वातावरण बनाती है। हम अपने जीवन के हर एक पल में प्रकृति का अनुभव करते हैं और उसका आनंद लेते हैं, इसके परिवर्तनों को देखते हैं, इसकी आवाज़ें सुनते हैं और इसे अपने चारों ओर महसूस करते हैं। हमें शरीर के लिए आवश्यक ताज़ी हवा में सांस लेने और सुबह की सुंदरता का आनंद लेने के लिए सुबह की सैर के लिए बाहर जाकर प्रकृति का पूरा लाभ उठाना चाहिए। सुबह से लेकर शाम तक पूरे दिन प्रकृति अपना रूप बदलती रहती है। सूर्योदय के समय चमकीला नारंगी और फिर पीला रंग होता है, और सूर्यास्त के समय आसमान गहरा नारंगी और फिर धीरे-धीरे गहरा होता जाता है।

प्रकृति हमें वह सब कुछ प्रदान करती है जिसकी हमें अपने जीवन में ज़रूरत होती है। प्रकृति से हम सब कुछ प्रदान करने के बाद हम प्रकृति को वापसी में कुछ भी नहीं देते हैं। हमारी आधुनिक तकनीकी दुनिया में प्रकृति पर उनके प्रभाव पर विचार किए बिना रोज़ नए आविष्कार किए जाते हैं। पृथ्वी पर जीवन के जारी निरंतर अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए प्रकृति के द्वारा दिए गए संसाधनों की रक्षा और संरक्षण करना हमारी ज़िम्मेदारी है। यदि वर्तमान समय में हम प्रकृति के संरक्षण के लिए कार्रवाई नहीं करते हैं, तो हम आने वाली पीढ़ियों को खतरे में डाल रहे हैं। हमें प्रकृति के महत्व और मूल्य को समझना चाहिए और इसकी प्राकृतिक सुंदरता को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।

प्रकृति पर 500 शब्दों के निबंध

500 शब्दों में Essay on Nature in Hindi नीचे दिया गया है-

प्रकृति मानवता के लिए अत्यंत महत्व रखती है। यह एक अनमोल वरदान है जो हमारे जीवन को समृद्ध बनाती है। वर्तमान में कई लोग इसके महत्व को समझने में विफल रहते हैं। पूरे इतिहास में प्रकृति ने अनगिनत कवियों, लेखकों और कलाकारों को प्रेरित किया है, जिन्होंने अपने कामों के माध्यम से इसकी सुंदरता का उल्लेख किया है। प्रकृति के प्रति उनका गहरा सम्मान उनकी कविताओं और कहानियों में स्पष्ट रूप से बताया गया है, जो आज भी हमें प्रेरित करती हैं।

प्रकृति हमारे आस-पास की हर चीज़ को अपने अंदर समेटे हुए है। हम जो पानी पीते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, सूरज की गर्मी, पक्षियों के गीत, चाँदनी की शांति और भी बहुत कुछ जो हमारे जीवन को सुखद बनाते हैं। यह एक गतिशील और विविध वातावरण है, जिसमें जीवित जीव और प्राकृतिक तत्व दोनों ही मौजूद हैं। हमारे जीवन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए आधुनिक युग के लोगों को अतीत के सबक पर ध्यान देना चाहिए। हमें बहुत देर होने से पहले प्रकृति को महत्व देना सीखना होगा। प्रकृति की रक्षा करना आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करता है।

प्रकृति मनुष्य के आने से बहुत पहले से अस्तित्व में है। यह पूरे इतिहास में मानव जाति का पोषण और सुरक्षा करती रही है। यह हमें एक सुरक्षा कवच प्रदान करती है जो हमें नुकसान से बचाती है और हमारे अस्तित्व को बनाए रखती है। प्रकृति के बिना मानवता के लिए जीवित रहना असंभव सा है। यह एक ऐसा तथ्य है जिसे लोगों को स्वीकार करना चाहिए। प्रकृति में हमारी रक्षा करने की शक्ति है, इसमें व्यापक विनाश लाने की क्षमता भी है। प्रकृति का हर पहलू, चाहे पौधे, जानवर, नदियाँ, पहाड़ या चंद्रमा, मानव जीवन के लिए आवश्यक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

हमारा स्वास्थ्य और कल्याण प्रकृति द्वारा प्रदान किए जाने वाले पौष्टिक भोजन और स्वच्छ पानी पर निर्भर करता है। हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक वर्षा और धूप जैसे महत्वपूर्ण तत्व प्रकृति से ही उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा हम जिस हवा में सांस लेते हैं और जिस लकड़ी का हम उपयोग करते हैं, वह प्रकृति की देन है। तकनीकी प्रगति के बीच, कई लोग प्रकृति के महत्व को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन को प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता है।

प्रकृति को प्रभावी ढंग से संरक्षित करने के लिए भविष्य में होने वाली क्षति को रोकने के लिए तत्काल और निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है। इसमें एक सबसे महत्वपूर्ण कदम वनों की कटाई को पूरी तरह से रोकना है। पेड़ों को काटने से गंभीर परिणाम होते हैं, जैसे मिट्टी का कटाव बढ़ना और वर्षा में कमी होना। उद्योगों को समुद्र के पानी को प्रदूषित करने से भी सख्ती से बचना चाहिए। यह पानी की कमी में महत्वपूर्ण योगदान देता है। वाहनों एयर कंडीशनर और ओवन के अत्यधिक उपयोग से क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) निकलते हैं जो ओजोन परत को नष्ट कर रहे हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग, थर्मल विस्तार होता है और ग्लेशियर पिघलते हैं।

इन मुद्दों से निपटने के लिए व्यक्ति सार्वजनिक परिवहन या कारपूलिंग का विकल्प चुनकर निजी वाहन का उपयोग कम कर सकते हैं। सौर ऊर्जा में निवेश करना एक और लाभकारी कदम है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों को फिर से भरने का मौका मिलता है। इन उपायों को अपनाकर, हम प्रकृति के संरक्षण में योगदान दे सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी पर्यावरण सुनिश्चित कर सकते हैं।

हमारी इस प्रकृति में पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने की असाधारण क्षमता है। यह मानवता को पनपने में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसे सुरक्षित रखना हमारी ज़िम्मेदारी बनती है। हमें स्वार्थी कार्यों को रोकना चाहिए और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हमारे ग्रह पर जीवन अनिश्चित काल तक फलता-फूलता रहे।

प्रकृति की सुंदरता उसकी ताजगी, खुलेपन, धीमी हवा और गर्म धूप में निहित है – जो हमारे दिमाग के लिए राहत है। प्रकृति उन सभी चीज़ों से बनी है जो हम अपने चारों ओर देखते हैं, पेड़, फूल, पौधे, जानवर, आकाश, पहाड़, जंगल और बहुत कुछ। प्रकृति में हमें कई रंग मिलते हैं जो धरती को खूबसूरत बनाते हैं।

पर्वतों की लम्बी श्रृंखला, विशाल महासागर, कल-कल करती नदियाँ, घने जंगल, पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े प्रकृति की देन हैं।

हमारे जंगल, नदियाँ, महासागर और मिट्टी हमें भोजन, साँस लेने की हवा और फसलों की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराते हैं। हम अपने स्वास्थ्य, खुशी और समृद्धि के लिए कई अन्य वस्तुओं और सेवाओं के लिए भी इन पर निर्भर हैं। इन प्राकृतिक संपत्तियों को अक्सर दुनिया की ‘प्राकृतिक पूंजी’ कहा जाता है।

उम्मीद है आपको Essay on Nature in Hindi के संदर्भ में हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। हिंदी व्याकरण के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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Conservation of Nature Essay In Hindi

प्रकृति संरक्षण पर निबंध – Conservation of Nature Essay In Hindi

प्रकृति संरक्षण पर छोटे तथा बड़े निबंध (essay on conservation of nature in hindi), हिन्दी कविता में प्रकृति-चित्रण – illustration of nature in hindi poem.

