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बाजार पर निबंध | 10 Lines On Essay on Market in Hindi

बाजार पर निबंध | 10 lines on essay on market in hindi .

नमस्कार  दोस्तों आज हम बाजार इस विषय पर हिंदी निबंध जानेंगे। हमारे गाँव में हर शुक्रवार को बाजार लगता है। यह बाजार सुबह से शाम तक रहता है। इस बाजार में आसपास के गाँवों से बहुत-से लोग खरीदारी के लिए आते हैं।

हमारे गाँव का यह बाजार बहुत मशहूर है। इसमें अनाज, साग-भाजी, मसाले तथा खिलौने तो बिकते ही हैं, कपड़ों और बरतनों की भी दुकानें लगती हैं। 

भेलपूरी और पानीपूरी के खोमचे भी लगते हैं। आजकल तो इस बाजार में फोटो स्टुडियो और चलता-फिरता सिनेमाघर भी होता है। .

बाजार में मिठाइयों की कई दुकानें लगती हैं। शाम तक बाजार में बड़ी चहल-पहल रहती है। सूरज डूबते ही बाजार उठ जाता है और लोग अपने-अपने घर लौट जाते हैं। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।

शेयर मार्केट कैसे चलता है? आखिर कैसे काम करते हैं स्टॉक एक्सचेंज, सेंसेक्स और निफ्टी?

जानिए शेयर मार्केट कैसे काम करता है? | How does stock market works in hindi | शेयर बाजार में निफ्टी और सेंसेक्स कैसे काम करते हैं | आईपीओ, स्टॉक एक्सचेंज, सेबी, बुल, बियर आदि के बारे में संक्षिप्त जानकारी हिंदी में।

अब तक शेयर बाजार के बारे में तो आप बहुत कुछ सुन चुके होंगे क्योंकि रोजाना अखबारों में, tv या न्यूज़ चैनल पर सेंसेक्स निफ्टी के उतार-चढ़ाव की खबरें चलती रहती है, ब्रोकरेज हाउस और कई सारे एक्सपर्ट आपको हर रोज अलग-अलग कंपनियों के शेयर खरीदने और बेचने की सलाह देते रहते हैं लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर भारत में share market kaam kaise karta hai?

इसके बारे में जाने से पहले यह अवश्य पढ़ लेना चाहिए चाहिए कि:

  • शेयर मार्केट क्या है? शेयर बाजार की पूरी जानकारी विस्तार से.
  • शेयर बाजार में सेंसेक्स और निफ्टी क्या हैं?

आज आप विस्तार से जानेंगे कि―

  • आखिर शेयर मार्केट को कौन चलाता है?
  • क्यों छोटी मोटी बातों पर किसी भी शेयर का भाव ऊपर चढ़ जाता है या नीचे गिर जाता है जिससे निवेशकों का उस शेयर में लगाया हुआ पैसा या तो डूब जाता है या फिर अचानक बढ़ जाता है?
  • क्यों भारत में हर साल का बजट पेश होते ही सेंसेक्स या निफ़्टी में भारी गिरावट या तेजी उछाल देखी जाती है?
  • बजट पेश होने के बाद जब शेयर मार्केट गिरता है तो ऐसा क्यों बोला जाता है कि उस साल का बजट बाजार को पसंद नहीं आया है इसीलिए पूरा शेयर मार्केट धड़ाम से नीचे गिर गया.

तो अगर आपने भी शेयर मार्केट में पैसा निवेश किया हुआ है या फिर करना चाहते हैं तो आपके लिए स्टॉक मार्केट काम कैसे करता है ( how stock market works in hindi ) यह समझना बेहद जरुरी है.

आइए समझते हैं कि―

इस पोस्ट में आप जानेंगे-

शेयर मार्केट कैसे काम करता है? How stock market works in hindi?

“भारत में स्टॉक मार्केट या शेयर बाजार मांग और पूर्ति यानी डिमांड और सप्लाई के नियम पर काम करता है. शेयर मार्केट में निवेशक BSE या NSE स्टॉक एक्सचेंज के द्वारा शेयर को खरीदता और बेचता है. सेंसेक्स और निफ्टी इंडिया की टॉप कंपनियों के प्रदर्शन को दिखाने का काम करते हैं।”

शेयर बाजार छोटी बड़ी कंपनियों को मौका देता है कि वह आप और हम जैसे लोगों से पैसा जुटा सके और अपने बिजनेस को बड़ा कर सकें जिसके बदले में कंपनियां आपको अपने शेयर देंगी.

  • आसान शब्दों में कहे तो, आप शेयर मार्केट को एक ऐसा बाजार समझिये जहां से आप भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में हिस्सेदार (shareholder) बन सकते हैं उनके शेयर खरीद कर.

जी हां, आप रिलायंस, इंफोसिस, टीसीएस जैसी जानी मानी कंपनियों खरीद कर पैसा लगा सकते हैं और जब कंपनियां मुनाफा करेंगे तो शेयर का भाव बढ़ेगा और आपको भी प्रॉफिट होगा.

लेकिन आखिर;

शेयर कैसे खरीदते और बेचते हैं? (How to buy and sell shares?)

मान लीजिए आप मुकेश अंबानी जी की कंपनी रिलायंस के शेयर खरीदना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको डिमैट अकाउंट खुलवाना होगा जो आप किसी भी ब्रोकर app के द्वारा फ्री में खोल सकते हैं जैसे― upstox, zerodha, एंजल ब्रोकिंग आदि.

  • डिमैट अकाउंट खोलने के बाद आपको अपनी ब्रोकर ऐप में लॉग इन करना है और पैसे add करना है.
  • अब आप जिस शेयर को खरीदना चाहते हैं उस शेयर का नाम यानी ‘ Reliance ‘ सर्च करना है.
  • अब आपको शेयर का प्राइस दिख जाएगा और Buy इस Sell के बटन भी दिख जाएंगे.
  • इसके बाद आपको कितने शेयर खरीदना है लिख दीजिये और buy बटन पर क्लिक कीजिए आपका शेयर आपके पोर्टफोलियो में जुड़ जाएगा.

जब आप अपने पोर्टफोलियो में शेयर्स देखेंगे तो उसकी कीमत कम या ज्यादा होते हुए दिखाई देगी जब शेयर का दाम बढ़ जाए तो आप इसे बेच दीजिये और मुनाफा कमा लीजिए.

उदाहरण के लिए―

मान लीजिए आपने किसी कंपनी के 50 शेयर खरीदे जिसके एक शेयर की कीमत ₹ 100 थी

मतलब आपका टोटल इन्वेस्टमेंट हुआ 5000 रुपये.

कुछ दिनों बाद जब शेयर का मूल्य बढ़कर बढ़कर ₹150 हो गया तो आपने उसी समय आपने वो खरीदे गए पूरे 50 शेयर बेच दिया जो 150 रुपये प्रति शेयर की कीमत पर 7500 रुपये के बिके

और क्योंकि आपने इन्वेस्टमेंट ₹ 5000 की थी इसलिए आप का मुनाफा ₹ 1500 हुआ.

लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है जितना सुनने में लगता है इसके लिए मैं आपको नीचे दी गई सभी पोस्ट पढ़ने की सलाह देता हूं―

  • शेयर खरीदने से पहले क्या-क्या देखना चाहिए?
  • शेयर कब खरीदना और बेचना चाहिए?
  • शेयर मार्केट में पैसा कब लगाना चाहिए?
  • शेयर मार्केट में निवेश करते समय क्या सावधानियां रखनी चाहिए? (15+ tips)
  • शेयर की इंटरिंसिक वैल्यू क्या होती है?
  • शेयर की कीमतें कैसे घटती या बढ़ती हैं?
  • किस कंपनी के शेयर खरीदे? 5 आसान तरीके पता करने के
  • (7 तरीके) अच्छे शेयर का चुनाव कैसे करें?

शेयर मार्केट को कौन चलाता है?

शेयर मार्केट को चलाने में स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकर्स, खरीदार और विक्रेता इन सब का प्रमुख योगदान होता है. लेकिन इसके अलावा जो शेयर बाजार के पूरे हाल-चाल पर नजर रखता है और किसी भी नियम का उल्लंघन करने पर सजा देता है उसका नाम है SEBI यानी सिक्योरिटी ऑफ एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया.

देखा जाए तो SEBI ही शेयर मार्केट को चलाता है. क्योंकि जिसने सेबी के नियमों का पालन नहीं किया वह शेयर बाजार में काम नहीं कर सकता है चाहे वह कोई कंपनी हो निवेशक हो या ब्रोकर हो या फिर स्वयं स्टॉक एक्सचेंज ही क्यों ना हो.

इन सभी को सेबी की बात माननी पड़ती है. मतलब सेबी शेयर बाजार के राजा (Regulator) के रूप में काम करता है जिसका नियम सर्वोपरि होता है और सरकार के द्वारा यह संस्था शेयर बाजार में हो रहे गलत कामों को रोकने और सही नियम बनाने के लिए बनाई गई है।

पुराने जमाने में शेयर बाजार कैसे काम करता था?

आजकल तो आप और हम एक ही क्लिक में शेयर को खरीद और बेच सकते हैं लेकिन पुराने जमाने में ऐसा नहीं होता था. उस समय शेयर को खरीदने और बेचने के लिए आपको खुद स्टॉक एक्सचेंज जाना पड़ता था जो मुंबई में था.

अब आप खुद सोच कर देखिए कि अगर आज आपको शेयर खरीदना है और अगर आपको भी स्टॉक एक्सचेंज जाना पड़े तो कैसा लगेगा? लेकिन उस समय शेयर मार्केट कैसे काम करता होगा जब ना तो कोई ब्रोकर ऐप थी और ना ही कंपनियों की जानकारियां ऑनलाइन उपलब्ध थी.

ऐसे मैं आपको थोड़ा बहुत अवश्य पता होना चाहिए कि आखिर;

स्टॉक एक्सचेंज कैसे काम करता है? (How stock exchange works in hindi?)

भारत में दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज यानी BSE और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज यानी NSE . यह दोनों एशिया के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज में गिने जाते हैं. BSE स्टॉक एक्सचेंज पुराना है जिस पर ब्रोकर्स ने 1875 से ट्रेडिंग करना चालू कर दिया था. लेकिन बाद में जब यह स्टॉक एक्सचेंज पॉपुलर होने लगा और यहीं से इंडिया में शेयर मार्केट की शुरुआत हो गई और लोग कंपनियों के शेयर खरीदने बेचने लगे और धीरे-धीरे भारत में स्टॉक मार्केट पॉपुलर होने लगा.

अब सरकार ने भी सोचा कि एक सरकारी स्टॉक एक्सचेंज भी होना चाहिए इसीलिए फिर देश की सरकार ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज यानी NSE बनाया जिस पर आज देश के अधिकतर लोग ट्रेडिंग करते हैं. वैसे तो इन दोनों ही स्टॉक एक्सचेंज पर शेयर का भाव एक जैसा ही रहता है लेकिन कुछ पैसे का अंतर होता है. एक तरह से आप इन दोनों (NSE और BSE) को एक सब्जी मंडी समझ सकते हैं जिसमें एक ही सब्जी का दाम अलग-अलग होता है लेकिन उनमें ज्यादा फर्क नहीं होता है.

अगर आपने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की तस्वीर देखी होगी तो आपको ऊपर एक पट्टी दिखेगी जिसमें कुछ लाल और हरे रंग के नंबर स्क्रीन पर स्क्रॉल होते नजर आएंगे.

ये वही नंबर हैं जो अलग-अलग कंपनियों के भाव को दर्शाते हैं जिनमें मुख्यतः सेंसेक्स और निफ्टी की कंपनियां आती हैं.

अब आइए थोड़ा बहुत निफ्टी और सेंसेक्स के बारे में भी जान लेते हैं―

निफ़्टी और सेंसेक्स कैसे काम करता है? (How sensex and nifty works in hindi?)

शेयर मार्केट में निफ्टी और सेंसेक्स इंडेक्स यानी सूचकांक है जो भारत की सबसे बड़ी कंपनियों की स्थिति को दर्शाते हैं. एक तरह से निफ्टी और सेंसेक्स बाजार के इंडिकेटर की तरह काम करते हैं जो देश की अर्थव्यवस्था को कुछ पॉइंट्स के जरिए बताने का काम करते हैं.

इसीलिए जब सेंसेक्स कई पॉइंट ऊपर चढ़ जाता है तो कंपनियों को भारी मुनाफा होता है और जब सेंसेक्स कुछ पॉइंट गिर कर नीचे आ जाता है तो कंपनियों को नुकसान होता है.

  • सेंसेक्स देश की 30 सबसे बड़ी कंपनियों का इंडेक्स होता है जबकि निफ्टी देश के टॉप 50 सबसे बड़ी कंपनियों का इंडेक्स होता है. जब सेंसेक्स बना था तो इसकी वैल्यू 100 point थी जो आज बढ़कर 55000 से ज्यादा हो चुकी है.

पिछले 20 सालों में सेंसेक्स और निफ्टी में बहुत सारे भारी गिरावट और बड़ी उछाल देखी गई है. उदाहरण के लिए 2008 का फाइनेंशियल क्राइसिस जिसमें सेंसेक्स तकरीबन 60% गिर चुका था

और 2020 के कोरोना के दौरान भी गिरावट 30- 40% तक हो गई थी

ऐसे में कुछ निवेशक तो बर्बाद हो गए, बहुत सारे लोगों का पैसा डूब गया और जब शेयर मार्केट ने रिकवर किया तो लोग पैसा छाप कर मालामाल भी बन गए.

लेकिन इन सब मार्केट क्रैश के बीच जिसने समझदारी से निवेश किया उसने तो बहुत पैसा कमाया और अपने पैसे को कई गुना मल्टीप्लाई किया लेकिन कुछ लोग थे जिन्होंने जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में कुछ सस्ती और घटिया कंपनी के शेयर ( पेनी स्टॉक ) खरीद लिए और कंगाल हो गए.

जबकि अगर आप समझदारी से निवेश करते तो आप अपने उसी पैसे को कई गुना कर सकते थे. Warren Buffet  जो दुनिया के सबसे अमीर इन्वेस्टर हैं और उन्होंने अपना पूरा पैसा शेयर मार्केट में निवेश करके ही कमाया है और वो अपनी सफलता का क्रेडिट एक ही किताब को देते हैं जिसका नाम है “ द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर” .

वो कहते हैं कि― इस किताब ने मेरी जिंदगी बदल दी और अगर शेयर मार्केट की दुनिया में सफल होना है तो हर एक निवेशक को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए।

दोस्तों अगर आप भी इस किताब को हिंदी में पढ़ना चाहते हैं तो अभी नीचे दिए गए लिंक या इमेज पर क्लिक करके बुक को डाउनलोड कीजिए और एक सफल निवेशक बनने के रास्ते पर चल पड़िये.

शेयर बाजार में बुल और बियर कैसे काम करते हैं?

Bull और Bear का कांसेप्ट शेयर बाजार में काफी पुराना है. जब शेयर मार्केट ऊपर जाता है तो बोला जाता है कि bull run शुरू हो गई है और जब मार्केट गिरता है तो इसे bear run बोला जाता है.

उदाहरण के लिए ― जब 2020 में हमारे देश में लॉकडाउन का अनाउंसमेंट हुआ था तो चारों तरफ नेगेटिव फैल गई थी और शेयर मार्केट धड़ाम से नीचे गिर गया और लगातार नीचे ही जा रहा था उस समय पर उसे bear market बोला जा रहा था. और जब कोरोना खत्म होने लगा तो इकॉनमी में सुधार आने लगा और bull market स्टार्ट हो गया यानी कि बाजार चढ़ना शुरु हो गया।

जो लोग शेयर बाजार को ऊपर चढ़ाते हैं मतलब खरीदारी करते हैं उन्हें bull बोला जाता है और जो लोग बिकवाली करते हैं उन्हें bear बोला जाता है।

  • आपको पता होना चाहिए कि इंडिया के सबसे अमीर इन्वेस्टर राकेश झुनझुनवाला को बिग बुल (big bull) भी बोला जाता है क्योंकि जब वह किसी शेयर को खरीदते हैं तो मार्केट भी उसी शेयर में पैसा लगाने लगता है और इस तरह उस शेयर का प्राइस बढ़ने लगता है.

आशा करता हूं आप bull और bear को समझ गए होंगे अब समझते हैं कि―

शेयर मार्केट में आईपीओ क्या होता है और ये कैसे काम करता है?

How ipo works in stock market in hindi―

जब कोई कंपनी पहली बार शेयर बाजार में लिस्टेड होती है तो इसे आईपीओ (initial public offer यानी IPO) बोला जाता है.

उदाहरण के लिए ― मान लीजिए कोई XYZ कंपनी है जिसे अपना व्यापार बढ़ाने के लिए 10 लाख रुपए की जरूरत है. अब उसके पास पैसा जुटाने के दो रास्ते हैं या तो वह बैंक से ब्याज पर लोन ले ले या फिर अपने परिवार दोस्त या रिश्तेदार से पैसा उधार ले ले.

लेकिन कई बार ऐसा होता है कि ना तो आपको बैंक लोन देता है और आपके दोस्त और रिश्तेदार भी मना कर देते हैं ऐसे में आपके पास कोई रास्ता नहीं बचता है.

लेकिन एक रास्ता है कि आप शेयर बाजार में अपनी कंपनी के शेयर लोगों में बांट दें और पैसा जुटा लें. इसके लिए आपको कुछ कागजी डॉक्यूमेंट की भरपाई करनी पड़ती है और अपनी कंपनी की जानकारी स्टॉक एक्सचेंज और SEBI को देनी पड़ती है. जब आपको सेबी के द्वारा अप्रूवल मिल जाता है तो आपने जिस कीमत पर अपने शेयर की वैल्यू लगाई होती है उस कीमत पर लोग उसे खरीदने लगते हैं और जब आपके पूरे शेयर बिक जाते हैं तो पैसा आपके पास आ जाता है और आपकी कंपनी शेयर बाजार में list हो जाती है.

इस प्रकार कोई भी कंपनी शेयर मार्केट से 10 लाख रुपए या जितने पैसे की उसे जरूरत हो उतना पैसा इकट्ठा कर सकती हैं. फिर जैसे-जैसे कंपनी मुनाफा करती है तो उसके शेयर का प्राइस भी बढ़ता जाता है और जिन लोगों ने उस कंपनी के शेयर में पैसा लगाया होता है उनका पैसा भी बढ़ता जाता है.

शेयर मार्केट में लोग नुकसान कैसे करते हैं?

कुछ लोग होते हैं जिनको शेयर मार्केट की बेसिक नॉलेज ही नहीं होती और शेयर बाजार में कूद पड़ते हैं पैसा लगाने के लिए. किसी के भी कहने पर किसी भी शेयर में पैसा लगा देते हैं. उनको दिखाया जाता है कि उस शेयर का प्राइस बढ़ रहा है और बस वह शेयर का प्राइस चार्ट देखकर उसे खरीद लेते हैं. लेकिन कुछ समय बाद जब वह शेयर गिरना चालू होता है तो आपका पूरा पैसा डूब जाता है.

शेयर बाजार में लोगों को नुकसान इसलिए होता है क्योंकि―

  • आपको शेयर बाजार के बेसिक नियम ही नहीं पता है.
  • कंपनी पर बिना रिसर्च किए उसमें पैसा लगा देना.
  • कंपनी का बिजनेस मॉडल ही नहीं पता होना.
  • कंपनी के बिजनेस की बजाए शेयर का प्राइस देखकर पैसा लगाना।
  • सिर्फ सस्ते शेयर खरीदने के चक्कर में पैसा लगाना।
  • लोगों से टिप्स लेकर पैसा लगाना.
  • धीरज ना होना मतलब कुछ लोग सोचते हैं कि
  • सिर्फ 10 दिन में पैसा डबल हो जाए इसलिए नुकसान करते हैं।

कुछ लोगों के साथ तो ऐसा होता है कि वह शेयर खरीद तो लेते हैं लेकिन कुछ समय बाद वह उसे बेच नहीं पाते हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस शेयर में सर्किट लग जाते हैं. अब आपको पता होना चाहिए कि शेयर बाजार में अपर सर्किट और लोअर सर्किट क्या होते हैं क्योंकि कुछ लोगों को तो इसके बारे में ही जानकारी नहीं होती है फिर भी बाजार में पैसा लगाने के लिए आ जाते हैं.

आपके मन में सवाल आना चाहिए कि―

क्या होगा अगर शेयर बेचने वाले तो हो लेकिन शेयर खरीदने वाले नहीं?

ऐसा ज्यादातर छोटी कंपनियों के साथ होता है जिनकी मार्केट कैप बहुत कम होती है मतलब micro cap या small cap कंपनियों के शेयर जिनमें लिक्विडिटी बहुत कम होती है ऐसे स्टॉक्स को illiquid stocks बोलते हैं.

मान लीजिए कोई कंपनी बहुत छोटी है जो शेयर बाजार में लिस्टेड है. अब उस कंपनी से संबंधित कोई अच्छी खबर आ गई तो लोग उसके शेयर खरीदने लगते हैं लेकिन जब कंपनी में कोई फ्रॉड होता है या फिर कोई गड़बड़ होती है तो लोग और कंपनी के शेयर बेचने लगते हैं और ज्यादा लिक्विडिटी ना होने की वजह से लगभग सभी लोग शेयर बेचने लगते हैं जिससे विक्रेता यानी sellers बहुत ज्यादा हो जाते हैं और buyers बहुत कम.

ऐसी situation में शेयरों में lower circuit लग जाते हैं जो 5% से लेकर 20% के हो सकते हैं.

ठीक इसी तरह जब किसी छोटी कंपनी के शेयर को अचानक से सभी लोग खरीदने लगते हैं तो उसमें upper circuit लग जाता है और कुछ टाइम के लिए ट्रेडिंग बंद हो जाती है।

आपको पता होना चाहिए कि शेयर बाजार में 90% लोग सिर्फ पैसा गंवाते हैं जिसका मुख्य कारण होता है― बिना जानकारी के निवेश करना . इसीलिए शेयर बाजार में पैसा लगाने से पहले आपको शेयर बाजार की बेसिक चीजें सीखना पड़ता है जैसे शेयर के भाव कैसे ऊपर नीचे होते हैं आपको यह पता होना चाहिए।

हर साल निफ़्टी और सेंसेक्स क्यों बढ़ते हैं? (Why sensex and nifty go up every year?)

अगर आप निफ्टी या सेंसेक्स का पिछले 20 साल का चार्ट देखें तो यह लगातार बढ़ रहा है.

ऐसे में आपके मन में एक सवाल जरूर आता होगा कि क्या निफ्टी और सेंसेक्स भविष्य में भी लगातार ऐसे ही बढ़ते रहेंगे?

सबसे पहला सवाल तो यह है कि आखिर यह निफ्टी और सेंसेक्स क्यों बढ़ते हैं?

तो देखिए short term में निफ्टी और सेंसेक्स भले ही काफी ऊपर नीचे हो रहे होते हैं लेकिन Long term में यह ऊपर ही जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब देश की इकॉनमी बढ़ती है तो शेयर मार्केट भी बढ़ता है।

देश की इकॉनमी का शेयर मार्केट पर क्या प्रभाव पड़ता है?

आपको पता होगा कि हर साल देश में महंगाई बढ़ रही है नई नई कंपनियां खुल रही है, नई नई टेक्नोलॉजी आ रही है. हाईवे, मेट्रो, अस्पताल आदि की सुविधाएं लगातार बढ़ती ही जा रही है जिसका मतलब यह है कि देश की अर्थव्यवस्था सुधार रही है. और जब देश आगे बढ़ता है तो उस देश का शेयर मार्केट भी बढ़ता है।

इंडिया जो कि एक developing country है जो लगातार तरक्की के मार्ग पर है इसीलिए निवेश के नए नए रास्ते खुल रहे हैं और लोग लगातार शेयर बाजार में पार्टिसिपेट कर रहे हैं. पहले लोग सिर्फ गोल्ड और FD तक ही सीमित थे. लेकिन अब लोग stocks, bond और म्युचुअल फंड में भी पैसा लगा रहे हैं. इन सब का शेयर मार्केट पर बहुत गहरा असर पड़ता है.

FAQs releted share market kaise kaam karta hai

वास्तव में शेयर बाजार या स्टॉक मार्केट कैसे काम करता है.

शेयर मार्केट में रोजाना करोड़ों रुपए की खरीदारी और बिकवाली होती है. लाखों लोग हर रोज पैसा लगाते हैं जिसमें से कुछ लोग पैसा कमाते हैं तो कुछ लोग गवाते हैं. ऐसा ही हर रोज चलता रहता है और इस प्रकार स्टॉक मार्केट निरंतर काम करता रहता है।

शेयर का भाव ऊपर नीचे कैसे होता है?

किसी भी शेयर का भाव उसकी मांग और पूर्ति के आधार पर कम या ज्यादा होता है. अगर कोई इलेक्ट्रिसिटी कंपनी है और देश में पावर की डिमांड पड़ती है तो उस कंपनी के शेयर की डिमांड भी बढ़ जाती है इस प्रकार उस कंपनी के शेयर का भाव बढ़ जाता है और जब डिमांड कम हो जाती है तो भाव घट जाता है।

सेंसेक्स और निफ्टी में उतार-चढ़ाव कैसे होता है?

शेयर बाजार में हो रहे उतार-चढ़ाव के चलते सेंसेक्स और निफ्टी में तेजी या गिरावट होती रहती है. जब कोई अच्छी खबर आती है तो सेंसेक्स ऊपर और नेगेटिव खबर आने पर सेंसेक्स नीचे. इस प्रकार सेंसेक्स और निफ्टी में उतार-चढ़ाव होना आम बात है।

शेयर मार्केट को कौन ऑपरेट करता है?

शेयर बाजार को SEBI ही operate करता है मतलब चलाता है. लेकिन कुछ लोग हैं जो ऑपरेटर बनकर किसी भी शेयर का भाव अचानक से बढ़ा देते हैं या गिरा देते हैं. इसीलिए आपको शेयर बाजार के ऐसे ऑपरेटर लोगों से बचकर रहना चाहिए।

उम्मीद करता हूं अब आप समझ चुके होंगे कि शेयर मार्केट कैसे काम करता है? (How stock market works in hindi) इस पोस्ट में मैंने शेयर मार्केट के काम करने से जुड़ी जानकारी विस्तार से देने की कोशिश की है. साथ ही मैंने निफ्टी और सेंसेक्स, स्टॉक एक्सचेंज और आईपीओ के बारे में अभी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की है.

  • शेयर बाजार में शुरुआत कैसे करें?
  • शेयर मार्केट कैसे सीखे? How to learn share market in hindi
  • शेयर मार्केट में नुकसान होने के 15 बड़े कारण
  • शेयर मार्केट के बारे में 10 झूठी बातें जो आपको पता होना चाहिए?

अगर आपका शेयर मार्केट से संबंधित कोई सवाल है तो कमेंट करके अवश्य पूछिए और शेयर मार्केट के बारे में सीखते रहने के लिए इस ब्लॉग की अन्य पोस्ट जरूर पढ़ें।

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बाजार पर निबंध Essay on Market in Hindi

नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है आज का निबंध बाजार पर निबंध Essay on Market in Hindi पर दिया गया हैं. यहाँ हम स्टूडेंट्स के लिए मार्केट पर आसान निबंध दिया गया हैं.

इस लेख में हम जानेगे कि बाजार क्या है इसका अर्थ महत्व और जीवन में बाजार की उपयोगिता के बारे में जानकारी दी गई हैं.

एक एकला व्यक्ति अपनी समस्त आवश्यकताएं पूरी नही कर सकता है. उसे बाजार (अंग्रेजी में Market/ bazar)  का सहारा लेना पड़ता है. सभ्यता के आरम्भ से ही मनुष्य एक दूसरे पर निर्भर रहा है.

हालांकि समय के बदलाव के साथ बाजार के स्वरूप का विस्तार होता रहा है. प्रारम्भ में मनुष्य की आवश्यकताएं बहुत कम थी, इस कारण बाजार भी छोटे हुआ करते थे. तथा वह अपने आस-पास से ही अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर लेता था.

प्राचीन समय में व्यक्ति बाजार में उनकी आवश्यकताओं की वस्तुएं देता था तथा अपनी आवश्यकता की वस्तुएं प्राप्त करता था. जैसे किसान अपने खेत में पैदा अनाज के बदले अपनी आवश्यकता का सामान प्राप्त करता था.

वह अनाज के बदले में जुलाहें से कपड़ा, लुहार से औजार तथा कुम्हार से बर्तन प्राप्त करता ठस. इस प्रकार वस्तु के बदले वस्तु देकर एक दूसरे की आवश्यकताएं पूरी की जाती थी.

बाजार की यह प्रणाली वस्तु विनिमय कहलाती थी. एक ही स्थान पर रहने वाले लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति इसी प्रकार से करते थे.

