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युद्ध और शांति पर निबंध

War and Peace Essay in Hindi

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युद्ध और शांति पर निबंध | War and Peace Essay in Hindi

वर्तमान में मनुष्य पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली प्राणी है जिसने पृथ्वी के समस्त प्राणियों पर अपना दबदबा कायम किया है। मनुष्य आज इतना शक्तिशाली हो चुका है कि वह पृथ्वी के बाहर अन्य ग्रहों में भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में लगा हुआ है। लेकिन इतनी शक्ति अर्जित कर लेने के बाद मनुष्य में एक तरह का अहंकार पनप चुका है। अपने अहंकार में वह इतना अंधा हो चुका है कि वह खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाने के लिए कई जिंदगियां तबाह करने से पीछे नहीं हटता। मनुष्य के मन में आज अधिक से अधिक शक्तियां हासिल कर खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की होड़ लगी हुई है। वह चाहता है कि वह पूरे विश्व में शासन कर सके। उसकी इसी लालसा ने युद्ध को जन्म दिया।

युद्ध तबाही का दूसरा नाम है आज तक कोई भी युद्ध ऐसा नहीं हुआ है जिसने रक्त की बलि न ली हो। युद्ध से कभी किसी का फायदा नहीं हुआ। इसने हारने वाले पक्ष के साथ-साथ जीतने वाले पक्ष को भी बराबर प्रभावित किया है। युद्ध की वजह से देश में एक अशांत वातावरण का जन्म होता है जिससे देश का विकास संभव नहीं हो पाता। ऐसे में शांति की स्थापना जरूरी है।

युद्ध का अर्थ क्या है?

युद्ध मुख्यतः घर के सदस्यों के बीच होने वाले आपसी लड़ाई झगड़ों से अलग होता है क्योंकि घर में होने वाले झगड़े अल्पकालिक होते हैं तथा इससे ज्यादा हानि नहीं होती। इसमें जल्द ही स्थिति काबू में आ जाती है और शांति की स्थापना होती है। वहीं दूसरी ओर युद्ध इसी लड़ाई झगड़े की चरम स्थिति है। एक तरफ घरेलू लड़ाई झगड़े जहां अल्पकालिक होते हैं वही युद्ध दीर्घकालिक होता है। इसमें विभिन्न देशों के बीच हथियारों समेत एक आक्रामक लड़ाई होती है और यही लड़ाई आगे जाकर महायुद्ध में तब्दील हो जाती है।

युद्ध के पीछे क्या कारण होते हैं?

कोई भी युद्ध बिना किसी कारण के नहीं होता युद्ध में दो पक्षों के बीच में कोई न कोई ऐसा कारण जरूर होता है जो उन्हें युद्ध के लिए तैयार करता है। नीचे कुछ ऐसे ही कारणों का जिक्र किया जा रहा है जो कि निम्नलिखित है:-

  • साम्राज्यवाद

साम्राज्यवाद युद्ध के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। मनुष्य ज्यादा से ज्यादा शक्तियां हासिल करने के लिए ज्यादा क्षेत्र में अपना अधिकार करना चाहता है। उसकी विस्तारवादी नीतियों के परिणामस्वरूप साम्राज्यवाद का जन्म होता है। अपनी शक्ति के विस्तार के लिए मनुष्य सत्ता और साम्राज्य हासिल करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाता है जिनमें से युद्ध एक है। साम्राज्यवाद की वजह से कई देशों को गुलामी की दास्तां से गुजरना पड़ा है।

यह युद्ध होने के सबसे बड़े कारणों से एक है। कई देशों के आर्थिक हित एक ही जगह से संबंधित होते हैं। इन आर्थिक हितों में टकराव के चलते दो देशों के बीच में तनाव की स्थिति बनती है।

  • धार्मिक, सांस्कृतिक कारण

युद्ध होने के पीछे कई धार्मिक व सांस्कृतिक कारण होते हैं। यदि इतिहास पर गौर फरमाएं तो तब भी कई धर्म युद्ध हो चुके हैं। कई देश यह चाहते है कि उसकी संस्कृति को अन्य देश जाने और पहचाने। कभी-कभी वह अपनी संस्कृतियों को दूसरे देशों पर थोपने का भी प्रयास करता है। जो युद्ध का कारण बनता है।

युद्ध का परिणाम

हमेशा देखा गया है युद्ध का परिणाम कभी सकारात्मक नहीं हुआ है। युद्ध हमेशा ही तबाही लेकर आया है जिससे देश में हाहाकार मच जाता है। युद्ध की वजह से हजारों वर्षों से संचित साहित्य, संस्कृति, ज्ञान विज्ञान पर बुरा असर पड़ता है। युद्ध का परिणाम देश के विकास में भी बाधा डालता है। यह कभी भी लोगों के लिए भलाई नहीं लेकर आया है क्योंकि इससे न जाने कितने बसे-बसाए घर उजड़ जाते हैं। कितनी महिलाएं अपना सुहाग खो देती हैं तो कितनी माताएं अपने बेटों को खो देती हैं।

युद्ध की आवश्यकता

यदि प्राचीन भारत पर गौर फरमाएं तो आप जान सकेंगे कि हमारे देश के कई महापुरुषों ने युद्ध को रोकने की भरसक कोशिशें की हैं। महाभारत में ही भगवान श्री कृष्ण शांति दूत बनकर आए। उन्होंने कौरवों की सभा में जाकर युद्ध रोकने के प्रयास किए।

यह था युद्ध का पहला पक्ष अब हम युद्ध के दूसरे पहलू को उठा कर देखेंगे। कई बार युद्ध किसी देश के लिए वरदान भी साबित होता है तथा यह शांति स्थापित करने के लिए भी मार्ग प्रशस्त करता है। जहां युद्ध किसी देश में अशांति का कारण बनता है वही यह कई बार किसी देश में शांति स्थापित भी करता है क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि ना चाहते हुए भी मजबूरी में किसी देश को युद्ध में कूदना पड़ता है, जिससे वे अपने देश के स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा कर सकें। इसका ताजा उदाहरण है चीन का भारत पर आक्रमण जिसके जवाब में भारत को चीन के सामने सीना चौड़ा कर खड़ा होना पड़ा जिससे वह अपने देश की रक्षा कर सकें।

युद्ध से किसी देश में विद्यमान पापी, अधर्मी और भ्रष्टाचारी लोगों की समाप्ति की जा सकती है इसीलिए ऐसे लोगों के विनाश में युद्ध एक वरदान साबित होता है।

शांति की स्थापना है जरूरी

कहा जाता है कि एक अशांत मन से किया गया कोई भी कार्य सफल नहीं होता। उसी तरह से एक अशांत देश कभी भी विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता। ऐसा कौन सा शख्स है जो अपने जीवन में शांतिपूर्ण तरीके से रहना नहीं चाहता। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह शांति से अपना जीवन काटे। यही वजह है कि युद्ध की स्थिति से बचने और देश में शांति की स्थापना के लिए समझौते किए जाते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में म्यूनिख समझौता किया गया था। यह समझौता ब्रिटेन के द्वारा किया गया था इसका कारण था कि ब्रिटेन हिटलर से लड़ने में सक्षम नहीं था। इसीलिए यह समझौता किया गया था। अतः कहा जा सकता है कि विनाशकारी स्थितियों से बचने के लिए शांति की स्थापना एकमात्र उपाय है।

स्थाई शांति

जिस तरह युद्ध के दो पक्ष होते हैं उसी तरह शांति के भी दो पक्ष होते हैं। स्थाई शांति, शांति के उस प्रकार को कहते हैं जो युद्ध में अर्जित की गई शांति के बराबर होती है। इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। भारत और पाकिस्तान के बीच कभी भी संबंध अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि रोजाना दोनों के मध्य युद्ध होते रहते हैं। इसका कारण है कि भारत ने पाकिस्तान में डर पैदा किया है कि वह उसके प्रत्येक आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब देगा। इसलिए पाकिस्तान ने अपने कदम खींच रखे हैं और आज देश में शांतिपूर्ण माहौल बना हुआ है तथा हम युद्ध की विभीषिका से बचे हुए हैं।

विश्व शांति की जरूरत

समस्त मानव जाति को विनाश से बचाने के लिए विश्व के कई कोनों से विश्व शांति की मांग उठाई जा रही है। हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वयं अहिंसा का सिद्धांत दिया उनका कहना था शांति स्थापित करने के लिए कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया जा सकता। महात्मा गांधी ही नहीं बल्कि हमारे देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी पंचशील को जन्म दिया था। विश्व भर में युद्ध की स्थिति से बचने के लिए कई संगठन बनाए गए हैं जो इस पर अपनी आवाज उठाते हैं।

अतः हम कह सकते हैं कि युद्ध विनाश का दूसरा नाम है। युद्ध मनुष्य की तबाही का कारण बनता है इसीलिए हमेशा युद्ध को रोकने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए। लेकिन कई बार देखा गया है कि युद्ध शांति की राह भी अख्तियार करता है। भारत जैसा देश अपने दुश्मन पड़ोसी देशों से घिरा हुआ है। भविष्य को लेकर वह निश्चित नहीं है कि कब कौन सा देश भारत में आक्रमण कर दे। इसीलिए भारत में शांति की स्थापना करने के लिए जरूरी है कि भारत को शक्ति संतुलन में भागीदारी लेना चाहिए। उसके पास कम से कम इतनी शक्ति तो होनी चाहिए कि यदि उस पर कोई आक्रमण कर देता है तो वह उसका मुंह तोड़ जवाब दे सके।

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तो ऊपर दिए गए लेख में आपने पढ़ा  युद्ध और शांति पर निबंध | War and Peace Essay | Paragraph on War and Peace in Hindi , उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।

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Bharti

भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।

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युद्ध और शांति पर निबंध War and Peace OR Yudh Aur Shanti Essay in Hindi

हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Yudh Aur Shanti Essay in Hindi पर पुरा आर्टिकल। युद्ध केवल नाश तथा नष्ट कर सकता है, किसी की भलाई कभी भी नहीं कर सकता।इसलिए हम आपके लिए लाये है आइये पढ़ते है युद्ध और शांति पर निबंध

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  • युद्ध और शांति पर निबंध

प्रस्तावना :