  • प्रस्तावना,
  • भारत और प्रकृति,
  • हिन्दी कविता में प्रकृति-चित्रण,
  • उद्दीपन के रूप में प्रकृति-चित्रण,
  • आलम्बन के रूप में प्रकृति-चित्रण,
  • सहानुभूतिपूर्ण चेतन सत्ता के रूप में प्रकृति चित्रण,
  • मानवीकरण द्वारा प्रकृति-चित्रण,

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भारत-भूमि प्रकृति- नटी का क्रीडास्थल है। प्रकृति-प्रेम से भरा यहाँ जन अन्तराल है। प्रकृति प्रेम भारत के कवियों का सम्बल है। प्रकृति चित्र हिन्दी कविता में अत्युज्ज्वल है।

प्रस्तावना- प्रकृति के साथ मनुष्य का अनादि सम्बन्ध है। वह जब से संसार में आया है तभी से प्रकृति के साथ उसका सम्बन्ध स्थापित हो गया है। अत: प्रकृति के साथ प्रेम होना मनुष्य के लिए कोई अजीब बात नहीं है। प्रकृति प्रेम उसकी नस-नस में समाया हुआ है। साहित्य में भी मनुष्य के हृदय की भावनाएँ ही व्यक्त हुआ करती हैं। अत: सभी देशों और भाषाओं के साहित्य में प्रकृति वर्णन का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।

भारत और प्रकृति- भारत प्रकृति की रम्य क्रीड़ास्थली है। यहाँ के यमुना तट के कुंज, वसन्त की मादक समीर और पर्वतों के मखमली दृश्य शायद ही अन्यत्र कहीं मिलें। अत: भारत के कवियों का प्रकृति से विशेष अनुराग होना स्वाभाविक ही है।

अनादि काल से यहाँ के साहित्य में प्रकृति-चित्रण का विशेष स्थान रहा है। संस्कृत कवियों ने प्रकृति के जो सुन्दर चित्र खींचे, वे विश्व साहित्य में बेजोड़ हैं। यहाँ तक कि संस्कृत के आचार्यों ने प्रकृति के विभिन्न दृश्यों का वर्णन महाकाव्य के लिए अनिवार्य रूप में स्वीकार कर लिया था। संस्कृत की प्रकृति-चित्रण की यह परम्परा पाली, प्राकृत तथा अपभ्रंश में भी निरन्तर चलती रही।

हिन्दी कविता में प्रकृति-चित्रण- हिन्दी कवियों में प्रकृति के प्रति वह अनुराग दिखाई नहीं पड़ता जो संस्कृत के कवियों में था। प्रकृति निरीक्षण की वह सूक्ष्मता जो संस्कृत कवियों में थी, हिन्दी में उसकी झलक भी दिखाई न दी। हिन्दी कवियों ने प्रकृति-चित्रण तो किया पर वह वैसा मनोरम न बन पड़ा जैसा संस्कृत कवियों का प्रकृति वर्णन था।

उद्दीपन के रूप में प्रकृति-चित्रण- भक्तिकाल, रीतिकाल तथा आधुनिक काल में भी कृष्णभक्त कवियों ने कृष्ण तथा गोपियों के संयोग तथा वियोग शृंगार के उद्दीपन के रूप में प्रकृति का सुन्दर वर्णन किया है। यमुना तट के कुंज, बसन्त, पावस आदि का रति भाव को उद्दीप्त करने में बड़ा सफल चित्रण हुआ है।

रीतिकाल के कवियों ने प्रकृति का उद्दीपन के रूप में वर्णन अवश्य किया किन्तु उनके प्रकृति वर्णन में सजीवता नहीं आ पायी। इन्होंने स्वयं प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करने का कष्ट न करके पुराने चले आते हुए उपमानों को रखकर ही निर्वाह किया है। इन्होंने अधिकतर रूढ़िवादिता की लकीर को पीटा है। केशव की कविता का एक उदाहरण देखिए-

“देखे मुख भावै, अन देखेई कमलचन्द, ताते मुख यहै न कमल न चन्द री।”

मुख तो देखने में अच्छा लगता है और कमल तथा चन्द्रमा बिना देखे ही अच्छे लगते हैं अत: यह मुख है-न कमल है, न चन्द्रमा। इसका यह अर्थ नहीं है कि रीतिकाल में प्रकृति प्रेमी कवि हुए ही नहीं। सेनापति और बिहारी की कविताओं में प्रकृति का बहुत सुन्दर और संश्लिष्ट चित्रण हुआ है जिसे देखकर यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उन्होंने प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण किया था। उद्दीपन विभाव के रूप में बिहारी का एक प्रकृति चित्र देखिए-

“सघन कुंज छाया सुखद, शीतल मन्द समीर। मन ह्वै जात अजौ वहै, उहि जमुना के तीर॥”

उपाध्याय तथा गुप्त आधुनिक कवियों ने भी इसी प्रकार का प्रकृति-चित्रण किया है।

आलम्बन के रूप में प्रकृति-चित्रण- प्रकृति-चित्रण का एक दूसरा प्रकार आलम्बन विभाव के रूप में है। कवि प्रकृति के रम्य रूपों को देखकर भावातुर हो उठता है और उसके वे ही भाव कविता में अभिव्यक्त होते हैं। इसमें प्रकृति का स्थान गौण नहीं होता है। इस प्रकार का प्रकृति चित्रण हिन्दी में हुआ तो अवश्य किन्तु बहुत कम हुआ।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, सेनापति, बिहारी, सुमित्रानन्दन पन्त, श्रीधर पाठक तथा जयशंकर प्रसाद आदि कवियों की कविताओं में इस प्रकार का आलम्बनात्मक चित्रण पर्याप्त रूप से हुआ है। सेनापति द्वारा चित्रित ग्रीष्म ऋतु का सुन्दर संश्लिष्ट चित्रण देखिए-

“वृष को तरनि तेज सहसौ किरन करि, ज्वालन के जाल विकराल बरसत हैं। तपति धरनि, जग जरत झरनि, सीरी, छाँह को पकरि पंथ पंछी विरमत हैं। ‘सेनापति’ नेक दुपहरी के ढरत होत, धमका विषम, ज्यों न पात खरकत हैं। मेरे जान पौनौ सीरी ठोर को पकरि कोनौ, धरी एक बैठी कहँ घामे बितवत हैं।’