समय गुजरने के साथ साथ मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ने लगी और उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नयी नई वस्तुओं का निर्माण होने लगा.

वस्तुओं के निर्माण की नई नई विधियाँ खोजी गई, और जनसंख्या वृद्धि के साथ साथ बड़ी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन किया जाने लगा.

कृषि एवं परम्परागत वस्तुओं के उत्पादन के साथ साथ लघु व कुटीर उद्योगों में आवश्यकता की अनेक वस्तुओं का उत्पादन होने लगा.

अब वस्तु के बदले वस्तु देने की प्रणाली के द्वारा लोगों को आवश्यकता पूर्ती में कठिनाई होने लगी. धीरे धीरे लेन देन की नई बाजार प्रणाली (Market system) का जन्म हुआ.

मुद्रा के विकास के साथ ही मुद्रा के बदले वस्तुओं के लेने देने की सुविधापूर्ण प्रणाली विकसित हुई. जब मूल्य के रूप में वस्तु न दी जाकर मुद्रा दी जाती है तो इसे मुद्रा विनिमय कहते है.

बाजार का आधुनिक स्वरूप (what is marketing concept)

आधुनिक युग मशीनों का युग है. बड़े बड़े कारखानों में लगे मजदूर हमारी आवश्यकता की हजार तरह की वस्तुए तैयार रखते है. आज व्यक्ति केवल अपने, गाँव, शहर या देश की ही नही बल्कि विदेशों में बनी वस्तुओं का उपयोग भी करने लगा है.

यह वस्तु विनिमय प्रणाली में संभव नही था, परन्तु मुद्रा विनिमय प्रणाली ने इसे संभव बना दिया है. हम बाजार जाते है और बाजार से अपनी आवश्यकता की बहुत सी चीजों को खरीदते है.

जैसे सब्जियां, साबुन, दंत मंजन, मसाले, ब्रेड, बिस्किट, चावल, दाल, कपड़े, किताबों, कोपियाँ आदि. हम जो कुछ खरीदते है, इन सभी वस्तुओं की सूची बनाई जाए तो वह बहुत लम्बी है. बाजार भी कई प्रकार के होते है. जहाँ हम अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदने के लिए जाते है.

जैसे हमारे पडोस की गुमटी मोहल्ले की दूकान, साप्ताहिक हाट बाजार, बड़े बड़े शोपिंग काम्प्लेक्स और शॉपिंग मॉल आदि. आइये अब बाजार के इन विभिन्न स्वरूपों के बारे में जानते है.

बाजार के विभिन्न प्रकार व उनके कार्य (different types & classification of market in hindi) 

मोहल्ले की दुकान (Neighborhood store)-  बहुत सी दुकाने हमारे मोहल्ले में होती है, जो हमे कई तरह की सेवाएं और सामान उपलब्ध करवाती है.

हम पास की डेयरी से दूध, किराना व्यापारी से तेल मसाले व अन्य खाद्य पदार्थ तथा स्टेंनरी के व्यापारी से कागज पैन या फिर दवाइयों की दूकान से दवाई खरीदते है.

नाई की दूकान पर अपने बाल कटवाते है और ड्राई क्लीनर से वस्त्र धुलवाते व इस्त्री करवाते है. नाई व ड्राई क्लीनर हमे अपनी सेवाएं प्रदान करते है. इस तरह की दुकाने सामान्यतः पक्की व स्थायी होती है.

जबकि सड़क किनारे फुटपाथ पर सब्जियों के कुछ छोटे दुकानदार, फल विक्रेता और कुछ गाड़ी मैकेनिक आदि भी दिखाई देते है.

ये मोहल्ले की दुकाने कई अर्थों में उपयोगी होती है. वे हमारे घरों के करीब होती है. अतः हम सप्ताह के किसी दिन और किसी भी समय इन दुकानों पर जा सकते है.

साप्ताहिक बाजार (weekly shop) – साप्ताहिक बाजार का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि बाजार सप्ताह के लिए निश्चित दिन लगता है. इस तरह के बाजार में रोज खुलने वाली पक्की दुकाने नही होती है.

किसी निश्चित स्थान पर बहुत से व्यापारी एक निश्चित दिन खुले में ही दुकाने लगाते है और शाम को उन्हें समेट लेते है. अगले दिन वे अपनी दुकानों को किसी अन्य स्थान पर लगाते है.

ऐसे बाजारों को हाट बाजार भी कहा जाता है. साप्ताहिक बाजारों में रोजमर्रा की जरूरतों की बहुत सी चीजे सस्ते दामों में मिल जाती है.

ऐसा इसलिए कि इन बाजारों में एक ही तरह के सामानों की कई दुकाने होती है, जिससे उनमें आपस में प्रतियोगिता होती है, अतः खरीददारों को अवसर होता है. कि वे मोल तोल करके भाव कम करवा सके.

साथ ही उन्हें अपनी दुकानों का किराया, बिजली का बिल, सरकारी शुल्क, कर्मचारी की तनख्वाह आदि का भी खर्च नही करना पड़ता है. लोग अक्सर इन बाजारों में जाना पसंद करते है.

शॉपिंग कॉम्प्लेक्स व मॉल (Shopping Complex and Mall)-  बड़े शहरों में कुछ इस प्रकार के बाजार भी होते है. जहाँ एक ही छत के नीचे अनेक वस्तुओं की दुकाने होती है. इन्हें लोग शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के नाम से जानते है.

कुछ शहरी इलाकों में आपकों बहुमंजिला वातानुकूलित दुकानें भी देखने को मिलेगी, जिनकी अलग अलग मंजिलों पर अलग अलग तरह की वस्तुएं मिलती है. इन्हें शॉपिंग मॉल भी कहा जाता है.

विशेष बाजार (Special market) – शहर में कई स्थानों पर एक वस्तु विशेष के लिए विशेष बाजार होते है, जैसे कपड़ा बाजार, लोहा बाजार, अनाज बाजार आदि. इन बाजारों में एक ही प्रकार की वस्तु की कई दुकाने होती है.

थोक व्यापारी व फुटकर व्यापारी (Wholesaler and retailer in hindi)

वस्तुओं अथवा सामान का उत्पादन खेतों, घरेलु उद्योगों और कारखानों में होता है. लेकिन हम ये सामान इन उत्पादकों से सामान्यत सीधे सीधे नही खरीदते है.

वे लोग जो वस्तु के उत्पादक और वस्तु के उपभोक्ता के बिच में होते है, उन्हें व्यापारी (merchant) कहा जाता है. व्यापारी दो प्रकार होते है.

  • वे व्यापारी जो उत्पादक से बड़ी मात्रा या संख्या में सामान खरीद लेते है, और इन्हें फिर छोटे छोटे व्यापारियों को बेच देते है, ये थोक व्यापारी कहलाते है. जैसे सब्जियों का ठोक व्यापारी 10-15 किलों सब्जी नही खरीदता है, बल्कि बड़ी मात्रा में 300-400 किलों तक सब्जी खरीद लेता है. वह उन्हें गली मोहल्ले के छोटे छोटे सब्जी विक्रेताओं को बेच देता है. यहाँ खरीदने वाले तथा बेचने वाले दोनों व्यापारी ही होते है.
  • वह व्यापारी जो अंतः वस्तुएं हम उपभोक्ताओं को बेचता है, वह खुदरा या फुटकर व्यापारी कहलाता है. यह वही दुकानदार होता है. जो आपकों पड़ोस की दुकानों, साप्ताहिक बाजार या फिर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में सामान बेचता है.

One comment

Very very nice essay thank you

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Essay on Monopoly | Hindi | Markets | Economics

essay about market in hindi 10 points

Here is an essay on ‘Monopoly’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Monopoly’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Monopoly

Essay Contents:

  • क्या एकाधिकारी ‘कीमत’ तथा ‘उत्पादन मात्रा’ दोनों को साथ-साथ निश्चित कर सकता है ? (Can a Monopolist Fix Both the Price and Output Simultaneously ?)

Essay # 1. एकाधिकार की परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Monopoly):

ADVERTISEMENTS:

एकाधिकार दो शब्दों से मिलकर बना है – एक + अधिकार अर्थात् बाजार की वह स्थिति जब बाजार में वस्तु का केवल एक मात्र विक्रेता हो । एकाधिकारी बाजार दशा में वस्तु का एक अकेला विक्रेता होने के कारण विक्रेता का वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है । विशुद्ध एकाधिकार (Pure Monopoly) में वस्तु का निकट स्थानापन्न भी उपलब्ध नहीं होता ।

एकाधिकारी बाजार में वस्तु का एक ही उत्पादक होने के कारण फर्म तथा उद्योग में कोई अन्तर नहीं होता अर्थात् एकाधिकार में उद्योग ही फर्म है अथवा फर्म ही उद्योग है ।

प्रो. मैक्कॉनल (Mc Connell) के शब्दों में, ”शुद्ध एकाधिकार की स्थिति उस समय होती है जब एक अकेली फर्म एक वस्तु की एकमात्र उत्पादक होती है जिसका कोई स्थानापन्न नहीं होता ।”

प्रो. ब्रैफ (Braff) के शब्दों में, ”शुद्ध एकाधिकार के बाजार में एक विक्रेता होता है । एकाधिकारी माँग बाजार की माँग होती है, एकाधिकारी कीमत निर्माता होता है । एकाधिकार स्थानापन्न का अभाव प्रदर्शित करता है ।”

प्रो. लेफ्टविच (Leftwitch) के अनुसार, ”शुद्ध एकाधिकार वह बाजार दशा है जिसमें एक फर्म उस वस्तु के उत्पादन को बेचती है जिसका स्थानापन्न उपलब्ध न हो । इस प्रकार वस्तु का सम्पूर्ण बाजार इस फर्म के लिए ही होता है । इसमें समीपस्थ वस्तुएँ नहीं होतीं जिनकी कीमत एवं बिक्री एकाधिकारी वस्तु की कीमत एवं उनके विक्रय को प्रभावित कर सकें ।”

एकाधिकार में निकट स्थानापन्न के अभाव को माँग की आड़ी लोच (Cross Elasticity of Demand) के शब्दों में भी व्यक्त किया जा सकता है । माँग की आड़ी लोच से अभिप्राय है कि किसी वस्तु की माँग में किसी दूसरी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप कितना परिवर्तन होता है ।

इस प्रकार एकाधिकार में एकाधिकारी वस्तु की आड़ी माँग लोच लगभग शून्य अथवा नगण्य होती है क्योंकि एकाधिकारी वस्तु का स्थानापन्न नहीं होता ।

प्रो. स्टिगलर के अनुसार, ”एकाधिकार तब उत्पन्न होता है जब फर्म के उत्पादन की आड़ी माँग लोच दूसरी फर्मों की कीमतों के सन्दर्भ में सूक्ष्म हो ।”

विशुद्ध एकाधिकार में माँग की लोच इकाई होती है जिसके कारण एकाधिकार के माँग वक्र के प्रत्येक बिन्दु पर उपभोक्ता का व्यय एकसमान रहता है । प्रो. स्टोनियर एवं प्रो. हेग के अनुसार, ऐसी दशा में औसत आगम वक्र (AC Curve) आयताकार अतिपरवलय (Rectangular Hyperbola) होता है जिसकी माँग की लोच इकाई के बराबर होती है ।

एकाधिकार में एकमात्र उत्पादक एवं विक्रेता होने के कारण तथा निकट स्थानापन्न के अभाव के कारण उद्योग में अन्य फर्मों के प्रवेश पर कड़ा प्रतिबन्ध होता है । दूसरे शब्दों में, एकाधिकार में और उद्योग में कोई अन्तर नहीं होता; फर्म ही उद्योग है तथा उद्योग ही फर्म है (Firm is Industry and Industry is Firm) | फलस्वरूप वस्तु का उद्योग माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है ।

एकाधिकारी पूर्ण प्रतियोगिता के उत्पादक की भाँति कीमत प्राप्तकर्ता (Price Taker) नहीं होता बल्कि कीमत निर्धारक (Price Maker) होता है किन्तु एकाधिकारी किसी वस्तु की कीमत तथा उस वस्तु की पूर्ति दोनों को एक साथ नियन्त्रित नहीं कर सकता । यदि वह विक्रय को बढ़ाना चाहता है तो उसे कीमत कम करनी पड़ेगी ।

एकाधिकारी के लिए सीमान्त आगम कम होता है औसत आगम से,

या, MR < वस्तु की प्रति इकाई कीमत

क्योंकि एकाधिकार में,

essay about market in hindi 10 points

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भावात्मक निबंध

इसमे बुद्धि तत्व की अपेक्षा भाव पक्ष का महत्व अधिक होता है। क्योंकि इसका सम्बन्ध भावना अर्थात हमारे ह्रदय से होता है। इसमे तीन प्रकार कि शैलियों का उपयोग किया जाता है।धारा शैली, तरंग शैली, विशेष शैली।

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Hindi Essays for Class 10: Top 20 Class Ten Hindi Essays

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List of Popular Essays for Class 10 students written in Hindi Language !

Hindi Essay Content:

1. डा. प्रतिक्षा पाटिल पर निबन्ध | Essay on Dr. Prativa Patil in Hindi

2. डा. मनमोहन सिंह पर निबन्ध | Essay on Dr. Manmohan Singh in Hindi

3. सी.एन.जी. पर निबन्ध | Essay on Compressed Natural Gas (C.N.G.) in Hindi

4. दिल्ली मेट्रो रेल पर निबन्ध | Essay on Delhi Metro Rail in Hindi

5. कम्प्यूटर: आधुनिक युग की माँग पर निबन्ध | Essay on Computer : Demand of the Modern Age in Hindi

6. इन्टरनेट: एक प्रभावशाली सूचवा माध्यम पर निबन्ध | Essay on Internet : An Influential Method of Communication in Hindi

7. कल्पना चावला पर निबन्ध | Essay on Kalpana Chawla in Hindi

8. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर निबन्ध | Essay on Mahatma Gandhi : Father of the Nation in Hindi

ADVERTISEMENTS:

9. पं. जवाहारलाल नेहरू पर निबन्ध | Essay on Pandit Jawaharlal Nehru in Hindi

10. युगपुरुष-लाल बहादुर शास्त्री पर निबन्ध | Essay on Lal Bahadur Sastri : An Icon of the Age in Hindi

11. भारत रत्न श्रीमती इन्दिरा गाँधी पर निबन्ध | Essay on Bharat Ratna : Srimati Indira Gandhi in Hindi

12. नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर निबन्ध | Essay on Netaji Subash Chandra Bose in Hindi

13. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद पर निबन्ध | Essay on Dr. Rajendra Prasad : India’s First President in Hindi

14. शहीद भगतसिंह पर निबन्ध | Essay on Bhagat Singh the Martyr in Hindi

15. डा. भीमराव अम्बेडकर पर निबन्ध | Essay on Dr. Bhimrao Ambedkar in Hindi

16. कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर पर निबन्ध | Essay on Great Poet Rabindranath Tagore in Hindi

17. स्वामी विवेकानन्द पर निबन्ध | Essay on Swami Vivekananda in Hindi

18. गुरू नानक देव पर निबन्ध | Essay on Guru Nanak Dev in Hindi

19. महावीर स्वामी पर निबन्ध | Essay on Mahavir Swami in Hindi

20. नोबेल पुरस्कार विजेता: अमतर्य सेन पर निबन्ध |Essay on Amartya Sen : The Nobel Laureate in Hindi

Hindi Nibandh (Essay) # 1

डा. प्रतिक्षा पाटिल पर निबन्ध | Essay on Dr. Prativa Patil in Hindi

प्रस्तावना:

भारतवर्ष की भूमि महापुरुषों की भूमि है, परन्तु यहाँ की स्त्रियाँ भी किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं है । भारत की पहली महिला प्रधानमन्त्री का गौरव यदि श्रीमती इन्दिरा गाँधी को प्राप्त हुआ, तो पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को प्राप्त हुआ है ।

जन्म-परिचय एवं शिक्षा:

श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल का जन्म 19 दिसम्बर,1934 को महाराष्ट्र के ‘नन्दगाँव’ नामक स्थान पर हुआ था । आपके पिता का नाम श्री नारायण राव था । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा जलगाँव (महाराष्ट्र) के आर.आर. स्कूल में हुई ।

मूलजी सेठ (छ:) कालेज जलगाँव से स्नातकोत्तर की उपाधि लेने के पश्चात् आपने गवर्नमेन्ट ली कालेज, मुम्बई से कानून की उपाधि प्राप्त की । श्रीमती प्रतिभा देवी की प्रारम्भ से ही खेलकूद में रुचि थी और आपने अपने समय में कालेज प्रतियोगिताओं में कई पदक तथा सम्मान प्राप्त किए ।

शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् आपने जलगाँव कोर्ट में बतौर अधिवक्ता व्यवसायिक जीवन व्यतीत करना प्रारम्भ किया तथा साथ-साथ जनकल्याणकारी कार्यों में भी रुचि लेने लगी । सामाजिक कार्यों में भी आपका ध्यान विशेष रूप से महिलाओं की बहुमुखी समस्याओं तथा उनके समाधानों के प्रति रहा ।

वैवाहिक जीवन:

श्रीमती पाटिल का परिणय डी. देवीसिंह, रामसिंह शेखावत से साथ हुआ था । उन्होंने मुम्बई हॉफकीन इंस्टीट्‌यूट से रसायन विज्ञान से पी.एच.डी. की । शेखावत जी अमरावती निगम के ‘मेयर’ रहे हैं तथा उसी क्षेत्र के विधायक भी रहे हैं । श्रीमती पाटिल के दो सन्ताने हैं- पुत्री ज्योति राठौर एवं पुत्र रामेन्द्र सिंह ।

राजनीतिक जीवन:

श्रीमती पाटिल का राजनीतिक जीवन सत्ताईस वर्ष की आयु में ही प्रारम्भ हो गया था । सर्वप्रथम आप जलगाँव विधानसभा क्षेत्र से चुनी गयी । तत्पश्चात इलाहाबाद (मुकताई नगर) का बतौर बिधायक चार बार प्रतिनिधित्व किया । 1985 से 1990 तक आप राज्यसभा से सांसद रही ।

1991 में दसवीं लोकसभा के लिए अमरावती संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन आप पराजित हो गई । श्रीमती पाटिल ने अपना अधिकांश जीवन महाराष्ट्र के लिए ही समर्पित किया । आप लोकस्वास्थ्य विभाग, मधनिषेध मन्त्री, पर्यटन मन्त्री, संसदीय एवं आवास मन्त्री भी रह चुकी हैं । आपका यह कार्यकाल 1967-1972 तक रहा ।

श्रीमती पाटिल ने अनेक विभागों में केबिनेट मन्त्री का पद भी सम्भाला जैसे- 1972 में महाराष्ट्र सरकार में समाज कल्याण विभाग, 1974-1975 तक समाज कल्याण तथा लोकस्वास्थ्य विभाग, 1975-76 तक मधनिषेध, पुर्नवास, सांस्कृतिक कार्य विभाग, 1977 में शिक्षा मन्त्री, 1982-85 में असैनिक आपूर्ति एवं समाज कल्याण विभाग ।

1979 से फरवरी 1980 तक आप प्रदेश सरकार में विपक्ष की नेता भी रहीं । आप डी. वेंकटरमन के कार्यकाल में राज्यसभा की अध्यक्ष रह चुरकी हैं एवं 1988 में राज्यसभा के दौरान व्यवसायिक सलाहकार समिति की सदस्य बनी ।

सामाजिक कार्यक्षेत्र:

श्रीमती पाटिल लोक कल्याण के कार्यों से सदैव जुड़ी रही तथा अनेक संस्थानों के उत्थान हेतु कार्य किए । आप महाराष्ट्र प्रांत में जलप्राधिकरण की अध्यक्ष रहीं । 1982-85 तक महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं, अर्बन सहकारी बैंक एवं क्रेडिट सोसायटी, संघीय समिति के निदेशक पद पर कार्यरत रही । आप सदा ही सामाजिक कल्याण के कार्यों में भी रुचि लेती रही हैं ।

इस सम्बन्ध में आपकी धारणा विश्व-बन्धुत्व पर आधारित है इसीलिए आपने देश विदेश में आयोजित होने वाले सामाजिक कल्याण के सम्मेलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है । 1985 में बुल्गारिया में आयोजित सभा को बतौर प्रतिनिधि सम्बोधित किया । 1985 में लन्दन की कमेटी ऑफ आफिसर्स कांफ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व किया ।

सितम्बर 1995 में चीन में ‘वर्ल्ड वोमेन्स कोऑपरेटिव’ नामक सेमिनार की प्रतिनिधि रही । आपने पिछड़ी जाति के बच्चों के विकास के लिए विशेष योगदान दिया । ग्रामीण युवाओं के लिए जलगाँव में इंजिनियरिंग कॉलेज खुलवाया, रोजगार दिलाने के लिए जिलेवार पुणे संस्थान खुलवाए ।

अमरावती और महाराष्ट्र में अनुवांशिक संस्था , संगीत कॉलेज , फैशन डिजाइनिंग , ब्यूटिशियन कोर्स तथा व्यवसायिक कोर्स से सम्बन्धित संस्थाओं की स्थापना करवाई । 1962 में आपने महाराष्ट्र के महिला कोषांग की स्थापना करवाई ।

राष्ट्रपति के रूप में :

राजनीतिक गलियारों में जब राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम के उत्तराधिकारी की चर्चा हो रही थी तथा राजनीतिक दलों के बीच विवाद गहरा रहा था तभी नए राष्ट्रपति के रूप में श्रीमति पाटिल के नाम का प्रस्ताव सभी विवादों को शान्त कर गया । United progressive Alliance के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की ओर से श्रीमती प्रतिभा पाटिल के नाम की उद्‌घोषणा की गई ।

आपने अपने प्रतिद्वन्द्वी श्री भैरोसिंह शेखावत जी को 3,06,810 मतों से पराजित कर राष्ट्रपति पद का गौरव अपने नाम कर लिया । 25 जुलाई, 2007 को श्रीमती पाटिल को राष्ट्रपति पद की गरिमा एवं गोपनीयता की शपथ सर्वोच्च न्यायाधीश आर.जी. बालकृष्ण द्वारा दिलाई गई ।

श्रीमती पाटिल के शपथ ग्रहण करते ही केन्द्रीय कक्ष तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा । इस अवसर पर उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई । इस समारोह में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह, यू.पी.ए. की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी कई देशों के राजदूत, विपक्ष सहित तमाम दलों के वरिष्ठ नेता, कई राज्यों के गवर्नर तथा मुख्यमन्त्रियों सहित तीनों सेनाओं के सेनापति व कई गढ़मान्य व्यक्ति शामिल थे ।

राष्ट्रपति पद सम्भालने के बाद अपने प्रथम भाषण में श्रीमती पाटिल ने बच्चों तथा स्त्रियों के अधिकारों के प्रति प्रतिबद्वता व्यक्त करते हुए आधुनिक शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं को व्यापक बनाने की आवश्यकता जताई ।

आपने सामाजिक कुरीतियों, कुपोषण, बाल मृत्यु एवं कन्या भूण हत्या के अपराधों को जड से समाप्त करने की अपील की । पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम अपने कार्यकाल में भारतीय सविधान के ‘रबर स्टाम्प’ को पच्छिक प्रापर्टी के रूप में बहुत लोकप्रिय बना चुके हैं ।

उनकी उसी छवि को ऊँचाईयों तक पहुँचाना निःसन्देह बख्य मुस्किल कार्य है । परन्तु श्रीमती पाटिल भी गम्भीर, धैर्यवान, सुशिक्षित तथा समझदार महिला के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं । श्रीमती पाटिल ने कृषि तथा किसानों की समस्याओं पर भी विशेष जोर दिया है । उनका बस एक ही सपना है कि भारत बहुमुखी विकास करें तथा पूरे विश्व में प्रथम स्थान पा सके ।

इसके लिए महामहिम राष्ट्रपति अपनी कानूनी जिम्मेदारियों की सीमा में रहते हुए भारत सरकार को प्रोत्साहित करती रहती हैं । वे चाहती हैं कि हमारा देश सशक्त राष्ट्र बने, आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो तथा सांस्कृतिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्णतया आत्मनिर्भर हो ।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि श्रीमती पाटिल ने सदा ही अपने पद की गरिमा को बनाए रखा है । वे अपनी सभी जिम्मेदारियाँ बहुत सूझ-बूझ से निभा रही हैं और बहुत कम समय में भारतीय जनता के दिलो में घर बना चुकी है ।

Hindi Nibandh (Essay) # 2

डा. मनमोहन सिंह पर निबन्ध | Essay on Dr. Manmohan Singh in Hindi

विशाल गणराज्य भारत देश बहुत महान तथा विशाल है । जहाँ एक ओर ऋषियों, मुनियों तथा तपस्वियों ने अनेक साधनाएँ की हैं वही दूसरी ओर अनेक वैज्ञानिकों ने भारत को उन्नति के शिखर पर पहुँचाया । हमारे देश में प्रजातन्त्रीय प्रणाली के अनुसार संसद का चुनाव होता है तथा चुनाव के उपरान्त देश को प्रधानमन्त्री की भी आवश्यकता होती है ।

स्वतन्त्र भारत में अब तक संसद को प्रधानमन्त्री के रूप में पं. जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गाँधी, मोरारजी देसाई, चौ. चरण सिंह, राजीव गाँधी, वी.पी. सिंह, चन्द्र शेखर, पी.वी. नरसिम्हाराव, एच.डी. देवगौड़ा, इन्द्र कुमार गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी मिले ।

इसी बीच संसद में दो बार तेरह-तेरह दिन के लिए गुलजारी लाल नन्दा को कार्यकारी प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जा चुका है । चौदहवीं लोकसभा में डा.मनमोहन सिंह प्रधानमन्त्री बने हैं पंद्रहवीं लोकसभा में पुन: डा. मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंत्री बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ हैं आपने 22 मई, 2009 को सायं 5.30 बजे माननीय राष्ट्रपति तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की ।

जन्म परिचय एवं शिक्षा:

डा. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर, 1932 को पंजाब (पाकिस्तान) में ‘गाह’ नामक स्थान पर हुआ था । आपके पिता का नाम सरदार गुरुमुख सिंह तथा माता को नाम अमरूत कौर था । आपकी केवल तीन बहने हैं । मनमोहन सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा एक स्थानिय तथा निकटवर्ति क्षेत्रीय स्कूल में हुई थी ।

सन् 1952 में आपने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की । 1954 में आपने पंजाब विश्वविद्यालय से ही अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की । सेंट जोंस कॉलेज कैम्बिज ने 1957 में पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन के लिए आपको पुरस्कृत किया ।

तत्पश्चात् आपने 1957 में पी.एच.डी. का शोध कार्य ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से किया ।  डा. मनमोहन सिंह को अनेक यूनिवर्सिटीयों ने डी.लिट् की उपाधियाँ प्रदान की । पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़; गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर; दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली; चौधरी चरणसिंह, हरियाणा; एग्रीकल्वर यूनिवर्सिटी, हिसार; श्री वैंकटेश्वर यूनिवर्सिटी, तिरुपति, यूनिवर्सिटी ऑफ बोहोगा, इटली आदि इनमें प्रमुख हैं ।

डा. मनमोहन सिंह ने लेक्चरर तथा रीडर के रूप में 1957 से 1965 तक पंजाब विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य किया । 1969 में डी. सिंह दिल्ली स्कूल ऑफ इकनोमिक्स में नियुक्त हो गए । आपने सन् 1971 तक वहाँ सेवा कीं । आपने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी अपनी अवैतनिक सेवाएँ दी । डा. मनमोहन सिंह का विवाह 14 दिसम्बर, 1958 को गुरुशरन कौर से हुआ था; जिनसे इनकी तीन पुत्रियाँ हुई ।

व्यक्तित्व की बिशेषताएँ:

डा. मनमोहन सिंह उच्च कोटि के शिक्षित व्यक्ति हैं । उन्होंने अर्थशास्त्र में अनेक पुस्तकें लिखी हैं, जो देशवासियों का मार्गदर्शन करती हैं । आपने वित्तीय सलाहकार, प्रमुख अर्थशास्त्र सलाहकार, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर तथा अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विदेश नीति सलाहकार के रूप में राष्ट्र की सेवाएँ की हैं ।

आपने भारतीय आणविक ऊर्जा आयोग, योजना आयोग, अन्तरिक्ष आयोग, ऐशियन बैंक विकास क्षेत्रों में भी कार्य किया है । आपने वित्त (कैबिनेट) मन्त्री के रूप में भी देश की अनूठी सेवा की है । आप राज्य सभा के लिए भी निर्वाचित हो चुके हैं ।

हमारे सुयोग्य प्रधानमन्त्री अत्यन्त साधारण, सहयोगी तथा सुशिक्षित है । इन सभी गुणों के उपरान्त भी आपमें लेशमात्र भी घमंड या अहंकार नहीं है । डा. मनमोहन सिंह को अनेक डिग्रियाँ तथा पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं ।

आपकी गम्भीरता तथा कठोर परिश्रमी स्वभाव को देखते हुए आपके पिता गुरमुख सिंह जी ने एक बार अपने आशीर्वाद के रूप में कहा था, ”मोहन, तू एक दिन भारत का प्रधानमन्त्री अवश्य बनेगा ।”  इस आशीर्वाद को फलीभूत होने में भले ही तीस वर्ष का समय लग गया, परन्तु उनका यह आशीर्वाद उस समय पूर्ण हुआ जब 21 मई, 2004 को टी.टी.जी.पी. की अध्यक्षा सोनिया गाँधी जी ने प्रधानमन्त्री पद को अस्वीकार करते हुए डा. मनमोहन सिंह के नाम की सिफारिश की ।

डा. मनमोहन सिंह ने शनिवार 22 मई, 2004 को भारत के प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ ग्रहण की । आपके साथ मन्त्रीमंडल में 67 मन्त्रियों को भी शपथ दिलाई गई ।

डा. मनमोहन सिंह को उनकी अनगिनत सेवाओं के लिए भारत सरकार की ओर से सन् 1987 में देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘पदम बिक्या’ प्रदान किया गया । 1993 में आपको यूरोमनी अवार्ड फाइनेंस ‘मिनिस्टर ऑफ द ईयर’ से सम्मानित किया गया ।

निःसन्देह डा. मनमोहन सिंह एक नेक, विनीत तथा ईमानदार व्यक्ति हैं । राष्ट्र ने उनसे जो भी आशाएँ रखी थी, उन कसौटियों पर वे खरे उतरे हैं । अभी जनवरी 2009 में डा. मनमोहन सिंह को दिल की सर्जरी करानी पड़ी, जिसके कारण वे ‘अखिल भारतीय अनुसंधान आयोग’ में दाखिल रहे । ऐसे कठिन समय में सभी देशवासियों ने उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थनाएँ की । हमारी तो ईश्वर से बस यही कामना है कि वह उन्हें लम्बी आयु दें ।

Hindi Nibandh (Essay) # 3

सी.एन.जी. पर निबन्ध | essay on compressed natural gas (c.n.g.) in hindi, प्रस्ताबना:.