प्रत्येक मनुष्य स्वभाव, कर्म एवं गुणों से शान्त प्रकृति वाला  होता है, परन्तु उसके शान्त हृदय के भीतर कहीं न कहीं एक अशान्त प्राणी भी छिपा रहता है, जो थोड़ा सा भी भड़काने पर हिंसक रूप धारण कर लेता है। वैसे तो हर मनुष्य हृदय से यही चाहता है कि वह हमेशा शान्त व्यवहार  करे लेकिन परिस्थितियां उसे हिंसक बना देती है। मनुष्य की यह प्रवृत्ति ही अनेक युद्धों को जन्म देती है।

युद्ध का अभिप्राय :

जब लड़ाई-झगड़े घर के सदस्यों के बीच होते हैं तो वे घरेलू झगड़े कहलाते हैं तथा अधिक हानिकारक नहीं होते क्योंकि घर का ही कोई समझदार व्यक्ति दोनों पक्षों में सुलह करवा देता है और मामला वही शान्त हो जाता है। जब युद्ध कुछ व्यक्तियों के मध्य होते हैं | तो वे जातीय या साम्प्रदायिक झगड़े कहलाते हैं, जो कभी-कभी तो आसानी से काबू में आ जाते हैं, लेकिन कभी-कभी विकराल रूप धारण कर लेते हैं। लेकिन जब यही युद्ध दो देशों अथवा अनेक देशों के बीच हो जाते हैं, तो वे ‘युद्ध’ अथवा ‘महायुद्ध’ कहलाते हैं।

युद्ध के परिणाम :

युद्ध के परिणाम निःसन्देह बहुत जानलेवा होते हैं, जिनसे हर तरफ हाहाकार मच जाता है। हजारों वर्षों के अथक प्रयासों व साधनों से ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला आदि का किया गया विकास कार्य युद्ध के एक झटके से ही तहस-नहस हो जाता है। बसे-बसाए घर तो क्या, गाँव के गाँव नष्ट हो जाते हैं, उनका नामोनिशान भी नहीं दिखता। युद्ध के इन्हीं विकराल कारणों एवं दुष्परिणामों के कारण ही एक सभ्य मनुष्य युद्ध से दूर ही रहना चाहता है, लेकिन कुछ पशु-प्रवृत्ति के लोग युद्ध की आग को भड़काकर ही शान्त होते हैं।

प्राचीन काल से ही युद्ध अपना भयंकर रूप दिखाते आए हैं तथा महापुरुषों ने इन युद्धों को रोकने की भरसक कोशिश की है। तभी तो महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण स्वयं शान्तिदूत बनकर कौरवों की सभा में गए थे। लेकिन कभी कभी शान्ति चाहते हुए भी राष्ट्रों को अपनी स्वतन्त्रता तथा स्वाभिमान की रक्षा हेतु मजबूरीवश युद्ध लड़ने पड़ते हैं। इसका एक उदाहरण द्वापर युग में पाण्डवों द्वारा, त्रेता युग में श्रीराम द्वारा तथा आज के आधुनिक भारतवर्ष में अंग्रेजों तथा आतंकवादियों के खिलाफ लड़े गए युद्ध हैं।

शान्ति की स्थापना :

खुशहाल तथा शान्त जीवन जीने के लिए प्रगति तथा विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए तथा देश की उन्नति के लिए शान्त वातावरण अति आवश्यक है। देश की संस्कृति, कला, विज्ञान, साहित्य तभी विकसित हो पाते है, जब चहुमुंखी शान्ति का वातावरण है। अशान्त मन से तो कोई भी कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न होना असम्भव ही है।

खेल, मनोरंजन, मस्ती, हंगामा भी तो सुखी तथा शान्तचित्त में ही पसन्द आते हैं। इसके अतिरिक्त देश में व्यापार की उन्नति व आर्थिक विकास भी शान्त वातावरण में ही सम्भव है अर्थात् सर्वांगीण विकास के लिए शान्ति एवं सौहार्द ही आवश्यक है।

शान्ति स्थापना :

इस बात से तो कोई भी इंकान नहीं कर सकता कि युद्ध किसी के भी हित में नहीं होता। युद्ध केवल नाश तथा नष्ट कर सकता है, किसी की भलाई कभी भी नहीं कर सकता। इसीलिए शान्ति स्थापना के लिए अनेक प्रयास किए गए। सर्वप्रथम, प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने पर लीग नेशन्स’ नामक संस्था गठित की गई। लेकिन कुछ समय की शान्ति के बाद द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ। इसकी समाप्ति पर संयुक्त राष्ट्र संघ’ नामक संस्था गठित की गई।

मनुष्य की प्रवृत्ति ही ऐसी है वह बहुत जल्दी भूल जाता है तभी तो आज संसार तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारी में है। आजकल तो खुले आम मानव दूसरों के लिए टाइमबमों का निर्माण कर रहा है। आज अनेक देश जैसे पाकिस्तान अमेरिका, ईरान इत्यादि लड़ने के लिए तैयार है और अपने आतंकवादी भेज रहे हैं। परन्तु यह बात सदा स्मरण रहनी चाहिए कि युद्ध में हानि तो विजेता तथा पराजित पक्ष दोनों की ही होती है।

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मनुष्य को स्वभाव, कर्म व गुणों के आधार पर शान्त प्रकृति वाला प्राणी माना जाता है। यद्यपि प्रत्येक मनुष्य के हृदय के भीतरी भाग में कहीं-न-कहीं एक हिंसक प्राणी भी छिपा रहता है। परन्तु मनुष्य का भरसक प्रयत्न रहता है कि वह भीतर का हिंसक प्राणी किसी प्रकार भी जागे नहीं। यदि किसी कारणवश वह जाग पड़ता है तो तरह-तरह की संघर्षात्मक क्रिया-प्रक्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं का जन्म होने  लगता है, तब उनके घर्षण तथा प्रत्याघर्षण से युद्धों की ज्वाला धधक उठती है।

इस प्रकार के युद्ध यदि व्यक्ति या व्यक्तियों के मध्य होते हैं तो वे गुटीय या साम्प्रदायिक झगड़े कहलाते हैं। परन्तु जब इस प्रकार के युद्ध दो देशों के मध्य हो जाते हैं तो वे कहलाते हैं – युद्ध।

सामान्य जीवन जीने के लिए तथा जीवन में स्वाभाविक गति से प्रगति एवं विकास करने के लिए शान्ति का बना रहना अत्यन्त आवश्यक होता है। देश में संस्कृति, साहित्य तथा अन्य उपयोगी कलाएँ तभी विकास पा सकती हैं जब चारों ओर शान्त वातावरण हो। देश में व्यापार की उन्नति व आर्थिक विकास भी शान्त वातावरण में ही संभव हो पाता है। सहस्त्र वर्षों के अथक प्रयत्न व साधन से ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला आदि का किया गया विकास युद्ध के एक ही झटके से मटिया-मेट हो जाता है।

युद्ध के इस विकराल रूप को देखकर तथा इसके परिणामों से परिचित होने के कारण मनुष्य सदैव से इसका विरोध करता रहा है। युद्ध न होने देने के लिए मानव ने सदैव से प्रयत्न किए हैं। महाभारत का युद्ध होने से पहले श्रीकृष्ण भगवान् स्वयं शान्ति दूत बनकर कौरव सभा में गए थे।

आधुनिक युग में भी प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद लीग आफ नेशन्स’ जैसी संस्था का गठन किया गया। परन्तु मानव की युद्ध-पिपासा भला शान्त हुई क्या? अर्थात् फिर दूसरा विश्व युद्ध हुआ। इसके बाद शान्ति की स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ (UN.O.) जैसी संस्था का गठन हुआ। परन्तु फिर भी युद्ध कभी रोके नहीं जा सके।

एक सत्य यह भी है कि कई बार शान्ति चाहते हुए भी राष्ट्रों को अपनी सार्वभौमिकता, स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने पड़ते हैं। जैसे द्वापर युग में पाण्डवों को, त्रेता युग में श्रीराम को तथा आज के युग में भारत को लड़ने पड़े हैं। परन्तु यह तो निश्चित ही है कि किसी भी स्थिति में युद्ध अच्छी बात नहीं।

इसके दुष्परिणाम पराजित व विजेता दोनों को भुगतने पड़ते हैं। अतः मानव का प्रयत्न सदैव बना रहना चाहिए कि युद्ध न हों तथा शान्ति बनी रहे।

  • Essay on War and Peace in Hindi

मानव और शक्ति-संचय-वर्तमान में मनुष्य ने देवताओं के समान शक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न प्रारंभ किया है। उसने देवता कहलाने वाले चाँद पर भी विजय प्राप्त कर ली है, किंतु वह प्राप्त शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है। आज मनुष्य अधिक-से-अधिक शक्तिशाली एवं सुदृढ़ बनने के लिए प्रयत्नशील है, जिससे वह समस्त विश्व पर शासन कर सके। शक्ति एवं धन के लिए मानव आज इतना अधिक व्याकुल है कि वह अपने कर्तव्यों तक को भूल गया है। सर्वत्र भय और घृणा का वातावरण व्याप्त है, जिससे युद्ध को बल मिलता है।

मानव और स्वार्थ-मानव स्वार्थ-प्रवृत्ति से युक्त है। वह कब चाहता है कि उसका पड़ोसी देश फूले-फले? यही ईर्ष्या की आग एक-दूसरे को नष्ट करने के लिए अपनी जीभ लपलपाती रहती है। एक राष्ट्र अपने सिद्धांत और विचारधारा को दूसरे राष्ट्र पर थोपना चाहता है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से अपने सभी उचित-अनुचित कार्यों में समर्थन चाहता है। आज संसार में अस्त्र-शस्त्र के निर्माण तथा उन्हें एकत्रित करने की होड़ लगी हुई है, आखिर क्यों? केवल अपनी दानवी आसुरी पिपासा को युद्ध के रक्त से शांत करने के लिए। धन की प्राप्ति तथा क्षेत्र विस्तार की कामना भी युद्ध के मूल में है।

अनेक धनलिप्सुओं ने इस पावन धरती को पदाक्रांत कर रक्तरंजित किया है। आरंभ में अनेक मुस्लिम आक्रांता भारत के धन की लूटमार के लिए ही यहाँ आए। सिकंदर के हृदय में विश्व-विजय की लालसा अत्यंत बलवती थी। इससे प्रेरित होकर अनेक देशों को युद्धों की लपटों से झुलसाता हुआ वह भारत तक आ पहुँचा था।