परन्तु साधारणतया हिन्दी में आलम्बन रूप में प्रकृति-चित्रण बहुत कम ही हुआ है।

सहानुभूतिपूर्ण चेतन सत्ता के रूप में प्रकृति-चित्रण-प्रकृति-चित्रण का एक तीसरा प्रकार वह है जिसमें कवि प्रकृति का एक सहानुभूतिपूर्ण चेतन सत्ता के रूप में चित्रण करता है। इस प्रकार का प्रकृति चित्रण करने में कविवर जायसी को अद्भुत सफलता मिली है।

उनके पद्मावत में प्रकृति का बड़ा ही सरस और आकर्षक वर्णन हुआ है। यद्यपि इस काव्य में उद्दीपन के रूप में भी प्रकृति का सुन्दर चित्रण हुआ है किन्तु सहानुभूतिपूर्ण चेतन सत्ता के रूप में प्रकृति वर्णन में तो यह काव्य बेजोड़ है।

नागमती के विरह में सारी प्रकृति रोती है। उसका रोना सुनकर पशु-पक्षियों की नींद समाप्त हो जाती है। रहस्यपूर्ण आध्यात्मिक संकेतों ने तो उसे और भी हृदयस्पर्शी बना दिया है।।

मानवीकरण द्वारा प्रकृति-चित्रण-प्रकृति- चित्रण का एक चौथा भी प्रकार है जिसमें प्रकृति का मानवीकरण कर लिया जाता है अर्थात प्रकृति के तत्त्वों को मानव ही मान लिया जाता है। प्रकृति में मानवीय क्रियाओं का आरोपण किया जाता है। हिन्दी में इस प्रकार प्रकृति-चित्रण छायावादी कवियों में पाया जाता है।

इस प्रकार के प्रकृति-चित्रण में प्रकृति सर्वथा गौण हो जाती है। इसमें प्राकृतिक वस्तुओं के नाम तो रहते हैं पर चित्रण मानवीय भावनाओं का ही होता है। कवि लता और तितली का चित्रण न कर यूवती तथा कुमारी का चित्रण करने लगता है।

यही कारण है कि इस प्रकार के प्रकृति-चित्रण में प्रकृति का अनुरागमय रूप बहुत कुछ छिप जाता है। पन्त, निराला तथा महादेवी वर्मा आदि छायावादी कवियों की कोमल रचनाओं में इसी प्रकार का प्रकृति-चित्रण है। ‘छाया’ और ‘ज्योत्स्ना’ इसके उत्तम नमूने हैं। कविवर प्रसाद का मानवीकरण के रूप में उषा का वर्णन देखिए-

“बीती विभावरी जाग री, अम्बर पनघट में डुबा रही तारा घट उषा नागरी। -कुल कुल-कुल सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाई, मधु मुकुल नवल रस गागरी॥”

महादेवी वर्मा और पन्त जी के मानवीकरण के रूप में प्राकृतिक चित्रण अत्यन्त मनोरम हैं। पन्त जी ने शरद् ज्योत्सना को सोती हुई नायिका का रूप दिया है

“नीले नभ के शत दल पर बैठी शारद हासिनि। मृदु करतल पर शशि मुख धर नीरव अनिमिष एकाकिनि।”

छायावादी काव्य में इस प्रकार का प्रकृति-चित्रण अधिक मिलता है।

सन्त काव्यों में प्रकृति-चित्रण का एक और भी रूप देखने को मिलता है। उन्होंने कमल, सूर्य तथा चन्द्रमा आदि प्राकृतिक वस्तुओं के अध्यात्म तथा साधना सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दों के रूपक बना डाले हैं।

इन रचनाओं में प्रतीकों के रूप में प्रकृति के रूपों के नाममात्र आ पाये हैं। इस प्रकार के वर्णनों को प्रकृति चित्रण न ही माना जाये तो उचित है। कवि का उद्देश्य प्रकृति-चित्रण करना नहीं है अपि विषयों की ओर संकेत करना है।

उपसंहार-हिन्दी के प्रकृति-चित्रण में जो सबसे अधिक खटकने वाली बात है, वह यह है कि हिन्दी कवियों ने प्रकृति के सौम्य तथा सुन्दर रूप का चित्रण तो किया है किन्तु प्रकृति के विकराल और भयंकर रूप पर इन्होंने बहुत कम दृष्टिपात किया है।

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पर्यावरण बचाओ पर निबंध (Save Environment Essay in Hindi)

पर्यावरण का संबंध उन जीवित और गैर जीवित चीजो से है, जो कि  हमारे आस-पास मौजूद है, और जिनका होना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत वायु, जल, मिट्टी, मनुष्य, पशु-पक्षी आदि आते है। हालांकि एक शहर, कस्बे या गांव में रहते हुए हम देखते है कि हमारे आस-पास का वातावरण और स्थान वास्तव में एक प्राकृतिक स्थान जैसे कि रेगिस्तान, जंगल, या फिर एक नदी आदि थे, जिन्हे हम मनुष्यों ने अपने उपयोग के लिए इमारतो, सड़को या कारखानो में तब्दील कर दिया है।

पर्यावरण बचाओ पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Save Environment in Hindi, Paryavaran Bachao par Nibandh Hindi mein)

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध– 1 (250 – 300 शब्द).

पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है, परि + आवरण जिसका अर्थ है- बाहरी आवरण। बिना घर के जिस प्रकार हम सुरक्षित नहीं होते उसी प्रकार बिना पर्यावरण की सुरक्षा हमारा कोई अस्तित्व नहीं। पर्यावरण सभी जीवों को जीने के लिए उचित स्थिति प्रदान करती है।

पर्यावरण संरक्षण का महत्व

हमारे द्वारा श्वसन के लिए वायु का इस्तेमाल किया जाता है, पीने तथा अन्य दैनिक कार्यो के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है सिर्फ इतना ही नही जो भोजन हम खाते है वह भी कई प्रकार के पेड़-पौधो, पशु-पक्षीओं और सब्जियो, दूध, अंडो आदि से प्राप्त होता है। आवश्यकताओ को ध्यान में रखते हुए इन संसाधनो की सुरक्षा बहुत ही जरुरी हो गई है।

पर्यावरण संरक्षण के उपाय

इस लक्ष्य की प्राप्ति सिर्फ सतत विकास के द्वारा ही संभव है। इसके अलावा उद्योग ईकाईयों द्वारा तरल और ठोस सह-उत्पाद जो कि कचरे के रुप में फेक दिए जाते है इनके भी नियंत्रण की आवश्यकता है, क्योंकि इनके कारण प्रदूषण बढ़ता है। जिससे की कैसंर और पेट तथा आंत से जुड़ी कई बीमारियां उत्पन्न होती हैं।

यह तभी संभव है जब हम सरकार के ऊपर निर्भरता छोड़कर व्यक्तिगत रुप से इस समस्या के समाधान के लिए जरुरी कदम उठायें। पर्यावरण की देखभाल करना हमारे लिए प्राथमिकता होनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा जीवन की सुरक्षा है।

