प्राकृतिक आपदा पर निबंध Essay on Natural Disasters in Hindi

प्राकृतिक आपदा पर निबंध Essay on Natural Disasters in Hindi

इस अनुच्छेद में हमने प्राकृतिक आपदा पर निबंध (Essay on Natural Disasters in Hindi) हिन्दी में लिखा है। इसमें हमने आपदा के कारण, प्रकार, प्रभाव और प्रबंधन के विषय में पूरी जानकारी दी है। इस निबंध में हमने सभी प्रकार के आपदाओं के विषय में 3000 शब्दों में पूरी जानकारी दी है।

Table of Content

प्राकृतिक आपदा क्या है? What is Natural Disaster in Hindi?

जंगलो में आग, बाढ़, हिमस्खलन, भूस्खलन, भूकम्प, ज्वालामुखी, सुनामी, चक्रवाती तूफ़ान, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदायें बार-बार मनुष्य को चेतावनी देती है। वर्तमान में हम प्राकृतिक संसाधनो का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है।

ये मनुष्य के मनमानी का ही नतीजा है। इन आपदाओं को ‘ईश्वर का प्रकोप या गुस्सा ‘ भी कहा जाता है। आज मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिए वनों, जंगलो, मैदानों, पहाड़ो, खनिज पदार्थो का अंधाधुंध दोहन कर रहा है। उसी के परिणाम स्वरुप प्राकृतिक आपदायें दिन ब दिन बढ़ने लगी है।

अगर हम भारत और आस पास के कुछ बड़े प्राकृतिक आपदाओं की बात ही करें तो –

इस तरह की आपदायें कुछ समय के लिए आती है पर बड़ी मात्रा में नुकसान करती है। सभी मकानों, परिसरों, शहरो को नष्ट कर देती है और बड़ी मात्रा में जान-माल का नुकसान होता है। हर कोई इनके सामने बौना साबित होता है। निचे हमने इन सभी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में विस्तार में बताया है।

Natural Disaster Management Complete in Hindi प्राकृतिक आपदा पर निबंध, कारण, प्रभाव, प्रबंधन

प्राकृतिक आपदाओं का पर्यावरण पर प्रभाव Effect of Natural Disaster on Environment in Hindi

रेल, सड़क, हवाईमार्ग बाधित हो जाता है। वन्य जीव नष्ट हो जाते है, वातावरण प्रदूषित हो जाता है। वन नष्ट हो जाते है, परिस्तिथिकी तंत्र को नुकसान पहुचता है। जिस शहर, देश में भूकंप, बाढ़, सुनामी, तूफ़ान, भूस्खलन जैसी आपदा आती है वहां पर सब कुछ नष्ट हो जाता है।

करोड़ो रुपये फिर से खर्च करने पड़ते है। बाढ़, मूसलाधार बारिश, ओलावृष्टि जैसी आपदा सभी फसलों को नष्ट कर देती है जिससे देश में अनाज की कमी हो जाती है। लोग भुखमरी का शिकार हो जाते हैं। सूखा, महामारी जैसी प्राकृतिक आपदा आने से पूरे प्रदेश में बीमारी फ़ैल जाती है जिससे हजारो लोग मौत का शिकार बन जाते हैं।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार और उनका आपदा प्रबंधन Types of Natural Disasters in Hindi with Management

1. भूकंप किसे कहते हैं what is earthquake in hindi (पढ़ें: भूकंप की पूरी जानकारी ).

पृथ्वी के अंदर की प्लेटो में हलचल और टकराने की वजह से भूकंप आते है। 26 जनवरी 2001 में गुजरात में विनाशकारी भूकंप आया था। इसमें 20000 से अधिक लोगो की जान चली गयी थी। अप्रैल 2015 में नेपाल में विनाशकारी भूकंप आया था जिसमे 8000 से अधिक लोग मारे गये। 2000 से अधिक लोग घायल हुए।

भूकंप प्रबंधन Earthquake management in Hindi

2. बिजली गिरना क्या है what is lightening in hindi.

बिजली बारिश के मौसम में आसमान से जमीन पर गिरती है। हर साल विश्व में 24000 लोग आसमानी बिजली गिरने से मौत के शिकार हो जाते है। आसमान में विपरीत दिशा में जाते हुए बादल जब आपस में टकराते है तो घर्षण पैदा होता है।

इससे ही बिजली पैदा होती है जो जमीन पर गिरती है। चूँकि आसमान में किसी तरह का कोई कंडक्टर नही होता है इसलिए बिजली कंडक्टर की तलाश करते करते जमीन पर पहुच जाती है। बारिश के मौसम में बिजली के खम्भों के पास नही खड़े होना चाहिये। मूसलाधार बारिश होने पर बिजली गिरना आम बात है। हर साल सैकड़ो लोग बिजली गिरने से मर जाते है।

बिजली गिरने पर प्रबंधन Lightening Management in Hindi

3. सुनामी किसे कहते हैं what is tsunami in hindi (पढ़ें: सुनामी की पूरी जानकारी ).

सुनामी की परिभाषा है “बन्दरगाह की तरंगे” समुद्र तल में हलचल, भूकंप, दरार, विस्थापन, प्लेट्स हिलने के कारण सुनामी की बेहद खतरनाक तरंगे उत्पन्न होती है। इस लहरों की गति 400 किमी/ घंटा तक हो सकती है। लहरों की उंचाई 15 मीटर से भी अधिक हो सकती है। सुनामी के कारण भारी धन-जन हानि होती है।

आसपास के क्षेत्रो, समुद्रतट, बंदरगाह, मानव बस्तियों को ये नष्ट कर देती है। 26 दिसम्बर 2004 को हिन्द महासागर में सुनामी आने से 11 देशो में 2.8 लाख लोग मारे गये। 10 लाख से अधिक लोग बेघर हो गये। करोड़ो रुपये का नुकसान हुआ। इस सुनामी में भारत का दक्षिणी छोर “इंदिरा पॉइंट” नष्ट हो गया।

सुनामी पर प्रबंधन Tsunami Disaster Management in Hindi

4. बाढ़ किसे कहते है what is flood in hindi (पढ़ें: बाढ़ की पूरी जानकारी ).

किसी स्थान पर जब अचानक से ढेर सारी बारिश हो जाती है तो पानी जगह जगह भर जाता है। ऐसी स्तिथि में सड़के, रास्ते, खेत, नदी, नाले सभी भर जाते है। जीवन अवरुद्ध हो जाता है। इसी स्तिथि को बाढ़ कहते है। बारिश का यह पानी बहता रहता है।

बाढ़ आपदा प्रबंधन Flood Disaster Management in Hindi

5. चक्रवाती तूफान क्या है what is cyclone in hindi (पढ़ें: चक्रवात ).

हमारे देश में चक्रवात प्रायः बंगाल की खाड़ी में आते हैं। ये समुद्र की सतह पर निम्न वायु दाब के कारण उत्पन्न होते है। तेज हवायें बारिश के साथ गोलाकार रूप में दौड़ती है जो समुद्रतट पर जाकर भयंकर विनाश करती है।

यह रफ्तार के अनुसार श्रेणी 1 से लेकर श्रेणी 5 तक होते है। इनकी गति 280 किमी/ घंटा से अधिक हो सकती है। देश में 1839 में कोरिंगा चक्रवात आया था जिसमे 20000 से अधिक लोगो की मौत हो गयी। 1999 में ओड़िसा में 05B नाम का चक्रवात आया था जिसमे 15000 से अधिक लोग मारे गये थे।

चक्रवाती तूफान प्रबंधन Cyclone Disaster Management in Hindi

6. अकाल या सूखा पड़ना क्या है what is drought in hindi.

सूखा के कारण उस स्थान पर किसी फसल की खेती नही हो पाती है। यह 3 प्रकार का होता है- मौसमीय सूखा, जलीय सूखा, कृषि सम्बन्धी सूखा। कई महीनों तक वर्षा नही होने से, भूजल का अत्यधिक दोहन, वनों की कटाई, जल चक्र का नष्ट होना, पहाड़ियों पर अत्यधिक खनन पेड़ो की अत्यधिक कटान ये सब कारण सूखा पड़ने के लिए उत्तरदाई है।

सूखे से निपटने के उपाय Drought solutions in Hindi

7. जंगल में आग लगना what is wildfire in hindi.

कई बार सूरज की गर्म किरणों से सूखी पत्तियों में आग लग जाती है। उतराखंड राज्य में चीड़ के जंगलो में अक्सर आग लगती रहती है।

जंगल में आग लगने पर प्रबंधन Management in Wildfire in Hindi

8. हिमस्खलन किसे कहते हैं what is avalanche in hindi.

इसमें दबकर हर साल हजारो लोगो की जान चली जाती है। यह सड़को, पुलों, राजमार्गो को तबाह कर देता है। पहाड़ो को काटकर सड़के बनाना, मानवीय कार्य, लगातार बारिश, भूकंप, जमीन में कम्पन, अधिक बर्फबारी, डेल्टा में अधिक अवसाद का जमा होना- ये सभी कारणों की वजह से हिमस्खलन होता है।

हिमस्कलन पर आपदा प्रबंधन Disaster Management in Avalanche in Hindi

9. भूस्खलन किसे कहते हैं what is landslide in hindi.

बड़े भूस्खलन में पूरी की पूरी पहाड़ी ही नीचे गिर जाती है। इससे जान-मान, धन-जन की हानि होती है। यह भारी बारिश, भूकंप, धरातलीय हलचल, मानवीय कार्यों जैसे पहाड़ो पर पेड़ो की कटाई, चट्टानों को काटकर सड़क, घर बनाने, पानी के पाइपों में रिसाव से होता है।

भूस्खलन होने पर प्रबंधन Disaster Management for Landslide in Hindi

10. ज्वालामुखी फटना क्या है what is volcano eruption in hindi.

ज्वालामुखी में पृथ्वी के भीतर से गर्म लावा, राख, गैस का तीव्र विस्फोट होता है। यह प्रकिया धीरे भी हो सकती है और तीव्र भी। यह प्राकृतिक आपदा 3 प्रकार का होता है- सक्रीय ज्वालामुखी, प्रसुप्त ज्वालामुखी, मृत ज्वालामुखी।

इसी वर्ष 2018 में ग्वाटेमाला में ज्वालामुखी विस्फोट होने से 33 लोगो की मौत हो गयी, 20 लोग घायल हुए और 17 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। ज्वालामुखी का धुआं बहुत ही हानिकारक होता है। विस्फोट होने पर यह 100 किमी से अधिक के दायरे में आकाश में फ़ैल जाता है जिसके कारण हवाई जहाजो की उड़ाने रद्द करनी पड़ती है।

ज्वालामुखी फटने पर आपदा प्रबंधन Disaster management in Volcano eruption in Hindi

11. महामारी किसे कहते है what is epidemic in hindi.

किसी क्षेत्र विशेष में जब कोई बीमारी बड़े पैमाने पर फ़ैल जाती है तो उसे महामारी कहते हैं। यह संक्रमण के कारण हवा, छूने, पानी के माध्यम से फैलती है। कई बार यह पूरे देश में फ़ैल जाती है। 2009 में पूरे विश्व में एच1एन1 इंफ्लूएंजा (स्वाइन फ्लू) की बिमारी फ़ैल गयी। जल्द ही यह भारत में भी फ़ैल गयी थी। भारत में 2700 लोग स्वाइन फ्लू से मारे गये और 50 हजार से अधिक लोग बीमार हो गये।

वर्ष 2019 में चीन से शुरू हुए नोवेल कोरोना वायरस (nCOVID) की वज़ह से दुनिया भर में लाखों लोग इससे इन्फेक्टेड हो गए। जिसके कारण हजारों लोगों की जान इसमें चहली गयी।

महामारी फैलने पर आपदा प्रबंधन Epidemic Management tips in Hindi

12. ओलावृष्टि क्या है what is hail in hindi.

आसमान में जब बादलो में मौजूद पानी की बुँदे अत्यधिक ठंडी होकर बर्फ के रूप में जमकर जमीन पर गिरती है तो उसे ओलावृष्टि या वर्षण प्राकृतिक आपदा कहते है। इसे आम भाषा में ओला गिरना भी कहा जाता है। यह अक्सर गर्मियों के मौसम में दोपहर के बाद गिरते है। ओलावृष्टि अक्सर तब होती है जब बादलो में गडगडाहट और बिजली बहुत अधिक चमकती है।

ओलावृष्टि से सबसे अधिक नुकसान किसानो को होता है। अधिक ओलावृष्टि होने से फसलें बर्फ के गोलों से ढँक जाती है और नष्ट हो जाती है। यदि बर्फ के गोले बड़े हो तो मकान, खिड़की, कारो के शीशे तोड़ देते हैं। कुछ महीनो पहले हिमाचल प्रदेश में ओलावृष्टि होने से 2.5 करोड़ का नुकसान हुआ। सेब, नाशपाती की फसलें बर्बाद हो गयी थी।

13. बादल फटना किसे कहते हैं? What is Cloud Burst in Hindi?

निष्कर्ष conclusion.

natural calamity essay in hindi

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प्राकृतिक आपदाओं पर निबंध 10 lines (Natural Disasters Essay in Hindi) 100, 200, 300, 500, शब्दों मे

natural calamity essay in hindi

Natural Disasters Essay in Hindi – प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्य के वश में नहीं हैं। कई अन्य देशों की तरह, भारत भी अपनी भौगोलिक स्थिति और पर्यावरण के कारण कई प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त है। पिछले कुछ दशकों में, भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान में वृद्धि हुई है। एक प्राकृतिक आपदा को आपदा कहा जाता है जब यह बड़े पैमाने पर लोगों या संपत्ति को प्रभावित करती है। यहाँ ‘प्राकृतिक आपदा’ विषय पर कुछ नमूना निबंध दिए गए हैं।

प्राकृतिक आपदाओं पर 10 लाइनें (10 Lines on Natural Disasters in Hindi)

  • 1. प्राकृतिक आपदा पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न एक बड़ी घटना है।
  • 2. इससे जान-माल का भारी नुकसान होता है।
  • 3. ऐसी आपदाओं में जितने लोग अपनी जान गंवाते हैं, उससे कहीं अधिक लोग बेघर और अनाथ होने के बाद जीवन का सामना करते हैं।
  • 4. आज पृथ्वी पर अनेक प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रतिवर्ष जान-माल का भारी नुकसान होता है।
  • 5. ये आपदाएं अचानक आती हैं और कुछ ही पलों में सब कुछ तबाह कर देती हैं। जब तक मनुष्य कुछ समझ पाता इस आपदा ने सब कुछ तहस-नहस कर डाला।
  • 6. इन आपदाओं से बचने के लिए न तो उसके पास कोई व्यावहारिक उपाय है और न ही कोई युक्ति।
  • 7. प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए वैज्ञानिकों को उन्नत वार्मिंग सिस्टम का आविष्कार करना चाहिए।
  • 8. निर्माण करते समय, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उक्त निर्माण भूकंप का सामना करने के लिए पर्याप्त मजबूत हो।
  • 9. ऐसी किसी भी आपदा के दौरान लोगों को निकासी के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
  • 10. इस प्रकार कुछ सावधानियां बरत कर हम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने और उसकी भरपाई करने का प्रयास कर सकते हैं।

प्राकृतिक आपदाओं पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay On Natural Disasters in Hindi)

मनुष्य जब तक पृथ्वी पर रहा है तब तक प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव के अधीन रहा है। आपदाएं, दुर्भाग्य से, हर समय हो रही हैं। अधिकांश प्राकृतिक आपदाएँ जो हम देखते हैं वे प्राकृतिक शक्तियों के कारण होती हैं। इसलिए, उन्हें होने से रोकना लगभग असंभव है। बाढ़, सूखा, भूस्खलन, भूकंप और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएँ पूरे विश्व में अक्सर आती रहती हैं। अक्सर, प्राकृतिक आपदाएं व्यापक प्रभाव छोड़ती हैं और क्षति को नियंत्रित करने में वर्षों लग सकते हैं। हालांकि, अगर उचित चेतावनी प्रणाली या नीतियों का उपयोग किया जाए तो इन प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नकारात्मक प्रभावों और नुकसान को काफी कम किया जा सकता है।

  • Essay On Cleanliness
  • Essay On Sports
  • Essay On Yoga
  • I Love My Family Essay

प्राकृतिक आपदाओं पर 200 शब्दों का निबंध (200 Words Essay On Natural Disasters in Hindi)

Natural Disasters Essay in Hindi – प्राकृतिक आपदाएं ज्यादातर प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली घटनाएं हैं जो मानव जीवन और संपत्ति को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं। हर साल दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं के कारण कई लोगों की जान चली जाती है। बहुत से लोग बिना घर या संपत्ति के रह गए हैं। वे अंतहीन रूप से पीड़ित हैं। कुछ प्राकृतिक आपदाएँ बाढ़, भूस्खलन, चक्रवात, तूफान, सूखा, जंगल की आग हैं। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब घनी आबादी वाले स्थान पर प्राकृतिक आपदा आ जाती है। दुर्भाग्य से, अधिकांश प्राकृतिक आपदाएँ होने से रोकी नहीं जा सकती हैं। हम केवल इन घटनाओं का पूर्वानुमान लगा सकते हैं और नुकसान को कम करने के लिए आवश्यक उपाय कर सकते हैं।

भारत अपनी अनूठी भूगर्भीय स्थिति के कारण प्राकृतिक आपदाओं के लिए सबसे कमजोर देशों में से एक है। भारत में हर साल विभिन्न तीव्रता के लगभग पांच चक्रवात आते हैं। हिमालय के पास भारत के कई उत्तरी भागों में गर्मियों में सूखा और हल्के से लेकर तेज़ भूकंप अक्सर अनुभव किए जाते हैं। भारत में पतझड़ और गर्मी के मौसम में जंगल में आग लगने की घटनाएं होती हैं। हमारा देश प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों के कारण नाटकीय जलवायु परिवर्तन और बड़े पैमाने पर ग्लोबल वार्मिंग भी देख रहा है। इस वजह से प्राकृतिक आपदाएं पहले की तुलना में बार-बार आ रही हैं।

प्राकृतिक आपदाओं से निपटना (dealing with natural disasters)

अधिकांश प्राकृतिक आपदाएँ हमारे नियंत्रण से बाहर होती हैं और अनियमित रूप से घटित हो सकती हैं। हालांकि, हम बस इतना कर सकते हैं कि जैसे ही आपदा होने वाली है, हम भविष्यवाणी करने में सक्षम होते ही आवश्यक सावधानी बरतते हैं। ग्लोबल वार्मिंग इन सभी चीजों का एक अहम कारण है। इसलिए, हमें अपने प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण करना चाहिए। आने वाली आपदाओं के बारे में लोगों को चेतावनी देना आवश्यक है। यदि आवश्यक हो तो एक अनिवार्य निकासी की जानी चाहिए। आपदा के बाद लोगों को आपदा से हुए नुकसान और नुकसान की भरपाई के लिए आर्थिक मदद मुहैया कराई जाए।

प्राकृतिक आपदाओं पर 300 शब्दों का निबंध (300 Words Essay On Natural Disasters in Hindi)

Natural Disasters Essay in Hindi – एक प्राकृतिक आपदा एक अप्रत्याशित घटना को संदर्भित करती है जो पृथ्वी पर जीवन और संपत्ति को बहुत नुकसान पहुंचाती है। ये पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक हैं और पृथ्वी पर मौजूद जीवों के जीवन में भी तबाही मचा सकते हैं। विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ हैं जो वनस्पतियों और जीवों को अपने अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करती हैं। उनमें से कुछ में सुनामी, ज्वालामुखी, बाढ़, भूकंप और बहुत कुछ शामिल हैं। आइए विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करें:

भूकंप प्लेटों के विवर्तनिक संचलन के कारण पृथ्वी की सतह के हिलने को संदर्भित करता है। भूकंप कभी भी आ सकता है और मानव जाति को भारी तबाही मचा सकता है। कुछ भूकंपों की तीव्रता कम होती है और वे किसी का ध्यान नहीं जाते जबकि ऐसे भूकंप होते हैं जो इतने शक्तिशाली होते हैं और प्रतिकूल परिणाम देते हैं। भूकंप भी भूस्खलन और सुनामी का कारण बन सकते हैं और इसलिए इसे काफी खतरनाक और विनाशकारी माना जाता है।

भूस्खलन भी पृथ्वी की गति के कारण होता है। इसमें विशाल चट्टानें और पहाड़ एक ढलान से नीचे की ओर खिसकते हैं और प्राकृतिक और मानव निर्मित संपत्ति को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। हिमस्खलन भूस्खलन के समान हैं, हालांकि, हिमस्खलन मूल रूप से ढलानों से बर्फ का टूटना है जिसके परिणामस्वरूप इसके रास्ते में आने वाली हर चीज को अत्यधिक नुकसान होता है। बर्फ से ढके पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों को हमेशा हिमस्खलन का डर बना रहता है।

सुनामी भी बहुत खतरनाक और जानलेवा प्राकृतिक आपदाएँ हैं जो समुद्रों और महासागरों में होती हैं। ठीक है, यह समुद्र के नीचे पृथ्वी की गति के कारण होता है जिसके परिणामस्वरूप ऊंची लहरें उठती हैं जो बाढ़ का कारण बनती हैं और मानव जीवन को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं।

कई अन्य प्राकृतिक आपदाएँ हैं जो घातक साबित हुई हैं इसलिए यह समय की आवश्यकता है कि लोग और सरकार आपदा प्रबंधन दिशानिर्देशों को समझें जो पृथ्वी पर आपदाओं के प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं। आपात स्थिति के मामले में लोगों को एहतियाती कदम उठाने चाहिए जो उन्हें इससे बाहर निकलने में मदद कर सकते हैं। सरकार और एनडीएमए को जवाबदेह कार्रवाई करनी चाहिए ताकि पृथ्वी पर विभिन्न जीवन को बचाया जा सके।

प्राकृतिक आपदाओं पर 500 शब्दों का निबंध (500 Words Essay On Natural Disasters in Hindi)

प्राकृतिक आपदाएँ ऐसी घटनाएँ हैं जो या तो जैविक गतिविधि या मानव निर्मित गतिविधि के कारण होती हैं। इसके होने के बाद लंबे समय तक मानव जीवन और संपत्ति प्रभावित होती है। दुनिया भर में हर दिन मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण है। भारत अपनी संवेदनशील भौगोलिक स्थिति के कारण प्राकृतिक आपदाओं से काफी पीड़ित है। इसके कारण हमारे देश को अभी भी एक उचित आपदा प्रबंधन इकाई की आवश्यकता है।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार

भारत में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ बहुत बार घटित होती हैं और लोगों के जीवन पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ता है।

भूकंप | भूकंप एक प्राकृतिक घटना है जब पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटें अचानक खिसक जाती हैं और जमीन हिलने लगती है। इस झटकों से इमारतों और अन्य संरचनाओं को नुकसान हो सकता है, साथ ही जीवन की हानि भी हो सकती है। भूकंप किसी भी समय आ सकते हैं और बिना किसी चेतावनी के आ सकते हैं, जिससे वे एक भयावह और अप्रत्याशित घटना बन जाती हैं।

चक्रवात | एक चक्रवात एक प्रकार का तूफान है जो एक निम्न दबाव केंद्र और तेज हवाओं की विशेषता है जो अंदर और ऊपर की ओर सर्पिल होती है। चक्रवात भी टाइफून या हरिकेन होते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस क्षेत्र में आते हैं। चक्रवात गर्म समुद्र के पानी पर बनते हैं और आम तौर पर भूमि की ओर बढ़ते हैं, जहां वे व्यापक क्षति और विनाश का कारण बन सकते हैं। वे अक्सर भारी वर्षा के साथ होते हैं और बवंडर पैदा कर सकते हैं। एक चक्रवात की विनाशकारी शक्ति इसकी तेज हवाओं से आती है, जो 150 मील प्रति घंटे से अधिक की गति तक पहुंच सकती है। ये हवाएँ पेड़ों को उखाड़ सकती हैं, इमारतों को नुकसान पहुँचा सकती हैं, और तूफानी लहरें पैदा कर सकती हैं, बड़ी लहरें जो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ ला सकती हैं।