प्राचीन और आधुनिक युद्ध में अंतर- प्राचीनकाल में भी शक्तिशाली व्यक्तियों ने अशक्तों पर आक्रमण एवं अत्याचार किए हैं। परंतु उन युद्धों एवं आधुनिक युद्धों में आकाश-पाताल का अंतर है। आज युद्ध-साधनों की व्यापकता इतनी अधिक बढ़ गई कि कब क्या हो जाए, इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। आज युद्ध केवल पृथ्वी तक ही सीमित नहीं, अपितु आकाश भी रणक्षेत्र बना हुआ है। जल, थल और नभ तीनों प्रकार के युद्धकला के नवीन आविष्कारों ने युद्ध के प्रकार में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है।

युद्ध मानव-जाति के मस्तक पर कलंक है, ईश्वरीय सृष्टि के प्रति पाप है। प्राचीनकाल में मुख्यतः युद्ध अपनी क्षमता, साहस तथा चरित्र के उत्थान के लिए किए जाते थे। आदर एवं यश का एकमात्र साधन युद्ध ही था। महान् ‘शूरवीर ईश्वर की तरह पूजे जाते थे। भारतवर्ष में यह विश्वास किया जाता था कि युद्ध-क्षेत्र में जो वीरगति को प्राप्त करते हैं, वे सीधे स्वर्ग को जाते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को उपदेश दिया है-

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: 2/371

युद्ध की विनाश-लीला-लेकिन युद्ध का कल्पनातीत नरसंहार कितनी माताओं की गोद के इकलौते लाड़लों को, कितनी प्रेयसियों के जीवनाधार अमर स्वरों को, कितनी सधवाओं के सौभाग्य-बिंदुओं को, कितनी बहिनों की राखियां को अपने क्रूर हाथों से क्षणभर में ही छीन लेता है। चारों ओर करुण-क्रंदन और चीत्कार सुनाई पड़ता है। कितने बच्चे अनाथ होकर दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं, कितनी विधवाएँ अपने जीवन को सारहीन समझकर आत्महत्या कर लेती हैं, कितने परिवारों का दीपक हमेशा के लिए बुझ जाता है। युवकों के अभाव में देश का उत्पादन बंद हो जाता है।

बचे हुए वृद्ध न खेती कर सकते हैं और न कल-कारखानों में काम। परिणाम यह होता है कि युद्ध के बाद न कोई किसी कला का दक्ष बच पाता है और न वीर। देश में सर्वत्र गरीबी अपना विकराल मुँह फाडकर उसे डसने को तैयार रहती है। विस्फोटों के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है, उत्पादन कम होता है,

कल-कारखाने बंद हो जाते हैं। बम-विस्फोट से भव्य भवन धराशायी हो जाते हैं। सर्वत्र अशांति का राज्य छा जाता है। उत्पादन के अभाव में मूल्य इतने बढ़ जाते हैं कि किसी भी वस्तु को खरीदना संभव नहीं रहता। देश में अकाल की स्थिति आ जाती है। देश की जनता का नैतिक चरित्र गिर जाता है- ‘वुभुक्षितः किं न करोति पापम्।’ अतः युद्ध तथा युद्धोत्तर दोनों ही परिस्थितियाँ जनता के लिए अभिशाप बनकर सामने आती हैं।

युद्ध की आवश्यकता- यह युद्ध का एक पहलू है। यदि हम युद्ध के। | दूसरे पक्ष की ओर दृष्टिपात करें तो हम देखते हैं कि युद्ध हमारे लिए वरदान भी सिद्ध हो सकता है। इसका प्रमाण हमें उस समय मिला, जब पड़ोसी देश चीन ने भारत पर आक्रमण किया। पं. नेहरू की एक पुकार पर ही सारा देश सोना लिए खड़ा था। इसी प्रकार पाकिस्तान के आक्रमण के समय समस्त देश अपने सुख-वैभव को छोड़कर देश की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो गया। यहाँ तक कि बंगला देश की लड़ाई में कितनी माताओं ने अपने वात्सल्य की परवाह न करके अपने गोद को सूना कर लिया।

कितनी बहिनों ने अपने स्नेह की परवाह न करके अपने भाइयों को देश की रक्षा के लिए प्रेषित किया एवं कितनी ही महिलाओं ने अपने सिंदूर की परवाह न करके अपने सुहाग को देश की रक्षा के लिए स्वेच्छा से अर्पित कर दिया। तात्पर्य यह है कि युद्ध से जन-जागरण एवं भावात्मक एकता की स्थापना में सहयोग मिलता है। युद्ध से देश की जनसंख्या कम होती है, युद्ध के समय बेकारी दूर हो जाती है, मनुष्यों

में आत्मबल का उदय होता है। यदि धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो पापियों, अधर्मियों एवं भ्रष्टाचारियों के विनाश के लिए युद्ध एक वरदान बन जाता है। निःशस्त्रीकरण अनिवार्य-जो भी हो, युद्ध मानव-कल्याण के लिए नहीं वरन् विनाश के लिए है। यदि विश्व में मानवता की रक्षा करनी है तो इसके लिए अनिवार्य है- शांति। नि:शस्त्रीकरण आज के युग में विश्व-शांति के लिए अनिवार्य है। वस्तुत: मानव का जीवन शांति से प्रारंभ होता है। देश में शांति की स्थापना दार्शनिकों का स्वप्न है। विश्व-प्रगति शांति पर ही निर्भर है।

इतिहास में स्वर्ण-युग की कल्पना शांति, प्रगति एवं समृद्धि के युग की ही कल्पना है। विज्ञान एवं कलाओं की उन्नति तभी संभव है, जब मानव मस्तक शांत हो। अतः देश के चतुर्मुख विकास के लिए शांति आवश्यक है।

विश्वशांति की माँग-आज का युद्ध संपूर्ण मानव-सभ्यता और समाज का विनाश कर देगा। इसीलिए विश्व के समस्त राष्ट्र एक स्वर से विश्व-शांति की माँग कर रहे हैं। महात्मा गांधी ने भारत में अहिंसा का प्रयोग किया। वे अहिंसा के सच्चे पुजारी थे। देश में शांति स्थापित करने के लिए हमारे प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने पंचशील को जन्म दिया। अहिंसा एवं शांति के अभाव में युद्ध आज विश्व का वरण करने के लिए तैयार है। घर में, पुर में, प्रदेश में ।

सर्वत्र शांति की आवश्यकता है। यदि कलह का बीज पनप गया, द्वेष की अग्नि भड़क उठी तो सभ्यता का गगनचुंबी प्रासाद क्षण-भर में धराशायी हो जाएगा। इस विनाशकारी परिस्थिति से विश्व की रक्षा का एकमात्र उपाय है- शांति।

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Romi Sharma

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admin March 4, 2019 Essays in Hindi 5,076 Views

देवों की विजय; दानवों की हारों का होता युद्ध रहा संघर्ष सदा उर अन्तर में जीवित रह नित्य विरुद्ध रहा।

अतः युद्ध का मूल कारण मानव के आन्तरिक भाव, विचार, जीवन-दृष्टि हैं। महत्त्वाकांक्षा, साम्राज्य-विस्तार की लालसा, अपना वर्चस्व और प्रभुता बनाये रखने की कामना के कारण ही युद्ध होते रहे हैं। दुर्योधन की सत्ता लोलुपता ने ही पाण्डवों के केवल पाँच गाँव देने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया, कृष्ण के शान्ति-प्रयत्नों पर पानी फेर दिया और महाभारत का महाविनाशकारी युद्ध हुआ। अहंकार, शक्ति का मद, प्रतिशोध की भावना भी युद्ध को जन्म देती है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने इन्हीं भावनाओं से प्रेरित हो द्वितीय महायुद्ध छेड़ा और विश्व को महानाश के कगार तक ढकेल दिया। कभी-कभी युद्ध अन्याय, अनीति, अनाचार के विरुद्ध भी लड़ा जाता है। पाण्डवों ने कौरवों से, राम ने रावण से, गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार की अनीति के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया था। सब युद्ध के परिणाम जानते हैं: युद्ध में चाहे जय हो या पराजय, विजयी और विजित दोनों को हानी, क्षति पहुँचती है, अतः युद्ध किसी भी स्थिति में श्रेयस्कर नहीं होता। युद्ध का अर्थ है- महाविनाश, विध्वंस, अभाव, रोग, सभी प्रकार की अवनति। युद्ध के एक प्रहार से वर्षों के परिश्रम, अध्यवसाय और निष्ठा से बनायी गयी संस्कृति, भौतिक उन्नति, विकास, प्रगति का विनाश हो जाता है। सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, ज्ञान-विज्ञान की उपलब्धियाँ, ललित कलाएँ, सुख-सुविधाओं के लिए बनाये गये भवन, उपकरण सब एक ही विस्फोटक की लपेट में आकर विलीन हो जाते हैं, मानव का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। द्वितीय महायुद्ध के समय हिरोशिमा तथा नागासाकी में हुआ रोएँ खड़े करने वाला विध्वंस और विनाश का दृश्य इसका प्रमाण है। उसकी स्मृति से अभी भी दिल दहल उठते हैं, युद्ध की विभीषिका साकार हो उठती है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विकास, उन्नति समृद्धि, सम्पन्नता के लिए शान्ति का वातावरण आवश्यक है। जब देश में शान्ति हो, तभी वहाँ के कलाकार, व्यापारी, वैज्ञानिक, उद्योगपति, सामाजिक कार्यकरता निर्भय होकर, सुख-चैन से निष्ठापूर्वक सतत परिश्रम और अध्यवसाय द्वारा देश को उन्नति के शिखर पर ले जा सकते हैं। यदि युद्ध विध्वंस, विनाश और पतन का पर्यायवाची है तो शान्ति निर्माण और सृजन का, उन्नति और प्रगति का समानार्थी है। अतः शान्ति काम्य है, वरेण्य है, मानव के लिए शुभ है, मंगलमय है। शांति और युद्ध एक साथ नहीं रह सकते। अतः शान्ति के लिए युद्धों की समाप्ति अनिवार्य है और इसीलिए युद्धों को टालने या समाप्त करने के प्रयास सदा से होते रहे हैं। द्वापर युग में कृष्ण ने पाण्डव-कौरवों के बीच होनेवाले युद्ध को टालने का भरसक प्रयत्न किया। वर्तमान युग में प्रथम महायुद्ध के बाद लीग ऑफ नेशन्स की तथा द्वितीय महायुद्ध के उपरान्त संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना इसी उद्देश्य से की गयी। कैसी विडम्बना है कि सब जानते है कि युद्ध का परिणाम महा विनाश और विध्वंस है, उसमें विजय पानेवाला भी सुखी नहीं रह पाता। महाभारत के युद्ध और महाविनाश के बाद विजयी पाण्डवों को विशेषतः युधिष्ठिर को अपार ग्लानी हुई और वे अपनी राजधानी छोड़कर हिमालय की यात्रा के लिए चल पड़े और वहीं उन्होंने अपने शरीर त्याग दिये। इस कटु तथ्य से अवगत होते हुए भी युद्ध होते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयत्नों से, पर उससे भी बढकर इस भय से कि यदि तृतीय महायुद्ध हुआ तो सम्पूर्ण मानव-जाती विलुप्त हो जाएगी कोई महायुद्ध तो नहीं हुआ है, पर छोटे-छोटे युद्ध होते रहे हैं- कभी कोरिया में, कभी एशिया में। इजराइल और पैलेस्टाइन के बीच, अमेरिका और ईराक के बीच युद्ध हाल ही की घटनाएँ हैं। पाकिस्तान और भारत के बीच कभी साक्षात् युद्ध तो कभी छद्म युद्ध होता ही रहता है। आज भी आतंकवादीयों के माध्यम से पाकिस्तान भारत के विरुद्ध अप्रत्यक्ष युद्ध ही कर रहा है। युद्धों से बचने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली उपाय तो है मानव की मानसिकता, जीवन-दृष्टि, आन्तरिक भावों में परिवर्तन, उसे अहिंसा, सत्य, नैतिकता, सहृदयता, सौहार्द, सहयोग के मार्ग पर चलने की सद्बुद्धि और विवेक। यदि उसके हृदय में छिपा दानव, असुर, दैत्य कुचल दिया जाये और उसके स्थान पर देवता की प्रतिष्ठा हो तो युद्ध सदा के लिए समाप्त हो सकते हैं परन्तु सहस्रों वर्षों का इतिहास बताता है कि ऐसा संभव नहीं है, मानव की आसुरी प्रवृतियों को सर्वथा ध्वस्त करना सम्भव नहीं है। दूसरा उपाय है स्वयं को इतना समर्थ, शक्तिशाली बनाना कि शत्रु का साहस ही न हो कि वह हम पर आक्रमण करे। शान्ति के वचन उसी को शोभा देते हैं जिसमें बाहुबल हो, लड़ने की सामर्थ्य हो। शक्तिहीन व्यक्ति के मुख से निकले शान्ति और मैत्री के वचन केवल ढोंग हैं, अपनी कापुरुषता को छिपाने का आडम्बर। ‘दिनकर’ ने सच ही लिखा है:

जहाँ रही सामर्थ्य शोध की क्षमा वहाँ विफल है अथवा जेता के विभूषण सहिष्णुता-क्षमा है, किन्तु हारी हुई जीत की सहिष्णुता अभिशाप है।

यदि युद्ध को समाप्त करना है तो उसके मूल कारणों – अनीति, अत्याचार, शोषण, उत्पीड़न आदि को समाप्त करना होगा:

रण रोकना है तो उखाड़ विषदन्त फैंको वृक-व्याघ्र भीति से मही को मुक्त कर दो अथवा अजा के छागलों को भी बनाओ व्याघ्र दाँतों में कराल कालकूट विष भर दो।

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विश्व शांति और भारत पर निबंध Essay on World Peace & India in Hindi

विश्व शांति और भारत पर निबंध Essay on the World Peace and India in Hindi

इस लेख में हमने विश्व शांति और भारत पर निबंध (Essay on the World Peace and India in Hindi) हिंदी में लिखा है। अगर आप विश्व शांति में भारत की योगदान तथा भारत की जरूरत जैसे मुद्दों वाले निबंध की तलाश कर रहे हैं तो यह लेख आपके लिए बेहद मददगार साबित होने वाला है।

Table of Contents

प्रस्तावना (विश्व शांति और भारत पर निबंध Essay on the World peace and india in Hindi)

भौगोलिक आधार पर इंसानों ने अपने अनुकूल रहने के लिए जगह का निर्माण किया। जब वे समूह में रहने लगे तो उसे कबीले का नाम दिया गया लेकिन जब समूह बेहद ही बड़ा हो गया तो उसे एक देश का नाम दे दिया गया। देशों के समूह को विश्व कहा जाता है।

पूरी दुनिया में एकमात्र भारत ऐसा देश है जिसने सभी धर्मों तथा संप्रदाय के लोगों को आश्रय दिया। यहां पर आने वाले लोग भी यहां के होकर रह गए।

भारत एक ऐसा देश है जिसने कभी विस्तार वादी नीति के लिए किसी पर हमला नहीं किया या किसी धर्म का प्रचार करने के लिए किसी पर शारीरिक या मानसिक दबाव नहीं बनाया।

भारत ने हमेशा ही विश्व में शांति का संदेश दिया है। भारत से ही दुनिया में शुद्ध संस्कृति का प्रचार हुआ। दुनिया में जितने भी ज्ञान का प्रसार हुआ वह सब भारत से ही हुआ है।

भारत लंबे समय तक स्वयं आजादी के लिए संघर्ष करता रहा है लेकिन कभी भी किसी देश पर हमला नहीं किया। आज के समय में विश्व शांति के लिए भारत की आवश्यकता सबसे ज्यादा है।

भारत को विश्व गुरु इसलिए कहा जाता था कि भारत सत्य तथा शांति का उद्गम स्थल रहा है। भारत में जन्मे महापुरुषों के कर्मों का केंद्र जन कल्याण तथा विश्व कल्याण ही रहा है।

विश्व शांति में भारत का योगदान India’s Contribution to World Peace in Hindi

बृहस्पति शास्त्र में भारतवर्ष की बहुत ही आकर्षक परिभाषा बताई गई है। इस परिभाषा को सभी इतिहासकार एकमत से मान्यता देते हैं। बृहस्पति शास्त्र कहता है कि।

“हिमालयं समारभ्य यावद् इंदु सरोवरम् तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानाम प्रचक्षते”

हिमालय से शुरू होकर हिंद महासागर तक फैली हुई पवित्र भूमि जिसका निर्माण देवताओं ने किया है ऐसी भूमि को हिंदुस्थान या हिंदुस्तान कहा जाता है।

इतना विशाल राष्ट्र होने के बावजूद भी भारत ने सभी को शांति का संदेश दिया तथा सभी के विकास में भरपूर योगदान दिया।

भारत की भूमि से जन्मे महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर और गुरु नानक देव ने जग को शांति का संदेश दिया। उन्होंने जनसमूह को सत्य तथा धर्म की रक्षा के लिए संगठित किया।

वे सभी जगह जगह जाकर लोगों को दया करुणा तथा शांति का संदेश दिया करते थे। बहुत से जगह उन्हें सम्मान मिलता था लेकिन उसके साथ उन्हें काफी जगह अपमान भी मिलता था। इसके बाद भी उन्होंने आजीवन सत्य तथा शांति का मार्ग नहीं छोड़ा।

आज पूरी दुनिया दो भागों में बट चुकी है एक तरफ अमीर तथा विकसित देश तथा दूसरी ओर गरीब तथा विकासशील देश आते हैं।

लेकिन ज्यादातर युद्ध इन विकसित देशों के बीच ही हुए हैं। चाहे वह प्रथम विश्वयुद्ध हो या द्वितीय विश्व युद्ध। संपन्न देश अपनी ताकत के दम पर अन्य देशों को दबाने तथा शोषित करने में यकीन रखते हैं। 

लेकिन एक समय पर विश्व का सबसे अमीर देश माना जाने वाला भारत ने कभी भी किसी के खिलाफ पहले युद्ध नहीं छेड़ा।

आज धनवान देश धन के दम पर सब कुछ हथिया लेने के चक्कर में हैं। आज इन देशों ने इतने खतरनाक हथियार या गोली बारूद का जखीरा खड़ा कर लिया है जिसके माध्यम से पूरी दुनिया का आठ बार नाश किया जा सकता है।

लेकिन भारत देश आज भी विश्व शांति के लिए अपना पूरा योगदान दे रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना काल है। जिसमें पूरी दुनिया भयभीत होकर अपनी दवाओं को अपने लोगों के बीच तक नियंत्रित कर दिया था। तो वही दूसरी ओर भारत अपने पड़ोसी तथा अन्य गरीब देशों को मुफ्त में दवाइयां तथा वैक्सीन मुहैया करवा रहा था।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक पहल के रूप में गरीब देशों को मुफ्त में वैक्सीन बांटने का कार्यक्रम शुरू किया था लेकिन विश्व के संपन्न देश डब्ल्यूएचओ को वैक्सीन देने से मना कर दिया लेकिन भारत डब्ल्यूएचओ को अकेले के दम पर तीस प्रतिशत से ज्यादा वैक्सीन मुहैया करवाया।

जब-जब विश्व को आवश्यकता पड़ी है तब तक भारत ने दुनिया की मदद की है। लेकिन जब बात भारत की सुरक्षा की आती है तो विश्व के अन्य संपन्न देश स्वार्थ वश अपना मुंह फेर लेते हैं।

विश्व शांति की जरूरत क्यों? Need for World Peace in Hindi

सबसे बड़े उदाहरण के रूप में भारत का पड़ोसी देश चीन है।  जिसने अपनी ताकत के दम पर छोटे-छोटे देशों को अपने कब्जे में ले लिया है और जिसने महामारी के समय में भी अपने विस्तार वादी नीति को जारी रखा।

दूसरे उदाहरण के रूप में हाल में ही हुए तुर्की के पड़ोसी देश अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच हुआ भयंकर युद्ध है। एक छोटी सी जमीन के लिए दोनों देशों ने हजारों जाने ली। सबसे महत्वपूर्ण बात की इन दो छोटे देशों के युद्ध में संपन्न देश अपना व्यवसायिक फायदा खोजने में लगे थे।

लेकिन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य सेना और जानी-मानी आर्थिक शक्ति होने के बावजूद भी भारत ने कभी किसी भी देश को धमकी तक नहीं दी। इसलिए आज विश्व शांति के लिए भारत की जरूरत बहुत ही ज्यादा है।

आज दुनिया युद्ध के मुहाने पर खड़ी हुई है। ऐसा कहा जा सकता है कि दुनिया के विनाश के रूप में सिर्फ एक उंगली की दूरी है। दुनिया की कमान भारत जैसे देश के हाथ में होना बहुत ही जरूरी है क्योंकि भारत ही दुनिया को सच्चाई तथा अहिंसा का असली पाठ पढ़ा सकता है।