सड़कों पर वाहनों की बढ़ती हुई संख्या के परिणामस्वरूप ध्वनि प्रदूषण तथा वायुप्रदूषण उत्पन्न होते हैं । वाहनों के धुएँ को हम सभी प्रत्यक्ष रूप से अन्तःश्वसन करते हैं, जिससे अनेक घातक बीमारियाँ पैदा होती है ।

दिल्ली को अत्यन्त प्रदूषणकारी महानगर मानते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश दिया था कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बसों में 31 मार्च, 2001 तक ईंधन के रूप में डीजल तथा पेट्रोल के स्थान पर कम प्रदूषणकारी कँम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सी.एन.जी.) का प्रयोग किया जाना चाहिए ।

सी.एन.जी. तथा यू.एल.एस.डी:

टाटा ऊर्जा अनुसन्धान संस्थान ने अच्छा लो सल्फर डीजल (यू.एल.एस.डी.) को भी सी.एन.जी. के ही समान कम प्रदूषणकारी बताकर उसे सी.एन.जी. के विकल्प की घोषणा की । कई विशेषज्ञ सी.एन.जी. को डीजल की अपेक्षा प्रत्येक दृष्टि से उत्तम मानते हैं ।

हालाँकि दिल्ली की परिवहन व्यवस्था में दो-तिहाई ईंधन के रूप में डीजल का ही उपयोग होता है परन्तु विश्वभर के ईंधनों का सर्वेक्षण करने पर डीजल को ही सबसे खतरनाक माना गया है । दिल्ली में 65 प्रतिशत ख्स कण केवल डीजल से ही उत्सर्जित होते हैं, जिनसे कैंसर होता है । डीजल की सर्वोत्तम तकनीक भी सी.एन.जी, से दस गुनी खतरनाक होती है । अल्ट्रा लो सहर डीजल में भी सामान्य डीजल से केवल 15 प्रतिशत कम प्रदूषण होता है जब कि सी.एन.जी. में 90 प्रतिशत तक प्रदूषण कम हो जाता है ।

सी.एन.जी. की रचना:

सी.एन.जी. पृथ्वी की धरातल के भीतर पाये जाने वाले हाइड्रोजन कार्बन का मिश्रण है और इसमें 80 से 90 प्रतिशत मात्रा मेलथेक गैस की होती है तथा यह गैस पेट्रोल एवं डीजल की अपेक्षा कार्बन मोनो ऑक्साइड 70 प्रतिशत, नाइट्रोजन ऑक्साइड 87 प्रतिशत तथा जैविक गैस लगभग 89 प्रतिशत कम उत्सर्जित करती है ।

सी.एन.जी. गैस रंगहीन, गन्धहीन, हवा से हल्की तथा पर्यावरण की दृष्टि से सबसे कम प्रदूषण उत्पन्न करने वाली है । इसको जलाने के लिए एल.पी.जी. की अपेक्षा ऊँचे तापमान की आवश्यकता पड़ती है इसलिए आग पकड़ने का खतरा भी कम होता है । इन सब विशेषताओं के कारण ही वर्तमान समय में भारत में प्रतिदिन लगभग 650 करोड़ घनमीटर सी.एन.जी. का उत्पादन हो रहा है जबकि इसकी माँग 1100 करोड़ घनमीटर है ।

आज सी.एन.जी. का प्रयोग बिजली:

धरो, उर्वरक कारखानों, इस्पात कारखानों, घरेलू ईंधन तथा वाहनों में ईंधन के रूप में हो रहा है ।

सी.एन.जी. :

एक सर्वोत्तम ईंधन-आरम्भ में सी.एन.जी. बसों में पैसा अधिक अवश्य लगता है परन्तु उनका परिचालक व्यय कम होता है । इसके विपरीत सामान्य डीजल को अस्ट्रा लो सल्कर डीजल में परिवर्तित करने पर रिफाइनडरियो के व्यय बहुत अधिक हो जाएँगे । डीजल की तुलना में सी.एन.जी. में कार्बन-डाई-ऑक्साइड में उत्सर्जन की मात्रा कम है इसलिए यह डीजल से कम जहरीली है । विशेषज्ञों ने भी इसे सबसे साफ सुथरा ईंधन माना है जो शीघ्रता से प्रदूषण को समाप्त करता है ।

विस्वभर में सी.एन.जी. का प्रयोग:

इस समय विश्वभर में लगभग 20 लाख वाहन सीएनजी चालित हैं । जापान की राजधानी टोक्यो में पिछले य वर्षों से सभी टैक्सियाँ सी.एन.जी. चालित हैं । दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में यह प्रयोग पिछले 25 वर्षों से जारी है ।

इसके अतिरिक्त नेपाल, बैंकॉक, ताइवान तथा आस्ट्रेलिया में भी अधिकतर वाहन सी.एन.जी, चालित है । वाहनों में प्राकृतिक गैस का प्रयोग 1930 से प्रारम्भ हुआ था । तभी से अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, इटली, थाईलैंड, न्यूजीलैंड तथा ईरान जैसे देशों में सी.एन.जी. का प्रयोग होने लगा है ।

सी.एन.जी. की हानियाँ:

सी.एन.जी. बसे जल्दी गर्म हो जाती है या रूक जाती हैं । डेनमार्क तथा अमरीकी विशेषज्ञों ने अपने निजी अनुभव के आधार पर यह घोषणा की है कि परिवर्तित वाहन पूर्णरूपेण सफल नहीं है क्योंकि वे सुरक्षा को खतरा पहुँचा सकते हैं ।

इसके अतिरिक्त इसमें ठोस परिवर्तन तकनीक की आवश्यकता है जो भारत में प्रारम्भिक चरण में है । सी.एन.जी. पैट्रोल तथा डीजल की तुलना में गतिक ऊर्जा है, इसी कारण ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में यह विफल है । आज सी.एन.जी. किट बड़ी मात्रा मैं उपलब्ध नहीं है और उनकी रिफलिंग में भी समय लगता है । हमारे देश में पर्याप्त भरोसेमन्द सिलेंडर भी नहीं हैं और जो है भी उनकी कोई गुणवता नहीं है ।

विश्व के किसी भी बड़े शहूर में सार्वजनिक यातायात पूरी तरह से सीएनजी चालित नहीं है, वरन् उनके साथ सक्कर डीजल तथा अन्य तरह के ईधन पर आधारित वाहन भी चल रहे हैं । परन्तु सी.एन.जी. के आने से ध्वनि प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण की समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है ।

डीजल प्रयोग के कारण ही आज हम अस्थमा, मधुमेह, हृदयरोग, श्वाँसरोग, बहरापन आदि समस्याओं से जूझ रहे हैं । ऐसी आशा की जाती है कि भविष्य में सीएनजी किट आसानी से उपलब्ध हो सकेगे तथा हम प्रदूषण की समस्या से मुक्ति पा सकेंगे ।

Hindi Nibandh (Essay) # 4

दिल्ली मेट्रो रेल पर निबन्ध | Essay on Delhi Metro Rail in Hindi

‘मेट्रो’ शब्द का प्रयोग दुनिया भर में भूमिगत रेलवे के लिए किया जाता है । छोटी एवं लम्बी दूरी तय करने का यह एकदम प्रदूषण रहित माध्यम है ।

विश्व में अब तक जापान, कोरिया, सिंगापुर, हांगकांग, जर्मनी तथा फ्रांस में मेट्रो रेल परिचालित हैं ।  मेट्रो रेलवे की सेवाओं को प्रयोग करने वाले भारतीय शहरों में कोलकाता शिखर पर है तथा राजधानी दिल्ली में मेट्रो रेल सेवा आरम्भ हो चुकी है ।

दिल्ली मेट्रो के आगमन का कारण:

दिल्ली भारत के सर्वाधिक आबादी वाले नगरों में से एक है । वर्तमान समय में राजधानी की सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों की संख्या चालीस लाख के करीब है ।

वाहनों की यह संख्या देश के तीन महानगरों:

कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई के कुल वाहनों से कही अधिक है । इनमें से नब्बे प्रतिशत निजी वाहन है । राजधानी में सड़कों की कुल लम्बाई बारह सौ चालीस किलोमीटर हैं । इस प्रकार दिल्ली महानगर के लगभग बीस प्रतिशत हिस्से पर सड़के फैली हैं ।

इसके बावजूद भी राजधानी की मुख्य सड़कों पर वाहनों की औसत गति पन्द्रह किलोमीटर प्रति घण्टा है । इस रफ्तार को बढ़ाने तथा यातायात की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली में ‘मेट्रो रेलवे परियोजना’ लागू की गई है ।

दिल्ली मेट्रो का शुभारंभ एवं विकास कार्य:

दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन ने राजधानी से विभिन्न चरणों के आधार पर मेट्रो रेल शुरू करने की योजना बनाई है । इसके पहले चरण में शाहदरा तीस हजारी खण्ड सेवा शुरू की गई । इसका उद्‌घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने 24 दिसम्बर, 2002 को किया । मेट्रो रेल के दूसरे चरण के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय से केन्द्रीय सचिवालय तक सेवा शुरू की गई ।

तीसरे चरण में राजीव चौक से द्वारिका तक तथा चौथे चरण में दिल्ली विश्वविद्यालय से न्यू आजादपुर, संजय गाँधी ट्रांसपोर्ट नगर (8.6 कि.मी.) वाराखम्बा रोड से इन्द्रप्रस्थ नोएडा (1.5 कि.मी.), कीर्ति नगर से द्वारिका (16 कि.मी.) तक का कार्य पूरा हो चुका है ।

शीध्र ही मेट्रो रेल अक्षरधाम मंदिर, लक्ष्मी नगर, आनंदविहार (बस अड्‌डा) तथा गाजियाबाद तक भी पहुँच जाएगी । आज कई स्थानों पर भूमिगत मेट्रो भी चल रही है । ऐसा माना जा रहा है कि 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों के समय तक पूरी दिल्ली की सड़कों पर मेट्रो रेल चलने लगेगी ।

दिल्ली मेट्रो रेल की विशेषताएँ:

मेट्रो रेल अत्याधुनिक संचार व नियन्त्रण प्रणाली से सुसज्जित है । कोच एकदम आधुनिक तकनीक पर आधारित तथा वातानुकूलित हैं । यहीं पर टिकट वितरण प्रणाली भी स्वचालित है । यहाँ पर रेल की क्षमता के आधार पर ही टिकट वितरित किए जाते हैं । यदि रेल में जगह नहीं होती तो मशीन टिकट देना स्वयं बन्द कर देती है । स्टेशन में प्रवेश एवं निकासी की सुविधा भी अत्याधुनिक है ।

यात्रियों की सुविधा के लिए मेट्रो स्टेशन परिसर पर एस्केलेटर स्थापित किए गए हैं । इसमें विकलांगों के लिए विशेष सुविधा हैं । मेट्रो यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मेट्रो स्टेशनों को बस रूट से जोड़ा गया है, जिसके लिए मेट्रो स्टेशन से मुख्य सड़क या बस स्टैण्ड तक फीडर बसे भी चलाई जा रही हैं ताकि अधिक-से-अधिक लोग इस सेवा का लाभ उठा सके ।

इसके लिए किराया दर भी अन्य परिवहन साधनों की अपेक्षा कम रखा गया है । मेट्रो रेल में यात्रा करने से समय तथा पैसे दोनों की ही बचत होती है । भीड़-भाड़ भरी सड़कों, धुएँ व धूल मिट्टी से बचकर वातानुकूलित रेल में यात्रा करने का आनन्द ही कुछ और है ।

मेट्रो रेल के दरवाजे भी स्वचालित हैं । इसमें आगमन प्रस्थान तथा आगे वाले स्टेशनों के विषय में पूरी जानकारी रेल में सवार यात्रियों को सूचना प्रदर्शन पटल तथा सम्बोधन प्रणाली के आधार पर उपलब्ध करायी जाती है । इसमें यात्री चाहे तो मासिक पास भी बनवा सकते है । मेट्रो रेल में कोई भी यात्री अधिकतम पन्द्रह किलोग्राम वजन ले जा सकता है ।

मेट्रो रेल के तकनीकी कर्मचारी तकनीकी रूप से सक्षम होने के साथ-साथ विदेशी प्रशिक्षण प्राप्त है । दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन द्वारा एक प्रशिक्षण स्कूल भी स्थापित क्रिया गया है, जिससे ड्राइवरों तथा परिचालकों को समय-समय पर आवश्यक जानकारी दी जाती है ।

मेट्रो रेल को प्रारम्भ करने का सबसे अधिक श्रेय हमारी दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित को जाता है । उनके द्वारा उठाया गया यह कदम बहुत सराहनीय है क्योंकि मेट्रो रेल के चलने से यात्रियों को तो लाभ हुआ ही है, साथ ही प्रदूषण की मात्रा में भी काफी गिरावट आई है । अब यह हमारा नैतिक कर्त्तव्य है कि हम इस रेल की सफाई की ओर पूरा ध्यान दे तथा मेट्रो रेल का पूरा लाभ उठाएँ ।

Hindi Nibandh (Essay) # 5

कम्प्यूटर: आधुनिक युग की माँग पर निबन्ध | essay on computer : demand of the modern age in hindi.

आज का युग विज्ञान का युग है । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान के आविष्कारों ने क्रान्ति ला दी है । यह बात हम सभी जानते हैं । विज्ञान की ही महान देन ‘कम्प्यूटर’ आधुनिक युग की एक, महत्वपूर्ण आवश्यकता है । इसने हमारे जीवन को सरल व सुखद बना दिया है । यद्यपि कम्प्यूटर मानव-मस्तिष्क की ही उपज है, किन्तु कार्यक्षेत्र में यह मानव की सोच से भी परे है ।

कम्प्यूटर का अस्तित्व:

कम्प्यूटर एक ऐसी मशीन है, जिसमें अनेक ऐसे मस्तिष्कों का रुपात्मक एवं समन्वयात्मक योग तथा गुणात्मक घनत्व होता है, जो अति तीव्र गति से बहुत कम समय में एकदम सही गणना करता है ।

वैज्ञानिकों ने गणितीय गणनाओं के लिए अनेक यन्त्रों जैसे ‘अवेकस’ तथा ‘कैलकुलेटर’ आदि का आविष्कार किया है, किन्तु कम्प्यूटर की बराबरी कोई भी मशीन नहीं कर सकती ।

कम्प्यूटर मुख्यतया जोड़, घटा, गुणा तथा भाग जैसी गणितीय क्रियाएँ बड़ी सरलता तथा शीघ्रता के साथ कर सकता है । कम्प्यूटर निर्देशों का क्रमबद्ध संकलन भी करता है, इसके लिए यह सर्वप्रथम निर्देशों को पढ़कर अपनी स्मृति में बिठा लेता है तथा पुन: निर्देशों के अनुरूप कार्य करता है ।

कम्प्यूटर की सफलता का यही रहस्य है कि यह साधारण निर्देशों को एक उचित क्रम देने पर बड़ी से बड़ी जटिल गणना को भी बड़ी सरलता से त्रुटिहीन रूप से सम्पन्न करता है ।

कम्प्यूटर का आविष्कार:

आज से लगभग 25 हजार वर्ष पूर्व मनुष्य ने अंकों का अन्वेषण किया था । धीरे-धीरे ये अंक विकसित होते गए तथा विभिन्न लिपियों में प्रयुक्त होने लगे । मनुष्य के विकास के साथ-साथ लिपियाँ भी विकसित होती गयी । प्रारम्भ में मनुष्य कंकडों, उँगलियों की लाइनों या दीवार आदि पर लाइन खींचकर गिनने का कार्य करता था ।

फिर मशीनी युग के साथ ही अंकों तथा लिपि को टंकण के माध्यम से प्रेस तथा टाइप मशीनों में अंकित किया गया । सन् 1642 ई. में फ्रांस के कुशल वैज्ञानिक ब्लेज पास्कल ने विश्व का पहला कम्प्यूटर बनाया, जिसकी विधि बहुत सरल थी ।

तब से तरह-तरह की तकनीके खोजी जाने लगी तथा नए-नए कम्प्यूटर बनाए गए । सन् 1833 ई. में इंग्लैंड के ‘चार्ल्स बाबेज’ ने एक मशीन का आविष्कार किया तथा वह उस मशीन को कम्प्यूटर का रूप देने का प्रयास करता रहा, परन्तु असफल रहा ।

सही अर्थों में आधुनिक कम्प्यूटर बनाने का श्रेय वियुत अभियन्ता पी. इकरैट, भौतिक शास्त्री जोहन, डक्यू मैकली तथा गणितज्ञ जी.वी. न्यूमैन को जाता है । इन सभी के पारस्परिक सहयोग के बल पर सन् 1944 ई. में एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया गया, जिसको ‘इलैक्ट्रानिक एण्ड कम्प्यूटर’ नाम दिया गया । कम्प्यूटर का सुधरा हुआ रूप सन् 1952 ई. में बाजार में आया ।

भारतवर्ष में सबसे पहला कम्प्यूटर सन् 1961 ई. में आया था । तब से आज तक भारत अनेक उन्नत देशों जैसे अमेरिका, रुस, जर्मनी आदि से कम्प्यूटर आयात कर चुका है । इन देशों से प्राप्त जानकारी हमारे लिए काफी लाभकारी सिद्ध हो रही है ।

अमेरिका, स्वीडन, फ्रांस, हालैण्ड, ब्रिटेन, जर्मनी आदि देशों में तो इसे ‘मानव मस्तिष्क’ की संज्ञा दे दी गई है । आज भारत में भी कम्प्यूटर विज्ञान का तीव्रगामी विकास हो रहा है । कम्प्यूटर की स्मरण-शक्ति असीमित तथा अद्वितीय है । जो काम बहुत कुशाग्र बुद्धि का मानव भी नहीं कर पाता, कम्प्यूटर वह कार्य बड़ी सरलता से कर दिखाता है । आधुनिक युग में मनुष्य के पास इतना समय नहीं है कि वह पेपर पैन लेकर सारे हिसाब-किताब रख सके, क्योंकि आज का मानव बहुत व्यस्त जीवन जी रहा है ।

ऐसे में कम्प्यूटर उसका सच्चा साथी बनकर सभी कार्य तीव्र गति से बड़ी कुशलतापूर्वक कर देता है । नाम, तिथि, स्थल आदि बड़ी सरलतापूर्वक याद किए जा सकते हैं । आज सरकारी तथा गैर-सरकारी प्रत्येक क्षेत्र में बड़े व्यापक स्तर पर कम्प्यूटर का प्रयोग किया जा रहा है ।

वेतन बिल, बिजली, पानी, टेलीफोन के बिल बनाने, टिकट वितरण करने, बैंक, एल. आई.सी. के दफ्तरों आदि सभी में सारा कार्य कच्छसे की मदद से ही हो रहा है । इनके अतिरिक्त सभी शिक्षण संस्थाओं, बड़े-बड़े स्टोरों आदि में भी ये सहायक सिद्ध हो रहे हैं ।

डाक छाँटने, रेल मार्ग का संचालन करने, परिवहन व्यवस्था, मौसम की जानकारी, चिकित्सा, व्यापार, आदि अनगिनत क्षेत्रों में आज कम्प्यूटर का ही बोलबाला है । परीक्षा बोर्डों में बैठने वाले अनेक विद्यार्थियों की अंकतालिका जाँचने, रोल नम्बर तैयार करने के कार्य भी कम्प्यूटर द्वारा आसानी से हो रहा है ।

इसके अतिरिक्त प्रकाशन के क्षेत्र में तो कम्प्यूटर मील का पत्थर साबित हुआ है । किक कार्यों के करने की गति तथा इलेक्ट्रानिक्स की प्रगति में कम्प्यूटर प्रणाली का सर्वाधिक योगदान है । निःसन्देह जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं रह गया है जहाँ कम्प्यूटर ने अपनी उपयोगिता साबित न की हो । आज के बच्चे भी कम्प्यूटर का प्रयोग करने से ही बहुत तेज दिमाग वाले हो रहे हैं ।

कम्प्यूटर के जितने भी लाभ गिनाए जाए वे सभी कम हैं । आज कम्प्यूटर ने मनुष्य के जीवन में रोटी, कपड़ा तथा मकान जैसा महत्त्वपूर्ण स्थान ले लिया है । इसीलिए आज के युग में कम्प्यूटर के महत्त्व को समझते हुए प्रत्येक विद्यालय में विद्यार्थियों को कम्प्यूटर शिक्षा दी जा रही है ।

कभी-कभी हमारी लापरवाही से ही कम्प्यूटर बड़ी-बड़ी गलतियाँ भी कर देता है तथा बच्चे भी इसका अधिक प्रयोग करने के कारण अनेक बीमारियों से जूझ रहे हैं, परन्तु ये सभी दुष्प्रभाव हमारे पैदा किए हुए हैं । हमें कम्प्यूटर के साथ-साथ अपने मस्तिष्क का भी प्रयोग करना चाहिए वरना हम पंगु ही बन जाएँगे ।

निष्कर्ष रूप में यदि हम यह कहें कि कम्प्यूटर के लाभों के साथ उसकी हानियाँ नगण्य हैं तो कोई अतिशयोक्ति न होगी । कम्प्यूटर आज के युग की माँग है और हम आशा करते हैं कि भविष्य में इसकी लोकप्रियता और अधिक बढ़ेगी क्योंकि आज कम्प्यूटर हमारा शगुल नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुका है ।

Hindi Nibandh (Essay) # 6

इन्टरनेट: एक प्रभावशाली सूचवा माध्यम पर निबन्ध | Essay on Internet : An Influential Method of Communication in Hindi

आज मनुष्य प्रगति के पथ पर निरन्तर अग्रसर है । जीवन के हर क्षेत्र में हमें जीवन की सभी सुविधाएँ तथा आराम प्राप्त हो रहे हैं । विज्ञान का एक आधुनिकतम एवं क्रान्तिकारी आविष्कार इन्टरनेट है, जो एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण, बलशाली एवं गतिशील सूचना माध्यम है ।

इन्टरनेट प्रणाली का अर्थ:

इन्टरनेट एक अत्यन्त महत्वपूर्ण, गतिशील तथा बलशाली सूचना का माध्यम है । यह अनेक कम्प्यूटरों का एक जाल होता है जो उपग्रहों, केवल तन्तु प्रणालियों, लैन एवं वैन प्रणालियों एवं दूरभाषों द्वारा एक दूसरे से जुड़े होते हैं ।

आज सूचना प्रसारण के इस तेज गति के दौर में इन्टरनेट की उपयोगिता चरम सीमा पर है । आज का कोई भी व्यक्ति, देश अथवा वर्ग ‘इन्टरनेट’ प्रणाली से अकह नहीं है । सभी इसके महत्त्व के कायल हो चुके हैं ।

इन्टरनेट की बर्तमान स्थिति:

इन्टरनेट का शुभारम्भ सन् 1969 में ‘एडवान्स्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्रस एजेंसिस’ द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका के चार विश्वविद्यालयों के कम्प्यूटरों की नेटवर्किग करके की गई थी । इसका विकास मुख्यतया शिक्षा, प्राप्त संस्थाओं के लिए किया गया था । इसके पश्चात् कुछ पुस्तकालय तथा कुछ निजी संस्थान भी इससे जुड़े गए ।

इन्टरनेट का जाल फैलाने में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान ‘बैल लैब्स’ (Bell labs) का है और उसमें इससे सम्बन्धी अनुसन्धान अभी तक जारी है । वर्तमान समय में भारत में लगभग 1,50,000 इन्टरनेट कनैक्शन है तथा लगभग 21.59 मिलियन टेलीफोन लाइने कार्यरत हैं ।

एक टेलीफोन को लगभग 10 व्यक्ति प्रयुक्त करते हैं । 2.159 मिलियन लोगों को इन्टरनेट कनैक्शन लगवाने की उम्मीद है ।

इन्टरनैट के प्रमुख भाग:

इन्टरनेट के कुछ प्रमुख भाग इस प्रकार है – मुख्य सूचना कम्प्यूटंर (server), मोडम (modem), टेलीफोन, क्षेत्रीय नैटवर्क (LAN) अथवा वृहत नैटवर्क (WAN) उपग्रह संचार एवं केवल नैटवर्क । आज ज्यादातर मुख्य सूचना कम्प्यूटर (server) अमरीका में स्थापित है तथा पूरे संसार के उपग्रहों के माध्यम से जुड़े हैं ।

इन्टरनेट को देखने अथवा सूचना इकट्‌ठा करने के कार्य को ‘सर्फिग’ कहते हैं । इन्टरनेट पर ‘सर्फिग’ कार्य कोई मुश्किल काम नहीं है किन्तु सूचनाएं इन्टरनेट पर डालने के लिए सॉफ्टवेयर बनाने का कार्य बेहद जटिल है ।

इन्टरनेट के लाभ:

इन्टरनेट द्वारा वैब संरचना (Web Designing), इलेक्ट्रानिक मेल (E-mail) तथा इलेक्ट्रोनिक कॉमर्स (E-com) जैसे कार्य किए जाते हैं । आज इन्टरनेटों के कार्यक्रमों की बेहद माँग है तथा अनेक भारतीय युवा विदेशों में इन्टरनेट की कम्पनियों के लिए सॉफ्टवेयर एवं अन्य उपयोगी कार्यक्रम बनाने में संलग्न हैं ।

आज इन्टरनेट द्वारा बिजली, पानी, राशन, LIC सभी के बिल जमा किए जा रहे हैं । इन्टरनेट से विज्ञान, शिक्षा एवं व्यवसाय के क्षेत्र में सभी कार्य होने लगे हैं जिससे काफी हद तक युवाओं के बीच बेकारी की समस्या का समाधान हो रहा है ।

आज इन्टरनेट की मदद से ही कई लोग घर बैठे अच्छा पैसा कमा रहे हैं । आज यूरोप तथा अमेरिका में SOHO (Small office home office) की तकनीक प्रयोग की जा रही है तथा राशन तक का सामन खरीदने के लिए भी इन्टरनेट प्रयोग किया जा रहा है । भारत में भी यह तकनीक जल्द ही पूर्णतया विकसित हो जाएगी ।

इन्टरनेट सेवाओं का मूल्यांकन:

इन्टरनेट व्यवस्था प्रदान करने वाली व्यवस्था को ‘इन्टरनेट सर्विसेज प्रोवाईडर’ (ISP) कहते हैं । भारतवर्ष में बी.एस.एन.एन. नामक आई.एस.पी. को अप्रैल 1986 में प्रारम्भ किया गया था । आज सत्यम्, आई.एस.पी., मुन्ना ऑन लाइन आदि भी ग्राहकों को अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं ।

महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL) भी सस्ते दामों पर इन्टरनेट सेवाएँ प्रदान कर रहा है । इसके अतिरिक्त देश के दूसरे जिलों व प्रान्तों में भी इन्टरनेट गेटवे खुल रहे हैं । इन्टरनेट के दुष्परिणाम-हर वस्तु की भाँति इन्टरनेट के लाभों के साथ हानियाँ भी जुड़ी हैं ।

सर्वप्रथम अधिक देर तक नैट पर सर्फिंग करने से आँखों की रोशनी धीमी पड़सकती है । इन्टरनेट में 1 जनवरी 2000 से जीवाणु (Virus) क्रियाशील हो चुके हैं जो अधिक ‘नैट’ प्रयोग में लाने से कम्प्यूटर सिस्टम को भी खराब कर सकते हैं ।

दूसरी तरफ आज का युवा वर्ग बैटर पर ज्ञानवर्धक जानकारियाँ हासिल करने के स्थान पर अश्तील बातें ज्यादा देख रहा है, जिससे उनका नैतिक पतन हो रहा है । इन्टरनेट द्वारा व्यवसाय करना अभी जोखिम भरा कार्य है क्योंकि जरा सी रू होने पर काफी नुकसान हो सकता है ।

निःसन्देह आज का युग विज्ञान के नवीन चमत्कारों का युग हे । आज अनेक समाचार-यत्र व. पत्रिकाएँ भी ‘इन्टरनेट’ पर आ चुके हैं । अब तो सरकारें भी इस क्षेत्र में आगे आ रही है तथा भारत सरकार के अतिरिक्त कई राज्य सरकारें एवं विदेशी सरकारों की चेबसाइट इन्टरनेट पर प्राप्त की जा सकती है ।

आज नैट ‘कार्यकुशलता, सूचना एवं व्यवसाय का पर्याय बन चुका है । यदि इन्टरनेट का प्रयोग सीमित तथा संयमित रूप में किया जाए तो इसके लाभ ही लाभ हैं हानियाँ तो हमारी स्वयं की पैदा की हुई है ।

Hindi Nibandh (Essay) # 7

कल्पना चावला पर निबन्ध | essay on kalpana chawla in hindi.