जंगल की आग | एक जंगल की आग एक बड़ी, अनियंत्रित आग है जो एक प्राकृतिक आवास में होती है, जैसे जंगल, घास के मैदान या प्रेरी। वनाग्नि विभिन्न कारकों के कारण हो सकती है, जिसमें बिजली, मानव गतिविधि और चरम मौसम की स्थिति शामिल हैं। जब जंगल में आग लगती है, तो यह अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को जलाकर तेजी से फैल सकती है। जंगल की आग के पर्यावरण और लोगों पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, वे घरों और अन्य इमारतों और सड़कों और पुलों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को नष्ट कर सकते हैं। वे क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए वायु प्रदूषण और श्वसन संबंधी समस्याएं भी पैदा कर सकते हैं।

मानवीय गतिविधियाँ और प्राकृतिक आपदाएँ

मानवीय गतिविधियाँ भूकंप, तूफान और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं की घटना और गंभीरता में योगदान कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, वनों की कटाई, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन जैसी गतिविधियाँ इन घटनाओं की संभावना और प्रभाव को बढ़ा सकती हैं।

वनों की कटाई, जो एक क्षेत्र से वनस्पति को हटाती है, प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को बढ़ा सकती है। पेड़ और अन्य वनस्पतियां मिट्टी की ऊपरी परत को अपने स्थान पर बनाए रखती हैं, जो कटाव और भूस्खलन को रोकती हैं। जब इन पौधों को हटा दिया जाता है, तो जमीन भारी वर्षा या अन्य प्राकृतिक शक्तियों के बह जाने के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।

शहरीकरण, या शहरों और कस्बों का विकास भी प्राकृतिक आपदाओं में योगदान कर सकता है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक लोग शहरी क्षेत्रों में जाते हैं, भूकंप, जंगल की आग और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, इमारतों और अन्य संरचनाओं का निर्माण प्राकृतिक परिदृश्य को बदल सकता है, जिससे यह भूकंप और अन्य घटनाओं से होने वाली क्षति के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।

जलवायु परिवर्तन, पृथ्वी की सतह और वातावरण का लंबे समय तक गर्म होना, प्राकृतिक आपदाओं की संभावना और गंभीरता को भी बढ़ा सकता है। उच्च तापमान अधिक बार तीव्र गर्मी की लहरें, सूखा और जंगल की आग का कारण बन सकता है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से और भी गंभीर बाढ़ आ सकती है, खासकर तटीय क्षेत्रों में।

प्राकृतिक आपदा निबंध | Natural Disaster Hindi Essay

by Editor January 18, 2019, 2:32 PM 12 Comments

प्राकृतिक आपदा निबंध | Natural Disaster Hindi Essay 

प्रकृति का विनाशक रूप हमें  प्राकृतिक आपदा के समय देखने को मिलता है। प्रकृति किसी ना किसी रूप में धरती पर विनाश भी लेकर आती है जो भारी मात्रा में जीवसृष्टि को प्रभावित करता है। आज हम ऐसी ही प्राकृतिक आपदाओं के बारे में हिन्दी निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं। 

प्राकृतिक आपदा पर संक्षिप्त निबंध (150 शब्द)

प्राकृतिक आपदाएं अर्थात प्रकृति के द्वारा सर्जित विपत्तियाँ जो मानव जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करतीं हैं। इन आपदाओं में मुख्य रूप से बाढ़, भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी फटना, अकाल, सूखा, भूस्खलन, हिमस्खलन, तूफान, आँधी और चक्रवात आदि शामिल हैं।

प्राकृतिक आपदाओं पर मानव का कोई अंकुश नहीं है और ना ही ऐसी आपदाओं के आने का कोई पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है जिसके कारण इन आपदाओं के कारण भारी मात्रा में लोगों की मृत्यु होती है, उनके माल-सामान को नुकसान पहुंचता है। ऐसी आपदाओं के कारण धरती पर निवास कर रही अन्य जीवसृष्टि का भी नाश होता है।

कुछ प्राकृतिक आपदाएं मानव सर्जित हैं और कुछ आपदाएं प्रकृति के नियम के अनुसार हैं। ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए हर देश में आपदा प्रबंधन गठित किया गया है जो प्रभावित लोगों के जीवन को बहाल करने, उन्हें बचाने का कार्य करता है। सावधानी और समझदारी ही हमें प्राकृतिक आपदाओं से बचा सकती है।

प्राकृतिक आपदा पर निबंध (300 शब्द)

प्रकृति से खिलवाड़ का ही नतीजा है की आज धरती पर पूरी जीव सृष्टि को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण मानव जीवन तो प्रभावित होता ही है साथ ही अन्य जीव सृष्टि को भी इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी का फटना,सुनामी, बादल फटना, चक्रवात, तूफान, हिमस्खलन,भूस्खलन, सूखा, महामारी आदि ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ हैं जिनसे सदियों से धरती की जीवसृष्टि त्रस्त है। आए दिन  ऐसी आपदाएँ हमारे जीवन को प्रभावित करतीं रहतीं हैं।

प्राकृतिक आपदाओं के कारण कुछ मानव सर्जित हैं और कुछ प्रकृति के नियमों के अनुसार हैं। इन सभी आपदाओं को रोका नहीं जा सकता क्यूंकी प्रकृति सृजन भी करती है और विनाश भी। प्राकृतिक आपदाओं से हम केवल अपने जान-माल का संरक्षण कर सकते हैं और उसके प्रभाव से स्वयं को बचा सकते हैं।

दुनिया भर के देशों ने प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का गठन अपने-अपने देशों में किया है जो ऐसी आपदाओं के समय लोगों को रक्षण प्रदान करता है। भारत देश में भी प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का गठन किया है जिसका उद्देश्य इन आपदाओं के समय लोगों के जान-माल का रक्षण करना है।

प्राकृतिक आपदाओं के कारण कुछ मानव सर्जित भी हैं लगातार जंगलों की कटाई, बढ़ता प्रदूषण, खनन, नदियों के बहाव में हस्तक्षेप आदि से हमने प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाया है जिसके कारण ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ीं हैं।

कुछ प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाकर बचा जा सकता हैं जैसे की तूफान, चक्रवात, तेज वर्षा लेकिन कुछ आपदाएँ ऐसी हैं जिनके बारे में पूर्वानुमान नहीं लगा सकते जैसे की भूकंप, सुनामी, बादल फटना, हिमस्खलन, सूखा,महामारी आदि।

प्राकृतिक आपदाएँ प्रकृति का एक हिस्सा हैं अतः मानव का इस पर कोई बस नहीं है, यदि हम प्रकृति के कार्यों में अपना हस्तक्षेप बंद करें तो काफी हद तक हम इन आपदाओं को रोक सकते हैं, साथ ही साथ ऐसी आपदाओं का पूर्वानुमान लगाकर हम अपने जान-माल को बचा सकते हैं।

प्राकृतिक आपदा पर विस्तृत निबंध (1300+ शब्द)

प्रकृति यदि सृजन करती है तो प्राकृतिक आपदाओं को लाकर विनाश भी करती है। प्राकृतिक आपदा उसे कहते हैं जब प्रकृति अपना रौद्र रूप लेकर धरती पर तबाही मचा देती है और मानव जीवन के साथ-साथ अन्य जीव सृष्टि को प्रभावित करती है। इन आपदाओं के कारण लोगों के जान-माल का बहुत नुकसान होता ही है साथ साथ प्राकृतिक आपदा से प्रभवित देश को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है।

प्राकृतिक आपदाएँ कुछ दशकों से बढ़ीं हैं जिनका मुख्य कारण मानव का प्रकृति से खिलवाड़ है। हमने जंगलों विनाश किया है, पहाड़ों को नष्ट किया है, खनन कर धरती को खोखला कर दिया है, प्रदूषण फैलाकर जमीन, जल, हवा को दूषित कर दिया है इन सभी कारणों की वजह से प्रकृति का संतुलन बिगड़ा है जिसका परिणाम प्राकृतिक आपदाओं के रूप में हमें भुगतना पड़ रहा है।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार और कारण

प्राकृतिक आपदा कोई एक नहीं बल्कि प्रकृति अलग-अलग रूप में विनाश करती है। धरती पर प्राकृतिक आपदाओं का आना सामान्य है क्यूंकी यह प्रकृति का एक हिस्सा है। कुछ मुख्य प्राकृतिक आपदाओं का सामना हमें आए दिन करना पड़ता है।

बाढ़ – जब अधिक वर्षा के कारण नदियों का जल स्तर बढ़ जाता है तब बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है। भारत में हर साल बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा का हमें सामना करना पड़ता है। बाढ़ का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है अतः इसके प्रभाव से लोगों की जान तो बचाई जा सकती है लेकिन फिर भी भारी मात्रा में बाढ़ के कारण लोगों को जान-माल दोनों का नुकसान उठाना पड़ता है।

बाढ़ के कारण हर साल हजारों लोग बेघर हो जाते हैं, उन्हें आर्थिक समस्याएँ झेलनी पड़तीं हैं। बाढ़ के कारण किसी भी देश को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। नदियों के बहाव को रोककर, उस पर बांध बनाकर और उसके बहाव को बदलकर कई बार हम मनुष्य ही बाढ़ के आने का कारण बनते हैं।

भूकंप – धरती के निचले भाग में जब कंपन्न उत्पन्न होता है तब धरती की सतह हिलने लगती है और होता है महा विनाश। जहां भी भूकंप आता है वहाँ भारी विनाश होता है। भूकंप प्राकृतिक आपदा का सबसे विनाशक रूप है। भूकंप की वजह से बड़े-बड़े मकान व इमारतें धराशायी हो जातीं हैं। हजारों लोगों की मृत्यु इस आपदा के कारण हो जाती है। जहां भी भूकंप का प्रभाव होता है वहाँ सिर्फ विनाश ही देखने को मिलता है।

भूकंप का पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता अतः इससे बचने के लिए पूर्व आयोजन नहीं कर सकते। परिणाम स्वरूप भारी जान-माल का नुकसान इस प्राकृतिक आपदा के कारण होता है।

सुनामी – समुद्र की तल में जब भूकंप आता है तब समुद्र मे तीव्र हल-चल उत्पन्न होती है जो एक भीषण सुनामी का रूप धारण कर लेती है। समुद्र में उत्पन्न सुनामी के कारण ऊंची-ऊंची लहरें उठतीं हैं और आस-पास के समुद्री इलाकों को तबाह कर देतीं हैं। दुनिया ऐसी विनाशकारी सुनामी की साक्षी रही है जिसमे भारी मात्रा में लोगों को जान माल का नुकसान उठाना पड़ा।

December 26, 2004 के दिन सुमात्रा-अंडमान में आई भयंकर सुनामी ने 2 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी। ऐसी ही अनेक विनाशक सुनामी का इतिहास भरा पड़ा है।

तूफान और चक्रवात – समुद्र में आने वाले तूफान और चक्रवात की वजह से दुनिया के कई शहरों में हर साल विनाशक बाढ़ आती है। इस प्रकार के तूफान और चक्रवात के कारण बिन मौसम भारी बरसात होती है जिसके कारण बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तेज हवाओं के कारण भारी मात्रा में सर्वनाश होता है। भारत में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में हर साल तूफान और चक्रवात आते हैं परिणाम स्वरूप भारी मात्रा में जान माल का नुकसान उठाना पड़ता है।

हिमस्खलन – हिमस्खलन अर्थात बर्फ का तूफान। बर्फीले प्रदेश में अक्सर हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ता है। बर्फीले तूफान में ऊंचे-ऊंचे हिम पहाड़ों से बर्फ नीचे की ओर गिरती है और एक बर्फ के तूफान का रूप धारण कर लेती है। भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में हर साल ठंड के मौसम में बर्फीले तूफान की घटनाएँ देखने को मिलतीं हैं।

भूस्खलन – ऊंची चट्टानों, पहाड़ों और भूभागों से अक्सर भूस्खलन की स्थिति का निर्माण होता है जिसमे इन ऊचाई वाले स्थानों से भरी मात्रा में मिट्टी और पत्थरों का नीचे की तरफ स्खलन होता है जिसकी वजह से नीचे रह रहे लोगों को जान और माल दोनों का नुकसान होता है। 2014 में भारत के महाराष्ट्र के मालिन गाँव में भूस्खलन की घटना घटित हुई थी जिसमे कुल 151 लोगों की मृत्यु हुई थी।

बादल फटना – जब बरसात के बादल अचानक से भारी मात्रा में बरसात कर देते हैं तो इसे बादलों का फटना कहते हैं। बादल फटने के कारण बिलकुल कम समय में तेज बारिस होती है जिसके कारण बाढ़ की स्थिति बन जाती है। भारत के उत्तराखंड में हर साल बादल फटने की घटनाएँ देखने को मिलतीं हैं। 2013 में केदारनाथ में बादल फटने के कारण कुल 6000 लोगों की मृत्यु हुई थी और भारी मात्रा में आर्थिक नुकसान हुआ था।

ज्वालामुखी फटना – विश्व के कई देश हैं जहां बड़ी-बड़ी ज्वालामुखी विनाश का कारण बनतीं हैं। इन ज्वालामुखियों से निकलने वाला गरम लावा आस-पास के इलाकों को तबाह कर देता है। ज्वालामुखी के फटने से कई तरह की जहरीली गैसें वातावरण में घुलतीं है और वातावरण को प्रभावित करतीं हैं।

सूखा और अकाल पड़ना – सूखा और अकाल तब पड़ता है जब बरसात के मौसम में भी बिलुकल बरसात ना हो। भारत के कई राज्य ऐसे हैं जो सूखे और अकाल से ग्रसित हैं, जहां कई सालों से बरसात नहीं हुई है। सूखे और अकाल के कारण लोगों को पीने का पानी नहीं मिलता, भुखमरी की स्थिति खड़ी हो जाती है, फसल का नाश होता है और हरी भरी भूमि भी बंजर हो जाती है। सूखे और अकाल के पीछे कहीं ना कहीं मानव जिम्मेदार है जिसने जंगलों को काटकर बरसात में अवरोध उत्पन्न किया है।

महामारी फैलना – महामारी अर्थात अनेक प्रकार की बीमारियाँ जो अधिक संख्या में एक साथ लोगों को प्रभावित करतीं हैं। ऐसी महामारी भी एक प्राकृतिक आपदा है। महामारी फैलने के कारण हजारों की संख्या में हर साल लोगों की मृत्यु हो जाती है। ऐसी कई बीमारियाँ हैं जो हवा की तरह फैलतीं हैं और एक साथ सैकड़ों लोगों की जान ले लेतीं हैं।

प्राकृतिक आपदा प्रबंधन

प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता अतः ऐसी आपदाओं से जान-माल का कम से कम नुकसान हो इसलिए प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का गठन किया गया है जिसका काम  ऐसी आपदाओं का सामना कर रहे लोगों की मदद करना है और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से कम से कम नुकसान हो ऐसा प्रयत्न व योजनाओं के बारे में रूप रेखा तैयार करना है।

आपदा प्रबंधन प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना, उनका जीवन फिर से बहाल करना, जरूरी चीज-वस्तुओं को लोगों तक पहुंचाना, फंसे हुये लोगों को बचाना आदि कठिन कार्य करता है।

प्राकृतिक आपदा से बचने के उपाय

  • नदियों के किनारे निवास नहीं करना चाहिए क्यूंकी बाढ़ सबसे पहले किनारे रह रहे लोगों को प्रभवित करती है, यदि बाढ़ आने की स्थिति हो तो ऐसी जगह से पलायन करना ही उचित है।
  • भूकंप का अनुमान नहीं लगा सकते, अतः मकानों का निर्माण भूकंप निरोधी होना चाहिए।
  • आपदा की स्थिति में एक आपातकालीन किट को तैयार करें जिसमें महत्वपूर्ण दस्तावेजों, महत्वपूर्ण फोन नंबरों की एक सूची, जरूरी दवाएं,पानी, एक टॉर्च, माचिस, कंबल और कपड़े आदि को रखें जिससे की आपको किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े।
  • यदि आप एक तटीय क्षेत्र में रहते हैं, तो अपने घर की खिड़कियों को कवर करने और बाहरी वस्तुओं को सुरक्षित करने के लिए योजना बनाएं। यदि कोई तूफान आ रहा है, तो सूचित रहने के लिए एक स्थानीय टीवी या रेडियो स्टेशन को सुनें और स्थान खाली करने के लिए तैयार रहें।
  • बाढ़ कहां हो रही है, इसकी जानकारी के लिए टीवी या रेडियो सुनें। अपने क्षेत्र में बाढ़ की चेतावनी के रूप में, आपको घर खाली करने की सलाह दी जा सकती है; इस मामले में, तुरंत ऐसा करें और तुरंत उच्च स्थान की तलाश करें।

12 Comments

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प्राकृतिक आपदाएं पर निबंध - Essay on Natural Disaster in Hindi

प्राकृतिक आपदाएं पर निबंध: पर्यावरण असंतुलन और धरती की आंतरिक हलचल जब अपने भयानक रूप में प्रकट होती है तब हम इसे प्राकृतिक आपदा कहते हैं। बाढ़, सूखा,

प्राकृतिक आपदाएं पर निबंध - Essay on Natural Disaster in Hindi

प्राकृतिक आपदाएं पर निबंध : पर्यावरण असंतुलन और धरती की आंतरिक हलचल जब अपने भयानक रूप में प्रकट होती है तब हम इसे प्राकृतिक आपदा कहते हैं। बाढ़, सूखा, भूकंप, ज्वालामुखी तथा तूफान आदि प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। जब प्राकृतिक आपदा आती है तब जान-माल की बहुत हानि होती है। यातायात, संचार सेवाएँ ठप्प हो जाती हैं, मकान गिर जाते हैं, मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षी एवं अन्य जीव-जंतु भी मारे जाते हैं।

प्राकृतिक आपदाएं पर निबंध - Essay on Natural Disaster in Hindi

जब अधिक वर्षा होती है तब बाढ़ आती है। जहाँ-जहाँ नदियों का पानी खतरे के निशान से ऊपर बहने लगता है वहाँ-वहाँ फसलें नष्ट हो जाती हैं। अनेक गाँव, नगर और बस्तियाँ डूब जाती हैं। बिजली, पानी और संचार की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। रेल की पटरियाँ उखड़ जाती हैं, रेलगाड़ियाँ रद्द हो जाती हैं। जहाँ-जहाँ बाढ़ का प्रकोप होता है वहाँ-वहाँ जन जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।

समुद्री तूफान भी एक बड़ा प्राकृतिक संकट है। इससे तटीय क्षेत्र अधिक प्रभावित होते हैं। जब ऊँची-ऊँची समुद्री लहरें आती हैं तब तट के इलाके जलमग्न हो जाते हैं। संचार और परिवहन व्यवस्था चौपट हो जाती है। समुद्री तूफान के पूर्व नाविकों और मछुआरों को समुद्र में न जाने की चेतावनी रेडियो, दूरदर्शन, सार्वजनिक घोणा अथवा अन्य जन संचार माध्यमों द्वारा दी जाती है।

धरती की आंतरिक हलचल के कारण भूकंप आता है। जिस जगह भूकंप का केंद्र होता है उस जगह भूकंप का दुष्ट प्रभाव अधिक दिखाई देता है। जब भूकंप आता है तब मकान या घरों से निकलकर खुली जगह में जाना चाहिए क्योंकि इमारतें, कच्चे घर, मकान आदि गिर जाते हैं और बड़ी संख्या में लोग हताहत होते हैं। जहाँ-जहाँ भूकंप अधिक आते हैं। वहाँ-वहाँ लकड़ी के या भूकंपरोधी मकान बनाए जाने चाहिए ताकि जान-माल की अधिक हानि न हो।

ज्वालामुखी में जिस समय धरती के भीतर का गरम लावा फूटकर बाहर आ जाता है उस समय गाँव के गाँव गर्म लावे में दब जाते हैं। ज्वालामुखी प्रभावित इलाके में लोग हर समय भय और आतंक में अपना जीवन बिताते हैं। यह संतो- की बात है कि ज्वालामुखी की दृष्टि से हमारा देश काफ़ी सुरक्षित है।

इन प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य अपनी सावधानी से काफ़ी हद तक बच सकता है। जंगलों की कटाई रोकने से बाढ़ के संकट को कम किया जा सकता है । भूकंप से बचाव के लिए भूकंपरोधी या लकड़ी के मकान बनाए जाने चाहिए। सुनामी आदि से बचाव के लिए तटों पर सघन वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। जहाँ-जहाँ प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं वहाँ-वहाँ सरकार, विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं एवं संगठनों को भी आपदा प्रबंधन के लिए सदा जागरूक रहना चाहिए।

जहाँ एक ओर प्रकृति मनुष्य की मित्र है वहीं दूसरी ओर अपने रौद्र रूप में शत्रु भी है । हमें चाहिए कि हम ऐसी आपदाओं के लिए सावधान रहें। जहाँ तक संभव हो हम हमेशा तत्पर एवं जागरूक रहें क्योंकि ये आपदाएँ अपने पीछे अनेक महामारियाँ छोड़े बिना नहीं जाती हैं । मनुष्य के विजेता होने के बावजूद प्रकृति हर बार उसे एक नई चुनौती देती है। प्रत्येक चुनौती का सामना करने में ही मनुष्य की पहचान छुपी है और सामना किए बिना आपदाओं से बचना संभव नहीं।

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Essay on Natural Disaster in Hindi – प्राकृतिक आपदा पर निबंध

June 14, 2018 by essaykiduniya

यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में प्राकृतिक आपदा पर निबंध मिलेगा। Here you will get Paragraph and Short Essay on Natural Disaster in Hindi Language for students of all Classes in 150, 250, 500 words.