इसे यूट्यूब पर देखें: पर्यावरण संरक्षण पर निबंध

निबंध – 2 (400 शब्द)

समय के शुरुआत से ही पर्यावरण ने हमारी वनस्पतिओं और प्राणी समूहो से संबंध स्थापित करने में मदद की है, जिससे की हमारा जीवन सुनिश्चित हुआ हैं। प्रकृति ने हमें कई सारे भेंट प्रदान किये है जैसे कि पानी, सूर्य का प्रकाश, वायु, जीव-जन्तु और जीवाश्म ईँधन आदि जिससे इन चीजो ने हमारे ग्रह को रहने योग्य बनाया है।

पर्यावरण का संरक्षण और बचाव कैसे सुनिश्चित करें

क्योंकि यह संसाधन काफी ज्यादे मात्रा उपलब्ध है, इसलिए बढ़ती जनसंख्या के कारण धनी और संभ्रांत वर्ग के विलासतापूर्ण इच्छाओं को पूरा करने के लिए इनका काफी ज्यादे मात्रा में तथा बहुत ही तेजी के साथ उपभोग किया जा रहा है। इसलिए हर प्रकार से इनका संरक्षण करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। यहां कुछ रास्ते बताएं गये है जिनके द्वारा इन प्राकृतिक संसाधनो के अत्यधिक उपयोग पर काबू पाया जा सकता है और इन्हे संरक्षित किया जा सकता है।

  • खनिज और ऊर्जा संसाधनः विभिन्न प्रकार के खनिज तत्वो जिनसे कि उर्जा उत्पन्न कि जाती है इसके अंतर्गत कोयला, तेल और विभिन्न प्रकार के जीवाश्म ईंधन आते हैं। जिनका उपयोग मुख्यतः बिजली उत्पादन केंद्रो और वाहनो में किया जाता है, जो कि वायु प्रदूषण में अपना मुख्य योगदान देते है। इसके अलावा वायु जनित बिमारियों के रोकथाम के लिए नवकरणीय ऊर्जा के संसाधनो जैसे कि हवा और ज्वारीय ऊर्जा को बढ़वा देने की आवश्यकता है।
  • वन संसाधनः वनो द्वारा मृदा अपरदन को रोकने और सूखे के प्रभाव को कम करने के साथ ही जल स्तर को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया जाता है। इसके साथ ही इनके द्वारा वातावरण की परिस्थितियों को काबू में रखने के साथ ही जीवो के लिए कार्बन डाइआक्साइड के स्तर को भी नियंत्रित किया जाता है, जिससे की पृथ्वी पर जीवन का संतुलन बना रहता है। इसलिए यह काफी महत्वपूर्ण है कि हम वन संरक्षण और इसके विस्तार पर ध्यान दे, जो कि बिना लकड़ी के बने उत्पादो के खरीद को बढ़ावा देकर और राज्य सरकारो द्वारा वृक्षारोपण तथा वन संरक्षण को बढ़ावा देकर किया जा सकता है।
  • जल संसाधनः इसके साथ ही जलीय पारिस्थितिक तंत्र का भी लोगो द्वारा दैनिक कार्यो जैसे कि पीने के लिए, खाना बनाने के लिए, कपड़े धोने के लिए आदि के लिए उपयोग किया जाता है। वैसे तो वाष्पीकरण और वर्षा के द्वारा जल चक्र का संतुलन बना रहता है परन्तु मनुष्यों द्वारा ताजे पानी को बहुत ज्यादे मात्रा में इस्तेमाल और बर्बाद किया जा रहा है। इसके साथ ही यह काफी तेजी से प्रदूषित भी होते जा रहा है। इसलिए भविष्य में होने वाले पानी के संकट को देखते हुए इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण फैसले लेने की आवश्यकता है। जिसके लिए हमे बड़ी परियोजनाओं के जगह पानी के छोटे-छोटे जलाशय निर्माण, ड्रिप सिचाई विधी को बढ़ावा देना, लीकेज को रोकना, नगरीय कचरे के पुनरावृत्ति और सफाई जैसे कार्यो को करने की आवश्यकता है।
  • खाद्य संसाधनः हरित क्रांति के दौरान कई सारे तकनीको द्वारा फसलो के उत्पादन को बढ़ाकर भूखमरी के समस्या पर काबू पाया गया था, लेकिन वास्तव में इससे मिट्टी के गुणवत्ता पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसलिए हमें खाद्य उत्पादन के लिए सतत उपायो को अपनाने की आवश्यकता है। जिसके अंतर्गत गैर-जैविक उर्वरकों और कीटनाशको के उपयोग के जगह अन्य विकल्पो को अपनाने तथा कम गुणवत्ता वाली मिट्टी में उपजने वाले फसलो को अपनाने की आवश्यकता है।

इस प्रकार से हम कह सकते है सिर्फ एक व्यक्ति के रुप में लिए गये हमारे व्यक्तिगत फैसलो के साथ सतत विकास और सही प्रबंधन के द्वारा ही हम अपने इस बहूमुल्य पर्यावरण की रक्षा कर सकते है।

निबंध – 3 (500 शब्द)

“कीसी भी पीढ़ी का इस पृथ्वी पर एकाधिकार नही है, हम सभी यहा जीवन व्यय के लिए है – जिसकी कीमत भी हमें चुकानी होती है” मारग्रेट थेचर का यह कथन हमारा प्रकृति के साथ हमारे अस्थायी संबंधो को दर्शाता है। पृथ्वी के द्वारा हमारे जीवन को आसान बनाने और इस ग्रह को रहने लायक बनाने के लिए प्रदान किये गए तमाम तोहफे के जैसे कि हवा, सूर्य का प्रकाश, पानी, जीव-जन्तु और खनिज आदि के बावजूद भी, हम अपने स्वार्थ के लिए हम इन संसाधनो का दोहन करने से बाज नही आ रहे है।

पृथ्वी को बचाने के लिए पर्यावरण को बचाने की जरुरत

हमारे बढती आबादी स्तर के वर्तमान जरुरतो को पूरा करने के लिए हम बिना सोचे-समझे अंधाधुंध रुप से अपने प्राकृतिक संसाधनो का उपभोग करते जा रहे है। हम अपने भविष्य के पीढ़ी के लिए भी कोई चिंता नही कर रहे है। इस प्रकार से आज के समय में सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि हमें अपने नवकरणीय और गैर नवकरणीय संसाधनो के संरक्षण के और अपनी इस पृथ्वी के सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।