विश्व शांति दिवस World Peace Day in Hindi

हर वर्ष 21 सितंबर को विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हर कोई आपस की बैर भूल कर भाईचारे की भावना कायम करता है।

कहा जाए तो शांति के बिना जीवन का कोई आधार ही नहीं है। वैसे आमतौर पर इस शब्द का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में युद्ध विराम या संघर्ष में ठहराव के लिए किया जाता है।

शांति दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों और नागरिकों के बीच शांति व्यवस्था कायम करना और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों और झगड़ों पर विराम लगाना है।

निष्कर्ष  Conclusion

इस लेख में आपने विश्व शांति और भारत पर निबंध (Essay on the World Peace and India in Hindi) पढ़ा आशा ही आलेख आपको सरल लगा हो। अगर इस लेख के माध्यम से आपकी सहायता हुई हो तो इसे शेयर जरूर करें।

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युद्ध एक अभिशाप अथवा वरदान पर निबंध। Essay on War in Hindi

युद्ध एक अभिशाप अथवा वरदान पर निबंध। Essay on War in Hindi! प्राचीनकाल में भी राजाओं में युद्ध होते थे, परन्तु उन युद्धों और आज के युद्ध में पृथ्वी और आकाश का अन्तर है। आमने-सामने की लड़ाई और मल्ल युद्धों का समय जा चुका है। युद्ध-साधनों की व्यापकता इतनी बढ़ गई है कि वर्णन नहीं किया जा सकता कि कब क्या हो जाये? आज के युद्ध केवल भूमि पर ही नहीं लड़े जाते, अपितु आकाश और परिवार का प्रांगण भी समरांगण बन गया है। जल, थल और नभ–तीनों प्रकार की युद्धकला के नवीन आविष्कारों ने युद्ध-कशल में आमूल परिवर्तन उपस्थित कर दिया है। युद्ध के समय जो कुछ उत्पादन होता है उसका बड़ा भाग सेना के प्रयोग के लिए चला जाता है, चाहे वह अन्न हो, वस्त्र हो, दूध हो या अन्य उपयोगी वस्तुयें। जनता पर युद्ध-कालीन कर बढ़ा दिये जाते हैं। अतः युद्ध-कालीन तथा युद्धोत्तर दोनों ही स्थितियाँ जनता के लिये अभिशाप बनकर सामने आती हैं।

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रूस-यूक्रेन संघर्ष

  • 28 Feb 2022
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यह एडिटोरियल 26/02/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘Stay the Course’ लेख पर आधारित है। इसमें रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष के बारे में चर्चा की गई है।

यूक्रेन संकट सीमा से बाहर हो गया है, रूस यूक्रेन के कथित ‘विसैन्यीकरण’ और नाज़ी प्रभाव मुक्ति’ (Demilitarise’ and ‘Denazify’) के लिये आक्रमण करके पूर्वी यूक्रेन (डोनबास क्षेत्र) के डोनेट्स्क (Donetsk) और लुहान्स्क (Luhansk) विद्रोही क्षेत्रों को मान्यता प्रदान कर रहा है। मॉस्को का यह निर्णय यूरोप में राष्ट्रीय सीमाओं का उल्लंघन नहीं करने पर वर्ष 1975 के हेलसिंकी समझौते में व्यक्त सहमति को अस्वीकार करता है जो वैश्विक व्यवस्था के लिये एक बड़ी चुनौती है। भारत के लिये एक ओर जहाँ रूस उसके सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा एवं समय मानकों पर खरा उतरा आपूर्तिकर्त्ता बना रहा है, वहीं अमेरिका, यूरोपीय संघ एवं यू.के. भारत के महत्त्वपूर्ण भागीदार हैं जिन्हें नाराज़ करने का खतरा नहीं उठाया जा सकता। भारत के रणनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए भारत ने अब तक जिस संतुलित दृष्टिकोण का पालन किया है, वही उपयुक्त व्यावहारिक तरीका हो सकता है।

संघर्ष का कारण 

  • शीत युद्ध के बाद के युग में मध्य यूरोपीय क्षेत्रीयता को लेकर संघर्ष और गौरवपूर्ण रूसी अतीत को पुनर्जीवित करने की इच्छा यूक्रेन संकट के मूल में है।
  • यूक्रेन और रूस सैकड़ों वर्षों के सांस्कृतिक, भाषाई और पारिवारिक संबंधों की साझेदारी करते हैं।
  • रूस में और यूक्रेन के जातीय रूप से रूसी भागों में कई लोगों के लिये दोनों देशों की साझा विरासत एक भावनात्मक मुद्दा है, जिसका चुनावी और सैन्य उद्देश्यों के लिये दोहन होता रहा है।
  • क्षेत्रीय शक्ति संतुलन, यूक्रेन का रूस एवं पश्चिम के बीच एक महत्त्वपूर्ण बफर क्षेत्र होना, नाटो की सदस्यता पाने का यूक्रेन का प्रयास और काला सागर क्षेत्र में रूस के हितों के साथ ही यूक्रेन में विरोध प्रदर्शन जारी वर्तमान संघर्ष के प्रमुख कारण हैं।

वर्तमान परिदृश्य  

  • यह संघर्ष द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यूरोप में एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य पर किया गया सबसे बड़ा हमला है. इसके साथ ही यह 1990 के दशक में चले बाल्कन संघर्ष के बाद का पहला बड़ा संघर्ष है।
  • यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के साथ वर्ष 2014 के मिंस्क प्रोटोकॉल (Minsk Protocols) और वर्ष 1997 के रूस-नाटो एक्ट जैसे समझौते लगभग निष्प्रभावी हो गए हैं।
  • प्रतिक्रिया में अमेरिका, यूरोपीय संघ (EU), यू.के., ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान द्वारा रूस पर प्रतिबंध भी लगाए गए हैं ।
  • चीन ने यूक्रेन पर रूस की कार्रवाई को ‘आक्रमण’ कहना स्वीकार नहीं किया और सभी पक्षों से संयम बरतने का आग्रह किया है।
  • वर्तमान मामले में भारत ने अमेरिका द्वारा प्रायोजित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव जहाँ यूक्रेन के विरुद्ध रूस की ‘आक्रामकता’ की ‘कठोरतम शब्दों में निंदा’ की गई, पर मतदान से अनुपस्थित रहने का रास्ता चुना। इस अवसर पर भारत ने ‘डायलॉग’ और ‘डिप्लोमेसी’ शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा कि संवाद (Dialogue) ही मतभेदों एवं विवादों को दूर करने का एकमात्र उपाय है और उसने ‘अफ़सोस’ जताया कि इस मामले में कूटनीति (Diplomacy) का रास्ता छोड़ दिया गया।
  • भारत के अलावा संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और चीन ने भी मतदान में भाग नहीं लिया।

रूस का पक्ष और दृष्टिकोण

  • रूस का दृष्टिकोण यह है कि नाटो के विस्तार ने सोवियत संघ के विखंडन से पूर्व किये गए वायदों का उल्लंघन किया है कि नाटो में यूक्रेन का प्रवेश रूस के लिये खतरे की स्थिति को पार कर जाएगा और नाटो की रणनीतिक मुद्रा रूस के लिये एक सतत् सुरक्षा ख़तरा उत्पन्न करती है।
  • सोवियत संघ और वारसॉ संधि के विघटन के बाद भी एक राजनीतिक-सैन्य गठबंधन के रूप में नाटो का विस्तार एक अमेरिकी पहल थी जिसका उद्देश्य रणनीतिक स्वायत्तता के लिये यूरोपीय महत्त्वाकांक्षाओं को नियंत्रित रखना और रूस के पुनरुत्थान का मुक़ाबला करना है।
  • सुरक्षा हितों और पूर्व सोवियत गणराज्यों में रूसियों के अधिकारों की रक्षा करने के आधार पर रूसी राष्ट्रपति द्वारा यूक्रेन संकट को उचित ठहराया गया था।
  • अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी देश यूक्रेन को नाटो से प्रतिबंधित करने से इनकार कर रहे हैं, उनका दावा यह है कि यूक्रेन एक संप्रभु देश है जो अपने स्वयं के सुरक्षा गठबंधनों को चुनने के लिये स्वतंत्र है।

भारत पर इस संघर्ष के प्रभाव 

  • रूस-यूक्रेन संकट भारतीय घरों और व्यवसायों के लिये रसोई गैस, पेट्रोल एवं अन्य ईंधन खर्चों को बढ़ा देगा। तेल की ऊँची कीमतों से माल ढुलाई/परिवहन लागत में भी वृद्धि होती है।
  • कच्चे तेल की कीमतों में उछाल से भारत के तेल आयात बिलों में वृद्धि होगी और रुपए के दबाव में रहने से सोने का आयात पुनः बढ़ सकता है।
  • लेकिन उर्वरकों और सूरजमुखी के तेल के वैकल्पिक स्रोत ढूँढना इतना आसान नहीं होगा।
  • रूस को निर्यात भारत के कुल निर्यात का 1% से भी कम है, लेकिन फार्मास्यूटिकल्स एवं चाय के निर्यात को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जबकि CIS देशों को शिपमेंट में भी कुछ कठिनाई आएगी। माल ढुलाई दरों में बढ़ोतरी से कुल निर्यात भी कम प्रतिस्पर्द्धी हो सकता है।

आगे की राह 

  • दुनिया अभी भी कोविड-19 महामारी से जूझ रही है जिसने निर्धनतम देशों और लोगों को सर्वाधिक प्रभावित किया है। ऐसे समय विश्व एक युद्ध-प्रेरित मंदी का सामना कर सकने में अक्षम ही होगा।
  • यह दायित्व रूस पर है कि वह तत्काल युद्ध विराम लागू करे और फिर दोनों पक्ष वार्ता करें। संघर्ष आगे बढ़ाना उपयुक्त नहीं है।
  • संवहनीय सुरक्षा व्यवस्था में वर्तमान वास्तविकताओं का प्रतिबिंबन महज शीतयुद्ध कालीन व्यवस्था का परिणाम नहीं हो सकता और इसे आंतरिक रूप से संचालित किया जाना चाहिये।
  • इसके साथ ही ऐसी यूरोपीय व्यवस्था जो व्यावहारिक वार्ता के माध्यम से रूस की चिंताओं को समायोजित नहीं करे, लंबे समय तक स्थिर नहीं बनी रह सकती।
  • इस प्रकार, पश्चिम (अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों) को दोनों पक्षों को बातचीत फिर से शुरू करने और सीमा पर सापेक्ष शांति बहाली के लिये मिंस्क समझौते के अनुरूप अपनी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।