Essay on Natural Disaster in Hindi – प्राकृतिक आपदा पर निबंध

Essay on Natural Disaster in Hindi

Short Essay on Natural Disaster in Hindi Language – प्राकृतिक आपदा पर निबंध ( 150 words )

एक ‘प्राकृतिक आपदा’ पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप एक प्रमुख घटना है। यह जीवन और संपत्ति का एक बड़ा नुकसान का कारण बनता है। यह सच है कि एक प्राकृतिक आपदा एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और हम इसे रोक नहीं सकते हैं लेकिन कुछ तैयारियां करके, हम जीवन और संपत्ति के नुकसान की परिमाण को कम कर सकते हैं। सबसे पहले हमें ग्लोबल वार्मिंग को कम करना चाहिए जो सभी समस्याओं का मूल कारण है।

हमारे पास बीमा पॉलिसी भी होनी चाहिए ताकि हम किसी भी आपदा के बाद हमारे जीवन को पुनर्निर्मित करने के लिए पर्याप्त धन प्राप्त कर सकें। वैज्ञानिकों को अग्रिम चेतावनी प्रणाली का आविष्कार करना चाहिए। निर्माण के दौरान हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह भूकंप का सामना करने के लिए पर्याप्त मजबूत है। हमें किसी भी आपदा के दौरान लोगों को निकासी के बारे में शिक्षित करना चाहिए। इसलिए, कुछ सावधानी बरतकर हम प्राकृतिक आपदाओं के साथ केप कर सकते हैं।

Essay on Natural Disaster in Hindi – प्राकृतिक आपदा पर निबंध ( 250 words )

प्रकृति में किसी भी तरीके से परिवर्तन होने से जो विपत्ति उत्पन्न होती है उसे प्राकृतिक आपदाएँ कहते है। यह अक्समात आती है और बहुत ही भयानक होती है। प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्य के पर्यायवरण में परिवर्तन के कारण ही हो रही है। जब कभी भी कोई भी प्राकृतिक आपदा आती है वह मनुष्य जीवन से लेकर सभी वन्ज जीवों के जीवन को तहस नहस कर जाती है। प्राकृतिक आपदाएँ बहुत से प्रकार की हैं-

Essay on Prakritik Aapda in Hindi – Types of Natural Disaster in Hindi

1. भूकंप- यह धरती में आंतरिक असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है और इस भूकंप के झटके से दुर दुर के क्षेत्र भी प्रभावित होते है। 2. बाढ- नहर और नदियों में जब बारिश के समय में पानी का स्तर ज्यादा बढ़ जाता है तब बाढ़ आने का खतरा ओर भी बढ़ जाता है। 3. सुनामी- समुमद्र में उठने वाली उँची उँची लहरों को सुनामी कहते हैं। यह जब भी आती है अपने साथ लाखों करोड़ों लोगों की जिंदगी ले जाती है।

ज्वालामुखी फटने, तुफान और चक्रवात जैसी और भी बहुत सी प्राकृतिक आपदाएँ हैं। मनुष्य अपने विकास के चक्कर में प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहा है। प्रकृति क्रोधित होकर उन्हें हानि पहुँचाती है और सब कुछ तबाह तर देती है। हमें चाहिए कि हम कोई भी ऐसा काम म करे जिससे पर्यायवरण को नुकसान हो और प्रकृति कंरोधित हो।

Essay on Natural Disaster in Hindi – प्राकृतिक आपदा पर निबंध ( 500 Words )

भूमिका-  प्रत्येक व्यक्ति, समाज और देश को समय समय पर बहुत सी आपदाओं का सामना करना पड़ता है जिसमें से कुछ समय के साथ आती है और कुछ प्राकृतिक होती है। प्राकृतिक आपदाएं वह होती है जो प्रकृति में किसी भी भौतिक और रसायनिक तत्वों में हलचल होने से होती है जो कि बहुत ही विनाशकारी है और इससे जान माल की हानि होती है। यह आपदाएं अकस्मात आती है और इन्हें रोका नहीं जा सकता है अपितु इनके आने का केवल अंदाजा लगाया जा सकता है और उचित सावधानी बरती जा सकती है।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार-

प्राकृतिक आपदाएं जन जाति और वनस्पतियों को विभिन्न रुप में प्रभावित करते हैं और इसके विभिन्न प्रकार कुछ इस प्रकार से है-

1. भूकंप- पृथ्वी की भीतरी सतह में प्लेटो के हिलने से कंपन पैदा होता है जिसे भूकंप कहा जाता है। यह अपने साथ बहुत सी इमारतों को गिरा देता है और लाखों लोगों की जान जाने का कारण बनता है।

2. बाढ़- बाढ़ की स्थिति अत्यधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती है जो अपने साथ बहुत से नगरों और कस्बों को बहा कर ले जाती है।

3. सुनामी- समुद्र की लहरों में हलचल होने से और उनमें वेग उत्पन्न होने से सुनामी आती है।

4. चक्रवात- जब तेज हवाएँ वर्षा के साथ साथ गोल गोल घुमती हुई आगे बढ़ती है तो उन्हें चक्रवात कहा जाता है और यह ज्यादातर बंगाल की खाड़ी में आते हैं।

5. बिजली गिरना- बारिश के मौसम में बिजली का गिरना भी प्राकृतिक आपदा है और हर साल बिजली गिरने से लगभग 24000 लोगों की मौत हो जाती है।

प्राकृतिक आपदाओं से हानियाँ-

प्राकृतिक आपदाएं जब भी आती है पूरी तरह से सब कुछ तहस नहस कर जाता है। इसे जान माल का बड़ी मात्रा में नुकसान होता है। बाढ़ के समय में पानी भर जाने से लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में बहुत मुश्किलें आती है। आपदा के समय में सभी चीजों के दाम बढ़ा दिए जाते हैं। मनुष्य के साथ साथ प्राकृतिक आपदाएं पशु पक्षियों और वनस्पति को भी बुरी तरह से प्रभावित करते हैं।

उपाय-

प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता है पर उनसे सावधानी बरतने के उपाय किए जा सकते हैं। हमें बारिश के समय में सभी नदियों, नालों को साफ रखना चाहिए ताकि उनमें पानी भरकर बाहर न निकले और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न न हो। हमें ज्यादा ऊंची इमारतें नहीं बनानी चाहिए ताकि भूकंप के समय वह गिरे ना। हमें आने वाली प्राकृतिक आपदाओ की चेतावनी टेलीविजन और अखबारों के द्वारा दी जाती है जिसर हमें अमल करना चाहिए और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए।

निष्कर्ष-

प्राकृतिक आपदा किसी भी गाँव, किसी भी नगर और किसी भी देश में कभी भी आ सकती है और इससे बचाव के लिए नागरिकों को सजग और सचेत रहना चाहिए। हमें प्राकृतिक आपदा के समय एक दुसरे की मदद भी करनी चाहिए और बिना डरे पूरी तैयारी के साथ इन आपदाओं का सामना करना चाहिएचाहिए और देश को भारी जान माल का नुकसान होने से बचाना चाहिए।

हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध ( Essay on Prakritik Aapda in Hindi – Essay on Natural Disaster in Hindi – प्राकृतिक आपदा पर निबंध ) को पसंद करेंगे।

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‘प्राकृतिक आपदा पर निबंध (Natural disaster Essay in Hindi)

‘आपदा’ का मतलब मनुष्य या कोई भी जानवर जीव जंतुओ पर आने वाले संकट को आपदा कहते हैं। प्राकृतिक आपदा का मतलब प्राकृतिक तथा नैसर्गिक तरीके से होने वाला नुकसान या संकट से मनुष्य जाति को होने वाली हानी को कहते हैं। सभी जातियों को जो हानि होती है,उसे प्राकृतिक आपदा कहते है। कई तरह की प्राकृतिक आपदाएं है।भूकंप ,ज्वालामुखी,बाढ़ ,सूखा, वनों में आग लगणा, शीत लहर , समुद्र तूफान, तप लहर, सुनामी, बिजली गिरना, बादलों का फटना अन्य।

‘प्राकृतिक आपदा पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essay on Natural disaster in Natural disaster par Nibandh Hindi mein)

जिस प्रकार से पूरी दुनिया में तेजी से विकास हो रहा है। उसके पीछे प्राकृतिक हानी एवं मानवीय हानी भी ज्यादा बढ़ती दिखती है। यह हमारे लिए एक चिंता का विषय है। हर रोज कुछ नहीं खबर सुनने को मिलती है।प्राकृतिक आपदाएं के कारण पुल बह जाते हैं। पेड़ गिरते हैं, घर टूट जाते हैं ,पर्यावरण ज्यादा तौर पर प्रदूषित हो रहा है। इसका कारण मानव के ज्यादा किए गए कुछ गलत काम भी हो सकते हैं।

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प्राकृतिक आपदा पर निबंध- Essay on Natural Disaster in Hindi

In this article, we are providing information about Natural Disaster in Hindi. Short Essay on Natural Disaster in Hindi Language. प्राकृतिक आपदा पर निबंध, Prakritik Aapda in Hindi Essay

प्राकृतिक आपदा पर निबंध- Essay on Natural Disaster in Hindi

भूमिका- प्राकृतिक आपदा प्रकृति के द्वारा अचानक से होने वाली दुर्घटनाओं को कहा जाता है। प्राकृतिक आपदाओं पर मनुष्य का कोई जोर नहीं है और न हीं इनके विषय में पहले से पता लगाया जा सकता है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण मनुष्य को जान माल का नुकसान होता है। प्राकृतिक आपदाओं का हमें सामना करना चाहिए। प्राकृतिक आपदाओं के अंतर्गत भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, भु संख्लन, बाढ़ आदि आते हैं।

प्राकृतिक आपदा के प्रकार ( Types of Natural Disasters in Hindi )

1. भूकंप- भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिससे भूमि के अंदर हलचल हो जाती है और बहुत ही ज्यादा हानि होती है।

2. ज्वालामुखी विस्फोट- ज्वालामुखी के विस्फोट होने से लावा निकलता है जिसमें बहुत सी हानिकारक गैसें होती है जो पर्यायवरण के लिए बहुत हानिकारक है।

3. बाढ़- किसी भी क्षेत्र में वर्षा की अधिकता के कारण पानी के स्तर में वृद्धि होना बाढ़ कहलाता है जिससे वहाँ पर रहने वाले लोगों का जीवन बहुत प्रभावित होता है।

4. भु संख्लन- किसी भी बड़े भूभाग का अपने स्थान से खिसक जाना भु संख्लन कहलाता है।

5. सुनामी- समुद्रों में तेजी से उठने वाली लहरों के कारण सुनामी आती है जिससे समुद्र के कारण रहने वाले लौगों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

प्रभाव- प्राकृतिक आपदा के कारण पर्यायवरण और जीवम पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ते है। इनके कारण जलवायु में परिवर्तन हो रहे है जिससे रितु परिवर्तन निर्धारित समय पर नहीं होता है। कहीं पर अकाल की संभावना हो जाती है तो कहीं पर बाढ़ आती है जिससे जान और माल दोनों की हानि होती है। प्राकृतिक आपदा के कारण पर्यायवरण में गर्मी और प्रदुषण की मात्रा बढ़ती जा रही है और पशु पक्षियों और वनस्पति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

आपदा प्रबंधन- वैसे तो प्राकृतिक आपदाओं का पहले से पता नहीं लगाया जा सकता है लेकिन फिर भी हम इनसे बचने के लिए कुछ प्रबंध कर सकते हैं। अपने घर और दुकान आदि का बीमा करवा सकते हैं। अपने साथ हमेशा प्राथमिक चिकित्सा का सामान रखते हैं। वर्षा के समय में पानी की निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए और समुद्र के निकट रहने वाले लोगों को किसी और स्थान पर चले जाने चाहिए।

निष्कर्ष- प्राकृतिक आपदाओं को मनुष्य की गतिविधियों के कारण भी बढ़ावा मिला है और वह हमारे लिए विनाशकारी साबित हुई है। प्राकृतिक आपदाओं से बचने के तरीकों के बारे में बच्चों को पहले से ही सिखाया जाना चाहिए और इनसे डरने की बजाय इनका डटकर सामना करना चाहिए।

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1 thought on “प्राकृतिक आपदा पर निबंध- Essay on Natural Disaster in Hindi”

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इस निबंध मेरे लिए बहुत मददगार था।

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प्राकृतिक आपदा के कारण एवं प्रभाव

प्राकृतिक आपदा के कारण एवं प्रभाव

प्राकृतिक आपदा क्या होती है .

पर्यावरणीय असंतुलन और पृथ्वी की आंतरिक हलचल जब भयानक रूप ले लेती है तो उसे प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। बाढ़, भूकंप, तूफ़ान, सुनामी, ज्वालामुखी, हिमस्खलन, भू-स्खलन आदि घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। जिनके प्रभाव से जन-धन दोनों की बहुत हानि होती है। प्राकृतिक आपदाएं परिवर्तनशील होती हैं और इनका दुष्प्रभाव मानव समाज व सभी जीव-जंतुओं पर पड़ता है।

वातावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन आदि प्राकृतिक आपदाओं का परिणाम होती हैं। प्राकृतिक आपदा वह प्राकृतिक स्थिति है जो मानवीय, भौतिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक क्रियाकलापों को व्यापक रूप से प्रभावित करती है। संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय-आपदा शमन रणनीति के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं के स्तर में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। हर वर्ष 13 अक्टूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस’ (International Day for Disaster Reduction) मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य आपदा के प्रभावों को कम करना व विश्व समुदाय द्वारा आपदा के विषय में किए गए प्रयासों का आकलन करना है।

Table of Contents

भारत एवं आस-पास की कुछ बड़ी प्राकृतिक आपदाएं –

  • उड़ीसा में वर्ष 1999 में आया महाचक्रवात जिसके प्रभाव से 10 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी।
  • गुजरात में 26 जनवरी, वर्ष 2001 में आया भीषण भूकंप जिसके प्रभाव से 20 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई और अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, गांधीनगर, कच्छ, जामनगर जैसे जिले पूरी तरह बर्बाद हो गए थे।
  • हिन्द महासागर में वर्ष 2004 में आई विनाशकारी सुनामी जिसमें 2 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई व अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका, इंडोनेशिया, दक्षिण भारत बुरी तरह प्रभावित हुए।
  • उत्तराखण्ड (केदारनाथ) में 16 जून, वर्ष 2013 में बादल फटने से 10 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।
  • जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2014 में आई भीषण बाढ़ जिसमें 500 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।

प्राकृतिक आपदा के कारण एवं प्रभाव (Causes and effects of natural disaster in hindi) –

वर्तमान में ग्रीन हाउस प्रभाव से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा बढ़ रही है, जिससे अधिक वर्षा होने की संभावनाएं होती है। अधिक वर्षा के कारण बाढ़, बादल फटना आदि प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बना रहता है। इसके अलावा अधिक तापमान की वजह से कई क्षेत्रों में सूखा पड़ने जैसी प्राकृतिक आपदाओं आने की संभावनाएं बनी रहती हैं।

समुद्री स्तरों के बढ़ने और तापमान में वृद्धि की स्थिति ने विश्व स्तर पर उष्णकटिबंधीय तूफानों की तीव्रता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वर्तमान में समुद्र के वैश्विक स्तर में प्रति वर्ष लगभग 3.4 मिलीमीटर की वृद्धि हो रही है। आपदाएं भू-जलवायु स्थितियों और स्थलाकृतियों की विशेषताओं से निर्धारित होती हैं और उन्हीं के फलस्वरूप विभिन्न तीव्रता वाली प्राकृतिक आपदाएं घटित होती हैं।

प्राकृतिक आपदा के दो कारण होते हैं –

पहला – प्राकृतिक कारण जिसमें वायुमंडलीय परिवर्तन, भूगर्भीय हलचल, ज्वालामुखी उद्गार, जलवायु परिवर्तन, उल्कापात इन सभी के प्रभावों से प्राकृतिक आपदाओं की संभावनाएं बनी रहती हैं।

दूसरा – मानव जनित कारण जिसमें आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण, शहरीकरण आदि कारक सम्मिलित होते हैं। इन सभी का विस्तारपूर्वक विवरण निम्नलिखित है –

प्राकृतिक कारण

वायुमंडलीय परिवर्तन –.

वायुमंडल में होने वाला परिवर्तन वायुमंडलीय परिवर्तन कहलाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रदूषणों के प्रभावों से वायुमंडल में कई तरह के परिवर्तन और आपदाएं आ रही हैं। वायुमंडल में हो रहे परिवर्तन से ग्रीन-हाउस प्रभाव प्रभावित होता है। जिससे भूमंडलीय ताप में वृद्धि के कारण समुद्री जल स्तर में वृद्धि होती है जो सुनामी, बाढ़, बादल फटना, सूखा पड़ना आदि प्राकृतिक आपदाओं को जन्म देती हैं।

भूगर्भीय हलचल –

भूमि के अंदर होने वाली हलचलें भूगर्भीय हलचल कहलाती हैं। पृथ्वी अपनी घूर्णन गति के कारण समय-समय पर बदलाव करती रहती है और यही बदलाव कई आपदाओं जैसे भूकंप, भूस्खलन आदि का कारण बनते हैं। वास्तव में पृथ्वी अपनी स्थिति में परिवर्तित होती है और इन परिवर्तनों को हम आपदाएं कहते हैं। भूगर्भीय हलचल छोटे एवं बड़े पैमाने दोनों में हो सकती है इस बात का अनुमान उसके परिणामों पर निर्भर करता है। जानें भूकंप क्या है ? भूकंप के कारण ।

ज्वालामुखी उद्गार –

ज्वालामुखी एक महत्वपूर्ण क्रिया कहलाती है जिससे धरातल में विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। ज्वालामुखी उद्गार से इससे प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में भूस्खलन, भूकंप, सुनामी, राख का गुबार जैसी प्राकृतिक आपदाएं आने की संभावनाएं होती हैं।

जलवायु परिवर्तन –

जलवायु में दशकों या दीर्घकालीन समय में होने वाले परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन कहते है। जलवायु में होने वाले परिवर्तन विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदा को जन्म देती है। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा पड़ना, बादल फटना जैसी कई प्राकृतिक आपदाएं उत्पन्न होती हैं।

उल्कापात –

आकाश में एक ओर से दूसरी ओर तेजी से जाते हुए या पृथ्वी पर गिरते हुए पिंड जिन्हें उल्का, टूटता हुआ तारा या लूका भी कहा जाता है उल्कापात कहलाता है। उल्कापात अपने आसपास के क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित करता है तथा इसके प्रभाव से प्राकृतिक आपदा आने का भी खतरा बना रहता है। उल्कापात भूकंप, भूस्खलन आदि आपदाओं को उत्पन्न कर सकता है।

मानव जनित कारण

आधुनिकीकरण –.

आधुनिकीकरण सामाजिक परिवर्तन की एक ऐसी प्रक्रिया है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं तर्क पर आधारित होती है इसका उद्देश्य केवल सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन करना है। परन्तु आधुनिकीकरण से मानव ने अपनी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति का इस प्रकार दोहन किया है कि यह संपूर्ण मानव जाति, अन्य जीवों व प्रकृति के लिए बहुत ही नुकसानदायक सिद्ध हुआ है। आधुनिकीकरण ने न केवल विभिन्न प्रदूषणों को उत्पन्न किया बल्कि वर्तमान में प्राकृतिक आपदाओं का कारण भी आधुनिकीकरण ही है। आधुनिकीकरण कई आपदाओं जैसे – बाढ़, सूखा, भूस्खलन, हिमस्खलन आदि को उत्पन्न करने का कारण है।

औद्योगीकरण –

औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके उत्पादन के साधनों में वृद्धि करना है। औद्योगीकरण ने न केवल जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि प्रदूषणों को उत्पन्न किया है बल्कि यह कई प्राकृतिक आपदाओं का कारण भी है। बड़े-बड़े उद्योगों के निर्माण में उनसे निकलने वाला धुआँ तथा तरल रासायनिक पदार्थों का समुद्र में मिलना ये सभी प्रक्रियाएं बड़े पैमाने में प्रकृति को प्रभावित करती हैं। इनके प्रभाव से ग्लोबल वॉर्मिंग, समुद्र स्तर के बढ़ने से सुनामी, बादल फटना आदि आपदाओं का खतरा बना रहता है।

शहरीकरण –

शहरी क्षेत्रों के विस्तार व जनसंख्या का ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर स्थानांतरण शहरीकरण कहलाता है जो पूरी दुनिया में होने वाला एक वैश्विक परिवर्तन है। शहरीकरण के बढ़ने का प्रमुख कारण बेरोजगारी है। रोजगारी की तलाश में व्यक्ति शहरों की ओर जाने के लिए विवश हो जाते हैं। विभिन्न सुख-सुविधाओं में वृद्धि के साथ-साथ शहरीकरण ने कई समस्याओं जैसे – निर्धनता, आर्थिक समस्या, आवास की कमी, गंदी बस्तियों का निर्माण एवं पर्यावरणीय समस्या आदि को भी जन्म दिया है और इन समस्याओं का विकराल रूप प्राकृतिक आपदाओं का कारण बनता है। क्योंकि बारिश आने पर पानी की निकासी न होने से बाढ़, गंदगी के कारण बीमारियॉं आदि का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

पढ़ें मगध महाजनपद के उत्थान के क्या कारण थे ।

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बाढ़ पर निबंध (Flood Essay in Hindi)

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में विनाश का कारण पानी की भारी मात्रा में अतिप्रवाह है। हर साल दुनिया भर में कई क्षेत्रों को बाढ़ की समस्या का सामना करना पड़ता है। बाढ़ अत्यधिक बारिश और उचित जल निकासी व्यवस्था की कमी के कारण होती है। बाढ़ की गंभीरता हर क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है और उसी के कारण होने वाला विनाश भी अलग-अलग होता है।

बाढ़ पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Flood in Hindi, Badh par Nibandh Hindi mein)

बाढ़ पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

भारी बारिश के कारण होने वाली बाढ़ के पानी की वजह से बीमारियों से होने के घातक परिणाम सामने आए हैं। इससे जीवन का नुकसान, बीमारियों में वृद्धि, मूल्य वृद्धि, आर्थिक नुकसान और अन्य मुद्दों के अलावा पर्यावरण का विनाश होता है। बाढ़ उनके प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करती है।

बाढ़ के कारण और नुकसान

बाढ़ प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों कारणों से होता है। बाढ़ के प्राकृतिक कारणों में अतिवृष्टि, ग्लेशियर, का पिघलना, आदि आते है। अप्राकृतिक कारणों में ग्लोबल वार्मिंग, अत्यधिक प्रदुषण आदि आते है। 

बाढ़ का रोकथाम

कई बार बाढ़ पर कुछ दिनों में काबू पाया जा सकता है जबकि कई बार इस पर हफ़्तों में काबू पाया जाता है जिससे उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन पर एक बुरा प्रभाव पड़ता है। हालांकि ज्यादातर लोगों को इन के बारे में चेतावनी भी दी जाती हैऔर इससे पहले कि स्थिति बदतर हो जाए इनसे बचने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसी जगहों पर छुट्टी की योजना बनाने वाले पर्यटकों को अपनी योजना रद्द करनी चाहिए और अगर समय हो तो इस स्थिति से बचने की कोशिश करनी चाहिए।

प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ दिन-प्रतिदिन के कार्य को बाधित करती है। बाढ़ इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए विभिन्न समस्याएं पैदा करती है। भारी बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में जन-जीवन को फिर से पुनर्निर्माण करने में महीनों लगते हैं और कई बार तो सालों-साल भी।

इसे यूट्यूब पर देखें : Badh par Nibandh

निबंध – 2 (400 शब्द)

बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है जो किसी क्षेत्र में अत्यधिक पानी के जमा होने के कारण होती है। यह अक्सर भारी बारिश का नतीजा है। कई क्षेत्रों को नदी या समुद्र के पानी के स्तर के बढ़ने के कारण, बांधों के टूटने के कारण और बर्फ की पिघलने के कारण बाढ़ का सामना करना पड़ता है। तटीय क्षेत्रों में तूफान और सूनामी इस स्थिति का कारण बनते हैं।

दुनिया भर में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र

विश्व भर में कई क्षेत्रों में लगातार बाढ़ होने की संभावना है। गंभीर और लगातार बाढ़ का सामना करने वाले दुनिया भर के शहरों में भारत में मुंबई और कोलकाता, चीन में गुआंगजो, शेनज़न और टियांजिन, एक्वाडोर, न्यू यॉर्क, न्यू जर्सी, हो ची मिन्ह सिटी, वियतनाम, मियामी और न्यू ऑरलियन्स शामिल हैं।  पहले भी इन क्षेत्रों में बाढ़ के कारण विनाश होते रहें हैं।

बाढ़ के कारण उत्पन्न समस्या को कैसे नियंत्रित करें ?