“मैं किसी भी देश या क्षेत्र विशेष से बाधित नहीं हूँ । इन सबसे हटकर मैं तो मानव जाति का गौरव बनना चाहती हूँ ।” यह कथन भारतीय मूल की प्रथम महिला अन्तरिक्ष यात्री कल्पना चावला का था । उनकी लगन, प्रतिभा तथा उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा ।

इस महान विभूति का जन्म हरियाणा राज्य के करनाल जिले में 8 जुलाई, 1961 को एक व्यापारी परिवार में हुआ था । उन्होंने टेगोर बाल विद्यालय से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण की । अपने शैशवकाल से ही वह एक होनहार छात्रा थी ।

उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में वैमानिकी (ऐअरोनॉटिक्स) में प्रवेश लिया । उस समय इस क्षेत्र में कोई दूसरी छात्रा नहीं थी । विज्ञान में कल्पना की तीन रूचि थी, जिसकी प्रशंसा उनके अध्यापक भी करते थे । उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह विदेश भी गई । आपने 1984 में अमेरिका में स्थित Texas विश्वविद्यालय से वायु-आकाश (Aero-Space) इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की । तत्पश्चात् कल्पना ने कोलोराडो से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की ।

तत्पश्चात् कल्पना ने अमेरिका के एक्स में फ्यूड डायानामिक का कार्य सीनियर प्रारम्भ किया । वहाँ पर सफलता प्राप्त करने के पश्चात् कल्पना ने 1993 में केलिफोर्निया के ओवरसैट मैथडस इन कारपोरेशन में उपाध्यक्ष तथा रिसर्च वैज्ञानिक के रूप में कार्य प्रारम्भ किया ।

1994 में नासा ने कल्पना को अंतरिक्ष मिशन के लिए चयनित कर लिया । लगभग एक बर्ष के प्रशिक्षण के पश्चात् कल्पना कों रोबोटिक्स अंतरिक्ष में विचरण से जुड़े तकनीकी विषयों पर काम करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी । एस.टी.एस. 87 अमेरिकी की मास्कोग्रेबिवई पेलोड पाइलट थी, जिसका उद्देश्य भारहीनता का अध्ययन करना था । अन्तरिक्ष में जाना कल्पना की इच्छा भी थी । चन्द्रमा पर पर्दापण करने की उनकी तीव्र डच्छा थी ।

लगभग पांच वर्षो के अन्तराल के पश्चात् 16 जनवरी, 2003 को कल्पना चावला को अन्तरिक्ष में जाने का पुन: अवसर प्राप्त ह्मा । यह शोध मानव अंगों, शरीर में कैंसर कोशिकाओं के विकास एवं बिभिन्न कीटाणुओं की स्थिति के अध्ययन व्हे किए गए थे ।

उस यान में कल्पना के साथ उनके सात साथी थे । कल्पना ने अन्तरिक्ष का कार्यबीरता से पूर्ण किया और वह पृथ्वी पर लौट रही थी । दुर्भाग्यवश, 2 लाख फुट की ऊँचाई पर कोलम्बिया नामक उनका अन्तरिक्ष शटल बिस्फोट हो गया ।

देखते ही देखते कल्पना अतीत बन गई । उनकी मृत्यु के ददय विदारक संदेश से उनके अध्यापक, स्कूली साथी, परिवारजन, विशेषकर उनके नासा के स्टॉफ मेंबर स्तब्ध रह गए । पूरा विश्व जेसे शोक के गहरे सागर में ख गया । कल्पना उन अनगिनत महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत थी, जो अन्तरिक्ष में जाना चाहती हैं ।

Hindi Nibandh (Essay) # 8

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर निबन्ध | Essay on Mahatma Gandhi : Father of the Nation in Hindi

समय-समय पर भारत माता की गोद में अनेक महान विभूतियों ने आकर अपने अद्‌भुत प्रभाव से सशूर्ण विश्व को आलोकित किया है । राम , कृष्णन, महावीर, नानक, दयानन्द, विवेकानन्द आदि ऐसी ही महान बिभूतियीं हैं जिनमे से महात्मा गाँधी का नाम सर्वोपरि आता है ।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के कर्णधार तथा सच्चे अर्थों में स्वतन्त्रता सेनानी थे । युद्ध एवं क्रान्ति के इस युग में भारतवर्ष ने दुनिया के रास्ते से अलग रहकर गाँधी जी के नेतृत्व में सत्य एवं अहिंसा रुपी अस्त्रों के साथ स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी तथा ब्रिटिश शासन को भारत से समूलोच्छेद कर दिया ।

इन चारित्रिक विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक भारतवासी उन्हें प्यार से ‘बापू’ कहता है । विश्व-विख्यात वैज्ञानिक आइस्टीन के शब्दों में ”आने वाली पीढियों को आश्चर्य होगा कि ऐसा विलक्षण व्यक्ति देह रूप में कभी इस पृथ्वी पर रंल्ला था ।” राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी ने उन्हें ‘युगस्रष्टा’ तथा ‘युग्धष्टा’ कहा है ।

जन्म परिचय व शिक्षा-दीक्षा:

महात्मा गाँधी का पूरा नाम ‘मोहनदास करमचन्द गाँधी’ था । गाँधी जी का जन्म 2 अक्तुबर, सन् 1869 ई. को गुजरात राज्य के ‘पोरबन्दर’ नामक स्थान पर हुआ था । आपके पिता श्री करमचन्द गाँधी किसी समय पोरबन्दर के दीवान थे फिर वे राजकोट के दीवान भी बने । आपकी माता श्रीमति पुतलीबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी । गाँधी जी के चरित्र निर्माण में उनकी धर्म परायण माता का विशेष योगदान है ।

गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर में हुई थी । विद्यालय में गाँधी जी एक साधारण छात्र थे तथा लजीले स्वभाव वाले थे । हाई न्क्र में अध्ययन करते समय ही लगभग तेरह वर्ष की आयु में गाँधी जी का विवाह कस्तूरबा से हो गया ।

सन् 1885 में उनके पिता का देहान्त हो गया । सन् 1887 में हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के पश्चात् आप उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए ‘भावनगर’ गए । वहाँ से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् कानूनी शिक्षा प्राप्त करने गाँधी जी इंग्लैण्ड गए ।

सन् 1891 में आप बैरिस्ट्री पास करके भारत लौट आए । उनकी अनुपस्थिति में उनकी माता जी का भी देहावसान हो गया ।

दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी के कार्य:

स्वदेश लौटकर गाँधी जी ने मुम्बई में वकालत शुरू कर दी । पोरबन्दर की एक व्यापारिक संस्था ‘अब्दुल्ला एण्ड कम्पनी’ के मुकदमे की पैरवी करने गाँधी जी को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा । वहाँ उन्होंने देखा कि गोरे अंग्रेज भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार करते थे और उनको अपना गुलाम मानते थे ।

यह सब देखकर गाँधी जी का मन क्षुब्ध हो उठा । वहाँ पर गाँधी जी को भी अनेक अपमान सहने पड़े । एक बार उन्हें रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से नीचे उतार दिया गया, जबकि उनके पास प्रथम श्रेणी का टिकट था । अदालत में जब वे केस की पैरवी करने गए तो जज ने उनसे पगड़ी उतारने के लिए कहा किन्तु गाँधी जी जैसा आत्मसम्मानी व्यक्ति बिना पगड़ी उतारे बाहर चले गए ।

गाँधी जी का राजनीति में प्रवेश:

दक्षिण अफ्रीका से लौटकर गाँधी जई ने राजनीति में भाग लेना आरम्भ कर दिया । सन् 1914 के प्रथम युद्ध में गाँधी जी ने अंग्रेजों का साथ इसलिए दिया क्योंकि अंग्रेजों ने गाँधी से वादा किया था कि यदि वे युद्ध जीत गए तो भारत को आजाद कर देंगे, मरन्तु अंग्रेज अपनी जुबान से मुकर गए ।

युद्ध में बिजयी होने पर अंग्रेजों ने स्वतन्त्रता के स्थान पर भारतीयों को ‘रोलट एक्ट’ तथा ‘जलियांवाला बाग काण्ड’ जैसी विध्वंसकारी घटनाएँ पुरस्कारस्वरूप प्रदान की । सन् 1919 तथा 1920 में गाँधी जी ने आन्दोलन आरम्भ किया ।

सन् 1930 में गाँधी जी ने ‘नमक कानून का विरोध किया । उन्होंने 24 दिन पैदल यात्रा करके दाण्डी पहुँचकर स्वयं अपने हाथों से नमक बनाया । गाँधी जी के स्वतन्त्रता संग्राम में देश के प्रत्येक कोने से देशभक्तों ने जन्म भूमि भारत की गुलामी की बेडियो को तोड़ने के लिए कमर कस ली ।

बालगंगाधर तिलक , गोखले, लाला लाजपतराय, सुभाषचन्द्र बोस आदि ने गाँधी जी का पूरा साथ दिया । सन् 1931 ई. में वायरसराय ने लंदन में आपको गोलमेज कांफ्रेन्स में आमन्त्रित किया । वहाँ आपने बड़ी विद्धता से भारतीय पक्ष का समर्थन किया ।

गाँधी जी ने पूर्ण स्वतन्त्रता के लिए सत्याग्रह की बात प्रारम्भ की । सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन शुरू हुआ तथा गाँधी जी सहित सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया । सन् 1944 में इन्हें जेल से रिहा कर दिया गया । समस्त वातावरण केवल आजादी की ध्वनि से गूँजने लगा । अंग्रेज सरकार के पाँव उखड़ने लगे । अंग्रेज सरकार ने जब अपने शासन को समाप्त होते देखा तो अंतत: 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता सौंप दी ।

गाँधीवादी सिद्धान्त:

गाँधी जी सत्य तथा अहिंसा जैसे सिद्धान्तों के पुजारी थे । ये गुण उनमें बचपन से ही विद्यमान थे । गाँधी जी ने स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल पर भी जोर दिया था । बे चरखा कातकर स्वयं अपने लिए वस्त्र तैयार करते थे । गाँधी जी ने मानव को मानव से प्रेम करना सिखाया ! उन्होंने इसीलिए विदेशी वस्तुओं की होली जलाई थी ।

इसके अतिरिक्त दलित तथा निम्न वर्गीय लोगों के लिए भी गाँधी जी के मन में विशेष प्रेम था । उन्होंने छूआछुत का कड़ा विरोध किया था तथा अनूसूचित जातियों के लिए मन्दिरों तथा दूसरे पवित्र स्थानों में प्रवेश पर रोक को समाप्त करने पर विशेष बल दिया था । इस प्रकार गाँधी जी सच्चे अर्थों में एक परोपकारी व्यक्ति थे ।

उनके सम्बन्ध में किसी कवि की पंक्तियों द्रष्टव्य हैं:

”चल पड़े जिधर दो पग डग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर पड गई जिधर भी एक दृष्टि, पड़ गए कोटिदृग उसी ओर ।”

मृत्यु-30 जनवरी, 1948 ई. को संध्या के समय प्रार्थना-सभा में नाधूराम गोडसे ने उन पर गोलियाँ चला दी । तीन बार ‘राम, राम, राम’ कहने के बाद गाँधी जी ने इस नश्वर शरीर का परित्याग कर दिया । इस दुखःद अवसर पर नेहरू जी ने कहा था, ”हमारे जीवन से प्रकाश का अन्त हो चुका है । हमारा प्यास बापू, हमारा राष्ट्रपिता अब हमारे बीच नहीं है ।

हमारे ‘बापू’ मानवता की सच्ची मूर्ति थे ऐसे विरले इंसान सदियों में एक बार पैदा होते हैं । गाँधी जी ने तो मानवता की सेवा की थी । वे नरम दल के नेता थे । हरिजनों के उद्धार के लिए उन्होंने ‘हरिजन संद्य की स्थापना की थी ।

मद्य-निषेध, हिन्दी-प्रसार, शिक्षा-सुधार के अतिरिक्त अनगिनत रचनात्मक कार्य किए थे । महात्मा गाँधी, नश्वर शरीर से नहीं, अपितु यशस्वी शरीर से अपने अहिंसावादी सिद्धान्तों, मानवतावादी दृष्टिकोणों तथा समतावादी विचारों से आज भी हमारा सही मार्गदर्शन कर रहे हैं ।

गाँधी जी के अद्‌भुत व्यक्तित्व का चित्रांकन कविवर सुमित्रानन्दन पन्त ने इस प्रकार किया है:

”तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन, हे अस्थिशेष । तुम अस्थिहीन, तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केबल हे चिर पुराण । तुम चिर नबीन ।”

Hindi Nibandh (Essay) # 9

पं. जवाहारलाल नेहरू पर निबन्ध | Essay on Pandit Jawaharlal Nehru in Hindi

शान्ति के अग्रदूत, अहिंसा के संवाहक, आधुनिक भारतवर्ष निर्माता एवंस्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू आधुनिक युग की एक महान विभूति है ।

वे सच्चे कर्मयोगी एवं मानवता के प्रबल समर्थक थे । राजसी परिवार में जन्म लेकर एवं सभी सुख-सुविधाओं पूर्ण वातावरण में बड़े होकर भी आपने राष्ट्रीय स्वतन्त्रता एवं देश की आन-बान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया ।

जन्म परिचय एवं शिक्षा-विश्व-बत्सुत्व की भावना के प्रबल समर्थक पं. जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर सन् 1889 ई. को प्रयाग (इलाहाबाद) के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था । आपके पिताश्री पं. मोतीलाल नेहरू भारतवर्ष के एक सम्मानित बैरिस्टर थे । आपकी माता जी श्रीमती स्वरूप रानी एक धार्मिक प्रवृत्ति वाली महिला थीं । अपने माता-पिता का इकलौता लाडला पुत्र होने के कारण आपका लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार में हुआ था ।

आपकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई थी । 15 वर्ष की आयु में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आप इंग्लैण्ड चले गए । आपने ‘हैरी विश्वविद्यालय’ तथा ‘कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय’ से उच्च शिक्षा प्राप्त की । अपने पिता की इच्छानुसार आप सन् 1912 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे ।

भारत आकर आप अपने पिता के साथ ही प्रयाग में वकालत करने लगे । आप ‘मेरेडिथ’ के राजनीति चिन्तन से बहुत प्रभावित थे 1 सन् 1915 ई. में ‘रोलट एक्ट’ के विरुद्ध होने वाली मुम्बई कांफ्रेन्स में नेहरू जी ने भी हिस्सा लिया और यहीं से आपके राजनीतिक जीवन की प्रारम्भिक अवस्था आरम्भ हुई थी ।

पारिवारिक जीवन:

जवाहर लाल नेहरू का शुभ विवाह सन् 1916 ई. में श्रीमती कमला नेहरू के साथ हुआ । सन् 1917 में 9 नवम्बर को आपके यहाँ इन्दिरा ‘प्रियदर्शिनी’ नामक सुन्दर सी पुत्री ने जन्म लिया । सरोजिनी नायडू इन्दिरा को ‘क्रान्ति की सन्तान’ कहती थी । आगे चलकर इन्दिरा गाँधी ने भारतवर्ष की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री बनने का गौरव प्राप्त किया ।

सन् 1931 ई. में नेहरूजी के पिता जी श्री माती लाल नेहरू और सन् 1936 ई. में उनकी धर्म पली कमला नेहरू का भी स्वर्गवास हो गया । राजनीतिक जीवन-महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने पर नेहरू जी ने उनके राजनैतिक आदर्शों को अपनाने का निश्चय किया । नेहरू जी ने राजसी वेशभूषा को छोड़कर खादी का कुर्ता धारण कर लिया एवं एक सच्चे सत्याग्रही की भाँति प्रकट हुए ।

सन् 1919 के किसान आन्दोलन एवं 1921 ई. के असहयोग आन्दोलन में हिस्सा लेने के कारण पं. नेहरू को जेल जाना पड़ा । आपकी अनवरत सेवाओं के लिए सन् 1923 में ‘आल इंडिया कांग्रेस’ ने आपको जनरल सेक्रेटरी चुन लिया तथा इसके बाद आप इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे ।

उन्हीं की अध्यक्षता में 1929 में कांग्रेस ने पूर्ण स्वतन्त्रता के लक्ष्य सम्बन्धी प्रस्ताव को पारित किया । इसके पश्चात् भी आप अनेक आन्दोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे । कई बार आप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए ।

सन् 1930 ई. में शान्तिमय शासनावज्ञा के कारण आपको कारावास जाना पड़ा । सन् 1927 ई. में रूस सरकार के निमन्त्रण पर आप रूस गए और वहाँ की साम्यवादी विचारधारा का आप पर विशेष प्रभाव पड़ा । देश को स्वतन्त्र कराने के लिए आपने अथक प्रयास किए ।

31 दिसम्बर सन् 1930 ई. में पं. नेहरू ने अपने कांग्रेस अध्यक्षीय भाषण में पंजाब की रावी नदी के तट पर यह घोषणा की थी कि हम पूर्ण रूप से स्वाधीन होकर ही रहेंगे । इस घोषणा से स्वाधीनता संग्राम का संघर्ष तीब्रतर हो गया । तत्पश्चात् ‘नमक-सत्याग्रह’ में भी आपने अपना अपार योगदान दिया ।

सन् 1942 ई. के गाँधी जी के ‘भारत छीड़ा आन्दोलन’ में भी आपने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई । अनेक महापुरुषों के अथक प्रयासों से आखिरकार 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश स्वतन्त्र हो गया । प्रथम प्रधानमन्त्री के रूप में-स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सर्वसम्मति से आप स्वाधीन भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री निर्वाचित हुए तथा मृत्युपर्यन्त इसी पद पर आसीन रहे ।

इस काल में आपने अनेक प्रशंसनीय कार्य किए । स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् देश का विभाजन होने पर हमारे समक्ष अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई थी । शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या, साम्प्रदायिक दंगों की समस्या, काश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण तथा राज्यों के पुनर्गठन आदि समस्याओं का नेहरू जी ने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ के आधार पर उचित हल निकाला ।

आपके नेतृत्व में सगर्व देश के लिए अनेक बहुमुखी योजनाएँ बनाई गई । जल ब विधुत शक्ति के लिए बाँध बनाए गए, देश में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित किए गए तथा कृषि के क्षेत्र में भी देश ने अद्‌भुत प्रगति की । ट्राम्बे (मुम्बई) में अगुचालित रीऐक्टर संस्थान आपके सुनियोजित प्रयासों का ही परिणाम है ।

नेहरू जी की सैद्धान्तिक विशेषताएँ:

नेहरू जी ने विश्व को शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व एवं गुट निरपेक्षता के महत्त्वपूर्ण विचार दिए । उन्होंने उपनिवेशवाद, नवउपनिबेशवाद साम्राज्यवाद, रंगभेद एवं किसी भी प्रकार के अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द की और एशिया, अफ्रीका एवं लेटिन अमेरिका के लगभग य देशों को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराया ।

एक महान चिन्तक के रूप में नेहरू जी का मानब में अटूट बिश्वास था और उनकी प्रतिभा, प्रकृति तथा चरित्र का सबसे मस्लपूर्ण पक्ष उनका वैज्ञानिक मानवतावाद था । उन्होंने आत्मा, परमात्मा एवं रहस्यवाद को महत्त्व न देते हुए मानवता व सामाजिक सेवा को ही अपना धर्म बनाया ।

सभा महान विभूतियां की भाँति नेहरू जी भी सत्य के खोजी थे । किन्तु वे सत्य के प्रति विशुद्ध सैद्धान्तिक पहुँच में विश्वास नहीं रखते थे । महात्मा गाँधीजी की भांति उन्होंने सत्य को ईश्वर का पर्याय न समझकर सत्य की खोज विज्ञान, ज्ञान एवं अनुभव द्वारा अनुप्राश्रित की ।

जहाँ तक साध्य एवं साधन के मध्य सम्बन्ध का प्रश्न है; नेहरू जी गाँधी जी के विचारों वाले थे । जैसा साधन होगा, साध्य भी वैसा ही होगा । साधन की तुलना बीज से एवं साध्य की तुलना वृक्ष से की जा सकती है ।

नेहरू जी लोकतन्त्र के कट्टर समर्थक थे । उनके लिए लोकतन्त्र स्थिर बस्तु न खेकर एक गतिशील एबै विकासशील वस्तु थी । उनके अनुसार सच्चा लोकतन्त्र बंही है जहाँ लोगों के कल्याण एवं सुख का ध्यान रखा जाए । वे लोकतन्त्र को जनता की स्वतन्त्रता, जनता की समानता, जनता का भ्रातृत्व एवं जनता की सर्वोच्चता मानते थे ।

अन्तिम समय:

अपने जीवन के अन्तिम क्षणों में भी नेहरू जी ने देश-सेवा के अपने व्रत को नहीं त्यागा और कठिन परिश्रम करते रहें । एक ओर कश्मीर समस्या थी तो दूसरी ओर चीन का खतरा । परन्तु सभी समस्याओं का आपने साहसपूर्वक सामना किया ।

27 मई, 1964 ई. को आप काल का ग्रास बन गए तथा सम्पूर्ण विश्व शान्ति के इस अग्रदूत की अन्तिम विदाई पर बिलख उठा । आधुनिक भारत का प्रत्येक नागरिक सदा आपका ऋणी रहेगा । शायद आपकी कमी को कोई भी पूर्ण न कर सके । मृत्यु के पश्चात् आपकी वसीयत के अनुसार आपकी भस्म भारत के खेतों में बिखेर दी गई क्योंकि आपको भारत की मिट्टी से अटूट प्यार था ।

नेहरू जी ने अपने जीवनकाल में जाति भेद को दूर करने, स्त्री जाति की उन्नति करने तथा शिक्षा प्रसार करने जैसे अनेक सराहनीय कार्य किए । युद्ध की कगार पर खड़े विश्व को आपने शान्ति का मार्ग दिखाया । नेहरूजी उच्चकोटि के चिन्तक, विचारक एवं लेखक थें ।

उनकी लिखित मेसई क्खनी’, ‘भारत की कहानी’, ‘विश्व इतिहास की झलक’, ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ आदि जन-प्रसिद्ध हैं । बच्चे उन्हें प्यार से ‘चाचा नेहरू’ कहकर पुकारते हैं क्योंकि नेहरूजी को ‘बच्चों’ से एवं गुलाक से बहुत प्यार था । हर वर्ष 14 नबम्बर को उनका जनमदिन ‘बाल दिबस’ के रूप में मनाया जाता है ।

मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण यह अनूठा व्यक्तित्व भारत के लोगों का ही नहीं, अपितु पूरी दुनिया के लोगों का प्यार एवं सम्मान पा सका । भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया था । निःसन्देह उनका नाम चिरकाल तक इतिहास में अमर रहेगा ।

Hindi Nibandh (Essay) # 10

युगपुरुष-लाल बहादुर शास्त्री पर निबन्ध | Essay on Lal Bahadur Sastri : An Icon of the Age in Hindi

कभीकभी साधारण परिवार व साधारण परिस्थितियों में पला बड़ा इन्सान भी अपने असाधारण कृत्यों से सभी को आस्वर्यचफ्रइत कर देने की क्षमता रखता है । ऐसे ही चमत्कारिक व्यक्ति थे । युग पुरुष श्री लाल बहादुर शास्त्री ।

29 मई, 1964 को पं. जवाहरलाल नेहरू जी के आकस्मिक निधन के उपरान्त 2 जून, 1964 को कांग्रेस के संसदीय दल द्वारा सर्वसम्मति से लाल बहार शास्त्री को देश का प्रधानमन्त्री चुना गया । 9 जून, 1964 ई. को आपने प्रधानमन्त्री पद की शपथ ग्रहण की तथा केवल 18 माह तक प्रधानमन्त्री के रूप में कार्य कर सबका हृदय जीत लिया ।

श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अकबर, 1904 ई. में वाराणसी के भुगलसराय नामक ग्राम में हुआ था । आपके पिता श्री शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे । जब लालबहादुर मात्र डेढ़, वर्ष के थे, तभी उनके पिता का देहावसाज हो गया ।

आपकी माता श्रीमति रामदुलारी देवी जी ने आपका लालन पालन किया । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी के ही एक क्ख में हुई । लाल बहष्र का बचपन बहुत निर्धनता तथा तंगी में व्यतीत हुआ तभी तो उन्हें विद्यालय जाने के लिए गंगा नदी को पार करना पड़ता था । नाव वाले को देने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे ।

यद्यपि लाल बहादुर जी के पिता जी उन्हें अपनी स्नेह-छाया में पाल-पोसकर बड़ा नहीं कर पाए थे तथापि वे उन्हें ऐसी दिव्य प्रेरणाओं की विभूति प्रदान कर गए जिसके सहारे शास्त्री जी एक सेनानी की भाँति जीवन के समस्त कष्टों को अपने चरित्रम्बल से पदन्दलित करते चलते गए ।

एक बार सन् 1921 में महात्मा गाँधी अपने ‘असहयोग आन्दोलग के सिलसिले में वाराणसी आए हुए थे तो एक सभा को सम्बोधित करते हुए गाँधी जी ने कहा था,

”भारत माता दासता लई कड़ी बेडियों में जकड़ी हुई है । आज हमें जरूरत है उन नौजवानों की जो इन बेडियों को काट देने के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देने को तैयार ह्मे । ”

तभी एक सोलह-सत्रह वर्ष का नौजवान भीड़ में से आगे आया, जिसके माथे पर तेज तथा हृदय में देशप्रेम था । यह लड़का लाल बहादुर ही था । स्कूली शिक्षा छोड़कर लाल बहादुर स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े । साम्राज्यवादी सरकार ने उन्हें जेल में डलवा दिया तथा शास्त्री जी को ढाई वर्षों तक कारावास में रहना पड़ा ।

जेल की सजा काटने के बाद शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ में प्रवेश ले लिया तथा पढ़ाई आरम्म कर दी । सौभाग्य से लाल बहादुर को काशी विद्यापीठ में महान ब योग्य शिक्षकों, जैसे-डी. भगवानदास, आचार्य जे.बी. कृपलानी, सक्तर्घनन्द तथा श्री प्रकाश आदि से शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्राप्त हुआ ।

यहीं से उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त हुई एवं तभी से वे ‘लाल बहादुर शास्त्री’ कहलाने लगे । यहाँ पर चार वर्ष तक लगातार शास्त्री जी ने फैख्व तथा ‘दर्शन’ का अध्ययन किया । शिक्षा समाप्ति के पश्चात् शास्त्री जी का विवाह क्षलिता देवी के साथ हुआ, जो शास्त्री जी के ही समान सरल व सीधे स्वभाव की जागरुक नारी थी ।

देश-सेवा के कार्य व राजनीति में प्रवेश:

शास्त्री जी का समुर्ण जीवन कड़े-संघषों की लम्बी कहानी है । शास्त्री जी के हृदय में निर्धनों, दलितों तथा हरिजनों के लिए बहुत दया ब करुणा भाव थे तथा वे इन पिछड़े तथा उपेक्षित वर्ग को सदा ऊपर उठाना चाहते थे । हरिजनोद्वार में शास्त्री जी का अभूतपूर्व योगदान रहा हे । उनकी कार्यकुशलता को देखते हुए शास्त्री जी को लोक सेवा संघ का सदस्य बनाया गया और उन्होंने इलाहाबाद को अपनी कार्यवाहियों का केन्द्र बनाया ।

शास्त्री जी सात सालों तक इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के सदस्य रहे तथा चार वर्ष तक इलाहाबाद इखूबमेंट ट्रस्ट के महासचिव तथा सन् 1930 से 1936 तक अध्यक्ष रहे । सन् 1937 ई. में शास्त्री जी उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य निवाचित किए गए ।

शास्त्री जी ने सन् 1942 में भारतछफ्रौ आन्दोलन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा कारावास का दण्ड भोगा । सन् 1937 में सात प्रान्तों में कांग्रेस की अन्तरिम सरकार बनी । इस समय उत्तर प्रदेश में पंडित गोविन्द बल्लभपंत ने इन्हें अपना सभा सचिव नियुक्त किया तथा अगले ही वर्ष शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश का गृहमन्त्री नियुक्त किया गया ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सन् 1952 ई. में जब आम चुनाब हुए तो पं. जवाहर लाल नेहरू ने इन्हें चुनाव तैयारियों के लिए दिल्ली बुलवा लिया तथा चुनाव के पश्चात् इन्हें स्वतन्त्र भारत का प्रथम रेलमन्त्री नियुक्त किया, किन्तु दुर्भाग्यवश इनके कार्यकाल में एक रेल दुर्घटना हो गई जिसका नैतिक दायित्व वहन करते हुए इन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया ।

तत्पश्चात् सन् 1956-57 में वे देश के संचार व परिवहन मन्त्री बने तथा इसके बाद वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्री भी बने । सन् 1961 के अप्रैल मास में उन्हें स्वराष्ट्र मन्त्रालय का कार्यभार सौंपा गया । शास्त्री जी ने सभी पदों का कार्य भार बड़ी कुशलता तथा निष्ठा से सम्माला ।

धनी व्यक्तित्व के स्वामी-लाल बहादुर शास्त्री जी एकदम सरल एवं सादे स्वभाव के व्यक्ति थे । इसी कारण जब उन्होंने प्रधानमन्त्री का पदभार ग्रहण किया तो लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि शास्त्री जी प्रधानमन्त्री पद की जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभा सकेंगे ।

किन्तु केवल 18 माह के कार्यकाल ने शास्त्री जी को भारतीय इतिहास की महान विभूतियों में से एक के रूप में पहचान दिलवाई । शास्त्री जी का स्वभाव शान्त, गम्भीर, मृदु व संकोच किस्म का था, इसी कारण वे जनता के दिलों में राज्य कर सके थे । उनकी अद्वितीय योग्यता तथा महान नेतृत्व का परिचय हमें 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय देखने को मिला ।

पाकिस्तानी आक्रमण के समय सभी भारतीय अत्यन्त चिन्तित थे, किन्तु शास्त्री जी ने बड़ी बहादुरी से इस परिस्थिति का आकलन किया तथा देश का नेतृत्व किया । उन्होंने इस युद्ध में भारत को जीत दिलाई तथा पाकिस्तानियों को मुँह की खानी पड़ी ।

उन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों से वीर सैनिकों तथा देश की आम जनता का मनोबल बढ़ाया । एक बार जब भारत में आने वाले अनाज के जहाजों को रोक दिया गया, तब इन्होंने देश के सामने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया ।

उन्होंने सप्ताह में एक दिन का अन्न छोड़ दिया तथा देश की जनता को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया । इसके अतिरिक्त शास्त्री जी ने असम भाषा समस्या, नेपाल के साथ सम्बन्ध सुधार व स्वरत बल से चोरी की समस्या आदि समस्याओं का कुशलतापूर्वक समाधान किया ।

भारत-पाक युद्ध के बाद सोवियत संघ के ताशकन्द में 11 जनवरी, सन् 1966 ई. में समझौते के दौरान शास्त्री जी का निधन हो गया । श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की संगठनात्मक शक्ति और लगन ने भारत को सर्वोच्च गौरव प्रदान किया ।

आज शास्त्री जी तन से हमारे साथ न होते हुए भी हमारे मन व हृदय में निवास करते हें । निःसन्देह वे एक ऐसे युग पुरुष थे जिन्होंने साधारण परिवार में जन्म लेकर असाधारण कार्य किए तथा प्रत्येक क्षेत्र में अपने चातुर्थ तथा कुशलता के प्रमाण प्रस्तुत किए ।

Hindi Nibandh (Essay) # 11

भारत रत्न श्रीमती इन्दिरा गाँधी पर निबन्ध | essay on bharat ratna : srimati indira gandhi in hindi.

हमारी भारत भूमि पर सदा ही श्रेष्ठ महापुरुषों एवं महान स्त्रियों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने गौरवपूर्ण व महान् कार्यों से न केवल भारतवर्ष को, अपितु पूरे विश्व को अचंभित किया है ।

ऐसी ही एक वीरांगना, महान तथा श्रेष्ठ नारी थी श्रीमति इन्दिरा गाँधी । इन्दिरा गाँधी का वास्तविक नाम ‘इन्दिरा प्रियदर्शिनी’ थी । वह अपार दूरदर्शिनी तथा साहसी नारी थी । वे भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री थी, जिन्होंने हर विपरीत परिस्थिति का डटकर सामना किया तथा देश के विकास के लिए नई दिशाओं को खोज निकाला ।

जीवन-परिचय एवं शिक्षा:

भारतवर्ष की तृतीय प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी जी का जन्म 19 नवम्बर, 1917 को इलाहाबाद के ‘आनन्द भबन’ में हुआ था । पिता पं. जवाहरलाल नेहरू तथा माता कमला नेहरू के अतिरिक्त दादा मोतीलाल नेहरू तथा दादी स्वरूप रानी भी ‘इन्दिरा’ के जन्म पर बहुत प्रसन्न हुए ।

सभी प्यार से उन्हें ‘इन्दु’ पुकारते थे । इन्दिरा जी के व्यक्तित्व में अपने दादाजी जैसी दृढ़ता, पिताजी जैसा धैर्य तथा माता जी जैसी संवेदनशीलता थी । इन्दिरा जी की प्रारम्भिक शिक्षा स्विट्‌जरलैण्ड में हुई । इसके पश्चात् वे अपने अध्ययन के लिए भारत लौट आई तथा ‘शान्ति निकेतन’ में ही पढ़ने लगी । इसके पश्चात् वह ऑक्सफोर्ड के समशवइले कॉलेज गई तथा वही पर शिक्षा प्राप्त की ।

पं. नेहरू अपनी बेटी की सुख सुविधाओं का पूरा ध्यान रखते थे वही विस्तृत ज्ञानवर्धन भी उनको परम अभीष्ट था । पं नेहरू जी ने कारावास से ही अपनी प्यारी इनु’ को अनेक पत्र लिखे । बाद में ये पत्र ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ से प्रकाशित भी हुए ।

दस वर्ष की आयु में ही इन्दिरा जी ने ‘बानर सेना’ का गठन किया था जो कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन में सहायता पहुँचाया करती थी । सन् 1937 में आपकी माता जी का देहावसान हो गया ।

इन्दिरा जी का सामाजिक जीवन:

ऑक्सफोर्ड के समरविले कॉलेज में अध्ययन करते समय ही आपने ब्रिटिश मजदूर दल के आन्दोलन में भाग लिया । सन् 1938 ई. में आप भारतीय कांग्रेस में सम्मिलित हो गई । सन् 1942 ई. में इन्दिरा जी का विवाह एक सुयोग्य पत्रकार एवं विद्वान लेखक फिरोज गाँधी से हुआ। पति-पत्नी दोनों ही स्वतन्त्रता-संक्रम में सक्रियता से हिस्सा लेने लगे । सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भाग लेने के कारण दोनों को करीब 15 मास कारावास में गुजारने पड़े । इन्दिरा जी ने दो पुत्रों राजीव व संजय को जन्म दिया ।

जब 15 अगस्त सन् 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ तो पं. जवाहरलाल नेहरू को स्वतन्त्र भारत का प्रथम प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया । तभी से इन्दिरा जी का अधिकतर समय अपने पिता के साथ बीतता था ।

उनके साथ रहते-रहते इन्दिरा जी को राजनीति की वास्तविक जानकारी प्राप्त हुई । उन्होंने पिता के साथ देश-विदेश का भ्रमण किया तथा विश्व राजनीति के बारे में भी जानकारी हासिल की ।

इन्दिरा जी सन् 1955 ई. में कांग्रेस की कार्य समिति की सदस्या बनी तथा सन् 1959 में अखिल भारतीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई । कांग्रेस अध्यक्ष बनकर आपने सारे देश का दौरा किया तथा कुछ ऐसे सराहनीय कार्य किए, जिन्हें देखकर वामपन्धी कांग्रेसी कृष्णा मेनन आदि भी अचम्भित रह गए । सन् 1960 में इन्दिरा गाँधी के पति फिरोज गाँधी का देहान्त हो गया तो इन्दिरा जैसे टूट सी गई ।

प्रधानमन्त्री के रूप में कार्य:

27 मई, सन् 1964 ई. को पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन पर तो जैसे इन्दिरा जी एकदम टूट कर ढेर सी हो गई थी । ऐसे समय में लाल बहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया तो उन्होंने इन्दिरा जी को अपने मन्त्रिमण्डल में सूचना एवं प्रसारण मन्त्री के रूप में चयनित कर लिया, जिसे उन्होंने बड़ी कुशलता से निभाया ।

सन् 1966 में लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु हुई तब इन्दिरा जी देश की तीसरी तथा प्रथम महिलारप्रधानमन्त्री बनी । मारग्रेट थैचर (इंग्लैण्ड की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री) के बाद इन्दिरा जी ऐसी महिला हैं जो किसी लोकतान्त्रिक देश की प्रधानमन्त्री बनी हैं ।

तत्कालीन राष्ट्रपति डी. शंकरदयाल शर्मा ने जब इन्दिरा जी को प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिलाई तो भारत की प्रत्येक नारी का सिर गर्व से ऊँचा हो गया । इसके बाद पूरे देश में सन् 1967 को आम चुनाव हुए तथा अपने असाधारण व्यक्तित्व, लगन तथा निष्ठा के बल पर आप दूसरी बार सर्वसम्मति से देश की प्रधानमन्त्री नियुक्त की गई ।

अपने प्रधानमन्त्री काल में आपने अनेक प्रकार के सुधार तथा विकास कार्य किए हैं । जिस समय इन्दिरा जी प्रधानमन्त्री बनी थी, उस समय देश में गरीबी एक प्रमुख समस्या थी क्योंकि औद्योगिकरण एवं वैज्ञानिक प्रगति अपने आरम्भिक दौर में थी ।

इन्दिरा जी ने गरीबी को दूर करने के लिए सन् 1969 में एक सशक्त नीति की घोषणा की, जिसमें निजी आय, निजी आमदनी तथा लाभों पर सीमा से ऊपर आय होने पर सरकार सम्पत्ति एवं आय का अधिग्रहण कर लेती थी । आपने कई सरकारी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया तथा गाँवों में कई बेंकों की शाखाएँ भी खोली ।

इसके अतिरिक्त बांग्लादेश के पुन: निर्माण के लिए आपने अपने देश से विशेष सहायता प्रदान की । 25 जून, 1975 की आधी रात को आपने देशभर में आपातकालीन स्थिति की घोषणा कर दी । ‘आसुका’ (आन्तरिक सुरक्षा कानून) तथा डी.आई.आर. कानूनों के अन्तर्गत देश के बड़े-बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया ।

इसके कारण ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस आदि देशों ने इन्दिरा सरकार की घोर निन्दा की । सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध में आपने ऐसे साहस व धैर्य का परिचय दिया कि विरोधियों ने आपको दुर्गा माँ का अवतार कहना प्रारम्भ कर दिया । 24 मार्च सन् 1977 ई. तक आप प्रधानमन्त्री बनी रही ।

सन् 1977 के आम चुनावों में आपको भारी पराजय का सामना करना पड़ा जनता सरकार ने सत्ता में आने पर आपको जेल में भेजा । सन् 1980 में पुन: लोकसभा चुनाव हुए तथा आपने फिर विजयश्री प्राप्त की तथा आपके नेतृत्व में कांग्रेस पुन: सत्ता में आ गई ।

वे पुन: प्रधानमन्त्री बन बैठी । विश्व-इतिहास में यह पहली घटना थी कि चुनाव हारने के ढाई वर्ष पश्चात् ही कोई राजनीतिज्ञ पुन: भारी बहुमत से देश की बागडोर सम्भाल पाया था ।

इन्दिरा जी विलक्षण प्रतिभा की धनी महिला थी, जिनमें अदम्य साहस तथा दूरदृष्टिता छूट-कूट कर भरे थे । 23 जून, 1980 में अपने प्रिय पुत्र संजय गाँधी की आकस्मिक मृत्यु ने आपको बुरी तरह से तोड़ दिया, फिर भी आपने हिम्मत नहीं हारी । आप अपने जीवन की आखिरी सांस तक निर्धनता, रंग-भेद तथा जाति-भेद के विरुद्ध संघर्षशील रही ।

जिस समय आप भारत राष्ट्र को उन्नति की पराकाष्ठा पर ले जानी जाने वाली थी, उसी समय 31 अक्तूबर सन् 1984 को प्रात: 9 बजे आपके दो अंगरक्षकों सतवंत सिंह तथा बेअंत सिंह ने आपको गोलियों से भून डाला । पूरा विश्व जैसे ठगा सा रह गया ।

भारत राष्ट्र अनाथ हो गया तथा दुनिया के राजनीतिक मंच का एक मुखर स्वर शान्त हो गया । आज आप अपनी समाधि ‘शक्ति स्थल’ में आराम से विश्राम कर रही हैं और पूरा विश्व आपके सराहनीय कार्यों को याद कर आपको श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है ।

Hindi Nibandh (Essay) # 12

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर निबन्ध | Essay on Netaji Subash Chandra Bose in Hindi

शैशवकाल से ही जिसके कोमल मून में विद्रोह की ज्वाला प्रज्वलित हो उठी थी, किशोरावस्था में ही जिसका उर्वर मस्तिष्क विप्लव के झंझावात से दुखी समुद्र की भांति अशान्त हो उठा था, युवावस्था में ही जिसने समस्त भोग-विलासों एवं नश्वर ऐश्वर्य को त्याग दिया था, ऐसे विद्रोही, विप्लवी एवं त्यागी सुभाषचंद्र बोस का सम्पूर्ण जीवन विद्रोह तथा वैराग्य का आग्नेयगिरि बना रहा, तो इसमें आश्चर्य की कौन सी बात हो सकती है ।

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ – ऐसी गर्जना करने वाले भारत माता के वीर सपूत सुभाष चन्द्र बोस भारतीय राजनीति के क्षितिज पर ध्रुव तारे ही भाँति निश्चल, काल की भांति निर्भीक एवं हिमालय की भांति अटल रहे । भारत माता के इस महान सपूत ने सहस्रों भारतीयों को स्वाधीनता की दीपशिखा पर परवानों की भांति जलना सिखाया ।

सुभाषचन्द्रबोस का जन्म उड़ीसा राज्य के ‘कटक’ शहर में 23 जनवरी सन् 1897 ई. को हुआ था । आपके पिताजी श्री रायबहादुर जानकी नाथ बोस कटक खुनिसिपैलिटी तथा जिला बोर्ड के प्रधान थे तथा नगर के एक सुप्रसिद्ध वकील थे ।

आपके भाई श्री शरतचन्द्र बोस एक महान देशभक्त तथा स्वतन्त्रता-संग्राम सेनानी थे । सुभाष चन्द्रकी आरम्भिक शिक्षा एकयूरोपियन स्कूल से हुई थी । सन् 1913 में आपने मैट्रिक की परीक्षा में कलकत्ता विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान प्राप्त किया था ।

इसके पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए आपने ‘प्रेजीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश ले लिया । वहाँ ‘ओटेन’ नाम का अंग्रेज प्रोफेसर सदैव भारतीयों की निन्दा करता था, जो सुभाषचन्द्र से जरा भी सहन नहीं होता था इसीलिए उन्होंने उस अध्यापक की पिटाई कर दी ।

उस दिन से उसने भारतीयों का अपमान करना तो बन्द कर दिया, परन्तु सुभाष को भी कॉलेज से निलम्बित कर दिया गया । फिर आपने ‘स्कॉटिश चर्च’ कॉलेज में दाखिला लिया तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए, आनर्स किया ।

सन् 1919 में इंग्लैण्ड से आईसीएस. की परीक्षा पास करके भारत लौट आए । परन्तु आई.सी.एस. की परीक्षा पास करके भी उन्होंने उसे त्याग दिया क्योंकि वे अंग्रेजों के अधीन रहकर सेवा करना अपने देश का अपमान समझते थे । देशबत्र चितरंजनदास का प्रभाव-सुभाष चन्द्र बोस के जीबन पर देशबमृ चितरंजन दास का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा ।

वे उनके द्वारा स्थापित की गई ‘स्वराज पार्टी’ में काम करने लगे तथा उनके द्वारा निकाले गए ‘अग्रगामी पत्र’ का सम्पादन भार ले लिया । प्रिन्स ऑफ बेल्ट के आगमन पर उन्होंने बंगाल में उनके बहिष्कार आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर वर्मा के मांडले जेल भेज दिया, किन्तु स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हें 17 मार्च, 1927 को रिहा कर दिया गया ।

राजनीतिक जीबन:

सुभाष चन्द्र बोस भारतीय नेताओं के औपनिवेशिक साम्राज्य की माँग से पूर्णतया सहमत नहीं थे वे तो पूर्ण स्वतन्त्रता के अभिलाषी थे । अग्रिम वर्ष के कांग्रेस अधिवेशन में यही प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया । कांग्रेस में गरम ब नरम दो दल थे । सुभाष चन्द्र बोस गरम दल के नेता थे तथा महात्मा गाँधी नरम दल के ।

बे गाँधी जी के विचारों से सहमत नहीं थे । उनका मानना था कि केबल सत्य तथा अहिंसा के रास्ते पर चलकर स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं की जा सकती है वरन् हमें अंग्रेजों से अपने अधिकार पाने के लिए लड़ना पड़ेगा और यदि इसके लिए खून की नदियाँ भी बहानी पड़े, तो कोई गलत कार्य नहीं होगा ।

परन्तु बिचारों में मतभेद होते हुए भी वे गाँधी जी का पूर्ण सम्मान करते थे तथा उनके साथ मिलकर काम करते थे । सन् 1929 ई. के ‘नमक कानून तोड़ो आन्दोलन’ का नेतृत्व सुभाष जी ने ही किया था । सन् 1938 तथा 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुने गए ।

बाद में नेताजी ने विचार न मिलने के कारण कांग्रेस दल से इस्तीफा दे दिया तथा ‘फॉरबर्ड ल्लॉक’ की स्थापना की, जिसका लक्ष्य ‘पूर्ण स्वराज्य’ तथा हिनू-मुस्तिम एक्ता था । आजाद हिन्द फौज का गठन तथा मृत्यु-सन् 1940 में ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया, किन्तु जेल में नेता जी ने आमरण अनशन की घोषणा कर दी ।

तब सरकार ने उन्हें जेल से मुक्त कर घर में ही नजरबन्द कर दिया । एक रात सबकी आँखों में धूल झोंककर एक मौलवी के वेष में आप घर से बाहर निकल आए । वहाँ से वे पहले कलकत्ता तथा फिर पेशावर पहुँच कर । पेशावर में सुभाषचन्द्र, उत्तमचन्द्र नामक व्यक्ति की मदद से एक गूँगे मुसलमान का वेष धारण कर काबुल पहुँच गए और फिर वहाँ से जर्मनी गए ।

जर्मनी में ही आपने ‘आजाद हिन्द फौज’ की नींव रखी । नेता जी का विचार था कि अहिंसक आन्दोलनों से ब्रिटिश सरकार भारत नहीं छोड़ेगी, अपितु हमें तो उन्हें मारकर भगाना होगा । इसी उद्‌देश्य से उन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ बनाई थी ।

उन्होंने नवयुवकों को देश भक्तिके लिए लड़ना सिखाया । परिणामस्वरूप सैकड़ों नवयुवक ने अपने खून से हस्ताक्षर कर एक पत्र नेताजी को दिया । विश्व के 19 राष्ट्रो ने ‘आजाद हिन्द फौज’ को स्वीकार कर लिया । ‘जय हिन्द’ तथा ‘दिल्ली चलो’ नारी से ‘इम्फाल’ तथा ‘अरामान’ की पहाड़ियों गूँज उठी ।

आजाद हिन्द फौज ने जापान की मदद से मलाया तथा वर्मा के अंग्रेजों को मार गिराया तथा पूर्वोत्तर में भारतभूमि पर तिसौ लहरा दिया, किन्तु द्वितीय विश्बयुद्ध में जापान की हार के कारण आपकी सारी योजनाओं पर पानी फिर गया ।

23 अगस्त, 1945 को टोक्यो रेडियो से यह शोक समाचार प्रकाशित हुआ कि नेता जी एक विमान दुर्धटना में मारे गए । किसी को भी नेता जी का शव नहीं प्राप्त हुआ इसलिए किसी ने भी इस बात पर विश्वास नहीं किया । परिणामत: नेता जी की मृउ आज भी एक रहस्य बनी हुई है ।

सम्पूर्ण विश्व में एकमात्र विश्वास तथा सम्मान के साथ ‘नेताजी’ की उपाधि प्राप्त करने बाले सुभाष चन्द्र बोस की देशभक्ति आज भी हम भारतीयों के लिए प्रेरणा-स्रोत है । आज भी उनके गाए गीत ‘कदम-कदम बढ़ाए जा’ हमारे कानो में गूँज रहे हैं । बे तो अद्‌भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे तभी तो सभी उनकी वाणी के आकर्षण में फँस जाते थे तथा उन्हें अपना आदर्श मानते थे ।

Hindi Nibandh (Essay) # 13

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद पर निबन्ध | Essay on Dr. Rajendra Prasad : India’s First President in Hindi

स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति का गौरव प्राप्त करने वाले डी. राजेन्द्र प्रसाद सादगी, सत्यनिष्ठा, पवित्रता, योग्यता तथा विद्वता की पूर्ति थे । आपने ही भारतीय ऋषि परम्परा को पुनर्जीवित किया तथा सादगी तथा सरलता के कारण किसान जैसा व्यक्तित्व पाकर भी पहले राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त किया ।

राजेन्द्र बाबू जैसे महान व्यक्ति का जन्म 3 दिसम्बर सन् 1884 ई. को बिहार राज्य के सरना जिले के एक सुप्रतिष्ठित एवं संभ्रान्त कायस्थ परिवार में हुआ था । आपके पूर्वज तत्कालीन हधुआ राज्य के दीवान रह चुके थे ।

आरम्भिक शिक्षा ‘उर्दू’ भाषा में प्राप्त करने के पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए आप कोलकाता आ गए । प्रारम्म से अन्त तक आपने प्रत्येक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । इसके बाद आप वकालत करने लगे तथा कुछ ही दिनों में आपकी गणना उच्च श्रेणी के उच्चतम वकीलों में की जाने लगी ।

देश प्रेम की भावना-रोलट एक्त से आहत होकर आपका स्वाभिमानी मन देश की स्वतन्त्रता के लिए बेचैन हो उठा तथा गाँधी जी द्वारा चलाए गए ‘असहयोग आन्दोलन’ में भाग लेकर आप देश सेवा में जुट गए । प्रारम्भ में आप राष्ट्रीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले से बहुत प्रभावित थे तथा उसके बाद महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व की सादगी ने तो जैसे आपको पूर्णरूपेण अपने वश में कर लिया था ।

आपको महान बनाने में इन दोनों महापुरुषों का विशेष योगदान रहा है । सन् 1905 ई. पूना में स्थापित सर्वेण्ट्स ऑफ इण्डिया सोसायटी की ओर आकर्षित होते हुए भी राजेन्द्र बाबू अपनी अन्तः प्रेरणा से गाँधी जी द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों के प्रति समर्पित हो गए तथा आजीवन गाँधी जी द्वारा बताए पथ पर ही चलते रहे ।

राजेन्द्र प्रसाद न केबल बिनम्र तथा विद्वान ही थे, वरन् अपूर्व सूझ-बूझ एवं संगठन शक्ति से सम्पन्न व्यक्ति थे । अपनी लगन एवं दृढ़ इच्छाशक्ति से शीघ्र ही आप गाँधीजी के प्रिय पात्रों के साथ-साथ शीर्षस्थ राजनेताओं में भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुके थे ।

प्रारम्भ में आपका कार्यक्षेत्र बिहार राज्य रहा । आपने सदैव बिहार के किसानों को उनके उचित अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया । सन् 1934 में बिहार राज्य में आने वाले भूकम्प के कारण उत्पन्न विनाशलीला के मौके पर आपने पूरी लगन तथा कुशलता से पीड़ित जनता को राहत पहुँचाई जिससे पूरा बिहार राज्य आपका अनुयायी बन गया ।

डी. राजेन्द्र प्रसाद अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के साथ आजीवन जुड़े रहें । उन्होंने सदा ही गाँधी जी का समर्थन किया । एक निष्ठावान कार्यकर्ता एवं उच्चकोटि के राजनेता होने के कारण आप दो बार अखिल भारतीय कांग्रेस दल के सर्वोच्च पद अध्यक्ष पक पर भी निर्वाचित किए गए ।

कांग्रेस के समर्थकों का मत है कि जैसा सौहार्दपूर्ण वातावरण कांग्रेस दल में राजेन्द्र बाबू के समय में था, उससे पहले या बाद में आज तक कभी भी नहीं रहा । आप छोटे बड़े सभी कार्यकर्त्ताओं की समस्या ध्यानपूर्वक सुनते थे तथा उसका समाधान भी निकाल लेते थे ।

राष्ट्रपति पद पर सुशोभित:

लगातार अनगिनत संघर्षों के परिणामस्वरूप सन् 1947 ई. को जब भारतवर्ष स्वतन्त्र हुआ, तब देश का संविधान तैयार करने वाले दल का अध्यक्ष डी. राजेन्द्र प्रसाद को ही चुना गया । भारत का सविधान बन जाने के पश्चात् 26 जनवरी, सन् 1950 को जब उसे लागू और घोषित किया गया, तब उसकी माँग के अनुसार स्वतन्त्र गणतन्त्र का प्रथम राष्ट्रपति बनने का गौरव डी. राजेन्द्र प्रसाद को भी प्राप्त हुआ ।

निःसन्देह आप ही इस पद के लिए सर्वाधिक सक्षम एवं उचित अधिकारी थे । सन् 1957 में पुन: आपने राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया ।

राष्ट्रपति भवन के वैभवपूर्ण वातावरण में रहकर भी आपने अपनी सादगी तथा पवित्रता को कभी भी नहीं छोड़ा । यद्यपि हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने जैसे कुछ विषयों पर आपका तत्कालीन प्रधानमन्त्री से कुछ मतभेद भी अवश्य हुआ परन्तु आपने अपने पद की गरिमा को सदैव बनाए रखा ।

दूसरी बार का राष्ट्रपति काल समाप्त कर आप बिहार के ‘सदाकत’ आश्रम में जाकर रहने लगे । सन् 1962 में उत्तर-पूर्वी सीमांचल पर चीनी आक्रमण का सामना करने का उद्‌घोष करने के पश्चात् आप अस्वस्थ रहने लगे तथा आपका देहावसान हो गया । मरणोपरान्त आपको ‘भारत रल’ से विभूषित किया गया । हम भारतीय सदा आपके समक्ष नतमस्तक रहेंगे ।

Hindi Nibandh (Essay) # 14

शहीद भगतसिंह पर निबन्ध | Essay on Bhagat Singh the Martyr in Hindi

भारत माता के स्वतन्त्रता के इतिहास को जिन शहीदों ने अपने रक्त से लिखा है, जिन शूरवीरों के बलिदानों ने भारतीय जनमानस को सर्वाधिक उद्धिग्न किया है, जिन्होंने अपनी रणनीति से साम्राज्यवादियों को लोहे के चने चबवा दिए, जिन्होंने परतन्त्रता की बेड़ियों को चकनाचूर कर स्वतन्त्रता का मार्ग प्रशस्त किया है तथा जिन देश भक्तों पर मातृभूमि को गर्व है, उनमें भगतसिंह का नाम सर्वोपरि है ।