भारत-विशिष्ट आगे की राह 

  • इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन की निंदा करने के लिये एक रणनीतिक साझेदार की ओर से दबाव और दूसरे साझेदार की वैध चिंताओं को समझने के बीच एक संतुलन साधना होगा। वर्ष 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे से उत्पन्न संकट के दौरान भारत ने इन दबावों को कुशलता से प्रबंधित किया था और अपेक्षित है कि वह एक बार फिर प्रभावी ढंग से इस संकट को प्रबंधित करेगा।
  • आर्थिक पहलू: राजकोषीय दृष्टिकोण से सरकार (जो बजट में अपने राजस्व अनुमानों को लेकर रूढ़िवादी रही है) के पास इस वैश्विक मंथन के बीच मुद्रास्फीति अनुमानों को कम करने के लिये घरेलू ईंधन करों में पूर्व-क्रय कटौती करने, खपत स्तर को कम करने और भारत की नाजुक पोस्ट-कोविड रिकवरी को जारी रखने का अवसर मौजूद है। 
  • इसके साथ ही अमेरिका, यूरोपीय संघ और यू.के. सभी महत्त्वपूर्ण भागीदार हैं और उनमें से प्रत्येक के साथ तथा सामान्य रूप से पश्चिमी विश्व के साथ भारत के संबंध किसी एक घटना या विषय तक सीमित नहीं हैं।
  • दिल्ली को यह ध्यान में रखते हुए कि किसी भी देश की क्षेत्रीय संप्रभुता के उल्लंघन का कोई औचित्य नहीं है, सभी पक्षों से बातचीत जारी रखनी चाहिये और अपने सभी भागीदारों के साथ संलग्न बने रहना चाहिये।
  • भारत को दबाव बनाने वाले देशों के समक्ष यह भी स्पष्ट कर देना चाहिये कि उनका ‘हमारे साथ या हमारे विरुद्ध’ (With us or Against us’) का फॉर्मूला रचनात्मक या संवादपरक नहीं माना जा सकता।
  • सभी पक्षों के लिये सर्वोत्कृष्ट राह यह है कि वे एक कदम पीछे हटें और समग्र युद्ध की संभावना को समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित करें, बजाय इसके कि विश्व में विभाजन उत्पन्न हो और एक बार फिर शीत युद्ध की स्थिति बने।

अभ्यास प्रश्न: रूस-यूक्रेन संघर्ष के भारत पर पड़ने वाले प्रभावों और इस संबंध में भारत द्वारा अपनाए जा सकने वाले उपयुक्त दृष्टिकोण के संबंध में चर्चा कीजिये।

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Impact of War Speech in Hindi | युद्ध का प्रभाव हिंदी भाषण

पहले 2019-20 में विश्व ने कोरोना जैसा महामारी को झेला. इस युद्ध रुपी बीमारी से उबरने के बाद 20 फ़रवरी, 2022 को रूस-यूक्रेन युद्ध की खबरआई. यह युद्रध अभी तक समाप्त भी नहीं हुआ था कि 7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल-हमास युद्ध का भी साक्षी बनना पड़ा. क्या आपने कभी सोचा है कि युद्ध के प्रभाव कितने डरावने हो सकते हैं? आज हम युद्ध पर निबंध के माध्यम से समझने की कोशश करेंगे.

युद्ध का प्रभाव निबंध | Hindi Speech on Impact of War | 500 Words Speech on War

युद्ध जीतने वाले और हारने वाले दोनों ही पक्षों के लोगों में अशांति छोड़ कर जाता है। पीड़ित केवल वे ही नहीं होते जो युद्ध में मर जाते हैं, बल्कि वे भी होते हैं जो जीवित बच जाते हैं। युद्ध के परिणाम इतने भयावह हैं कि कई लोगों को न केवल शारीरिक बल्कि भावनात्मक, मानसिक और यहां तक कि सामाजिक रूप से भी विकलांगता के साथ जीना पड़ता है।

युद्ध में सटीक हथियारों, परमाणु और रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल से बड़े पैमाने पर विनाश होता है, जिसके दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं। व्यक्तिगत नुकसान से निपटने की रोजमर्रा की पीड़ा उस आर्थिक संकट के साथ और भी बढ़ जाती है जिसका सामना देश को करना पड़ता है। टेक्नोलॉजी के उपयोग से आज मॉडर्न दुनिया एक दूसरे से अलग नहीं है बल्कि सभी देश आपस में एक दुसरे से जुड़े हैं.इसलिए वर्तमान समय में युद्ध का प्रभाव किसी देश विशेष तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि संपूर्ण विश्व पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ता है।

दूसरे देश के आकस्मिक हमले से अपने आप को बचाए रखने के लिए सभी राष्ट्र सेना और युद्ध हथियारों पर अच्छा-खासा पैसा खर्च करते हैं। परिणामस्वरूप, देश को स्वास्थ्य और शिक्षा के मोर्चे पर नुकसान उठाना पड़ता है। एक विकसित देश के लिए यह चिंता का विषय नहीं होगा, लेकिन एक बार इस दुष्चक्र में फंसने के बाद, विकासशील देश की अर्थव्यवस्था और भी खराब हो जाती है, जिसका असर आधुनिक जीवन के हर पहलू पर पड़ता है।

ऐसे संकट से निपटने के लिए नागरिकों के कई अधिकार छीन लिए जाते हैं और टैक्स लगा दिए जाते हैं जिससे हंगामा और विद्रोह और बढ़ जाता है। युद्ध के बाद एक देश को उबरने में कई साल लग जाते हैं. साल २०२२ में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है। इसका खामियाजा सभी देश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भुगत रहे हैं। अभी तो यह युद्ध समाप्त भी नहीं हुआ था कि इजराइल और हमास युद्ध शुरू हो गया.

एक तरफ जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी और कोविड-19 जैसी महामारी के खिलाफ युद्ध लड़ रही है, तो ये राजनीतिक युद्ध या बदले के युद्ध, जो भी आप उन्हें कह सकते हैं, बहुत ही बेतुके लगते हैं। किसी एक की ग़लती से पूरी दुनिया पर आपदा आ सकती है। तो फिर, जिम्मेदारी क्यों न लें और ग्लोबल वार्मिंग, संसाधनों के अति प्रयोग, अधिक जनसंख्या, गरीबी आदि की समस्या का समाधान क्यों न करें?

Impact of War on the Modern World Essay 5 Innovative Ways to Reduce Global Warming Essay War me never English Poem Global Warming Essay letter to a friend about the climate crisis

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  • General Knowledge /

Indian War History In Hindi: जानिए भारत के इतिहास के प्रमुख युद्धों के बारे में 

essay on war and peace in hindi

  • Updated on  
  • अगस्त 22, 2023

Indian War History In Hindi

भारत का एक गौरवशाली इतिहास रहा है इसके साथ ही भारत अनेक युद्धों का गवाह भी रहा है। भारत के इतिहास में बहुत से ऐतिहासिक युद्ध दर्ज है। हूण, कुषाण के अलावा मुगलों और अंग्रेजों से भी भारत के वीर राजाओं ने लोहा लिया है। यहाँ तक कि विश्वविजेता सिकंदर ने भी भारत पर हमला किया था जिसका मुकाबला वीरता के साथ किया गया था। इस ब्लॉग में Indian war history in Hindi के सभी ऐतिहासिक युद्धों के बारे में संक्षिप्त में बताया जा रहा है।  

This Blog Includes:

कलिंग का  युद्ध (261-262 ईसा पूर्व), तराइन का युद्ध (1192ईसा पूर्व), पानीपत का प्रथम युद्ध (1526), पानीपत का द्वितीय युद्ध  (1556), प्लासी का प्रथम युद्ध (1757):, प्लासी का द्वितीय युद्ध (1764).

Indian War History In Hindi में सबसे पहला युद्ध है कलिंग का युद्ध यह भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध था, जो मौर्य सम्राट अशोक और कलिंग राज्य के बीच हुआ था। यह युद्ध कलिंग (वर्तमान उड़ीसा) के राजा राजा अनंतवर्मन के खिलाफ लड़ा गया था। इस युद्ध में अशोक की सेना ने कलिंग के खिलाफ हमला किया और अपनी जीत दर्ज की। लेकिन अशोक  ने युद्ध के बाद, बौद्ध धर्म अपना लिया और आजीवन शांति और धर्म का प्रचार करने में अपना जीवन व्यतीत किया। 

इस युद्ध में मुहम्मद ग़ोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया और ‘दिल्ली सल्तनत’ का आरंभ किया। तराइन का युद्ध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण संघर्षों में से एक था। मुहम्मद ग़ोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। जिसके अंत में मुहम्मद गोरी की जीत हुई और मुगल साम्राज्य की नींव रखी गई।

बाबर और इब्राहीम लोदी के बीच लड़ी गई इस लड़ाई में बाबर ने विजय प्राप्त की और मुगल साम्राज्य की नींव रखी। यह युद्ध 21 अप्रैल 1526 को पानीपत, हरियाणा में लड़ा गया था। बाबर ने अपनी विशाल फौज और बंदूकों व तोपों की मदद से इब्राहीम लोदी की फौज को हराया। इस युद्ध ने बाबर को भारत में कब्ज़ा करने का अवसर प्रदान किया और मुगल साम्राज्य की नींव रखी।

अकबर और सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य के बीच यह युद्ध हुआ था, जिसमें अकबर ने जीत हासिल की और मुगल साम्राज्य को मजबूती से आगे बढ़ाया। पानीपत का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण संघर्ष था, जिसमें मुगल ‘ बादशाह अकबर’ और ‘ सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य’ , बिहार के राजा, के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध 5 नवंबर 1556 को पानीपत, हरियाणा में लड़ा गया था। इस युद्ध में अकबर ने अपनी विशाल फौज और तोपों की मदद से, सम्राट हेम चंद्र की फौज को हराया था। इस युद्ध से अकबर को भारत में मुगल साम्राज्य को मजबूती से स्थापित करने का अवसर मिला। 

यह युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और सिराज-उद-दौला के बीच हुआ था, जिसमें ब्रिटिश हुकूमत ने जीत हासिल की और बंगाल को अपने अधिकार में ले लिया। प्लासी की लड़ाई भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध 23 जून 1757 को प्लासी, बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में लड़ा गया था। ब्रिटिश कंपनी की सेना, जिनके प्रमुख थे रॉबर्ट क्लाइव, ने दावा किया कि वे व्यापार के लिए यहाँ आए थे, लेकिन उनका वास्तविक उद्देश्य बंगाल को कंपनी के अधीन करना था। सिराज-उद-दौला की हार के बाद, ब्रिटिश कंपनी ने बंगाल को अपने अधिकार में ले लिया जिसके कारण भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव स्थापित हो गई।