मानव जीवन को बाधित करने से लेकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने तक – बाढ़ के कई नकारात्मक नतीजे हैं जिनसे निपटना मुश्किल है। इस प्रकार बाढ़ को नियंत्रित करना बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस समस्या को नियंत्रित करने के कुछ तरीके यहां दिए गए हैं:

  • बाढ़ चेतावनी सिस्टम

बेहतर बाढ़ चेतावनी प्रणालियों को स्थापित करना यह समय की आवश्यकता है ताकि लोगों को आगामी समस्या के बारे में सही समय पर चेतावनी दी जा सके और उनके पास अपने और अपने सामान की रक्षा करने के लिए पर्याप्त समय हो।

  • बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में भवनों का निर्माण

बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में इमारतों का बाढ़ के पानी के स्तर से ऊपर निर्माण किया जाना चाहिए ताकि संपत्ति के नुकसान के साथ-साथ वहां रहने वाले लोगों को भी नुकसान से बचाया जा सके।

  • जल भंडारण प्रणाली की शुरुआत

बारिश के पानी को पुन: उपयोग करने के लिए सरकार को जल भंडारण प्रणालियों के निर्माण में निवेश करना चाहिए। इस तरह से मैदानी इलाकों में पानी के अतिप्रवाह होने और बाढ़ का कारण बनने की बजाए पानी का अत्यधिक इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत बनाएं

बाढ़ के मुख्य कारणों में से एक ख़राब जल निकासी व्यवस्था है। जल निकासी से बचने के लिए अच्छी जल निकासी प्रणाली होना जरूरी है जिससे बाढ़ की स्थिति ना उत्पन्न हो।

  • बाढ़ बैरियर स्थापित करें

उन क्षेत्रों में बाढ़ बैरियर स्थापित किए जाने चाहिए जो बाढ़ से प्रभावित हैं। पानी निकल जाने के बाद इन्हें हटाया जा सकता है।

हालांकि बारिश की घटनाएं, बर्फ-पहाड़ों का पिघलना, जल निकासियों और तूफानों को रोकना मुश्किल हो सकता है लेकिन इनमें से अधिकांश मामलों में पहले एतियात बरती जा सकती है और सरकार जल निकासी सुनिश्चित करने के लिए उपाय कर सकती है जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती हैं। यहाँ ऊपर साझा किए गए कुछ तरीकों को नियोजित करके बाढ़ की स्थिति से बचा जा सकता है।

निबंध – 3 (500 शब्द)

बाढ़ की स्थिति भारी बारिश, नदियों और महासागरों जैसे जल निकायों से पानी के अतिप्रवाह, ग्लेशियर पिघलने, तूफान और तटीय किनारों के साथ तेज हवाओं के कारण बनती हैं। जब अत्यधिक मात्रा में जल निकलने के लिए अच्छी जल निकासी प्रणाली की कमी होती है तब यह पानी बाढ़ का कारण बनता है ।

बाढ़ के परिणाम

बाढ़ का पानी प्रभावित क्षेत्र के सामान्य कामकाज को बाधित करता है । गंभीर बाढ़ के कारण बड़े पैमाने पर विनाश हो सकता है। यहां बताया गया है कि धरती पर बाढ़ कैसे प्रभावित करती है:

  • जीवन को ख़तरा

बहुत से लोग और जानवर गंभीर बाढ़ के कारण अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। इससे कई लोग घायल और विभिन्न रोगों से संक्रमित होते हैं। कई जगहों पर मच्छरों और अन्य कीड़ों के प्रजनन के लिए जमा होने वाला पानी मलेरिया और डेंगू जैसी विभिन्न बीमारियों का कारण है। हाल ही में पेचिश, न्यूमोनिक प्लेग और सैन्य बुखार के मामलों में वृद्धि हुई है।

  • बिजली कटौती

आज कल बिजली और पानी की आपूर्ति में बाधा आई है जिससे आम जनता की समस्याओं में वृद्धि हो रही है। उन स्थानों पर करंट पकड़ने का जोखिम भी है जहां बिजली की आपूर्ति बरकरार है।

  • आर्थिक नुकसान

बहुत से लोग अपने घरों और अन्य संपत्तियों जैसे कार, मोटरसाइकिल बाढ़ में खो देते हैं जिन्हें ख़रीदने में सालों लगते हैं। यह सरकार के लिए चिंताजनक विषय है क्योंकि संपत्ति बचाव अभियान के लिए कई पुलिसकर्मियों, फायरमैनों और अन्य अधिकारियों को तैनात करना पड़ता है। गंभीर बाढ़ के मामलों में प्रभावित क्षेत्रों को फिर से तैयार करने में कई साल लगते हैं।

  • कीमत का बढ़ना

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में माल की आपूर्ति कम हो जाती है क्योंकि सड़क परिवहन वहां तक ​​नहीं पहुंच सकता है। इसके अलावा इन क्षेत्रों में संग्रहीत सामान भी बाढ़ के कारण खराब हो जाते हैं। आपूर्ति की कमी है और मांग अधिक है और इस प्रकार वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होती है।

जब मूसलधार बारिश होती है तो मिट्टी पूरे पानी को अवशोषित नहीं कर पाती और इससे अक्सर मिट्टी का क्षरण होता है जिसके भयानक परिणाम होते हैं। मिट्टी के क्षरण के अलावा मिट्टी की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।

बाढ़ सिर्फ मनुष्यों और जानवरों के लिए ही खतरा नहीं है बल्कि वनस्पति के लिए भी ख़तरा है। भारी बारिश अक्सर गड़गड़ाहट, बिजली और तेज हवाओं के साथ होती है। तूफान पेड़ों को उखाड़ फेंकने का एक कारण है। इसके अलावा बाढ़ के दौरान फसल क्षतिग्रस्त हो जाती है और कई अन्य पौधें भी नष्ट हो जाते हैं।

भारत में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र

साल-दर-साल भारत में कई क्षेत्रों को बाढ़ की समस्या का सामना करना पड़ता है। देश में इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित प्रमुख क्षेत्रों में उत्तर बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल, मुंबई, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों, तटीय आंध्र प्रदेश और उड़ीसा, ब्रह्मपुत्र घाटी और दक्षिण गुजरात सहित अधिकांश गंगा मैदान हैं। बाढ़ के कारण इन जगहों को अतीत में गंभीर नुकसान पहुंचा है और अभी भी ख़तरे का सामना कर रहे हैं।

बाढ़ प्राकृतिक आपदाओं में से एक है जो विभिन्न क्षेत्रों में बड़े विनाश का कारण है। यह समय है कि भारत सरकार को इस समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए और इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए मजबूत उपायों का पालन करना चाहिए।

Essay on Flood in Hindi

निबंध – 4 (600 शब्द)

बाढ़ तब होती है जब एक विशेष सूखे क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा के कारण ज़मीन पर बहने वाले पानी की मात्रा बढ़ जाती है। नदी, महासागर और झील जैसे जल निकायों से पानी के अतिप्रवाह के कारण यह भी हो सकता है। बाढ़ जन विनाश के कारण जानी जाती है। कुछ क्षेत्रों में विनाश का कारण इतना गंभीर है कि नुकसान की मरम्मत के लिए कई साल लगते हैं।

बाढ़ के कारण

बाढ़ के विभिन्न कारणों पर एक नजर इस प्रकार है:

बाढ़ की स्थिति ख़राब जल निकासी प्रणाली के कारण हो सकती है। कई बार थोड़ी अवधि की भारी बारिश भी बाढ़ का कारण बन सकती है जबकि दूसरी तरफ कई दिनों तक चलने वाली हल्की बारिश भी बाढ़ जैसी स्थिति बना सकती है।

  • बर्फ का पिघलना

सर्दियों के मौसम के दौरान जो पहाड़ बर्फ से ढंके होते है उनका पिघलना शुरू हो जाता है क्योंकि तापमान बढ़ जाता है। बर्फ का अचानक पिघलना तापमान बढ़ने के कारण होता है और इसके परिणामस्वरूप मैदानी इलाकों में पानी की मात्रा बढ़ जाती है। जिन क्षेत्रों में अत्यधिक पानी की मात्रा है वहां उचित जल निकासी प्रणाली नहीं होने के कारण बाढ़ की स्थिति बन जाती है। इसे प्रायः बर्फ से पिघलने वाली बाढ़ के रूप में जाना जाता है।

  • बाँध का टूटना

ऊंचाई से पानी बहने के लिए बांधों को बनाया जाता है। पानी से बिजली बनाने के लिए प्रोपेल्लर्स का इस्तेमाल किया जाता है। कई बार बाँध टूट जाते हैं क्योंकि वे बड़ी मात्रा में पानी नहीं पकड़ पाते जिसके फलस्वरूप आसपास के इलाकों में बाढ़ आ जाती है। कभी-कभी अत्यधिक जल बांध से जानबूझकर जारी किया जाता है ताकि इसे टूटने से रोका जा सके। इसका परिणाम बाढ़ भी हो सकता है।

  • जल निकायों का अतिप्रवाह

जल निकायों जैसे नदियाँ आदि से पानी बार-बार बह निकलने से आसपास के इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। नदियों के नजदीक निचले इलाके इस समय के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि जल नदी से नीचे की ओर बहता है।

  • तटीय क्षेत्र में हवाएं

मजबूत हवाओं और तूफानों में समुद्र के पानी को सूखे तटीय इलाकों में ले जाने की क्षमता होती है जो की बाढ़ का कारण बनता है। इससे तटीय क्षेत्रों में गंभीर क्षति हो सकती है। तूफान और सुनामियों को तटीय भूमि में बड़ी तबाही का कारण जाना जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग: बाढ़ का मुख्य कारण

हाल के दिनों में बाढ़ की आवृत्ति बढ़ी है। ऐसा कहा जाता है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते औसत समुद्री तापमान में काफी बढ़ोतरी हुई है और इससे कैरिबियन में उष्णकटिबंधीय तूफान की बढ़ती दर और कठोरता में वृद्धि हुई है। ये तूफान उनके रास्ते में देशों में भारी बारिश का कारण है। ग्लोबल वार्मिंग, जो वायुमंडल के तापमान में वृद्धि पैदा कर रहा है, ग्लेशियरों और बर्फ के पिघलने का भी एक कारण है जो फिर से कई क्षेत्रों में बाढ़ का कारण है। कहा जाता है कि आने वाले समय में ध्रुवीय बर्फ पर फिर से बुरा प्रभाव पड़ेगा जिससे स्थिति खराब होने की संभावना है।

पृथ्वी पर समग्र जलवायु परिस्थितियों में एक बड़ा परिवर्तन आया है और ग्लोबल वार्मिंग को इस परिवर्तन का कारण माना जाता है। जहाँ कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक बाढ़ का अनुभव होता है वहीँ अन्य लोग सूखे का अनुभव करते हैं।

यद्यपि हम बारिश या ग्लेशियरों को पिघलने से नहीं रोक सकते पर हम निश्चित रूप से बाढ़ के पानी से निपटने के लिए अच्छी जल निकासी व्यवस्था का निर्माण कर सकते हैं। सालभर कई देशों में जैसे सिंगापुर के अधिकांश हिस्सों में भारी वर्षा होती है पर वहां अच्छी जल निकासी प्रणाली है। भारी बारिश के दिनों में भी वहां समस्या नहीं होती। बाढ़ की समस्या और प्रभावित क्षेत्रों में होने वाली क्षति से बचने के लिए भारत सरकार को भी अच्छी जल निकासी व्यवस्था का निर्माण करना चाहिए।

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भारत में प्राकृतिक आपदा। (Natural Disaster in India Essay in Hindi.)

राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों “भारत में प्राकृतिक आपदा (Bharat mein Prakritik Aapda)” जो की हमारे प्रकृति का एक विनाशकाल भयंकर रूप है, जिसकी विनाश की परिकल्पना हम नहीं कर सकतें हैं, जिससे केवल बचा जा सकता है।

प्राकृतिक आपदा स्वयं प्रकृति के द्वारा रचा गया एक ऐसा चक्र है, जिसमे प्रकृति खुद को संतुलित रखने के साथ-साथ समय-समय पर अपने आप को समायोजित भी करता रहता है क्यूंकि यह प्रकृति का नियम है।

Prakritik Aapda वैदिक काल के समय बहुत ही दुर्लभ प्रक्रिया मानी जाती थी क्यूंकि उस समय प्रकृति और मनुष्यों के बिच बन्धुत्व मनोवृति बहुत अधिक देखने को मिलती थी, जिससे यह सिद्ध होता है प्राकृतिक आपदाएं प्रकृति खुद के समायोजन और संतुलित प्रक्रिया को बनाये रखने के लिए तो उत्पन्न होती ही थी।

bharat mein prakritik aapda

लेकिन, वहीँ आज के इस आधुनिक औधोगिकीकरण के युग में मनुष्यों की मनोवृति प्रकृति के विषय में बिलकुल विपरीत हो गयी है, जिसके परिणामस्वरूप हमे विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक आपदायें अकस्मात् तरीके से देखने को मिलती रहती है क्यूंकि आज मनुष्यों द्वारा की जा रहीं गतिविधियां और गैरजिम्मेदाराना हरकतों की वजह से prakritik aapda आकस्मिक रूप से उत्पन्न हो रही हैं।

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प्राकृतिक आपदा किसे कहतें हैं?

प्राकृतिक आपदा प्रकृति मर उत्पन्न हुई एक ऐसी स्तिथि है, जहाँ प्रकृति स्वयं के संसाधनों (पानी, हवा, जमीन, आग, बादल, वन) का उपयोग करके धरती पर अस्थिरता और तबाही पैदा करती है, जिसपर मानव का कोई नियंत्रण नहीं होता है और मानव केवल उसका निवारण और उससे बच सकता है।

Prakritik Aapda एक छोटा सा शब्द है जिसके अनेकों रूप हैं और भारत में प्राकृतिक आपदा के उन सभी रूपों को देखा जा सकता है क्यूंकि पुरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जो सभी प्रकार के प्राकृतिक आपदा से निपटता है।

और पढ़ें:- भारत में अक्षय ऊर्जा का महत्व।

भारत में प्राकृतिक आपदा के प्रकार।

  • बाढ़-> मानसून के समय भारत में बाढ़ की स्तिथि उत्पन्न होना बहुत ही आम बात है और यह प्रक्रिया आमतौर नदियों वाले क्षेत्रों में ज्यादातर देखने को मिलता है, जैसे गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन वाला क्षेत्र।
  • भूकंप-> भूकंप की स्तिथि आमतौर पर दो बड़े भूभागों के बिच उनके टकराने या सब्डक्शन की प्रक्रिया के कारण होती है और यह उत्तर भारत के हिमालय क्षेत्र में प्रायः उत्पन्न होती हैं और इसके झटके की तिवृत्ता को दूर तक महसूस किया जा सकता है।
  • चक्रवात-> चक्रवात प्रकृति की एक ऐसी प्रक्रिया ही जो अक्सर महासागरों में निम्न वायु दाब के कारण उत्पन्न होती है , जिसका विनाशकारी रूप धरती की स्तह पर भारी तबाही मचाता है और इससे अक्सर तटीय क्षेत्र ज्यादा प्रभावित होतें हैं, जैसे भारत में चक्रवात बंगाल की खाड़ी और अरब महासागर में प्रायः देखने  जाती है।
  • बर्फीला तूफान-> यह तूफान प्रायः उत्तर भारत के उत्तरी क्षोर में उत्पन्न होती है, जिसका मुख्य कारण पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टर्बेंस) हवाएँ हैं, हालाँकि, उस  कम  यह लोगों को कम नुक्सान पहुँचाती ही।
  • भूस्खलन-> भूस्खलन अक्सर पर्वतीय क्षेत्रों वाले इलाके में देखने को मिलती है जिसमे जमीन खिसकना, मिटटी का पहाड़ से बहना, पत्थर का गिरना जैसी घटनायें शामिल हैं। जिसका उत्पन्न होने का कारण है पर्वतों से वनों की कटाई करना, भारी बारिश होना, मानवीय कार्य करना।
  • ज्वालामुखी फटना-> भारत में इससे सम्बंधित घटना केवल भारत के केंद्र शाषित प्रदेश अंडमान वाले क्षेत्र में देखने को मिलता है, जो की बहुत ही दुर्लभ है क्यूंकि इसमें जब धरती की निचली स्तह कोर में मैग्मा गर्म होता है तो वह लावा के रूप में ज्वालामुखी से बाहर निकल कर आता है।
  • बादल फटना-> यह दुर्घटना भी आमतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में मानसून के समय देखने को मिलती है, जब बारिश का बादल भारी मात्रा में पानी संग्रहित कर लेता है, तब अचानक से बादल फट जाता है, जिससे बादल में सारा संग्रहित पानी एक स्थान पर गिर जाता है।
  • जंगल में आग लगना-> जंगल में आग लगना भारत में एक सामान्य बात हो गयी है क्यूंकि इसके लिए बहुत से कारक जिम्मेदार हैं जैसे; हीट वेव, जलवायु परिवर्तन, जंगल की सुखी लकड़ियों में आग का खुद लगना, मानव गतिविधियां शामिल हैं।
  • सूखा पड़ना-> यह परिस्तिथि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पन्न हो जाती है, जिसका एक मुख्य कारण है भूजल में कमी होना, जो की आमतौर पर मानसून के समय कम वर्षा होने पर होती है।

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भारत में प्राकृतिक आपदा उत्पन्न होने के कारण।

हालाँकि, प्राकृतिक आपदायें ऐसी घटनायें हैं जो खुद-ब-खुद उत्पन्न होती हैं क्यूंकि बदलाव प्रकृति का नियम है और जो चीज नियमबद्ध होती है उसका कोई कारण नहीं होता क्यूंकि वह होकर ही रहेगी उसे कोई रोक नहीं सकता।

परन्तु, प्राकृतिक आपदा के विभिन्न प्रकार के घटनाओं को बढ़ावा देने के लिए आज के इस युग में कुछ ऐसे कारक अवश्य हैं, जो प्रकृति को अपने नियम के विरुद्ध जाने के लिए मजबूर करतें हैं, जिसके कारण आयेदिन हमे bharat mein prakritik aapda जैसी घटनायें सुनने को मिलती है, वह कारक निम्नलिखित प्रकार से है:-

  • मानव के द्वारा बड़े स्तर पर वनो की कटाई की जा रही है, ताकि वह जमीन पर बड़ी मात्रा में खेती कर सके, बड़े-बड़े उद्योग स्थापित कर सके, जिसके कारण भूस्खलन और सूखा पड़ना जैसी प्राकृतिक आपदा उत्पन्न होती है।
  • जंगल में आग मानव के द्वारा कई बार जान-बुझ कर लगाई जाती है ताकि वह जानवरों को पकड़ सके और कई बार जलती हुई बीड़ी-सिगरेट फेकने के कारण भी जंगलो में आग लग जाती है।
  • मानव प्रकृति में ऐसे निर्माण कर रहा है जो प्रकृति के अनुकूल नहीं है जैसे पहाड़ों पर सड़कें बनाना, सुरंगे बना कर रास्तें तैयार करना।
  • प्रदुषण , प्राकृतिक आपदा को बढ़ावा देने में बहुत ही अहम् भूमिका निभाता है, जिसके कारण हमे हीट वेव, बाढ़, चक्रवात, विभिन्न जैविक रोग जैसी आपदायें देखने को मिलती है।
  • जलवायु परिवर्तन , भारत में प्राकृतिक आपदा को और सक्रीय बनाता है। जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया आयेदिन भारत में चक्रवात, बाढ़ सूखा इन सब जैसी परिस्थितियों को अकस्मात रूप से उत्पन्न करता है।

भारत में प्राकृतिक आपदा के प्रभाव।

प्राकृतिक आपदा परिवर्तन शील स्वाभाव के साथ-साथ विनाशकारी भी होता है, जिसका दुष्प्रभाव सभी मानव समाज और जिव-जंतुओं पर पड़ता है। प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्यों और जानवरों की जान-माल की हानि होती है बहुत से घर छतिग्रस्त हो जातें हैं, आर्थिक नुक्सान और बुनियदी ढांचे की बर्बादी भी बड़े स्तर पर होती है।

भारतीय इतिहास में सबसे खतरनाक प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानियाँ।

  • केरल में बाढ़ ( 2018)-> केरल राज्य में यह अभी तक का सबसे खतरनाक बाढ़ था, जिसमे लगभग 400 लोगों की जान गयी और करीब 281000 लोगों को विस्थापित किया गया।
  • कश्मीर बाढ़ आपदा ( 2014)-> लगातार बारिश होने की वजह से कश्मीर में बाढ़ की स्तिथि उत्पन्न हो गयी, जिसमे 500 से अधिक लोगों की जान गयी और पुरे राज्य में 500 से अधिल पुल छतिग्रस्त हो गएँ।
  • उत्तराखंड प्राकृतिक आपदा ( 2013)-> उत्तराखंड में बादल फटने की वजह से अचानक बाढ़ आ गयी और लगातार बारिश के कारण भूस्खलन देखने को मिला जिमसे 5700 लोगों की जान गयी और हज़ारों लोग लापता हो गएँ।
  • हिन्द महासागर सुनामी ( 2004)-> यह सुनामी एक बड़े तीव्रता वाले भूकंप से उत्पन्न हुई, जिसने भारत के साथ उनके पडोसी देश श्रीलंका और इंडोनेशिया को भी भारी नुक्सान पहुंचाया। रिपोर्ट्स में यह बताया जाता है की यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भूकंप था, जिसमे 2 लाख से अधिक लोग मारे गए।
  • गुजरात भूकंप ( 2001)-> 26 जनवरी की सुबह भारत अपना गणतंत्र दिवस मना रहा था और उसी वक़्त गुजरात में एक बड़ी तीव्रता वाला भूकंप आया, जिसने 20000 से अधिक लोगों की जान ले ली और लगभग 40000 लोग बेघर हो गएँ।
  • ओडिशा चक्रवात ( 1999)-> ओडिशा में घातक चक्रवात जिसे सुपर साईक्लोन 05B भी कहा जाता है, इसने राज्य में 10000 से अधिक लोगों की जान ली और 275000 से अधिक घर नष्ट हो गए।

इन घातक प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जान-माल की हानि को कम करने और रोकने के लिए सरकार ने 2006 में ‘राष्ट्रिय आपदा प्रतिक्रिया बल (एन डी आर एफ)’ का गठन वैधानिक रूप से किया। एन डी आर एफ किसी भी प्रकार के प्राकृतिक आपदाओं के लिए सक्रीय रहती है और साथही-साथ बचाव एवं राहत कार्य के लिए अपनी तत्पर्ता का प्रदर्शन करती है।

निष्कर्ष एवं प्राकृतिक आपदा से बचने के उपाय।

प्राकृतिक आपदायें प्रकृति के परिवर्तन का एक आधार है, जिसकी उपस्तिथि को हम देश-दुनिया से कम कर सकतें हैं लेकिन उसे खत्म नहीं कर सकतें हैं। Prakritik Aapda से बचने के लिए हम कुछ निवारक उपाय का उपयोग कर सकतें हैं, जैसे:-

  • बाढ़ आने पर किसी सुरक्षित ऊँचे स्थान पर चलें जाएँ साथ में जरुरत का सामान भी ले जाएँ (पानी, टॉर्च, डंडा, खाने की सुखी चीजें) और जो जरुरी वस्तुएं हैं उन्हें भी किसी सुरक्षित स्थान पर विस्थापित करें।
  • भूकंप की परिस्थिति में स्वयं के साथ अपने परिवार वालों को भी खुली स्थान पर लेकर जाएँ अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं तो किसी मेज के निचे छिपने की कोशिश करें।
  • चक्रवात जैसी घटनाओं से बचने के लिए स्वयं को समुद्र तट से दूर किसी सुरक्षित स्थान पर रखने की तैयारी कर लें, जिससे तूफ़ान आने से पहले आपके पास बचने का सही विकल्प हो और मौसम विभाग की जानकारी को आप ध्यान पूर्वक सुनते रहें।
  • सूखे और आकाल की समस्या से बचने के लिए वर्षा के जल को संचय करके रखना चाहिए, जहाँ अधिक मात्रा में लोग सूखे जैसी परिस्थितियों का सामना करतें हैं वहां अधिक से अधिक पेड़-पौधों का रोपण करना चाहिए।
  • भूस्खलन की घटना के वक़्त आप जितनी जल्दी हो सके अपने वहां से बाहर निकलने की कोशिश करें और सेफ्टी किट भी अपने साथ रखें। अगर आपका घर पहाड़ी क्षेत्र में है तो अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें जिससे भूस्खलन जैसी परिस्थिति उत्पन्न ना हो।

तो कुछ ऐसी बातों का ध्यान रखते हुए हम अपने आप को और दूसरों को किसी भी prakritik aapda के खतरे से बचा सकतें हैं और साथ-ही-साथ यह भी ध्यान रखें की प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए यह निवारक उपाय आप दूसरों को भी बताएं।

दोस्तों, आज का आर्टिकल भारत में प्राकृतिक आपदा के बारे में चर्चा करके आपको कैसा लगा आप भी अपनी राय निचे कमेंट करके अवश्य बताएं।