पर्यावरण पर प्रदूषण के प्रभाव

  • वायु प्रदूषणः यातायात तंत्र के निर्माण और बड़े स्तर पर पेट्रोल तथा डीजल के उपयोग के कारण प्रदूषण के स्तर में काफी तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे कई तरह के अनचाहे और गैस वाले वायु में मौजूद हानिकारक कणो की मात्रा में भी काफी वृद्धि हुई है। इस बढ़े हुए कार्बन मोनो-आक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, सल्फर आक्साइड, हाइड्रोकार्बन और लेड की मात्रा से सूर्य की पराबैंगनी किरणो से हमारी रक्षा करने वाला हमारा ओजोन की परत खत्म होने लगी है। जिसके कारण तापमान में काफी वृद्धि दर्ज की गयी है, जिसे सामान्यतः ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जाना जाता है।
  • जल प्रदूषणः मनुष्यों और पशुओं के अपशिष्ट, उद्योगो से निकलने वाले जल में घुलनशील गैरजैविक रसायन जैसे कि मर्करी और लेड तथा पानी में जैविक रसायनो के बहाव जैसे कि डिटर्जेंट और तेल जो कि  ताजे पानी के तालाबो और नदियों में मिल जाते है पानी को दूषित कर देते है और यह पानी हमारे पीने योग्य नही रह जाता है। इन्ही कारणों से जलीय जीवन भी काफी बुरे तरीके से प्रभावित हो गया है, इसके साथ ही फसलो के पैदावार में कमी और पीने का पानी मनुष्यों तथा जानवरों के लिए अब और सुरक्षित नही रह गया है।
  • भूमि प्रदूषणः ज्यादे मात्रा में उर्वरको और कीटनाशको जैसे कि डीडीटी के छिड़काव और फसलो की पैदावार बढ़ाने के लिए उस पानी का उपयोग जिसमें नमक की मात्रा अधिक हो, इस तरह के उपाय भूमि को बेकार कर देते है। इस तरह के प्रदूषण को भूमि प्रदूषण के नाम से जाना जाता है और इसी के कारण मृदा अपरदन में भी वृद्धि हुई है जिसके लिए निर्माण और वनोन्मूलन आदि जैसे कारण मुख्य रुप से जिम्मेदार है।
  • ध्वनि प्रदूषणः वाहनो से निकलने वाला शोर-शराबा, कारखानो और भारत में दिवाली के दौरान फोड़े जाने वाले पटाखो मुख्य रुप से ध्वनि प्रदूषण के जिम्मेदार है। यह जानवरो को गंभीर रुप से हानि पहुंचाता है क्योंकि वह खुद को इसके अनुरुप ढाल नही पाते है, जिससे उनके सुनने की क्षमता क्षीण पड़ जाती है।

पर्यावरण संरक्षण मात्र सरकार का ही काम नही है, इसके लिए एक व्यक्ति के रुप में हमारा स्वंय का योगदान भी काफी आवश्यक है। जाने-अनजाने में हम प्रतिदिन प्रदूषण में अपना योगदान देते है। इसलिए प्रकृति के प्रदान किए गये भेंटो का उपयोग करने वाले एक उपभोक्ता के रुप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम जल संरक्षण को बढ़ावा दे और वस्तुओं के पुनरुपयोग और पुनरावृत्ति में हिस्सा ले, बिजली और पानी जैसे संसाधनो की बर्बादी आदि कार्यो को बंद करें। इन सब छोटे-छोटे उपायो द्वारा हम अपने ग्रह के हालत में काफी प्रभावी बदलाव ला सकते है।

Essay on Save Environment in Hindi

निबंध – 4 (600 शब्द)

प्राकृतिक पर्यावरण मानव जाति और दुसरे जीवो के लिए एक वरदान है। इन प्राकृतिक संसाधनो में हवा, ताजा पानी, सूर्य का प्रकाश, जीवाश्म ईंधन आदि आते है। यह जीवन के लिए इतने महत्वपूर्ण है कि इनके बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है। लेकिन बढ़ती आबादी के बढ़ते लोभ के कारण, इन संसाधनो का बहुत ही ज्यादे मात्रा में दुरुपयोग हुआ है। यह आर्थिक विकास मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत गंभीर साबित हुआ है, जिनके विषय में नीचे चर्चा की गयी है।

पृथ्वी पर जीवन को बचाने के लिए पर्यावरण को बचाने के कारण

यहां प्राकृतिक संसाधनो के दुरुपयोग और हानि को रोकने के लिए और प्रदूषण द्वारा पृथ्वी के जीवो पर होने वाले निम्नलिखित प्रभावो पर चर्चा की गयी है। इसलिए पृथ्वी पर जीवन को बचाने के लिए यह काफी आवश्यक है कि हम पर्यावरण को बचाएं।

  • वायु प्रदूषणः यातायात के लिए पेट्रोल और डीजल के बढ़ते उपयोग से और उद्योगो द्वारा ऊर्जा उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन के बढ़ते दहन से वायु प्रदूषण में सबसे ज्यादे वृद्धि हुई है। जिसके कारणवश सल्फर आक्साइड, हाइड्रोकार्बन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन और कार्बन मोनो आक्साइड आदि के स्तर में भी वृद्धि हुई है। ये हानिकारक गैसे मानव स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव डालती हैं, जिससे क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर और अन्य कई प्रकार की श्वसन संबंधित बीमारियां उत्पन्न हो जाती है। इसके द्वारा ओजोन परत का भी क्षय होता जा रहा है, जिससे मनुष्य पहले की अपेक्षा पैराबैंगनी किरणो से अब उतना ज्यादे सुरक्षित नही रह गया है। इसके साथ ही इससे वायु प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग में भी बढ़ोत्तरी हुई है, जिसके कारणवश मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हुई है।
  • जल प्रदूषणः उद्योगो से निकलने जल में घुलनशील आकार्बनिक रासायनो और मनुष्यों तथा पशुओं के अपशिष्टो के ताजे पानी में मिलने तथा सिचाईं के दौरान उर्वरको और कीटनाशको के पानी में मिलने के कारण जल प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है। यह ना सिर्फ पीने के पानी की गुणवत्ता को खराब करता है, बल्कि की कैंसर तथा पेट और आंत संबंधित कई सारी बिमारीयो को भी जन्म देता है। इसके अलावा जलीय जीवन पर भी इसका नकरात्मक प्रभाव पड़ता है, जल प्रदूषण मछलिंयो को भी खाने योग्य नही रहने देता है।
  • भूमि प्रदूषणः रासायनिक उर्वरको और कीटनाशको के उपयोग से मिट्टी में मौजूद ना सिर्फ बुरे कीट बल्कि की अच्छे कीट भी मर जाते है। जिससे हमें कम पोषक वाले फसलो की प्राप्ति होती है। इसके अलावा भूमि प्रदूषण द्वारा रसायन से संक्रमित फसलो के सेवन से म्यूटेशन, कैंसर आदि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। तेजी से हो रहे वनोन्मूलन और निर्माण के कारण बाढ़ के आवृति में भी वृद्धि हुई है। जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर मानव जीवन का विनाश होता जा रहा है।
  • ध्वनि प्रदूषणः कारखानों और वाहनों से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक शोर-सराबे के कारण मनुष्य के सुनने की क्षमता पर असर पड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप अस्थायी या स्थायी सुनने की शक्ति क्षीण पड़ जाती है। मनुष्य के उपर ध्वनि प्रदूषण का मानसिक, भावनात्मक और दिमागी स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे तनाव, चिंता और चिड़चिड़ाहट आदि जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है, जिससे हमारे कार्य के प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