यह युद्ध ब्रिटिश हुकूमत और मीर कासिम (जो वर्ष 1763 तक बंगाल का नवाब रहा था) के बीच हुआ था, जिसमें ब्रिटिश ने मुगल  साम्राज्य के खिलाफ जीत हासिल की और उपयुक्त कैलकट्टा से किंगडम ऑफ बंगाल की शुरुआत की। प्लासी की लड़ाई भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण घटनाक्रम था, जिसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नवाब शुजाउद्दौला के बीच लड़ाई हुई थी। यह युद्ध 23 जून 1764 को भारत के प्लासी, वर्धा जिले में लड़ा गया था।

ब्रिटिश कंपनी की सेना, जिसके प्रमुख थे रॉबर्ट क्लाइव, ने शुजाउद्दौला की बड़ी सेना को हराया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, कंपनी ने बंगाल, बिहार, और उड़ीसा के प्रशासन का नियंत्रण प्राप्त किया और इससे भारतीय साम्राज्य ब्रिटिश हुकूमत के अधीन आ गया, जिससे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का आगमन हो गया।

हिस्ट्री ऑफ़ द इंडियन म्यूटिनी (1857-1858)

यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत का प्रारंभ था, जिसमें सिपाहियों ने ब्रिटिश कंपनी के खिलाफ बगावत की और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। सिपाही म्यूटिनी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण प्रारंभ था। यह युद्ध 1857 में भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के औद्योगिक सिपाहियों और भारतीय जनता के बीच हुआ था। यह  युद्ध मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, बहादुर शाह जफर, और अन्य नेताओं के प्रेरणास्पद नेतृत्व में लड़ा गया था। इस युद्ध के बाद से ही ब्रिटिश कंपनी के खिलाफ विभिन्न क्षेत्रों में विद्रोह उत्पन्न हुआ था। 

भारत ने आज़ादी के बाद कुल पाँच युद्ध लड़े हैं।

भारत के इतिहास का सबसे खतरनाक युद्ध कौनसा था?

कलिंग युद्ध भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी और घातक लड़ाइयों में से एक थी। यह अशोक द्वारा सिंहासन पर बैठने के बाद लड़ा गया एकमात्र प्रमुख युद्ध था। 

सन 1576 में अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। यह भारतीय इतिहास की सबसे छोटी लड़ाई मानी जाती है। 

आशा है इस ब्लॉग से Indian War History In Hindi और इससे जुड़ी सभी अहम घटनाओं के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी। भारत के इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहे

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Leverage Edu स्टडी अब्रॉड प्लेटफार्म में बतौर एसोसिएट कंटेंट राइटर के तौर पर कार्यरत हैं। अंशुल को कंटेंट राइटिंग और अनुवाद के क्षेत्र में 7 वर्ष से अधिक का अनुभव है। वह पूर्व में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए ट्रांसलेशन ऑफिसर के पद पर कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने Testbook और Edubridge जैसे एजुकेशनल संस्थानों के लिए फ्रीलांसर के तौर पर कंटेंट राइटिंग और अनुवाद कार्य भी किया है। उन्होंने डॉ भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, आगरा से हिंदी में एमए और केंद्रीय हिंदी संस्थान, नई दिल्ली से ट्रांसलेशन स्टडीज़ में पीजी डिप्लोमा किया है। Leverage Edu में काम करते हुए अंशुल ने UPSC और NEET जैसे एग्जाम अपडेट्स पर काम किया है। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न कोर्सेज से सम्बंधित ब्लॉग्स भी लिखे हैं।

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War for Peace Hindi Debate शान्ति के लिए युद्ध आवश्यक है!

इतिहास गवाह है कि आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं, उसका अंजाम खतरनाक और रक्तरंजित ही रहा है. आज एक बार फिर विश्व के दो बड़े देश आमने- सामने होते जा रहे हैं. क्या होगा पता नहीं. इसी के सन्दर्भ में इस पोस्ट War for Peace Hindi Debat e आपके सामने प्रस्तुत है. हो सके तो अपना विचार कमेंट के द्वारा अवश्य दें.

War for Peace Hindi Debate शान्ति के लिए युद्ध् आवश्यक है!

पक्ष में (War for Peace Hindi Debate)

युद्ध् का नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. युद्ध वास्तव में कोई अच्छी बात नहीं है. वैसे तो स्वभाव से मनुष्य शांतिप्रिय प्राणी है वह युद्ध से बचना चाहता है, फिर भी उसे कई बार युद्ध् की विभीषिका झेलनी ही पड़ती है. हानि उठाकर भी मनुष्य को कई बार युद्ध् करना ही पड़ता है अगर उसका प्रयोजन राष्ट्रीय सुरक्षा होता है.

कुछ विद्वानों का मानना है कि बुरा और विनाशकारी होते हुए भी कई बार युद्ध लड़ना आवश्यक एवम् लाभप्रद होता है. जब कोई स्वार्थी, व्यक्ति, देश या राष्ट्र किसी और पर अपनी बातें, धरणाएँ या सत्ता थोपना चाहता हो, तब युद्ध् ही एकमात्रा उपाय बचता है जिससे अपना बचाव, अपनी सुरक्षा और आत्म-सम्मान की रक्षा की जा सकती है. बड़े से बड़ा बलिदान देकर और कष्ट सहकर भी मातृभूमि की रक्षा करना मानव का परम धर्म है. इस प्रकार के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए युद्ध को अनुचित नहीं कहा जा सकता.

कई बार देशों-राष्ट्रों के जीवन में ऐसा समय भी आ जाता है जब उसे चारों ओर से आलस्य, उन्माद, लापरवाही और बिखराव का वातावरण घेर लिया करता है तब सहसा युद्ध् का बिगुल बजाकर इन सब दूषणों को दूर कर जातियों-राष्ट्रों को सप्राण बना देता है. युद्ध् नयी ऊर्जा, नयी उत्सुकता, साहस और उत्साह भी जातियों के जीवन में जगा देता है. युद्ध् में एक बार विनाश होकर नये सिरे से हर चीज़ का निर्माण होता है. भारत में कई बार ऐसा हुआ है कि देशवासियों को युद्ध का सामना करना पड़ा है. पर उसके बाद हमने नये-नये साधन जुटाने और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर करता है.

Read more: हिंदी निबंध संसार 

अंग्रेजों की गुलामी को तोड़ने के लिए भारतवासियों ने हिंसा और अहिंसा दोनों तरीकों को अपनाया था. सबसे पहला युद्ध् 1857 में हुआ था जो कि आज़ादी पाने की तरफ पहला कदम था. सन् 1965 में लड़े गए भारत-पाक युद्ध् ने भारत को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर होने की दिशा में अग्रसर किया. सन् 1962 के चीनी आक्रमण ने देश को शस्त्र -अस्त्र एवम् शक्ति के स्त्रोत जुटाने की प्रेरणा दी.

आतंकवाद जो कि प्रत्येक देश को दीमक की तरह खाता जा रहा है, उसे समाप्त करने के लिए युद्ध् करना ही पड़ेगा. बिना युद्ध् किए आतंकवाद पर काबू नहीं पाया जा सकता. आज विश्वभर में आतंकवाद की समस्या ने सिर उठाया हुआ है. कई देश ऐसे भी हैं जो आतंकवाद को खत्म करने की बजाय बढ़ावा दे रहे हैं. ऐसी स्थिति में युद्ध् करना एक मजबूरी बन जाता है. उसमें भी यदि आपका पड़ोसी देश ही अपने सैनिकों द्वारा आतंकियों को ट्रेनिंग देकर आप पर हमला करवाए तो ऐसी स्थिति में युद्ध करना और उसको माकूल जबाव देना जरुरी हो जाता है.

अतः हम कह सकते हैं कि शांति के लिए युद्ध् कई बार न चाहने पर भी आवश्यक हो जाता है. यह हमें कई बार सबक भी देता है कई बार जातियों का विनाश भी हो जाता है. प्रथम विश्व युद्ध् और द्वितीय विश्व युद्ध् का उदाहरण भी देख सकते हैं.

विपक्ष में (War for Peace Hindi Debate)

‘अहिंसा परमो धर्मः’ अर्थात् अहिंसा सबसे श्रेष्ठ धर्म है. भारत ही एक ऐसा देश है जिसने संपूर्ण विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाने का प्रयास किया है. और तो और, भारत में जब स्वतंत्रता-आंदोलन के समय ब्रिटिश सरकार आंदोलनकारियों पर लाठियाँ-गोलियाँ बरसा रही थी, तब भी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आदेश से लोग हिंसा से दूर रहकर अहिंसक संघर्ष को ही बढ़ावा दे रहे थे.

‘शांति के लिए युद्ध आवश्यक है’ यह पंक्ति जितनी सही लगती है उससे कहीं ज़्यादा यह बात लोगों को विनाश के गर्त में धकेल देती है. काश! ऐसा हो जाए कि युद्ध् का अवसर ही देशों-राष्ट्रों के जीवन में न आए. क्या ऐसा हो पाना संभव है? जितनी कोशिश हो सके बिना युद्ध् के शांति बनाये रखने की उतना ही देशों-राष्ट्रों का फायदा है। वरना तो युगों-युगों की साधना और प्रयत्नों से मानव जिस सभ्यता –संस्कृति एवम् उपयोगी संसाधनों का निर्माण करता है, विकास कर आगे बढ़ता है, युद्ध् का एक ही झटका उस सबको विनष्ट करके रख दिया करता है.

आज कई वषो के बीत जाने के बाद भी लोग ‘हिरोशिमा’ और ‘नागासाकी’ के बम कांड को नहीं भूला सके हैं. आज भी वहाँ जमीन बंजर है. नयी जन्म लेने वाली पीढ़ी पर आज भी उस बीते ज़माने के युद्ध् का असर देखा जा सकता है. युद्ध् मानवता के सभी मूल्यों, सुख-शांति और समृद्धि् की उपलब्ध्यिं को क्षण भर में ही समाप्त कर देता है. उसके कारण जो अविश्वास और तनाव का वातावरण पैदा हो जाता है, फिर वह मनुष्य को कभी चैन नहीं लेने देता.