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आपदाओं और आपदा प्रबंधन के उपाय | Disasters Management Measures in Hindi

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आपदा प्रबन्धन कई स्तर पर होते हैं

केन्द्रीय स्तर पर आपदा प्रबन्धन - उच्च अधिकार प्राप्त समिति (एच.पी.सी.) ने राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक एवं प्रभावी आपदा प्रबन्धन व्यवस्था व आपदा प्रबन्धन मन्त्रालय कठिन किया जाए जो कि बाढ़ में एन.सी.सी.एम. जैसे केन्द्रों और प्राधिकरणों सहित उचित सहायक निकायों का गठन कर सकता है अथवा सहायता के लिये वर्तमान केन्द्रों का उपयोग हो सकता है। आपदा प्रबन्धन हेतु केन्द्र सरकार द्वारा जो सर्वदलीय समिति का गठन किया गया है उसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। इस योजना के संचालन हेतु एवं वैज्ञानिक एवं तकनीकी सलाहकार समिति भी उसकी सहायता करेगी। राज्य स्तर पर आपदा प्रबन्धन - हमारे देश में राष्ट्रीय आपदाओं से निपटने की जिम्मेदारी अनिवार्य रूप से राज्यों की है। केन्द्र सरकार की भूमिका भौतिक एवं वित्तीय संसाधनों की सहायता देने की है। अधिकतर राज्यों में राहत आयुक्त हैं जो अपने राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में राहत एवं पुनर्वास कार्यों के प्रभारी हैं तथा पूर्ण प्रभारी मुख्य सचिव होता है तथा राहत आयुक्त उसके निर्देश एवं नियन्त्रण में कार्य करते हैं। आपदा के समय प्रभावित लोगों तक पहुँचने के प्रयासों में सम्मिलित करने के लिये राज्य सरकार, गैर सरकारी संगठनों तथा अन्य राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय संगठनों को आमन्त्रित करती है। जिलास्तर पर आपदा प्रबन्धन - आपदा प्रबन्धन हेतु सभी सरकारी योजनाओं और गतिविधियों के क्रियान्वयन के लिये जिला प्रशासन केन्द्र बिन्दु है। कम से कम समय में राहत कार्य चलाने के लिये जिला अधिकारी को पर्याप्त अधिकार दिये गये हैं। प्रत्येक जिले में आने वाली आपदाओं से निपटने के लिये अग्रिम आपात योजना बनाना जरूरी है तथा निगरानी का अधिकार जिला मजिस्ट्रेट को है।

आपदा प्रबन्धन में महत्त्वपूर्ण क्षेत्र

1. संचार- संचार आपदा प्रबन्धन में अत्यधिक उपयोगी हो सकता है। संचार साधनों के माध्यम से जागरुकता, प्रचार-प्रसार तथा आपदा प्रतिक्रिया के समय आवास सूचना व्यवस्था के माध्यम से काफी सहायक हो सकता है। 2. सुदूर संवेदन- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी आपदा के प्रभाव को कारगर ढंग से करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इसका उपयोग- 1. शीघ्र चेतावनी रणनीति को विकसित करना 2. विकास योजनाएँ बनाने एवं लागू करने में 3. संचार और सुदूर चिकित्सा सेवाओं सहित संसाधन जुटाने में 4. पुनर्वास एवं आपदा पश्चात पुननिर्माण में सहायता हेतु किया जा सकता है। 3. भौगोलिक सूचना प्रणाली - भौगोलिक सूचना प्रणाली सॉफ्टवेयर भूगोल और कम्प्यूटर द्वारा बनाए गए मानचित्रों का उपयोग, स्थान आधारित सूचना के भण्डार के समन्वय एवं आकलन के लिये रहता है। भौगोलिक सूचना प्रणाली का उपयोग वैज्ञानिक जाँच, संसाधन प्रबन्धन तथा आपदा एवं विकास योजना में किया जा सकता है। आपदा नियन्त्रण में व्यक्ति की भूमिका - भूकम्प, बाढ़, आंधी, तूफान में एक व्यक्ति क्या प्रबन्धन कर सकता है। इसका आपदा के सन्दर्भ में निम्नलिखित भूमिका सुझायी गई है- भूकम्प के समय व्यक्ति की भूमिका - ऐसे समय में बाहर की ओर न भागें, अपने परिवार के सदस्यों को दरवाजे के पास टेबल के नीचे या यदि बिस्तर पर बीमार पड़े हों तो उन्हें पलंग के नीचे पहुँचा दें, खिड़कियों व चिमनियों से दूर रहें। घर से बाहर हों तो इमारतों, ऊँची दीवारों या बिजली के लटकते हुए तारों से दूर रहें, क्षतिग्रस्त इमारतों में दोबारा प्रवेश न करें। भूकम्प का भी पूर्वानुमान लग सकेगा - टी.वी. रेडियो, इन्टरनेट से जहाँ तक सम्भव हो जुड़े रहें, अधिक वर्षा और अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान के बाद अब भूकम्प की भी भविष्यवाणी की जा सकेगी लेकिन इसका पता कम्प्यूटर पर काम कर रहे व्यक्ति को सिर्फ कुछ सेकेण्ड पहले ही लग सकेगा। कैलीफोर्निया इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, यू.एस. ज्योलॉजीकल सर्वे तथा कैलीफोर्निया के खनिज और भू-भागीय विभाग के भूकम्पशास्त्री लगातार भूकम्प की ऑन लाइन पर भविष्यवाणी कर सकने की कोशिश कर रहे हैं। यह आपातकाल में ऐसे आंकड़े भेजेगा। जिससे कम्प्यूटर यूजर्स तक इमेल भेजा जा सकेगा। ट्राइनेट का लक्ष्य है कि 600 शक्तिशाली गति सेंसर और 150 बड़े इंटरनेशनल मिलकर आने वाली भूकम्पों के बारे में लोगों को सूचित करें। अगर ट्राइनेट अपने प्रस्तावित कार्य को करने में समर्थ हुआ तो कैलिफोर्निया भूकम्प क्षेत्र का निरीक्षण कर सकने वाला पहला राज्य होगा इस प्रकार भूकम्प का पूर्वानुमान लगाने की क्षमताएँ विकसित हो चुकी हैं। संक्षेप में कैलीफोर्निया के खनिज और भूगर्भीय विभाग के प्रमुख जिम डेविड कहते हैं कि सेंसर पृथ्वी थरथराने जैसे घटना के तुरन्त बाद कम्प्यूटर के जरिए सूचना देने में सक्षम होगा। वाहन में हो - यदि कार या बस में सवारी करते समय आपको भूकम्प के झटके महसूस हों तो चालक से वाहन को एक तरफ करके रोकने को कहें, वाहन के भीतर ही रहें। घरों में हो - जितनी जल्दी हो सके चूल्हे आदि सभी तरह की आग बुझा दें, हीटर बन्द कर दें, यदि मकान क्षतिग्रस्त हो गया हो तो बिजली, गैस व पानी बन्द कर दें। यदि घर में आग लग गई हो और उसे तत्काल बुझाना सम्भव न हो तो तत्काल निकलकर बाहर जायें। यदि गैस बन्द करने के बाद भी गैस के रिसाव का पता चले तो घर से फौरन बाहर चले जायें। पानी बचायें आपातकालीन स्थिति के लिये सभी बर्तन भरकर रख लें। पालतू जानवरों को खोल दें। बाढ़ के समय व्यक्ति की भूमिका - बाढ़ की पूर्व सूचना और सलाह के लिये रेडियो सुनें। यदि आपको बाढ़ की चेतावनी मिल गयी हो या आपको बाढ़ की आशंका हो तो बिजली के सभी उपकरणों के कनेक्शन अलग कर दें तथा अपने सभी मूल्यवान और घरेलू सामान कपड़े आदि को बाढ़ के पानी की पहुँच से दूर कर दें। खतरनाक प्रदूषण से बचने के लिये सभी कीटनाशकों को पानी की पहुँच से दूर ले जायें। यदि आपको घर छोड़ना पड़ जाये तो बिजली व गैस बन्द कर दें। वाहनों, खेती के पशुओं और ले जा सकने वाले सामान को निकट के ऊँचे स्थान पर ले जायें, यदि आपको घर से बाहर जाना पड़े तो घर के बाहरी दरवाजे और खिड़कियाँ बंद कर दें। कोशिश करें की आपको बाढ़ के पानी में पैदल या कार से ना चलना पड़े। बाढ़ग्रस्त इलाकों में अपनी मर्जी से कभी भी भटकते न फिरें। चक्रवात या आंधी तूफान में व्यक्ति की भूमिका - पूर्व सूचना व सलाह के लिये टी.वी., रेडियो सुनें सुरक्षा के लिये पर्याप्त समय निकल जाने दें। चक्रवात कुछ ही घण्टों में दिशा, गति और तीव्रता बदल सकता है और मध्यम हो सकता है। इसीलिये ताजा जानकारी के लिये रेडियो, टी.वी. से निरन्तर सम्पर्क रखें। तैयारी - यदि आपके इलाके में तूफानी हवाओं या तेज झंझावात आने की भविष्यवाणी की गई तो खुले पड़े तख्तों, लोहे की नाली, चादरों, कूड़े के डिब्बों या खतरनाक सिद्ध होने वाले किसी भी अन्य सामान को स्टोर में रखें या कसकर बाँध दें, बड़ी खिड़कियों को टेप लगाकर बंद कर दें ताकि वे खड़खड़ाएं नहीं, निकटतम आश्रय स्थल पर पहुँचें या कोई जिम्मेदार सरकारी एजेन्सी आदि हो तो इलाके को खाली कर दें। जब तूफान आ जाये - घर के भीतर रहें तथा अपने घर के सबसे मजबूत हिस्से में शरण लें टी.वी., रेडियो या अन्य साधनों से दी जाने वाली सूचनाओं का पालन करें। यदि छत उड़ने शुरू हो तो घर की ओट वाली खिड़कियों को खोल दें, यदि खुले में हों तो बचने के लिये ओट लें तूफान के शान्त होने पर बाहर या समुद्र के किनारे न जायें। आमतौर से चक्रवातों के साथ-साथ समुद्र या झीलों में बड़ी-बड़ी तूफानी लहरें उठती हैं तथा यदि आप तटवर्ती इलाके में रहते हों तो बाढ़ के लिये निर्धारित सावधानियाँ बरतें। अवलोकित संदर्भ 1. चौहान, ज्ञानेन्द्र सिंह एवं पाहवा, एस.के. (2013) भारत में आपदा प्रबन्धन, रिसर्च जनरल ऑफ आर्टस, मैनेजमेंट एंड सोशल साइंसेज। 2. रामजी एवं शर्मा, शिवानाथ, प्राकृतिक आपदा-सूखा एवं बाढ़ की समस्या। 3. मामोरिया, चतुर्भुज, भौगोलिक चिन्तन, साहित्य भवन, आगरा। 4. नेगी, पी.एस. (2006-07) पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण भूगोल। 5. पाल, अजय कुमार, आपदा एवं आपदा प्रबन्धन। 6. आपदा प्रबन्धन राष्ट्रीय नीति-2005, भारत सरकार। 7. बवेजा, दर्शन, आपदा प्रबन्धन। 8. अवस्थी, एन.एम., पर्यावरणीय अध्ययन। असिस्टेंट प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभागप्रताप बहादुर पी.जी. कॉलेज, प्रतापगढ़ सिटी, प्रतापगढ़[email protected] प्राप्त तिथि - 31.07.2016 स्वीकृत तिथि-14.09.2016

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प्राकृतिक आपदा पर निबंध

Essay on Natural Disaster in Hindi : प्राकृतिक आपदा वह होती है, जो अपने आप कोई भी संकट आ पड़े। प्राकृतिक आपदाएं बहुत तरह की होती हैं। जैसे भूकंप, सुनामी, बाढ़, भूस्खलन, इत्यादि। हम यहां पर प्राकृतिक आपदा पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में प्राकृतिक आपदा के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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प्राकृतिक आपदा पर निबंध | Essay on Natural Disaster in Hindi

प्राकृतिक आपदा पर निबंध (250 शब्द).

आपदा जो प्रकृति के द्वारा उत्पन्न होती है। उन्हें हम प्राकृतिक आपदाएं कहते हैं। यह कई प्रकार की होती हैं। जैसे बाढ़, भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी फ़टना, अकाल पढ़ना, सूखा पड़ना, भूस्खलन, तूफान, आंधी और भी कई प्रकार की आपदा इसमें शामिल है।

इन पर मनुष्य का कोई भी बस नहीं चलता है, और ना ही ऐसी आपदाओं का आने का हमें विशेष तौर पर पता होता है। जिसके कारण लोगों को बहुत ज्यादा नुकसान होता है। बहुत से लोगों की मृत्यु हो जाती है। बहुत से जान माल की हानी होती है। प्राकृतिक आपदाओं की वजह से अन्य जीव जंतु पशु पक्षी जानवर सभी को बहुत ही ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जिसकी वजह से सभी का जीवन खतरे में आ जाता है क्योंकि यह आपदाएं बिना बताए आती हैं।

कुछ आपदाएं ऐसी होती हैं, जो मानव के द्वारा प्रकट होती हैं, परंतु कुछ आपदाएं ऐसी होती हैं, जो प्रकृति की होती हैं। उनसे हमारा बस नहीं चल सकता है, लेकिन हम इससे बचने के कई उपाय कर सकते हैं। जिनसे हमारा जीवन प्रभावित होने से बचा सके। सरकार आए दिन प्रयत्न करती रहती है, ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए नए-नए काम करती रहती है। जिससे हम प्राकृतिक आपदाओं से बच सकें और हमें भी चाहिए कि हम जितना हो सके इनका ध्यान रखें और सावधानी और समझ के साथ इन आपदाओं का सामना करें।

जितना आजकल धरती को नुकसान हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती जा रही है। उसकी वजह से प्राकृतिक आपदाएं भी बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि जितना यह सब बढ़ेगा उतनी आपदाएं भी आने की संभावना रहेगी। इसीलिए हमें चाहिए कि हम अपने आप को सुधारें और समझदारी के साथ सावधानी के साथ सभी काम करें।

प्राकृतिक आपदा पर निबंध (850 शब्द)

प्राकृतिक आपदा अर्थात ऐसी आपदाएं जो प्रकृति के द्वारा हमें मिलती हैं। जिसकी वजह से धरती पर तबाही मच जाती है। ऐसी आपदाओं को प्राकृतिक आपदा कहा जाता है। यह आपदाएं कई प्रकार की हो सकती हैं, इन आपदाओं की वजह से इंसान को ही नहीं बल्कि जान-माल को भी बहुत नुकसान पहुंचता है।

प्राकृतिक आपदा का सबसे मुख्य कारण है, हमारे द्वारा प्रकृति से खिलवाड़ करना। जिस तरह से लोग जंगलों को खत्म कर रहे हैं, पहाड़ों को तोड़ रहे हैं, धरती को खोखला कर रहे हैं, प्रदूषण बढ़ रहा है, जल, हवा को दूषित किया जा रहा है। इन सभी की वजह से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता ही जा रहा है। जिसकी वजह से हमें प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है।

कुछ सामान्य तौर पर प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार और कारण

प्राकृतिक आपदाएं कई प्रकार की होती हैं। जिसकी वजह से धरती का विनाश हो रहा है। कुछ प्राकृतिक आपदाओं का हमें आए दिन सामना करना पड़ता है। आइए कुछ के बारे में हम बात करते हैं;-

बाढ़ – जब बहुत अधिक वर्षा होती है, जिसकी वजह से नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है, और वह बाढ़ के रूप में उभर जाती है। जिसकी वजह से हमें बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है। इसके कारण लोगों को और जानमाल दोनों को ही नुकसान पहुंचता है। कई लोग इसकी वजह से बेघर हो जाते हैं।

भूकंप – धरती के निचले भाग में जब कंपन होता है। उसके पश्चात धरती की सतह हिलने लगती है। इसकी वजह से भूकंप पर आता है, भूकंप की वजह से बड़े-बड़े मकान इमारतें गिरने लगती हैं, इसकी वजह से हजारों लोगों की मौत हो जाती है।

सुनामी – जब समुद्र के अंदर भूकंप आता है, तो उसकी जल की हलचल बहुत ही ज्यादा तेज हो जाती है। जब अत्यधिक तेज हो जाती है, तो वह सुनामी का रूप ले लेती है। जिसकी वजह से आसपास के इलाकों में तबाही शुरू हो जाती है, और लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।

तूफान एवं चक्रवात – समुंद्र में आने वाले तूफान और चक्रवात की वजह से दुनिया के कई शहर में बाढ़ आ जाती है। जब बिन मौसम अधिक बारिश होती है, तब तूफान और चक्रवात की संभावना बढ़ जाती है, और तेज हवाएं चलने लगती हैं। जिसकी वजह से लोगों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है।

हिमस्खलन – इसका मतलब होता है, बर्फ में तूफान आना। कई बार हमें बर्फीले इलाके में भी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ सकता है। जब ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से बर्फ नीचे गिरने लगती है, तब यह तूफान में बदल जाती है। सबसे बड़ा उदाहरण जम्मू कश्मीर मैं तूफान देखा जाता है।

भूस्खलन – जब ऊंची चट्टानों में पहाड़ों में और विभागों में भारी मात्रा में मिट्टी और पत्थरों का नीचे खिसकना भूस्खलन कहलाता है। जिसकी वजह से लोगों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है।

बादल फटना – जब अधिक मात्रा में बरसात होने लगती है। इसकी वजह से बादल फटने का डर रहता है। इस समय तेज बारिश हो जाती है। जिसकी वजह से बाढ़ की स्थिति भी अक्सर बढ़ जाती है। ऐसा उदाहरण उत्तराखंड में हर साल देखने को मिलता है।

ज्वालामुखी फटना – ज्वालामुखी कैसे होती है, जब धरती में से गर्म लावा निकलता है, इसकी वजह से भारी जनसंख्या में तबाही होती है। लोगों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

सूखा पड़ना / अकाल आना – कई जगहों पर बारिश बहुत ही कम होती है। जिसकी वजह से वहां पर पानी की कमी हो जाती है। सूखा पड़ने लगता है, तालाब नदियों में पानी खत्म हो जाता है, इसी वजह से फसल भी अच्छी नहीं होती है, भुखमरी बढ़ जाती है, ऐसे में लोगों को बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

महामारी फैलना – महामारी बहुत तरह की होती हैं। ऐसे कई वायरस होते हैं, जिनकी वजह से हजारों की संख्या में लोगों की मौत होती है। हाल ही में कोरोनावायरस ऐसा एक वायरस आया है, इसके चलते बहुत से लोगों की मौत हुई है। ऐसी बीमारियों से हमें सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।

प्राकृतिक आपदा मैं फंसे लोगों को कैसे बचाया जा सकता है

 प्राकृतिक आपदा को रोका तो नहीं जा सकता है, परंतु इसमें कई लोग बेघर हो जाते हैं। उन्हें हमें बचाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए प्रबंधन बनाए जाते हैं। जिसके चलते यह प्रयत्न करते हैं कि जान माल की हानि कम हो। लोगों की मदद की जाए, जो लोग आपदा में फंस जाते हैं, उनके लिए योजनाएं बनाई जाती हैं। प्रयास किए जाते हैं, जिससे उनको बचाया जा सके।

जहां पर आपदा आई होती है, वहां पर यही प्रयत्न किया जाता है, कि लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाए। लोगों तक जरूरी वस्तुएं पहुंचाई जाए। लोगों को फिर से नया जीवन दिया जाए। फंसे हुए लोगों की जितनी हो सके अधिक से अधिक मदद की जाए। उनके अधिकतर यही प्रयास रहते हैं।

प्राकृतिक आपदा से कैसे बचे

  • अधिकतर नदियों में बाढ़ आने की संभावना ज्यादा होती है, इसलिए हमें अपना निवास स्थान नदियों के पास नहीं बनाना चाहिए।
  • हमें यह नहीं पता होता है, कि भूकंप आने वाला है। इसीलिए हमें चाहिए कि, हम अपने मकान को भूकंप विरोधी बनाएं।
  • कोई भी प्राकृतिक आपदा अगर अचानक से आ जाए तो, इसके लिए हम एक किट तैयार रखनी चाहिए। जिसमें हमें जरूरत का सामान रखना चाहिए, जैसे कि फोन नंबरों की सूची, दवाइयां, टॉर्च, कंबल, कुछ कपड़े इत्यादि चीजों को समेट कर रखना चाहिए।
  • अगर आप समुद्री तट के पास रह रहे हैं, तो आपको चाहिए कि, आप ऐसे खिड़कियां दरवाजे बनाएं कि, अगर कोई भी आपातकालीन स्थिति हो तो आप वहां से निकल सके।

जिस तरह से मानव का बस नहीं चलता है, प्राकृतिक आपदाओं पर, उस तरह से हमें उतनी ही सावधानी बरतने की आवश्यकता है। अगर हम प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, तो अपने आप ही प्राकृतिक आपदाएं कम हो जाएंगे। जिससे हम को बहुत बड़ी राहत मिल सकती है। इसीलिए हमें चाहिए कि, हम ध्यान रखें और अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाए। जिसकी वजह से किसी को भी दिक्कत ना हो और परेशानी का सामना ना करना पड़े, इसके लिए हमें निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

आज के हमारे इस लेख में हमने आपको प्राकृतिक आपदा पर निबंध ( Essay on Natural Disaster in Hindi ) के बारे में बताया है। आशा करते हैं, कि आप भी इसी तरह से सावधानियां बरतकर अपने आप को सुरक्षित रखेंगे। अगर आपको इससे संबंधित कोई और प्रश्न पूछना है, तो आप कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं। हम आपकी पूरी सहायता करने की कोशिश करेंगे।

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  • बारिश पर निबंध
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प्राकृतिक आपदा परिभाषा प्रकार कारण और प्रबंधन | Natural Disaster In Hindi

प्राकृतिक आपदा परिभाषा प्रकार कारण और प्रबंधन Natural Disaster Definition Types Cause and Rescue And Relief In Hindi : नमस्कार दोस्तों आज के लेख में आपका स्वागत हैं.

आज हम प्राकृतिक आपदा के इस आर्टिकल में जानेगे कि नेचुरल डिजास्टर क्या है इसका अर्थ परिभाषा प्रकार और प्रबंधन के उपायों के बारे में जानेगे.

प्राकृतिक आपदा परिभाषा प्रकार कारण प्रबंधन Natural Disasters In Hindi

प्राकृतिक आपदा परिभाषा प्रकार कारण प्रबंधन Natural Disasters In Hindi

उत्पति के आधार पर आपदाएं दो तरह की होती है. प्राकृतिक आपदाएं और मानव जनित आपदाएं. इन दोनों आपदाओं से अपार मात्रा में जन धन की हानि होती है. इस क्षति से बचाव, सुरक्षा व प्रबंध की दृष्टि से दोनों आपदाओ के प्रभाव को सिमित किया जा सकता है.

प्राकृतिक आपदा क्या है (What Is Natural Disaster In Hindi)

परिवर्तन प्रकृति की सतत प्रक्रिया है, ऐसा परिवर्तन जिनका प्रभाव मानव हित में होता है उन्हें प्रकृति का वरदान कहा जाता है. लेकिन परिवर्तनों का प्रभाव मानव समाज का अहित करता है तो इन्हें प्राकृतिक आपदा कहा जाता है.

प्राकृतिक आपदा प्रकृति में कुछ ही समय घट जाने वाली घटना या परिवर्तन है. ऐसी घटनाओं के घट जाने के बाद मानव समाज को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, वे समस्याएं संकट मानी जाती है.

भारत में प्राकृतिक आपदा Natural Disasters In India In Hindi

आपदा प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों का परिणाम है जो जान और माल की गंभीर क्षति करके अचानक सामान्य जीवन को उस सीमा तक अस्तव्यस्त करता है.