भगतसिंह का जन्म 27 सितम्बर, 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गाँव (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था । आपके पिता सरदार किशनसिंह एवं उनके दो चाचा स्वर्णसिंह तथा अजीत सिंह अंग्रेजों के विरोधी होने के कारण जेल में बन्द थे ।

संयोगवश, जिस दिन भगतसिंह पैदा हुए थे, उसी दिन उनके चाचा जेल से रिहा हो गए थे । इस शुभ घड़ी के मौके पर भगतसिंह के घर में दोहरी खुशी मनाई गई । उसी समय उनकी दादी ने उनका नाम भगत (अच्छे भाग्यवाला) रख दिया था । बाद में अऊाप ‘भगतसिंह’ कहलाने लगे ।

स्कूल के तंग कमरों में बैठना आपको अच्छा नहीं लगता था । आप कक्षा छोड्‌कर खुले मैदानों में घूमने निकल पड़ते थे तथा आजादी चाहते थे । प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् भगतसिंह को 1916 में लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल में भरती करा दिया गया । वहाँ आप लाला लाजपतराय तथा सूफी अम्बा प्रसाद जैसे देशभक्तों के सम्पर्क में आए ।

देशभक्ति की भावना:

एक देशभक्त परिवार में जन्म लेने के कारण भगतसिंह को देशभक्ति तथा स्वतन्त्रता का पाठ विरासत में मिला था । 3 अप्रैल 1919 में ‘रोलट एक्ट’ के विरोध में सम्पूर्ण भारत में प्रदर्शन हो रहे थे तथा इन्हीं दिनों जलियाँबाला बाग काण्ड भी हुआ ।

इनका समाचार सुन भगतसिंह लाहौर से अमृतसर पहुंचे । वहाँ उन्होंने शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की तथा रक्त से भीगी मिट्टी को एक बोतल में रख लिया जिससे सदा यह बात स्मरण रहे कि उन्हें अपने देश तथा देशवासियों के अपमान का बदला लेना है ।

1920 के ‘असहयोग आन्दोलन’ से प्रभावित होकर 1921 में आपने ष्फ छोड़ दिया । उसी समय लाला लाजपतराय ने लाहौर में ‘नेशनल कॉलेज’ की स्थापना की थी । भगतसिंह ने भी इसी कॉलेज में प्रवेश ले लिया । वहाँ आप यशपाल, सुखदेव, तीर्थराम आदि क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आए ।

सन् 1928 को ‘साईमन कमीशन’ का विरोध करने के लिए लाला लाजपतराय के नेतृत्व में एक जुलूस कमीशन का विरोध शान्तिपूर्वक कर रहा था । किन्तु यह विरोध अंग्रेजों से सहन नहीं हुआ और उन्होंने लाठी चार्ज करवा दिया ।

इस लाठी चार्ज में लालपतराय घायल हो गए तथा 17 नवम्बर, 1928 को लालाजी चल बसे । यह सब देखकर भगतसिंह के मन में विद्रोह की ज्वाला और भी तीब्र हो गई । लालाजी की हत्या का बदला लेने के लिए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपत्विकन एसोसिएशन ने भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, जय गोपाल तथा आजाद को यह कार्य सौंपा । इन क्रान्तिकारियों ने साठडर्स को मारकर लालाजी की मौत का बदला लिया तथा इस घटना से भगतसिंह और भी अधिक लोकप्रिय हो गए ।

हिन्दुस्तान समाजवादी गणतन्त्र संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी की सभा में पन्तिक ‘सेफ्टी बिल’ तथा ‘डिज्ब बिल’ पर चर्चा हुई । इसका विरोध करने के लिए भगतसिंह ने केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकने का प्रस्ताव रखा । इस कार्य को करने के लिए भगतसिंह अड गए कि यह कार्य वह स्वयं करेंगे, हालांकि आजाद इसके विरुद्ध थे ।

इस कार्य में ‘बटुकेश्वर दत्त’ ने भगतसिंह का साथ दिया । 12 जून, 1929 को सेशन जज ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अन्तर्गत उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई । इन दोनों देशभक्तों ने सेशन जज के निर्णय के विरुद्ध लाहौर हाईकोर्ट में भी अपील की । यहाँ भगतसिंह ने भाषण दिया, परन्तु हाईकोर्ट के सेशन जज ने भी उनकी सजा को मान्यता दी ।

आजाद ने भगतसिंह को छाने की पूरी कोशिश की । तीन महीनों तक अदालत की कार्यवाही चलती रही । अदालत ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 129 के अन्तर्गत उन्हें अपराधी घोषित करते हुए 7 अक्तूबर सन् 1930 को 68 पृष्ठीय निर्णय दिया, जिसमें भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई ।

इस निर्णय के विरुद्ध नवम्बर 1930 में प्रिवी परिषद् में अपील भी की गई, परन्तु यह अपील 10 जनवरी, 1931 को रह कर दी गई । फाँसी की सजा-फाँसी का समय प्रातः काल 24 मार्च, 1931 को निश्चित हुआ था पर सरकार ने प्रातःकाल के स्थान पर संध्या समय तीनों देशभक्त क्रान्तिकारियों को एक साथ फाँसी देने का निर्णय लिया ।

फाँसी लगाने से पूर्व जेल अधीक्षक ने भगत सिंह से कहा, ”सरदार जी । फाँसी का समय हो गया है , आप तैयार हो जाइए ।” उस समय भगतसिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे । वे बोले, “ठहरो । एच्छ क्रान्तिकारी दूसरे क्रान्तिकारी से मिल रहा है” और वे जेल अधीक्षक के साथ चल पड़े ।

जब सुखदेव तथा राजगुरु को भी फाँसी स्थल पर लाया गया तो तीनों ने अपनी आएँ एक दूसरे के साथ बाँध दी । तीनों एक साथ गुनगुनाए-

”दिल से निकलेगी, नमस्कार भी वतनकी उलफत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू-एवतन आएगी ।”

Hindi Nibandh (Essay) # 15

डा. भीमराव अम्बेडकर पर निबन्ध | Essay on Dr. Bhimrao Ambedkar in Hindi

समाज के नियम कानून सभी कुछ परिवर्तनशील होता है । इन परिवर्तनों में कुछ परिवर्तन ऐसे भी होते हैं, जो इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित हो जाते हैं । समाज में ये परिवर्तन हमारे महापुरुष ही ला पाते हैं । इस प्रकार की महान विभूतियों में डी. भीमराव अम्बेडकर का नाम सर्वोपरि है ।

तभी तो उन्हें अपनी योग्यता तथा सक्रिय कार्यशक्ति के आधार पर उनकी जन्म शताब्दी पर सन् 1990 में ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया था । डी. भीमराव अम्बेडकर आधुनिक भारतवर्ष के प्रमुख विधिवेता राष्ट्रीय नेता तथा महान समाज-सुधारक थे । वे मानब-जाति की सेवा करना ही अपना परम लक्ष्य मानते थे क्योंकि दलितों, शोषितों तथा पीडितों की दर्दनाक आवाज उन्हें बेचैन कर देती थी ।

डी. भीमराव अम्बेडकर का जन्म महाराष्ट्र के महूं छावनी में 14 अप्रैल सन् 1891 ई. को अनुसूचित जाति के एक निर्धन परिवार में हुआ था । आपका बचपन का नाम ‘भीम सकपाल’ था तथा आप अपने माता-पिता की चौदहवीं सन्तान थे । आपके पिता श्री राम जी मौलाजी सैनिक स्कूल में प्रधानाध्यपक थे ।

उन्हें गणित, अंग्रेजी तथा मराठी आदि का अच्छा ज्ञान प्राप्त था । आपके घर का वातावरण धार्मिक था । आपकी माताजी का नाम श्रीमती भीमाबाई था । बचपन में भीमराव बहुत ही तार्किक तथा शरारती स्वभाव वाले बालक थे, किन्तु पढ़ाई में भी आप बहुत मेधावी थे ।

आपने 1907 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसी वर्ष आपका विवाह ‘रामबाई’ के साथ हो गया । सन् 1912 ई. में आपने स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की उसके पश्चात् जब आपको बड़ौदा नरेश से आर्थिक सहायता मिलने लगी तो सन् 1913 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने न्यूयार्क चले गए ।

इसके पश्चात् लन्दन, अमेरिका, जर्मनी आदि में रहकर भी आपने अध्ययन किया । सन् 1923 ई. तक आप एमए, पी.एच.डी. तथा बैरिस्टर बार एट ली बन चुके थे । इसके अतिरिक्त आपने अर्थशास्त्र, कानून तथा राजनीति शास्त्र का गहन अध्ययन किया था ।

सामाजिक कार्य :

डी भीमराव अम्बेडकर ने बचपन से ही जातिगत असमानता तथा ख्याछूत को अपनी आँखों से देखा था, इसलिए उनके मन में एक विद्रोह भावना ने जन्म ले लिया था । 1923 से 1931 तक का समय डी. भीमराव के लिए संघर्ष एवं सामाजिक अभुदय का समय था । वे तो दलित वर्गका उद्धार करने वाले प्रथम नेता थे । दलितों में अपना विश्वास पैदा करने के लिए आपने ‘मूक’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया, जिससे दलितों का बिश्वास डी. अम्बेडकर के प्रति जागने लगा ।

आपने ‘गोलमेज’ सम्मेलन लन्दन में भाग लेकर पिछड़ी जातियों के लिए अलग चुनाव पद्धति तथा कुछ विशेष माँगे अंग्रेजी शासकों से स्वीकार करवायी । आप तो सदा ही दलितों से यह अनुरोध करते थे- ”शिक्षित बनकर संघर्ष करो तथा संगठित होकर कार्य कसे ।”

यह सब वे इसलिए कहते थे क्योंकि वे सदा सोचते थे कि जब उन जैसे पड़े लिखे लोगों को भी दलित जाति के नाम पर इतना अपमान सहना पड़ता है तो फिर अनपढ़ लोगों को क्या-क्या नहीं सहना पड़ेगा । 27 मई, 1935 ई. में आपकी धर्मपली रामबाई का स्वर्गवास हो गया, जिसने आपको अन्दर तक झकझोर दिया ।

बिधिवेता तथा संविधान निर्माता-स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू की मुलाकात डी. भीमराव अम्बेडकर से हुई । उन्होंने 3 अगस्त, 1947 को उन्हें स्वतन्त्र भारत के प्रथम मन्त्रिमंडल में विधिमन्त्री के रूप में नियुक्त कर लिया तथा 21 अगस्त, 1947 को भारत की संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष चयनित किया गया ।

डी. अम्बेडकर की अध्यक्षता में ही भारत के लोकतान्त्रिक, धर्म निरपेक्ष एवं समाजवादी संविधान की रचना हुई थी, जिसमें प्रत्येक मनुष्य के मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों की सुरक्षा की गई 126 जनवरी, 1950 को भारत का वह संविधान राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया ।

बौद्ध धर्म एवं डा. अम्बेडकर:

3 अकतुबर, सन् 1935 को डी. भीमराव ने अपने धर्मान्तरण की घोषणा की तथा बौद्ध धर्म अपना लिया । उन्होंने दलितों तथा श्रमिकों में नवीन चेतना जाग्रत करने तथा उन्हें सुसंगठित करने के लिए अगस्त, 1936 में स्वतन्त्र मजदूर दल की स्थापना की थी ।

वे प्रत्येक दलित को शिक्षित एवं जागरुक बनाना चाहते थे क्योंकि वे जानते थे कि शिक्षित किए बिना उनमें जाति लाना असम्भव है । 20 जून, 1946 को आपने सिद्धार्थ महाविद्यालय की स्थापना की । दिसम्बर, 1954 में डी अम्बेडकर विश्व बौद्ध परिषद में हिस्सा लेने ‘रंगून’ गए तथा बौद्ध धर्म के नेता के रूप में ‘नेपाल भी गए । 14 अक्तुबर, सन् 1956 को डी. अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली । आपने भगवान बुद्ध तथा उनका धर्थ नामक ग्रन्ध की भी रचना की जिसका समापन दिसम्बर, 1956 में हुआ ।

तत्कालीन समाज:

डा. अम्बेडकर का जन्म उस वर्ग में हुआ था जिसे अइन्धविस्वार्सी के कारण हिन्दू समाज में निम्न वर्गीय माना जाता था । इसके लिए हरिजनों को पग-पग पर अपमानित किया जाता था । दलित वर्ग का व्यक्ति चाहे शिक्षित हो या अनपढ़, उसे अछूत ही समझा जाता था ।

उसे कोई छू ले तो वह तुरन्त स्नान करता था । धार्मिक स्थानों पर उनका आना-जाना वर्जित था । परन्तु डा. अम्बेडकर जैसा जागरुक व्यक्ति इस सामाजिक भेदभाव, विषमता तथा निन्दा से भी झुका नहीं । उन्होंने तो स्वयं को इतना शिक्षित बनाया कि वे किसी भी व्यक्ति का सामना निडर होकर कर सके ।

डा. भीमराव अम्बेडकर जैसा दलितों का मसीहा 6 दिसम्बर, 1956 को इस संसार से चला गया । सन् 1990 में देश के प्रत्येक कोने में उनकी जन्म शताब्दी पर अनेक समारोह किए गए तथा उन्हें मरणोपरांत ‘भारत-रत्न’ से विभूषित किया गया ।

युग को परिवर्तित कर देने वाले ऐसे महापुरुष यदा-कदा ही जन्म लेते हैं जो मरकर भी लोगों के हृदयों में जीवित रहते हैं । हम सब भारतीयों का यह कर्त्तव्य है कि हम डी. भीमराव अम्बेडकर के बताए पथ पर चले तथा छुआछूत, जाति-प्रथा आदि के भेदभाव को भूलकर मैत्रीभाव अपनाएँ ।

Hindi Nibandh (Essay) # 16

कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर पर निबन्ध | Essay on Great Poet Rabindranath Tagore in Hindi

कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर भारत माता की गोद में जन्म लेने वाले उन महान व्यक्तियों में गिने जाते हैं, जिन्हें अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए विश्व का सर्वाधिक चर्चित ‘नोबेल पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था ।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म भारत में अवश्य हुआ था, परन्तु उन्होंने स्वयं को किसी एक देश की सीमा में नहीं बँधने दिया । वे तो विश्वैव सुश्वकर के सिद्धान्त के अनुयायी थे । वे प्रत्येक जीक में उसी परमात्मा के अंश को विद्यमान देखते थे, जो उनमें है ।

उनके लिए न कोई मित्र था, न शत्रु, न कोई अपना था, न पराया । वे तो अच्छाई से प्यार करते थे और सभी को समान दृष्टि से देखते थे । तभी तो लोग उन्हें श्रद्धावश ‘गुरुदेव’ कहकर पुकारते थे । जन्मन्दरिचय एवं शिक्षा-इस महान आत्मा का प्रादुर्भाव 7 मई, 1861 को कलकत्ता में देवेन्द्रनाथ ठाकुर के यहाँ हुआ था ।

इनके पिताश्री बेहद धार्मिक एवं समाजसेवी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे । इनके दादा जी द्वारिकानाथ राजा के उपाधिकारी थे । जब आप मात्र 14 वर्ष के थे, तभी आपकी माता जी का निधन हो गया था । रवीन्द्रनाथ बँधी-बँधाई शिक्षा पद्धति के विरुद्धे थे ।

यही कारण था कि जब बाल्यावस्था में उन्हें स्कूल भेजा गया तो हर बार श्व में मन न लगने के कारण स्कूल छोड़कर आ गए । घरवाले यह सोचकर निराश रहने लगे कि शायद यह बालक अनपढ़ ही रह जाएगा । परन्तु नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था कि जो बालक स्कूली शिक्षा में मन न लगा सका, वह उच्चकोटि का अध्ययनशील हो ।

वे ज्ञानप्राप्ति के लिए खूब स्वाध्याय करते थे । उन्हें अखाड़े में पहलवानी करना तथा बंग्ला, संस्कृत, इतिहास, भूगोल, विज्ञान की पुस्तकों का स्वयं अध्ययन करना तथा संगीत एवं चित्रकला में विशेष रुचि थी । उन्होंने अंग्रेजी का विशेष अध्ययन किया । स्वाध्याय के लिए वे 11 बार विदेश गए ।

पहली बार 17 वर्ष की आयु में इंग्लैण्ड गए तथा वहाँ रहकर उन्होंने कुछ समय तक यूनीवर्सिटी कॉलेज लन्दन में ‘हेनरी मार्ले’ से अंग्रेजी साहित्य का ज्ञान अर्जित किया । उन्होंने अपने अनुभव के सम्बन्ध में जो पत्र लिखे, उन्हें उन्होंने यूरोप प्रवासेर पत्र के नाम से प्रकाशित किया ।

एक बार वे अपने पिता के साथ हिमालय की यात्रा पर भी गए जहाँ उन्होंने अपने पिता जी से संस्कृत, ज्योतिष, अंग्रेजी तथा गणित का ज्ञान प्राप्त किया । संगीत की शिक्षा उन्होंने अपने भाई ज्योतिन्द्रनाथ’ से प्राप्त की थी ।

वैवाहिक जीवन-सन् 1883 ई. में जब रवीन्द्रनाथ जी 22 वर्ष के थे, तो उनका विवाह एक शिक्षित महिला मृणालिनी के साथ हुआ । मृणालिनी सदैव उनके कार्यों में सहयोग देती थी । उनके पाँच बच्चे-हुए, परन्तु दुर्भागयवश 1902 में उनकी पत्नी का देहान्त हो गया ।

1903 और 1907 के मध्य उनकी बेटी शम्मी तथा पिता भी उन्हें छोड्‌कर चल बसे । इस दुख ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर को अन्दर तक झकझोर दिया । उनका सबसे छोटा स्मैं समीन्द्रनाथ की भी अल्पायु में मृत्यु हो गई थी । सन् 1910 में अमेरिका से लौटने पर वे स्वयं को एकदम अकेला महसूस कर रहे थे, तभी उन्होंने प्रतिमा देवी नामक एक प्रौढ़ महिला से विवाह कर लिया ।

पूरे परिवार में पहली बार किसी ने सामाजिक परम्पराओं को तोड़कर एक विधवा नारी से विवाह करने का साहस्र किया था । तभी से रवीन्द्रनाथ सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के कार्यों में जुट गए ।

महत्त्वपूर्ण रचनाएँ:

ठाकुर साहब का साहित्य सृजन तो बाल्यकाल से ही आरम्भ हो गया था । उनकी सर्वप्रथम कविता सन् 1874 में तत्त्वभूमि पत्रिका में प्रकाशित हुई थी । वे नाटकों में अभिनय भी किया करते थे । उनकी प्रमुख रचनाएँ ये हैं:

1 . कहानी संग्रह:

‘गल्प समूह’ (सात भागों मे), ‘गल्प गुच्छ’ (तीन भागों में) । इसके अतिरिक्त काबुलीवाला, दृष्टिदान, पोस्ट मास्टर, अन्धेरी कहाँ, छात्र परीक्षा, अनोखी चाह, डाक्टरी, पत्नी का पत्र आदि भी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ हैं ।

2. नाटक साहित्य:

‘चित्रांगदा, वाल्मीकि प्रतिभा, विसर्जन मायेरखेला, श्यामा, पूजा, रक्तखी, अचलायतन, फाल्गुनी, राजाओं रानी, शारदोत्सव, राजा आदि कुछ प्रसिद्ध नाटक हैं ।

3. काव्य संग्रह:

कडिओ कोमल प्रभात संगीत, संध्या संगीत, मानसी, चित्रा नैवेध, बनफूल कविकाहिनी, छवि ओगान, गीतांजलि इत्यादि ।

4. उपन्यास साहित्य:

नौका डूबी, करुणा (चार अध्याय), गोरा, चोखेर वाली (आँख की किरकिरी) ।

‘ सर’ की उपाधि से उलंकृत :

रवीन्द्रनाथ टैगोर की साहित्यिक प्रतिभा से कोई भी अनजान नहीं । उनकी इसी प्रतिभा को ध्यान में रखकर ‘बंगीय साहित्य परिषद’ ने उनका अभिनन्दन किया था । इसी बीच टैगोर ने अपनी प्रमुख कृति गतिघ्रलि का भी अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया ताकि यह महान रचना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पा सके ।

‘गीतांजलि’ के अंग्रेजी में अनुवाद होने पर अंग्रेजी साहित्य मण्डल में एक सनसनी फैल गई । स्वीडिश अकादमी ने सर 1913 में ‘गीतांजली’ को ‘नोबल पुरस्कार’ के लिए चयनित किया । रवीन्द्रनाथ टैगोर की ख्याति ब्रिटिश सम्राट पंचम जार्ज तक पहुँच चुकी थी इसीलिए सम्राट ने टैगोर साहब को सर की उपाधि से सम्मानित किया ।

इसके कुछ समय पश्चात् अंग्रेजों की कूरता का प्रमाण जलियाबाला बाग हत्याकांड के रूप में सामने आया । रवीन्द्रनाथ जैसा संवेदनशील तथा साहित्यिक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति भला इस दुखद घटना से अछूता कैसे रह पाता इसलिए बहुत दुखी मन से रवीन्द्रनाथ ने अंग्रेजों की दी हुई ‘सर’ की उपाधि उन्हें वापिस कर दी ।

दुर्भाग्यवश 7 अगस्त 1941 को यह साहित्यिक आत्मा हमें सदा के लिए छोड़कर चली गई । हर भारतीय को बहुत क्षति हुई । निःसन्देह रवीन्द्रनाथ टैगोर अपने समय के साहित्य के जनक थे । वे सदैव भारतवासियों को अपनी उच्चकोटि की रचनाओं द्वारा प्रेरित करते रहेंगे ।

Hindi Nibandh (Essay) # 17

स्वामी विवेकानन्द पर निबन्ध | Essay on Swami Vivekananda in Hindi

भारतभूमि योगियों, ऋषियों, मुनियों तथा त्यागियों की भूमि है, तभी तो हमारे देश की धरती का गौरव सर्वत्र हैं । महापुरुषों का उदय अपने देश को ही गौरान्वित नहीं करता, अपितु पूरे विश्व को अपने प्रकाश से प्रकाशवान कर देता है । देश को प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचाने वाले महापुरुषों में स्वामी विवेकानन्द का नाम बड़े आदर से लिया जाता है ।

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 फरवरी सन् 1863 ई. को कलकत्ता में हुआ था । आपके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था । आपके पिता श्री विश्वनाथ दत्त, पाश्चात्य सभ्यता तथा संस्कृति के पुजारी थे । आपकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवी संस्कारवान महिला थी, जिनका प्रभाव किशोर नरेन्द्रनाथ दत्त पर पड़ा था ।

स्वामी विवेकानन्द बचपन से ही प्रतिभाशाली तथा विबेकी थे । आपको पाँच वर्ष की आयु में अध्ययनार्थ मेट्रोपोलिटन इप्सीट्‌यूट विद्यालय भेजा गया, लेकिन पढ़ाई में अधिक रुचि न होने के कारण बालक नरेन्द्रनाथ का अधिकतर समय खेलने-कूदने में ही बीतता था ।

सन् 1879 में आपने ‘जनरल असेम्बली कॉलेज’ में प्रवेश लिया । व्यक्तित्व की विशेषताएँ-स्वामी जी पर अपने पिता के पश्चिमी संस्काद्यें का प्रभाव न पड़कर अपनी माता के धार्मिक आचार-विचारों का प्रभाव पड़ा था । यही कारण था कि स्वामी जी अपने आरम्भिक जीवन से ही धार्मिक प्रवृत्ति में ढलते गए तथा धर्म के प्रति आश्वस्त होते रहे । उनका जिज्ञासु मन सदैव ही ईश्वरीय ज्ञान की खोज में लगा रहता था ।

जब उनकी जिज्ञासा का प्रवाह अति तीव्र हो गया, तो वे अपने अशांत मन की शान्ति के लिए तत्कालीन सन्त रामकृष्ण परमहंस की छत्रछाया में चले गये । परमहंस जी पहली दृष्टि में ही विवेकानन्द की योग्यता और कार्यक्षमता को पहचान गए तथा उनसे बोले , ”तू कोई साधारण मानव नहीं है । ईश्वर ने तुझे समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए ही इस धरती पर भेजा है । ”

नरेन्द्रनाथ भी स्वामी परमहंस जी के उत्साहवर्द्धक भाषण से बहुत प्रभावित हुए तथा उनकी आज्ञा का पालन करना अपना परम कर्त्तव्य समझने लगे ।

पिताजी की मृत्यु के पश्चात् विवेकानन्द घर:

गृहस्थी को छोड़कर संन्यास लेना चाहते थे, किन्तु स्वामी परमहंस ने उन्हें समझाते हुए कहा, ”नरेन्द्र तू भी स्वार्थी मनुष्यों की भांति केवल अपनी मुक्ति की कामना करते हुए संन्यास चाहता है । संसार तो दुखी इन्सानों से भरा पड़ा है ।

उनका दुख दूर करने यदि तेरे जैसा व्यक्ति नहीं जाएगा, तो और कौन जाएगा । इसलिए निराशा से बाहर निकलकर मानव-जाति के कल्याण के बारे में सोचना तेरा कर्त्तव्य है ।” इन उपदेशों का नरेन्द्र के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा उन्होंने मानव-जाति को यह उपदेश दिया- ”संन्यास का वास्तविक अर्थ मुक्त होकर लोक सेवा करना है । अपने ही मोक्ष की चिन्ता करने वाला संन्यासी स्वार्थी होता हे । साधारण संन्यासियों की भांति एकान्त में केवल चिन्तन करते रहना जीवन नष्ट करना है । ईस्वर के साक्षात दर्शन तो मानव सेवा द्वारा ही हो सकते हैं । ”

नरेन्द्रनाथ ने स्वामी परमहंस जी की मृत्यु के उपरान्त शास्त्रों का विधिवत् गहन अध्ययन किया तथा ज्ञानोपदेश तथा ज्ञान प्रचारार्थ अमेरिका, ब्रिटेन आदि अनेक देशों का भ्रमण भी किया । सन् 1881 में नरेन्द्रनाथ संन्यास ग्रहण करके स्वामी विवेकानन्द बन गए ।

31 मई सन् 1883 में अमेरिका के शिकागो शहर में हुए सर्वधर्म सम्मेलन में आपने भी भाग लिया तथा अपनी अद्‌भुत विवेक क्षमता से सबको चकित कर दिया । 11 सितम्बर सन् 1883 को आरम्भ हुए इस सम्मेलन में जब आपने सभी धर्माचार्यो को भाइयों तथा बहनों कह कर सम्बोधित किया तो वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से आपका जोरदार स्वागत किया ।

वहाँ पर स्वामी जी ने कहा- “पूरे विश्व का एक ही धर्म है-मानव धर्म । इसके प्रतिनिधि विश्व में समय-समय पर परमहंस, रहीम, राम, क्राइस्ट आदि नामों से जाने जाते रहे हैं । जब ये ईश्वरीय ह मानव धर्म के संदेशवाहक बनकर धरती पर अवतरित है ? तो आज पूरा संसार अलग-अलग धर्मो में विभक्त कयों है ? धर्म का उद्‌गम तो प्राणी मात्र की शान्ति के लिए हुआ है, परशु आज चारों ओर अशान्ति के बादल मँडरा रहे हैं । अत: आज विश्व शान्ति के लिए सभी को मिलकर मानव-धर्म स्थापना कर उसे सुदृढ़ करने का प्रयत्न करना चाहिए ।”

स्वामी जी के इन व्याख्यानों से पूरा पश्चिमी विश्व अचम्भित भी हुआ तथा प्रभावित भी हुआ । इसके पश्चात् अमेरिकी धर्म संस्थानों ने स्वामी जी को कई बार अपने यहाँ आमन्त्रित किया । परिणामस्वरूप वहाँ अनेक स्थानों पर वेदान्त प्रचारार्थ संस्थान भी खुलते गए ।

आज इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि अनेक शहरों में वेदान्त प्रचारार्थ संस्थान निर्मित हैं । स्वामी विवेकानन्द ने अनेक आध्यात्मिक तथा धार्मिक ग्रन्धों की रचना की है, जो आठ भागों में संकलित है । जीवन के अन्तिम क्षणों में आप ‘बेलूर मठ’ में रहने लगे थे । आपका देहावसान 5 जुलाई, 1908 को रात 9 बजे हुआ था ।

आज भी स्वामी जी के दिए उपदेश हर किसी को याद हैं- ”भारत का जीवन उनकी आध्यात्मिकता में अन्तर्निहित है । बाकी समस्त प्रश्न इसी के साथ जुड़े हैं । भारत की मुक्ति सेवा तथा त्याग द्वारा ही सम्भव है । दरीदों की उपेक्षा करना राष्ट्रीय पाप है तथा यही पतन का कारण है । ईश्वर तो इन दलितों में ही बसता है इसलिए ईश्वर के बदले इन्हीं की सेवा करना हमास राष्ट्रीय धर्म है ।”