Read more : हिंदी निबंध

किसी भी देश-राष्ट्रों में युद्ध् आरंभ होकर समाप्त तो हो जाता है पर वह कभी न समाप्त होने वाली अनेक समस्याओं को भी जन्म दे देता है. जैसे कि व्यक्ति का सारा ध्यान प्रगति का सामान जुटाने से बंटकर विध्वंस हथियार जुटाने पर केंद्रित होने लगता है. प्रगति और विकास की बातें, सुख शांति की बातें सभी भूली-बिसरी यादें बन जाया करती है. मानव केवल विध्वंस के बारे में ही सदा सोचता रहता है. इसी कारण से देश में महँगाई भी बढ़ जाती है लोग सामान को स्टोर कर लेते हैं और युद्ध् के समय महँगे दामों पर बेचते हैं. इस बीच पिसती है बेचारी गरीब जनता.

आज हम सभी जानते हैं कि विश्व के अनेक देशों की आय का अधिकाँश भाग परमाणु-हथियार बनाने पर खर्च हो रहा है. ड्रोन, तोप, मिसाइलों और हथियारों की खरीद में करोड़ों डॉलर बहा दिए जाते हैं. परिणाम स्वरूप महँगाई का भूत अपने पाँव पसारता चला जा रहा है. कारगिल का युद्ध् इस बात का ज्वलंत उदाहरण है. ऐसी स्थिति में युद्ध् से प्राप्त होने वाले लाभ बहुत ही कम होते हैं जबकि हमें मिलती है सिर्फ हानियाँ ही हानियाँ जिन्हें भोगने के लिए आज हम विवश हैं.

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युद्ध् से लाभ स्वल्प है और वह भी कल्पित ही है जबकि हानियों की भरमार है. युद्ध् हज़ारों-लाखों को अनाथ, बेसहारा, विधवा बना दिया करते हैं. महामारियों, अकाल और भुखमरियों का कारण भी बनते हैं.

अतः हमें यही कोशिश करनी चाहिए कि विश्व में युद्ध् न हों. युद्ध् नाम के भूत को सदा के लिए बोतल में बंद कर सागर की गहराई में डुबा देना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इस बारे में कुछ भी न जान सके. ऐसा होना ही मानवता के लिए और भविष्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक है. बड़े और समर्थ राष्ट्रों को उदार दृष्टि अपनानी चाहिए ताकि छोटे राष्ट्र भी इस चिंता से उबर कर अपना ध्यान निर्माण कार्यों की ओर लगा सकें. अपनी विस्तारवादी नीति का त्याग कर अन्य देशों का भी सम्मान करना चाहिए. जरुरत है श्री कृष्ण जैसे शांति दूतों की जिन्होंने महाभारत को रोकने का हर संभव प्रयास किया.

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November 21, 2019 at 10:20 AM

Very nice informations

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December 29, 2020 at 3:10 PM

Very nice explained

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तृतीय विश्व युद्ध की संभावना पर निबंध | Essay on The Possibility of World War III in Hindi

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तृतीय विश्व युद्ध की संभावना पर निबंध | Essay on The Possibility of World War III in Hindi!

” युद् ‌ ध का उम्माद संक्रमणशील है , एक चिनगारी कहीं जागी अगर , तुरतं बह उठते पवन उनचास हैं ,  दौड़ती , हँसती , उबलती आग चारों ओर से । ”

-रामधारी सिंह दिनकर

ADVERTISEMENTS:

‘कुरुक्षेत्र’ के द्‌वितीय सर्ग से उद्‌धत ये पंक्तियाँ प्रथम एवं द्‌वितीय विश्व युद्‌ध की परिस्थितियों का सटीक बयान करती हैं । युद्‌धोन्माद संक्रमणशील होता है, एक चिंगारी उठी नहीं कि उनचासों पवन उसे हवा देने के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं । यहाँ तक कि जब केवल दो राष्ट्रों के बीच युद्‌ध होते हैं तब भी पूरी दुनिया दो गुटों में बँटकर किसी एक पक्ष का समर्थन करने लगती है ।

महाभारत का युद्‌ध तो कौरवों और पांडवों के मध्य हुआ था लेकिन अन्य राजे-महाराजे अपने-अपने सैनिकों के साथ किसी न किसी पक्ष के साथ युद्‌ध के मैदान में आ डटे थे । बस युद्‌ध का उन्माद चाहिए, एक पृष्ठभूमि, एक वातावरण चाहिए और युद्‌ध का बिगुल बज उठता है ।

दुनिया के लोग हर समय किसी न किसी युद्‌ध में उलझे रहते हैं । हालांकि युद्‌ध के कारण अलग-अलग होते हैं मगर इसका परिणाम एक-सा होता है । आबादी उजड़ती है, लोग गाजर-मूली की तरह काट डाले जाते हैं, सैनिकों के परिवार रोते-बिलखते हैं, विधवाएँ असहाय जीवन जीने को मजबूर हो जाती हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं, युद्‌ध भूमि श्मशान भूमि के रूप में तब्दील हो जाती है, आर्थिक क्षति की भरपाई होने में दशक लग जाते हैं ।

दुनिया अभी हिरोशिमा और नागासाकी पर हुई बमवर्षा भूली नहीं है । हाल ही में जिस तरह आतंकवादियों ने एक छद्‌म युद्‌ध के रूप में अमेरिका पर धावा बोल दिया, उनके गगनचुंबी इमारतों को जो कि आधुनिक युग के विकास के प्रतीक थे, देखते ही देखते नष्ट कर दिया, क्या दुनिया 11 सिंतबर सन् 2001 के इस वाकए को भूल पाएगी । प्रत्युत्तर में अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्‌ध एक विश्वव्यापी संघर्ष की घोषणा की तो ऐसा लगा कि तृतीय विश्व युद्‌ध की भूमिका बन रही है ।

लेकिन दुनिया ने समझदारी दिखाई और चाहे दिखावे के रूप में ही सही, आतंकवाद से लड़ने का संकल्प पूरी दुनिया में व्यक्त किया गया । आतंकवाद का मुख्य अड्‌डा बने राष्ट्र अफगानिस्तान पर अमरीकी हमले के सहायतार्थ दुनिया के अन्य राष्ट्र भी आगे आए ।

भारत, पाकिस्तान, फ्रांस, जर्मनी, रूस, ब्रिटेन, चीन सहित सभी प्रमुख राष्ट्रों का समर्थन अमेरिका को मिला हुआ था, अत: यह युद्‌ध एक तरह से धर्मयुद्‌ध बन गया । अन्याय और आतंक के प्रतीक बने तालिबान हारे और अफगानिस्तान में एक लोकप्रिय सरकार की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ ।

बाद में जब अमेरिका तथा उनके कुछ मित्र राष्ट्रों नें संयुक्त राष्ट्र संघ की पूरी तरह अवहेलना करते हुए इराक पर आक्रमण किया तो इसे अन्य राष्ट्रों ने युक्तिसंगत न माना । मुस्लिम राष्ट्रों ने भी इस हमले की आलोचना की । नतीजा अमेरिका के लिए भी सुखद न निकला क्योंकि आतंकवादियों को इस बहाने एकजुट होने का एक अवसर मिल गया । अफगानिस्तान और ईराक सहित दुनिया के विभिन्न मुल्कों में आतंकवाद फिर से सिर उठा रहा है ।

आतंकवादी इतने बलिष्ठ और साधन-संपन्न हैं कि किसी भी राष्ट्र का जीना हराम कर सकते हैं । अलकायदा जैसे आतंकी संगठन खतरनाक रासायनिक एवं जैविक हथियारों से लैस होने की पुरजोर चेष्टा में हैं ताकि ये अपने दम पर दुनिया में तबाही मचा सकें, खासकर विरोधी विचारधारा के राष्ट्रों को खुलेआम चुनौती दे सकें । संभव है तृतीय विश्व युद्‌ध आतंकवाद के विरुद्‌ध संघर्ष के रूप में सामने आए ।

शीत युद्‌ध के समय जबकि सोवियत संघ का बिखराव नहीं हुआ था विश्व पर तृतीय विश्व युद्‌ध का खतरा हर समय मँडराता रहता था । अमेरिका और सोवियत संघ के परमाणु हथियारों से लैस प्रक्षेपास्त्र एक दूसरे की ओर रुख किए तने रहते थे । थोड़ी सी गलतफहमी, एक गलत सूचना तीसरे विश्व का आरंभ करने के लिए पर्याप्त थी ।

मगर आंतरिक रूप से आर्थिक जर्जरता का शिकार सोवियत संघ बिखर गया और अमेरिका एकमात्र विश्व शक्ति के रूप में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफल रहा । अमेरिका और रूस वर्तमान में आपसी मित्रतापूर्ण साझेदारी से कार्य कर रहे हैं अत: किसी बड़ी गुटबंदी का खतरा तत्काल दिखाई नहीं दे रहा है । लेकिन गुटबंदी में अधिक देर नहीं लगती, और कोई भी ऐसा गुट जो परमाणु हथियारों से लैस हो, विश्व के लिए हर समय एक खतरे की घंटी है ।

तृतीय विश्व युद्‌ध के बारे में प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टाइन से जब एक बार पूछा गया था तो उनका गंभीर उत्तर था, ”तृतीय विश्व युद्‌ध के बारे में मैं भविष्यवाणी नहीं कर सकता मगर चतुर्थ विश्व युद्‌ध के संबंध में मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि वह युद्‌ध पत्थर के औजारों से लड़ा जाएगा ।” इस कथन के निहितार्थ बड़े स्पष्ट और आज भी प्रासंगिक हैं ।

तीसरी विश्वव्यापी लड़ाई पृथ्वी को जनशून्य और निर्जन स्थान बना सकती है । आधुनिक सभ्यता एवं संस्कृति पूर्णरूपेण नष्ट हो सकती है, सभी जीव-जंतुओं एवं वनस्पति जगत् का नाश हो सकता है । अतिराष्ट्रीयता का आवेग, राष्ट्राध्यक्षों को जब किसी भी हद तक जाने के लिए विवश कर देगा, तब महाविनाश होते देर न लगेगी।

इतिहास साक्षी है कि तानाशाहों की जिद के कारण कई प्राचीन साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो चुके हैं । हिटलर फिर से जन्म ले सकता है, किसी बिन लादेन के रूप में । एक रावण को मार देने से रावणत्व समाप्त नहीं हो सकता है, अत: सभ्य राष्ट्रों को अधिक एहजुटता दिखनी होगी ताकि विश्व के लोग भयमुक्त होकर जी सकें ।

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