जिसका सामना करने के लिए उपलब्ध सामाजिक तथा आर्थिक संरक्षण कार्यविधियां अपर्याप्त होती हैं अर्थात आशंकित विपत्ति का वास्तव में घटित होना आपदा है I

आपदा का अंग्रेज़ी शब्द “Disaster” फ़्रांसीसी शब्द है जो “Desastre” से आया है I यह दो शब्दों ‘Des’ एवं ‘Astre’ से बना है जिसका अर्थ है ‘ख़राब तारा’ I आपदा के अंग्रेजी शब्द ‘DISASTER’ का प्रत्येक अक्षर नकारात्मक और सकारात्मक अर्थ व्यक्त करता है.

आपदा आंतरिक और बाहरी कारकों के कारण प्रभाव से उत्पन्न होती है ,जो संयुक्त होकर घटना को भारी विनाशकारी घटना के रूप में परिवर्तित करती है I आपदा ‘संतुलन’ का बिगड़ना है जिसे नियंत्रणकारी नीतियों से पुनःस्थापित किया जा सकता है या दूर किया जा सकता है I

‘हॉफमैन’ और ‘ओलिवर स्मिथ’ के अनुसार ‘आपदा के व्यवस्था दृष्टिकोण ‘ के तहत आपदाओं के पारिस्थितिक और सामाजिक दृष्टिकोण को शामिल किया जाता है ,जहाँ आपदाओं को ऐसी सम्पूर्ण घटनाएँ माना जाता है.

जिनमें उस सामाजिक – संरचनात्मक रूपों के सभी आयामों का संगठित मानव क्रिया सहित पर्यावरणीय सन्दर्भ में शामिल करके जहाँ ये घटित होती है, अध्ययन किया जाता है I

आपदाओं का वर्गीकरण (natural disasters  types)

उत्पत्ति के अनुसार आपदाएं प्राकृतिक और मानव निर्मित होती हैं I प्राकृतिक आपदाओ को निम्नलिखित विभिन्न प्रकारों के रूप में देखा जा सकता है :-

1. वायुजनित आपदा – तूफान, चक्रवाती पवन, चक्रवात, समुद्री तूफानी लहर | 2. जलजनित आपदा – बाढ़, बादल का फटना, सुखा | 3. धरती जनित आपदा – भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी, भूस्खलन | 4. संक्रामक रोग – प्लेग, डेंगु, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि |

वही मानव जनित आपदाओं के अंतर्गत औद्योगिक दुर्घटना, पर्यावरणीय ह्रास, विभिन्न युध्द, आतंकी गतिविधियों आदि को शामिल किया जा सकता है |

वर्तमान समय में धर्म और जिहाद के नाम पर अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु दहशत फ़ैलाने के उद्देश्य से विभिन्न आतंकवादी घटनाएँ एक महत्वपूर्ण मानवनिर्मित आपदा के रूप में सामने आई है |

इसके साथ युध्द के के विभिन्न रूपों के अंतर्गत जैविक युध्द के लिए अनुकूल वातावरण में विभिन्न जीवाणु और विषाणुओं के साथ साथ घातक कीटों का संवर्धन कर उन्हें डिब्बो में बंद कर शत्रु कैम्पों पर विमान से छोड़ दिया जाता है जो अंततः पर्याप्त क्षेत्र में फैलकर महामारी का रूप ले लेता है I

इसी प्रकार रसायन युध्द के तहत विषैली गैसों, बम, और क्लस्टर बम को शत्रु कैम्पों पर छोड़ा जाता है I वहीँ कुछ आपदाएं कंपनियों के संयंत्रों में लापरवाही या दोषपूर्ण रखरखाव के कारण होती है जिन्हें पर्यावरणीय त्रासदी कहा जाता है ,जैसे – भोपाल गैस त्रासदी, चेर्नोबिल नाभकीय आपदा, फुकुशिमा नाभकीय रिसाव आदि प्रमुख है I

अगस्त 1999 में जे. सी. पंत की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई थी जिसने लगभग तीस आपदाओं का निर्धारण किया और ये पांच श्रेणियों में वर्गीकृत हैं-

जल और जलवायु (Water and Climate) –

  • ओलावृष्टि (Hailstorms)
  • बादल का फटना (Cloudburst)
  • लू/ उष्ण्वेग और शीत लहर (Heat Wave and Cold Wave)
  • हिम सम्पात (Snow Avalanches)
  • सूखा (Droughts)
  • समुद्री अपरदन (Sea Erosion)
  • मेघ गर्जन और बिजली (Thunder and Lighting)

जैविक (biological) –

  • महामारी (Epidemics)
  • विनाशकारी कीटों का आक्रमण (Pest Attack)
  • पशु महामारी (Cattle Epidemics)
  • खाद्य विषाक्तता (Food Poisoning)

रासायनिक , औद्योगिक और आणविक (Chemical, Industrial and Nuclear) –

  • रासायनिक और औद्योगिक आपदाएँ
  • आणविक आपदाएँ

भूवैज्ञानिक (Geological) –

  • विशाल अग्निकांड
  • खान/सुरंग अग्निकांड (Mine Fires)
  • भूस्खलन और पंक प्रवाह (Landslides and Mudflows)

दुर्घटनाएं (Accidental) –

  • हवाई, सड़क और रेल दुर्घटनाएँ
  • बड़े भवनों का ढह जाना

प्राकृतिक आपदाओं की उत्पति के कारण (Causes Of Natural Disasters In Hindi)

किसी भी प्राकृतिक आपदा के लिए एक नही अनेक कारण सयुक्त रूप से जिम्मेदार होते है. पृथ्वी की आंतरिक एवं बाह्य शक्तियों अथवा बलों का प्रभाव कुछ आपदाओं को सीधे तौर पर प्रभावित करता है, जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी आदि.

मानव के अनवरत प्राकृतिक संसाधनो के अविवेक पूर्ण विदोहन तथा बढ़ती हुई जनसंख्या ने भूमि उपयोग के स्वरूप को विकृत किया है.

इसके फलस्वरूप वनों का विनाश, भूमि का क्षरण व जल संकट जैसी समस्याओं ने पर्यावरण को संकट में डाल दिया है. इससे ग्लोबल वार्मिग की समस्या पैदा होती जा रही है. जो कही न कही प्राकृतिक आपदाओं को उत्पन्न कर रही है.

मानव जीवन के उपभोक्तावादी दृष्टिकोण ने अंधाधुंध विकास के लिए प्राकृतिक संतुलन को हानि पंहुचा रहा है. मानव के ये कार्य प्राकृतिक आपदाओं को प्रत्यक्ष रूप से आमन्त्रण दे रहे है.

प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार (Types Of Natural Disasters In Hindi)

उत्पति के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है.

  • स्थलाकृतिक आपदाएं (Topographical disasters) – इनमे वे प्राकृतिक आपदाएं सम्मिलित की जाती है. जो स्थलाकृतिक स्वरूप में अचानक परिवर्तन होने से उत्पन्न होती है, जैसे भूकंप, भूस्खलन, हिमस्खलन व ज्वालामुखी. भारत में ज्वालामुखी सक्रिय नही है.
  • मौसमी आपदाएं (Seasonal disasters) – इनमे वे  प्राकृतिक आपदाएं सम्मिलित की जाती है. जो मौसमी परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है. जैसे चक्रवात, सुनामी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि.
  • जीवों द्वारा उत्पन्न आपदाएं (Disasters caused by organisms)- इनमे वे प्राकृतिक आपदाएं सम्मिलित की जाती है जो जीवों व जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होती है. जैसे टिड्डी दल का आक्रमण, महामारिया, मृत पशु, प्लेग मलेरिया आदि.

प्राकृतिक आपदाएं व प्रबन्धन (Natural Disasters And Management In Hindi)

प्रबन्धन से आशय है संकट से राहत पाने के लिए प्रत्येक स्तर पर जो जिम्मेदारी निर्धारित है उसके अनुसार समयबद्ध कर्तव्य का पालन किया जाना.

देश व समाज के चरित्र का परिचय प्राकृतिक आपदा के बाद मानव सेवा में उनके द्वारा किये गये कार्यों से मिलता है. प्रबन्धन को ये कारक प्रभावित करते है.

  • आर्थिक स्थति
  • व्यक्ति की सकारात्मक सोच
  • सहयोग की भावना
  • सामाजिक ईमानदारी व निष्ठा
  • भौगोलिक परिस्थतियाँ
  • परिवहन व संचार के साधनों की स्थति
  • जनसंख्या का घनत्व

भारत की प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं (Major Natural Disasters In India In Hindi)

कश्मीर बाढ़ (kashmir flood 2014) .

2014 कश्मीर के बड़े क्षेत्र में तेज बारिश के चलते बहुत बड़ी प्राकृतिक आपदा बाढ़ के रूप में आई. इस घटना में लगभग 500 से ज्यादा लोग मारे गये. तथा हजारों लोगों के घर बह गये. कई दिनों तक लोगों को बिना पानी भोजन तथा घर के रहना पड़ा.

बड़ी संख्या में लोग जगह जगह फंस गये, जिन्हें निकालने का कार्य भारतीय सेना द्वारा सम्पन्न की गई, इस अतिशय घटना के नुकसान का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है.

कि इस बाढ़ के दौरान 2600 गाँव बाढ़ से प्रभावित हुए थे। कश्मीर के 390 गाँव पूरी तरह से जलमग्न हो गए थे। तथा 50 से अधिक पुल ध्वस्त गये. एक सर्वेक्षण के अनुसार 5000 करोड़ से 6000 करोड़ का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा.

उत्तराखंड में भयानक बाढ़ 

साल 2013 में आई इस प्राकृतिक आपदा के दौरान गोविंदघाट, केदार धाम, रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी नेपाल मुख्य रूप से प्रभावित क्षेत्र रहे. इस महाध्वश में पांच हजार से अधिक लोग मारे गये थे.

उत्तराखंड में गंगा नदी में बाढ़ और अतिरिक्त जल के चलते बाढ़ और भूस्खलन का शिकार कई गाँवों को शिकार होना पड़ा. इस बाढ़ की विभित्षा के बारे में अनुमान लगाने के लिए यह तथ्य काफी है,

कि 14 से 17 जून, 2013 को चार दिनों तक तबाही का तांडव मचाए रखा. भारत के इतिहास की सबसे बड़ी इस प्राकृतिक आपदा की चपेट में लाखों केदारनाथ यांत्रि भी आ गये थे.

हिंद महासागर सुनामी

साल 2004 में आई इस सुनामी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका, इंडोनेशिया के क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी तबाही थी.

10 मिनट चले इस मौत के तांडव में तीन लाख से अधिक लोग मौत की भेट चढ़ गये. इस खतरनाक तूफ़ान का केंद्र हिन्द महासागर रहा इसकी तीव्रता 9.1 और 9.3 के मध्य मापी गई.

प्राकृतिक आपदाओं से खतरे में जीवन | Effects of Natural Disasters In Life in hindi

एक तरफ जहाँ विश्व कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से जूझ रहा है वहीँ दूसरी तरफ अंधाधुन विकास के कारण मानव प्रकृति पर ध्यान नहीं दे रहा जिससे समस्त प्राणियों को हो रही प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा।

भारत भी इन प्राकृतिक आपदाओं से अछूता नहीं है तभी तो भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में धरती हिल रही है, कभी स्थिति ऐसी उत्पन्न हो जाती हैं की गांव के गांव बाढ़ से डूबने को मजबूर हो जा रहे हैं, कभी आकाशीय बिजली से लोगों को अपनी जान से हाथ तक धोना पड़ रहा है.

कभी निसर्ग और अम्फान जैसे तूफान भारत के अलग-अलग इलाकों में आकर तबाही मचा रहे हैं, अधिकायत मात्रा में ओला-वृष्टि हो जाने से किसानों को फ़सलों के खराब हो जाने से नुकसान उठाना पड़ रहा हैं.

कहीं इतनी बारिश हो रही है की लोगों के घर भी पानी से लबालब भर चुके हैं तो कभी टिड्डियों का दल किसानों की फ़सलों को नष्ट कर रहा है। ये विकास की आपाधापी में भूल चुके प्रकृति का तांडव मात्र है।

एक आकड़ों के अनुसार प्रथम जून से लेकर 8 जुलाई तक कुल 56 बार दिल्ली एनसीआर, मेघालय, म्यांमार सीमा, असम, कश्मीर, गुजरात और भारत के विभिन्न इलाकों में भिन्न-भिन्न दिनांकों को भूकंप से धरती काँपती रही।

भूकंप के लिहाज से सबसे खतरनाक जोन 5 और 4 में आते हैं। जोन पाँच बहुत उच्च नुकसान का जोखिम क्षेत्र जिसमें कश्मीर का क्षेत्र, पश्चिमी और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रण और अंडमान और निकोबार समूह इस क्षेत्र में आते हैं।

जोन चार जहाँ जोन पाँच से कम तीव्रता के भूकंप आते हैं जिसमें जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, भारत के मैदानी भागों (उत्तरी पंजाब, चंडीगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी बंगाल, सुंदरवन) और दिल्ली – एनसीआर का क्षेत्र आता है, जोन चार में रिक्‍टर पैमाने पर आठ तीव्रता वाला भूकंप आ सकते हैं।

वही सिर्फ दिल्ली एनसीआर में अप्रैल से लेकर अब तक 15 से ज्यादे बार भूकंप आ चुके हैं। 80 मौसम तथा भू-वैज्ञानिकों ने पूर्वी दिल्ली में शोध कर एक रिपोर्ट तैयार की जिसमें बताया की घनी आबादी वाले यमुना-पार समेत शाहदरा, मयूर विहार और लक्ष्मी नगर ज्यादे संवेदनशील इलाके हैं।

फ़रीदाबाद और गुरुग्राम भी ऐसे ही क्षेत्र में आते हैं। विशेषज्ञों की माने तो पूर्वी दिल्ली में बने लगभग हर घर अधिक तीव्रता वाले भूकंप की जद में आ सकते हैं, जिससे पूर्वी दिल्ली में अधिक नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। बिहार के भारत और नेपाल की सीमा के पास रक्सौल जैसे क्षेत्र भी जोन नंबर 4 में ही आते हैं।

देखना दिलचस्प होगा कि दिन प्रतिदिन बढ़ती भूकंप की संख्याओं से केंद्र सरकार एवं अन्य राज्य सरकारें कितनी तैयारियाँ करती हैं, जिससे बड़े गंभीर परिणाम भुगतने ना पड़े।

प्रत्येक साल स्थिति ऐसी उत्पन्न होती है जिससे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, गुजरात और असम में जुलाई, अगस्त में बाढ़ के प्रकोप कई गावों तथा शहरों को लील लेते हैं।

बाढ़ का सबसे ज्यादे प्रकोप आज़ादी के बाद 1987 में हुआ जब 1399 लोगों की दुखद मृत्यु हुई थी। 1988 में भी पंजाब की सभी नदियों के बढे जल-स्तर से आयी बाढ़ ने भी अपना अच्छा प्रकोप छोड़ा था।

1993 में आयी बाढ़ ने भारत के कुल सात-आठ राज्य बाढ़ की जद में आये जिसने 530 लोगों को अपने आगोश में लील लिया। प्रकृति का बीसवीं सदी से ज्यादे तांडव इक्कीसवीं सदी में देखने को मिला जब 26 जुलाई 2005 को मुंबई में मात्र बारिश होने से 1094 लोग मर गए थे।

उसके बाद बाढ़ और भारी बारिश से लोगों के मरने का सिलसिला हर साल जारी है। 2013 में आयी बाढ़ ने उत्तराखंड में ऐसी तबाही मचाई जिसे लोग सदियों तक नहीं भूल सकते, जिसमें लगभग 5700 लोगों ने अपनी जान गँवाई,

अनगिनत पशु पक्षियों को भी इस ताण्डवकारी बाढ़ में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। गुजरात तथा तमिलनाडु में 2015 में आयी बाढ़ ने भी खूब तबाही मचाई।

असम में आयी बाढ़ ने 2016 में 1800 परिवारों को बेघर कर दिया था, सैकड़ों लोग मरे थे। 2017 में गुजरात में आयी बाढ़ से 200 लोग मरे फिर 2018 में केरल में आयी बाढ़ से 445 लोगों की दुखद मृत्यु हुई।

वहीँ 2019 में भारत के विभिन्न राज्यों में आयी बाढ़ से लगभग 1900 लोगों को अपनी जान से जान धोना पड़ा था, जिसमें से 382 लोग तो सिर्फ महाराष्ट्र से थे। देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र एवं राज्य की सरकारें 2020 को बाढ़ के प्रकोप से बचा पाने में कितनी सफल होंगी ये वक़्त ही बताएगा।

वहीँ आकाशीय बिजली गिरने से हर साल लोगों के मरने की दुखद घटना सुनने को मिलती है। आकाशीय बिजली गिरने की घटना इस साल भी बीते दिनों बिहार, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान से सुनने को मिली

जिसमें बिहार से 83 लोग तथा उत्तर प्रदेश से 24 लोग की मृत्यु एक दिन में ही हो गयी। इसीलिए जरूरी हो चला हैं कि सरकारें लोगों को आकाशीय बिजली से बचने का उपाय बताये।

विकास कि चकाचौंध में इंसान अँधा हो चुका, जिसने प्रकृति को ही नजर अंदाज़ कर दिया है। जिससे नज़रअंदाज़ हो रही प्रकृति भी अपने रौद्र रूप में तांडव कर रही है। मई 2019 में आये फैनी तूफान ने ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका में खूब तबाही मचाई थी जिससे 81 मौतें और 8.1 बिलियन का नुकसान हुआ था।

फैनी तूफान के ठीक बाद जून 2019 में आए वायु तूफान ने भारत, पाकिस्तान, ओमान और मालदीव में तबाही मचाई थी जिससे 8 मौतें और करोड़ो का नुकसान हुआ था।

इस साल 16 मई को आए अम्फान तूफान ने भी भारत के पूर्वोत्तर राज्य (पश्चिम बंगाल, ओडिशा, अंडमान), बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान में खूब तबाही मचाई जिसमें 128 जानें गयी 13.6 बिलियन का नुकसान हुआ।

वही 1 जून को आए निसर्ग तूफान ने भी महाराष्ट्र में अपना रौद्र रूप दिखाया जिसमें 6 लोगों कि जानें गयी। उधर पाकिस्तान में पनपे टिड्डियों के समूह ने भारत के उत्तरी राज्यों पर खूब कहर बरपाया जिससे बहुतायत मात्रा में किसानों के द्वारा डाले गए धान के बीज नष्ट हो गए।

इन टिड्डियों के समूह को अपने जिले से भागने के लिए प्रशासन को खूब मसक्कत करनी पड़ी। कहीं फायर बिग्रेड के द्वारा दवाइयों का छिड़काव करवाया जा रहा है तो कहीं घंटी, थाली बजा कर ध्वनि द्वारा टिड्डियों को भगाने की कोशिश की जा रही है।

वहीँ कुछ जिले में प्रशासन द्वारा ड्रोन के माध्यम से दवाइयों का छिड़काव कर टिड्डियों को भगाने की कोशिश अनवरत जारी है।

मानव विकास में इतना डूब चुका हैं कि उसे प्रकृति के बारे में कुछ भी सूझ नहीं रहा है, जिससे होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से जीवन खतरे में पहुंच गया है। आज के समय में मानव पूर्वजों के ज़माने कि उपजायी हरियाली को मिटा आलीशान बंगले बनवा लेने को विकास समझ बैठा है। 

जिन पेड़ों से हमारा तथा पशु, पक्षियों का जीवन है उसे मिटा हम मानव प्राकृतिक घटनाओं से निपटने कि योजनाओं को बनाने कि बजाय दूसरे ग्रहों पर जीवन ढूढ़ने के प्रयास में लगे हुए हैं।

जरुरत है सरकार विकास के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए समय रहते आवश्यक कदम उठाये एवं उचित योजनाएं बनायें।

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प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ notes, Class 11 geography chapter 7 notes in hindi

11 class geography – ii chapter 7 प्राकृतिक आपदाएं और संकट notes in hindi natural hazards and disaster.

NCERT
Class 11
Geography 2nd Book
Chapter 7
Class 11 Geography Notes in Hindi
Hindi

प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ notes, Class 11 geography chapter 7 notes in hindi जिसमे हम आपदा , आपदा निवारण और प्रबन्धन , चक्रवातीय आपदा , सूखा , भूकम्प , सुनामी , भू – स्खलन आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 11 Geography – II Chapter 7 प्राकृतिक आपदाएं और संकट Natural Hazards and Disaster Notes In Hindi

📚 अध्याय = 7 📚 💠 प्राकृतिक आपदाएं और संकट 💠

❇️ परिचय :-

🔹 प्रकृति और मानव का आपस में गहरा सम्बन्ध है । प्रकृति ने मानव जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है । 

🔹 जो प्रकृति हमें सब कुछ प्रदान करके खुशियां देती हैं कभी – कभी उसी का विकराल रूप हमें दुखी कर देता है । 

🔹 धरती का धंसना , पहाड़ों का खिसकना , सूखा , बाढ़ , बादल फटना , चक्रवात , ज्वालामुखी विस्फोट , भूकम्प , समुद्री , तूफान , सुनामी , आकाल आदि अनेक प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य को समय – समय पर हानि उठानी पड़ी है । 

🔹 परिवर्तन प्रकृति का नियम है । यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है ।

🔹 कुछ परिवर्तन अपेक्षित व अच्छे होते है । तो कुछ अनपेक्षित व बुरे होते है । प्राकृतिक आपदाओं का मनुष्य पर गहारा प्रभाव पड़ता है । इससे होने वाली हानियाँ तथा इनसे बचाव के उपायों तथा नुकसान को कम करने के उपायों के बारे में जानना आवश्यक है ।

❇️ आपदा :-

🔹 आपदा प्रायः एक अनपेक्षित घटना होती है , जो ऐसी ताकतों द्वारा घटित होती है , जो मानव के नियंत्रण में नहीं हैं । यह थोड़े समय में और बिना चेतावनी के घटित होती है जिसकी वजह से मानव जीवन के क्रियाकलाप अवरुद्ध होते हैं तथा बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान होता है । 

❇️ प्राकृतिक आपदा तथा संकट में अन्तर :-

🔹 प्राकृतिक आपदा तथा संकट में बहुत कम अन्तर है । इनका एक – दूसरे के साथ गहरा सम्बन्ध है । फिर भी इनमें अन्तर स्पष्ट करना अनिवार्य है ।

🔹 प्राकृतिक संकट , पर्यावरण में हालात के वे तत्व हैं जिसमें जन – धन को नुकसान पहुँचने की सम्भावना होती है । जबकि आपदाओं से बड़े पैमाने पर जन – धन की हानि तथा सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था ठप्प हो जाती है ।

❇️ प्राकृतिक आपदाओं का वर्गीकरण :-

🔹 प्राकृतिक आपदाओं को उनकी उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है । जैसे ;

🔶 वायुमण्डलीय :- तड़ितझंझा , टारनेडो , उष्णकटिबंधीय चक्रवात , सूखा , तुषारपात आदि । 

🔶 भौमिक :- भूकंप , ज्वालामुखी , भू – स्खलन , मृदा अपरदन आदि ।

🔶 जलीय :- बाढ़ , सुनामी , ज्वार , महासागरीय धाराएं , तूफान आदि तथा 

🔶 जैविक :- पौधों व जानवर उपनिवेशक के रूप में टिड्डीयाँ कीट , ग्रसन फफूंद , बैक्टीरिया , वायरल संक्रमण , बर्डफलू , डेंगू इत्यादि । 

❇️ किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है ? 