स्वामी विवेकानन्द इस देश की वह ज्योति है जो अनन्तकाल तक भारतीयों को प्रकाशवान करती रहेगी । स्वामी जी कहे ये शब्द- ‘उठो, जागो और अपने लस्थ प्राप्ति से पहले मत रुको ‘, आज भी अकर्मण्य मानव को पुरुषार्थी बनाने में सक्षम है ।

Hindi Nibandh (Essay) # 18

गुरू नानक देव पर निबन्ध | Essay on Guru Nanak Dev in Hindi

संसार भर में समय-समय पर अनेक साहसी, वीर तथा मानवता की उखड़ती हुई जड़ों को पुर्नस्थापित करने वाले महापुरुषों ने जन्म लिया है । ऐसे विरले महापुरुषों में गुरु नानक देव का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । गुरु नानक जी का मत था कि न मैं हिन्दू हूँ और न ही मुसलमान । मैं तो पाँच तत्त्वों के मेल से बना मनुष्य मात्र हूँ और मेरा नाम नानक है ।

जन्म तथा वंश परिचय:

चमत्कारी महापुरुषों एवं महान् धर्म प्रवर्त्तकों में अपना प्रमुख स्थान रखने वाले सिख धर्म के प्रवर्त्तक गुरुनानक देव का जन्म कार्तिक पूर्णिया संवत् 1526 को लाहौर जिले के ‘तलवंडी’ नामक ग्राम में हुआ था, जो आजकल ‘ननकाना साहब’ के नाम से जाना जाता है ।

यह स्थान पाकिस्तान में लाहौर से लगभग ख मील दूर स्थित है । आपके पिता श्री कालूचन्द वेदी तलबंदी के पटवारी थे । आपकी माता श्रीमती तृप्ता एक बेहद साध्वी, दयातु, शान्त तथा कर्त्तव्यपराण प्रकृति की महिला थी । माता-पिता ने उन्हें शिक्षा-दीक्षा के लिए गोपाल पण्डित की पाठशाला में भेजा ।

बचपन से ही आप अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि बालक थे । आप एकान्त प्रिय तथा मननशील बालक थे । यही कारण था कि आपका मन शिक्षा या खेलकूद से कही अधिक आध्यात्मिक विषयों की ओर लगता था । तभी तो वे पण्डित गोपाल जी से मिलने पर पूछ बैठे, ”आप मुझे क्या पढ़ायेगें?” पण्डित जी ने कहा, ”गणित या हिन्दी” । इस पर गुरुनानक ने कहा, ”गुरु जी, मुझे तो करतार का नाम पढ़ाइने , इनमें मेरी रुख नहीं है ।” इस प्रकार ये बड़े ही तेजस्वी तथा असांसारिक व्यक्ति के रूप में सामने आए लेकिन उनकी इस वैराग्य भावना से उनके माता-पिता चिन्तित रहते थे ।

सच्चा सौदा-एक बार उनके पिता जी ने धन लेकर कार्य व्यापार करने के लिए उन्हें शहर भेजा, परन्तु गुरु नानक ने वह सारा धन साधुओं की एक टोली के भोजन-पानी पर खर्च कर दिया और पिताजी के पूछने पर घर आकर कह दिया कि वह ‘सच्चा सौदा’ कर आए हैं । उनके पिता ने इस बात पर बहुत क्रोध किया परन्तु गुरुनानक की दृष्टि में तो दूसरों की सेवा ही सच्चा व्यापार था ।

इसके पश्चात् उनके पिता ने उन्हें बहन नानक के पास नौकरी करने भेज दिया । वहीं पर उनके जीजा ने नानक को नवाव दौलत खाँ के गोदाम में नौकरी दिलवा दी । वहाँ पर भी नानक ने गोदाम में रखा सारा अनाज दीन-दुखियों तथा साधुओं में वितरित करवा दिया ।

गृहस्थ जीवन एवं धर्म-प्रचार:

जब नानक के माता-पिता उनकी आदतों से परेशान रहने लगे तो उन्होंने नानक को घर गृहस्थी के जाल में बाँधने के लिए उनका विवाह करवा दिया । उनके दो पुत्र श्री चन्द्र तथा लक्ष्मी चन्द्र हुए परन्तु पली तथा पुत्रों का मोह भी उन्हें अपने जाल में नहीं फँसा पाया ।

एक दिन आप घर छोड़कर जंगल की ओर चले गए तथा लापता हो गए । वहाँ पर लौटने पर लोगों ने देखा कि नानक के मुँह के चारों ओर प्रकाश चमक रहा है । ऐसा मत है की इसी दिन गुरुनानक का ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था । आगे जाकर उन्होंने ‘बाला’ व ‘मरदाना’ नामक शिष्यों के साथ सारे भारत का भ्रमण किया ।

जगह-जगह पर साधु सन्तों से ज्ञान की बातें की तथा जन साधारण को अमृतवाणी का सन्देश दिया । भ्रमण करते समय आपने जगह-जगह धर्मशालाएं बनवाई । आज भी प्रयाग, बनारस, रामेश्वरम् आदि में निर्मित धर्मशालाएँ इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं । गुरुनानक देव के अमृत उपदेश ‘गुरु ग्रन्य साहब’ में संकलित हैं ।

उपदेश एवं यात्राएँ:

सर्वप्रथम गुरुनानक ने पंजाब का भ्रमण किया । वे उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम चारों दिशाओं में घूमते रहे । वे इन यात्राओं के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे तथा लोगों को सुधारना भी चाहते थे । एक बार वे हरिद्वार की यात्रा पर गए जहाँ के अन्धविश्वासों का उन्होंने बलपूर्वक खण्डन किया ।

उत्तर भारत के सभी नगरों का भ्रमण कर वे रामेश्वरम् तथा सिंहल द्वीप तक पहुँचे, जिसे आज लंका कहते हैं । दक्षिण भारत से लौटकर आपने हिमालय प्रदेश का भी भ्रमण किया । टेहरी, गढ़वाल, हेमकूट, सिक्किम, भूटान तथा तिब्बत तक की यात्राएं भी आपने धर्म प्रचार के लिए की । यात्राएँ करते-करते एक बार वे मुसलमानों के तीर्थ स्थान ‘मक्का-मदीना’ तक पहुंच गए । इस बीच उनकी ख्याति सब ओर फैलने लगी तथा उनके शिष्यों की संख्या भी बढ़ने लगी ।

जीवन भर भ्रमण करते हुए तथा विभिन्न धर्मावलम्बियों के संसर्ग में रहते हुए आपने यह जान लिया था कि बाहर से चाहें सभी धर्मों का स्वरूप भिन्न-भिन्न हो, अलग-अलग नामों वाले देवी-देवता हो, परन्तु सभी धर्मों का सार एक ही है । सभी धर्म सेवा, त्याग, सच्चरित्रता तथा ईश्वर की अपार भक्ति की शिक्षा देते हैं ।

कोई भी धर्म हमें मिथ्याचार, आडम्बर या संकीर्णता नहीं सिखाता । ये तो मानव मात्र की पैदा की गई कुरीतियाँ हैं, जिन्हें हम अपने-अपने धर्म के साथ जोड़कर दूसरे धर्म के लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं । गुरुनानक का कहना था कि पाखण्ड को छोड़कर, आडम्बर से दूर भाग कर तथा भगवान से सच्ची लगन लगाकर ही शान्ति प्राप्त हो सकती है ।

भारतवासी उन्हें ‘हिन्द का पीर’ कहते थे । भ्रमण करते हुए जब नानक बगदाद से अपने देश पहुँचे तो उन्होंने पंजाब में ‘करतारपुर’ गाँव बसाया । सन् 1538 ई. में 70 वर्ष की आयु में गुरुनानक देव की मृत्यु हो गई । यूँ तो गुरु नानक देव की शिक्षा विविध प्रकार की है, फिर भी उनकी मुख्य शिक्षा यह थी हमें प्रत्येक परिस्थिति में ईश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए ।

अहंकार को पालने से ही सांसारिकता पैदा होती है तथा मानव मोह-माया के जाल में फँसता है । परिश्रम करके रोटी कमाना तथा दूसरों की सच्ची निस्वार्थ सेवा करना ही असली तप है ।

Hindi Nibandh (Essay) # 19

महावीर स्वामी पर निबन्ध | Essay on Mahavir Swami in Hindi

धर्म प्रधान वसुधा भारत पर अनेकानेक धर्म-प्रवर्तकों तथा महापुरुषों ने जन्म लिया है । योगी राज श्रीकृष्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, धर्मपरायण युधिष्ठिर, महात्मा गौतम बुद्ध, गुरु नानक देव आदि ने भारत माता को ही सुशोभित किया है ।

ऐसे ही महान अवतारों में क्षमामूर्ति, अहिंसा के पुजारी भगवान महावीर स्वामी का नाम सर्वोपरि हैं । जन्म-परिचय तथा बंश-जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व बिहार राज्य के वैशाली नगर के कुण्ड ग्राम में लिच्छवी वंश में हुआ था ।

आपकी माता का नाम त्रिशलादेवी तथा पिता का नाम श्री सिद्धार्थ था । महावीर स्वामी का जन्म उस समय हुआ था जब यज्ञों का महत्त्व बढ़ने के कारण केवल ब्राह्मणों की ही समाज में प्रतिष्ठा होती थी । पशुओं की बलि देने से यज्ञ विधान महँगे हो रहे थे इससे हर तरफ ब्राह्मणों का ही वर्चस्व बढ़ रहा था तथा वे अन्य जातियों को हीन तथा मलिन समझने लगे थे ।

इसी समय वृक्षोंने कृपा से महावीर स्वामी धर्म के सच्चे स्वरूप को समझाने के लिए तथा परस्पर भेदभाव की खाई को भरने के लिए सत्यस्वरूप में इस पावन धरती पर अवतरित हुए थे । शैशवकाल में आपका नाम वर्धमान रखा गया । युवावस्था में एक भयंकर नाग तथा एक मस्त हाथी को वश में कर लेने के कारण सभी आपको ‘महावीर’ कहने लगे ।

युवावस्था में आपका विवाह यशोधरा नामक एक सुन्दर व सुशील कन्या से हुआ । फिर भी आप अपनी पली के प्रेमाकर्षण में नहीं बँध सके, अपितु आपका मन सांसारिक सुख-सुविधाओं से और अधिक दूर होता चला गया । आपका मन संसार से और भी अधिक तब उचट गया, जब आपके पिताजी का निधन हो गया ।

मायावी संसार को त्यागने के विचार आपने अपने ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन के समक्ष रखे । सभी प्रकार का सुख-वैभव होने पर भी आपका मन संसार में नहीं लग रहा था । आप घंटों एकान्त में बैठकर सांसारिक पदार्थों की नश्वरता के विषय में सोचते रहते थे ।

आप तो संसार से संन्यास लेने ही बाले थे, परन्तु अपने बड़े भाई के आग्रह पर दो वर्ष ग्रहस्थ जीवन के और काट दिए । इन दो वर्षों के अन्दर आपने दिल खोलकर दान-पुण्य किया तथा अपने द्वार से किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटने दिया ।

वैराग्य एवं साधना:

30 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी सभी राज-पाट, सुख-वैभव तथा पली तथा सन्तान का मोह छोड़कर घर से निकल पड़े तथा वनों में जाकर तपस्या करने लगे । अपने इस पथ के लिए आपने गुरुवर पार्श्वनाथ का अनुयायी बनकर लगभग बारह वर्षों तक अनवरत कठोर तप-साधना की थी ।

इस विकट तपस्या के फलस्वरूप आपको सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ । अब आप जंगलों की साधना को छोड़कर शहर में अपने साधनारत कर्मों का विस्तार करने लगे । लगभग 40 वर्ष तक आपने बिहार प्रान्त के उत्तर तथा दक्षिण भागों में अपने मत का प्रचार-प्रसार किया । आपका सबसे पहला प्रवचन राजगृह नगरी के समीप विपुलांचल पर्वत पर हुआ था ।

धीरे-धीरे आपके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई तथा दूर-दूर से लोग आपके प्रवचन सुनने आने लगे । आपने लोगों को अच्छा आचरण खान-पान में पवित्रता तथा प्राणीमात्र पर दया करने की शिक्षा दी । आपने अपने प्रवचनों में सत्य, अहिंसा तथा प्रेम पर विशेष बल दिया ।

जैन धर्म के सिद्धान्त:

महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर के रूप में आज भी सश्रद्धा तथा ससम्मान पूज्य एवं आराध्य हैं । जैन धर्म को मानने वाले ‘जैनी’ कहलाते हैं । जैन धर्म की दो शाखाएँ हैं-दिगम्बर तथा श्वेताम्बर । जो लोग निर्वस्त्र रहने लगे तथा जिन्होंने सब कुछ त्याग दिया, वे ‘दिगम्बर जैन’ कहलाए तथा जिन्होंने वस्त्र नहीं त्यागे वे ‘श्वेताम्बर जैन’ कहलाने लगे । जैन धर्म का मुख्य सार इन पाँच सिद्धान्तों में निहित हैं- सत्य , अहिंसा चोरी न करना, आवश्यता से अधिक कुछ भी संग्हित न करना तथा शुद्धाचरण ।

आज जैन धर्म के मानने वालों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही हैं । आज हर जगह जैन धर्म के मन्दिर, धर्मशालाएं, पुस्तकालय, औषधालय विद्यालय आदि निशुल्क मानव सेवा कर रहे हैं ।

महाबीर स्वामी की शिक्षाएँ:

महावीर स्वामी ने लोगों से सत्य, अहिंसा तथा प्रेम से रहने को कहा । इसके अतिरिक्त सम्यकज्ञान, समयकदमन तथा सम्यक चरित्र ये तीनों मुक्ति के मार्ग बताए हैं । इन मार्गो पर चलकर ही मानव सांसारिक बन्धनों से मुक्ति पा सकता है ।

कभी भी अपनी आवशकता से अधिक धन संचय मत करो । ऐसा करना पाप है क्योंकि एक के पास अधिक धन दूसरे को निर्धन बनाता है । इस प्रकार समाज में असन्तुलन बढ़ता है । महावीर स्वामी ने जाति प्रथा को भी समाप्त करने पर बल दिया ।

उनका मत था कि ऊँची जाति में जन्म लेकर ही कोई व्यक्ति महान नहीं बन जाता, वरन् कर्म करने से ही मनुष्य समाज में उच्च स्थान तथा सम्मान पाता है । सबसे महत्त्वपूर्ण बात जिओ और जीने दो, अर्थात् इस दुनिया में सभी को जीवित रहने का अधिकार है । इसलिए मानव को एक छोटे से पतंगे का भी वध नहीं करना चाहिए ।

ईश्वर ही जन्मदाता तथा गुत्युदाता है, इसलिए इन्सान को किसी को भी मारने का अधिकार नहीं है । जो व्यवहार तुम अपने लिए चाहते हो, वैसा ही व्यवहार तुम्हें दूसरों के साथ भी करना चाहिए । यही जीवन का सार है तथा यही मोक्ष का रास्ता है ।

निर्वाण प्राप्ति:

कार्तिक मास की अमावस्या को बिहार प्रान्त के पावापुरी में भगवान महावीर स्वामी ने 72 वर्ष की आयु में अपने नाशवान शरीर को छोड्‌कर निर्वाण प्राप्त कर लिया तथा जन्म, जरा, आधि तथा व्याधि के बन्धनों से मुक्त होकर अमर हो गए ।

क्षमा, त्याग, प्रेम, दया, करुणा की मूर्ति भगवान महावीर की अभूतपूर्व शिक्षाएँ आज भी मानव-जाति का पथ-प्रदर्शन कर रही हैं । सच्चे अर्थों में मानव तथा फिर भगवान स्वरूप में आकर महावीर भगवान ने पूरी जन-जाति का उद्धार किया है ।

Hindi Nibandh (Essay) # 20

नोबेल पुरस्कार विजेता: अमतर्य सेन पर निबन्ध |Essay on Amartya Sen : The Nobel Laureate in Hindi

दुनिया भर में योग्यताओंको प्रोत्साहितकरनेकेलिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग पुरस्कार दिए जाते हैं । ‘नोबेल पुरस्कार’ विश्व का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है । यह विश्व की सर्वोत्तम रचना अथवा सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को दिया जाता है ।

यह पुरस्कार हर वर्ष दिया जाता है । इस दृष्टि से हमारा देश बहुत महत्त्वपूर्ण है । हमारे देश की महान विभूतियोंनुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, हरगोबिन्द खुराना, सीबीरमन, सुबस्रणयम् चन्द्रशेखर, मदर टेरेसा आदि को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है ।

वर्ष 1998 का नोबेल पुरस्कार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में प्रो. अमर्त्य सेन को प्रदान किया गया है । सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रो.अमर्त्य सेन प्रथम भारतीय ही नहीं, अपितु पूरे एशिया के प्रथम व्यक्ति हैं ।

जीबन परिचय एवं शिक्षा:

प्रो. अमर्त्य सेन का जन्म 3 नवम्बर, 1933 को शान्ति निकेतन (पश्चिमी बंगाल) में हुआ था । ‘शान्ति निकेतन’ नामक संस्था की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी । अमर्त्य सेन ने स्नातक की परीक्षा कोलकत्ता के ‘प्रेसिडेन्सी कॉलेज’ से सन् 1953 ई. में पास की थी ।

इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए आप यूरोप चले गए । वहाँ ‘कैम्ब्रिज विश्बबिद्यालय’ से उच्च शिक्षा प्राप्त की । वहाँ से लौटकर सन् 1956-58 ई. में जटिवपुर विश्वविद्यालय में अध्ययन शुरू कर दिया । यहीं पर आपको डी-लिट की उपाधि से विभूषित किया गया ।

कुछ समय के पश्चात् आपने सन् 1963-1968 तक दिल्ली स्कूल ऑफ इकनोमिक्स विभाग में अध्यापन कार्य किया । इसके पश्चात् ऑक्सफोर्ड , हारवर्ड तथा कैम्ब्रिज आदि विश्वविद्यालयों में कई उच्च पदों पर आसीन रहे ।

प्रो. अमर्त्य सेन बहुत बड़े लेखक हैं । उन्होंने लगभग डेढ़ दर्जन पुस्तकें लिखी हैं । उन्होंने 200 से भी अधिक अध्ययन-पत्र लिखे हैं । प्रो. अमर्त्य सेन के कार्य अत्यंत महान एवं सराहनीय हैं । उन्हें स्टॉकहोम के एक समारोह में 10 दिसम्बर, 1998 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

इसके लिए उन्हें एक पदक तथा 76 लाख स्वीडिश क्रोनर (लगभग 4 करोड़) रुपए प्रदान किए गए । यह पुरस्कार उनके द्वारा कल्याणकारी अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अनूठे योगदान के लिए दिया गया है । वास्तव में प्रो. सेन ने सामाजिक सिद्धान्त के चयन कल्याण तथा गरीबी की परिभाषा तथा अकाल के अध्ययन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है ।

प्रो. अमर्त्य सेन को जब यह नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया तब उनसे किसी पत्रकार ने पूछा:

”नोबेल पुरस्कार प्राप्त करके आप कैसा महसूस कर रहे हैं । निःसन्देह यह आपके लिए अति हर्ष का क्षण है ।”

इसके जवाब में प्रो. सेन ने कहा, ”मैं वास्तव में बेहद खुश हूँ, क्योंकि जिस विषय पर मैं और बिश्व के अनेक अर्थशास्त्री कार्य कर रहे थे तथा अभी भी कर रहे है उस बिषय को आज मान्यता मिली है । यह बिषय केवल उन लोगों के लिए ही प्रासंगिक नहीं , जो सुखी तथा सम्पन्न जीवन जीना चाहते हैं, बल्कि उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिन्हें न तो भर पेट भोजन उपलब्ध है और न खई तन ढकने का कपड़ा तथा जीबन की न्यूनतम सुविधाएँ जैसे पीने का खन्स पानी , सिर के ऊपर छत व चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाएं भी उपलब्ध नही हैं ।”

प्रो. अमर्त्य सेन की उपलब्धियाँ:

वे सही अर्थों में गरीबों के मसीहा है । उन्होंने निर्धनता को दूर करने तथा निर्धनता के कारणों जैसे अकाल के बारे में बहुत गहन अध्ययन किया है । उन्होंने उन सिद्धान्तों का खंडन किया है जो अन्न की कमी को ही ‘अकाल’ का कारण बताते हैं ।

इसके विरोध में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है, ”अकाल ऐसे समय में हुए, जब अन्न की आपूर्ति पिछले अकाल रहित वर्षो से ज्यादा कम नहीं थी । यह सब प्रशासनिक व्यवस्था की असफलता के कारण ही हुआ था । उन्होंने आगे इसे इस प्रकार स्पष्ट है कि सन् 1944 ई. के बंगाल अकाल में 30 लाख से अधिक लोग अन्न के अभाव में नहीं मरे थे , अपितु सरकारी तन्त्र की अयोग्यता के कारण काल का ग्रास बने थे । ”

वास्तव में प्रो. अमर्त्य सेन हमारे देश की महान विभूति हैं । उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किए जाने पर हम सभी भारतीयों का सिर गर्व से ऊँचा हो गया है ।

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essay about market in hindi 10 points

D2C मीट डिलीवरी स्टार्टअप Zappfresh ने BSE SME पर लिस्ट होने के लिए सेबी के पास ड्राफ्ट पेपर किए फाइल

आईपीओ में 10 रुपये फेस वैल्यू वाले 59.06 लाख इक्विटी शेयरों का फ्रेश इश्यू शामिल होगा और इसमें बिक्री के लिए प्रस्ताव (ओएफएस) घटक शामिल नहीं होगा..

D2C मीट डिलीवरी स्टार्टअप Zappfresh ने BSE SME पर लिस्ट होने के लिए सेबी के पास ड्राफ्ट पेपर किए फाइल

ऑनलाइन मीट बेचने वाली जैपफ्रेश (Zappfresh) ने अपना आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) शुरू करने के लिए पूंजी बाजार नियामक SEBI के पास प्रारंभिक दस्तावेज दाखिल किए हैं. 28 अगस्त, बुधवार को एक बयान में जैपफ्रेश ने कहा कि उसने BSE SME प्लेटफॉर्म पर लिस्ट होने के लिए SEBI के पास ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) दाखिल किया है. आईपीओ में 10 रुपये फेस वैल्यू वाले 59.06 लाख इक्विटी शेयरों का फ्रेश इश्यू शामिल होगा और इसमें बिक्री के लिए प्रस्ताव (ओएफएस) घटक शामिल नहीं होगा. बयान के अनुसार इस आय को रणनीति बना कर विकास के लिए अलॉट किया जाएगा, जिसमें अनआइडेंटिफाइड अधिग्रहण, मार्केटिंग एंड कैपिटल एक्सपेंडिचर एनहांसमेंट, वर्किंग कैपिटल ऑप्टिमाइजेशन और सामान्य कॉर्पोरेट उद्देश्य शामिल हैं. जैपफ्रेश ने कहा कि यह इस लिस्टिंग यात्रा पर निकलने वाला पहला डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (डी2सी) फूड स्टार्टअप है. जैपफ्रेश के संस्थापक दीपांशु मनचंदा ने कहा, "हमें बीएसई एसएमई प्लेटफॉर्म पर लिस्टिंग की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम उठाने पर गर्व है, जो पारदर्शिता, जवाबदेही और विकास के प्रति हमारे अटूट समर्पण को प्रमाणित करता है." जैपफ्रेश को कई निवेशकों का समर्थन प्राप्त है, जिनमें सिडबी (19 प्रतिशत), अमित बर्मन फैमिली ऑफिस (10 प्रतिशत), हिंदुस्तान टाइम्स, यूनिटी बैंक, लेट्स वेंचर, आह! वेंचर्स, केरित्सु फोरम और हीफर इम्पैक्ट आदि शामिल हैं. कंपनी में प्रमोटरों की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है. कंपनी ने हाल ही में मुंबई और बैंगलोर सहित नए क्षेत्रों में अपना विस्तार किया है और अपनी पेशकशों और बाजार में उपस्थिति बढ़ाने के लिए बोनसारो और डॉ. मीट का अधिग्रहण किया है. कंपनी मध्य पूर्व में अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए भी उन्नत चरण में है, जिसमें अकार्बनिक विकास के लिए और अधिक अधिग्रहण शामिल हैं. वित्त वर्ष 2023-24 में जैपफ्रेश ने 7.6 करोड़ रुपये का प्रभावशाली EBIDTA और 90 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया. जैपफ्रेश ने कहा कि कंपनी अगले तीन वर्षों में 1,000 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही है. (अस्वीकरण : विशेषज्ञों द्वारा दी गई सिफारिशें, सुझाव, विचार और राय उनके अपने हैं. ये इकोनॉमिक टाइम्स के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं)

Ankita Rai

बाजार पर निबंध / Essay on Market in Hindi

बाजार पर निबंध / hindi essay on market.