पर्यावरण को बचाने के उपाय

इतिहास के पन्नो को पलटने पे पता चलता है कि हमारे पूर्वज पर्यावरण संरक्षण को लेकर हमसे कही ज्यादे चिंतित थे। इसके लिए हम सुंदरलाल बहुगुणा को मिसाल के तौर पर देख सकते है, जिन्होने वन्य संसाधनो के सुरक्षा के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की थी। ठीक इसी प्रकार मेधा पाटेकर ने जनजातीय लोगो के लिए पर्यावरण सुरक्षा के प्रभावी प्रयास किए थे, जो कि  नर्मदा नदी पर बन रहे बांध से नकरात्मक रुप से प्रभावित हुए थे। आज के समय में एक युवा के रुप में यह हमारा दायित्व है कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए हम भी इसी तरह के प्रयास करे। कुछ छोटे-छोटे उपायो द्वारा हम प्रकृति को बचाने में अपना सहयोग दे सकते हैः

  • हमे 3 आर(3R) के धारणा को बढ़ावा देना चाहिए, जिसके अंतर्गत रेड्यूज़, रीसायकल रीयूज जैसे कार्य आते है। जिसमें हम गैर नवकरणीय ऊर्जा के स्त्रोतो के अधिक उपयोग को कम करके जैसे कि लोहा बनाने के लिए लोहे के कचरे का इस्तेमाल करना जैसे उपाय कर सकते है।
  • ऊर्जा बचाने वाले ट्यूब लाइट और बल्ब आदि उत्पादो का उपयोग करना।
  • पेपर और लकड़ी का कम उपयोग करना जितना ज्यादे हो सके ई-बुक और ई-पेपर का इस्तेमाल करना।
  • जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम से कम करना कही आने-जाने के लिए पैदल, कार पूल या सार्वजनिक परिवाहन जैसे उपायो का उपयोग करना।
  • प्लास्टिक बैग के जगह जूट या कपड़े के बैग का इस्तेमाल करना।
  • पुनरुपयोग की जा सकने वाली बैटरियों और सोलर पैनलो का उपयोग करना।
  • रसायनिक उर्वरको का उपयोग कम करना और गोबर से खाद बनाने के लिए कम्पोस्ट बिन की स्थापना करना।

वैसे तो सरकार ने प्रकृति और वन्यजीव के सुरक्षा के लिए कई सारे कानून और योजनाएं स्थापित की गई है। लेकिन फिर भी व्यक्तिगत रुप से यह हमारा कर्तव्य है कि हरेक व्यक्ति पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे  और अपनी आने वाली पीढ़ीयो के भविष्य को सुरक्षित करे, क्योंकि वर्तमान में हमारे द्वारा ही इसका सबसे ज्यादे उपयोग किया जा रहा है। इसे लेस्टर ब्राउन के शब्दों में बहुत ही आसानी से समझा जा सकता है, “हमने इस पृथ्वी को अपने पूर्वजो से प्राप्त नही किया है, बल्कि की अपने आने वाली पीढ़ीयों से छीन लिया है”।

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प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पर निबंध

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By विकास सिंह

Essay on conservation of natural resources in hindi

प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन हैं जिन्हें प्रकृति द्वारा हमें उपलब्ध कराया जाता है। सूर्य का प्रकाश, हवा, पानी और खनिज प्राकृतिक संसाधनों के कुछ उदाहरण हैं। जबकि कुछ प्राकृतिक संसाधन नवीकरणीय हैं और अन्य गैर-नवीकरणीय हैं। प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना आवश्यक है ताकि उनका उपयोग अधिक समय तक किया जा सके।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता पर बार-बार जोर दिया गया है। यदि हम इस गति से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते रहेंगे तो हम पर्यावरण में असंतुलन पैदा करेंगे।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, Essay on conservation of natural resources in hindi (200 शब्द)

प्राकृतिक संसाधन विभिन्न प्रकार के होते हैं लेकिन इन्हें बड़े पैमाने पर नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय के रूप में वर्गीकृत किया गया है। नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों के कुछ उदाहरण सूरज की रोशनी, पानी, हवा, लकड़ी और मिट्टी हैं। जबकि इनमें से कुछ प्राकृतिक संसाधन प्रकृति में बहुतायत में उपलब्ध हैं और इन्हें तेजी से फिर से बनाया जा सकता है ताकि अन्य लोगों को नवीनीकृत होने में समय लगे।

कोयला, तेल और प्राकृतिक गैसें गैर-नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों के कुछ उदाहरण हैं। हालांकि पर्यावरण में स्वाभाविक रूप से उपलब्ध है, इन प्राकृतिक संसाधनों को फिर से भरने या रीसायकल करने में सैकड़ों साल लग जाते हैं।

पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए प्राकृतिक संसाधनों की उपस्थिति आवश्यक है। हालांकि, हम उन्हें उपयोग करने से पहले दो बार नहीं सोचते हैं। हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं और वे तीव्र गति से कम हो रहे हैं। हमें प्राकृतिक संसाधनों के महत्व और भविष्य में उपयोग के लिए उनके संरक्षण की आवश्यकता को समझना चाहिए।

हमें विशेष रूप से गैर-नवीकरणीय संसाधनों के साथ-साथ नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग करने के लिए सतर्क रहना चाहिए जो फिर से भरने में समय लेते हैं। ये संसाधन हमारी मूलभूत आवश्यकताएं हैं। वे हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं। अगर हम उन्हें संरक्षित करने के लिए गंभीर कदम नहीं उठाते हैं, तो हमारे लिए पृथ्वी पर रहना लगभग असंभव हो जाएगा।

हर देश की सरकार को प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के महत्व पर जोर देने और अपने नागरिकों को किसी भी प्रकार के अपव्यय से बचने के लिए सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पर निबंध, 300 शब्द:

प्रस्तावना:.

प्राकृतिक संसाधन ज्यादातर सीमित हैं और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें बुद्धिमानी से उपयोग करें और हमारी भावी पीढ़ियों के लिए उनका संरक्षण करें। प्राकृतिक संसाधन मानव के साथ-साथ अन्य जीवित प्राणियों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं। जबकि कुछ प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी पर जीवन को संभव बनाते हैं जबकि अन्य इसे सहज बनाते हैं।

भविष्य की पीढ़ी का अस्तित्व:

जल, वायु और सूर्य के प्रकाश जैसे प्राकृतिक संसाधन वातावरण में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। ये नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन हैं और मनुष्य को इनकी उपलब्धता के बारे में अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, कई नवीकरणीय संसाधन जैसे लकड़ी, मिट्टी, आदि हैं जो नवीकरण करने में वर्षों लगते हैं। इस प्रकार इनका सावधानी से उपयोग किया जाना चाहिए।

इसके अलावा, जीवाश्म ईंधन और खनिजों जैसे गैर-नवीकरणीय संसाधनों का बार-बार उपयोग नहीं किया जा सकता है। एक बार सेवन करने पर ये दोबारा नहीं बन सकते। दोनों नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन जीवित प्राणियों के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं।