🔹 संकट संभावित क्षेत्रों में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकते हैं । ऐसा उस स्थिति में होता है , जब पर्यावरणीय परिस्थितिकी की परवाह किए बिना ही विकास कार्य किया जाता है ।

🔹 उदाहरणतया बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए बांध बनाया जाता है ताकि बाढ़ का पानी और अधिक नुकसान न कर सके , लेकिन कुछ समय पश्चात उस रूके हुए पानी से महामारियां फैलनी आरम्भ हो जाती हैं इसीलिए हम कह सकते हैं कि अक्सर विकास कार्य आपदा का कारण बन जाते हैं ।

❇️ आपदा निवारण और प्रबन्धन की अवस्थाऐ :-

🔶 आपदा से पहले :- आपदा के विषय में आंकड़े और सूचना एकत्र करना , आपदा संभावित क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करना और लोगों को इसके बारे में जानकारी देना । 

🔶 आपदा के समय :- युद्ध स्तर पर बचाव व राहत कार्य करना । आपदा प्रभावित क्षेत्रों से पीड़ित व्यक्तियों को निकालना , राहत कैंप में भेजना , जल और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना । 

🔶 आपदा के पश्चात :- आपदा प्रभावित लोगों को पुर्नवास की व्यवस्था करना ।

❇️ चक्रवातीय आपदा :-

🔶 चक्रवात :- चक्रवात निम्न वायुदाब का वह क्षेत्र है जो चारों ओर से उच्च वायुदाब द्वारा घिरा होता है । वायु चारो ओर से चक्रवात के निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर चलती है । चक्रवातीय आपदा में वर्षा सामान्य से 50-100 सेमी तक अधिक होती है साथ ही तेज हवाओं का परिसंचरण भी होता है ।

❇️  चक्रवातीय आपदा के विनाशकारी प्रभाव :-

🔹 चक्रवातों का आकार छोटा होता है और दाब प्रवणता तीव्र होने के कारण वायु बड़ी तीव्र गति से चलती है । अतः इससे जान – माल की भारी हानि होती है । हजारों की संख्या में लोग मर जाते हैं ।

🔹 पेड़ , बिजली तथा टेलीफोन के खम्बे उखड़ जाते हैं और इमारतें गिर जाती हैं अथवा जरजर हो जाती हैं । इन चक्रवातों से भारी वर्षा होती है । जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । समुद्र में चक्रवात से ऊंची – ऊंची लहरें उठती हैं जिससे मछुवारों व नाविकों की जान का खतरा हो जाता है और तटीय क्षेत्रों के निवासियों को जान – माल की भारी हानि उठानी पड़ती है ।

🔹  सूखा : – किसी विशेष क्षेत्र में , विशेष समय में , सामान्य से कम वर्षा की मात्रा को सूखा कहते हैं ।

❇️ सूखा के प्रकार :-

🔹 इसके निम्न चार प्रकार हैं । 

🔶 मौसम विज्ञान संबंधी सूखा :- यह एक स्थिति है जिसमें लम्बे समय तक अपर्याप्त वर्षा होती है । ( वर्षा की कमी ) 

🔶 कृषि सूखा :- इसे भूमि आर्द्रता सूखा भी कहते हैं । जब जल के अभाव से फसलें नष्ट हो जाती हैं उसे कृषि सूखा कहते हैं । ( अपर्याप्त मानसून ) 

🔶 जल विज्ञान संबंधी सूखा :- जब धरातलीय एवं भूमिगत जलाशयों में जल स्तर एक सीमा से नीचे गिर जाए और वृष्टि द्वारा भी जलापूर्ति ना हो तो उसे जल विज्ञान संबंधी सूखा कहते हैं । ( भूमिगत तथा सतही जल का अतिशोषण ) 

🔶 पारिस्थितिक सूखा :- जब प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में जल की कमी से उत्पादकता में कमी हो जाती है और पर्यावरण में तनाव उत्पन्न हो जाता है उसे पारिस्थितिक सूखा कहते हैं । ( जलस्तर का घटना )

❇️ सूखे से निवारण के उपाय :-

🔹 लोगों को तत्कालीन सेवाएं प्रदान करना जैसे सुरक्षित पेयजल वितरण , दवाइयों , पशुओं के लिए चारा , व्यक्तियों के लिए भोजन तथा उन्हें सुरक्षित स्थान प्रदान करना । 

🔹 भूमि जल भंडारों की खोज करना जिसके लिए भौगोलिक सूचना तंत्र की सहायता ली जा सकती है । 

🔹 वर्षा के जल का संग्रहण एवं संचय करना तथा इसके लिए लोगों को प्रोत्साहित करना तथा नदियों पर छोटे बांधों का निर्माण करना । 

🔹 अधिक जल वाले क्षेत्रों को निम्न जल वाले क्षेत्रों से नदी तंत्र की सहायता से आपस में जोड़ना । 

🔹 वृक्षारोपण द्वारा वन क्षेत्र को बढ़ाकर सूखा से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है ।

❇️ भूकम्प :-

🔹 भूकम्प पृथ्वी की पर्पटी पर होने वाली वह हलचल है जिससे पृथ्वी हिलने लगती है और भूमि आगे पीछे खिसकने लगती है । वास्तव में , पृथ्वी के अन्दर होने वाली किसी भी संचलन के परिणाम स्वरूप जब धरातल का ऊपरी भाग अकस्मात कांप उठता है तो उसे भूकम्प कहते हैं । 

❇️ भूकम्प के कारण :-

🔹 भूकम्प को महाविनाशकारी आपदा माना जाता है । इससे प्रायः संकट की स्थिति पैदा होती है । 

🔹 भूकम्प मुख्यतः विवर्तनिक हलचलों , ज्वालामुखी विस्फोटों , चट्टानों के टूटने व खिसकने , खानों ( Mines ) के धसने , जलाशय में जल के इकट्ठा होने से उत्पन्न होते हैं । विर्वतनिक हलचलों से पैदा होने वाले भूकम्प सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं । इसे इस चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है ।

❇️ भूकम्पों के परिणाम :-

🔹 भूकम्पों से होने वाले नुकसान को निम्न बिन्दुओं की सहायता से समझा जा सकता है । 

  • जान तथा माल की भारी क्षति होती है । 
  • भूस्खलन हो सकते हैं । 
  • आग लग सकती है । 
  • तटबंधों व बाँधों के टूटने से बाढ़ आ सकती है । 
  • सागरों व महासागरों में बड़ी – बड़ी प्रलयकारी लहरें ( सुनामी ) आ सकती हैं ।

❇️ भूकम्प से होने वाले नुकसान को कम करने के उपाय :-

🔹  भूकम्प नियन्त्रण केन्द्रों की स्थापना करके , भूकम्प संभावित क्षेत्रों में लोगों को समय पर सूचना प्रदान करना ।

🔹 सुभेद्यता मानचित्र तैयार करना और संभावित जोखिमों की सूचना लोगों तक देना तथा इन्हें इसके प्रभाव को कम करने के बारे में शिक्षित करना । 

🔹 भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में घरों के प्रकार और भवनों के डिजाइन में सुधार लाना । उन्हें भूकम्प रोधी बनाना । 

🔹 भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में ऊंची इमारतों के निर्माण को प्रतिबंधित करना , बड़े औद्योगिक संस्थान और शहरीकरण को बढ़ावा न देना । 

🔹 भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भूकम्प प्रतिरोधी इमारतें बनाना और सुभेद्य क्षेत्रों में हल्के निर्माण सामग्री का प्रयोग करना ।

❇️ हिमालय और उत्तर – पूर्वी क्षेत्रों में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं ? 

🔹 हिमालय नवीन वलित पर्वत है , जिसके निर्माण की प्रक्रिया अभी चल रही है । हिमालय क्षेत्र में अभी भी भू – संतुलन की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है । भारतीय प्लेट निरन्तर उत्तर की ओर गतिशील है जिसके कारण इस क्षेत्र में प्रायः भूकंप आते रहते हैं और भूकंपीय हलचलें होती रहती है ।

❇️ सुनामी के कारण :-

🔹 सुनामी समुद्र में भूकंप , भूस्खलन अथवा ज्वालामुखी उद्गार जैसी घटनाओं से पैदा होती है ।

❇️ सुनामी प्रभाव :-

🔹 तटवर्ती क्षेत्रों के निवासियों के लिए सुनामी बहुत बड़ा खतरा है । सुनामी समुद्र तट पर विराट लहरों के रूप में अपार शक्ति के साथ प्रहार करती है और बिना किसी चेतावनी के “ पानी के बम ” की तरह टकराती हैं । ये घरों को गिरा देती है । 

🔹 गांवों को बहाकर ले जाती है । पेड़ों व बिजली के खम्बों को उखाड़ देती है , नावों को तट से दूर बहाकर ले जाती है और अंत में वापस जाते समय हजारों असहाय पीड़ितों को समुद्र में घसीट कर ले जाती है । सुनामी का प्रभाव बहुत ही विध्वंशकारी होता है ।

❇️ भारत में बाढ़ क्यों आती है ?

🔹 वर्षा ऋतु में नदियों का जल स्तर अचानक बढ़ जाता है । तब वह नदी के तटबन्धों को तोड़ता हुआ मानव बस्तियों , खेतों और आसपास की जमीन के निचले हिस्सों में बाढ़ के रूप में फैल जाता है । भारी वर्षा , उष्णकटिबन्धीय चक्रवात बांध टूटने और प्राकृतिक कारणों के अतिरिक्त मानव के कुछ आवांछित क्रियाकलाप भी बाढ़ को लाने में सहायक होते हैं ।

❇️ भारत में बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र :-

🔹 असम , पश्चिमी बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं । इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की अधिकांश नदियां विशेषकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती है । राजस्थान , गुजरात , हरियाणा और पंजाब में आकस्मिक बाढ़ आती रहती है ।

❇️ बाढ़ को रोकने के उपाय :-

🔹 बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में नदियों के तटबन्ध बनाना , नदियों पर बांध बनाना , बाढ़ वाली नदियों के ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्र में निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगाना । 

🔹 नदियों के किनारे बसे लोगों को दूसरी जगह बसाना , बाढ़ के मैदानों में जनसंख्या के बसाव पर नियंत्रण रखना । 

🔹 तटीय क्षेत्रों में ” चक्रवात सूचना केन्द्रों की स्थापना कर ” तूफान के आगमन की सूचना प्रसारित करके इससे होने वाले नुकसान के प्रभाव को कम कर सकते हैं ।

❇️ पश्चिमी भारत की बाढ़ पूर्वी भारत की बाढ़ से अलग कैसे होती है ?

🔹 भारत के पूर्वी भाग में असम , पश्चिम बंगाल , बिहार तथा झारखंड जैसे क्षेत्र हैं । इन क्षेत्रों में बड़ी – बड़ी नदियां बहती हैं जैसे ब्रह्मपुत्र , हुगली , दामोदर , कोसी , तिस्ता तथा तोरसा आदि ।

🔹इनमें हर वर्ष लगभग बाढ़ आती रहती है जिसके चलते यहां के स्थानीय निवासी इन नदियों के विध्वंशकारी प्रभाव से भलीभांति परिचित होते हैं । लेकिन पश्चिमी भारत में कुछ नदियों को छोड़कर ज्यादातर 

🔹 मौसमी नदियां हैं ये कम ढाल व अधिक बरसात के कारण बाढ़ से बचाव के लिए किए गए उपायों की अनदेखी करने के परिणामस्वरूप पश्चिमी भारत में जब कभी बाढ़ आती है तो अधिक नुकसान उठाना पड़ता है ।

❇️ भारत मे भू – स्खलन सुभेधता क्षेत्र :-

🔶 अत्यधिक सभेद्यता क्षेत्र :- इस क्षेत्र के अंतर्गत हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलायें , अंडमान व निकोबार द्वीप समूह , पश्चिमी घाट तथा नीलगिरी के अधिक वर्षा तथा तीव्र ढाल वाले क्षेत्र , उत्तर – पूर्वी राज्य , अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले क्षेत्र ( विशेषतः सड़क निर्माण व बांध निर्माण ) सम्मिलित हैं । 

🔶 अधिक सुभेद्यता क्षेत्र :- इन क्षेत्रों में भौगोलिक परिस्थितियां अत्यधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्रों की परिस्थितियों से मिलती जुलती ही है । अंतर केवल इतना है कि इन क्षेत्रों में भू – स्खलन की गहनता एवं आवृत्ति कम होती है । इन क्षेत्रों में हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर – पूर्वी भाग ( असम को छोड़कर ) सम्मिलित हैं 

🔶 मध्यम एवं कम सुभेद्यता वाले क्षेत्र :- इस क्षेत्र में लद्दाख , स्पिति , अरावली की पहाड़ियां , पूर्वी तथा पश्चिमी घाट के वर्षा छाया क्षेत्र , दक्कन का पठार सम्मिलित हैं । इसके अतिरिक्त मध्य पूर्वी भारत के खदानों वाले क्षेत्रों में भूस्खलन होता रहता है ।

❇️ भू – स्खलन को रोकने के उपाय :-

  • भू – स्खलन प्रभावित व सम्भावित क्षेत्रों में सड़क व बांध निर्माण कार्यों को रोका जाये । 
  • स्थानांतरी कृषि की अपेक्षा स्थायी व सीढ़ीनुमा कृषि को प्रोत्साहित करना । 
  • तीव्र ढालों की अपेक्षा मन्द ढालों पर कृषि क्रियाएं करना । 
  • वनों के कटाव को प्रतिबंधित करना तथा नये पेड़ – पौधे लगाना ।

❇️  आपदा प्रबंधन अधिनियम :-

🔹 आपदा प्रबंधन अधीनयम आपदा किसी क्षेत्र में धरित एक महाविपत्ति , दुर्घटना , संकट या गंभीर घटना है जो प्राकृतिक अथवा मानवीय कारणों या लापरवाही का परिणाम हो सकता है जिससे बड़े स्तर पर जान – माल को क्षति , मानव पीड़ी व पर्यावरण की हानि होती है । 

❇️ आपदा निवारण व प्रबंधन की अवस्थाएँ :-

🔹 आपदा से पहले आपदा से संबंधित ऑकड़े व सूचना एकत्र करना , आपदा संभावी क्षेत्रों को मानचित्र तैयार करना , लोगों को इसके बारे में जाग्रत करना , आपदा योजना बनाना , तैयार रहना बचाव का उपाय करना । 

🔹 आपदा के समय आपदाग्रस्त क्षेत्रों में लोगों की सहायता करना , फंसे हुए लोगों को निकालना या इसकी व्यवस्था करना , आश्रम स्थ्लों का निर्माण , राहता कैंप की व्यवस्था जल , भोजन व दवाईयों की अपूर्ति करना । 

🔹 आपदा के पश्चातः प्रभावित लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करना , भविष्य में आपदओं से निपटने के लिए क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना ।

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जैव विविधता और पर्यावरण

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जलवायु परिवर्तन: चुनौतियाँ और समाधान

  • 31 Mar 2020
  • 21 min read
  • सामान्य अध्ययन-III
  • जलवायु परिवर्तन
  • पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जलवायु परिवर्तन व उससे उपजी चुनौतियाँ और समाधान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वर्ष 2100 तक भारत समेत अमेरिका, कनाडा, जापान, न्यूजीलैंड, रूस और ब्रिटेन जैसे सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएँ जलवायु परिवर्तन के असर से अछूती नहीं रहेंगी। कुछ समय पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक शोध टीम ने 174 देशों के वर्ष 1960 के बाद जलवायु संबंधी आँकड़ों का अध्ययन किया है। अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी पर 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की स्थिति में विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ मानव के अस्तित्व पर भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा। इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीँ संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UN Office for Disaster Risk Reduction-UNDRR) के अनुसार, भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण हुई प्राकृतिक आपदाओं से वर्ष 1998-2017 के बीच की समयावधि के दौरान लगभग 8,000 करोड़ डॉलर की आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा है। यदि पूरी दुनिया की बात की जाए तो इसी समयावधि में तकरीबन 3 लाख करोड़ डॉलर की क्षति हुई है। हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क के तत्वावधान में आयोजित COP-25 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये विभिन्न दिशा-निर्देश ज़ारी किये गए।         

इस आलेख में जलवायु परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन के कारण, उससे उत्पन्न चुनौतियों पर विश्लेषण किया जाएगा। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के उपायों पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा।

क्या है जलवायु परिवर्तन?

  • जलवायु परिवर्तन को समझने से पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है कि जलवायु क्या होता है? सामान्यतः जलवायु का आशय किसी दिये गए क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है।
  • अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो यह इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।
  • पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों में 1 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ गया है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि से काफी कम हो सकता है, परंतु इस प्रकार के किसी भी परिवर्तन का मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को वर्तमान में भी महसूस किया जा सकता है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं और महासागरों का जल स्तर बढ़ता जा रहा, परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण

जलवायु परिवर्तन के कारणों का बेहतर विश्लेषण करने के लिये इसे दो भागों में विभाजित कर सकते हैं।

प्राकृतिक गतिविधियाँ 

मानवीय गतिविधियाँ.

  • महाद्वीपीय संवहन- सृष्टि के प्रारम्भ में सभी महाद्वीप एक ही बड़े धरातल के रूप में पृथ्वी पर विद्यमान थे, किंतु सागरों के कारण धीरे-धीरे वे एक दूसरे से दूर होते गए और आज उनके अलग-अलग खंड बन गए हैं। महाद्वीपीय संवहन अर्थात महाद्वीपों का खिसकना अब भी जारी है जिसकी वजह से समुद्री धाराएँ तथा हवाएँ प्रभावित होती हैं और इनका सीधा प्रभाव पृथ्वी की जलवायु पर पड़ता है। हिमालय पर्वत की श्रृंखला प्रतिवर्ष एक मिलीमीटर की दर से ऊँची हो रही है, जिसका मुख्य कारण भारतीय उपखंड का धीरे-धीरे एशियाई महाद्वीप की ओर खिसकना माना जाता है।  
  • ज्वालामुखी विस्फोट- ज्वालामुखी विस्फोट होने पर बड़ी मात्रा में विभिन्न गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, जलवाष्प आदि तथा धूलकण वायुमंडल में उत्सर्जित होते हैं, जो कि वायुमंडल की ऊपरी परत, समतापमंडल में जाकर फैल जाते हैं तथा पृथ्वी पर आने वाले सूर्य प्रकाश की मात्रा घटा देते हैं। जिससे पृथ्वी का तापमान कम हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार, प्रतिवर्ष लगभग 100 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस ज्वालामुखी विस्फोट द्वारा वायुमंडल में फैल जाती है। वर्ष 1816 में इंग्लैंड, अमेरिका तथा पश्चिमी यूरोपीय देशों में ग्रीष्म ऋतु में जो अचानक ठंड आई थी, जिसे ‘‘Killing Summer Frost’’ कहा गया, उसका कारण वर्ष 1815 में इंडोनेशिया में हुए अनेक ज्वालामुखी विस्फोटों को माना जाता है।  
  • पृथ्वी का झुकाव- पृथ्वी के झुकाव के कारण ऋतुओं में परिवर्तन होता है। अधिक झुकाव अर्थात अधिक गर्मी तथा अधिक सर्दी और कम झुकाव अर्थात कम गर्मी तथा कम सर्दी का मौसम। इस प्रकार पृथ्वी के झुकाव के कारण जलवायु प्रभावित होती है।
  • समुद्री धाराएँ- जलवायु को संतुलित रखने में सागरों का बड़ा योगदान रहता है। पृथ्वी के 71% भाग में समुद्र व्याप्त है, जो कि वातावरण तथा ज़मीन की तुलना में दोगुना सूर्य का प्रकाश का अवशोषण करते हैं। सागरों को कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा सिंक कहा जाता है। वायुमंडल की अपेक्षा 50 गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड गैस समुद्र में होती है। समुद्री बहाव में बदलाव आने से जलवायु प्रभावित होती है।
  • शहरीकरण- उन्नीसवीं सदी में हुई औद्योगिक क्रांति की ओर सभी का ध्यान आकर्षित हुआ। रोज़गार पाने के लिये गाँवों में स्थित आबादी शहरों की तरफ प्रस्थान करने लगी और शहरों का आकार दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा। मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई जैसे महानगरों में उनकी क्षमता से कई गुना अधिक आबादी निवास कर रही है, जिससे शहरों के संसाधनों का असीमित दोहन हो रहा है। जैसे-जैसे शहर बढ़ रहे हैं, वहाँ पर उपलब्ध भू-भाग दिन-प्रतिदिन ऊँची-ऊँची इमारतों से ढँकता जा रहा है, जिससे उस स्थान की जल संवर्धन क्षमता कम हो रही है तथा बारिश के पानी से प्राप्त होने वाली शीतलता में भी कमी हो रही है, जिससे वहाँ के पर्यावरण तथा जलवायु पर निरंतर प्रभाव पड़ रहा है।

औद्योगिकीकरण- जलवायु परिवर्तन में औद्योगिकीकरण की बड़ी भूमिका है। विभिन्न प्रकार की मिलें वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अनेक प्रकार की अन्य ज़हरीली गैसें और धूलकण हवा में छोड़ती हैं, जो वायुमंडल में काफी वर्षों तक विद्यमान रहती है। यह ग्रीन हाउस प्रभाव, ओज़ोन परत का क्षरण तथा भूमंडलीय तापमान में वृद्धि जैसी समस्याओं का कारण बनते हैं। वायु, जल एवं भूमि प्रदूषण भी औद्योगिकीकरण की ही देन हैं।

  • वनोन्मूलन- निरंतर बढ़ती हुई आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वृक्ष काटे जा रहे हैं। आवास, खेती, लकड़ी और अन्य वन संसाधनों की चाह में वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, जिससे पृथ्वी का हरित क्षेत्र तेजी से घट रहा है और साथ ही जलवायु के परिवर्तन में तेजी आ रही है। 
  • रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का प्रयोग- पिछले कुछ दशकों में रासायनिक उर्वरकों की माँग इतनी तेजी से बढ़ी है कि आज विश्व भर में 1000 से भी अधिक प्रकार की कीटनाशी उपलब्ध हैं। जैसे-जैसे इनका उपयोग बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे वायु, जल तथा भूमि में इनकी मात्रा भी बढ़ती जा रही है, जो कि पर्यावरण को निरंतर प्रदूषित कर घातक स्थिति में पहुँचा रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन से प्रभाव 