प्रस्तावना बाजार एक ऐसा सार्वजनिक स्थान है जिस के बिना हम दैनिक जीवन के आवश्यक चीज़ें नहीं खरीद सकते है। कुछ बाजार स्थायी होते है और कुछ सार्वजनिक। आमतौर पर शहरों के बाजार स्थायी होते है और हर दिन खुले रहते है। सिर्फ एक दिन हफ्ते में बाजार बंद रहता है। रोजमर्रा  के आवश्यक वस्तुएं बाजार में आसानी से मिल जाती है। कोई भी मौसम हो स्थायी बाजार हमेशा खुले रहते है।  बाज़ारो में फल , सब्ज़ी , किराना से जुड़ी खाद्य सामग्री इत्यादि वस्तुएं सरलता से मिल जाती है। अक्सर लोग बाजार जाने  से पूर्व सामग्रियों की एक सूची बनाते है।  इस सूची का इस्तेमाल वह तब करते है जब वे बाजार से ज़रूरत की चीज़ें खरीदते है।

शहरों में कुछ जगहों पर साप्ताहिक बाजार भी लगते है। स्थायी बाजार शाम तक खुले रहते है।  दैनिक जीवन में जैसे ही घर का सामान समाप्त होने लगता है तो लोगो को एक ही जगह की याद आती है , वह है बाजार।  शहरों और महानगरों के बाजार बहुत बड़े होते है।  वह की सजावट बहुत सुन्दर होती है।  गाँव के बाजार अस्थायी होते है और इतनी रौनक नहीं होती। बाज़ारो में ग्राहकों और व्यापारियों की भीड़ लगी रहती है।

बाजार के दुकानों में स्टेशनरी वस्तुएं , चूड़ियां , गहने , कपड़े इत्यादि बिकते है। यहां इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे मोबाइल , फ्रिज , घड़ी,  रेडियो बाज़ारो में आसानी से मिल जाते है। बच्चो की पढ़ाई लिखाई से जुड़े किताबे , खिलौने इत्यादि सब बाज़ारो में मिल जाते है। खाद्य वस्तुएं जैसे मिठाई , चटपटी वस्तुएं , चॉकलेट से लेकर कोल्ड ड्रिंक इत्यादि चीज़ें बाज़ारो में मौजूद रहती है।

बाज़ारो में अनगिनत दुकाने होते है। वहाँ हम अपने मन पसंद की वस्तुएं खरीद सकते है।  अगर एक दुकान से कोई चीज़ ना पसंद आये तो दूसरे दुकान पर जाकर खरीद सकते है। कपड़े , जूते , गहनों  के बीस तीस दुकाने  रहते है। बाज़ारो में भोजन करने के लिए भी कई छोटे बड़े रेस्टोरेंट उपलब्ध रहते है। बाज़ारो में ऐसी चीज़ें अधिक होती है जो घरेलू महिला के काम में आये।

बाज़ारो में अक्सर व्यापारी आकर अपनी दुकान लगा लेते है। कुछ ही देर में ग्राहक अपनी ज़रूरत के अनुसार दुकान पर चले जाते है और  वस्तुएं खरीदते है । हर दिन ग्राहकों को अपने ज़रूरत के मुताबिक बाजार आना ही पड़ता है।  कई दुकानों पर ग्राहकों को चीज़ो को खरीदने के  लिए तोल मोल करना पड़ता है।

कई बार ग्राहकों को आभास हो जाता है कि दुकानदार जान बुझ कर अधिक दाम बता रहा है।  ऐसे में ग्राहक वस्तुओं का दाम लगाते है। अक्सर घर की महिलाओं को चीज़ो की अच्छी परख होती है।  थोक बाजार भी एक तरीके का अच्छा व्यापार है। इस प्रकार के बाजार में एक तरह की चीज़ अधिक मात्रा में खरीद  सकते  है। इससे ग्राहकों को फायदा होता है और सस्ते दाम में चीज़ें मिल जाती है।ग्राहकों की मांग पर वस्तुओं की कीमतें घटती या बढ़ती है।

अगर ग्राहकों की किसी भी वस्तु को लेकर मांग में वृद्धि हुयी , तो कीमतों में वृद्धि होती है।  जैसे ही बाजार में उसकी  मांग कम हो गयी, कीमतों में गिरावट  आ गयी।  महानगरों में बाजार बहुत विशाल और भव्य होते है। महानगरों में  शॉपिंग मॉल होते है जहां विभिन्न ब्रांड की चीज़ें मिलती है। शॉपिंग मॉल बहुत विशाल होते है और यहां कई सुविधाएं मौजूद होती है।  एक ही जगह में लोग में खरीदारी कर सकते है और फिल्में भी देख सकते है।शॉपिंग मॉल में मशहूर और लोकप्रिय रेस्टोरेंट में मौजूद है जहां लोग अपना मन पसंद भोजन कर सकते है।

शॉपिंग मॉल में कई तरह के विकल्प होते है और यहां के उत्पाद भी बढ़िया होते है।  आजकल लोग इतने व्यस्त हो गए है कि लोगो को शॉपिंग मॉल से खरीदारी करने में सुविधा मिलती है।  यहां आप कोई भी वस्तु का मोल भाव नहीं कर सकते है।  यहां वस्तु पर जो दाम लिखा रहता है ग्राहक वही दाम चुकाना पड़ता  है। मशहूर और नामचीन ब्रांड अपने वस्तुएं शॉपिंग मॉल में बेचती है। भारत में तकरीबन बड़े बड़े शहरों में बड़े बड़े मॉल जहां बाजार से लेकर कई और दिलचस्प सुविधाएं मौजूद है।

बाजार के बिना हमारा जीवन मुश्किल हो जाएगा।  हम सबको बाजार की अहमियत का  अच्छे से पता है। समाज में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति बाजार आता है और जरुरत के अनुसार खरीदारी करता है।किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद बाजार होता है। बाज़ारो की चमक दमक से लोगो का मन प्रफुल्लित हो उठता है।

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किसान पर निबंध 10 lines (Farmer Essay in Hindi) 100, 200, 250, 300, 500, शब्दों मे

essay about market in hindi 10 points

Farmer Essay in Hindi – वर्तमान सामाजिक-आर्थिक ढांचे में किसान समाज की रीढ़ हैं। हमारे द्वारा लिए जाने वाले लगभग सभी खाद्य पदार्थ किसानों द्वारा उत्पादित किए जाते हैं। इसलिए देश की पूरी आबादी किसानों पर निर्भर है। किसान दुनिया के सभी देशों की रीढ़ हैं चाहे उनका स्थान कोई भी हो। किसानों के अथक परिश्रम से अर्थव्यवस्था फल-फूल सकती है। वे ग्रह पर सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। हालाँकि, हमारे कल्याण के लिए कठोर गतिविधियों के बावजूद, अधिकांश देशों में किसानों के पास अपने लिए उचित जीवन यापन नहीं है।

लेखन कौशल सबसे महत्वपूर्ण कौशलों में से एक है जो सभी के पास होना चाहिए, और जिसे हर छात्र को विकसित करने की आवश्यकता है। लेखन के कई प्रकार होते हैं, लेकिन जो एक छात्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, वह है निबंध लेखन कौशल। क्योंकि निबंध में छात्रों को अपने विचारों और विचारों को रचनात्मक तरीके से व्यक्त करना होता है। और इसलिए, हिन्दी के लेखन और रचना खंड में, निबंध लेखन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

Farmer Essay in Hindi – इसलिए, हिंदी भाषा में किसान विषय पर निबंध लिखने में छात्रों की मदद करने के लिए, छात्र इस निबंध को एक मॉडल के रूप में उपयोग कर सकते हैं और समझ सकते हैं कि किसान के विषय पर एक अच्छा निबंध कैसे लिखा जाए।

किसान 10 लाइन पर निबंध (Essay on Farmer 10 Lines in Hindi)

  • खाद्य पदार्थ सभी मनुष्यों के लिए आवश्यक हैं, और किसान उन्हें उगाते हैं।
  • भारत गांवों की भूमि है, और भारत में अधिकांश लोग खेती में शामिल हैं।
  • किसान जो उगाता है, वही खिलाता है।
  • श्री लाल बहादुर शास्त्री ने किसान के संबंध में नारा दिया, “जय जवान और जय किसान।”
  • सभी कार्य भूमिकाओं को निभाने के बावजूद किसान को समाज का निम्न वर्ग माना जाता है।
  • किसान समाज का निर्माता है।
  • उनका बहुत व्यस्त और मेहनती शेड्यूल है।
  • उनके खेत की देखभाल करना और फसल बोना काम नहीं है; किसान करता है, लेकिन क्षेत्र में खाद, खाद और खाद देना भी उनका कर्तव्य है।
  • किसान फसलों की खेती करके अनाज को मंडियों में बेचता है, जहां से वह अपनी रोजी-रोटी कमाता है।
  • किसान पूरी तरह से ट्रेंडिंग तकनीक के साथ विकसित हो रहा है और विभिन्न कार्यों को लागू कर रहा है, जिससे उन्हें बहुत लाभ मिल रहा है।

किसान पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay on Farmer in Hindi)

एक किसान दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण और मूल्यवान व्यक्ति है। किसान उस व्यक्ति के लिए खड़ा है जिसका पेशा खेती है। वे भोजन और कच्चे संसाधनों के लिए या तो अपनी जमीन पर या अन्य लोगों की संपत्ति पर खेतिहर मजदूरों के रूप में काम करके जीवित जीवों की खेती करते हैं और उनका पालन-पोषण करते हैं।

खेती की प्रकृति के आधार पर, हमारे पास कई प्रकार के किसान हैं। उदाहरण के लिए, कुछ किसान पशुपालन, डेयरी फार्मिंग, बागवानी, फसल खेती और कई अन्य प्रकार की खेती के विशेषज्ञ हैं। उनके प्रयास देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसलिए, जिम्मेदार नागरिकों के रूप में, हमें राष्ट्र और हमारे समाज के जीवन के तरीके को संरक्षित करने के लिए उनके श्रम और प्रतिबद्धता का सम्मान करना चाहिए।

किसान पर 200 शब्दों का निबंध (200 Words Essay on Farmer in Hindi)

व्यक्तियों के रूप में, हम देख सकते हैं कि वर्तमान सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में, किसान देश की उन्नति के लिए सबसे महत्वपूर्ण समूह हैं। समाज में उनकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी का विकास पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। किसान कृषि उद्योग में काम करते हैं। देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा भी किसानों पर निर्भर करता है।

किसान वैश्विक आबादी का आधे से अधिक हिस्सा बनाते हैं और अधिकांश विकासशील देशों में रहते हैं। किसानों को अपने श्रम में बहुत लगातार और धैर्यवान होना पड़ता है। फ़सल काटने के लिए उन्हें कई दिन, महीने और शायद साल भी इंतज़ार करना पड़ता है। ट्रैक्टर, पानी पम्पिंग उपकरण, उर्वरक छिड़काव उपकरण आदि सहित किसान विभिन्न चरणों में फसलों का उत्पादन करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरणों का उपयोग करते हैं। वे इन उपकरणों की सहायता से अविश्वसनीय रूप से प्रभावी ढंग से काम करते हैं।

किसानों की कृषि उत्पादकता जलवायु परिस्थितियों से काफी प्रभावित होती है। जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने पर फसल उत्पादन से स्वस्थ फसल होती है; अन्यथा, फसलों के उत्पादन के लिए किसानों के प्रयास व्यर्थ होंगे।

इस प्रकार, कई विकासशील देशों में किसान राष्ट्रीय राजस्व के लिए आवश्यक हैं। खेती का सबसे कठिन पहलू श्रम है। हमें उनके द्वारा किए गए प्रयास का सम्मान करना चाहिए। उनका होना हमारा सौभाग्य है।

किसान पर 250 शब्दों का निबंध (250 Words Essay on Farmer in Hindi)

किसान वह है जो फसल उगाता और बेचता है। किसान आमतौर पर एक खेत पर काम करते हैं, जो जमीन का एक टुकड़ा होता है जहां वे फसल उगाते हैं या जानवर रखते हैं। खेती एक कठिन काम है क्योंकि किसानों को मौसम, कीट और अन्य समस्याओं से निपटना पड़ता है। हालाँकि, यह एक बहुत ही फायदेमंद काम हो सकता है क्योंकि किसानों को उनके श्रम का फल देखने को मिलता है। भारतीय किसान दुनिया के सबसे मेहनती लोगों में से हैं। उन्हें अत्यधिक गर्मी और मानसून से निपटना पड़ता है, लेकिन फिर भी वे देश को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन करने में कामयाब होते हैं। भारत में एक किसान का जीवन आसान नहीं है, लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है।

भारतीय किसान दुनिया के सबसे मेहनती लोगों में से हैं। वे यह सुनिश्चित करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं कि उनकी फसल स्वस्थ हो और अच्छी फसल हो। चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, वे अपने परिवारों और अपने समुदायों को प्रदान करने के लिए अथक रूप से काम करना जारी रखते हैं। वे भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और हमारे देश की खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

वे जो कुछ भी करते हैं, उसके लिए हम उनके आभारी हैं। किसानों के बिना, हमारे पास वह भोजन नहीं होगा जिसकी हमें जीवित रहने के लिए आवश्यकता है। वे हमें आवश्यक पोषण प्रदान करने के लिए दिन-रात अथक परिश्रम करते हैं, और वे हमारे सम्मान के पात्र हैं। अगली बार जब आप भोजन का आनंद लेने के लिए बैठें, तो उन किसानों के बारे में सोचें जिन्होंने इसे संभव बनाया और उन्हें धन्यवाद दें।

किसान पर 300 शब्दों का निबंध (300 Words Essay on Farmer in Hindi)

किसान किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की ताकत और रीढ़ होते हैं। हम जो भोजन करते हैं और जो भोजन हमें स्वस्थ और मजबूत रखता है वह किसानों द्वारा प्रदान किया जाता है। हम किसानों की मदद से इस ग्रह पर जीवित रहने में सक्षम हैं और इस प्रकार वे हमारे जीवन के सबसे मूल्यवान और महत्वपूर्ण लोग हैं। आंकड़ों के अनुसार, किसान भारत की अर्थव्यवस्था में लगभग 17% योगदान करते हैं। किसानों का समाज में बहुत महत्व है, लेकिन इतना उपयोगी होते हुए भी उनके पास जीवन यापन का उचित साधन नहीं है।

भारत में, किसानों को वह दर्जा नहीं मिलता जिसके वे हकदार हैं और इसलिए हर हफ्ते या महीने में, हम किसानों द्वारा आत्महत्या के कई मामले सुनते हैं। वे बहुत कठिन और कठिन जीवन जीते हैं और फिर भी उन्हें वे विशेषाधिकार नहीं मिलते जिनके वे वास्तव में हकदार होते हैं। आमतौर पर सब्जियों और फलों के व्यापार में लगे बिचौलियों को अधिकांश पैसा मिल जाता है और किसान अपने मूल अधिकारों से वंचित हो जाते हैं।

हाल ही में, कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि उनके पास जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है और इसलिए वे ऐसी जघन्य चीजें करने का सहारा लेते हैं। कई बार ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से उनकी फसल नष्ट हो जाती है और उन्हें सरकार से किसी प्रकार की प्रतिपूर्ति नहीं मिलती है। यह अंततः उन्हें गरीब और संसाधनों में दुर्लभ बना देता है और उनके जीवन को दयनीय बना देता है।

हाल ही में सरकार ने किसानों और उनके जीवन को बचाने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। सरकार ने उन्हें सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त कर दिया है और उन्हें सालाना 6000 रुपये का भुगतान भी किया जाता है ताकि वे अपने पेशे के अलावा कुछ अतिरिक्त कमाई कर सकें। साथ ही, सरकार ने विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में उनके बच्चों के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए कदम उठाए हैं ताकि वे शिक्षा से वंचित न रहें। ये सभी उपाय उन्हें बेहतर और स्वस्थ जीवन जीने में मदद करने के लिए किए जाते हैं। हालाँकि उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए और भी बहुत कुछ किया जा सकता है, हालाँकि, ये छोटे कदम उन्हें एक ऐसा जीवन जीने में मदद कर सकते हैं जिसके वे हकदार हैं।

किसान पर 500 शब्दों का निबंध (500 Words Essay on Farmer in Hindi)

किसान हमारे समाज की रीढ़ हैं। वे वही हैं जो हमें वह सब भोजन प्रदान करते हैं जो हम खाते हैं। नतीजतन, देश की पूरी आबादी किसानों पर निर्भर करती है। चाहे वह सबसे छोटा देश हो या सबसे बड़ा। उनकी वजह से ही हम ग्रह पर रह पा रहे हैं। इस प्रकार किसान दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण लोग हैं। हालांकि किसानों का इतना महत्व है फिर भी उनके पास उचित जीवन यापन नहीं है।

किसानों का महत्व

हमारे समाज में किसानों का बहुत महत्व है। वे ही हमें खाने के लिए भोजन उपलब्ध कराते हैं। चूंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन यापन के लिए उचित भोजन की आवश्यकता होती है, इसलिए समाज में यह एक आवश्यकता है।

विभिन्न प्रकार के किसान हैं। और उन सभी का समान महत्व है। पहले वे किसान हैं जो गेहूँ, जौ, चावल आदि जैसी फसलें उगाते हैं। चूँकि भारतीय घरों में अधिकतम खपत गेहूँ और चावल की होती है। अत: खेती में गेहूँ और चावल की खेती अधिक होती है। इसके अलावा, इन फसलों को उगाने वाले किसानों का प्रमुख महत्व है। दूसरे, वे हैं जो फलों की खेती करते हैं। इन किसानों को विभिन्न प्रकार के फलों के लिए मिट्टी तैयार करनी होती है। क्‍योंकि ये फल मौसम के अनुसार ही उगते हैं। इसलिए किसानों को फलों और फसलों के बारे में अच्छी जानकारी होनी चाहिए। कई अन्य किसान हैं जो विभिन्न प्रकार के पौधे उगाते हैं। इसके अलावा, अधिकतम फसल प्राप्त करने के लिए उन सभी को बहुत मेहनत करनी पड़ती है।

किसानों के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 17% का योगदान है। वह सबसे अधिक है। लेकिन फिर भी एक किसान समाज के हर ऐशो-आराम से वंचित है।

भारत में किसानों की स्थिति

भारत में किसानों की स्थिति गंभीर है। हम हर हफ्ते या महीने में किसानों की आत्महत्या की खबरें सुन रहे हैं। इसके अलावा, किसान सभी पिछले वर्षों से एक कठिन जीवन जी रहे हैं। समस्या यह है कि उन्हें पर्याप्त वेतन नहीं मिल रहा है। चूंकि अधिकांश पैसा बिचौलियों को मिलता है, इसलिए किसान के हाथ कुछ नहीं लगता। इसके अलावा, किसानों के पास अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए पैसे नहीं हैं। कई बार तो स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि उन्हें ठीक से खाना तक नहीं मिल पाता है। इस प्रकार किसान अकाल में चले जाते हैं। नतीजतन, वे आत्महत्या का प्रयास करते हैं।

इसके अलावा, किसानों की सबसे खराब स्थिति का दूसरा कारण ग्लोबल वार्मिंग है। चूंकि ग्लोबल वार्मिंग हमारे ग्रह को हर तरह से प्रभावित कर रही है, इसलिए यह हमारे किसानों को भी प्रभावित करती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में देरी हो रही है। चूंकि विभिन्न फसलों के पकने का अपना मौसम होता है, इसलिए उन्हें पोषण नहीं मिल रहा है। फसलों को बढ़ने के लिए उचित धूप और बारिश की जरूरत होती है। इसलिए यदि फसलें नहीं मिल रही हैं तो वे नष्ट हो जाती हैं। खेतों के नष्ट होने का यह एक मुख्य कारण है। नतीजा यह होता है कि किसान आत्महत्या कर लेते हैं।

किसानों को बचाने के लिए, हमारी सरकार उन्हें विभिन्न विशेषाधिकार प्रदान करने का प्रयास कर रही है। हाल ही में सरकार ने उन्हें सभी ऋणों से मुक्त कर दिया है। इसके अलावा, सरकार रुपये की वार्षिक पेंशन का भुगतान करती है। उन्हें 6000। इससे उन्हें अपने पेशे के अलावा कम से कम कुछ कमाई करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, सरकार उनके बच्चों को कोटा (आरक्षण) प्रदान करती है। यह सुनिश्चित करता है कि उनके बच्चों को उचित शिक्षा मिले। आज की दुनिया में सभी बच्चों को उचित शिक्षा मिलनी चाहिए। ताकि उन्हें बेहतर जिंदगी जीने का मौका मिले।

अंत में, खेती एक ऐसा पेशा है जो कठिन परिश्रम और प्रयास करता है। इसके अलावा हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए हमें अपने देश के किसानों की मदद के लिए पहल करनी चाहिए।

किसान पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1. किसान हमारे जीवन में किस प्रकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

उत्तर: किसान वह है जो हम सभी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वे ही हैं जो हमें भूख लगने पर भोजन देते हैं। किसानों के बिना हम किसी भी भोजन का उपभोग नहीं कर सकते हैं। किसान फसल, पशुपालन करता है और समाज के लिए सब कुछ जोश से करता है।

प्रश्न 2. आप एक किसान के जीवन का वर्णन कैसे कर सकते हैं?

उत्तर: किसान को कृषि के रूप में भी जाना जाता है। वे मुख्य रूप से खेती करने, पशुओं को पालने में लगे हुए हैं। वे उपभोग के लिए आवश्यक कच्चे माल का उत्पादन करते हैं। किसान वह है जो फसल उगाने के दौरान कई कठिनाइयों का सामना करता है, जैसे कि कीट का हमला, सूखा और बाढ़। किसान का जीवन काफी कठिन होता है। बहुत से किसान निम्न मध्यवर्गीय समाज के हैं।

Hindi Essay

10 Lines on Importance of Money in Hindi | पैसे के महत्व पर 10 वाक्य

10 lines on importance of money in hindi.

10 Lines on Importance of Money in Hindi | पैसे के महत्व पर 10 वाक्य – आज के समय में पैसे की बहुत अहमियत हो गई है। वे हमारे जीवन में व्यक्तिगत, सामाजिक और मानसिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। पैसे से हम अपनी जीवन शैली में सुधार कर सकते हैं और अपनी सेवाओं और व्यापार का विस्तार कर सकते हैं, अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। पैसे से हम समाज में योगदान दे सकते हैं और अपने समुदाय और संगठन को समृद्ध कर सकते हैं। इसलिए धन का महत्व बहुत अधिक हो गया है। तो आइए जानते हैं कि पैसा हमारे लिए क्यों जरूरी है।

Set (1) 10 Lines on Importance of Money in Hindi

1. पैसा एक मूल्यवान संपत्ति है जिससे हम अपनी पसंद या जरूरत की चीजें खरीद सकते हैं।

2. हमें अपने जीवन के हर पड़ाव पर पैसे की आवश्यकता होती है चाहे वह वयस्कता हो, बचपन हो या फिर बुढ़ापा।

3. मूल रूप से सभी चीजों को खरीदने, बेचने और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे की जरूरत होती है।

4. यह बाजार में किसी भी वस्तु का मूल्य निर्धारित करता है।

5. हम सभी वस्तुओं और सेवाओं को प्राप्त करने के लिए पैसा का आदान-प्रदान करते हैं।

6. पैसा वह चीज है जो लोगों को गरीब और अमीर में अलग करता है।

7. पूरे विश्व में वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय मुद्रा से होता है।

8. प्रत्येक राष्ट्र की अपनी मुद्रा होती है और यह बताती है कि किस प्रकार के धन का उपयोग किया जाता है।

9. पैसे का बार-बार उपयोग किया जाता है, इस प्रकार यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास जाता है।

10. यह हमें शिक्षा, परिवार की देखभाल, स्वास्थ्य देखभाल और दान जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है।

*************************************************

Set (2) 10 Lines on Importance of Money in Hindi

1. पैसा हमारी सभी बुनियादी जरूरतों जैसे भोजन, आश्रय, पानी और कपड़े को पूरा करने का मुख्य स्रोत है।

2. विश्व में सभी लोग मेहनत करके पैसा कमाते हैं।

3. हम सभी को धन की आवश्यकता होती है और यह जीवन जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति है।

4. लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं का विनिमय धन से करते हैं।

5. व्यवसाय करने में पैसा एक आवश्यक कारक है।

6. मुद्रा के आने से पहले प्राचीन काल में विनिमय प्रणाली प्रचलित थी।

7. पूरी दुनिया में पैसे का महत्व उस देश की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है।

8. अर्थशास्त्र में धन को एक ऐसे वित्तीय साधन के रूप में कहा गया है जो हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

9. खाना खाने, सामान खरीदने, यात्रा करने और अपना जीवन जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है।

10. इस प्रकार पैसा हमें अपना जीवन चलाने और अपनी जरूरतों को पूरा करने में मदद करता है।

ये भी देखें –

  • 10 Lines on Importance of Time in Hindi
  • 10 Lines on Importance of Trees in Hindi
  • 10 Lines on Importance of Education in Hindi

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Q&A. 10 Lines on Importance of Money in Hindi

पैसे का महत्व क्या है?

उत्तर – पैसा आपके और आपके परिवार के लिए आश्रय और सुरक्षा खरीद सकता है। हम सभी को उन चीजों का भुगतान करने के लिए धन की आवश्यकता होती है जो हमारे जीवन को संभव बनाती हैं, जैसे कि भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल और एक अच्छी शिक्षा।

सबसे मजबूत मुद्रा कौन सी है?

उत्तर – कुवैती दिनार कुछ समय के लिए दुनिया की सबसे ऊंची मुद्रा रही है। तेल की इतनी अधिक मांग के साथ, कुवैत की अर्थव्यवस्था तेल निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है, इसके पास सबसे बड़ा तेल का वैश्विक भंडार है।

दुनिया का सबसे पुराना पैसा कौन सा है?

उत्तर – ब्रिटिश पाउंड, दुनिया की सबसे पुरानी मुद्रा है जिसका उपयोग 1,200 से अधिक वर्षों से किया जा रहा है।

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दा इंडियन वायर

हिंदी भाषा का महत्व पर निबंध

essay about market in hindi 10 points

By विकास सिंह

importance of hindi language

विषय-सूचि

हिंदी भाषा का महत्व पर निबंध (Importance of hindi language)

हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है। हिंदी भाषा का महत्व सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में काफी अधिक है।

हिंदी भाषा में 11 स्वर और 35 व्यंजन होते हैं और इसे “देवनागरी” नामक एक लिपि में लिखा जाता है। हिंदी एक समृद्ध व्यंजन प्रणाली से सुसज्जित है, जिसमें लगभग 38 विशिष्ट व्यंजन हैं। हालाँकि, ध्वनि की इन इकाइयों के रूप में स्वरों की संख्या निर्धारित नहीं की जा सकती है, बड़ी संख्या में बोलियों की मौजूदगी के कारण, जो व्यंजन प्रदर्शनों की सूची के कई व्युत्पन्न रूपों को नियोजित करती हैं।

हालाँकि, व्यंजन प्रणाली का पारंपरिक मूल सीधे संस्कृत से विरासत में मिला है, जिसमें अतिरिक्त सात ध्वनियाँ हैं, जिन्हें फारसी और अरबी से लिया गया है।

हिंदी भाषा किन क्षेत्रों में बोली जाती है?

500 मिलियन से अधिक बोलने वालों के साथ, चीनी के बाद हिंदी दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी को भारत के “राजभाषा” (राष्ट्रभाषा) के रूप में अपनाने से पहले इसमें काफी बदलाव आया है।

इंडो-आर्यन भाषाई वर्गीकरण प्रणाली के सिद्धांत के अनुसार, हिंदी भाषाओं के मध्य क्षेत्र में रहती है। 1991 की जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदी को “देश भर में एक भाषा” के रूप में भारतीय आबादी के 77% से अधिक द्वारा घोषित किया गया था। भारत की बड़ी आबादी के कारण हिंदी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है।

1991 की भारत की जनगणना के अनुसार (जिसमें हिंदी की सभी बोलियाँ शामिल हैं, जिनमें कुछ भाषाविदों द्वारा अलग-अलग भाषाएं मानी जा सकती हैं – जैसे, भोजपुरी), हिंदी लगभग 337 मिलियन भारतीयों की मातृभाषा है, या भारत के 40% लोगों की है। उस वर्ष जनसंख्या।  एसआईएल इंटरनेशनल के एथनोलॉग के अनुसार, भारत में लगभग 180 मिलियन लोग मानक (खारी बोलि) हिंदी को अपनी मातृभाषा के रूप में मानते हैं, और अन्य 300 मिलियन लोग इसे दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करते हैं।

भारत के बाहर, नेपाल में हिंदी बोलने वालों की संख्या 8 मिलियन, दक्षिण अफ्रीका में 890,000, मॉरीशस में 685,000, अमेरिका में 317,000 है। यमन में 233,000, युगांडा में 147,000, जर्मनी में 30,000, न्यूजीलैंड में 20,000 और सिंगापुर में 5,000, जबकि यूके, यूएई, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी हिंदी बोलने वालों और द्विभाषी या त्रिभाषी बोलने वालों की उल्लेखनीय आबादी है जो अंग्रेजी से हिंदी के बीच अनुवाद और व्याख्या करते हैं।

हिंदी भाषा का विकास (growth of hindi language)

1947 के विभाजन के बाद भारत सरकार द्वारा समर्थित संक्रांति दृष्टिकोण से हिंदी की वर्तमान बनावट बहुत प्रभावित है। स्वतंत्रता से पहले अपने मूल रूप में, हिंदी ने उर्दू के साथ मौखिक समानता की काफी हद तक साझा की है। हिंदी और उर्दू को अक्सर एक ही इकाई के रूप में संदर्भित किया जाता था जिसका शीर्षक था “हिंदुस्तानी”।

इसके साथ ही कई अन्य भाषाओं जैसे अवधी, बघेली, बिहारी (और इसकी बोलियाँ), राजस्थानी (और इसकी बोलियाँ) और छत्तीसगढ़ी। हालाँकि, यह दृष्टिकोण वस्तुतः प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान और सार्वजनिक सूचना के माध्यम की वकालत करता है, जो वाराणसी बोली की तर्ज पर भारतीय विद्वानों द्वारा विकसित एक संस्कृत-उन्मुख भाषा को रोजगार देता है।

लिपि:

देवनागरी लिपि

महत्वपूर्ण लेखक:

रामधारी सिंह ‘दिनकर’, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन, हरिवंश राय बच्चन, नागार्जुन, धर्मवीर भारती, अशोक बजाज, अशोक बजाज, अशोक बजाज चंद्र शुक्ला, महादेवी वर्मा, मुंशी प्रेमचंद, फणीश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई, रामवृक्ष बेनीपुरी, चक्रधर शर्मा गुलेरी, विष्णु प्रभाकर, अमृत लाल नागर, भीष्म साहनी, सूर्यकांत निराला आदि को हिंदी के सबसे मशहूर लेखकों में गिना जाता है ।

हिंदी स्थानीयकरण और सूचना प्रौद्योगिकी

हिंदी टाइपिंग में इस्तेमाल किए जाने वाले कई लोकप्रिय फॉन्ट हैं; यूनिकोड, मंगल, क्रुतिदेव, आदि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की एक टीम पहले से ही मशीनी अनुवाद सॉफ्टवेयर को विकसित करने और हिंदी को मानकीकृत करने के लिए काम कर रही है, हालाँकि वे इसके माध्यम से कोई बड़ा तोड़ नहीं बना पाए हैं।

हिंदी भाषा की बढ़ती प्रोफ़ाइल के प्रति हाल की चेतना ने लाखों हिंदी बोलने वालों को आशा दी है और आशा है कि आने वाले समय में हिंदी को मान्यता मिलेगी और संयुक्त राष्ट्र आधिकारिक भाषा बन जाएगी। यह समय हिंदी केंद्र, हिंदी विश्वविद्यालयों, हिंदी गैर सरकारी संगठनों और लाखों हिंदी भाषियों को हिंदी की रूपरेखा बढ़ाने के लिए हाथ मिलाना चाहिए। हिंदी सिनेमा और बॉलीवुड ने पहले ही अच्छा योगदान दिया है, इसी तरह हिंदी मीडिया ने भी चमत्कार किया है।

वैश्विक मोर्चे पर हिंदी के बढ़ते महत्व के आधार पर, अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद और हिंदी से अंग्रेजी अनुवाद के लिए भविष्य उज्ज्वल है। हालाँकि, भारतीय को अंग्रेज़ी शब्दकोश और अंग्रेज़ी से हिंदी शब्दकोश में ऑनलाइन हिंदी विकसित करने और ऑनलाइन हिंदी भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करने के प्रयासों की आवश्यकता है।

[ratemypost]

विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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धन्यवाद !

Finally I got a nice speech

thank you vikas singh bhai

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