हम विभिन्न प्रयोजनों के लिए इनका उपयोग करते हैं। इनमें से कुछ का उपयोग सीधे किया जाता है जबकि अन्य का उपयोग विभिन्न चीजों के निर्माण के लिए किया जाता है जो हमारे द्वारा व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं।

सरकार की भूमिका:

हालांकि लोगों को जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे मूल्यवान प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद न करें, सरकार को प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए भी कदम उठाना चाहिए। हमें केवल यह सुनिश्चित करने के लिए कठोर कानूनों का निर्माण करना चाहिए कि हमें किसी भी प्रकार के उपयोग से बचना चाहिए और किसी भी प्रकार के अपव्यय से बचना चाहिए।

सरकार को पेड़ों की कटाई, पेट्रोलियम की खपत, खनिजों की बर्बादी और यहां तक ​​कि पानी के उपयोग पर भी नजर रखनी चाहिए। उनकी खपत को सीमित करने के लिए नए तरीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। जो भी इनका शोषण करता पाया गया उसे दंडित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष:

यदि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का उसी दर पर उपयोग करना जारी रखते हैं जो हम वर्तमान में उनका उपयोग कर रहे हैं, तो हम भविष्य में उनमें से बहुत कम ही छोड़ेंगे। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक समस्या पैदा करेगा। हमें प्राकृतिक संसाधनों का सावधानी से उपयोग करना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को नुकसान न हो।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पर निबंध, Essay on conservation of natural resources in hindi (400 शब्द)

हमारे प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण की आवश्यकता पर अक्सर जोर दिया जाता है। यह विशेष रूप से पिछले कुछ दशकों से चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है। जबकि वायु, जल और सूर्य के प्रकाश जैसे कई प्राकृतिक संसाधन वायुमंडल में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और प्राकृतिक रूप से दूसरों जैसे कि पेट्रोलियम, खनिज और प्राकृतिक गैसों को नवीनीकृत किया जा रहा है और इसे पुनर्नवीनीकरण या नवीनीकृत नहीं किया जा सकता है। ये तेज दर से घट रहे हैं।

प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और संरक्षण की आवश्यकता है:

हमारे प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण की सख्त जरूरत है। यदि हम अब उनकी रक्षा नहीं करते हैं, तो हम इस ग्रह पर लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाएंगे। इन मूल्यवान संसाधनों की रक्षा और संरक्षण के लिए कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

प्राकृतिक संसाधन सीमित है

प्राकृतिक संसाधन दो श्रेणियों में विभाजित हैं – नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन और गैर नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन। जबकि कई नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और आसानी से नवीनीकृत हो जाते हैं और दूसरों को फिर से भरने में समय लगता है।

जिन प्राकृतिक संसाधनों के नवीनीकरण में समय लगता है उनमें लकड़ी, मिट्टी और बायोमास शामिल हैं। ऐसे नवीकरणीय संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना आवश्यक है क्योंकि ये सीमित हैं और हमें स्वाभाविक रूप से फिर से भरने से पहले इंतजार करना होगा। गैर-नवीकरणीय संसाधन जैसे खनिज, धातु और पेट्रोलियम सीमित हैं और ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे हम इनका नवीनीकरण कर सकें। इस प्रकार, उन्हें बुद्धिमानी से उपयोग करने के लिए अत्यधिक महत्व है।

प्राकृतिक संसाधन: मानव जीवन रक्षा के लिए आवश्यक

हमें प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और संरक्षण करने की आवश्यकता है क्योंकि वे मानव और साथ ही अन्य जीवित प्राणियों के अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। यदि हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जारी रखते हैं और उन्हें इस दर पर समाप्त करते हैं, तो हम इस ग्रह पर लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाएंगे।

हम न केवल नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से उपभोग कर रहे हैं और जल्द ही इनको कम करने का जोखिम उठा रहे हैं, बल्कि ये प्रचुर मात्रा में उपलब्ध लोगों की गुणवत्ता को भी खराब कर रहे हैं। प्रदूषण के कारण हवा और पानी की गुणवत्ता कम हो गई है और आने वाले समय में इसके और खराब होने की संभावना है। हमें अपनी भावी पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और संरक्षण करने की आवश्यकता है ताकि वे वैसा ही आरामदायक जीवन का आनंद ले सकें जैसा हम करते हैं।

अपने प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी से बचने के लिए हम सभी को इसे अपनी जिम्मेदारी के रूप में लेना चाहिए। हमें इन बहुमूल्य संसाधनों के संरक्षण और बातचीत में योगदान देना चाहिए जो प्रकृति ने हमें प्रदान किए हैं।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पर निबंध, 500 शब्द:

प्राकृतिक संसाधन प्रकृति में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर या तो सीमित हैं या रीसायकल करने में सैकड़ों साल लगते हैं। यही कारण है कि हमें इन संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए और किसी भी प्रकार के अपव्यय से बचना चाहिए। हालाँकि, यह करना आसान है।

मानव विभिन्न उद्देश्यों के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने के लिए इतना आदी हो गया है कि उनके बिना रहना मुश्किल है। हमें महसूस नहीं होता है कि ये तेजी से घट रहे हैं और आने वाले समय में हम इनमें से बहुत कुछ नहीं छोड़ सकते हैं। हम जो कल्पना नहीं करते हैं वह यह है कि भविष्य में इन मूल्यवान संसाधनों के बिना जीवन बेहद कठिन हो जाएगा।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के तरीके:

यहाँ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के कुछ तरीके दिए गए हैं:

बिजली बचाओ

नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय दोनों प्राकृतिक संसाधनों से बिजली का उत्पादन किया जाता है। बिजली का उत्पादन करने के लिए बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जा रहा है। पानी, कोयला, प्राकृतिक गैसों और बायोमास जैसे प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए बिजली की बचत एक लंबा रास्ता तय कर सकती है। एयर कंडीशनर के उपयोग को सीमित करना, दिन के समय रोशनी बंद रखना, उपकरणों को अनप्लग करना और उपयोग न करने पर ऊर्जा कुशल उपकरणों का उपयोग करने जैसे सरल अभ्यास मदद कर सकते हैं।

ईंधन बचाओ

पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन, जिस पर हमारे वाहन चलते हैं, पेट्रोलियम से प्राप्त होते हैं जो एक गैर नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन है। हमें अपने परिवहन के साधनों का चयन बुद्धिमानी से करना चाहिए ताकि आने वाले समय में हम ईंधन को बचा सकें। सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना, नियमित कार पूलिंग, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चयन करना और लाल बत्ती पर इंजन बंद करना ईंधन बचाने के कुछ तरीके हैं।

कागज का उपयोग प्रतिबंधित करें

कागज लकड़ी से बना है जो एक अक्षय प्राकृतिक संसाधन है। हालांकि, यह एक अक्षय संसाधन है जिसे फिर से भरने में समय लगता है। पेड़ों को तेज गति से काटा जा रहा है और वे उतनी तेजी से नहीं बढ़ते हैं। इस प्राकृतिक संसाधन को नवीनीकृत होने में वर्षों लगते हैं। यही कारण है कि हमें कागज बर्बाद करना बंद करना चाहिए।