  • वर्षा पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप दुनिया के मानसूनी क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि होगी जिससे बाढ़, भूस्खलन तथा भूमि अपरदन जैसी समस्याएँ पैदा होंगी। जल की गुणवत्ता में गिरावट आएगी तथा पीने योग्य जल की आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगे। जहाँ तक भारत का प्रश्न है, मध्य तथा उत्तरी भारत में कम वर्षा होगी जबकि इसके विपरीत देश के पूर्वोत्तर तथा दक्षिण-पश्चिमी राज्यों में अधिक वर्षा होगी। परिणामस्वरूप वर्षा जल की कमी से मध्य तथा उत्तरी भारत में सूखे जैसी स्थिति होगी जबकि पूर्वोत्तर तथा दक्षिण पश्चिमी राज्यों में अधिक वर्षा के कारण बाढ़ जैसी समस्या होगी।
  • समुद्री जल स्तर पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप ग्लेशियरों के पिघलने के कारण विश्व का औसत समुद्री जल स्तर इक्कीसवीं शताब्दी के अंत तक 9 से 88 सेमी. तक बढ़ने की संभावना  है, जिससे दुनिया की आधी से अधिक आबादी जो समुद्र से 60 कि.मी. की दूरी पर रहती है, पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप भारत के उड़ीसा, आँध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात और पश्चिम बंगाल राज्यों के तटीय क्षेत्र जलमग्नता के शिकार होंगे। परिणामस्वरूप आसपास के गाँवों व शहरों में 10 करोड़ से भी अधिक लोग विस्थापित होंगे जबकि समुद्र में जल स्तर की वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत के लक्षद्वीप तथा अंडमान निकोबार द्वीपों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। समुद्र का जल स्तर बढ़ने से मीठे जल के स्रोत दूषित होंगे परिणामस्वरूप पीने के पानी की समस्या होगी।
  • कृषि पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कृषि पैदावार पर पड़ेगा। संयुक्त राज्य अमरीका में फसलों की उत्पादकता में कमी आएगी जबकि दूसरी तरफ उत्तरी तथा पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व देशों, भारत, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तथा मैक्सिको में गर्मी तथा नमी के कारण फसलों की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होगी। वर्षा जल की उपलब्धता के आधार पर धान के क्षेत्रफल में वृद्धि होगी। भारत में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप गन्ना, मक्का, ज्वार, बाजरा तथा रागी जैसी फसलों की उत्पादकता दर में वृद्धि होगी जबकि इसके विपरीत मुख्य फसलों जैसे गेहूँ, धान तथा जौ की उपज में गिरावट दर्ज होगी। आलू के उत्पादन में भी अभूतपूर्व गिरावट दर्ज होगी।
  • जैव विविधता पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जैवविविधता पर भी पड़ेगा। किसी भी प्रजाति को अनुकूलन हेतु समय की आवश्यकता होती है। वातावरण में अचानक परिवर्तन से अनुकूलन के प्रभाव में उसकी मृत्यु हो जाएगी। जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव समुद्र की तटीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली दलदली क्षेत्र की वनस्पतियों पर पड़ेगा जो तट को स्थिरता प्रदान करने के साथ-साथ समुद्री जीवों के प्रजनन  का आदर्श स्थल भी होती हैं। दलदली वन जिन्हें ज्वारीय वन भी कहा जाता है, तटीय क्षेत्रों को समुद्री तूफानों में रक्षा करने का भी कार्य करते हैं। जैव-विविधता क्षरण के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक असंतुलन का खतरा बढ़ेगा।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु में उष्णता के कारण श्वास तथा हृदय संबंधी  बीमारियों में वृद्धि होगी। जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप न सिर्फ रोगाणुओं में बढ़ोत्तरी होगी अपितु इनकी नई प्रजातियों की भी उत्पत्ति होगी जिसके परिणामस्वरूप फसलों की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।  मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते एक बड़ी आबादी विस्थापित होगी जो ‘पर्यावरणीय शरणार्थी’ कहलाएगी। इससे स्वास्थ्य संबंधी और भी समस्याएँ पैदा होंगी।

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु वैश्विक प्रयास

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नीति निर्माताओं को रणनीति बनाने के लिये नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना है। IPCC आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को वैज्ञानिक सूचनाएँ प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है। वर्ष 1995 से लगातार UNFCCC की वार्षिक बैठकों का आयोजन किया जाता है। इसके तहत ही वर्ष 1997 में बहुचर्चित क्योटो समझौता (Kyoto Protocol) हुआ और विकसित देशों (एनेक्स-1 में शामिल देश) द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने के लिये लक्ष्य तय किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स-1 में रखा गया है।  
  • पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के साथ संपन्न 32 पृष्ठों एवं 29 लेखों वाले पेरिस समझौते को ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • COP-25 सम्मेलन में लगभग 200 देशों के प्रतिनिधियों ने उन गरीब देशों की मदद करने के लिये एक घोषणा का समर्थन किया जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहे हैं। इसमें पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप पृथ्वी पर वैश्विक तापन के लिये उत्तरदायी ग्रीनहाउस गैसों में कटौती के लिये "तत्काल आवश्यकता" का आह्वान किया गया।

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु भारत के प्रयास

  • राष्ट्रीय सौर मिशन
  • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
  • राष्ट्रीय जल मिशन
  • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन
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प्रश्न- जलवायु परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का उल्लेख करते हुए इससे निपटने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की समीक्षा कीजिये ।

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जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

जलवायु परिवर्तन पर निबंध: धरती पर जीवन के अनुकूल जलवायु के कारण ही यहां जीवन संभव है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें लगातार हो रहे परिवर्तन ने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ाई है। जीवाश्म ईंधन जैसे, कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस आदि को जलाने के कारण पृथ्वी के वातावरण में तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। औसत मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन या क्लाइमेट चेंज (Climate change) कहा जाता है। दशकों, सदियों या उससे अधिक समय में जलवायु में बड़े स्तर पर हो रहे परिवर्तन से जीवन पर प्रभाव पड़ता है। इन दिनों उद्योग और शहरीकरण से इस परिवर्तन में तेजी देखी गई है।

जलवायु परिवर्तन पर लेख (Essay on climate change in hindi) - जलवायु क्या है?

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जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

सामान्यतः जलवायु का मतलब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है। अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं। जलवायु एक ऐसा पहलू है जो दुनिया के हर इंसान के जीवन से जुड़ा हुआ है। जलवायु की दशा हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करती है। मानवीय तथा कुछ प्राकृतिक गतिविधियों के कारण जलवायु की दशा बदल रही है। हाल के वर्षों और दशकों में गर्मी के कई रिकॉर्ड टूट गए हैं: यूएन जलवायु रिपोर्ट 2019 इस बात की पुष्टि करती है कि 2010-2019 सबसे गर्म दशक था। वर्ष 2019 में वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) तथा अन्य ग्रीनहाउस गैसें नए रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई थी।

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इन सब वजहों से जलवायु में परिवर्तन आ रहा है, जिसे जलवायु परिवर्तन की संज्ञा दी जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जलवायु में हो रहे नकारात्मक परिवर्तन (Negative changes in climate) पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के लिए बहुत ही खतरनाक सिद्ध होंगे। हालांकि जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रति सरकारें जागरूक हो रही हैं और लोगों को भी जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रति आगाह करने की जरूरत है। हमारे देश भारत के लिए राहत की बात है कि वर्ष 2024 में जलवायु प्रदर्शन सूचकांक में सातवें स्थान पर रहा जो बीते वर्ष 2023 में 8वें नंबर पर था। हालांकि इसमें अभी काफी सुधार की जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन पर निबंध (jalvayu parivartan par nibandh) से इस विषय के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी मिलेगी। जलवायु परिवर्तन वैश्विक स्तर पर एक बेहद गंभीर मुद्दा है जिससे अवगत करवाने के लिए विद्यालयों में छात्रों को भी जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in hindi) लिखने का कार्य दे दिया जाता है या फिर कभी-कभी परीक्षा में अच्छे अंकों के लिए जलवायु परिवर्तन पर निबंध (climate change par nibandh) लिखने से संबंधित प्रश्न पूछ लिए जाते हैं।

हिंदी में निबंध- भाषा कौशल, लिखने का तरीका जानें

जलवायु परिवर्तन पर लेख (jalvayu parivartan par lekh) के प्रारंभ में जलवायु क्या है, पहले इस बात को समझने की जरूरत है। एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। यूरोपीय देशों में जहां गर्मी की ऋतु छोटी होती है और कड़ाके की ठंड पड़ती है, जबकि भारत में अधिक गर्मी वाले मौसम की प्रधानता रहती है। सर्दियों के 2-3 महीनों को छोड़ दिया जाए, तो शेष समय जलवायु गर्म ही रहता है। भारत के समुद्र तटीय क्षेत्रों में, तो सर्दियों की ऋतु का तापमान औसत स्तर का रहता है। इस तरह किसी क्षेत्र की जलवायु उसकी स्थिति पर निर्भर करती है।

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किसी क्षेत्र विशेष की परंपरागत जलवायु में समय के साथ होने वाले बदलाव को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। जलवायु में आने वाले परिवर्तन के प्रभाव को एक सीमित क्षेत्र में अनुभव किया जा सकता है तथा पूरी दुनिया में भी इसके प्रभाव दिखने लगे हैं। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर दशा में पहुँच रही है और पूरे विश्व पर इसका असर देखने को मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु रिपोर्ट (climate report) में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन का पर्यावरण के सभी पहलुओं के साथ-साथ वैश्विक आबादी के स्वास्थ्य और कल्याण पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की अगुवाई में तैयार रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के भौतिक संकेतों - जैसे भूमि और समुद्र के तापमान में वृद्धि, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और बर्फ के पिघलने के अलावा सामाजिक-आर्थिक विकास, मानव स्वास्थ्य, प्रवास और विस्थापन, खाद्य सुरक्षा और भूमि तथा समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव का दस्तावेजीकरण किया गया है। जलवायु परिवर्तन को विस्तार से समझने के लिए क्लाइमेटचेंज नॉलेज पोर्टल https://climateknowledgeportal.worldbank.org/overview पर विजिट कर इसे विस्तार से समझ सकते हैं। यह पोर्टल दुनिया भर में सदियों से हो रहे जलवायु परिवर्न को विस्तार से बताता है। जलवायु परिवर्तन में सकारात्मक सुधार के लिए विश्व पर्यावरण दिवस पर संस्थानों, सरकारों को जागरूक करते हुए इस दिशा में व्यापक पैमाने पर काम करने को प्रोत्साहिक किया जाता है।

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण भी पृथ्वी के तापमान में लगातर बढ़ोतरी हो रही है। पर्यावरण प्रदूषण के कारण बढ़ते तापमान ने जलवायु परिवर्तन की स्थिति को और गंभीर बनाने का कार्य किया है। जलवायु रिपोर्ट के अनुसार 1980 के दशक के बाद आगामी प्रत्येक दशक, 1850 से किसी भी दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव पेटेरी टालस के इस कथन से भी यह बात समझी जा सकती है - अब तक का सबसे गर्म साल 2016 था, लेकिन जल्द ही इससे अधिक गर्म वर्ष देखने को मिल सकते हैं। यह देखते हुए कि ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि जारी है, तापमान में वृद्धि (global warming) जारी रहेगी। आगामी दशकों के लिए लगाए जाने एक हालिया पूर्वानुमान से संकेत मिलता है कि आने वाले पांच वर्षों में एक नया वार्षिक वैश्विक तापमान रिकॉर्ड मिलने की आशंका है।

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जिसके कारण के कारणों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- प्राकृतिक और मानवीय। जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी, महासागरीय धाराओं, महाद्वीपों के अलगाव आदि प्रमुख हैं।

ज्वालामुखी- ज्वालामुखी की सक्रियता बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड, जलवाष्प, धूल कण तथा राख को वायुमण्डल में फैलाने के लिए जिम्मेदार है। हालांकि, ज्वालामुखी की सक्रियता कुछ दिनों की ही हो सकती हैं, लेकिन भारी मात्रा में निकलने वाली गैसें तथा राख लंबे समय तक जलवायु के पैटर्न को प्रभावित करती है।

महासागरीय धाराएं- महासागरों की जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका है। वायुमंडल या भू-सतह की तुलना में दुगुना तापमान इनके द्वारा अवशोषित किया जाता है। महासागरीय प्रवाह चारों ओर तापमान के स्थानांतरण के लिए जिम्मेदार है। इनकी वजह से हवाओं की दिशा परिवर्तित कर तापमान को प्रभावित किया जाता है। तापमान को अवशोषित करने वाली ग्रीनहाउस गैस का एक अहम हिस्सा समुद्रों जलवाष्प होती है जो कि वायुमंडल में तापमान को अवशोषित करने का काम करती है।

मिथेन गैस का भंडार- आर्कटिक महासागर की बर्फ के नीचे अतल गहराइयों में मेथेन हाइड्रेट के रूप में ग्रीनहाउस गैस मेथेन का विशाल भंडार है जो विशिष्ट ताप और दाब में हाइड्राइट रूप में रहता है। ताप और दाब में परिवर्तन होने पर यह मिथेन मुक्त होती है और वायुमंडल में घुल जाती है। अपने गैसीय रूप में, मिथेन सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों में से एक है, जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में पृथ्वी को बहुत अधिक गर्म करती है।

ग्रीनहाउस प्रभाव गैसें- वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाईऑक्साइड, मेथेन, जलवाष्प आदि के द्वारा सूर्य के प्रकाश की ऊष्मा के एक भाग को अवशोषित कर लिया जाता है, इस घटना को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है।

जीवाश्म ईंधन का प्रयोग- जीवाश्म ईँधन के प्रयोग के कारण ग्रीनहाउस गैसों खासकर कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर वायुमंडल में बढ़ता जा रहा है। लगभग 33% कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जीवाश्म ईँधनों के प्रयोग को माना जाता है।

जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया पर आपदाओं के बादल मंडरा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कुछ परिणाम निम्नलिखित हैं-

जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बहुत ही जल्दी-जल्दी और घातक बदलाव होने लगे हैं।

साल 2019 दूसरा सबसे गर्म साल रिकॉर्ड किया गया।

अब तक का सबसे गर्म दशक 2010- 2019 रिकॉर्ड किया गया।

वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का स्तर 2019 में नए रिकॉर्ड तक पहुंच गया।

बाढ़, सूखा, झुलसा देने वाली लू, जंगल की आग और क्षेत्रीय चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में जमी बर्फ के पिघलने की दर बढ़ती जा रही है जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है।

मालदीव की समुद्र तल से ऊंचाई कम होने के कारण यह द्वीपीय राष्ट्र विशेष खतरे में है। इस देश का उच्चतम स्थान समुद्र तल से लगभग 7.5 फीट ऊँचा है जिससे मालदीव के समुद्र में डूबने का खतरे बढ़ता जा रहा है।

दक्षिण अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया सहित अधिकांश भू-क्षेत्र हालिया औसत से अधिक गर्म रहे। अमेरिकी राज्य अलास्का भी तुलानात्मक रूप से गर्म था वहीं इसके विपरीत उत्तरी अमेरिका का एक बड़ा क्षेत्र हाल के औसत से अधिक ठंडा रहा।

वर्ष 2019 जुलाई के अंत में आए लू के थपेड़ों से मध्य और पश्चिमी यूरोप का अधिकांश भाग प्रभावित हुआ। इस दौरान नीदरलैंड में 2964 मौतें लू से जुड़ी पाई गईं जो कि गर्मी के सप्ताह में औसतन होने वाली मौतों की तुलना में लगभग 400 अधिक थीं।

लंबे समय तक तापमान अधिक रहने के कारण मौसम के स्वभाव में बदलाव आ रहा है जिसके चलते प्रकृति में मौजूद सामान्य संतुलन की स्थिति बिगड़ती जा रही है। इससे मनुष्यों के साथ ही पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग के चलते उपजे खतरों को देखते हुए ग्लोबल वार्मिंग कारण और निवारण पर साल 2015 में ऐतिहासिक पेरिस समझौते को अपनाया गया जिसका लक्ष्य इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक काल के तापमान से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक होने के स्तर से नीचे रखना है। समझौते का उद्देश्य उपयुक्त वित्तीय प्रवाह, नए प्रौद्योगिकी ढांचे और उन्नत क्षमता निर्माण ढांचे के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए देशों की क्षमता में वृद्धि करना भी है। जलवायु परिवर्तन के खतरे के लिए दुनिया भर में उठाए जा रहे कदमों को मजबूत करने और तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से घटाकर 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों की रूपरेखा के साथ 4 नवंबर, 2016 को जलवाय परिवर्तन पर पेरिस समझौते को क्रियान्वित किया गया।

जीवन और आजीविका बचाने के लिए महामारी और जलवायु आपातकाल दोनों को संबोधित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। हमारे ग्रह पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। सरकारों को इसमें नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त व मजबूत कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को सतत विकास के उपायों में निवेश करने, ग्रीन जॉब, हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखने, पृथ्वी को स्वस्थ रखने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर व पूरी ईमानदारी के साथ काम करना होगा। यह बात ज्ञात हो कि कोई देश अकेले ही ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने में सक्षम नहीं है। इस खतरे को सभी मिलकर ही दूर कर सकते हैं।

Frequently Asked Question (FAQs)

एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। 

किसी क्षेत्र विशेष की परंपरागत जलवायु में समय के साथ होने वाले बदलाव को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। जलवायु में आने वाले परिवर्तन के प्रभाव को एक सीमित क्षेत्र में अनुभव किया जा सकता है और पूरी दुनिया में भी। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर दिशा में पहुँच रही है और पूरे विश्व में इसका असर देखने को मिल रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। लंबे समय तक तापमान अधिक रहने के कारण मौसम के स्वभाव में बदलाव आ रहा है जिसके चलते प्रकृति में मौजूद सामान्य संतुलन की स्थिति बिगड़ रही है। इससे मनुष्यों के साथ ही पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के अन्य परिणामों के बारे में जानकारी लेख में दी गई है।

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सूखा या अकाल पर अनुच्छेद | Paragraph on Drought or Famine in Hindi

natural calamity essay in hindi

सूखा या अकाल पर अनुच्छेद | Paragraph on Drought or Famine in Hindi!

जब क्षेत्र – विशेष में सामान्य से कम या बहुत कम वर्षा होती है तो उस क्षेत्र में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । वैसे तो अकाल एक प्राकृतिक आपदा है परंतु इसके होने में मानवीय गतिविधियों का भी होता है । वन-विनाश और प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़-छाड़ का यह परिणाम है कि कहीं अकाल तो कहीं बाढ़ की परिस्थिति उत्पन्न होती रहती है । अकाल होने पर फसलें सूख जाती हैं तथा अन्न, फल, दूध तथा सब्जियों का अभाव हो जाता है । मनुष्यों तथा पशुओं के लिए पीने का साफ जल नहीं मिल पाता है । लोग भुखमरी के शिकार बन जाते हैं । पशु चारे और पानी के अभाव में मरने लगते हैं । क्षेत्र उजाड़-सा दिखाई देने लगता है । ऐसी विषम स्थिति में सरकार सहायता के लिए आगे आती है । अकालग्रस्त क्षेत्रों में भोजन की सामग्रियों, दवाइयाँ, जल, पशुओं का चारा आदि पहुंचाए जाते हैं । अकाल से निबटने में जन-सहयोग का भी बहुत महत्त्व होता है ।

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Data shows hurricanes and earthquakes grab headlines but inland counties top disaster list

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FILE - Buildings and homes are flooded in the aftermath of Hurricane Laura near Lake Charles, La., on Aug. 27, 2020. (AP Photo/David J. Phillip, File)

FILE - A Dare County utility worker checks on conditions along a flooded Ride Lane in Kitty Hawk, N.C., Monday, Oct. 29, 2012, as the effects of Hurricane Sandy are visible along the east coast. (AP Photo/Gerry Broome, File)

FILE - Homes and structures are flooded near Quicksand, Ky., July 28, 2022. (Ryan C. Hermens/Lexington Herald-Leader via AP, File)

FILE - Teresa Reynolds sits as members of her community clean the debris from their flood ravaged home at Ogden Hollar in Hindman, Ky., July 30, 2022. (AP Photo/Timothy D. Easley, File)

FILE - A woman walks past a cabana complex on the beach pulled off its foundations by Superstorm Sandy in Sea Bright, N.J., Nov. 19, 2012. (AP Photo/Seth Wenig, File)

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Floyd County keeps flooding and the federal government keeps coming to the rescue.

In July 2022, at least 40 people died and 300 homes were damaged in flooding across eastern Kentucky. It was the 13th time in 12 years that Floyd County was declared a federal disaster. These are disasters so costly that local governments feel they can’t pay for it all, so the governor asks the president to declare a disaster freeing up federal funds.

“After that flood I had 500 homeless people looking at me, ‘Judge what are we going to do’?” recalled Judge Robbie Williams, administrator for the county of a bit more than 35,000 people. “It’s overwhelming and it’s just a matter of time before it happens again.”

It did. In 2023, Floyd County was declared a disaster again for the 14th time, starting in 2011. And Floyd County isn’t even the nation’s most disaster-prone county. Neighboring Johnson County has 15 disasters declared by the Federal Emergency Management Agency since 2011.

When it comes to extreme weather and other so-called natural disasters, people generally look to the hurricane or earthquake-prone coasts and say that’s where the danger is. But that’s not where the highest concentration of federally declared disasters are, according to an atlas of 713 FEMA declared disasters created by Rebuild by Design and New York University. While most people in disasters think about federal government direct financial help to individual victims to pay for lost housing and businesses, the atlas focuses on the $60 billion pot of FEMA aid to governments.

Eight of the nine counties with the most federal declared disasters since 2011 — more than a dozen each — are in Kentucky, with the one in Vermont. These counties have four to five times the number of disaster as the national average of three in the past 13 years.

“California and Louisiana and I would say now even Texas, Florida, for sure, they soak up all the oxygen when you hear about these giant storms,” said atlas creator Amy Chester, director of the disaster prevention-focused Rebuild By Design nonprofit group. “But what you’re not hearing about are these storms that are happening all the time, and that’s just becoming like, regular to places like Vermont.” Chester also mentioned Tennessee, Oklahoma, Missisippi, Iowa and Alaska as hotspots.

“We want to show that climate change is already here,” Chester said of the data covers 2011 to 2023, but doesn’t include heat waves, drought or COVID. “Communities are suffering all over.”

Before she crunched the data, Chester said she figured Vermont would be a haven from climate change. Cooler. Inland. Instead it’s a disaster hot spot.

“It’s awful” Chester said. “It just keeps happening to them.”

Days after she said that Vermont flooded again , this time from the remnants of Hurricane Beryl.

Flooding is the most common disaster in the United States, according to FEMA. Since 2011, FEMA handed out more than $41 billion in aid following hurricanes, the most of any disaster type.

“What the data tell us is that the frequency and severity of disasters at local-state scales is increasing with rural, suburban, and urban places being affected nationwide,” Susan Cutter, co-director of the Hazards Vulnerability and Resilience Institute at the University of South Carolina, said in an email. She wasn’t part of Chester’s research. “More needs to be done to enhance resilience to reduce their impacts on people.”

The largest county in the nation that has not had a federally declared disaster since 2011 is Mecklenburg County, North Carolina, where the city of Charlotte is.

“We’ve been blessed,” said Charlotte emergency management chief Robert Graham, who attributes the lack of federal disasters to good luck, good government and good geography.

“We are protected from the coast somewhat,” Graham said of the inland county. “We don’t get all the impacts from the mountains. Charlotte seems to be in a, somewhat of a sweet spot.”

Graham said a cushy reserve fund and planning have prevented the city from having to go to the federal government for financial help after disasters like a 2019 flood. But he said he knows it’s only a matter of time before the city’s luck runs out.

Luck long abandoned eastern Kentucky.

In Floyd County, geography and government regulations make it tough, Williams said. The mountain-heavy county has people living in the narrow valley floor in old coal camps, he said. And when it rains, the ever-shallower creeks overflows.

“We’re seeing historic levels of flooding,” Williams said. “It’s only getting worse.”

Environmental regulations won’t let local officials dredge the creeks, which keep getting built up with silt coming down the mountains, often from development, Williams said. Some creeks decades ago were 20 feet deep but are now shallow enough to walk across, he said.

The problem is there is nowhere for the rain to go,” Williams said.

National Weather Service data shows that Floyd County now averages more than 50 inches of rain a year, up from 42 to 43 inches a year in the mid 1980s. Warmer air holds more moisture, with studies and statistics showing the Eastern United States is not only getting more rain, but more intense downpours that cause floods.

Floyd County’s government received more than $35 million in FEMA disaster aid since 2011. That’s not even near the top, where the big money went to places devastated by hurricanes.

Five counties — three of them in New York — received more than $1 billion in FEMA aid, led by Manhattan’s New York County, which got $8.9 billion, nearly all of it due to 2012’s Hurricane Sandy. All of the top five counties were struck by one or more hurricanes.

Chester’s group decided to look at congressional districts and how they compared in disasters, especially with a nearly evenly split House of Representatives.

Nearly 60 counties have had at least 10 federally declared disasters since 2011 and nearly 70% of them are represented in Congress by Republicans. About 280 counties have had no disasters in that time periods and 87% of them are represented by Democrats, according to the NYU data.

Chester noted that Republicans aren’t talking about climate change on the campaign trail, but said “research shows that extreme weather is not a partisan issue.”

More important is how state and local policies create or minimize risk for future disasters, said Samantha Montano, a professor of emergency management at the Massachusetts Maritime Academy. And in Floyd County the government using FEMA money is buying the homes of 150 residents to move them out of harm’s way, but some don’t want to leave, Williams said.

“Until we get those homes out of these flood ways... we’re still going to have these issues,” Williams said.

Data journalist Mary Katherine Wildeman contributed from Hartford, Connecticut.

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