कुछ तरीके जिनमें हम ऐसा कर सकते हैं, छपाई करते समय कागज के दोनों किनारों का उपयोग करते हैं, ऑनलाइन बिलों का चयन करते हैं और रीसाइक्लिंग के लिए उपयोग किए गए कागजात भेजते हैं। हमें पेड़ लगाने और अपने आसपास के लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

जल बचाओ

यद्यपि एक अक्षय प्राकृतिक संसाधन, पानी को बचाना आवश्यक है, हम स्वच्छ पानी से बाहर निकल सकते हैं, जिसका उपयोग पीने, खाना पकाने, सफाई और ऐसे अन्य उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह हमारी दिनचर्या में छोटे-छोटे बदलाव करके किया जा सकता है जैसे कि नहाते समय बाल्टी से पानी का उपयोग करना चाहिए।

पौधों में पानी देना और कार धोना आदि कार्यों के लिए बौछारों या पाइपों का उपयोग करने के बजाय बाल्टी का प्रयोग करना चाहिए। इसी तरह, दांतों को धोते समय या बर्तन धोते समय उपयोग में नहीं आने पर नल को बंद रखने से पानी की बर्बादी से बचने में मदद मिल सकती है।

अपने भविष्य को सुरक्षित करने और आरामदायक जीवन जीने के लिए, हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का बुद्धिमानी से उपयोग करना चाहिए। इन संसाधनों के संरक्षण के कई तरीके हैं जैसे कि हमारे परिवहन के साधनों को बुद्धिमानी से चुनना, पेड़ लगाना, बिजली के उपकरणों के उपयोग से बचना और पानी की बर्बादी से बचना।

यदि हम में से प्रत्येक प्राकृतिक संसाधनों के अपव्यय से बचने के लिए इसे एक जिम्मेदारी के रूप में लेता है और सरकार प्राकृतिक संसाधनों के उपभोग पर एक गंभीर नियंत्रण रखती है, तो इसका संरक्षण करना, आसान हो जाएगा।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पर निबंध, Essay on conservation of natural resources in hindi (600 शब्द)

प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन हैं जिन्हें प्रकृति द्वारा हमें उपलब्ध कराया गया है। इन संसाधनों के उत्पादन में कोई मानवीय हस्तक्षेप नहीं है। सदियों से मनुष्य ने इन संसाधनों का उपयोग अपनी कई जरूरतों को पूरा करने के लिए किया है। इनमें से कई संसाधनों का उपयोग सीधे किया जाता है जबकि अन्य का अप्रत्यक्ष रूप से उपयोग किया जाता है।

इन संसाधनों का उपयोग उन चीजों को तैयार करने के लिए किया जाता है जो हमारे जीवन में काम आती हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने से लेकर उनमें से हर एक का दोहन करने के लिए – आदमी ने एक लंबा सफर तय किया है। हमें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी अपने जीवन को आरामदायक बनाने के लिए इनका उपयोग कर सकें।

प्राकृतिक संसाधनों के प्रकार:

मूल रूप से दो प्रकार के प्राकृतिक संसाधन हैं। ये नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन और गैर-नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन हैं। नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन हैं जिन्हें प्राकृतिक रूप से वायु, जल, सूर्य के प्रकाश, लकड़ी, मिट्टी, आदि के लिए नवीनीकृत किया जा सकता है।

इन्हें आगे दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है – वे प्राकृतिक संसाधन जिन्हें आसानी से नवीनीकृत किया जा सकता है और जिन्हें फिर से भरने में समय लगता है। लकड़ी और मिट्टी दूसरी श्रेणी में आती है। गैर नवीकरणीय संसाधन वे संसाधन हैं जिन्हें पुनर्नवीनीकरण या नवीनीकृत नहीं किया जा सकता है। जबकि इनमें से कुछ प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, अन्य सीमित हैं।

गैर नवीकरणीय संसाधनों के कुछ उदाहरणों में खनिज, प्राकृतिक गैस और धातु शामिल हैं। गैर-नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है और तेजी से दर में कमी हो रही है। चूंकि इनका नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है इसलिए ये आने वाले समय में पृथ्वी की सतह से गायब हो जाएंगे क्योंकि हम उनका बुरी तरह से शोषण कर रहे हैं।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण क्यों करना चाहिए?

हमें अक्षय और गैर-नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संरक्षण की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं। यही कारण हैं कि हम इस ग्रह पर जीवित हैं और एक आरामदायक जीवन जी रहे हैं। अगर हम उन्हें इस दर पर जारी रखते हैं, तो पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व बेहद मुश्किल हो जाएगा।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के महत्व पर बार-बार जोर दिया गया है। हालाँकि, हम अभी भी इनका लापरवाही से इस्तेमाल करते हैं। इस मुद्दे को गंभीरता से लेना और इन बहुमूल्य संसाधनों की अनावश्यक बर्बादी को रोकना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हमें समझना चाहिए कि हमारी लापरवाही भविष्य की पीढ़ियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है। अगर हमें इनके उपयोग के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण नहीं किया गया तो उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कैसे करें?

ऐसे कई तरीके हैं जिनसे प्राकृतिक संसाधनों को बचाया जा सकता है। सरल प्रथाओं का पालन करने से एक बड़ा अंतर पैदा करने में मदद मिल सकती है।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए, हमें पहले स्वयं को ऐसा करने की आवश्यकता के बारे में याद दिलाना चाहिए। हम अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में विभिन्न चीजों का उपयोग करने के लिए इतने आदी हो गए हैं कि हमें यह महसूस नहीं होता है कि ऐसा करने में हम प्राकृतिक संसाधनों का अच्छी मात्रा में उपभोग कर रहे हैं।

ऐसे कई बार होते हैं जब हम इन चीजों का उपयोग किए बिना कर सकते हैं, लेकिन हम बिना किसी एहसास के इनका अंधाधुंध इस्तेमाल करते रहते हैं कि हम कैसे अपने विलुप्त होने की दिशा में योगदान दे रहे हैं। जिस बिजली का हम उपयोग करते हैं, उस बिजली से हम अपने वाहनों में उपयोग होने वाले ईंधन से लेकर कागज पर हम जो लिखने के लिए उपयोग करते हैं, सब कुछ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त होता है।

कमरे से बाहर जाने से पहले लाइट बंद करना, बिजली के उपकरणों को अनप्लग करना, जब वे उपयोग में न हों, कागज की छपाई से बचना और ई-कॉपियों का उपयोग जहां भी आप कर सकते हैं, कपड़े धोने के दौरान कपड़े धोने की मशीन को पूरी तरह से लोड करना और बाल्टी का उपयोग करना स्नान और कपड़े धोने के दौरान शॉवर या पाइप के बजाय प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद कर सकते हैं।

हमारे लिए यह महसूस करना महत्वपूर्ण है कि प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं। हमें योजनाबद्ध तरीके से इनका उपयोग करना चाहिए ताकि ये बर्बाद न हों। यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए उनका संरक्षण करने में मदद करेगा। प्रत्येक व्यक्ति को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि वह प्राकृतिक संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करे और उनका संरक्षण करने में योगदान दे।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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